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बुधवार, 27 मई 2009

सम्पर्क अप्रैल २००३: कहीं यह कहानी आपकी तो नहीं

किसी ने एक कहानी कही। एक किसान से कहा गया कि एक दिन में जितनी भूमि पर तू चल लेगा, उतनी भूमि तुझ को दे दी जाएगी, पर शर्त यह है कि सूरज डूबने से पहिले, जहाँ से चलना शुरू किया है, वहीं वापस भी पहुँचना है। यदि सूरज डूबने तक वापस नहीं पहुँचा तो कुछ भी नहीं मिलेगा। किसान सारा दिन, बिना आराम किये या खाने-पीने को रुके, तेज़ी से चलता रहा ताकि ज़्यादा से ज़्यादा ज़मीन ले सके। शाम ढलने लगी तो उसे ध्यान आया कि वापस भी लौटना है, और उसने जलदी जलदी लौटना शुरू किया। तेज़ी से ढलते सूरज के पूरा ढलने से पहिले वापस पहुँचने के प्रयास में उसने दौड़ना शुरू किया। दिन भर चल कर वह काफी थक चुका था, अब दौड़ने की शक्ति उसमें नहीं थी। वह कभी दौड़ता, कभी गिरता, फिर उठता, फिर दौड़ता। सूरज लगभग ढलने ही को था, और वह किसान भी थकान और कमज़ोरी से बुरी तरह से बेहाल हो चुका था। लेकिन मंज़िल को निकट देख, उसने एक अंतिम प्रयास में अपनी पूरी जी जान लगा दी। ढलते सूरज की अंतिम किरणों के ढलने से ज़रा पहिले वह मंज़िल पर पहुँच कर गिर पड़ा और गिरते ही दम तोड़ दिया। ज़मीन तो उसे दे दी गई, पर केवल उतनी, जितनी उसे दफनाने के लिए ज़रूरी थी। उसकी दौड़ खाली हाथ शुरू हुई थी और खाली हाथ ही ख़त्म हो गई। स्वार्थ में अंधा हमारा समाज अपने लालच की मृगतृषणा के पीछे, अपनी बरबादी के अंजाम से बेख़बर ऐसे ही दौड़ता जा रहा है। किसे फुर्सत है कि ज़रा रुक के सोचे कि हर कोई खाली हाथ इस दुनिया में आता है और खाली हाथ ही चला भी जाता है। इस दुनिया की भाग-दौड़ में कमाया हुआ अगर कुछ साथ जाएगा तो वह है ज़िन्दगी का हिसाब-किताब, बाकि सब तो यहीं रह जाएगा।

एक सर्वेक्षण के अनुसार, एक आम बच्चा, हाई स्कूल तक आते-आते, लग्भग बीस हज़ार घंटे के टी०वी० प्रोग्राम देख चुका होता है। इन्हीं प्रोग्रामों में वह लगभग एक लाख विज्ञापन भी देख चुका होता है। इन प्रोग्रामों और विज्ञापनों को देखकर उसका कच्चा और कोमल दिमाग़ सीखता है कि सिग्रेट पीने से शान दिखती है, शराब पीने से मस्ती आती है, यौन संबन्धों में ज़बर्दस्त मज़ा है और इसके लिए न तो शादी तक रुकने और न ही शादी की सीमओं में रहने की कोई आवश्यक्ता है। वह बचपन से ही इस झूठी शान, मौज-मस्ती और वासना की कामना अपने मन में पालने लगता है।

हम एक नये समाज की संरचना कर रहे हैं, जहाँ शादी के पहिले ४ सालों में ही ५०% दम्पतियों के पारिवारिक संबन्धों में कड़वाहट आ जाती है। आदमी ऐसी कड़वाहट, किसी न किसी रूप में, जीवन भर झेलता रहता है। हमारा सारा समाज साँप की तरह ज़हरीला होता जा रहा है। बस हम अपने स्वार्थ में ही सिमटे हुए जी रहे हैं और स्वार्थ के ग़ुलाम कभी फर्ज़ का एहसास नहीं कर पाते। हर ग़रीब और मजबूर आदमी से चाहे जो करवा लो, क्योंकि उसकी बहन, बेटी और पत्नि की इज़्ज़त को सब बिकाऊ समझते हैं। सत्य को कहने का एहसास और सत्य को सहने की क्षमता हमारे समाज में समाप्त होती जा रही है।

