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शनिवार, 10 दिसंबर 2011

संपर्क अक्टूबर २०११ - कहीं देर न हो जाए

विश्व का एक बड़ा विद्वान बड़ी बेवकूफी की बात कहता है, “विज्ञान सब कुछ कर सकता है - विज्ञान एक ऐसी गोली बनाएगा कि बदमाश उसे खाएगा और सन्त बन जाएगा। सारा देश शरीफ बन जाएगा। न चोरी होगी, न पति-पत्नि में लड़ाई, न हत्या होगी और अमीर शोषण करना बन्द कर देंगे। क्या कभी ऐसा हो सकता है? ज़रा सोचिए! क्या विज्ञान सब कुछ कर सकता है? एक गोली खिलाओ और बदमाश शरीफ बन जाए? एक गोली खिलाओ और आपके घर के झगड़े मिट जाएं? एक गोली खिलाओ सरकारी कर्मचारी और नेता रिश्वत लेना छोड़ दें और बड़ी मेहनत करने लगें? अगर ऐसा हो पाता तो नर्क बनती यह दुनिया कब की स्वर्ग बन जाती। विज्ञान सब कुछ नहीं कर सकता। सच है, विज्ञान मानव का बहुत सहायक रहा है, पर उसने उसे भयानक हथियार भी दिए हैं; हवा, पानी, पर्यावरण - सब कुछ दूषित कर दिया और ज़हरीला बना दिया है।

तुम उधर रह गए, हम इधर

जो विज्ञान नहीं कर सका, क्या हमारे धर्म कर सकते हैं? कितने ही संप्रदाय मोक्ष-मुक्ति की कितनी ही युक्ति बताते और सिखाते हैं; ऐसी युक्ति जो कभी मुक्ति नहीं दे सकती। धर्मों ने भी अपनी एड़ी-पन्जों का पूरा ज़ोर लगा लिया, लेकिन उसने आदमी को आदमी नहीं, उग्रवादी ज़रूर बना दिया।

हमारे धर्म हमें इन्सानियत से कहीं दूर ले गए हैं। हमारे धर्मों की दीमक इन्सानी प्यार को कहीं चट कर गई है।

प्यार का पुल टूट गया,

तुम उधर रह गए,

और हम इधर,

धर्मों की धाराओं ने हमें आपस में बांट दिया है। हम इन्सान नहीं रहे; अब हम इसाई, मुसलमान, सिक्ख और हिन्दू बन कर जी रहे हैं।

जब तक हम जन्म के आधार पर आदमी पर धर्म थोपते रहेंगे, तब तक संसार धर्मों का यह अधर्म सहता रहेगा, और भयानक उग्रवाद को, आपसी जलन और द्वेष को और निर्दोषों की हत्या को भोगता रहेगा। पूरे मानवीय इतिहास में कभी भी इतने अधर्म के काम नहीं हुए जो धर्म के नाम पर आज हो रहे हैं।

खूनी खबरों से लतपथ

खूनी खबरों से लथपथ अखबार हर सुबह हमारे दरवाज़े पर डाल दिया जाता है। हम आदी हो गए हैं ऐसी खबरों के और ऐसी ही खबरें हमें खबरें लगती हैं बाकी सब खबरें बकवास हैं।

हम ईमानदारी की बात तो करते हैं और ईमानदारी के आन्दोलन भी करते हैं। पर हम दुसरों के साथ क्या ईमानदार होंगे, जब हम खुद अपने ही साथ ईमानदार नहीं? हमारा विवेक हम से कहता है, “तू लालची है।

एक पति से कहता है, “तू अपनी पत्नि के साथ ईमानदार नहीं; तू घमंडी है

हम अपने विवेक की आवाज़ को टाल कर अपने आप से कहते हैं, “बिना रिश्वत दिए कहाँ काम चलता है?”

रेल में बिना टिकिट चलने से कोई पाप थोड़े ही लगता है? इतना तो चलता है, सब करते हैं

जैसे मछली जीवन भर पानी में रह कर कभी यह नहीं जान पाती कि मैं गीली हूँ, वैसे ही आदमी जीवन भर पाप में रह कर कभी यह एहसास नहीं कर पाता कि मैं पापी हूँ।

आदमी को सही और गलत की कोई चिन्ता नहीं। उसे चिन्ता है तो सिर्फ अपने स्वार्थ और अपनी मस्ती की। सच तो यह है कि हम अपने आप से ही ईमानदार नहीं। क्या आप अपनी ज़िन्दगी को बहुत करीब से देख सकते हो, जहाँ आपके पाप आपको साफ दिखाई दें?

एक नहीं, एक भी नहीं

किसी आदमी से पूछिएगा! क्या कुछ और चाहिए? वह कहेगा, “हाँ थोड़ा और मिल जाता तो क्या बात होती! मेरी नाक सही नहीं है। रंग थोड़ा सा और साफ होता,

मेरे सिर पर कुछ ज़्यादा बाल होते,

मेरे पास उस के जैसी बीवी होती,

या उसके जैसा पति होता तो मैं ज़्यादा खुश होती

एक नहीं, एक भी नहीं,

जो भी ज़िन्दगी में चाहा मिल गया और बहुत मिला पर खुशी नहीं मिली, तो फिर क्या मिला? ऐसी ज़िन्दगी के साथ ज़रूर कोई कमी है।

यहाँ पर कौन खुश है और कौन सन्तुष्ट?

ऐसी कोई ज़िन्दगी नहीं

जिसमें कोई ग़म न हो।

परेशानी न हो,

बेचैनी न हो।

एक नहीं, एक भी नहीं.

