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रविवार, 3 मई 2020

पवित्र आत्मा का बपतिस्मा - भाग 2 - 1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग 2)



पवित्र आत्मा का बपतिस्मा क्या है? -  भाग
1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग 2)

     इस पद को आगे देखने से पहले, हम कुछ संबंधित जानकारी के बारे में देखते हैं; हम थोड़ा सा समय ‘बपतिस्मा’ शब्द पर, और कोरिन्थ की कलीसिया की पृष्ठभूमि को देखने में बिताएंगे। 

     पहले, शब्द ‘बपतिस्मा’; मूल यूनानी भाषा का शब्द, जिसका अनुवाद ‘बपतिस्मा’ हुआ है, ‘बैप्टिज़ो’ है; जिसका अर्थ होता है समो देना या डुबो देना। इसलिए किसी वस्तु का बपतिस्मा लिए या दिए जाने का अर्थ है उस वस्तु में डुबो देना, या उसके अन्दर समो देना। अब, यहाँ पर पद 12 में, मसीह की देह, अर्थात उसकी कलीसिया, की एकता के बारे में बताने और इस बात पर बल देने के बाद, पौलुस प्रेरित के द्वारा पवित्र आत्मा हमारी चर्चा के इस पद, पद 13 में उन अन्य-जातियों से परिवर्तित हुए लोगों को स्मरण दिला रहा है कि वे, कोरिन्थी, और यहूदी, तथा अन्य सभी, चाहे दास अथवा स्वतंत्र, सभी को एक समान ही ‘एक देह होने के लिए बपतिस्मा दिया गया है,’ अर्थात, सभी को एक ही देह में डुबो या समावेश कर दिया गया है; सभी को एक ही आवरण में ढांप दिया गया है, इसलिए अब मसीह की देह के किसी भी एक सदस्य की किसी दूसरे सदस्य से किसी भी बात में कोई भी भिन्नता करने का कोई भी आधार नहीं रह गया है। यह पद 12 की बात की स्पष्ट और सीधे से पुष्टि करने से अधिक और कुछ नहीं है, और यही बात इसके आगे के पदों से लेकर पद 27 तक के पदों की शिक्षाओं में प्रगट है। इस लिए यहाँ पर, कोई कहाँ से या कैसे इसमें इस शिक्षा या सिद्धांत को घुसा सकता है कि जो मसीही विश्वासी प्रभु की सेवा करना चाहते हैं, उन्हें यह पद एक विशेष कार्य अर्थात पवित्र आत्मा का बपतिस्मा लेने के लिए कहता है? कल्पना की कैसी भी उड़ान, इस पद में इस बचकानी और बाइबल के प्रतिकूल शिक्षा को बैठा नहीं सकती है, फिर भी लोग इतनी सरलता से इस गलत शिक्षा को स्वीकार कर लेते हैं, और एक पूर्णतः गलत शिक्षा को पवित्र शास्त्र का सच मान लेते हैं!

     दूसरी बात, इस पत्री की पृष्ठभूमि पर भी थोड़ा विचार करना आवश्यक है। पवित्र आत्मा की अगुवाई में पौलुस प्रेरित द्वारा कुरिन्थियों को – कोरिन्थ में स्थित कलीसिया, या मसीही विश्वासियों की मंडली को लिखी गई इस पत्री में एक विशिष्ट बात है। कोरिन्थ की वह कलीसिया विभिन्न प्रकार के पापों और समस्याओं से भरी हुई थी, और यह पत्री उनमें विद्यमान उन्हीं समस्याओं और पापों को संबोधित करने तथा उनका समाधान करने के लिए लिखी गई थी। उन के दुष्कर्मों की सूची पहले ही अध्याय से आरम्भ हो जाती है, और पत्री के अंत तक ज़ारी रहती है। परस्पर मतभेद और विभाजन, और कलीसिया के अगुवों और प्राचीनों के नाम में गुट बाज़ी से आरम्भ कर के, बच्चों जैसा अपरिपक्व व्यवहार, अनैतिकता, व्यभिचार, मूर्तियों को अर्पित वस्तुओं में संभागी होना, अपने आप को बड़ा दिखाना, अहंकार से सम्बंधित समस्याएँ, प्रभु भोज का दुरुपयोग और दुर्व्यवहार, तथा अन्य पापमय एवं अस्वीकार्य बातों का होना, सभी कोरिन्थ की कलीसिया में, उसके ‘मसीही विश्वासी’ सदस्यों के जीवनों में विद्यमान थे। लेकिन फिर भी पवित्र आत्मा पौलुस से पत्री के आरम्भ में ही लिखवाता है, “परमेश्वर की उस कलीसिया के नाम जो कुरिन्थुस में है, अर्थात उन के नाम जो मसीह यीशु में पवित्र किए गए, और पवित्र होने के लिये बुलाए गए हैं; और उन सब के नाम भी जो हर जगह हमारे और अपने प्रभु यीशु मसीह के नाम की प्रार्थना करते हैं” (1 कुरिन्थियों 1:2) – ये लोग जिनमें इतने निंदनीय पाप विद्यमान थे, उन्हें ‘परमेश्वर की कलीसिया’, ‘पवित्र किए गए’, ‘पवित्र होने के लिए बुलाए गए’, और संसार भर के उन सभी मसीही विश्वासियों के साथ ही स्वीकार किए गए हैं जो प्रभु का नाम लेते हैं, कहा गया है। इस पद, 1 कुरिन्थियों 12:13 की, इसे दिए गए बाइबल के प्रतिकूल उस अभिप्राय के सन्दर्भ में जिस का हम यहाँ अध्ययन कर रहे है, व्याख्या करने और समझ पाने में इस पृष्ठभूमि को ध्यान में बनाए रखना बहुत ही महत्वपूर्ण है।