जहाँ इमान्दारी नहीं वहाँ बेईमानी अपने आप कानून बन जाती है। उदाहरण स्वरूप - रिश्वत देंगे तो काम होगा नहीं तो अटका रहेगा। यहाँ एक भुगतान, वहाँ एक नज़राना, यही प्रचलन है; जो इसका पालन नहीं करता वह ‘परिणाम’ भुगतता है। हमारे समाज का एक व्यवस्थित और ज़रूरी व्यवसाय ‘बेईमानी’ है। धोखे बहुत ही सस्ते हैं। हर जगह, हर माल के साथ कम से कम एक धोखा तो मुफ्त में मिल ही जाता है। एक आम धोखा है दिखावे की ईमान्दारी। अधिकांश लोगों को मक्कारी में महारथ हासिल होती है, और ऐसे मक्कार लोग ही चापलूसी कर पाते हैं। इसी चापलूसी की सीढ़ी के सहारे वे सफलता को प्राप्त करते हैं। पैसे की दौड़ में प्रेम, परिवार, फर्ज़, आदर्श सब कहीं पीछे छूट गये हैं।

सौ सालों में संसार इतना ज्ञानी हो गया है कि आज्ञानता के कामों की सारी सीमाएं लांघ गया है। हमारे धर्म गड़बड़ा गये हैं। वे आदमी को आदमी से जोड़ने की बजाए तोड़ने में लगे हैं। धर्म ने धर्म के नाम पर मानवता की हत्या कर डाली है और आदमी को हत्यारा बना डाला है। धर्म ने धर्म के नाम पर ही हमारे मनों में प्रेम नहीं वरन बैर बोया है और इस बैर भाव ने हमारे विवेक को अंधा कर डाला है। परमेश्वर तो सिर्फ एक ही है और वह सबका है। जैसे हमारे पास एक ही सूर्य है और वह सबका है, सबको प्रकाश देता है। न वह स्वदेशी है न विदेशी। न ही अमरीकन है न अफ्रीकन, न हिन्दू है न मुसलमान। अगर हम कहने लगें ‘सूर्य’ हमारा है, ‘सन’ तुम्हारा है, ‘आफ़ताब’ मुसलमानों का है, और इस बात के पीछे लड़ने-मरने पर उतारू हो जाएं, तो क्या यह निहायत ही बेवकूफ़ी नहीं है? क्या हमने अपनी सामन्य बुद्धी भी किसी दुष्ट महाजन के पास गिरवी रखवा दी है? परमेश्वर एक है और वह सबका है। वह सबको प्यार करता है और कोई फर्क नहीं करता। फर्क तो सिर्फ आदमी की सोच में है।

धर्म ने बड़ा भ्रम पैदा कर रखा है और हमारे दिमाग़ों में नफरत और बँटवारे की ऊँची दीवारें खड़ी कर दीं हैं। नफरत की इन ऊँची दीवारों के सामने, आदमी बहुत बौना हो गया है। हमारे नेताओं ने इन ऊँचीं दीवारों पर काँच के टुकड़े बिछा दिए हैं। अब कोई हाथ बढ़ाकर तो देखे। इन्हीं धर्मों ने इन्सानियात की जड़ों में सामप्रदायिक्ता का ज़हर भरकर इन्सान को हैवान बना दिया है। परमेश्वर किसी ख़ास धर्म के दायरे में लोगों को प्यार नहीं करता। उसने सारे जगत से एक समान और एक सा प्यार किया। आप किसी भी धर्म के क्यों न हों, परमेश्वर के लिए इसका कोई महत्व नहीं है। संसार में करोड़ों लोग इसाई धर्म को मानने वाले हैं। वे हर इतवार को अपनी हाज़िरी दर्ज कराने गिरजे में जाते हैं। इनके पास इसाई ‘धर्म’ है पर अधिकांश के जीवन में मसीह बिलकुल नहीं है। यदि सच्चाई जीवन में नहीं है तो धर्म का क्या अर्थ रह जाता है? अधर्म की कमाई का एक हिस्सा धर्म के कामों में लगाकर आप धर्मी नहीं बन जाते। वैसे भी, अधिकांश्तः दान देने का काम तो नाम कमाने के लिए ही किया जाता है। लालाजी ने अपने सामने अपने ईश्वर की फोटो लगा रखी है, वे उसके आगे अपना सिर झुकाकर बेईमानी करना शुरू कर देते हैं, इस विश्वास में कि उनका इश्वर उनकी सहायता करेगा, बेईमानी करने में भी और पकड़े जाने पर छुड़ाने में भी।

