सूचना: ई-मेल के द्वारा ब्लोग्स के लेख प्राप्त करने की सुविधा ब्लोगर द्वारा जुलाई महीने से समाप्त कर दी जाएगी. इसलिए यदि आप ने इस ब्लॉग के लेखों को स्वचालित रीति से ई-मेल द्वारा प्राप्त करने की सुविधा में अपना ई-मेल पता डाला हुआ है, तो आप इन लेखों अब सीधे इस वेब-साईट के द्वारा ही देखने और पढ़ने पाएँगे.

गुरुवार, 7 मई 2020

पवित्र आत्मा को पाना – भाग 4 – पवित्र आत्मा से भरना या परिपूर्ण होना (1) - इफिसियों 5:18



पवित्र आत्मा से भरना या परिपूर्ण होना क्या है? – भाग 1  इफिसियों 5:18

पवित्र आत्मा से भर जाना से अभिप्राय है पवित्र आत्मा की सामर्थ्य, उसके नियंत्रण में होकर कार्य करना। इसके लिए इफिसियों 5:18 “और दाखरस से मतवाले न बनो, क्योंकि इस से लुचपन होता है, पर आत्मा से परिपूर्ण होते जाओ” के आधार पर दावा किया जाता है कि पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होने या भर जाने की शिक्षा बाइबल में दी गई है। किन्तु यदि हम बहुधा ज़ोर देकर दोहराई जाने वाली पवित्र आत्मा संबंधी गलत शिक्षाओं के प्रभाव से निकल कर इस वाक्य को साधारण समझ से देखें, और वह भी उसके सही सन्दर्भ में, तो यहाँ असमंजस की कोई बात ही नहीं है। इस वाक्य का सीधा सा और स्पष्ट अर्थ है; यहां दाखरस द्वारा मनुष्य को नियंत्रित कर लेने वाले प्रभाव को व्यक्त करने के लिए अलंकारिक भाषा का प्रयोग किया गया है। पवित्र आत्मा की प्रेरणा से पौलुस ने जो लिखा है उसे ऐसे समझा जा सकता है, “जिस प्रकार दाखरस से ‘परिपूर्ण’ व्यक्ति दाखरस के मतवाला कर के लुचपन का व्यवहार करवाने के प्रभाव द्वारा पहचाना जाता है कि वह उस के अन्दर विद्यमान दाखरस के प्रभाव तथा नियंत्रण में है, उसी प्रकार मसीही विश्वासी को अपने आत्मा से भरे हुए या ‘परिपूर्ण’ होने को अपने आत्मिक व्यवहार के द्वारा प्रदर्शित और व्यक्त करना है कि वह पवित्र आत्मा से भरा हुआ है, उसके नियंत्रण में है” और फिर पद 19 से 21 में वह पवित्र आत्मा से भरे हुए होने पर किए जाने वाले अपेक्षित व्यवहार की बातें बताता है।

इस वाक्य में एक और बात पर ध्यान कीजिए, पौलुस ने लिखा है, ‘...परिपूर्ण होते जाओ’ अर्थात यह लगातार चलती रहने वाली प्रक्रिया है कि लगातार पवित्र आत्मा के प्रभाव और नियंत्रण में बने रहो; इसे यदा-कदा किए जाने वाला कार्य मत समझो। इसका यह अर्थ न तो है और न ही हो सकता है कि तुम्हें पवित्र आत्मा की मात्रा बारंबार लेते रहना पड़ेगा जब तक कि तुम उस से ‘भर’ नहीं जाते हो; या फिर यह कि क्योंकि पवित्र आत्मा व्यक्ति में से रिस कर निकलता रहता है, इस लिए जब भी ऐसा हो जाए तो उसे फिर से ‘भर’ लेने के लिए पर्याप्त मात्रा में उसे ले लो। यह तो कभी हो ही नहीं सकता है, क्योंकि जैसा ऊपर देखा है, पवित्र आत्मा परमेश्वर है, पवित्र त्रिएक परमेश्वर का एक व्यक्तित्व, उसे बांटा नहीं जाता है, वह टुकड़ों या किस्तों में नहीं मिलता है, उसे घटाया या बढ़ाया नहीं जा सकता है, और वह हर किसी सच्चे मसीही विश्वासी में मात्रा तथा गुणवत्ता में समान ही होता है। क्योंकि यही सच है तो फिर यही संभव है कि व्यक्ति के सच्चे मसीही विश्वास में आते ही जैसे ही पवित्र आत्मा उसे मिला, वह तुरंत ही उससे ‘भर गया’ अथवा ‘परिपूर्ण’ भी हो गया, क्योंकि अब जो पवित्र आत्मा मिल गया उससे अतिरिक्त, या अधिक, या दोबारा तो कभी मिल ही नहीं सकता है; जो है, जितना है, हमेशा वही और उतना ही रहेगा; अब तो बस उस व्यक्ति को पवित्र आत्मा की उपस्थिति को व्यक्त करते रहना है, अपने व्यवहारिक जीवन में पवित्र आत्मा के प्रभाव को दिखाते रहना है। तो इसलिए अब जिसमें जो भिन्नता हो सकती है वह व्यक्ति के पवित्र आत्मा के प्रति समर्पण एवं आज्ञाकारिता को व्यक्त करना या व्यवहारिक जीवन में प्रदर्शित करना है; किन्तु उसका यह व्यवहार और आचरण (जैसा कि हम शीघ्र ही देखेंगे) उस में पवित्र आत्मा की ‘मात्रा’ का सूचक नहीं है – क्योंकि न तो वह मात्रा और न गुणवत्ता कभी भी बदल नहीं सकती है।

 - क्रमशः
अगला लेख:  पवित्र आत्मा से भरना या परिपूर्ण होना क्या है? भाग 2 – समझना (1)

