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रविवार, 27 अप्रैल 2014

नूह के दिन और लूत के दिन

बाइबल की भविष्यवाणियों के सन्दर्भ में, आज के समय में नूह तथा लूत के दिनों से क्या तात्पर्य है; जानने के लिए पढ़िए:

नूह के दिन और लूत के दिन
For any further information or query, the author of this booklet can be contacted through his email id given at the end of the last page of this booklet.

किसी भी अन्य जानकारी अथवा उत्तर के लिए, इस पुस्तिका के लेखक से ईमेल द्वारा सीधे संपर्क किया जा सकता है; लेखक का ईमेल पता पुस्तिका के अन्तिम पृष्ठ के अन्त में दिया गया है।

शनिवार, 26 अप्रैल 2014

हिन्दी संपर्क का अप्रैल 2013 का अंक

हिन्दी संपर्क का अप्रैल 2013 का अंक पीडीएफ स्वरुप में यहाँ से पढ़िए:


संपर्क अप्रैल 2013

मंगलवार, 25 मार्च 2014

Rapture and The Second Coming of Christ

These messages about the Rapture were delivered at the Church at Panvel in the last week of December 2013.

The Theme verse of this series of meetings was 1 Corinthians 15:51 … Behold, I shew you a mystery; We shall not all sleep, but we shall all be changed, (1 Corinthians 15:51).

People have different views regarding the timing (not the date) of the rapture i.e. as to when the Rapture will occur (before, during or after the Tribulation Period). The speaker here gives a clear idea as to the most probable timing of the rapture i.e. Before the Great Tribulation period of 7 years with proper scriptural reasoning.

The messages also tell that the Lords coming is in 2 parts. First He comes silently to take away His Church before the Tribulation Period and then He comes as a Judge and a Savior of Israel after the 7 year Tribulation period (His Glorious Coming). Then He will come openly and every eye shall see Him and even those who pierced Him. He will establish a 1000 year Millennium Rule when Satan will be bound. After that 1000 year rule, Satan will be cast into the Lake of Fire where the Beast and the False Prophet are (the 2 man team : Anti Christ seen working in Revelation 13).

Israel plays a very important role in the time to come. One Third of Existing Israel will be saved as per the prophecies in Zechariah. Chapters like Mathew 24 can be understood only if we understand clearly that God has a specific plan for Israel (Give no offense to the Jews, Gentiles or the Church of God) .

There are 2 Resurrections .. of the Believers and the unbelievers. Both are separate and at least 1000 years apart.

Hope you enjoy these messages which inspire you to search the Scriptures and be ready for the imminent return of our Blessed Lord Jesus Christ Who loved us and gave Himself for us.

The links to listening these messages are:

1st Message

2nd Message

3rd Message

4th Message

5th Message

6th Message

Listen to them, ponder over them and let the Spirit of God work in you to be blessed.

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2014

हिन्दी तथा अंग्रेजी में सुसमाचार सन्देश सुनने एवं डाउनलोड करने के लिए यहाँ जाएं:

https://drive.google.com/file/d/0BzRngm-FwXHBMWx1U2JiakRRZFk/edit?usp=sharing
http://yourlisten.com/sampark.yeshu/gospel-31-dec-2013-bro-wes

रविवार, 1 जनवरी 2012

संपर्क अक्टूबर २०११ - कहीं नहीं यहीं है वो

किसी ने कहा, “पिछले सप्ताह मेरे पिताजी की मृत्यु हो गई। मेरे पिताजी धर्म प्रचारक थे। मेरे पिताजी जल्लाद की तरह मेरी माँ को बुरी तरह मारते थे। मैं यह सब देख कर अपने पिता को माफ नहीं कर सकता था। मेरे पिता के कारण मेरा विश्वास परमेश्वर और मसीह से हट चुका था। सालों तक नफरत का ज़हर भोगता रहा। बस मसीह के अनुगह ही से मेरा उद्धार हुआ। पहले मैं जिस आदमी को माफ नहीं कर सकता था अब उसे माफ करने की सामर्थ पा गया। मैं ने यीशु से माफी पा कर ही अपने पिता को माफ करने की सामर्थ पाई और बदले की ज़बर्दस्त पीड़ा से बाहर आ सका

है कोई आपके जीवन में जिसे आप आज माफ नहीं कर पा रहे हो?