कुछ तो ऐसे हैं कि आप उन्हें ज़रा सही बात समझा कर तो देखें, आपको तुरन्त ‘बाज़ारु’ भाषा में उनसे जवाब मिलेगा, “हाँ हम तो ऐसे ही हैं, बताओ आप क्या करोगे? मेरे भविष्य को तय करने वाले आप कौन होते हो? आपको मुझे भला-बुरा बताने की ज़रूरत नहीं है। मेरी ज़िन्दगी है, मैं अपने ढंग से जीना चाहता हूँ, आपसे मतलब?” आपको ऐसा लगेगा जैसे उसे भली बात बताकर आपने ततईयों के छत्ते में हाथ डाल दिया हो। उन्हें तो बस अपने मतलब की बात सुनने से मतलब है। वे सिर्फ कानों की खुजली मिटाना चाहते हैं, अन्दर का पाप नहीं। एक दफा एक डॉक्टर साहब शराबियों की एक सभा में उन्हें समझा रहे थे कि शराब पीने के कैसे-कैसे बुरे परिणाम होते हैं। डॉक्टर सहिब ने अपनी बात प्रमाणित करने के लिये काँच के एक बर्तन में शराब भरी और दूसरे में पानी, फिर एक केंचुआ लिया और उसे पानी भरे बर्तन में डाल दिया। केंचुआ बड़े आराम से पानी में तैरने लगा। फिर उन्होंने उस केंचुए को पानी से निकाल कर शराब भरे बर्तन में डाल दिया। उसमें डालते ही केंचुआ टुकड़े-टुकड़े होकर गल गया। डॉक्टर साहब ने समझाया कि शराब से कैसे भयानक परिणाम होते हैं। तब डॉक्टर साहब ने वहाँ बैठे एक शराबी से पूछा, “क्यों जनाब अब आप समझे कि शराब हमारे पेट में जाकर क्या करती है?” शराबी खड़ा होकर बोला, “हाँ डॉक्टर साहब, मैं समझ गया कि शराब हमारे पेट में जाकर क्या करती है - ये हमारे पेट में पल रहे सारे कीड़े मार देती है!” डॉक्टर साहब ने अपना सिर पकड़ लिया।

मियाँ मानव की खोपड़ी कूड़ादान है जिसमें सब तरह की गन्दगी भरी पड़ी है। बस मुँह का ढक्कन खुलते ही बदबू बाहर बहने लगती है। मानव मन बुराई से बुरी तरह से बंधा है। लेकिन वह अपने दोष मानने की बजाए उन्हें दूसरों पर थोपने में लगा रहता है। ज़रा सोचिए, क्या दूसरों पर दोष थोपने से अपने दोष दूर हो सकते हैं? इससे हमारे अंदर के छिपे अहंकार को तुष्टी प्राप्त होती है। हर बात में दोष ढूंढना कुछ लोगों की आदत है। वे हमेशा अपने दिमाग़ की बत्ती बुझाकर देखते हैं। वे सूरज को भी दोषी ठहरा देते हैं, कहते हैं कि सूरज काली परछाईयों को पैदा करने के लिए निकलता है। सब सवालों को एक तरफ सरका कर हमारा अहंकार अड़ा खड़ा रहता है। अपने को सही साबित करने में लगे रहते हैं, पर अपना दोष मानने को तैयार नहीं होते। पति-पत्नियों में देखिए कि वे कैसे एक दूसरे में दोष ढूँढते रहते हैं, और एक दूसरे पर दोष देने के मौके नहीं चूकते। वे अपनी किस्मत को तो कोसते हैं, वे अपना घर तोड़ने को तो तैयार रहते हैं, उनके मासूम बच्चे, उनके अभद्र सामजिक व्यवहार की शर्म की पीड़ा को ढोते हैं, पर वे अहंकार को छोड़ एक दूसरे से क्षमा माँगने को तैयार नहीं होते।