 - क्रमशः

अगला लेख: पवित्र आत्मा का बप्तिस्मा – भाग 2 – 1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग 3)


शनिवार, 2 मई 2020

पवित्र आत्मा का बपतिस्मा - भाग 2 - 1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग 1)




पवित्र आत्मा का बपतिस्मा क्या है? -  भाग 2
1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग - 1)

 एक अन्य पद जिसका प्रयोग ‘पवित्र आत्मा का बपतिस्मा’ पाने की शिक्षा को वैध ठहराने के लिए किया जाता है, वह है 1 कुरिन्थियों 12:13; और एक बार फिर, जैसा कि हमेशा किया गया है, यहाँ भी यह इस वाक्यांश को उस के सन्दर्भ से बाहर लेकर और सन्दर्भ से बाहर ही उस की व्याख्या करने, तथा अन्य संबंधित शिक्षाओं पर ध्यान न देने के द्वारा किया जाता है। ‘पवित्र आत्मा का बपतिस्मा’ पाने के लिए जो मुख्य कारण बताया जाता है, वह है जिस से मसीही विश्वासी प्रभु की सेवा के लिए विशेष सामर्थ्य प्राप्त कर सके। यद्यपि यह एक भक्ति तथा श्रद्धा पूर्ण दृष्टिकोण प्रतीत होता है, किन्तु वास्तव में यह बाइबल के सत्य को बिगाड़ना और बाइबल की शिक्षाओं के विरुद्ध है, और इस में मसीह की देह, उसकी कलीसिया, को विभाजित कर देने की प्रबल संभावना है।

जैसा कि प्रेरितों 1:8 से बहुत स्पष्ट है, किसी भी मसीही विश्वासी को संसार के छोर तक प्रभु की सेवा करने और उसका गवाह होने के लिए जो भी सामर्थ्य की आवश्यकता होती है, वह उन्हें उन के मसीही विश्वास में आते ही पवित्र आत्मा दिए जाने साथ ही दे दी जाती है। इस से अधिक या अतिरिक्त और किसी भी बात की कोई आवश्यकता है ही नहीं, और मसीही में उपस्थित परमेश्वर पवित्र आत्मा से अधिक सामर्थी और क्या हो सकता है, जो हर एक बात में प्रत्येक मसीही विश्वासी के मार्गदर्शन और सहायता के लिए सदैव उपलब्ध और तैयार हैं। लेकिन फिर भी, केवल विचार करने के लिए कुछ समय के लिए मान लेते हैं कि प्रभु की सेवकाई के लिए परमेश्वर पवित्र आत्मा से बढ़कर भी किसी बात की आवश्यकता होती है। अब यदि यह सही है, तो बाइबल से इसका कोई प्रमाण कहाँ है? परमेश्वर के वचन में कहाँ ऐसा कोई उदाहरण है कि विश्वासी व्यक्ति ने, किसी ने भी, पहले पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाया, और फिर प्रभु के लिए कुछ ऐसा अनोखा या अद्भुत किया, जो अन्य लोग नहीं करने पाए, जब कि उन में पवित्र आत्मा विद्यमान था? बाइबल में क्या ऐसा कोई भी एक भी व्यक्ति है; इस शिक्षा के समर्थन में कोई एक भी उदाहरण है – नहीं कोई नहीं है! इस का स्पष्ट और प्रत्यक्ष उत्तर है कि संपूर्ण नए नियम में इस धारणा की पुष्टि के लिए कोई एक भी उदाहरण विद्यमान नहीं है।