एक बच्चा बहुत सन्तुष्ट है - उसकी सोच में भी नहीं है कि बिजली के बिल का क्या होगा? शाम के खाने में क्या मिलेगा? एक मोज़ा अलग रंग का है दूसरा अलग रंग का; निक्कर पीछे से फटी हो, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता और ना ही उसे कोई चिंता सताती है। ऊँगली पर चोट लगे तो एक छोटी से पप्पी उसके दर्द को कम कर देती है। यहाँ तो वह हाल है कि दर्द की गोली खाकर भी अपने दर्द और परेशानियों को गाते फिरते हैं।

पाप ही परेशानी का मूल कारण है। कोई भी अहंकारी आदमी, घमंडी आदमी, लालची, स्वार्थी, क्रोधी आदमी न खुश रहेगा और न ही किसी को रहने देगा। वो न खुशी से जीएगा और न ही खुशी से जीने देगा। आपको ज़रूर कुछ बातें परेशान करती होंगी। जैसे: शायद कुछ पड़ौसी, नौकरी में आपका बॉस, परिवार में आपके रिश्तेदार, पत्नि या पति। या फिर आपकी कुछ बुरी लतें। एक भी नहीं जो परेशान न हो। क्योंकि एक भी ऐसा नहीं जिसने पाप न किया हो।

डूबता डूबते को कैसे बचाएगा

कोई पापी किसी पापी को कैसे छुटकारा दे सकता है या पाप से निकाल सकता है? खुद डूबता हुआ आदमी किसी डूबते हुए को कैसे बचा सकता है? धर्म, कानून हालात हमें पाप की परेशानियों से नहीं छुड़ा सकते। रिश्वत लेते ही एक डर सताने लगता है। बिना टिकिट रेल में चढ़ते ही आप यात्रा का आनन्द खो देते हैं और डर के साथ यात्रा काटते हैं। जब तक आप उतर नहीं जाते लगातार एक डर आपको सताता है। रिश्वत के साथ बेचैनी का डर खाता रहता है। रिश्वतखोरी की धर-पकड़ की खबरें आपको डराती रहती हैं। आप जीवन की यात्रा का सारा आनन्द खो देते हैं। आपका व्यभिचार आपके घर की खुशी को झगड़ों में बदल डालेगा। आपका पाप आपके जीवन की यात्रा का आनन्द ही खत्म कर देगा। बात यहीं नहीं थमेगी। पाप की बात तो मौत के बाद आगे तक आपके साथ जाएगी। एक परमेश्वर का दास कहता है,

हाय मुझे कौन इस पाप की देह से छुड़ाएगा?”

परमेश्वर ही है जिसमें कोई पाप नहीं है। यीशु में कोई पाप नहीं है, क्योंकि यीशु परमेश्वर है। क्या आप यीशु का नाम सुनते ही इसाई धर्म के बारे में तो नहीं सोचने लगते? क्या यह पत्रिका आपको किसी धर्म के बारे में बता रही है? आप माने या ना मानें, इस पत्रिका का इसाई धर्म से कोई लेना देना नहीं है। हमारा पूरा विश्वास है कि किसी का धर्म परिवर्तन करना पाप है। हम आपको यीशु के बारे में बता रहे हैं जो आपको पाप के श्राप से, बेचैनी के श्राप से छुटकारा देने आया।

उसने वो शान्ति दी,

आनन्द दिया,

वो प्यार दिया, कि जीवन ही दीये की तरह चमकने लगा,

वह धर्म देने नहीं आया,

वो जीवन देने आया,

प्यार भरा प्यारा सा जीवन।

मौके तो हमेशा इंतज़ार नहीं करते

मौके हमेशा के लिए नहीं रहते। पर यह मौका आपके लिए ठहरा है कि आप नाश न हों। जिन्होंने अपने पाप से पश्चाताप नहीं किया उन्होंने अपना अन्त ठहरा लिया है। आपको एक मौका मिल रहा है जो कितनों को नहीं मिला। पर आप कितने सौभाग्यशाली हैं कि परमेश्वर ने आपको फिर यह मौका दिया है कि आप अपने पाप से पश्चाताप करके एक प्रार्थना करें, “हे यीशु मुझ पापी पर दया करें

कुछ जो साथ थे वो मिट कर आज इतिहास में हैं। जो बचे हैं वो कल के इतिहास में किसी भी वक्त चले जाएंगे। मैं अपने एक मित्र को उसकी आखिरी विदाई देने जा रहा था। यह उसका आखिरी सफर था। उसे शमशान तक छोड़ना था। शमशान में एक अजीब सी खामोशी थी। पर उस खामोशी का डर हर एक चेहरे पर साफ था। वहाँ आते ही सबको अपनी-अपनी मौत का डर सताने लगता है। जब कभी ज़िन्दगी के बीच मौत की तस्वीर उभर कर आती है तब सब कुछ व्यर्थ लगने लगता है। मौत तो हर एक के रास्ते में है, बस हम सबका वक्त अलग-अलग हो सकता है।

वक्त तेज़ी से डूब रहा है। सच मानिए अब बहुत शीघ्र ज़मीन पर कुछ ऐसा गुज़रेगा जिसे हमने कभी सोचा भी नहीं था। अब बहुत तेज़ी के साथ कुछ होगा ज़रूर जिसे कोई रोक नहीं पाएगा। सुबह से शाम तक कई हादसों के बारे में हम सुनते हैं। हो सकता है आप कुछ हादसों से बच भी निकलें हों पर अभी कोई आखिरी हादसा है जो आपका इंतिज़ार कर रहा है। शायद एक दिल का दौरा आपके जीवन की राह पर है जो धीरे-धीरे बढ़ रहा है। आपको मालूम भी नहीं होगा और अचानक खेल खत्म हो जाएगा। मौत आपके हाथ से हर मौका ले लेगी। आपकी बीमारी और परेशानी आपको मौत तक ही परेशान कर सकती है। पर इकलौता पाप ही है जो मौत के बाद भी आपको भयानक परेशानी में डाल सकता है। वहाँ कभी भी परेशानियों का अन्त न होगा। पर वहाँ जो होगा वह सब अनन्त होगा।