बुधवार, 6 मई 2020

पवित्र आत्मा का बपतिस्मा – भाग 3 – संख्या; निहितार्थ




पवित्र आत्मा का बपतिस्माभाग 3
कितने बपतिस्मे
निहितार्थ

पवित्र आत्मा का बपतिस्मा कोई अलग से मिलने या लिए जाने वाला बपतिस्मा नहीं है; और न ही इसे प्राप्त करने के लिए मसीही विश्वासियों को कोई निर्देश दिए गए हैं। पवित्र आत्मा, पौलुस में हो कर स्पष्ट कहता है “एक ही प्रभु है, एक ही विश्वास, एक ही बपतिस्मा” (इफिसियों 4:5)। अब यदि उद्धार पाने के बाद लिया गया एक तो पानी का बपतिस्मा है और फिर यदि उस तथाकथित शिक्षा के अनुसार परमेश्वर के लिए प्रभावी होने के लिए एक और पवित्र आत्मा का बपतिस्मा भी है, तो फिर ये तो एक नहीं वरन दो अलग-अलग बपतिस्मे हो गए, और इफिसियों में दी गई ‘एक ही बपतिस्मा’ होने की बात झूठी हो गई! अर्थात पवित्र आत्मा ने, जिसकी प्रेरणा से समस्त पवित्र शास्त्र लिखा गया है (2 तीमुथियुस 3:16), वचन में झूठ डलवा दिया, उसी ने अपने ही बात काट दी, अपने ही विषय गलती कर दी – जो कि असंभव है, ऐसा विचार करना भी घोर मूर्खता है।

अब क्योंकि जल का बपतिस्मा तो स्थापित है ही – यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला भी वही  देता था (मरकुस 1:4-5, 8), प्रभु यीशु ने भी उस से वही बपतिस्मा लिया (मरकुस 1:9), प्रभु ने अपनी महान आज्ञा में भी शिष्यों को यही देने के लिए कहा (मत्ती 28:19), और प्रेरितों दो अध्याय में कलीसिया की स्थापना के साथ ही प्रथम मसीही विश्वासियों को भी यही दिया गया (प्रेरितों 2:41), तथा तब से अब तक सभी मसीही विश्वासियों को दिया जाता रहा है; इसलिए एक बपतिस्मे की गिनती तो यहीं पर इस पानी के बपतिस्मे के साथ समाप्त हो जाती है। पवित्र आत्मा का बपतिस्मा अलग से पाने की शिक्षा देने वाले तो फिर एक और अतिरिक्त बपतिस्मा लेने की शिक्षा देकर, जानते-बूझते हुए परमेश्वर के वचन में गलती डालते हैं, परमेश्वर के वचन को झूठा बनाते हैं, अपनी गलत धारणा के समर्थन के लिए वचन का दुरुपयोग करते हैं। जबकि प्रेरितों 11:15-18 में यह बिलकुल स्पष्ट कर दिया गया है, प्रभु के नाम और प्रभु द्वारा दी गई शिक्षा के आधार पर यह साफ बता दिया गया है, कि पवित्र आत्मा प्राप्त करना और पवित्र आत्मा का बपतिस्मा एक ही हैं, इन्हें पृथक करने या अलग देखने की न तो कोई आवश्यकता है और न ही बाइबल में कोई ऐसी शिक्षा अथवा निर्देश है।

अब इस पर ज़रा ध्यान कीजिए कि भक्ति और वचन के आदर के रूप में शैतान ने कितनी चतुराई से लोगों को परमेश्वर के वचन को झूठा ठहराने और उसकी अनाज्ञाकारिता करने के लिए झांसे में डाला है। इसीलिए पौलुस पवित्र आत्मा के द्वारा ऐसी गलत शिक्षाओं को देने वालों के लिए सचेत करता है, “यह मैं इसलिये कहता हूं, कि कोई मनुष्य तुम्हें लुभाने वाली बातों से धोखा न दे” (कुलुस्सियों 2:4); “परन्तु मैं डरता हूं कि जैसे सांप ने अपनी चतुराई से हव्‍वा को बहकाया, वैसे ही तुम्हारे मन उस सीधाई और पवित्रता से जो मसीह के साथ होनी चाहिए कहीं भ्रष्‍ट न किए जाएं” (2 कुरिन्थियों 11:3)। जैसा हम पहले की चर्चाओं में देख और स्थापित कर चुके हैं, प्रेरितों 11:16 तथा 1 कुरिन्थियों 12:13 में उल्लेखित ‘पवित्र आत्मा का बपतिस्मा’ अलंकारिक भाषा के प्रयोग द्वारा सभी वास्तविक मसीही विश्वासियों को पवित्र आत्मा के द्वारा प्रभु की एक ही देह अर्थात कलीसिया में समान रूप से सम्मिलित कर दिए जाने और समान स्थान तथा आदर प्रदान कर दिए जाने की अभिव्यक्ति है; न कि भविष्य में किए जाने के लिए कोई निर्देश।

बपतिस्मा एक ही है – जल में डुबकी का बपतिस्मा, जिसे मसीही विश्वास में आने के बाद ही प्रत्येक व्यक्ति को प्रभु की आज्ञाकारिता पूरी करने के लिए लेना है – बपतिस्मे से उद्धार नहीं है (प्रेरितों 2:38 की गलत व्याख्याओं द्वारा बहकाए न जाएं; देखिए: क्या प्रेरितों के काम 2:38 यह शिक्षा देता है कि उद्धार के लिए बपतिस्मा लेना आवश्यक है?), उद्धार पाए हुओं के लिए, प्रभु के प्रति समर्पित और आज्ञाकारी होने की गवाही देने के लिए बपतिस्मा है (मत्ती 28:19) – बपतिस्मा उन्हें दिया जाना था जो शिष्य बन जाते थे; न की बपतिस्मा लेने से व्यक्ति शिष्य बनता था)।


