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गुरुवार, 12 मार्च 2009

संपर्क अप्रैल-२००८ लेख: कहीं खो न जाएं

कहीं खो न जाएं
एक पागल ने मोहल्ले में काफी उत्पात मचा रखा था। इसीलिए उसे शहर के अधिकारियों ने पाँच साल के लिए पागलखाने भेज दिया। जब उसके पागलखाने से छूटने के लगभग पाँच महीने रह गए थे, अचानक एक दिन उसने अपने काम में व्यस्त एक सफाई कर्मचारी के पीछे से आकर फिनाएल के रखे हुए डिब्बे को पूरा पी लिया। इस घटना के बाद वह बहुत ही बुरी दशा से होकर निकला। बस यूँ कहिए कि वह मरते-मरते ही बचा। जैसे ही वह ठीक हुआ तो उसके साथ एक अजीब घटना घटी जिसके साथ उसका दिमाग़ भी ठीक हो गया।
तब वह पागल पगालखाने के अधिकारी के पास गया और कहने लगा कि “मैं अब ठीक हो गया हूँ। कृप्या मुझे इस पागलखाने से जाने की इजाज़त दे दीजिए।” अधिकारी मुस्कराते हुए कहने लगा, “अभी जाओ, फिर देखेंगे।” क्योंकि अकसर कई पागल उसके पास आते और ठीक होने का दावा करते थे। अतः इसके निवेदन को किसी ने कोई महत्व नहीं दिया। अब उसे पाँच महीने काटने बड़े मुश्किल हो गए। यूँ कहिये कि एक-एक दिन काटना भारी हो गया। रात-रात पागल चिल्लाते और ऊट-पटांग हरकतें करते। इस व्यक्ति ने साड़े चार साल से अधिक उनके साथ बिताए। अब जब केवल पाँच महीने ही काटने थे तो यह उसके लिए असंभव हो रहा था। सोचिए साड़े चार साल कैसे काट दिए परन्तू पाँच महीने क्यों नहीं काट पाया? सालों सँसार के साथ जीने के बाद जब किसी व्यक्ति का जीवन बदल जाता है और अपनी सही समझ में आ जाता है तब उसके लिए सँसार के लोगों के साथ जीना बहुत मुश्किल हो जाता है। इसलिए प्रभु ने आपको अपनी संगति में बुलाया है (१ कुरिन्थियों १:९)|
भजन ८४:३,४ में प्रभु यह नहीं कहता कि वह धन्य है पर यह कहता है कि क्या ही धन्य हैं वे जो प्रभु के भवन में रहते हैं। प्रभु का भवन ही स्वर्ग का द्वार है और यहीं से स्वर्गिय आशिषें आती हैं। अक्सर विश्वासी अपने बच्चों को प्रभु की आशिषों से वंचित रखते हैं, ऐसे कितने ही कारण हैं, जैसे - आज बहुत गर्मी है, कल सर्दी थी, परसों बरसात थी, आज स्कूल का होमवर्क बहुत है, और इस हफ्ते परीक्षाएं हैं। इस तरह से हम अपने बच्चों को प्रभु के घर से अर्थात आशिष के घर से अलग कर जाते हैं फिर सोचते हैं कि प्रभु हमारे बच्चों को आशिष दे। मैं सोचता हूँ कि ९० प्रतिशत विश्वासियों ने अपने बच्चों को इन्हीं कारणों से सँसार में ढकेल दिया है। शायद वे सँसार में बहुत धन कामा लें पर आत्मिक रूप से वे सँसार में सिर्फ गवांएंगे ही। उड़ाऊ पुत्र ने बाप के घर से अलग होकर खोया ही। पर जैसे ही बाप के घर से जुड़ा वह सब का सब लौटा लाया।

आज आप जो अपने बच्चों के जीवन में बोएंगे कल वही तो काटेंगे। सँसार में कहीं हमारे बच्चे खो न जाएं।