शायद आपकी हर आस उजड़ चुकी हो और सारी हिम्मत बिखर चुकी हो। लगता हो कि अब कुछ भी सुधरने वाला नहीं। चाहे आप कितने ही बड़े पापी क्यों न हों और कितना ही हारे हुए क्यों न हों। अब आपको लगता हो कि मैं ज़िन्दगी से पूरी तरह हार चुका हूँ। प्रभु यीशु आपको कहता है, “मत डर, मैं हूँ, मैं तुझे बनाऊँगाहे बोझ से थके मांदे लोगों मेरे पास आओ

यह सन्देश आपके लिए वह कर सकता है जो आप अपने लिए कभी नहीं कर सकते। यह आपको वह दे सकता है जो आप कभी पा नहीं सकते। यह आपको ऐसी खुशी और शान्ति और पापों की क्षमा दे सकता है। बस! विश्वास कर के एक प्रार्थना की ज़रूरत है, “हे यीशु मुझ पापी पर दया करें। मेरे पाप को यीशु के नाम से क्षमा करें। बस यही प्रार्थना असंभव काम को संभव कर डालती है।

आप इस पत्रिका को पढ़ कर चुपचाप एक तरफ रख सकते हैं। पर आप फिर यह नहीं कह पाओगे कि प्रभु आपने मुझे पाप से पश्चाताप का मौका कब दिया?

आपके पास समस्याएं हैं। पर हो सकता है कि मेरे पास आप से भी बड़ी समस्याएं हों। लेकिन मेरे पास मेरी समस्याओं से भी बड़ा मेरा परमेश्वर है। जो मुझ जैसे आदमी से भी प्यार करता है। उसने मेरे और आपके पापों के लिए अपने प्राण दिये। वह इतना सामर्थी है कि मर कर फिर जी उठा। उसी से मैंने एक दिन कहा था, “हे यीशु! मुझ पापी पर दया कर के मेरे पापों को माफ कर दो और मुझे अपने लहू से धो दो। इन कुछ पलों की प्रार्थना के बाद मैं ने एक नया जीवन जीया है। सच मानिए,

बहुतायत का जीवन,

अद्भुत जीवन,

आनन्द का जीवन।

क्या आप एक ऐसी प्रार्थना करके प्रभु को परख कर देखेंगे?

हे यीशु! मुझ पापी पर दया करें

शनिवार, 3 दिसंबर 2011

संपर्क अक्टूबर २०११ - संपादकीय

इस संपर्क में आपके प्रवेश के लिए आपका स्वागत है। मैं आपसे व्यक्तिगत तौर से सीधी बात करूँगा। सीधे आपसे, जी हाँ! सिर्फ आप ही से।

हमारे शब्द पैदा होते हैं और फिर मर जाते हैं। क्योंकि वे एक मरण्हार के शब्द हैं। मैं आपसे जीवित शब्दों के बारे में बात करूँगा। यह वो शब्द हैं जो परमेश्वर से जन्में हैं जो कभी मरता नहीं और ये शब्द भी नहीं मरेंगे। ये शब्द केवल कागज़ पर छपे शब्द नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि ये शब्द यहीं रह जाएंगे। पर यह शब्द आपका पीछा करेंगे क्योंकि ये ज़िन्दा शब्द हैं, ज़िन्दा परमेश्वर के शब्द हैं। ये मौत के बाद भी आपका पीछा नहीं छोड़ेंगे। इन्हीं श्ब्दों के द्वारा मौत के बाद आपका इन्साफ भी होगा।

वचन कहता है, “प्रभु के वचन को अपने मन में अधिकाई से बसने दो” (कुलुस्सियों ३:१६)। प्रभु आपको इसलिए पुकार रहा है क्योंकि वह आपका जवाब चाहता है। मान लीजिए कि आप जान-बूझ कर मुझे अनसुना कर दें तो आप मेरा अपमान करते हैं। अगर आप आज परमेश्वर की आवाज़ को सुनकर अनसुना कर दें तो यह उसका अपमान करना है। वह आपके इंतज़ार में है। वह चाहता है कि यह शब्द आपके दिल में जगह पाएं।

आदमी के मन में बहुत जगह है,

भलाई भुलाकर और बुराई सजाकर रखने की

ज़रा झांको तो अपने मन में कितनों के लिए बुराई है?

और कितनों की भलाई भूल गए?

आदमी की बात तो छोड़िए,

परमेश्वर के एहसानों का भी एहसास नहीं रहा।

संवारते शब्द

परमेश्वर के शब्द चोट तो बहुत करते हैं। इनकी चोट दर्द ही नहीं देती, पर यह दवा भी है। इनकी चोट इसलिए है कि आप दिल से अपने लिए एक दुआ कर सकें। दिल से निकली दुआ ही दवा बन जाएगी। आप अभी, जी हाँ अभी, आज ही कह कर तो देखिए, “प्रभु मुझे आपकी बात मानने का दिल दीजिए

आम किताबों में शब्दों को फूलों और तितलियों की तरह दबा कर रख दिया जाता है। वो वहाँ रखे अच्छे तो लगते हैं पर उनमें जीवन नहीं होता। जिन शब्दों में जीवन नहीं वो जीवन क्या देंगे? पर परमेश्वर के शब्दों में जीवन है, बहुतायत का जीवन है। इन शब्दों को अपना कर तो देखो। इसलिए वचन को प्रार्थना के साथ ध्यान से पढ़ो और ध्यान से सुनो।

मैं इन शब्दों से सिर्फ पन्ने नहीं भरना चाहता, पर चाहता हूँ कि इनकी सच्चाई आपके जीवन में उतर आए। पौलुस के वे शब्द जो उसने पवित्र आत्मा के द्वारा लिखे हैं, “हमारी पत्री तुम ही होजिसे स्याही से नहींपर जीवते परमेश्वर के आत्मा सेहृदय की मांस रूपी पट्टियों पर लिखा है” (२ कुरिन्थियों ३:-)। आपके स्वभाव से लोग क्या पढ़ते हैं? स्वभाव से ज़िन्दगी पढ़ी जाती है। केवल आपको ही नहीं, लोग आपके परिवार को भी पढ़ते हैं।

कुछ विश्वासी गवाही देते हैं।

गवाही अच्छी है।

जी हाँ, आपकी गवाही अच्छी है!