निहितार्थ

मसीह की देह, अर्थात उस की कलीसिया अस्तित्व में आ चुकी है; और जितनों ने नया जन्म पाया है, अर्थात वे जो सच्चे मन से पापों से पश्चाताप करने, सत्यनिष्ठा के साथ अपने पापों के लिए प्रभु से क्षमा माँगने, और वास्तविकता में अपना जीवन पूर्णतः प्रभु को समर्पित करने के द्वारा मसीह यीशु में विश्वास में आ गए हैं, वे स्वतः ही प्रभु की देह के अंग और पवित्र आत्मा का मंदिर बन जाते हैं, और परमेश्वर पवित्र आत्मा उन के अन्दर निवास करने लगता है। यदि इस पद के आधार पर यह विचार रखा जाए, कि केवल वे जिन्होंने अतिरिक्त पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाया है, वे ही प्रभु की देह के कार्यकारी और प्रभावी सदस्य हो सकते हैं, तो फिर यह एक बहुत खतरनाक और बाइबल के बिलकुल विपरीत सिद्धांत  ले आता है – प्रभु की कम से कम दो देह होने का – एक देह वे जिन्होंने पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाया है और दूसरी देह वो जिन्होंने यह बपतिस्मा नहीं पाया है; पहले वाले तो प्रभु के लिए उपयोगी होंगे और दूसरे वाले उपयोगी नहीं होने पाएँगे। ऐसी स्थित में स्वाभाविक है कि अनन्तकाल के लिए प्रभु की लगभग सभी आशीषें और प्रतिफल पहले वाले लोगों के लिए होंगे, जबकि दूसरे वाले लोगों को अनंतकाल के लिए लगभग खाली हाथ ही रहना पड़ेगा। अब आप स्वयं ही देख लीजिए कि भक्तिपूर्ण प्रतीत होने वाला यह सिद्धांत वास्तव में कितना घातक, घिनौना, पवित्र शास्त्र के प्रतिकूल, परमेश्वर के स्वभाव के बिलकुल विपरीत, तथा पूर्णतः तिरस्कार योग्य है।

साथ ही, एक बार फिर, यह लोगों को सत्य बताने की ज़िम्मेदारी से बचने का प्रयास है; यह बताने के दायित्व से मुँह मोड़ना है कि यदि उन्हें अपने जीवनों में पवित्र आत्मा की उपस्थिति का अनुभव नहीं हो रहा है तो दो ही संभावनाएं हैं, या तो उन्होंने वास्तव में उद्धार तथा नया जन्म नहीं पाया है, इसलिए उन्हें इसे सुधारने के लिए तुरंत निर्णय और उपयुक्त कार्य करना चाहिए; अथवा, उनके जीवन पवित्र आत्मा को पूर्णतः समर्पित नहीं हैं, वे वास्तव में पवित्र आत्मा के आज्ञाकारी नहीं हैं, इस लिए वह उन में हो कर कार्य नहीं कर रहा है; और फिर इस का भी तुरंत उचित सुधार करना आवश्यक है।

 - क्रमशः
अगला लेख:  पवित्र आत्मा से भरना या परिपूर्ण होना क्या है? (भाग 1)

मंगलवार, 5 मई 2020

पवित्र आत्मा का बपतिस्मा - भाग 2 - 1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग 4)




पवित्र आत्मा का बपतिस्मा क्या है? -  भाग 2  
 1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग 4)


इस पद 1 कुरिन्थियों 12:13 को फिर से देखिए – यहाँ प्रयोग किया गया वाक्यांश है ‘हम सब ने...बपतिस्मा लिया’ – भूतकाल; पूरा किया गया, कर लिया गया कार्य। यहाँ प्रयुक्त ‘हम’ का अभिप्राय पौलुस और सोस्थिनेस (1 कुरिन्थियों 1:1), तथा पौलुस के अन्य सेवकाई में सहायक साथियों से, तथा सभी यहूदीयों, अन्यजातियों, यूनानियों, स्वतंत्र अथवा दासों से है। सभी को एक साथ मसीह की एक ही देह में डुबो या समो दिया गया। अब, क्या सम्पूर्ण नए नियम में, कहीं पर भी ऐसा लिखा गया है कि पौलुस या सेवकाई के उस के साथियों में से किसी ने भी कोई अलग से पवित्र आत्मा का बप्तिस्मा लिया था; या ऐसा बपतिस्मा लेने के बाद उन्हें सामर्थ्य प्राप्त हुई और तब वे अपनी उस संसार को उल्ट-पुलट कर देने वाली सेवकाई (प्रेरितों 17:6) पर निकले? दमिश्क के मार्ग पर जाते हुए पौलुस के उद्धार पाने और बदल जाने के बाद बपतिस्मा लेने की घटना भली-भांति दर्ज की गई है (प्रेरितों 9:18) ; साथ ही यह भी लिखा गया है कि, “
और वह तुरन्त आराधनालयों में यीशु का प्रचार करने लगा, कि वह परमेश्वर का पुत्र है” (प्रेरितों 9:20) । उस ने यह इतनी लगन और प्रबलता के साथ किया कि लोग चकित रह गए (प्रेरितों 9:21), और इस के बाद से पौलुस और भी अधिक सामर्थी होता चला गया, तथा यहूदियों के मुंह बंद करता चला गया
(प्रेरितों 9:22)। क्योंकि कोई उस के सामने खड़ा नहीं रह सकता था, इस लिए अंततः यहूदियों ने उसे मार डालने की योजना बनाना आरम्भ कर दिया  (प्रेरितों 9:23)। पौलुस का यह सेवकाई आरम्भ करना क्या इस बात को बिलकुल स्पष्ट नहीं दिखा देता है कि प्रभु के लिए उपयोगी एवं प्रभावी होने के लिए पवित्र आत्मा के किसी बपतिस्मे की कोई आवश्यकता नहीं है?