हो सकता है कि आपके पारिवारिक रिशते ऐसी ही समस्याओं से निकल रहे हों। आपके परिवार में सुख के सिवाए सब कुछ हो। ऐसे ‘सब कुछ’ के होने का क्या अर्थ रह जाता है? कभी-कभी तो कोई भी अपना नहीं लगता। लगता है कि सब मतलब से ही साथ लगे हैं। मन में बहुत सूनेपन और उदासी का एहसास पनपता है और अपनों से भी विश्वास खिसक जाता है। आदमी चिंताओं से घिरा चिता तक चला जाता है। वह लगतार जीवन में पतझड़ को ही जीता है। मनचाही होती नहीं, बस अनचाही घटती है। बात-बात में विफलता, निराशा और खिसियाहट ही मिलती है। ऐसे में मौत माँगती ज़िन्दगियों की कमी नहीं जो आत्महत्या कर लेना चाहती हैं, या फिर सब कुछ छोड़कर कहीं भाग जाना चाहती हैं। लेकिन चाहे परिवार छोड़ दो, पत्नि छोड़ दो, रिशते छोड़ दो, सब कर लो; फिर भी चैन नहीं मिल पाएगा। यह सच है कि गधा कभी आदमी नहीं बनेगा, पर आदमी रोज़ गधा बनकर जीता है। इतने कामों के बोझ में दबीं, सड़कों की भीड़ में मरती-खपती ये बेचैन ज़िन्दगियां, सुकून कैसे और कहाँ पाएंगी? ऐसे जीवन से थके हुए लोगों से प्रभु कहता है, “हे थके और बोझ से दबे लोगों मेरे पास आओ, मैं तुम्हें चैन दूँगा (मत्ती ११:२८)।” वह धर्म देने की बात नहीं करता।

शायद आप बहुत जलदी गुस्सा खाने वाले व्यक्ति हैं। एक नंगी नागफनी सा स्वभाव है, जिसे कोई छू कर तो देखे। यह गुस्सा आपके अन्दर की कहानी कहता है कि आप अन्दर से कितने कमज़ोर हैं, आप में काबू रखने की ताकत नहीं है। जब आदमी अपशब्द या गाली बकते हैं तब सन्देश देते हैं कि वे अपने पर से नियंत्रण खो चुके हैं। शायद दुखों ने दीमक की तरह आपके जीवन को खोखला बना दिया हो। इस साल आपके स्वासथ्य नें आपका साथ न दिया हो, रोज़गार गड़बड़ा गया हो या फिर आपके प्रीय जनों में से कोई आपके साथ न रहा हो। जब तक आप यहाँ हैं तब तक परेशानियों और मुश्किलों का अन्त नहीं है। अभी तो बहुत सारी अनहोनी होनीं बाकी हैं। लेकिन परमेश्वर आपके दिल की टीसती परेशानियों को बहुत पास से पहिचानता है, उनसे आपको आराम भी देना चाहता है।

हम कितनी ही परतों और परदों के पीछे अपने अन्दर के असली आदमी को छिपाए रहते हैं, पर परमेश्वर तो हमें अन्दर तक जानता है। वह जानता है कि हम सबने पाप किए हैं और यही पाप हमारी सारी बेचैनी व परेशानी के कारण हैं। बुराई से भरा मन बुराई उगलेगा और बुराई झेलेगा। आपको एक बदलाव की ज़रूरत है, बुराई और पाप से भरे मन को बदलने की ज़रूरत है, जीवन बदलने की ज़रूरत है, धर्म बदलने की नहीं। शायद आप पर यह परम सत्य उजागर नहीं हुआ कि प्रभु यीशु ही परमेश्वर है। जैसे सूर्य एक है और वह सबको एक सा प्रकाश देता है, वैसे ही प्रभु यीशु भी एकमात्र परमेश्वर है। प्रभु यीशु ने कहा, “मैं जगत की ज्योति हूँ (यूहन्ना ८:१२)।” यह ज्योति हमारे अन्दर की असली हालत को उजागर करती है। पाप का अन्धकार कितना ही गहरा और पुराना क्यों न हो, ज्योति के सम्मुख ठहर नहीं पाता। आपकी ज़िन्दगी चाहे कितने अन्धेरों से क्यों न गुज़री हो, ज्योति को स्वीकारते ही सारे अन्धेरे दूर हो जाते हैं। जब ज्योति मन में आती है तो पाप का अन्धेरा फिर ठहर नहीं पाता।