बुधवार, 11 मार्च 2009

संपर्क अप्रैल-२००८ लेख: मेरे बाप की बात

हज़ार बातों की एक बात,
मेरे बाप की बात!
दो लड़कों में बहस हो रही थी। बड़ा लड़का छोटे को समझा रहा था कि सूरज पूरब से निकलता है। छोटा बोला, “मेरे डैडी तो कहते हैं कि सूरज नहीं निकलता, पृथ्वी घूमती है। तो सूरज कैसे निकेलेगा?” बड़ा बोला, “मैं तो सालों से सूरज को पूरब से निकलता देख रहा हूँ।” छोटा बोला भई, मैं तो अपने डैडी की बात पर विश्वास करता हूँ।” सही कौन है? वह जो अनुभव पर विश्वास करता है या वह जो अपने बाप पर विश्वास करता है? हम अपने स्वर्गीय बाप की बात (उसके वचन) पर विश्वास करते हैं। दूसरे वे हैं जो संसार और अपने अनुभवों पर विश्वास करते हैं।
यह भी जान लो कि हमारा विश्वास किसी आश्चर्यकर्म का मोहताज नहीं। हमारा विश्वास तो परमेश्वर के जीवित वचन के सहारे ही जीवित है (यूहन्ना ४:४१,४२)।
 वचन की सचाई हमें प्रभावशाली बनाती है। पर शैतान कभी नहीं चाहता कि हम प्रभावशाली बनें। इसलिए वह पूरी कोशिश करता है कि प्रभु की मेज़, आराधना और प्रार्थना की प्रभावशाली सच्चाईयों को हम रस्मों में बदल दें। यह रस्में वचन की सच्चाई की जान निकाल देती हैं। फिर सिर्फ एक ख़ाली शरीर रह जाता है और सच्चाई उसे छोड़ चुकी होती है। हमारे लिये मेज़ में सम्मिलित होना, आराधना करना और प्रार्थना करना, सब मरे हुए काम बन जाते हैं। हम सोचने लगते हैं कि यह सब सही है - हम आराधना, प्रार्थना और उपवास, सब वचन के अनूसार ही तो करते हैं। फरीसी भी अपने बारे में यही सोचते थे। इसलिए उनकी प्रार्थनाएं, उपवास और दान सब मरे हुए काम थे।
आज बहुत से मसीही, मसीही तो कहलाते हैं पर मसीह उनके जीवन में नहीं है। बहुत से विश्वासी तो हैं पर उनमें विश्वास नहीं है। उनके बीच में प्रभु की मेज़ तो है पर प्रभु नहीं है। इसलिए कितने विश्वासी आत्मिक बेसुधी में आ गये हैं। वे अब जीवित तो कहलाते हैं पर हैं मरे हुए (प्रकाशितवाक्य ३:१)।
एक प्यारी सी बात

उम्मीद एक बड़ी अजीब सी चीज़ है। हार में भी जीत की राह देखती रहती है। अंधेरे में भी प्रकाश की आस लगाये रहती है। विश्वासी की निराशा में भी आशा जन्दा रहती है। क्योंकि उसकी आशा जीवित वचन पर होती है, जो कहता है, "मैं तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा और ना कभी त्यागूँगा। (इब्रानियों १३:५)।”

यहोशू ने इतनी लड़ाईयाँ लड़ीं और जीतीं। प्रभु ने उसे कहीं नहीं बताया या सिखाया कि युद्ध का नियंत्रण कैसे करना है। लेकिन उसे ये ज़रूर बताया कि वचन को रात-दिन मनन कैसे करना है (यहोशू १:८)| प्रभु का वचन कहता है, “मसीह के वचन को अपने हृदय में अधिकाई से बसने दो;... ” (कुलुस्सियों ३:१६)।

जो आदमी पवित्र आत्मा से भरा होता है वह परमेश्वर के वचन से भरा होता है और वचन परमेश्वर है। परन्तु जो आदमी सँसार के ज्ञान और विचारों से भरा होता है उसे आप शीघ्र ही विनाश में देखोगे। सँसार ज्ञान से और अपनी योजनाओं से हर दिन भरता ही जा रहा है अब उसको हम उसके विनाश में ही देखेंगे।
आज ही, कल की बात