प्रभु यीशु ने भी जब अपने शिष्यों को सेवकाई पर निकलने से पहले पवित्र आत्मा के दिए जाने तक प्रतीक्षा करने के लिए कहा था, तब भी उन से यह नहीं कहा था कि उन के लिए मरकुस 16:17, 18 में कहे गए अद्भुत चिन्ह और आश्चर्यकर्म उन्हें पवित्र आत्मा पा लेने के बाद फिर अलग से पवित्र आत्मा का बपतिस्मा मिलने के बाद ही संभव हो सकेंगे। ये अनोखे और अद्भुत काम भी उन्हें पवित्र आत्मा दिए जाने के पश्चात उन के सुसमाचार प्रचार की सेवकाई पर जाने पर, स्वतः ही उन की सेवकाई के साथ संबंधित होने थे। सम्पूर्ण नए नियम में प्रभु के लोगों के सेवकाई के कार्यों में जो प्रभु के महान लोग प्रभु की सेवा में लगे रहे हैं, और प्रभु के राज्य में सेवकाई के फलों को एकत्रित करते रहे हैं, वे वही थे जिन्होंने प्रभु यीशु में विश्वास में आने के साथ ही पवित्र आत्मा पाया और फिर प्रभु की आज्ञा में सेवकाई के लिए संसार में निकल पड़े, बिना किसी अन्य बात अथवा कोई विशेष अनुभव लिए।
- क्रमशः
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शुक्रवार, 1 मई 2020

पवित्र आत्मा का बपतिस्मा - भाग 1 - प्रेरितों 11:15-18



पवित्र आत्मा का बपतिस्मा क्या है?
भाग 1 - प्रेरितों 11:15-18

      पवित्र आत्मा प्राप्त करने से संबंधित एक अन्य गलत शिक्षा है कि प्रभु के लिए उपयोगी होने के लिए पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाना भी आवश्यक है, जिसके लिए कहा जाता कि यह पवित्र आत्मा पा लेने से भिन्न अनुभव है। एक बार फिर, यह धारणा रखना भी बाइबल के एक वाक्यांश को उसके सन्दर्भ से बाहर निकाल कर, और बिना बाइबल की अन्य संबंधित शिक्षाओं का ध्यान किए, एक पूर्वनिर्धारित धारणा को सही ठहराने का प्रयास है, जिसका बाइबल में कोई आधार या समर्थन नहीं है। पतरस की सेवकाई द्वारा कुरनेलियुस के परिवार के मसीही विश्वास में आने और पवित्र आत्मा पाने, और फिर इसके बाद पतरस द्वारा इस बात के विषय मसीही मण्डली के अन्य अगुवों और लोगों को इसका स्पष्टीकरण दिए जाने के एक भाग, प्रेरितों 11:15-18, को देखिए: “जब मैं बातें करने लगा, तो पवित्र आत्मा उन पर उसी रीति से उतरा, जिस रीति से आरम्भ में हम पर उतरा था। तब मुझे प्रभु का वह वचन स्मरण आया; जो उसने कहा; कि यूहन्ना ने तो पानी से बपतिस्मा दिया, परन्तु तुम पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाओगे। सो जब कि परमेश्वर ने उन्हें भी वही दान दिया, जो हमें प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने से मिला था; तो मैं कौन था जो परमेश्वर को रोक सकता यह सुनकर, वे चुप रहे, और परमेश्वर की बड़ाई कर के कहने लगे, तब तो परमेश्वर ने अन्य-जातियों को भी जीवन के लिये मन फिराव का दान दिया है।” पतरस की इस बात से यह बिलकुल दो-टूक स्पष्ट है कि उन अन्य-जाति लोगों के मसीही विश्वास में आते के साथ ही जो पवित्र आत्मा उन्हें दिया गया, वही प्रभु यीशु द्वारा कही गई पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाने की बात की पूर्ति और पुष्टि है। 

      पतरस द्वारा दिए गए उत्तर से यह भी स्पष्ट है कि यह केवल प्रभु द्वारा कही गई बात का पूरा होना बताया गया है, न कि कोई रीति या सिद्धांत स्थापित किया गया है जिसका पालन शेष लोगों ने आगे चल कर करना था – वह न तो कहता है और न ही कोई ऐसा अभिप्राय देता है कि अन्य मसीही विश्वासियों को भी यह ‘पवित्र आत्मा का बपतिस्मा’ लेना होगा – यह तो एक स्वतः ही, अपने आप में पूरी हुई बात को बताना था, न कि किसी रीति की स्थापना करना। साथ ही यहाँ पर एक अन्य महत्वपूर्ण बात पर ध्यान करना आवश्यक है कि न तो यहाँ और न ही नए नियम में अन्य किसी भी स्थान पर ऐसी कोई बात नहीं कही गई है कि ‘पवित्र आत्मा का बपतिस्मा’ पाए हुए वे कुरनेलियुस के परिवार के मसीही विश्वास में आने वाले लोग इस ‘बपतिस्मे’ के प्रभाव में प्रभु के लिए कुछ विशेष और अद्भुत करने लगे। कुछ विशेष और अद्भुत करना तो दूर की बात है, कहीं पर भी उन के किसी भी मसीही मंडली में किसी भी प्रकार से सक्रीय होने या किसी ‘साधारण’ सेवकाई में भी संलग्न होने की भी कोई बात नहीं आई है। अर्थात, न तो ‘पवित्र आत्मा का बपतिस्मा’ कोई तथाकथित अलग अनुभव या प्रभु का विशेष कार्य है, और न ही उस ‘बपतिस्मे’ के द्वारा कोई भी जन कुछ विशेष करने की सामर्थ्य पाता है। 