यह बात सच और मानने के लायक है, क्योंकि पवित्रशास्त्र कहता है कि यीशु पापों की क्षमा देने के लिए ही आया है। सब पापों की सम्पूर्ण क्षमा देने की क्षमता प्रभु यीशु में ही है। जैसे ही आप पाप से क्षमा पाएंगे, वैसे ही पाप की सज़ा से भी मुक्त हो जाएंगे। जब तक आदमी अपने पाप से जुड़ा है तब तक वह बेचैनी से, परेशानी से और अपने विनाश से से जुड़ा है। जब तक जीवन में दोष होगा, तब तक कभी सन्तोष नहीं होगा। आदमी रोष से, विरोध और बेचैनी से भरा रहेगा। पैसे से, शक्ति से भले ही हम गिरजे, मस्जिद, और मन्दिर बनवा सकते हैं,पर भले और प्यार करने वाले लोग कभी भी पैदा नहीं कर सकते। टैक्नोलोजी जीवन में सुविधाएं तो पैदा कर सकती है, अच्छी शिक्षा और अच्छी नौकरी भी दे सकती है, पर अच्छी ज़िन्दगी कदापि नहीं दे पाएगी। क्या किसी ने कभी सिर्फ यश, पद और पैसा पाकर शान्ति और सन्तोष पाया है?

डर हर इन्सान के जीवन में हमेशा रहता है। कुछ हो जाने का डर, मन की छिपी बात खुल जाने का डर, हर हाल में हार जाने का डर, जीने में भी मर जाने का डर। कहा जाता है कि एक राजा था। जब उसकी उम्र मौत के निकट सरकने लगी तब उसे मौत का डर सताने लगा। मौत से बचने के लिए उसने एक ज़बरदस्त सुरक्षित महल बनवाया जहाँ चिड़िया भी पर नहीं मार सकती थी। जब राजा बाहर से उस महल का निरीक्षण कर रहा था, तो सड़क पर खड़ा एक फकीर राजा को देखकर हंस रहा था। राजा ने उसे बुलवाया और पूछा कि वह क्यों हंस रहा है, फकीर बोला, “जिस मौत के डर से तू ने यह महल बनवाया है, वह मौत तो बड़े आराम से अन्दर पहुँच कर तुझे मार जाएगी”। हो सकता है आप मौत के वार से कई बार बच निकले हों, पर ऐसा नहीं कि हर बार मौत का वार खाली ही जाएगा। मौत एक सच्चाई है और आपको उसका सामना करना ही है। मौत के बाद क्या होगा, यह एक सवालिया चिन्ह नहीं सवालिया मीनार है। मौत के बाद भी एक भविष्य है। परमेश्वर का परम सत्य वचन कहता है “मनुष्य का एक बार मरना फिर न्याय का होना नियुक्त है (इब्रानियों ९:२७)।” आखिर बचकर कहाँ भागोगे? सब छिपे और खुले पापों का हिसाब होगा। मौत ही भयानकता नहीं, बलकि पापों के साथ मौत में जाने वालों के लिए असली भयानकता तो मौत के बाद है!