अपने मुख्य पद 1 कुरिन्थियों 12:13 पर वापस लौटते हैं, यद्यपि यहाँ पर यह तो लिखा है कि “हम सब ने...एक ही आत्मा के द्वारा एक देह होने के लिये बपतिस्मा लिया...”, किन्तु यहाँ पर यह कहीं नहीं लिखा है कि इस पद में जिनका उल्लेख है उनमें से किसी ने भी, कभी भी ऐसा किए जाने के लिए कहा, या प्रतीक्षा की, या प्रार्थना की। यह पवित्र आत्मा के द्वारा स्वयं ही किया गया था – उन सभी को अपने में ढांप लिया और सब को मसीही विश्वासियों में मिलाकर एक देह कर दिया। साथ ही, यहाँ पर ऐसा कुछ नहीं लिखा गया है कि उन में से कुछ को उन के लिए यह करने के योग्य पाया गया, किन्तु कुछ औरों को छोड़ दिया गया क्योंकि वे इस के योग्य नहीं पाए गए। और न ही कहीं यह लिखा है, या ऐसा संकेत भी किया गया है कि, कोरिन्थ की मंडली, या किसी भी अन्य मसीही विश्वासियों की मंडली में यदि कभी भी कोई नया सदस्य आएगा, तो फिर उन्हें भी यह पवित्र आत्मा का बपतिस्मा लेना होगा यदि वे प्रभु की सेवा करना चाहते हैं, प्रभु के लिए प्रभावी होना चाहते हैं। ऐसे सभी विचारों को इस पद के आधार पर बताना और सिखाना बचकाना है, काल्पनिक है। इस पद से ऐसी कोई भी शिक्षा न तो बनाई जा सकती है, और न ही सही ठहराई जा सकती है।



  यह पद एक उत्तम उदाहरण है बाइबल के केवल कुछ चुने हुए शब्दों या वाक्यांशों को लेकर, उन्हें तोड़-मरोड़ कर झूठे सिद्धांतों और शिक्षाओं को बनाने और बढ़ावा देने का (ऐसा ही अन्य उदाहरण 1 कुरिन्थियों 14 में भी है, परन्तु उसे हम फिर कभी, जब प्रभु की इच्छा और मार्गदर्शन होगा, तब देखेंगे)। पवित्र आत्मा का बपतिस्मा लेने के सिद्धांत का पालन करने वाले इस पद का बहुत बल के साथ प्रयोग करते हैं, इस के आधार पर अपनी बात को सही ठहराने के दावे करते हैं, क्योंकि इस पद में लिखा है, “क्योंकि हम सब ने क्या यहूदी हो, क्या युनानी, क्या दास, क्या स्‍वतंत्र एक ही आत्मा के द्वारा एक देह होने के लिये बपतिस्मा लिया...।” परन्तु पद के इस पहले भाग के बाद वे बड़ी आसानी से इस पद के अंत में कही गई बात, “...और हम सब को एक ही आत्मा पिलाया गया” को बताना, या उस पर भी कार्य करना, कहना भूल जाते हैं, छोड़ देते हैं।



क्या आज तक कभी किसी को भी यह कहते या जोर देते सुना है कि ‘पवित्र आत्मा को पीना भी आवश्यक है?’ क्या ‘बपतिस्मा लिया’ और ‘पिलाया गया’ एक ही वाक्य के भाग नहीं हैं? यदि वाक्य का पहला भाग इतना आवश्यक और महत्वपूर्ण है कि उस पर सिद्धांत ही बना कर खड़ा कर दिया गया है और उसे बल दे कर सिखाया जाता है, तो फिर वाक्य के दूसरे भाग की पूर्णतः अवहेलना क्यों की जाती है? यदि यह कहा जाए की वाक्य का दूसरा भाग बात कहने के लिए अलंकारिक भाषा का प्रयोग है, तो फिर यही बात वाक्य के पहले भाग पर क्यों लागू नहीं होती है? क्यों नहीं यह स्वीकार कर के कि इस पूरे वाक्य में बात कहने के लिए अलंकारिक भाषा का प्रयोग किया गया है, इस समस्त गढ़े गए झूठे सिद्धांत और शिक्षा, बाइबल की बातों की गलत व्याख्या और गलत प्रयोग के झूठ का अंत कर दिया जाए? सीधी और स्पष्ट बात है कि इन दो अलंकारिक वाक्यांशों के प्रयोग के द्वारा यह बताया गया है कि मसीह की देह के प्रत्येक सदस्य को पवित्र आत्मा द्वारा पूर्णतः घेरे में ले लिया गया है – अन्दर से भी और बाहर से भी – और हर सदस्य इस प्रकार से पवित्र आत्मा में पूर्णतः सुरक्षित और ढांपा हुआ है।



  स्पष्ट और सीधी बात है कि इस पद में किसी पवित्र आत्मा के बपतिस्मे के द्वारा प्रभु के लिए उपयोगी होने की कोई शिक्षा नहीं है। ऐसी गलत शिक्षाओं को इस में घुसाना परमेश्वर के वचन को बिगाड़ना है, और लोगों को बहका कर उन्हें एक व्यर्थ और निष्फल प्रयास में समय बर्बाद करने में लगाना है।



 - क्रमशः

अगला लेख: पवित्र आत्मा का बप्तिस्मा – भाग 3 – कितने बपतिस्मे; निहितार्थ

सोमवार, 4 मई 2020

पवित्र आत्मा का बपतिस्मा - भाग 2 - 1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग 3)



पवित्र आत्मा का बपतिस्मा क्या है? -  भाग 2   
1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग 3)