     जैसा कि प्रायः कहा और सिखाया जाता है उस के विपरीत, यथार्त में बाइबल के अनुसार इसमें कोई असमंजस की बात नहीं है; मसीही विश्वास में वास्तव में आते ही पवित्र आत्मा को प्राप्त कर लेना और पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाना एक ही बात हैं, ये दोनों वाक्यांश एक ही तथ्य को व्यक्त करने के दो तरीके हैं। इसलिए इनके आधार पर लोगों को भरमाने के लिए कुछ सिद्धांत और धारणाएं बनाना और सिखाना जो परमेश्वर के वचन के बिलकुल अनुरूप नहीं है, गलत है, अस्वीकार्य है; यह परमेश्वर और उस के वचन के नाम में झूठ बोलना और सिखाना है।
- क्रमशः
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गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

पवित्र आत्मा पाना भाग (5) – विशेष प्रयास – प्रतीक्षा करना (2); निष्कर्ष



4. क्या पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है? भाग (2)

 पिन्तेकुस्त के दिन जब शिष्यों ने पवित्र आत्मा पाया, और फिर पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से पतरस ने प्रचार किया, तो वहाँ उपस्थित उन भक्त यहूदी श्रोताओं ने पतरस से पूछा कि उद्धार पाने के लिए अब उन्हें क्या करना चाहिए (प्रेरितों 2:37); तब “पतरस ने उन से कहा, मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले; तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे” (प्रेरितों 2:38)। ध्यान कीजिए, पतरस ने उन से कहा कि विश्वास करने पर वे पवित्र आत्मा का दान पाएंगे; विश्वास कर के फिर पवित्र आत्मा पाने के लिए प्रतीक्षा करने के लिए नहीं कहा। पतरस द्वारा प्रचार उसे पवित्र आत्मा मिलते ही पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से किया गया था। उस के इस प्रचार के प्रभाव से इन पश्चाताप और विश्वास करने वालों के द्वारा अब मसीही विश्वासियों की मण्डली की स्थापना होने जा रही थी। उसके इस प्रचार और परिणामस्वरूप होने वाली घटना के साथ जुड़ी बातों को आने वाले समय में समस्त विश्व-व्यापी मसीही विश्वासियों की मण्डलियों की आधारभूत बातें बनना था, जैसे कि आज भी प्रेरितों 2 अध्याय की बातें और शिक्षाएं हमारे लिए हैं। इसलिए यदि पवित्र आत्मा पाने के लिए प्रतीक्षा करने की आवश्यकता थी, तो वहां उपस्थित पतरस और अन्य शिष्यों के सजीव और प्रत्यक्ष उदाहरण के साथ इस बात को बता तथा समझा कर, उसे पतरस के प्रचार की अन्य शिक्षाओं के साथ ही लिखवा कर, इस सिद्धांत या नियम को मण्डली के लिए स्थापित करवा देने के लिए इस से अच्छा और क्या अवसर हो सकता था? किन्तु ऐसा नहीं किया गया; न यहाँ, और न बाद में किसी अन्य पत्री अथवा नए नियम की शिक्षा में। वरन सदा यही कहा गया कि सच्चा पश्चाताप करने, और वास्तविक विश्वास करने से स्वतः ही पवित्र आत्मा तुरंत ही मिल जाएगा। इसी संदर्भ में यदि उपरोक्त तीन उदाहरणों पर पुनः ध्यान करें, तो भी यही सामने आता है कि पवित्र आत्मा मसीही विश्वास में आते ही सभी विश्वासियों को तुरंत ही दे दिया गया, बिना उस के लिए प्रतीक्षा करने के किसी भी उल्लेख के। यह बाइबल का प्रत्यक्ष सत्य है कि संपूर्ण नए नियम में कहीं पर भी, किसी को भी, कभी भी, पश्चाताप करने और मसीही विश्वास में आने के पश्चात पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए प्रतीक्षा करने के लिए कभी नहीं कहा गया है।