अगर आप कहें कि मैं ने कोई पाप नहीं किया और ना ही करता हूँ, तो आप से कहने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है। केवल उन के लिए है, जो यह मानते और समझते हैं कि हम में पाप है। हम सब ने पाप किए हैं। मेरी असलियत क्या है; मसीह जानता है। आप क्या हैं और आपकी असलियत क्या है; मसीह जानता है। अपनी असलियत बस हम ही मानने को तैयार नहीं हैं। यीशु के लहू की दुहाई दे कर फिर से मसीह के लिए जीना शुरू करें।

पहला ज़रूरी काम है सुसमाचार को स्वीकारना और दूसरा है, दूसरों को सुसमाचार देना। सुसमाचार न देना सब से बड़ा अपराध है।

क्या आपने कभी अपने रिश्तेदारों को, पड़ौसियों को या अपने साथ काम करने वालों को, जो किसी भी वक्त अचानक नरक जा सकते हैं, उन्हें यह सुसमाचार दिया या नहीं दिया?

अगर नहीं तो अब सवाल यह उठता है कि आपने क्यों नहीं दिया? किसी डर के कारण या शर्म के कारण?

इस सुसमाचार के लिए प्रभु ने अपनी जान दी, आप उसी सुसमाचार से लजाते हो?

प्रभु का भक्त पौलुस कहता है, “हाय मुझ पर यदि मैं सुसमाचार न सुनाऊँऔरमैं सुसमाचार से लजाता नहीं हूँ

आप अपने बारे में क्या कहते हैं?

खैर गलती तो सब से होती है; पर गलती जान कर गलती में बने रहना एक भयानक अपराध है। आप सुसमाचार के लिए क्या करते हैं और कितना करते हैं?

वह आपकी अयोग्यता से कहीं ज़्यादा आपसे प्यार करता है। आप में कमज़ोरियाँ और पाप होने पर भी वह आप से प्यार करता है।

पहले अपने पाप की तरफ देखो और फिर पाप से छुटकारा देने वाले की तरफ देखो। जब तक आप अपने पाप नहीं देख पाएंगे तब तक आप कभी पाप से छुटकारा देने वाले को नहीं समझ पाएंगे।

मेरी आँखें धुँधला गई हैं। मेरी हड्डियाँ अब मेरा बोझ नहीं उठा पातीं। मेरा दिल थक चुका है। पर यह मेरी कहानी का अन्त नहीं है। मैं अपनी सारी निर्बलता में जीता हूँ, आज भी मुझे अपने ऊपर भरोसा नहीं है। सुबह तो सुहावनी शुरू होती है, पर अन्धेरा होते-होते कई बार कुछ अन्धेर कर बैठता हूँ। समय बहुत कुछ उजाड़ गया है पर यह भी मेरी कहानी का अन्त नहीं है।

मुझ में अब भी आशा है। मेरा प्रभु थकता नहीं। वह मुझ जैसे आदमी से भी नहीं थका। जैसा वो मुझ जैसे आदमी के साथ बड़ा वफादार रहा है, आपके साथ भी रहेगा।

शनिवार, 31 दिसंबर 2011

संपर्क अक्टूबर २०११ - कहीं लौट न पाए

शायद यह सवाल कभी किसी ने आपसे न किया हो, क्या आपका जीवन पीछे जा रहा है?

आप पश्चाताप कर के फिर वही करते हो?

क्या आप वही सब तो नहीं कर रहे जो आप छोड़ चुके थे?

फिर वही सब कर रहे हो जो नहीं करना चाहिए था?

आपका प्रेम, प्रार्थना, प्रचार, उपवास, संगति और पारिवारिक प्रार्थना का क्या हाल है?

आपका पहला सा प्यार कहीं चला तो नहीं गया?

इन सवालों पर सोचिएगा, कहीं यह सवाल आपको बेचैन तो नहीं करते?

ये सवाल सब से नहीं पर आप से हैं जो इन पंक्तियों को अभी पढ़ रहे हैं।

हाँ या नहीं? जवाब दें।

यदि आपका उत्तर हाँ है, तो कहिएगा, “प्रभु मैं ने पहला सा जीवन कहीं खो दिया

और यह सच है कि मैं गिर चुका हूँ

अक्सर यह पूछा जाता है,

क्यों, सब ठीक है ना?”