पर यह तो कल की है!

आपकी आज की क्या गवाही है?

क्या प्रभु से पहला सा प्यार है;

क्या पहला सा लगाव है?

प्रभु के काम के लिए,

प्रभु के घर के लिए,

प्रभु के लोगों के लिए,

ज़रा आज की सच्चाई तो बताना,

अपनी आज की गवाही तो बताना!

अभी इन शब्दों को जो आप पढ़ रहे हैं, क्या परमेश्वर इन के द्वारा आपसे बात कर रहा है? आप सुनें या ना सुनें, समझें या ना समझें, ये शब्द आपका पीछा कर रहे हैं। आप कहो तो सही, प्रभु मुझे सुनने वाले कान दे।

सामर्थी शब्द

धन्य हैं वे जो परमेश्वर के वचन को सुनते और मानते हैं” (प्रकाशितवाक्य १:)। वचन को सुनना है, मानना है, जीना है और इसे दूसरों को बताना है।

क्या आप मानते हैं?

क्या आप जीते हैं?

क्या इसे दूसरों को बताते हैं? हाँ या नहीं - अपने आप से पूछिएगा।

मसीह तो बहुतों के जीवन में है; पर बहुत कम हैं जिनका जीवन मसीह है, जो दूसरों को बताते हैं कि मसीह ने उनके लिए क्या किया। पर अब लोग देखना चाहते हैं कि आप मसीह के लिए क्या करते हैं?

हे प्रभु मुझे शक्ति दो और अभी दो। आपने मेरे लिए बहुत किया, अब मैं भी आपके लिए कुछ कर सकूँ, हाँ आज से ही, अभी से ही। अगर कोई शक्ति आपको यह प्रार्थना करने को मजबूर कर रही है, तो रुकिएगा नहीं। आपके दिल की दुआ कोई सुन रहा है, आप यकीन करें।

आपकी प्रार्थनाएं ही हमें पवित्र और इमानदार रख सकती हैं। आपकी प्यार भरी प्रार्थनाओं से आज तक हम संभले रहे हैं।

इसी उम्मीद से कि आप हमें अपने प्रार्थनाओं से संभाले रखेंगे - संपर्क संपादक

रविवार, 10 अप्रैल 2011

संपर्क फरवरी २०११ - थोड़ी सी खुशी भिजवा दो

एक पति ने पत्नि से कहा, "देखो चाँद कितना खूबसूरत लग रहा है।" बीवी बोली, "कोई नई बात करो। यह तो रोज़ ही निकलता है। दवाई खा ली तुमने? खालो नहीं तो फिर भूल जाओगे।" पति बोला, "अभी खाता हूँ।" पत्नि ने फिर पूछा, "क्या आज छुटके का फोन आया था?" पति बोला, "हाँ आया था। कह रहा था, बता देना; किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो, भिजवा दूंगा।" पत्नि ने जवाब दिया, "कह देते कि भिजवा सकता है तो थोड़ी सी खुशी भिजवा दे।"

जीवन में इतना सब पाया और इतना कमाया, फिर भी इतने कंगाल हैं कि खुशी के लिये तरसते हैं। क्योंकि खुशी कभी पैसे से नहीं खरीदी जाती। लोग खुशी पाने के लिये बहुत पैसा खर्च कर डालते हैं। जब जीवन में कोई खुशी नहीं बचती तो तब आदमी मौत माँगने लगता है।

जीवन की सच्चाई इतनी सख्त होती है कि आदमी बिखर जाता है। जैसे जीना चाहता है, वैसा जी नहीं पाता। जैसे सोचता है, वैसे नहीं होता। वह सब सहना पड़ता है जिसके बारे में कभी सोचा नहीं था। आखिर आदमी इतना बेचैन क्यों है? बीमारियों ने, परेशानियों ने, खामियों ने और कमियों ने उसे सारी खुशियों से खाली कर डाला है। आदमी करे तो क्या करे? मन माने या न माने, पर आप सच तो जानें। हर परेशानी की जड़ में पाप है जो हमारी खुशियों को घुना की तरह खा जाता है। कहीं पाप के श्राप से आपकी खुशियाँ तो नहीं खो गईं?

पाप के जैसी मनहूस कोई और चीज़ है ही नहीं। हमारा एक पाप हमें निकम्मा बना देता है। हममें से ऐसा कोई भी नहीं जिसमें पाप न हो; और इस पाप को कम करना या खत्म करना यह आदमी के बस की बात नहीं, और न ही किसी धर्म के बस की बात है। अगर इसाई धर्म ही आदमी को अच्छा बना सकता तो संसार में ३ अरब आदमी तो अच्छे होते! दुनिया में पाप बढ़ता जा रहा है, और जहाँ पाप है वहाँ श्राप है। पाप ने इस दुनिया को इतना भयानक बना दिया है कि क्या जाने कौन कब आपके साथ क्या कुछ कर डाले। लाखों बच्चों और औरतों के साथ ऐसे ज़ुल्म किये जाते हैं जिनको सुनकर रौंगटे खड़े हो जाते हैं। दुनिया दरिंदों से भरी पड़ी है।


वहाँ, जहाँ से फिर कभी कोई नहीं लौटा


धर्म भी इतना अन्धा कर देता है कि लोग मुर्दों की कब्र पर कपड़ों की बड़ी-बड़ी चादरें चढ़ाते हैं, पर वहीं खड़े नंगे और ठंड से कांपते भिखारी को वे देख नहीं पाते।