आज कुछ लोगों ने, लूका और प्रेरितों के इन प्रतीक्षा संबंधी पदों को अपना गलत आधार बनाकर, प्रतीक्षा करने का अपना ही सिद्धांत इसलिए गढ़ लिया है जिस से अपने आप को एक बहुत कठिन स्थिति से निकलने का मार्ग दे सकें। क्योंकि, जैसा ऊपर लूका 11:13 से संबंधित बातों की चर्चा करते में हमें देखा, मंडली में कुछ लोग होते हैं, जो दिखते तो प्रभु यीशु के विश्वासी और अनुयायी हैं, किन्तु वास्तव में प्रभु के प्रति उनका समर्पण सच्चा नहीं होता है और वे वास्तव में मसीही विश्वास में नहीं होते हैं, इसलिए प्रभु की ओर से उन्हें पवित्र आत्मा कभी नहीं दिया जाता है। ऐसे लोगों से, क्योंकि या तो उन के पास कोई और स्पष्टीकरण अथवा उत्तर नहीं है, या फिर उन में सच बोलने का साहस नहीं है, चर्च के पादरी और अगुवे प्रायः यही कहते हैं, लूका 24:49, और प्रेरितों 1:4, 8 के अनुसार उन्हें पवित्र आत्मा पाने के लिए प्रतीक्षा करने और लूका 11:13 के अनुसार प्रभु से मांगने की आवश्यकता है। जब कि वास्तव में उन्हें आवश्यकता केवल सच्चे मन से पश्चाताप करने और प्रभु के प्रति सच्चा समर्पण करने तथा ईमानदारी के साथ प्रभु और उस के वचन की आज्ञाकारिता में आ जाने की है, न कि बाइबल के प्रतिकूल इन शिक्षाओं में फंस कर अपना समय बर्बाद करने की।

5. पवित्र आत्मा पाने के लिए कुछ विशेष करना – निष्कर्ष

हमारी पवित्र आत्मा प्राप्त करने की इस चर्चा के सन्दर्भ में, ऊपर जिन तीन उदाहरणों की चर्चा की गई है उन से संबंधित घटनाओं में ध्यान देने के लिए जो मुख्य बात है, वह है कि बाइबल की ये घटनाएं भी यह प्रमाणित नहीं करती हैं कि पवित्र आत्मा पाने के लिए किसी विशेष प्रयास या कार्य अथवा किसी मध्यस्थता की आवश्यकता है – जैसे कि प्रायः इन घटनाओं के आधार पर, बड़ा ज़ोर देकर लोगों को गलत शिक्षाएं दी जाती हैं, लोगों को भरमाया जाता है। बाइबल में कहीं भी ऐसा कोई भी उदाहरण नहीं है जिसके आधार पर इस दावे को सही दिखाया जा सके कि व्यक्ति को पवित्र आत्मा पाने के लिए प्रभु के सामने प्रार्थना में गिड़गिड़ाने, या कोई अन्य प्रयास करने, अथवा परमेश्वर के किसी विशिष्ट सेवक की सहायता लेने की, या कुछ समय प्रतीक्षा करने की ज़रा सी भी आवश्यकता है। जैसे उद्धार पाना है, वैसे ही परमेश्वर पवित्र आत्मा को पाना भी, किसी भी मनुष्य या मानवीय विधि-विधान, या कार्य के आधीन, किसी मनुष्य के कैसे भी नियंत्रण में कदापि नहीं हैं। यदि विश्वासी प्रभु की दृष्टि में सही है, तो मसीही विश्वास में आते और उद्धार पाते ही उसे प्रभु की ओर से उद्धार के साथ ही पवित्र आत्मा भी दे दिया जाता है, उसकी आत्मिक सुरक्षा और मसीही जीवन में निर्देशन, उस के दैनिक जीवन के सही संचालन, और उस की आत्मिक परवरिश के लिए।
- क्रमशः
अगला लेख: पवित्र आत्मा का बपतिस्मा क्या है? (1)

बुधवार, 29 अप्रैल 2020

पवित्र आत्मा पाना भाग (5) – विशेष प्रयास – प्रतीक्षा करना (1)



4. क्या पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है? भाग (1)

