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गुरुवार, 25 अगस्त 2016

परमेश्वर की आराधना और महिमा - भाग 2: आराधना द्वारा परिवर्तन



आराधना द्वारा परिवर्तन

आराधना की सामर्थ के बारे में लिखकर जो कल प्रकाशित किया गया था, उसे स्पष्ट करने के लिए एक पुस्तक से लिया गया उध्दरण है। इसके साथ ही एक चुनौती भी है; पढ़िए और देखिए कि क्या आप उस चुनौती को लेने के लिए तैयार हैं? उध्दरण है:

मैंने जैसे परमेश्वर के साथ चलना आरंभ किया, मैं उसके साथ अपने संबंध में बढ़ने भी लगा; किंतु साथ ही मुझे अपनी लंबे समय से चली आ रही हताशा से भी लड़ना पड़ रहा था। एक समझदार मसीही महिला ने मुझ से आग्रह किया कि मैं अपने बिस्तर के पास ही एक दैनिक धन्यवादी पुस्तिकारखना आरंभ कर दूँ। उसने कहा कि प्रति-रात्रि सोने से पहले मैं उस पुस्तिका में उस दिन की तीन ऐसी बातें लिखूँ जिनके लिए मैं परमेश्वर का धन्यवादी हूँ। उसका कहना था कि सोने से पहले सकारात्मक बातों पर ध्यान लगाने से मैं बेहतर सोने पाऊँगा। उस महिला ने मुझे चुनौती दी कि मैं ऐसा 90 दिन तक करूँ क्योंकि उसका विश्वास था कि ऐसा करने से मैं जीवन के प्रति अधिक सकारात्मक रवैया विकसित कर सकूँगा।

मैंने उस महिला की यह चुनौती स्वीकार कर ली। आरंभिक दिनों में तो मैंने प्रत्यक्ष और सैद्धांतिक बातें ही लिखीं जैसे कि अपने परिवार तथा मित्र जनों के लिए धन्यवादी होना। फिर स्वतः ही मैं दैनिक जीवन की बातों पर और बारीकी से ध्यान देने लग गया, और मेरे सामने ऐसी अनेक बातें आने लगीं जिनके लिए मैं परमेश्वर का धन्यवादी हो सकता था: किसी के द्वारा करी गई मेरी प्रशंसा जिससे मुझे प्रोत्साहन मिला या फिर तेज़ तूफान जिसके द्वारा मैं परमेश्वर की अद्भुत सामर्थ को स्मरण करने पाया। लिखने के इस अभ्यास ने मुझे अधिक ध्यान देने वाला बना दिया। इसके द्वारा मैं उन छोटी छोटी बातों के प्रति जागरूक और संवेदनशील हो गया जिनके द्वारा परमेश्वर प्रतिदिन हमारे प्रति अपने प्रेम को प्रगट करता रहता है।

मैंने वह पुस्तिका केवल 3 महीने ही लिखी, लेकिन उसने मेरे दृष्टिकोण को सदा के लिए बदल डाला। मेरे प्रति परमेश्वर के प्रेम के चिन्हों को मैं कई रूपों में तथा अनेकों स्थानों पर ढूढ़ने और पाने लग गया। मैं उसका कृतज्ञ हो गया क्योंकि उसने मुझे मेरी उस पुरानी हताशा से भी चंगा कर दिया, और मैं अचंभा करने लगा कि कैसे उसने उसके प्रति मेरे, एक घायल जानवर के दुस्साहसिक और अवज्ञाकारी होने जैसे रवैये को बदल कर शांत स्वीकृति तथा उसकी प्रतीक्षा करने वाला बना दिया। या, अगर मैं इसे कुछ भिन्न शब्दों में कहूँ तो, मैं परमेश्वर के प्रेम की एक बूँद को पाने की घोर तड़पन से निकलकर उसके प्रेम के सागर में तैरते रहने वाला हो गया। अन्ततः मैं एक डूबते हुए व्यक्ति के समान हाथ-पैर मारते हुए परमेश्वर के प्रेम से लड़ने वाला होने की बजाए, उसमें पूर्ण विश्वास के साथ उसके प्रेम के सागर में तैरते रहने वाला हो गया।
- यह Our Daily Bread 2016 के सालाना संसकरण में दिए गए क्रिस्टी बाउर की पुस्तक “Best Friends With God” से लिए उध्दरण से लिया गया है।


अब आपके लिए चुनौती: क्या आप भी 3 महीने तक ऐसे ही अपनी व्यक्तिगत धन्यवादी पुस्तिका लिखकर उससे आप में आए परिवर्तन के बारे में बताएंगे?