धार्मिक दंगों में एक गर्भवती महिला का पेट चीरकर मार डाला, और उसकी बेटी को निकालकर आग में डाल दिया। इस तरह कितना इन्सानी लहू बहाया जा रहा है, और वह लहू चीख रहा है। क्या यह सब परमेश्वर देख रहा है? सह रहा है? आखिर क्यों? आखिर वह क्यों कुछ नहीं करता? वह करने को तो पल भर में सब कुछ कर डाले। पर चाहता है कि कोई एक भी नाश न हो; किसी तरह पश्चाताप करके बच जाए। वह बरदाशत कर रहा है, पर आदमी नरक जाने से पहले ही इस दुनिया को नारकीय बनाने में जुटा है। नरक वह स्थान है जहाँ एक बार जाकर फिर कभी कोई वापस नहीं आ सकता।

हमारी अकड़ हमें झुकने नहीं देती। जो झुक नहीं सकता वह अपने मन में देख नहीं सकता। हमारा मन भी मानता नहीं, हमें धोखा देता है और झुकने नहीं देता। क्या आप आज अपनी ज़िन्दगी से, घर से खुश हैं, संतुष्ट हैं? क्या सब ठीक हो जाएगा? या आप इस विचार से खेल रहे हैं कि जो होगा देखा जाएगा। जिसे अपने किए पर कोई अफसोस नहीं होता वह कैसे पश्चाताप करेगा?


अपनों को पराया बना लिया


जो आप अपने बारे में सोचते हैं वो सब आपके लिए अच्छा नहीं है। मैं आप से पूछता हूँ, आपके शब्द कैसे हैं, वह जो आप अपनी पत्नि से, पति से, अपने बच्चों से, परिवार में और अपने पड़ौस में बोलते हैं? क्या आप अपने शब्दों से दूसरों का अपमान कर के बदला लेते हैं? यही शब्द अपनों को पराया बना देते हैं और दिलों में दूरियाँ ले आते हैं। शायद आपके साथ बहुत बुराई की गयी। जो बुरा आपके साथ हो रहा है, उस बुराई को सोचकर आप और ज़्यादा बुराई से भरते चले जाएंगे और कभी बाहर नहीं आ पाएंगे। बदले की जलन से जलते रहेंगे, जिससे आप अपनी खुशियों को खत्म कर डालेंगे।

अगर आप फैसला कर लें कि मैं इस बुराई से बाहर निकलूँगा, तभी आप इन बुराईयों से बाहर आ सकते हैं। परमेश्वर का वचन कहता है, "बुराई को भलाई से जीत लो" (रोमियों १२:२१)। अभी प्रार्थना करें, "हे प्रभु यीशु, जिन्होंने मेरा बुरा किया है, मैं उनके लिए कुछ भला कर सकूँ। मैं उनके लिए भी भला सोच सकूँ। शायद आपके शत्रु इतने असहाय हों कि वे अपने लिए प्रार्थना भी न कर पाते हों। आप उनकी मदद कीजिएगा और उनके लिए प्रार्थना कीजिएगा। ढूँढिएगा उस मौके को जहाँ आप उनकी भलाई कर सकें। अगर आज आप भलाई बोएंगे तो आप भलाई ही को काटेंगे। यही नहीं, वहाँ भी आपके लिए भलाई ही होगी।

अभी इसी समय एक प्रार्थना करके फैसला लें।

बहुत सारे विचार चुप रहने को कहेंगे, लेकिन अगर आप परमेश्वर से बात कर लें तो बात बन जाएगी। अभी कहकर तो देखें, नहीं तो देरी दूरी बढ़ा देगी। ज़िन्दगी बहुत ही बेवफा है, कब दग़ा दे जाए, मालूम नहीं।

बुधवार, 6 अप्रैल 2011

संपर्क फरवरी २०११ - सब कुछ सह लेता है

एक अजीब सी कहानी है जो २ हज़ार ४ सौ ५४ भाषाओं में लिखी गई। अरबों ने इसे पढ़ा है। करोड़ों लोग रोज़ इसे पढ़ रहे हैं और यह असंख्य लोगों का जीवन बदल रही है। इस कहानी को समझाने के लिये आपसे एक कहानी कहता हूँ।

ये खूबी है उस खूबसूरत प्यार की

एक ऊँची पथरीली चट्टान पर एक ऊँचे मकान की ऊँची बुर्ज पर एक मेमने की मूरत बनी थी। किसी ने मकान के मालिक से पूछा, "यह यहाँ क्यों लगाई है? कुछ अजीब सी नहीं लगती?" मकान मालिक ने जवाब दिया, "यह अजीब सी मूरत एक अजीब सी बात की याद दिलाती है। देखो यहाँ से इस पथरीली भूमि पर एक मज़दूर गिरा था और ज़िन्दा बच गया; मालूम है कैसे? यहाँ पर एक मेमना खड़ा था, वह आदमी उस पर गिरा; मेमना मर गया परन्तु आदमी बच गया। अगर मेमेना न मरता तो आदमी न बचता। अगर मेमेना यहाँ न होता तो वो आदमी ज़िन्दा न होता।"

अजीब सी बात है, समझ में नहीं आती पर सच्चाई है। मेरी मौत निश्चित थी अगर यीशु मेरे लिये मरा न होता। साथ ही आज ये अद्भुत जीवन मेरे पास न होता, और न ही मेरे पास यह खुशी होती, अगर यीशु ने क्रूस पर वो दुख न सहा होता। यीशु ही वह मेमेना है जो जगत के पाप उठा ले जाता है।

उसके प्यार की कहानी ही क्रूस की कहानी है। मुझे परमेश्वर इस क्रूस की कहानी को समझाने की शक्ति दे और आप को उसे समझने की। आज परमेश्वर अपने प्यार को आप पर प्रकट करे।


आदमी मरता क्यों है?