लूका 24:49 और प्रेरितों 1:4, 8 के आधार पर यह कहा जाता है कि प्रभु यीशु ने स्वयं पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए शिष्यों से प्रतीक्षा करने के लिए कहा है। इसलिए पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए प्रभु का उपयुक्त समय आने की प्रतीक्षा करने को कहना वचन के अनुसार है, और प्रतीक्षा करनी चाहिए। किन्तु यहाँ पर भी इन पदों से यह निष्कर्ष निकालते समय फिर उन्हीं दो गलतियों को दोहराया जा रहा है – सन्दर्भ से बाहर लेना, और अन्य संबंधित शिक्षाओं का ध्यान न रखना। निःसंदेह, प्रभु ने अपने उन आरंभिक शिष्यों से पवित्र आत्मा पाने के लिए प्रतीक्षा करने के लिए कहा था, किन्तु उस प्रतीक्षा का मुख्य उद्देश्य उस समय के उन शिष्यों से प्रभु द्वारा उन्हें दी गई संसार भर में सुसमाचार प्रचार करने की महान आज्ञा के अंतर्गत सेवकाई आरंभ करने से पहले उसके लिए उचित तैयारी करना और सामर्थ्य पाना था, जो उन्हें उन में पवित्र आत्मा के आने से मिलनी थी, न कि बस यूं ही, उन के मसीही जीवन के लिए बिना किसी परमेश्वर द्वारा नियुक्त सेवकाई या उद्देश्य के पवित्र आत्मा पा लेने की प्रतीक्षा करना। यहाँ यह बात बिलकुल स्पष्ट है कि प्रभु ने पहले उन शिष्यों को अपनी सेवकाई निर्धारित कर के सौंपी, फिर उस सेवकाई के लिए उन शिष्यों की नियुक्ति की गई, और फिर उस सेवकाई के लिए उन निर्धारित और नियुक्त शिष्यों को सामर्थ्य प्रदान की गई – हर संबंधित बात, हर कदम प्रभु की ओर से निर्धारित और संचालित, प्रभु की इच्छा के अनुसार। जैसा आज लोग करने और सिखाने का प्रयास करते हैं, वह प्रभु द्वारा कही और की गई बात के अनुरूप कदापि नहीं है, लेश-मात्र भी नहीं। 

आज तो लोग बस चाहते हैं कि पहले एक बार सामर्थ्य मिल जाए फिर देखेंगे कि उस के द्वारा क्या किया जा सकता है। परमेश्वर कभी कुछ भी निरुद्देश्य या किसी के ‘मज़े लेने के लिए’ नहीं करता है। आज लोगों से कहा जाता है, उन्हें सिखाया जाता है कि पवित्र आत्मा पा लेने के आनंद और उल्लास के अनुभव के लिए, उस के लिए प्रार्थना और प्रतीक्षा करें! इस प्रकार से पवित्र आत्मा मांगने वाले उन लोगों में न तो इस की कोई समझ है कि परमेश्वर ने उन्हें क्यों बुलाया है; और न ही उन लोगों को इस बात का कोई एहसास है कि प्रभु की सेवकाई के लिए उन्हें क्या कीमत चुकानी पड़ सकती है; उन्हें बस यही बताया और सिखाया जाता है कि पवित्र आत्मा तथा उसके वरदानों को प्राप्त करने के अद्भुत अनुभव से होने वाले उत्साह और उल्लास के लिए उसे माँगें। यह वह प्रतीक्षा करना कदापि नहीं है जिसके लिए प्रभु ने अपने आरम्भिक चेलों से कहा था। प्रभु यीशु ने आने वाले समयों के सभी शिष्यों के लिए इसे कोई सिद्धांत या नियम बना कर स्थापित नहीं किया था। यदि यह कहा जाए कि यह प्रभु की ओर से नियम या सिद्धांत था, तो फिर यह भी स्वीकार करना पड़ेगा कि प्रेरितों 2:38 में पतरस के पहले प्रचार और पहले शिष्यों के बनने के साथ ही पतरस द्वारा इस नियम को तोड़ दिया गया, सिद्धान्त की अवहेलना की गई, निःसंकोच इसकी अनाज्ञाकारिता की गई – और यदि यह हुआ है तो फिर प्रभु की आशीष और समर्थन उस अनाज्ञाकारिता के साथ कैसे बनी रही, प्रभु ने अनाज्ञाकारी लोगों को अपनी कलीसिया में कार्य कैसे कर लेने दिया? किन्तु यदि प्रभु की आशीष और समर्थन रहा – जैसा की प्रत्यक्ष है, तो फिर यह भी स्पष्ट है कि वह अनाज्ञाकारिता नहीं थी; अर्थात वह प्रभु द्वारा दिया गया कोई ऐसा नियम या सिद्धांत नहीं था, वरन प्रतीक्षा करने के लिए कहना केवल उस समय के उन शिष्यों के लिए ही कही गई बात थी – और यही सत्य है।
- क्रमशः
अगला लेख: क्या पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है? भाग (2); निष्कर्ष

मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

पवित्र आत्मा पाना भाग (4) – विशेष प्रयास – हाथ रखना



3. क्या पवित्र आत्मा अगुवों या प्रेरितों द्वारा हाथ रखने से मिलता है?