हमारा जवाब यही होता है, “सब ठीक है

पर सच तो यह है के जीवन में सब ठीक नहीं होता। क्या आप उस समय यह कहने की हिम्मत रखते हैं किनहींमेरे जीवन में सब कुछ सही नहीं है। मेरे अन्दर बहुत विरोध और कपट पनप रहा है। प्रभु के लिए पहला सा प्यार, उपवास, संगति और प्रचार चला गया है। ऐसे सवालों को सहना मुश्किल है और उनका सही जवाब देना और भी मुश्किल है।

शायद आप सोचते भी न होंगे कि ऐसे सवाल भी आपसे कोई पूछ बैठेगा और हम पसन्द भी नहीं करते कि हमसे कोई ऐसे तीखे सवाल करे।

आप कह सकते हो कि आप होते कौन हो, जो मुझ से ऐसे सवाल करते हो?

मैं नहीं पूछ रहा, पर कोई है जो आपसे पूछ रहा है, “हे आदम तू कहाँ है? हे हव्वा तू कहाँ है?”

आज ये सवाल आपको संवार सकते हैं और जीवन को एक सही दिशा दे सकते हैं।

यह सवाल हमारी सही हालत को हमारे सामने ला देते हैं।

इससे पहले कि कहीं देर, बहुत देर न हो जाए, यह सवाल आपसे करना बहुत ज़रूरी है कि आपका जीवन कहीं पीछे तो नहीं हटता जा रहा?

अगर हाँ तो आप खतरों के बहुत करीब खड़े हो। किसी भी खतरनाक खबर में आप भी हो सकते हैं। जो लोग चेतावनियों को नज़रान्दाज़ करते हैं, ज़्यादातर वे ही मौत का शिकार होते हैं।

क्या आप मण्डली से दूर तो नहीं चले गए?

क्या आपके दिल में किसी के प्रति कोई दूरी तो नहीं आ गई?

क्या आपके पास प्रभु के काम के लिए समय नहीं रहा?

क्या आपके अन्दर विरोध, जलन, लालच, व्यभिचार तो नहीं भर गया?

कहीं यह सन्देश आपकी असली हालत तो आपके सामने नहीं रख रहा?

फिर पूछता हूँ आपसे, क्या आप पीछे लौट रहे हैं?

क्या आप कहीं खतरे की सीमा रेखा पर तो नहीं खड़े?

यह सन्देश आपको इन सवालों के घेरे में ला कर खड़ा करता है।

सोचो मेरे मित्र, मेहरबानी से अपने जीवन के बारे में सोचो।

अभी समय है; फिर कहीं देर न हो जाए;

मेरे मित्र, अपने आप को रोको मत पर चिल्लाओ,

हे यीशु मुझे बचा नहीं तो मैं गया।

मुझे उभार नहीं तो मैं मरा

दाऊद ने परमेश्वर को पुकारा औरदाऊद सब का सब लौटा लाया” ( १ शमूएल ३०:१९)

जो दाऊद का, वही परमेश्वर आपका भी है

आप भी उसे वैसे ही पुकारो और सब लौटा लो।

शनिवार, 24 दिसंबर 2011

संपर्क अक्टूबर २०११ - कहीं खोया था

ज़िन्दगी यूँ ही बिसरती चली जा रही थी,

चली जा रही थी बिना किसी मकसद,

चली जा रही थी उस मंज़िल की तरफ,

चली जा रही थी जिसका अन्त शून्य था,

चली जा रही थी, अचानक!

कहीं से जीवन आ गया।

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला का वो शाम का अद्भुत नज़ारा था। जैसे ही हमने दूर से शाम के झुटपुटे में हिमाचल की रानी को रौशनियों के गहनों से लदे देखा तो उसकी यह छ्टा देखते ही बनती थी। जैसे ही हमने कुछ देर बाद इस शहर के अन्दर अपने कदम रखे तो मेरा हृदय गदगद हो उठा। मैं शुरू से ही प्रकृति का बहुत प्रेमी रहा हूँ। जब मैंने उन ऊँचे पहाड़ों को देखा और देखा कि उन सुन्दर वादियों को कैसे एक महान कलाकार ने सुन्दर रंगों से सजाकर उनकी सुन्दरता में चार चाँद लगा दिए मैं सोचने लगा कि यह सृष्टि कितनी सुन्दर है। लेकिन मैंने यह नहीं सोचा कि इसको बनाने वाला कैसा है और वो कौन है?