मैं आपसे एक सवाल पूछता हूँ; आदमी क्यों मरता है? कैसे मरता है? क्या बुढ़ापे से, दुर्घटना से, आत्महत्या से, बम से या बारूद से? परमेश्वर का वचन कहता है कि आदमी इन सबसे नहीं मरता; वह तो अपने पाप के कारण मरता है, "क्योंकि पाप की मज़दूरी तो मौत है" (रोमियों ६:२३)। यीशु में आदमी का स्वभाव नहीं था, यानि पाप का स्वभाव नहीं था। इसलिए वह मर नहीं सकता था। फिर यीशु क्यों मरा? क्योंकि उसने मेरे पापों को अपने ऊपर ले लिया। एक अकेली मौत ने सारे संसार को हिला डाला। एक मौत ने इतना जीवन फैलाया है और इतने जीवन बदल रही है, और ऐसा इसके अलावा कभी मानव इतिहास में हुआ नहीं। वह मरकर जी उठा! उसमें जीवन है; जीवन जो वास्तव में जीने लायक है।


बहुत मुशकिल है


बहुत मुश्किल है कुछ आदमियों को प्यार करना; हम उन से नफरत करते हैं पर परमेश्वर उन्हें भी प्यार करता है। परमेश्वर अपने दुश्मनों को भी प्यार करता है। यह खुदा के प्यार की खूबसूरती है। उसके प्यार की खूबसूरती लोगों को अपने प्यार से बाँधे रखती है। प्यार सबसे सामर्थी है। कोई शक्ति उसे मिटा नहीं सकती। परमेश्वर के ऐसे प्यार से हमें कौन अलग कर सकता है? (रोमियों ८:३१)

आदमी पाप से इतना प्यार करता है कि उसके लिये सब कुछ कर जाता है। परमेश्वर पापी को इतना प्यार करता है कि वो उसके लिये सब कुछ कर जाता है। मुझ और आप जैसे के लिये परमेश्वर ने क्या कुछ नहीं किया?

लालच पाप है,
जिसके लिये आदमी क्या कुछ नहीं कर देता।
व्यभिचार पाप है,
जिसके लिये आदमी क्या कुछ नहीं कर देता।
घमंड पाप है
जिसके लिये आदमी क्या कुछ नहीं कर देता।

पर प्यार इंतज़ार करता है और वह सब कुछ सह लेता है; हाँ, क्रूस की मौत भी सह लेता है। परमेश्वर प्यार है, वह आपका इंतज़ार कर रहा है। वह आपकी बर्दाशात कर रहा है। आपके लिये उसके पास अभी भी आशा है।


जब मैं अपने आप से मिला


जब मैं अपनी असलियत से मिला तब मुझे मालूम हुआ कि मैं कितना मक्कार हूँ। जो दिखता हूँ, मैं वो हूँ नहीं। जो मैं अपने बारे में सोचता था पर मैं वैसा था नहीं। मेरे इतने काले कारनामे थे कि मुझे अपने ऊपर शर्म आती है। हर काली रात से भी काली थी मेरी छिपी ज़िन्दगी। इस पूरी तरह हारे हुए आदमी को प्रभु यीशु ने हमेशा की जीत में लाकर खड़ा कर दिया।

हो सकता है कि आप में से कुछ अपने आप से थक गए होंगे और हारे से खड़े होंगे। आपके सपने शायद साकार नहीं हुए होंगे। आशा तो बहुत रखी होगी पर निराशा ही मिली होगी। आपके पाप इतने शर्मनाक होंगे कि आपको खुद बताते हुए शर्म आती होगी। पर आपकी हर हार को जीत में बदलने के लिए आज फिर एक मौका आपके सामने है। आज कोई आपसे कह रहा है "देख मैं सब कुछ नया कर दूँगा" (यशायाह ४३:१९)। वह इस नए साल में सब कुछ नया कर देगा, यह उसका वायदा है।


अभी हम हार कर भी हारे नहीं


आप अपने से हिम्मत हार रहे हैं। हिम्मत हारना एक तरह से हार को न्यौता देना है। पर सच तो यह है कि अभी हम हारे नहीं हैं। वह हमारी हर हार को जीत में बदल सकता है। निराशा से निकाल कर आशा में ला सकता है। क्या आपको मालूम है कि मेरे जीवन में यह एक प्रार्थना - "हे यीशु, अब तू दया कर दे", से हुआ है। मसीह के आते ही मेरी ज़िन्दगी में निखार आ गया। अगर यीशु क्रूस पर नहीं होता तो मेरी शर्मनाक कहानी सब के सामने होती।

कोई शत्रु इतना सामर्थी नहीं, जिसे मसीह हरा न सके,
कोई परेशानी इतनी बड़ी नहीं, जिसे यीशु निकल न सके,
कोई लत इतनी बड़ी नहीं, जिसे यीशु छुड़ा न सके,
ऐसा कोई पाप नहीं, जिसे यीशु माफ न कर सके,
कोई रुकावट ऐसी नहीं, जिसे यीशु दूर न कर सके;

वह तुम्हारे सोचने से ज़्यादा सामर्थी है। (इफिसियों ३:२०)


ज़िन्दगी की कीमत तो पूछो


मेरी गलतियाँ मेरे दोस्तों के दिमाग़ से नहीं निकलतीं। मैं उन गलतियों के लिये दोस्तों से माफी भी मांग चुका हूँ, पर वक्त आने पर मेरी उन गलतियों को वो फिर मेरे सामने ले आते हैं, जिन्हें मेरा प्रभु माफ कर के भूल भी चुका है, मिटा चुका है। आदमी की माफी और परमेश्वर की माफी मे ज़मीन आसमान का फर्क है।

यह कहानी कहने का मेरा एक ही उद्देश्य है, कि आप मसीह की कहानी पर विश्वास करें। जो आदमी मौत माँगता था, और मौत पाने के लिए बहुत कुछ कर भी डाला, पर मौत थी कि हर बार उसे छोड़कर दूर कड़ी हो जाती थी; उस आदमी से इस ज़िन्दगी की कीमत पूछो।

माफी माँगकर फिर वही करना मेरी आदत थी। पर माफी देकर माफ करना उसकी आदत है। मैं कई बार अपनी बदी से बाज़ नहीं आया; और वह मुझे माफी देने से बाज़ नहीं आया। कैसे वह मुझ जैसे आदमी से प्यार करता है? बहुत प्यार से वह अपने हाथ मुझ पर रखकर कहता है, तू मेरा ही है (यशायाह ४३:१)।

सब कुछ तेरा है,
प्रतिज्ञाएं तेरी हैं,
स्वर्ग तेरा है,
और तो और स्वर्ग का मालिक भी तेरा है,
क्योंकि तू मेरा है!

