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बुधवार, 17 दिसंबर 2008

संपर्क अप्रैल २००८ - संपादकीय

हमारी प्रार्थना है की हर निराश और हारे विश्वासी के लिए संपर्क सुख की सौगात हो। उससे आपको आत्मिक समझदारी प्राप्त हो और एक ऐसे अंतर्दृष्टि जिससे आप अपने अन्दर झांक सकें।

एक बीवी बहुत गुस्से में थी। काम करने वली आयी नहीं...। मियां बोले, "एक दिन नहीं आई तो क्या हुआ!!" बस क्या था जैसे बम्ब के गोली को चिंगारी दिखा दी हो। "झाडू बर्तन कौन करेगा? तुम्हारी मां तो हाथ हिलाती नहीं। बहन खा खा कर एक क्विंटल की हो रही है; और फिर आज पता कैसे चलेगा की मोहल्ले में क्या क्या हो हुआ? मुझे तो आज संतोष की मां को खरी-खरी पहुंचानी थी ताकि उसकी अक़ल ठिकाने आ जाए।" बेचारे पति ने घबराकर अख़बार उठाया और मुंह पर फैला कर एक कोने में बैठ गया। अब उसकी समझ में आया की उसकी बीवी की छाती पर भारीपन और गले में सुरसुरी क्यों हो रही थी; और यह भी की उसके कानों की खुजली कैसे मिटेगी?

दोष ढूँढना और दोष देना यह हमारे स्वाभाव का एक ऐसा हिस्सा है जो हमारे अन्दर दूसरो के प्रति बैर के भावः को उत्तपन करता है। ऐसी ही बीमारी से ग्रसित लुका १५ अध्याय में वह बड़ा भाई दिखाई देता है.

बड़ा भाई सारे भले काम करता था। उसमे एक भी बुराई नहीं दिखती थी। अपनी स्वारथ के लिए उसने एक भेड़ का बच्चा भी कभी अपनी बाप से नहीं माँगा। बहुत मेहनती, ईमानदार और आज्ञाकारी था, हाँ आज्ञाकारी हत्यारा था। "जो अपनी भाई से बैर रखता है उसमे प्रकाश नहीं और वह हत्यारा है" (१ युहन्ना २:९, ३:१५)। वह अपने अन्दर प्रकाश न होने के कारण अपने आप को देख नहीं पाया था। क्योंकि उसकी आंखों में बैर का लट्ठा था जो अपनी भाई के तिनके को ढूढं रहा था।

मत्ती ७:३-५ में लट्ठे और तिनके का मूळ तत्व एक ही है। यह तत्व पाप को दिखाते हैं। आँख सब से अधिक संवेदनशील जगह है जिसको एक छोटा सा तिनका भी धुंधला कर देता है। एक तिनके के कारण आदमी कुछ भी करने के लायक नहीं रहता, जब तक वह तिनका आँख से बाहर न आ जाए। आदमी बेचैन रहता और किसी काम के योग्य नहीं बचाता। एक भी पाप जब तक जीवन में साफ़ न हो तो वह हमें प्रभु के किसी काम के लायक नहीं छोड़ता।

किसी की आँख से तिनका निकलना भी बड़ा नाज़ुक काम है। आप की लापरवाही दुसरे को अँधा कर सकती है। इसलिये पहले आप अपने अन्दर देख लें। एक खुबसूरत सचाई यह है की आप अपने अन्दर की बदसूरती को देखना शुरू कर दें। जांचने की प्रक्रिया को अगर शुरू करना है तो अपने आप से करियेगा।

प्रभु मेरे द्वारा कभी काम नहीं करेगा जब तक की वह पहले मुझ में काम न कर ले। इसलिए वोह इस तरह कहता है की प्याले का उपयोग न करो जब तक की प्याले को अन्दर से साफ़ न कर लो। इसीलिए वह यहूदियों से कहता है की 'तुम पात्र को बाहर से मांझते हो' प्रभु के कहने का तात्पर्य था की मैं पात्र को अन्दर से मान्झता हूँ। अगर कोई डॉक्टर गंदे हाथों से किसी मरीज़ का ऑपरेशन करने जा रहा हो तो वह उसे बचाने नहीं, पर मारने जा रहा है।