खैर! सुबह हुई और शायद यह १९८६ के रविवार का दिन था। कहीं दूर से गिरजे के घंटों की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। मैं अपने आप को रोक नहीं पाया। मैंने ढूँढ़-ढाँढ़ की तो पाया यह माल रोड पर एक शानदार गिरजा था। लेकिन अन्दर जाने से पहले मेरे मन में ये सवाल थे कि यार, वहाँ अन्दर जो लोग हैं वो मेरे बारे में क्या सोचेंगे? कहीं वे मना तो नहीं करेंगे? क्योंकि मैं उनके धर्म का तो था नहीं। यही होता है जब हम किसी दूसरे धर्म के लोगों से मिलते हैं तो पहली ही बार में वो सामने वाला आदमी हमें औपरा सा लगता है। मेरे साथ ऐसा ही एक अनुभव बचपन में हुआ था जब मैं फुटपाथ से खरीद कर यीशु की काल्पनिक तसवीर घर ले आया था, तो मेरे पिताजी ने कहा, “तू इसको क्यों लेकर आया है? यह तो इसाईयों का भगवान है। दूसरे धर्म के लोगों को देख कर हमारे दिमाग़ में एकदम उनकी एक तसवीर आती है - उनकी संसकृति, धार्मिक तौर-तरीके, उनका खाना-पीना, रहन-सहन और उनकी बुराईयों के आधार पर।

दिशा रहित उपदेश दिल तक नहीं पहुँचा

वैसे मैं मन्दिर अकसर जाता था, मस्जिद और गुरुद्वारे भी गया था। बस मैं गिरजे में कभी नहीं गया था। उस समय मेरे मन में बड़ी झिझक थी। इसी कशमकश में डरते डरते गिरजे के अन्दर जा कर सबसे पिछली बेंच पर जा कर बैठ गया। पर वहाँ का माहौल मेरे लिए बड़ा औपरा सा था क्योंकि मैं उसका आदि नहीं था। जैसे वे खड़े होते मैं भी हो जाता। जैसे वो हाथ इधर-उधर करते मैं भी करने लगता। और भजन गीत! उसका तो पूछो ही मत! मैंने बहुत कोशिश करी कि उनके साथ लग कर गाऊँ, पर मैं फेल था। क्योंकि ऐसे गीत मैंने कभी सुने नहीं थे। पादरी साहब खड़े हो कर जो संदेश दे रहे थे उसका कुछ भी मेरे पल्ले नहीं पड़ रहा था।

लेकिन अचानक मेरे मन में यीशु नाम के लिए बहुत ही आदर प्रेम उमड़ने लगा। मैं तो सोचता था कि यीशु इसाईयों के गुरू हैं जिसे इसाई धर्म के लोग ही मानते हैं। उसी समय एक अजीब सी शांति और खुशी ने मुझे घेर लिया; यह अनुभव मेरे लिए बिलकुल अलग था। मैंने ऐसा अनुभव कभी नहीं किया था। गिरजे की सभा खत्म होने पर मैं बाहर आया, अपने मन में यह ठान कर कि,

मैं सहारनपुर आ कर गिरजे ज़रूर जाया करूँगा

दुनियावी परत मुझ पर चढ़ती चली गई

मैं नास्तिक नहीं था। मैं मानता था कि परमेश्वर है, पर मैं उसे जानता नहीं था। दावा तो करता था कि मैं उसे ही मानता हूँ और उसके अलावा मैं किसी और को नहीं मानता। लेकिन जैसे-जैसे बड़ा होता गया तो दुनियावी परत मुझ पर चढ़ती चली गई। मेरे घर का भी अजीब सा माहौल था। हर दूसरे-तीसरे दिन लड़ाईयाँ होती थीं। लोग तमाशा देखते थे। मैं अधिकतर देखता था कि मेरे माँ-बाप में बनती नहीं है। मैं ऐसे माहौल में पला बड़ा हुआ।

बस तू ही सिकन्दर है

मेरा जीवन भी अजीब था। बाहर से तो मैं दूसरों के सामने बहुत अच्छा था पर अपने आप को अन्दर से मैं ही जानता था कि कितना दोगला था। मैं अपने बुरे कामों को दूसरों से छिपाता था। इसलिए अपने बचाव को हमेशा ध्यान रख कर काम करता था। लेकिन जब भी मैं कोई पाप करता तो मेरा विवेक मुझे बहुत काटता था। मैं ने कई बार बहुत कोशिश करी कि मैं अपने उन गलत कामों को छोड़ सकूँ। मैं बार-बार निश्चय करता और बार-बार हार जाता; इस से मैं बहुत परेशान था। मैं ने बहुत सारे दोस्त बना लिए थे और मुझे इस बात पर घमंड था। जब शाम को उनके साथ घूमता तो लगता कि बस तू ही है सिकन्दर। लेकिन अस्लियत तो बाद में खुली जब वे एक दिन मुझे अकेले पिटता हुआ छोड़ कर अलग हो गए थे।