न उपरोक्त घटनाओं में प्रेरितों द्वारा उन लोगों पर हाथ रखे जाने की बात भी आई है, जिसके उपरान्त उन्होंने पवित्र आत्मा प्राप्त किया; इसलिए यह भी कहा जाता है, और फिर से गलत, कि प्रेरितों या कलीसिया के अगुवों के द्वारा हाथ रखने से पवित्र आत्मा मिलता है। बाइबल के इस संबंधित तथ्य, ‘हाथ रखना,’ के कई अभिप्राय हैं। हमारी चर्चा के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण बात यह है कि बाइबल में उपरोक्त तीन उदाहरणों के अतिरिक्त कभी भी पवित्र आत्मा के प्राप्त करने या दिए जाने के साथ यह कहीं जुड़ा हुआ नहीं है। इसलिए इस का केवल यही एक अर्थ है कहना और सिखाना वचन के अनुसार सही नहीं है। ‘हाथ रखना’ अपने आप में एक बड़ा विषय है, जिसके पुराने और नए नियम में भिन्न अभिप्राय हैं। नए नियम में यह आशीष देने (मत्ती 19:13, 15), चंगाई देने (मत्ती 9:18; लूका 13:13; प्रेरितों 9:12, 17), परमेश्वर द्वारा नियुक्त हो कर किसी विशेष दायित्व के सौंपे जाने (प्रेरितों 6:6; 13:3; 1 तीमुथियुस 4:14; 2 तीमुथियुस 1:6), और सेवकाई में साथ सहभागी बना लेने और स्वीकार कर लेने के द्वारा अपने साथ मिला लेने को भी दिखाता है (1 तीमुथियुस 4:14; 5:22)।

पवित्र आत्मा प्राप्त करने की उपरोक्त तीनों घटनाओं के सन्दर्भ में, ‘हाथ रखने’ का अभिप्राय उन सभी लोगों के प्रभु में एक हो जाने से है, अर्थात, उन यहूदी विश्वासियों और प्रेरितों के द्वारा उन विभिन्न गैर-यहूदियों पर हाथ रखे जाने से उन पर यह व्यक्त किया गया, कि अब वे भी उन प्रेरितों और अगुवों तथा मसीही मंडली के अन्य लोगों के साथ प्रभु में एक हैं, प्रभु में हो कर अन्य सभी के समान हैं (प्रेरितों 15:7-9)। ध्यान कीजिए, पतरस को तो कुरनेलियुस के घर के लोगों पर हाथ भी नहीं रखना पड़ा; उन लोगों के पतरस के द्वारा दिए गए सुसमाचार पर विश्वास करते ही, पवित्र आत्मा स्वयं ही उन पर उतर आया (प्रेरितों 10:44; 11:15)। रोचक बात है कि आगे चल कर प्रभु यीशु का भाई, याकूब, अपनी पत्री में शारीरिक रोग से चंगाई पाने के लिए कलीसिया के अगुवों से तेल लगा कर प्रार्थना करवाने के लिए तो कहता है (याकूब 5:14-15), और लिखता है कि विश्वास की प्रार्थना से चंगाई भी मिलेगी और पापों की क्षमा भी। परन्तु न तो याकूब, और न ही नए नियम का कोई अन्य लेखक कभी भी किसी भी स्थान पर, मसीह में विश्वास लाने वालों से यह कहता है कि वे कलीसिया के अगुवों से हाथ रखवा कर प्रार्थना करवाएँ और वे पवित्र आत्मा प्राप्त करेंगे। यह शिक्षा भी बाइबल में कहीं नहीं है, और इस शिक्षा को देने वाले बाइबल की बातों का गलत उपयोग और व्याख्या करते हैं, अनुचित करते हैं।
- क्रमशः
अगला लेख: क्या पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है? (1)

सोमवार, 27 अप्रैल 2020

पवित्र आत्मा पाना भाग 3 – विशेष प्रयास – प्रेरितों और अगुवों के सहायता से (3)



2. क्या पवित्र आत्मा प्रेरितों या कलीसिया के अगुवों की सहायता से मिलता है?

(भाग 3 – तीन उदाहरणों की समझ)