क्या था, क्या बना दिया,
क्या बनाएगा!
क्या प्यार है, क्या क्षमा है,
क्या जीवन है!
मेरे प्रभु की क्या बात है!


मैं तो बस यह करता हूँ - उसके इस प्यार को गाता हूँ और दूसरों को बताता हूँ।

अब आप पर है कि आप अब क्या करते हैं?

रविवार, 3 अप्रैल 2011

संपर्क फरवरी २०११ - आइए ना, यहाँ आईना है

मेरा नाम पुष्पा है, मेरा जन्म फरीदाबाद के एक पंजाबी परिवार में हुआ। हमारा परिवार १९४७ में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय मुल्तान सूबे से भारत के फरीदबाद (हरियाणा) में आकर बस गया था।

शुरू से ही मैं धार्मिक प्रवृति की थी और उपवास करती थी। सन १९८४ की बात है जब मैं कक्षा ८ में पढ़ रही थी, एक दिन मैं अपनी एक सहेली के घर गई, परन्तु वह घर पर नहीं थी। लेकिन उसकी माँ ने मुझसे प्रभु यीशु के बारे में बात करने के इरादे से कुछ देर रुकने को कहा। वह कहने लगी कि क्या मैं तुम्हारे साथ प्रार्थना कर सकती हूँ? मैंने उनसे हाँ कह दिया। मुझे उनकी प्रार्थना कुछ अलग सी लग रही थी, क्योंकि वे आँखें बन्द करके, बिना किसी को आधार बनाए वह किससे माँग रही थी, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। लेकिन जो भी उन्होंने प्रभु यीशु के बारे में बताया, वह मैंने साधारण विश्वास से मान लिया। वह सब बातें मैंने अपने घर आकर अपनी बड़ी बहनों के साथ बांटीं। क्योंकि मैं घर में सबसे छोटी थी इसलिए मैं उनके साथ अपनी बातों को बांट लिया करती थी।

एक दिन मेरी सहेली की माँ रविवार की सुबह मुझे और मेरी दो बहनों को परमेश्वर के भवन में लेकर गईं। वहाँ हमने और भी विस्तार से प्रभु यीशु के प्यार के बारे में एक प्रभु के भक्त से सुना। वहां मैंने और मेरी दो बहनों ने उसी दिन प्रभु को अपना व्यक्तिगत उद्धारकर्ता के रूप में ग्रहण किया। फिर हमने प्रभु के वचन को भी पढ़ना शुरू कर दिया।

हमारे मोहल्ले में, जहाँ हम रहते थे कुछ विश्वासी बहनें सप्ताह में एक बार प्रार्थना के लिये इकट्ठी हुआ करतीं थीं। वहाँ हमें भी जाने का मौका मिलता था। बहनों की उस सभा में सब बहने अपनी बाइबल खोलकर बताती थीं कि प्रभु ने उनसे बात की है। पर मुझे यह समझ नहीं आता था कि प्रभु कैसे बातें करता है? जब मैंने एक बहन से पूछा तो उन्होंने मुझे समझाया कि किस प्रकार प्रभु बातें करते हैं इसलिए मैंने भी प्रार्थना करना शुरू कर दिया "प्रभु आप मुझ से भी बातें कीजिए और मेरे पाप माफ कर दीजिए।" एक बार जब मैं प्रभु का वचन पढ़ रही थी तो मेरे सामने यशायाह ४४:२२ का पद आया जिसमें लिखा था, "मैंने तेरे अपराधों को काली घटा के समान और तेरे पापों को बादल के समान मिटा दिया है, मेरी ओर फिर लौट आ, क्योंकि मैंने तुझे छुड़ा लिया है।" मुझे यह पढ़कर बहुत अच्छा लगा। पहली बार मैंने एहसास किया कि प्रभु ने मुझसे बात की। उसके बाद मैंने प्रतिदिन प्रभु के भय में जीना शुरू कर दिया। मुझे यह निश्चित हो गया था कि मेरे पाप माफ हो गये हैं और अब प्रभु की दृष्टि में कुछ पाप करने में मुझे भय लगने लगा।

एक बार की बात है, हमारे यहाँ मेला लगता था, जिसमें मैंने एक दुकान से आईना चुरा लिया था। पर जब मैं घर आई तो मेरी आत्मा में बहुत बेचैनी होने लगी और मैंने एहसास किया कि मुझे चोरी नहीं करनी चाहिए थी। सो मैंने वह आईना दुकानदार को वापस करने का निर्णय कर लिया। लेकिन मेरे सामने समस्या यह थी कि यदि मैं दुकानदार के सामने गई तो वह मुझे बहुत मारेगा। तो मैंने सोचा कि जिस तरह मैंने चोरी की थी वैसे ही चुपके से मैं उसे वहीं रख दूँगी। लेकिन प्रभु ने ऐसा नहीं होने दिया और मैंने उस दुकानदार को सब कुछ बता कर वह आईना लौटा दिया और उससे माफी माँगी। वह व्यक्ति बहुत खुश हुआ कि दुनिया में ऐसे भी बच्चे हैं जो चोरी की चीज़ वापस भी कर सकते हैं। एक बार मेरी किसी आँटी से बहस हो गई, जबकि उसमें मेरी कोई गलती नहीं थी, फिर भी उसके बाद मैंने उनसे माफी माँग ली। यह सब देखते हुए मेरे माता-पिता ने मुझे और मेरी बहनों को रविवार की सभाओं में जाने से नहीं रोका, क्योंकि वे सोचते थे कि हमारे बच्चे कुछा गलत काम तो कर नहीं रहे हैं।