प्रभु भविश्यवाणी इस लिये नहीं करता कि हमारी आने वाली बातों को जानने की जिज्ञासा को संतुष्ट करे, पर इसलीए कि हम आने वाली घटनाओं के लिए तैयार हो जाएं। परमेश्वर ने हमारे भविष्य का इतिहास लिखकर अपने वचन में दिया है। इतिहास तो हमेशा बीते हुए समय का ही लिखा जाता है, पर भविष्य का तो मात्र अनुमान ही लगाया जाता है। परमेश्वर का वचन ही एक ऐसी इकलौती किताब है जिसमें उसने भविष्य का इतिहास लिखा है ताकि परमेश्वर का जन जीवित वचनों से सचेत किया जा सके।

बहस काफी गरमा चुकी थी। खिसियाए हुए लड़के ने बोला, “इतनी सारी किताबों में लिखा है कि दुनिया गोल है।” दूसरा लड़का कमर पर हाथ रखकर बोला, “अबे अकल से पैदल तुझे ये दुनिया गोल दिखाई देती है... कहां है गोल?... चपटी है ये तो।” तीसरा छोटा लड़का भी बीच में हाथ मटकाते हुए बोला, “अरे यार सुनो तो सही, क्यों लड़ते हो? दुनियां ना तो गोल है और ना ही चपटी... सीताराम जी बोलते हैं दुनियां तो ४२० है।” हम सँसार को सँसार के ज्ञान से, अपनी समझ से या फिर अनुभव से समझने की कोशिश करते हैं।

मेरी नाक के उपर एक चश्मा रखा है। अगर मैं उसे अलग कर दुँ तो सब धुंधला जाएगा। ऐसे ही वचन के सहारे ही हम सँसार को सही रूप में देख पाते हैं। वरना सारा आत्मिक दर्शन धुंधला जाएगा, और फिर हम वचन के साहारे नहीं, समझ के साहारे ही जीने लगेंगे।

साफ सी बात

जब हमें सत्य को कहने के मौके मिलते हैं तो हम उन मौकों को खो देते हैं और ऐसे खोये हुए मौके हमारा बहुत कुछ खो देते हैं। हम डरते हैं कि सत्य को कहने से कहीं बवाल ना खड़ा हो जाये। इसलिए कई बार कई विश्वासी बड़े ही सुरक्षित तरीके अपनाते हैं। सत्य को साफ कहने से झिझकते हैं और समझौतेवादी नीति अपना लेते हैं - “इतना तो चलता है... इतना तो करना ही पड़ता है... क्या करें... ।” हम सोचते हैं इस तरह दो नाव पर पैर रखकर कुछ पल तो पार हो ही जाएंगे। पर सच मानिये पल ही पार होंगे, कभी भी पूरे पार नहीं हो पाएंगे। यह एक दुख की बात है। सालों इतना दुख सहा और सही शिक्षा पायी। पर अन्त आते-आते ग़लत को ग़लत जानकर भी ग़लत से समझौता कर जाते हैं। पतरस को परमेश्वर की बात पर कम अपने ऊपर ज़्यादा विश्वास था। यदि वह प्रभु के वचन को गम्भीरता से लेता और उस पर सोचता तो तीन बार क्या एक भी बार इन्कार नहीं करता। जब बार-बार प्रार्थना के लिये प्रभु जगाने के लिये आया तब भी वह नहीं जागा। इसीलिए वह बुरी तरह से हारा। उसकी शर्मनाक हार का एक यही कारण था।

जाने के बाद, उसके आने की बात

जब प्रभु के आने में देर होने लगी और रात गहराने लगी, तब दसों कुँवारियों का जीवन उंघने लगा। पर प्रभु ने कुछ जगाने वालों को रखा है, जो कहते हैं “देखो दूल्हा आ रहा है...”(मत्ती २५:६)| “हे सोने वाले जाग, मुर्दों में से जी उठ...”(इफिसियों ५:१४)। वे इस तरह सोते हुए जीवनों को परमेश्वर के वचन के द्वारा जगा देते हैं, ताकि सब कुछ ठीक-ठाक करके हम दूल्हे के स्वागत के लिए तैयार हो जाएं।

सम्पर्क भी इसी बड़ी सच्चाई को अपनी छोटी सी सेवाकाई के द्वारा आपको सतर्क करने का एक प्रयास मात्र है।