अब, हम 1 कुरिन्थियों 12:13 को आगे देखते हैं, उस के सन्दर्भ  तथा उन सम्बंधित बातों के साथ जिन्हें हम ने ऊपर देखा है। 1 कुरिन्थियों 12 अध्याय, रोमियों 12 अध्याय ही के समान, पवित्र आत्मा के वरदानों का अध्याय है, परन्तु एक अंतर के साथ, रोमियों 12 अध्याय में पवित्र आत्मा के बपतिस्मे का उल्लेख नहीं है। पौलुस इस अध्याय का आरंभ उन कुरिन्थियों को यह स्मरण दिलाने के साथ करता है कि उन्हें गूंगी मूरतों की उपासना करने से छुड़ाया गया है, और उन की आत्मिक परिपक्वता की दशा चाहे जो भी हो, यह उन में निवास करने वाले पवित्र आत्मा के द्वारा ही है कि, वे यीशु को प्रभु कहने पाते हैं (पद 1-3) और उन्हें पवित्र आत्मा के वरदान भी दिए गए हैं। फिर पद 4 से 11 तक पौलुस उन्हें उन आत्मा के विभिन्न वरदानों के बारे में लिखता है जो उन्हें दिए गए हैं।

उन की उपरोक्त उल्लेखित पृष्ठभूमि और आत्मिकता की दयनीय दशा को ध्यान में रखते हुए, एक महत्वपूर्ण बात पर ध्यान दीजिए, जिसे पवित्र आत्मा उन से पौलुस द्वारा बल दिलवा कर कहता है – उन की व्यक्तिगत आत्मिक दशा चाहे जैसी भी हो, परमेश्वर की दृष्टि में, परमेश्वर के उद्देश्यों के लिए, प्रभु के समक्ष वे सभी एक ही कलीसिया हैं, सभी एक समान स्तर के हैं; न कोई ऊँचा है, और न कोई नीचा, न कोई अधिक उपयोगी है, और न कोई कम उपयोगी; परमेश्वर के सामने वे सभी एक ही समान हैं। पौलुस इस बात को उन्हें किस प्रकार से दिखाता है? 

वह कहता है:

  • पद 4-6 में, एक ही आत्मा, एक ही प्रभु, एक ही परमेश्वर, सब में हर प्रकार का प्रभाव उत्पन्न करता है;
  • पद 7 में,  सब के लाभ पहुंचाने के लिये हर एक को आत्मा का प्रकाश दिया जाता है; (पवित्र आत्मा के वरदानों के विषय विचार करते समय यह एक बहुत महत्वपूर्ण ध्यान रखने योग्य तथ्य है – कोई भी वरदान, कैसा भी और कोई भी, किसी के भी व्यक्तिगत उपयोग के लिए नहीं है; प्रत्येक वरदान सारी कलीसिया के लाभ के लिए है - 1 कुरिन्थियों 14:2-4 को लेकर सामान्यतः दी जाने वाली गलत शिक्षा के प्रचलन के बावजूद);
  • पद 11 में, पवित्र आत्मा की विभिन्न वरदानों का पद 8-10 में वर्णन करने के पश्चात, एक और महत्वपूर्ण कथन दिया गया है – सभी, वरदान, किसी मनुष्य की इच्छा के अनुसार नहीं वरन पवित्र आत्मा की इच्छा के अनुसार, जिसे वह चाहे अर्थात हर एक को दिए गए हैं (हिन्दी अनुवाद में प्रयुक्त ‘जिसे’ मूल यूनानी भाषा में प्रयुक्त शब्द ‘हेकास्तोस’, जिसका अर्थ होता है सभी या प्रत्येक, को ठीक से व्यक्त नहीं करता है, किन्तु अंग्रेज़ी में अनुवाद ‘सभी’ है); हम यहाँ देखते हैं कि किसी के भी साथ, किसी भी आधार पर, किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं किया गया है। कोरिन्थ की कलीसिया के प्रत्येक मसीही विश्वासी को कोई न कोई वरदान दिया गया है जिस से वह प्रभु के लिए उपयोगी हो सके।
  • पद 12 से ले कर पद 27 तक इस बात की पुष्टि फिर से की गई है, एक शब्द चित्र के द्वारा जिसमें एक देह और उसके विभिन्न अंगों को दिखाया गया है, जो सब साथ मिल कर कार्य करते हैं, और एक भी अंग में कोई भी बिगाड़, अन्य सभी अंगों को प्रभावित करता है।


इस सम्पूर्ण खण्ड में, जो कि 1 कुरिन्थियों 12:13 को सन्दर्भ प्रदान करता है, क्या कहीं पर भी, स्पष्ट शब्दों में कहना तो बहुत दूर की बात है, ज़रा सा संकेत मात्र भी है, कि प्रभु की सेवकाई के योग्य समझे जाने के लिए किसी भी आधार पर कोई भी भिन्नता की गई – क्या तथाकथित पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाया हुआ होना या न होना को भी कहीं कोई आधार बनाया गया? क्या कहीं पर यह कहा गया है कि क्योंकि उसने पवित्र आत्मा का बपतिस्मा नहीं पाया था इसलिए उस व्यक्ति को पवित्र आत्मा का वरदान पाने के अयोग्य समझा गया? क्या कहीं पर भी ऐसा लिखा या अभिप्राय दिया गया है कि यद्यपि प्रत्येक मसीही विश्वासी मसीह की देह का, उस की कलीसिया का अंग है, किन्तु ये प्रबल वरदान जैसे कि बुद्धि, ज्ञान, विश्वास, चंगाई, सामर्थ्य के काम, भविष्यवाणी, आत्माओं की परख, अनेकों प्रकार की भाषाएँ और भाषाओं का अर्थ बताना आदि केवल उन्हीं को दी गए जिन्होंने अलग से पवित्र आत्मा का बपतिस्मा भी पाया था? और रोमियों 12 इस खंड का समानांतर लेख पवित्र आत्मा के बपतिस्मे का उल्लेख भी नहीं करता है!