अब उपरोक्त संबंधित बातों के आधार पर इन तीन उदाहरणों को समझते हैं: पहली बात जो पहले ही कही जा चुकी है – इन में से किसी ने भी कभी भी पवित्र आत्मा को पाने के लिए कोई प्रार्थना, प्रयास, या इच्छा नहीं दिखाई; उन्हें जब पवित्र आत्मा दिया गया, वह परमेश्वर के समय, विधि और इच्छानुसार दिया गया। केवल एक ने ही पवित्र आत्मा को दूसरों को देने की सामर्थ्य पाने की इच्छा व्यक्त थी, शमौन टोनहा करने वाले ने, और उसका वास्तविक उद्धार ही नहीं हुआ था, और उसके यह कहने के लिए उसकी तीव्र निंदा की गई, उससे पश्चाताप करने के लिए कहा गया! दूसरी बात, यहूदियों से भिन्न ये तीनों वर्ग – सामरी, अन्य-जाति, और युहन्ना बपतिस्मा देने वाले के शिष्य, इन तीनों के मसीही विश्वास में आने और पवित्र आत्मा पाने का उल्लेख केवल प्रेरितों के कार्य – जो कि पहली मसीही मण्डली के आरंभिक कार्यों का इतिहास है, में ही दिया गया है। एक बार जब इन सभी वर्गों में से लोग आकर विश्वास के द्वारा प्रभु की कलीसिया, उसकी देह के साथ जुड़ गए, तो इसके बाद कभी भी किसी भी पत्री के लेखों में (जो सभी कलीसियाओं के सुधार और विकास के लिए पवित्र आत्मा के द्वारा अनेकों बातों, धारणाओं, परम्पराओं आदि को छोड़ने, सुधारने, या अपनाने के लिए बताए गए निर्देश हैं), कहीं भी यह शिक्षा नहीं दी गई है कि मसीही विश्वास में आने के बाद किसी भी विश्वासी को पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए अलग से कुछ भी करने की आवश्यकता है, और न ही कहीं भिन्न मसीही विश्वासियों की भिन्न पृष्ठभूमि से होने के किसी महत्व के होने का कोई उल्लेख किया गया है। तीसरी बात, इन तीनों गैर-यहूदी समूहों के लोगों को उदाहरण बनाकर कभी भी, परमेश्वर के वचन में कहीं भी यह शिक्षा नहीं दी गई है, कि इनके समान ही, पवित्र-आत्मा पाने के लिए कलीसिया के किसी प्रेरित, या अगुवे, या किसी विशेष जन की किसी मध्यस्थता की कोई आवश्यकता है। पत्रियों में कलीसिया के अगुवों की जिम्मेदारियों को तो बताया और सिखाया गया है, किन्तु कहीं यह नहीं कहा गया है कि उन्हें लोगों को पवित्र आत्मा प्राप्त करने में सहायक भी होना चाहिए। चौथी बात, इन तीनों को आधार बना कर बाइबल में कभी भी कहीं पर भी ऐसी कोई शिक्षा तो दूर, हलका सा कोई संकेत भी नहीं आया है कि ये घटनाएं उदाहरण हैं कि पवित्र आत्मा पाने के लिए कुछ प्रतीक्षा, या कुछ विशेष करना पड़ता है, पवित्र आत्मा उद्धार पाते ही तुरंत ही नहीं मिल जाता है।

अर्थात, प्रेरितों के कार्य में उल्लेखित ये घटनाएं, उन विभिन्न गैर-यहूदी वर्गों के कलीसिया में यहूदियों के साथ ही मिला कर एक कर दिए जाने का प्रतिनिधित्व मात्र करने के उदाहरण थीं। एक बार जब कलीसिया सब प्रकार के लोगों से मिल कर एक बन गई तो फिर उन्हें किसी भी आधार पर अलग-अलग देखने की कोई आवश्यकता नहीं रह गई। इनमें तीसरी घटना में, पौलुस द्वारा यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के शिष्यों से पूछा गया एक महत्वपूर्ण प्रश्न है, जो कि आरम्भ में दिए गए तर्क – पवित्र आत्मा वास्तविकता में उद्धार पाते, मसीही विश्वास में आते ही मिल जाता है, की एक और पुष्टि है। पौलुस ने पूछा, “...क्या तुम ने विश्वास करते समय पवित्र आत्मा पाया? उन्होंने उस से कहा, हम ने तो पवित्र आत्मा की चर्चा भी नहीं सुनी” (प्रेरितों के काम 19:2)। अर्थात पौलुस को यही स्वाभाविक आशा थी कि जब वे लोग मसीही विश्वास में आए थे, तो उन्होंने तब ही पवित्र आत्मा प्राप्त कर लिया होगा। किन्तु आगे के वार्तालाप (पद 3-7) से स्पष्ट होता है कि वास्तव में वे सच्चे मसीही विश्वास में आए ही नहीं थे, इसलिए पवित्र आत्मा पाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था। और जब वे पौलुस की सेवकाई के द्वारा वास्तव में वे लोग मसीही विश्वास में आए, तो उन्होंने पवित्र आत्मा भी तभी तुरंत ही पा लिया।

इसलिए इन उदाहरणों का यह कहने और सिखाने के लिए प्रयोग करना कि पवित्र आत्मा अलग से मिलता है, इस बात से संबंधित तथ्यों की गलत समझ रखना और व्याख्या करना है। यह ऐसे गलत निष्कर्ष निकलना और सिखाना है, जिनका परमेश्वर के वचन के आधार पर कोई समर्थन नहीं है। जब इन घटनाओं को भी उनके सही संदर्भ में और परमेश्वर के वचन की अन्य सम्बंधित शिक्षाओं के साथ देखा जाता है तो सत्य उजागर हो जाता है।

- क्रमशः

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