खालीपन का एहसास

मैं सिगरेट शराब भी पीने लगा था। पर मैं इनका आदि कभी नहीं बना। लेकिन कुछ समय बाद ये दोस्त, सिगरेट, शराब और सिनेमा और सब गलत काम फीके पड़ने लगे थे। जब भी मैं अकेला होता तो अपने अन्दर एक खालीपन का एहसास करता था। और अपने आप को बहुत ही बुझा हुआ और अशान्त पाता था।

कुछ भी पल्ले नहीं पड़ा

१९८८ में मेरे घर वालों के साथ मेरी अनबन हो गई और मैं घर से बाहर किराए पर कमरा ले कर रहने लगा। उस समय मेरे पास बाइबल के नए नियम की एक प्रति थी जो मैं ने कुछ साल पहले कुछ प्रचारकों से खरीदी थी। जब मैं ने उसे पढ़ा तो उसके पहले ही पन्ने पर कुछ लोगों के नाम और उनके बाप-दादों के नाम लिखे थे। जैसे: यीशु मसीह की वंशावली, दाऊद, इब्राहिम, याकूब आदि; उसमें कुछ भी मेरे पल्ले नहीं पड़ा। मैं ने सोचा यह किताब मेरे मतलब की नहीं। फिर भी मैं ने उसे रख लिया। जब मैं अपने घर से अलग हुआ तो पता नहीं कैसे वो नया नियम मैं अपने साथ ही ले आया। एक दिन जब मैं ने उसे खोल कर पढ़ना शुरू किया तो मैं उसे पढ़ता ही चला गया। तब से मैं ने रोज़ कि अपनी आदत बना ली थी कि इस प्रेम सन्देश नामक पुस्तक को मैं कम से कम एक घंटा ज़रूर पढ़ा करूँगा। जब मैं शाम को अपने काम से घर आता तो मैं पहले उसे ही पढ़ता था। अब मेरा मन उसे पढ़ने में लगने लगा था।

उस समय मेरे पास कोई नहीं था जो मुझे प्रभु यीशु के बारे में और समझाता। लेकिन एक अनजानी सी शक्ति मुझे अपनी तरफ खींच रही थी। मैं यीशु का नाम लेता और उस किताब में लिखी प्रभु यीशु की प्रार्थना किया करता था। एक अजीब सा परिवर्तन मैं अपने अन्दर महसूस कर रहा था। मैं ने अपने दोस्तों के साथ घूमना-फिरना बन्द कर दिया। गलत कामों से दूर रहने लगा था और यहाँ तक कि अब मुझे उन में कोई रुचि ही नहीं रही। जब भी मैं कुछ गलत करता तो वो अनजानी शक्ति मुझे रोकती थी। मैं सोचने लगा कि यह सब कैसे हो रहा है? बस मैं इतना जानता था कि प्रभु यीशु के लिए मेरे मन में बड़ा आदर और प्रेम आ गया था। तभी मैं ने सहारनपुर के एक गिरजे में जाना शुरू कर दिया। लेकिन वहाँ जा कर भी मुझे निराशा ही हाथ लगी, क्योंकि वहाँ कोई मुझ से बात नहीं करता था।

एक अलग खुशी का एहसास

एक दिन मेरे घर के पास एक जन ने मुझ से बात करी और बातों-बातों में उससे प्रभु यीशु की बात होने लगी। मुझे पता चला कि वह प्रभु यीशु पर विश्वास करता है। फिर वह मुझे बताने लगा कि यहाँ पास में ही एक संगति होती है, आप वहाँ पर आया करो। करीब एक महीने की टालमटोली के बाद मैं उस संगति में गया, यह सोच कर कि चलो वहाँ देखते हैं कि क्या होता है। वह दिन १५ परवरी १९९० का था। बहुत ही साधारण तरीके से लोग वहाँ सभा में बैठे थे। मुझे वहाँ ज़्यादा तो समझ नहीं आया पर वहाँ बैठ कर एक अलग ही खुशी का एहसास हुआ।

एक हल्केपन का एहसास

सभा के बाद एक भाई ने मुझसे बात करी और पूछा, “क्या आपने प्रभु यीशु से प्रार्थना की? क्या आपने प्रभु यीशु को ग्रहण किया?”