प्रभु यीशु के बारे में हमारे दिमागों में पुरानी परतें चढ़ी हुई हैं। हर बार यीशु का नाम लेते ही इसाई धर्म, विदेशी धर्म, धर्म परिवर्तन इत्यादि विचार उछल कर सामने आते हैं। यीशु प्रभु आपका धर्म नहीं आपका जीवन बदलता है। ‘धर्म’ के डर को मत पकड़े रहिए, अन्यथा जीवन भर डर में ही जीएंगे, डर में ही मरेंगे और अन्त में एक डरावनी जगह ही पहुँचेंगे। प्रभु यीशु कहता है “मत डर, मैं तुझे...बनाऊंगा (मत्ती ४:१९)।” पापों की क्षमा मांगने में क्या बुराई है? क्षमा मांगने में डर क्यों लगता है? यह डर हमें कुछ करने नहीं देगा। बस आप सच्चे मन से एक प्रार्थना “प्रभु यीशु मेरे पाप क्षमा करें” जहाँ भी, जैसे भी हों कर के देखें। क्या आप कभी अकेले में अपने आप से मिले हैं? क्या आपने अपने अन्दर की यात्रा की है? क्या आपने अपने अन्दर का हिसाब-किताब देखा है? क्या आपने अपने विवेक का कभी सामना किया है? करके देखिए, आप पाएंगे कि हमारा विवेक हमें और हमारे मन को अपनी अदालत में खड़ा करके दिखाता है कि मन कितनी गन्दगी से, जलन से, बदले की भवना से और विरोध से भरा है। वह दिखाता है कि हम कैसे झूठे, मक्कार और धोखेबाज़ हैं। हमने कितने गन्दे काम छिप-छिप कर किये हैं, कितनी रिश्वत दी और ली है, कैसा व्यभिचार और दोगलापन हमारे अन्दर भरा है। कितनी निराशा और बेचैनी अन्दर भरी है। आप बहाने बना सकते हैं- कुछ नहीं होता इतना तो चलता है, सभी तो करते हैं ये तो दुनिया का दस्तूर है, इनके बिना काम कैसे चलेगा इत्यादि-इत्यादि। आप खतरे से खेल रहे हैं, अपने आप से झूठ बोलना सब से खतरनाक बात है। जब प्रभु यीशु ने आपके आगे क्षमा रखी है, आशीष और आनंद रखा है तो फिर क्यों श्राप और बेचैनी से बंधे खड़े हैं? सिर्फ एक प्रार्थना से सारे श्राप आशीष में बदल डालिए। एक बार पुकार कर तो देखिए “हे प्रभु यीशु मुझ पर दया कर।”

प्रभु करे कि आपका मन इस लेख के शेष भाग के अर्थों को गम्भीरता से ग्रहण कर सके। हमारे अन्दर ‘क्या’ और ‘क्यूँ’ हैं जो हमें बहुत परेशान करते हैं। “ये सब क्या है?” “अब क्या होगा?” “ऐसा क्यूँ हो रहा है?” “मेरा क्या होगा?” यह सब बातें आदमी के स्वभाव का एक हिस्सा हैं। अक्सर हमारा जीवन ऐसे ही सवालों से घिरा रहता है, और सवालों के उत्तर ढूँढने में ही असली काम के मौके हाथ से निकल जाते हैं। प्रभु यीशु के द्वारा पापों कि क्षमा की बात सुनते ही लोग ऐसे ही ‘क्या’ और ‘क्यूँ’ के सवालों में उलझना-उल्झाना शुरू कर देते हैं। उनका ध्यान अपने पापों की ओर नहीं जाता, तर्क और बहानों की ओर जाता है। साल के शुरू में दो जन आपस में बात कर रहे थे। एक बोला “यार, बहुत समय लग चुका है, कैसे भी करके इस साल तो इस काम को निपटा ही दूँगा”। विडंबना देखिए, साल निपटने से पहले, यार निपट गया। कैलेन्डर के पन्नों पर फैला यह साल भी फड़फड़ाता हुआ फुर्र से उड़ जाएगा। हम बीते सालों के साथ इस साल को भी दफन कर जाएंगे। एक मौका हर साल के साथ हमारे पास से चला जाता है। हर बात का एक समय होता है, फिर समय समाप्त हो जाता है। कुछ समय पहले आपने यह लेख पढ़ना शुरू किया था, कुछ समय में यह लेख समाप्त हो जाएगा। हर इन्सान को समय की सीमा में जीना है, अचानक ही उसके जीवन का समय समाप्त हो जाएगा और संसार से उसकी विदाई हो जाएगी।