इस लिए किस आधार पर, बाइबल के कौन से समर्थन के अनुसार, यह शिक्षा दी जाती है और दावा किया जाता है कि प्रभु के लिए कारगर होने के लिए मसीही विश्वासी को पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाना आवश्यक है? यदि कोरिन्थ के मसीही विश्वासियों की इतनी दुर्बल आत्मिक स्थिति के बावजूद भी, उन्हें इतने अद्भुत और सामर्थी आत्मिक वरदानों को दिए जाने के योग्य समझा गया, और उन में से प्रत्येक को पवित्र आत्मा द्वारा प्रभु के लिए उपयोगी होने की क्षमता रखने वाला माना गया, तो फिर कोई इस बात का दावा कैसे कर सकता है कि प्रभु के लिए प्रभावी होने के लिए विशेषतः पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाना आवश्यक है?

क्या यह मसीह के देह में फूट डालने, विभाजन करने, और कुछ को औरों से बड़ा या बेहतर जता कर उन के द्वारा दूसरों पर हावी होने का प्रयास करना नहीं है? ऐसे में इस प्रकार की शिक्षा को सिखाने और मानने के द्वारा कलीसिया में विभाजन और भेदभाव उत्पन्न करने की संभावनाओं को ले आना क्या परमेश्वर का कार्य होगा, या फिर शैतान का? क्या पवित्र आत्मा का बपतिस्मा कह कर इस जान बूझकर दी गई गलत शिक्षा और परमेश्वर के वचन की गलत व्याख्या पर बल देने में कोई भी सद्गुण अथवा आत्मिक उन्नति की संभावना है?


 - क्रमशः

अगला लेख: पवित्र आत्मा का बप्तिस्मा – भाग 2 – 1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग 4)

रविवार, 3 मई 2020

पवित्र आत्मा का बपतिस्मा - भाग 2 - 1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग 2)



पवित्र आत्मा का बपतिस्मा क्या है? -  भाग
1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग 2)

     इस पद को आगे देखने से पहले, हम कुछ संबंधित जानकारी के बारे में देखते हैं; हम थोड़ा सा समय ‘बपतिस्मा’ शब्द पर, और कोरिन्थ की कलीसिया की पृष्ठभूमि को देखने में बिताएंगे। 

     पहले, शब्द ‘बपतिस्मा’; मूल यूनानी भाषा का शब्द, जिसका अनुवाद ‘बपतिस्मा’ हुआ है, ‘बैप्टिज़ो’ है; जिसका अर्थ होता है समो देना या डुबो देना। इसलिए किसी वस्तु का बपतिस्मा लिए या दिए जाने का अर्थ है उस वस्तु में डुबो देना, या उसके अन्दर समो देना। अब, यहाँ पर पद 12 में, मसीह की देह, अर्थात उसकी कलीसिया, की एकता के बारे में बताने और इस बात पर बल देने के बाद, पौलुस प्रेरित के द्वारा पवित्र आत्मा हमारी चर्चा के इस पद, पद 13 में उन अन्य-जातियों से परिवर्तित हुए लोगों को स्मरण दिला रहा है कि वे, कोरिन्थी, और यहूदी, तथा अन्य सभी, चाहे दास अथवा स्वतंत्र, सभी को एक समान ही ‘एक देह होने के लिए बपतिस्मा दिया गया है,’ अर्थात, सभी को एक ही देह में डुबो या समावेश कर दिया गया है; सभी को एक ही आवरण में ढांप दिया गया है, इसलिए अब मसीह की देह के किसी भी एक सदस्य की किसी दूसरे सदस्य से किसी भी बात में कोई भी भिन्नता करने का कोई भी आधार नहीं रह गया है। यह पद 12 की बात की स्पष्ट और सीधे से पुष्टि करने से अधिक और कुछ नहीं है, और यही बात इसके आगे के पदों से लेकर पद 27 तक के पदों की शिक्षाओं में प्रगट है। इस लिए यहाँ पर, कोई कहाँ से या कैसे इसमें इस शिक्षा या सिद्धांत को घुसा सकता है कि जो मसीही विश्वासी प्रभु की सेवा करना चाहते हैं, उन्हें यह पद एक विशेष कार्य अर्थात पवित्र आत्मा का बपतिस्मा लेने के लिए कहता है? कल्पना की कैसी भी उड़ान, इस पद में इस बचकानी और बाइबल के प्रतिकूल शिक्षा को बैठा नहीं सकती है, फिर भी लोग इतनी सरलता से इस गलत शिक्षा को स्वीकार कर लेते हैं, और एक पूर्णतः गलत शिक्षा को पवित्र शास्त्र का सच मान लेते हैं!