बुधवार, 24 अगस्त 2016

परमेश्वर की आराधना और महिमा - भाग 1: आराधना की आवश्यकता


 आराधना की आवश्यकता

भजन 107:8 "लोग यहोवा की करूणा के कारण, और उन आश्चर्यकर्मों के कारण, जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें!"

हम परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं; हम उससे अपने तथा औरों के लिए अनेक बातों को माँगते हैं; हो सकता है कि हम यह भी प्रार्थना करते हों कि परमेश्वर मुझे अपने लिए उपयोगी, या फिर और भी अधिक उपयोगी बना - लेकिन यह प्रार्थना कितने और/या कितनी ईमानदारी से माँगते हैं, यह हम सब के लिए गहन व्यक्तिगत आत्मपरीक्षण का विषय है।

लेकिन परमेश्वर से प्रार्थना करने से कहीं अधिक लाभकारी है उसकी आराधना करना; और आराधना का एक तरीका है परमेश्वर का धन्यवाद करना - सब बातों के लिए, जैसा पौलुस फिलिप्पियों 4:6-7 में कहता है: "किसी भी बात की चिन्‍ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख अपस्थित किए जाएं। तब परमेश्वर की शान्‍ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरिक्षत रखेगी।"

हर बात में परमेश्वर का धन्यवादी होना, विपरीत या समझ से बाहर या कठिन परिस्थितियों और अनुभवों के लिए भी, परमेश्वर में दृढ़ विश्वास का चिन्ह है; इस विश्वास का कि परमेश्वर हमारे, अर्थात अपने बच्चों के जीवनों में, केवल वही आने या होने देगा जो हमारे लिए अच्छा या हमारी भलाई के लिए है। इसलिए यदि हम उस पर और उसके द्वारा हमारे लिए निर्धारित मार्गों पर भरोसा रखते हैं, तो हम हर बात के लिए, वो चाहे कुछ भी क्यों ना हो, सदा उसका धन्यवाद करेंगे।

जो परमेश्वर का धन्यवाद और उसकी महिमा अर्थात आराधना नहीं करते वे शैतान का शिकार बन जाने के घोर खतरे में रहते हैं: रोमियों 1:21 "इस कारण कि परमेश्वर को जानने पर भी उन्होंने परमेश्वर के योग्य बड़ाई और धन्यवाद न किया, परन्तु व्यर्थ विचार करने लगे, यहां तक कि उन का निर्बुद्धि मन अन्धेरा हो गया।" रोमियों 1 का शेष भाग उन व्यर्थ विचारों और अन्धेरे मन के दुषपरिणामों का वर्णन करता है।

प्रीयों, परमेश्वर की आराधना करने और हर बात के लिए उसका धन्यवादी होने को अपने जीवन की नियमित आदत, अपने दैनिक आचरण तथा कार्य का अभिन्न भाग बना लें; जब भी कर सकते हैं - काम करते हुए, चलते हुए, बैठे हुए, यात्रा करते हुए, आदि, ऐसा करते रहें। अपने जीवनों में लगातार परमेश्वर का धन्यवाद और उसकी महिमा करते रहने का रवैया बना लें। ऐसा करने से परमेश्वर की शांति, परमेश्वर की आशीषें और परमेश्वर की सुरक्षा आपके जीवनों में आएगी; यह करना आपके लिए परमेश्वर की सन्तान होने के जीवन में बढ़ोतरी और तरक्की देने में बहुत सहायक होगा, केवल प्रार्थना करने से कहीं अधिक बढ़कर सहायक।

नया आरंभ


पिछले लगभग पौने दो वर्ष से इस ब्लॉग पर कोई लेख नहीं डाल पाया हूँ - क्षमाप्रार्थी हूँ।

बहुत समय से प्रार्थना कर रहा था कि परमेश्वर ऐसी सामर्थ और योग्यता दे कि इस कमी को दूर करके परमेश्वर की महिमा के लिए कुछ नियमित लेख इस ब्लॉग पर डालने पाऊँ। कई बार प्रयास भी किया, कुछ आधा-अधूरा सा लिखा भी, कुछ अन्य मित्रों से सहायता भी लेनी चाही कि उनके द्वारा कहे और लिखे गए लेखों को यहाँ प्रस्तुत कर सकूँ, परन्तु हर प्रयास असफल ही रहा।

आज परमेश्वर के अनुग्रह से यह संभव होने पाया है कि कुछ छोटे लेख यहाँ डाल सकूँ। मेरी प्रार्थना है कि परमेश्वर इस आशीष को बनाए रखे, बढ़ाए और इस ब्लॉग को अपनी महिमा के लिए इस्तेमाल करे। कृपया अपनी प्रार्थनाओं में स्मरण रखिए कि परमेश्वर का यह अनुग्रह बना रहे, और शैतान इस फिर से बाधित ना करने पाए.