मैं ने जवाब दिया, “नहीं। वैसे तो मैं अपनी समझ के अनुसार प्रार्थना करता ही था और मैं प्रभु का वचन भी पढ़ता था। लेकिन पापों से क्षमा, नरक, स्वर्ग और मरने के बाद क्या होगा? मैं इन सब बातों से अनजान था। लेकिन उस दिन मैं ने उस भाई के साथ प्रार्थना करी और प्रभु को ग्रहण किया। मैं ने प्रार्थना में कहा,

हे प्रभु यीशु मैं एक पापी हूँ और आप पर विश्वास करता हूँ कि आपने मेरे पापों के लिए अपनी जान क्रूस पर दी और अपना लहू बहाया और तीसरे दिन जी उठे। हे प्रभु आप मेरे पापों को क्षमा करें। यह प्रार्थना करना था कि उसके बाद तो ऐसा महसूस हुआ कि जैसे पता नहीं मुझे क्या मिल गया, इतना आनन्द और इतनी खुशी जो मैं ने कभी महसूस नहीं की थी। इतना हल्कापन कि जैसे किसी ने सिर से बोझ उतार दिया हो। उसके बाद मैं लगातार उन सभाओं में जाता रहा।

उसके बाद मुझे एक धुन सवार हो गई कि मैं प्रभु यीशु के बारे में लोगों को बताऊँ। ऐसा मैं लगातार करता रहा। मेरी खुशी और आनन्द बढ़ता गया। लेकिन मेरे मन में अब भी शक आते थे कि मेरे पाप क्षमा हुए या नहीं? एक दिन मैं प्रभु का वचन पढ़ रहा था तो मेरे सामने यह पद आया,

“…और उसके पुत्र यीशु का लहू हमें सब पापों से शुद्ध करता है” “यदि हम अपने पापों को मान लें तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है” (१ युहन्न १:, )

फिर पुराने नियम से प्रभु का वचन मेरे सामने आया, “मैं वही हूँ जो अपने नाम के निमित तेरे अपराधों को मिटा देता हूँ और तेरे पापों को फिर कभी स्मरण ना करूँगा” (यशायाह ४३:२५)

इन पदों से मुझे निश्चय हो गया था कि प्रभु ने मेरे पाप माफ कर दिये और इससे मुझे बड़ा हियाव मिला।

मैं लगातार प्रभु के लोगों के साथ वहाँ पर संगति करता रहा और प्रभु के घर में हर एक सभा में सम्मिलित होता था। १९९१ में मुझे प्रभु की सेवकाई करने का बोझ मिला। उसी दौरान मैं रुड़की आ गया। वहाँ प्रभु के लोगों के साथ मिल कर प्रभु की सेवा करने लगा। तब से मैं और मेरा परिवार यहीं हैं।

उतार-चढ़ाव आज भी ज़िन्दगी के साथ चलते हैं

अन्त में मैं आपको बताना चाहता हूँ कि मेरे आत्मिक जीवन में काफी उतार-चढ़ाव भी आए। आत्मिक गिरावटें आईं, बुरी तरह से पाप में गिर गया। मैं प्रभु से बहुत दूर भी चला गया। जो कोई नहीं जानता सिर्फ मैं या मेरा प्रभु जानता है।

शायद कोई कह सकता है कि प्रभु में आने के बाद भी यह सब! मैं कहता हूँ, हाँ लेकिन मैं उसे जानता हूँ जिसने मुझ से प्रेम किया, उस ने मुझे नहीं छोड़ा। वो ही एक दिन अपनी सिद्धता में तैयार करके मुझे ले जाएगा। परमेश्वर का प्रेम सच्चा है जो उकताता नहीं। ये प्रभु यीशु का प्रेम है जो आपको कभी भी उभार सकता है। जब कि मैं विश्वासयोग्य नहीं रहा, वह आज तक मेरे साथ विश्वासयोग्य है।

आप भी आज उसे पुकार कर देखें, “हे प्रभु मुझे भी एक खुशी और शान्ति से भरा हुआ जीवन चाहिए

- चेतन चमन

रुड़की