     दूसरी बात, इस पत्री की पृष्ठभूमि पर भी थोड़ा विचार करना आवश्यक है। पवित्र आत्मा की अगुवाई में पौलुस प्रेरित द्वारा कुरिन्थियों को – कोरिन्थ में स्थित कलीसिया, या मसीही विश्वासियों की मंडली को लिखी गई इस पत्री में एक विशिष्ट बात है। कोरिन्थ की वह कलीसिया विभिन्न प्रकार के पापों और समस्याओं से भरी हुई थी, और यह पत्री उनमें विद्यमान उन्हीं समस्याओं और पापों को संबोधित करने तथा उनका समाधान करने के लिए लिखी गई थी। उन के दुष्कर्मों की सूची पहले ही अध्याय से आरम्भ हो जाती है, और पत्री के अंत तक ज़ारी रहती है। परस्पर मतभेद और विभाजन, और कलीसिया के अगुवों और प्राचीनों के नाम में गुट बाज़ी से आरम्भ कर के, बच्चों जैसा अपरिपक्व व्यवहार, अनैतिकता, व्यभिचार, मूर्तियों को अर्पित वस्तुओं में संभागी होना, अपने आप को बड़ा दिखाना, अहंकार से सम्बंधित समस्याएँ, प्रभु भोज का दुरुपयोग और दुर्व्यवहार, तथा अन्य पापमय एवं अस्वीकार्य बातों का होना, सभी कोरिन्थ की कलीसिया में, उसके ‘मसीही विश्वासी’ सदस्यों के जीवनों में विद्यमान थे। लेकिन फिर भी पवित्र आत्मा पौलुस से पत्री के आरम्भ में ही लिखवाता है, “परमेश्वर की उस कलीसिया के नाम जो कुरिन्थुस में है, अर्थात उन के नाम जो मसीह यीशु में पवित्र किए गए, और पवित्र होने के लिये बुलाए गए हैं; और उन सब के नाम भी जो हर जगह हमारे और अपने प्रभु यीशु मसीह के नाम की प्रार्थना करते हैं” (1 कुरिन्थियों 1:2) – ये लोग जिनमें इतने निंदनीय पाप विद्यमान थे, उन्हें ‘परमेश्वर की कलीसिया’, ‘पवित्र किए गए’, ‘पवित्र होने के लिए बुलाए गए’, और संसार भर के उन सभी मसीही विश्वासियों के साथ ही स्वीकार किए गए हैं जो प्रभु का नाम लेते हैं, कहा गया है। इस पद, 1 कुरिन्थियों 12:13 की, इसे दिए गए बाइबल के प्रतिकूल उस अभिप्राय के सन्दर्भ में जिस का हम यहाँ अध्ययन कर रहे है, व्याख्या करने और समझ पाने में इस पृष्ठभूमि को ध्यान में बनाए रखना बहुत ही महत्वपूर्ण है।

 - क्रमशः

अगला लेख: पवित्र आत्मा का बप्तिस्मा – भाग 2 – 1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग 3)


शनिवार, 2 मई 2020

पवित्र आत्मा का बपतिस्मा - भाग 2 - 1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग 1)




पवित्र आत्मा का बपतिस्मा क्या है? -  भाग 2
1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग - 1)

 एक अन्य पद जिसका प्रयोग ‘पवित्र आत्मा का बपतिस्मा’ पाने की शिक्षा को वैध ठहराने के लिए किया जाता है, वह है 1 कुरिन्थियों 12:13; और एक बार फिर, जैसा कि हमेशा किया गया है, यहाँ भी यह इस वाक्यांश को उस के सन्दर्भ से बाहर लेकर और सन्दर्भ से बाहर ही उस की व्याख्या करने, तथा अन्य संबंधित शिक्षाओं पर ध्यान न देने के द्वारा किया जाता है। ‘पवित्र आत्मा का बपतिस्मा’ पाने के लिए जो मुख्य कारण बताया जाता है, वह है जिस से मसीही विश्वासी प्रभु की सेवा के लिए विशेष सामर्थ्य प्राप्त कर सके। यद्यपि यह एक भक्ति तथा श्रद्धा पूर्ण दृष्टिकोण प्रतीत होता है, किन्तु वास्तव में यह बाइबल के सत्य को बिगाड़ना और बाइबल की शिक्षाओं के विरुद्ध है, और इस में मसीह की देह, उसकी कलीसिया, को विभाजित कर देने की प्रबल संभावना है।

जैसा कि प्रेरितों 1:8 से बहुत स्पष्ट है, किसी भी मसीही विश्वासी को संसार के छोर तक प्रभु की सेवा करने और उसका गवाह होने के लिए जो भी सामर्थ्य की आवश्यकता होती है, वह उन्हें उन के मसीही विश्वास में आते ही पवित्र आत्मा दिए जाने साथ ही दे दी जाती है। इस से अधिक या अतिरिक्त और किसी भी बात की कोई आवश्यकता है ही नहीं, और मसीही में उपस्थित परमेश्वर पवित्र आत्मा से अधिक सामर्थी और क्या हो सकता है, जो हर एक बात में प्रत्येक मसीही विश्वासी के मार्गदर्शन और सहायता के लिए सदैव उपलब्ध और तैयार हैं। लेकिन फिर भी, केवल विचार करने के लिए कुछ समय के लिए मान लेते हैं कि प्रभु की सेवकाई के लिए परमेश्वर पवित्र आत्मा से बढ़कर भी किसी बात की आवश्यकता होती है। अब यदि यह सही है, तो बाइबल से इसका कोई प्रमाण कहाँ है? परमेश्वर के वचन में कहाँ ऐसा कोई उदाहरण है कि विश्वासी व्यक्ति ने, किसी ने भी, पहले पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाया, और फिर प्रभु के लिए कुछ ऐसा अनोखा या अद्भुत किया, जो अन्य लोग नहीं करने पाए, जब कि उन में पवित्र आत्मा विद्यमान था? बाइबल में क्या ऐसा कोई भी एक भी व्यक्ति है; इस शिक्षा के समर्थन में कोई एक भी उदाहरण है – नहीं कोई नहीं है! इस का स्पष्ट और प्रत्यक्ष उत्तर है कि संपूर्ण नए नियम में इस धारणा की पुष्टि के लिए कोई एक भी उदाहरण विद्यमान नहीं है।

प्रभु यीशु ने भी जब अपने शिष्यों को सेवकाई पर निकलने से पहले पवित्र आत्मा के दिए जाने तक प्रतीक्षा करने के लिए कहा था, तब भी उन से यह नहीं कहा था कि उन के लिए मरकुस 16:17, 18 में कहे गए अद्भुत चिन्ह और आश्चर्यकर्म उन्हें पवित्र आत्मा पा लेने के बाद फिर अलग से पवित्र आत्मा का बपतिस्मा मिलने के बाद ही संभव हो सकेंगे। ये अनोखे और अद्भुत काम भी उन्हें पवित्र आत्मा दिए जाने के पश्चात उन के सुसमाचार प्रचार की सेवकाई पर जाने पर, स्वतः ही उन की सेवकाई के साथ संबंधित होने थे। सम्पूर्ण नए नियम में प्रभु के लोगों के सेवकाई के कार्यों में जो प्रभु के महान लोग प्रभु की सेवा में लगे रहे हैं, और प्रभु के राज्य में सेवकाई के फलों को एकत्रित करते रहे हैं, वे वही थे जिन्होंने प्रभु यीशु में विश्वास में आने के साथ ही पवित्र आत्मा पाया और फिर प्रभु की आज्ञा में सेवकाई के लिए संसार में निकल पड़े, बिना किसी अन्य बात अथवा कोई विशेष अनुभव लिए।
- क्रमशः
अगला लेख: पवित्र आत्मा का बप्तिस्मा – भाग 2 – 1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग 2)