आज से एक नई श्रंखला का आरंभ कर रहा हूँ।

इसके अन्तर्गत जो पहला शीर्षक परमेश्वर ने दिया है वह है "परमेश्वर की आराधना और महिमा"। इस शीर्षक पर कुछ लेख प्रस्तुत करने के पश्चात, फिर जो अगला शीर्षक परमेश्वर से मिलेगा, उसे लेकर चलूँगा।

आशा है यह प्रयास आपके आत्मिक जीवन के लिए भी वैसा ही लाभकारी रहेगा, जैसा मेरे लिए हो रहा है।

कृपया अपने विचार एवं प्रतिक्रियाएं अवश्य भेजें, तथा इन लेखों को अपने मित्रों के साथ भी बाँटें। क्योंकि प्रत्येक लेख छोटा ही है, इसलिए आप इसे अपने मोबाइल फोन पर व्हॉट्सएप्प तथा ऐसी ही अन्य एप्प्स के द्वारा भी बाँट सकते हैं।

परमेश्वर की आशीष आपके साथ हो।

रविवार, 27 अप्रैल 2014

नूह के दिन और लूत के दिन

बाइबल की भविष्यवाणियों के सन्दर्भ में, आज के समय में नूह तथा लूत के दिनों से क्या तात्पर्य है; जानने के लिए पढ़िए:

नूह के दिन और लूत के दिन
For any further information or query, the author of this booklet can be contacted through his email id given at the end of the last page of this booklet.

किसी भी अन्य जानकारी अथवा उत्तर के लिए, इस पुस्तिका के लेखक से ईमेल द्वारा सीधे संपर्क किया जा सकता है; लेखक का ईमेल पता पुस्तिका के अन्तिम पृष्ठ के अन्त में दिया गया है।

शनिवार, 26 अप्रैल 2014

हिन्दी संपर्क का अप्रैल 2013 का अंक

हिन्दी संपर्क का अप्रैल 2013 का अंक पीडीएफ स्वरुप में यहाँ से पढ़िए:


संपर्क अप्रैल 2013

मंगलवार, 25 मार्च 2014

Rapture and The Second Coming of Christ

These messages about the Rapture were delivered at the Church at Panvel in the last week of December 2013.

The Theme verse of this series of meetings was 1 Corinthians 15:51 … Behold, I shew you a mystery; We shall not all sleep, but we shall all be changed, (1 Corinthians 15:51).

People have different views regarding the timing (not the date) of the rapture i.e. as to when the Rapture will occur (before, during or after the Tribulation Period). The speaker here gives a clear idea as to the most probable timing of the rapture i.e. Before the Great Tribulation period of 7 years with proper scriptural reasoning.

The messages also tell that the Lords coming is in 2 parts. First He comes silently to take away His Church before the Tribulation Period and then He comes as a Judge and a Savior of Israel after the 7 year Tribulation period (His Glorious Coming). Then He will come openly and every eye shall see Him and even those who pierced Him. He will establish a 1000 year Millennium Rule when Satan will be bound. After that 1000 year rule, Satan will be cast into the Lake of Fire where the Beast and the False Prophet are (the 2 man team : Anti Christ seen working in Revelation 13).

Israel plays a very important role in the time to come. One Third of Existing Israel will be saved as per the prophecies in Zechariah. Chapters like Mathew 24 can be understood only if we understand clearly that God has a specific plan for Israel (Give no offense to the Jews, Gentiles or the Church of God) .

There are 2 Resurrections .. of the Believers and the unbelievers. Both are separate and at least 1000 years apart.

Hope you enjoy these messages which inspire you to search the Scriptures and be ready for the imminent return of our Blessed Lord Jesus Christ Who loved us and gave Himself for us.

The links to listening these messages are:

1st Message

2nd Message

3rd Message

4th Message

5th Message

6th Message

Listen to them, ponder over them and let the Spirit of God work in you to be blessed.