शनिवार, 7 मार्च 2009

संपर्क अप्रैल-२००८ लेख - सिर्फ़ अपने लिए

सिर्फ़ अपने लिए

एक बच्चों की कहानी है, जो आदमी के मन की असली कहानी को कहती है। एक कुत्ते ने बिल्ली से कहा, “मैंने रात को एक स्वपन देखा, कि बहुत बारिश हो रही है, पर पानी नहीं बरस रहा। तुझे मालूम है क्या बरस रहा था? हड्डियां और मीट की बोटीयाँ बरस रहीं थीं।बिल्ली बोली, “बेवकूफ! बकवास क्यों करता है, क्या कभी ऐसा हो सकता है? मैं ने तो शास्त्रों से सुना है, कि कभी कभी चूहे ज़रूर बरस जाते हैं।तो हम देखते हैं कि कुत्ते और बिल्लीयों का संसार यही है।

हर आदमी अपने अपने स्वार्थ की खोज में रहता है। क्योंकि मेरे पास ऐसे स्वभाव का कोई नहीं... क्योंकि सब अपने स्वार्थ की खोज में रहते हैं...” (फिलिप्पियों :२०, २१) अपने स्वार्थ से आगे वे सोच नहीं सकते।

कुत्ते से घास की बात करो तो उसे उलटी आने लगती है (कुत्ता घास तब खाता है जब उसे उल्टी करनी होती है) गधे से घास की बात करो तो उसकी बाछें खिल जाती हैं। कुत्ता कहेगा, “क्या घास-फूंस की बात करते हो? कुछ हड्डी-बोटी की बात करो। कुछ स्वप्न जगें, कुछ मौज मिले, कुछ स्वाद खिले।सब अपने स्वर्थ की ही बातें सुनना चाहते हैं। अपने स्वार्थ के आगे उन्हें सुनना अच्छा लगता है और ना सोचना।

एक पत्नी कई दिन से परेशान थी। रात-रात भर खांसती। आदमी की नींद काफी खराब होती। परेशान आदमी ने सुबह होते ही अपनी पत्नी से कहा, “आज तो मैं ज़रूर तुम्हारे गले के लिये कुछ लाऊँगा।पत्नी मुस्करा कर बोली, “सच! आज तुम मेरे गले के लिये कुछ लाऒगे... वही बड़े से लाकेट वाला हार जो हमने बी०टी० ज्वेलर्स के पास देखा था।पती को पत्नी का ख़्याल नहीं था। बल्कि उसे तो सिर्फ अपनी नींद का ख़्याल था और पत्नी की सोच भी कुछ और ही थी।

ऐसे ही स्वार्थी लोगों का सँसार भी उनके स्वार्थ और उनके परिवार तक ही सीमित रहता है। आदमी भी जानवरों की सीमाओं में जीता है। ऐसे लोग जीवन भर बेचैनी ढोते हैं।

परमेश्वर को मानने वले तो बहुत हैं पर परमेश्वर की बात को मानने वाले बहुत ही थोड़े हैं। परमेश्वर से पाना और परमेश्वर को पाना यह दो अलग-अलग बातें हैं। परमेश्वर से सब पाना चाहते हैं पर परमेश्वर को पाना बहुत कम लोग चाह्ते हैं। सत्य की खोज में तो कोई-कोई हैं। अन्यथा भीड़ तो स्वार्थ की खोज में है, जिसे सम्पन्न्ता और सुख सुविधा चाहिये। वास्तव में वे परमेश्वर की खोज में नहीं परन्तु अपने स्वार्थ की खोज में हैं। इसीलिये कई झूठे शिक्षक सुरक्षा और सम्पन्न्ता का प्रलोभन देते हैं।

लालच हमेशा अन्धा कर देता है और बुद्धी को हर लेता है। भीड़ चँगाई और समस्याओं के समाधान के लिये इन झूठे शिक्षकों के पीछे एक अन्धी दौड़ में शामिल हो जाती है। फिर यह भीड़ अपने आप में एक बड़ा आकर्शण बन जाती है और आकर्शण बनकर एक बड़ी भीड़ को इकठ्ठा करती है। पागलों की तरह दौड़ती इस भीड़ को देखकर लोग कहने लगते हैं कि यह सब पागल थोड़े ही हैं। यह बड़ी भीड़ बड़े अहंकार को भी जन्म देती है और यह अहंकार इन झूठे शिक्षकों के सिर च़ढ़कर चीखता है। ये लोग कोयल की तरह बहुत मीठा बोलते हैं पर चालाक भी कोयल की तरह ही होते हैं। कहा जाता है कि कोयल अपने अंडे कौवे के घोंसले में देती है और कौवा जो बहुत चालाक बनता है वही उसके अंडे सेता है। ये शिक्षक बहुत प्यार से बोलते हैं सिर्फ इसलिये कि अपने स्वार्थ को दूसरों के घोंसलों में पाल सकें।