इस तरह हम प्रभु की संगति में जाने लगे और हमें वहाँ जाकर कुछ-कुछ समझ में भी आने लगा था। हमें वहाँ समझाया गया कि यदि हम उपवास के साथ परमेश्वर से कुछ माँगें तो वह ज़रूर सुनता है। एक बार मेरी ९वीं कक्षा का परिणाम आना था परन्तु मैंने एक पेपर ठीक से नहीं लिखा था, इसी कारण मेरे मन में डर था कि कहीं फेल न हो जाऊँ सो मैंने उपवास के साथ प्रभु के चरणों में जाने का फैसला लिया। मैंने फैसला किया कि जब तक प्रभु मेरे परिणाम के बारे में मुझे तसल्ली नहीं देगा, तब तक मैं परिणाम सुनने स्कूल नहीं जाऊंगी। मैं उपवास के साथ प्रभु से प्रार्थना करती रही। तभी प्रभु ने भजन संहिता के एक पद मेरी सफलता के बारे में बात की। वचन के उसी पद पर विश्वास रखते हुए कि प्रभु ही मुझे सफलता देंगे, मैं परिणाम सुनने स्कूल की ओर चल दी। अभी मैं रास्ते में ही थी कि मुझे पता चला कि मैं काफी अच्छे अंकों से पास हो गई हूँ। मैंने वहीं पर प्रभु क धन्यवाद किया। इस तरह प्रभु छोटी-छोटी बातों से मेरे विश्वास को बढ़ाता रहा।

उसके बाद परिवार की ओर से मेरे विश्वास की वास्तविक परख शुरू हो गई। जब मैंने परिवार के रीति-रिवाज़ों को मानने से मना कर दिया, तो मेरे पिता ने, जो बड़े सख्त स्वभाव के व्यक्ति थे, मुझ पर बहुत पाबन्दी लगा दी। वे सोचते थे कि मेरी बड़ि बहन तो उनके हाथ से निकल चुकी है, यह अभी छोटी है और वे मुझे इस मार्ग पर नहीं चलने देंगें। मेरी बहन और छोटा भाई मेरे माता-पिता को दुखी नहीं देखना चाहते थे। इसलिए उन्होंने परमेश्वर के भवन में जाना बन्द कर दिया। मेरी बड़ी बहन तो नौकरी करती थी इसलिए वह तो वहीं से सभाओं में चली जाती थी, परन्तु मेरा आना-जाना बन्द हो गया था। लेकिन जैसे ही कभी मुझे बाज़ार जाने का मौका मिलता, मैं वहीं से सभाओं में चली जाती थी। ऐसा करते हुए मैं कई बार पकड़ी गई परन्तु प्रभु ने मुझे नहीं छोड़ा। जब भी कोई त्यौहार का मौका होता, तो यह जानकर कि पापा ज़बर्दस्ती करेंगे, हम दोनो बहनें बाथरूम में छिप जाती थीं। कई बार मुझे बहुत मार पड़ी। एक दिन उन्होंने मुझे डाँटते हुए कहा, "क्या अब भी तू अपनी बहन के नक्शे-कदम पर चलेगी?" पता नहीं कैसे मेरे मूँह से निकल गया, "मैं अपनी बहन के नहीं परन्तु यीशु के पीछे चलूँगी।"

उसके बाद मेरी बड़ी बहन के विवाह की बात आई। मेरी बहन ने ठान लिया था कि वह किसी विश्वासी लड़के से ही विवाह करेगी। लेकिन मेरे पापा ने ऐसा करने से मना कर दिया। परन्तु हमारी बहुत प्रार्थनाओं के बाद वे मेरी बहन का एक विश्वासी लड़के से विवाह करने के लिए मान गए। हमारे यहाँ इस तरह का यह पहला विवाह था, और इसके कारण मेरे पिता को समाज का सामना करन पड़ा। मन मारकर उन्होंने मेरी बहन का विवाह कर दिया। मेरी बहन के पति का स्वभाव काफी मिलनसार होने के कारण मेरे पिता का स्वभाव मेरे प्रति भी नरम हो गया था। विवाह के चार साल बाद मेरी बहन के पति प्रभु के पास चले गए। मेरे पिता को बहुत दुख हुआ। इसी कारण वे मुझे शनिवार और रविवार को मेरी बहन के घर भेज दिया करते थे कि मैं अपनी बहन के दुख में हाथ बंटा सकूँ।

इसके बाद मेरे पिता ने मेरी बहन से मेरे विवाह के बारे में पूछना शुरू कर दिया। प्रभु का धन्यवाद हो कि उसके बाद १९९७ में मेरा विवाह भी एक विश्वासी से हो गया। वे हमेशा ही प्रभु के काम के लिए समय-असमय तैयार रहते हैं। प्रभु ने मेरे विवाह के बाद न केवल आत्मिक आशीशें दीं बल्कि सब प्रकार कि आशीषें दीं। प्रभु ने हमें एक बेटी और एक बेटा आशीष के रूप में दिये। इन सब के लिए मैं प्रभु का धन्यवाद करती हूँ। इन सब के बाद भी जब कभी मैं इस संसार में अपने आप को अकेला महसूस करती हूँ तो तभी प्रभु यीशु का सामर्थी हाथ और उसकी अद्भुत शांति को अपने अन्दर महसूस करती हूँ जो वर्णन से बाहर है। कई बार मैंने अपने प्रभु पर अविश्वास किया लेकिन उसने मुझे आज तक नहीं छोड़ा। वह आज तक मेरे साथ भला रहा है। प्रभु का धन्यवाद हो, मैं जो उसकी बेटी नहीं थी, मुझे उसने संसार से चुनकर अपनी बेटी बना लिया।

- पुष्पा
फरीदाबाद (हरियाणा)