उत्पत्ति १:४ में प्रभु ने ज्योति को अंधकार से अलग किया। यह कुछ अजीब सी बात है। क्या प्रकाश में भी अंधकार होता है? परमेश्वर के आत्मा के द्वारा इसे समझने की कोशिश करें। धूप में चलते आदमी की परछाई अंधकार में तो नहीं होती पर धुन्धालाई ज़रूर होती है। उसमें मिला हुआ अंधकार ही उस परछाई को जन्म देता है। अगर वह सम्पूर्ण ज्योति हो तो फिर छाया का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। एक ही प्रकाश है जिसमें ज़रा भी अंधकार नहीं। "...परमेश्वर ज्योति है और उसमें कुछ भी अंधकार नहीं" (१ यहुन्ना १:५)। परमेश्वर को कभी किसी ने नहीं देखा। क्यों नहीं देख पाए? पौलुस ने थोडी सी झलक देखी और वोह अंधा होकर गिर पड़ा। युहन्ना ने उसकी हलकी सी झलक देखि और वोह ख़ुद अपनी कलम से अपने बारे में क्या कहता है? "जब मैं ने उसे देखा तो उसके पैरों पर मुर्दा सा गिर पड़ा..." (प्राक्षित्वाक्य १:१७)। आदमी तो क्या स्वर्गदूत भी जो स्वर्ग में रहते हैं परमेश्वर को कभी मुंह उठाकर भी नहीं देख सकते। इतना उज्जवल और महान प्रकाश है की कोई उसके सन्मुख खड़ा नहीं रह सकता।

जब हम स्वर्ग में जायेंगे और यदि स्वर्ग में परमेश्वर को न देख पाए तो फिर स्वर्ग का क्या आनंद? १ युहन्ना ३:२ में लिखा है "हम भी उसके सामान होंगे, क्योंकि उसको वैसा ही देखेंगे जैसा वोह है "। परमेश्वर हमें अपनी समानता में अंश-अंश करके बदलता जाता है। यही है ज्योति को अंधकार से अलग करना। प्रभु कहता है, "तुम जगत की ज्योति हो।" परमेश्वर मुझ में से और आप में से अंधकार को अलग करना चाहता है। वह हमें भी वही ज्योति बनाना चाहता है, जिसमें कुछ भी अंधकार नहीं। यह काम उसने उत्त्पत्ति में शुरू किया और प्राक्षित्वाक्य में पुरा करेगा। उसकी इच्छा है की 'तुम भी अपने स्वर्गीय पिता के सामान बनो'।

आपकी प्रार्थनाओं के लिए हम दिल से आभारी हैं। कृपया इसको पढ़ने के बाद दूसरों के पास ज़रूर पहुंचाएं। साथ ही आपके सुझावों का स्वागत है। कृपया इसके लिए आप पात्र लिखें या फ़ोन करें। आपकी प्रार्थनाओं का अभिलाषी - संपादक

संपर्क - पूर्वावलोकन

संपर्क ब्लॉग प्रयास है आप तक एक बहुत महत्वपूर्ण संदेश पहुँचने का - एक ऐसा संदेश जो आपके अन्नंत्कालीन भविष्य को निर्धारित करने की क्षमता रखता है।

संपर्क वास्तव मैं एक पत्रिका है, जो मात्र व्यक्तिगत प्रसार के लिए प्रकाशित एवं वितरित की जाती है। मुझे भी इस पत्रिका को पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ और दिल में यह भावना जागृत हुई की संपर्क के संदेश को और भी व्यापक रूप से उपलब्ध होना चाहिए। इलेक्ट्रॉनिक मध्यम की संभावनाओं तथा पहुँच के कारण, इस माध्यम का उपयोग इस कार्य के लिए सर्वथा उचित लगा।

संपर्क के पूर्व अंकों को बारी बारी यहाँ प्रस्तुत करूँगा, प्रारम्भ अप्रैल २००८ के अंक से करता हूँ। मुझे पूर्ण विश्वास है की उद्धार-करता प्रभु येशु का यह संदेश न केवल पाठकों को प्रभु येशु के साथ अपने सम्बन्ध के बारे में सोचने पर बाध्य करेगा, वरन क्रिस्चिअनिटी या मसीही विश्वास से सम्भंदित कई ग़लत धारणाओं को भी दूर करेगा।

पाठकों में से जो प्रभु येशु मसीह पर विश्वास करते हैं और उसे अपनी निज उद्धार करता के रूप में ग्रहण कर चुके हैं, उनसे निवेदन है की अपनी प्रर्थानों में संपर्क पत्रिका एवं उसके लेखक तथा संपादक को, संपर्क को ऑन-लाइन लाने के इस प्रयास को, तथा इसके समस्त पाठकों को स्मरण रखें। तथा प्रभु से मांगें की यह सभी सामर्थी रूप से प्रभु के लिए उपयोगी हो सकें।

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