एक बड़ा व्यापारी हवाई जहाज़ से यात्रा कर रहा था। जहाज़ में किसी तक्नीकी ख़राबी के कारण जहाज़ हवा में डगमगाने लगा। उसमें बैठे हर मुसाफिर को सामने मौत नज़र आने लगी। घबराहट और दह्शत के माहौल में लगभग सभी यात्री अपने-अपने परमेश्वर को याद करने लगे और प्रार्थनाओं में सौदबाज़ी करनी शुरू कर दी, “प्रभु बचाओगे तो ऐसा करुँगा, ऐसा नहीं करुँगा, बस एक बार पहुंचा दो उस व्यापारी ने हाल ही में एक नया घर बनवाया था जिसमें वह गृह प्रवेश भी नहीं कर पाया था। उसने भी घबराहट में परमेश्वर से वायदा कर डाला, “परमेश्वर अगर आप बचाओगे तो उस घर को बेचकर ग़रीबों में दान कर दूंगा।अभी प्राथना की ही थी कि जहाज़ अचानक ठीक हो गया और सुरक्षित उतर आया।

अब उस व्यापारी को दूसरी घबराहट शुरू हो गयी जल्दबाज़ी में वह परमेश्वर से क्या वायदा कर गया। अब वह सोचने लगा कि इस समस्या से बाहर कैसे निकला जाये? रातों की नींद उड़ गयी। अगर नया घर बेच कर दान नहीं दिया तो किसी और बड़ी समस्या में फंस जाऊँ, यह डर भी उसे सताने लगा। करोंड़ों का मकान देना भी कोई कम बड़ी समस्या नहीं थी। वायेदे से पीछे हटने से भी डर लगता था। आखिर तीन दिन के बाद उसने घर बेचने का फैसला कर डाला।

शहर के बड़े-बड़े लोग घर को ख़रीदने के लिए जमा हुए। व्यापारी ने कहना शुरू किया कि मेरे मकान की कीमत हज़ार रूपये है। यह बात सुनते ही भीड़ में ख़लबली मच गयी - “क्या सेठ का दिमाग़ तो नहीं फिर गया?” व्यापारी ने अपनी बात ज़ारी रखी और कहा, “पर इसके साथ एक शर्त है। मेरे पास एक कुत्ता भी है, जो भी उसे खरीदेगा उसे ही एक हज़ार रूपये में यह घर खरीदने का मौका मिलेगा।कुत्ते की बोली करोड़ से शुरु हुई और .८० करोड़ पर जाकर रुकी। जिसने कुत्ते को खरीदा व्यापारी ने उसे ही हज़ार में अपना घर भी बेच दिया। तब वह हाथ जो़ड़कर परमेश्वर के सामने हज़ार रुपये लेकर आया और कहने लगा, “प्रभु यह घर का दाम है जिसका मैंने वायदा किया था, ग़रीबों में बाँट रहा हूँ।जब स्वार्थ सामने आकर खड़ा हो जाता है तो हम आदमी को क्या परमेश्वर को भी धोखा दे डालते हैं। परमेश्वर को बेवकूफ बनाने की कोशिश करें।

प्रभु को साफ ऐह्सास है कि आपके मन में क्या है? (यूहन्ना :२४, २५) परन्तु ऐसे स्वार्थी लोगों को भी परमेश्वर बिना किसी स्वर्थ के प्यार करता है।

क्या कभी आपने यह प्यार भरी प्रार्थना की है कि हे! प्रभु आपने मेरे लिये बहुत कुछ किया है और बहुत कुछ दिया है। हे! प्रभु मैं भी आप्के लिये कुछ कर सकूँ।

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