शुक्रवार, 1 मई 2020

पवित्र आत्मा का बपतिस्मा - भाग 1 - प्रेरितों 11:15-18



पवित्र आत्मा का बपतिस्मा क्या है?
भाग 1 - प्रेरितों 11:15-18

      पवित्र आत्मा प्राप्त करने से संबंधित एक अन्य गलत शिक्षा है कि प्रभु के लिए उपयोगी होने के लिए पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाना भी आवश्यक है, जिसके लिए कहा जाता कि यह पवित्र आत्मा पा लेने से भिन्न अनुभव है। एक बार फिर, यह धारणा रखना भी बाइबल के एक वाक्यांश को उसके सन्दर्भ से बाहर निकाल कर, और बिना बाइबल की अन्य संबंधित शिक्षाओं का ध्यान किए, एक पूर्वनिर्धारित धारणा को सही ठहराने का प्रयास है, जिसका बाइबल में कोई आधार या समर्थन नहीं है। पतरस की सेवकाई द्वारा कुरनेलियुस के परिवार के मसीही विश्वास में आने और पवित्र आत्मा पाने, और फिर इसके बाद पतरस द्वारा इस बात के विषय मसीही मण्डली के अन्य अगुवों और लोगों को इसका स्पष्टीकरण दिए जाने के एक भाग, प्रेरितों 11:15-18, को देखिए: “जब मैं बातें करने लगा, तो पवित्र आत्मा उन पर उसी रीति से उतरा, जिस रीति से आरम्भ में हम पर उतरा था। तब मुझे प्रभु का वह वचन स्मरण आया; जो उसने कहा; कि यूहन्ना ने तो पानी से बपतिस्मा दिया, परन्तु तुम पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाओगे। सो जब कि परमेश्वर ने उन्हें भी वही दान दिया, जो हमें प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने से मिला था; तो मैं कौन था जो परमेश्वर को रोक सकता यह सुनकर, वे चुप रहे, और परमेश्वर की बड़ाई कर के कहने लगे, तब तो परमेश्वर ने अन्य-जातियों को भी जीवन के लिये मन फिराव का दान दिया है।” पतरस की इस बात से यह बिलकुल दो-टूक स्पष्ट है कि उन अन्य-जाति लोगों के मसीही विश्वास में आते के साथ ही जो पवित्र आत्मा उन्हें दिया गया, वही प्रभु यीशु द्वारा कही गई पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाने की बात की पूर्ति और पुष्टि है। 

      पतरस द्वारा दिए गए उत्तर से यह भी स्पष्ट है कि यह केवल प्रभु द्वारा कही गई बात का पूरा होना बताया गया है, न कि कोई रीति या सिद्धांत स्थापित किया गया है जिसका पालन शेष लोगों ने आगे चल कर करना था – वह न तो कहता है और न ही कोई ऐसा अभिप्राय देता है कि अन्य मसीही विश्वासियों को भी यह ‘पवित्र आत्मा का बपतिस्मा’ लेना होगा – यह तो एक स्वतः ही, अपने आप में पूरी हुई बात को बताना था, न कि किसी रीति की स्थापना करना। साथ ही यहाँ पर एक अन्य महत्वपूर्ण बात पर ध्यान करना आवश्यक है कि न तो यहाँ और न ही नए नियम में अन्य किसी भी स्थान पर ऐसी कोई बात नहीं कही गई है कि ‘पवित्र आत्मा का बपतिस्मा’ पाए हुए वे कुरनेलियुस के परिवार के मसीही विश्वास में आने वाले लोग इस ‘बपतिस्मे’ के प्रभाव में प्रभु के लिए कुछ विशेष और अद्भुत करने लगे। कुछ विशेष और अद्भुत करना तो दूर की बात है, कहीं पर भी उन के किसी भी मसीही मंडली में किसी भी प्रकार से सक्रीय होने या किसी ‘साधारण’ सेवकाई में भी संलग्न होने की भी कोई बात नहीं आई है। अर्थात, न तो ‘पवित्र आत्मा का बपतिस्मा’ कोई तथाकथित अलग अनुभव या प्रभु का विशेष कार्य है, और न ही उस ‘बपतिस्मे’ के द्वारा कोई भी जन कुछ विशेष करने की सामर्थ्य पाता है। 

     जैसा कि प्रायः कहा और सिखाया जाता है उस के विपरीत, यथार्त में बाइबल के अनुसार इसमें कोई असमंजस की बात नहीं है; मसीही विश्वास में वास्तव में आते ही पवित्र आत्मा को प्राप्त कर लेना और पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाना एक ही बात हैं, ये दोनों वाक्यांश एक ही तथ्य को व्यक्त करने के दो तरीके हैं। इसलिए इनके आधार पर लोगों को भरमाने के लिए कुछ सिद्धांत और धारणाएं बनाना और सिखाना जो परमेश्वर के वचन के बिलकुल अनुरूप नहीं है, गलत है, अस्वीकार्य है; यह परमेश्वर और उस के वचन के नाम में झूठ बोलना और सिखाना है।
- क्रमशः
अगला लेख: पवित्र आत्मा का बप्तिस्मा – भाग 2 – 1 कुरिन्थियों 12:13