हम आने वाले दिनों में क्या देखने वाले हैं? आने वाले कल की सच्चाई को आप बाईबल के पन्नों में आज ही पढ़ सकते हैं। बाईबल किसी धर्म विशेष का धर्मशास्त्र नहीं है बलकि यह पवित्रशास्त्र है जो सब के लिए है। ६००० साल का इतिहास गवाह है कि अनेक कोशिशों के बावजूद, बाईबल की एक बात भी कभी झूठी साबित नहीं हुई है। इस पवित्रशास्त्र के अनुसार, आने वाला समय बहुत क्रूर और डरावना होगा, दिल हिला देने वाली खबरों से भरा होगा। अभी अफगानिस्तान में हुए यद्ध के घाव भरे भी नहीं थे कि इराक में भीषण युद्ध की आग भड़क उठी है। शायद अगली बार मैं और आप इसके शिकार हों; तब पल भर में हमारे घर खंडरों में बदल जाएंगे, हमारी आँखों के सामने हमारे बच्चे बिलख-बिलख कर दम तोड़ रहे होंगे, हर तरफ तबाही होगी, हम चिल्लाएंगे पर कोई सुनने वाला नहीं होगा। एक कहर से उभर नहीं पाएंगे कि दूसरा आ पड़ेगा। आने वाली घटनाओं को देखकर लोगों के जी में जी नहीं रहेगा। आप और हम ऐसे हालात से बहुत दूर नहीं हैं। कैसे इतना सब बरदाश्त करेंगे? भयानक और लाइलाज बिमारियाँ इंतिज़ार कर रहीं हैं, इतनी दर्दनाक तकलीफें आने वाली हैं कि मारे दर्द के “लोग अपनी ज़बान चबा डालेंगे” (प्रकाशितवाक्य १६:१०)। वे मौत माँगेंगे लेकिन मौत उनसे भागेगी (प्रकाशितवाक्य ९:६)। हम विनाश के सालों में जी रहे हैं। बस इंतिज़ार कीजिए एक और भयानक खबर का। आदमी की आखिरी बरबादी शुरू हो चुकी है। ख़तरे गहरा रहें हैं, और यह ख़तरे हमसे बहुत दूर नहीं हैं। यह चेतावनी मात्र नहीं है, यह एक निश्चित भविश्य है जो भोगना है। पवित्रशास्त्र कहता है “आकाश और पृथ्वी टल जाएंगे पर मेरी बातें नहीं टलेंगी” (मत्ती २४:३५)। “उन्होंने कुशल के मार्ग को नहीं जाना” (रोमियों ३:१८)। “कोई धर्मी नहीं” (रोमियों ३:१०)। “सबने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं” (रोमियों ३:२३)। “परमेश्वर चाहता है कि सब मनुष्यों का उद्धार हो” (१ तिमुथियुस २:४) चाहे वे किसी भी धर्म, जाति या वर्ग के क्यों न हों। प्रभु यीशु कहता है “मैं चाहता हूँ तू शुद्ध हो जा” (मरकुस १:४१)। प्रभु फिर कहता है “कितनी ही बार मैंने चाहा...पर तुमने न चाहा” (मत्ती २३:३७)। कोई व्यक्ति निर्दोष कैसे हो सकता है? यदि उस दोषी व्यक्ति के दोष क्षमा हो जाएं, तो वह निर्दोष भी हो जाएगा और फिर दोष के दंड से मुक्त भी हो जाएगा। “तुम जान लो कि मनुष्य के पुत्र (अर्थात प्रभु यीशु) को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार है” (मरकुस २:१०)। “अब जो मसीह यीशु में हैं उनपर दंड की आज्ञा नहीं” (रोमियों ८:१)।

पवित्रशास्त्र की सच्चाई से ज़्यादातर लोग अन्धेरे में हैं। पवित्रशास्त्र की पहली और सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि प्रभु यीशु पापों की क्षमा देने के लिए आया। उसने क्रूस पर अपने प्राण हमारे पापों की क्षमा के लिए दिए। वह मर कर तीसरे दिन जी उठा। उसका क्रूस पर बहा लहू हमें सब पापों से शुद्ध करता है। यदि हम इस बात पर विश्वास करें और एक प्रार्थना करें “हे प्रभु यीशु मुझ पापी पर दया कर” तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है (१ यूहन्ना १:९)। बाढ़, अकाल, सूखा, बेरो़ज़गारी, भूकम्प, आतंकवाद और युद्ध, किसी में कोई कमी नहीं बची है, सब बढ़ते ही जा रहे हैं। रही-सही कमी मज़हबी दंगों ने पूरी कर डाली है। आदमी का मन क्रोध, जलन, बैर, अहंकार और अशान्ति से भरा है, तभी तो हमारे घर और समाज और देश कलह, झगड़ों और परेशानियों से भरे हैं।

कहीं यह कहानी आपकी और आपके घर की तो नहीं? कहीं आप अपने बारे में तो नहीं पढ़ रहे हैं? कहीं ये बातें आपको कुरेद तो नहीं रहीं हैं? कहीं आपका विवेक आपको कुछ याद तो नहीं दिला रहा है? कहीं आपका अहंकार आपको अपने पाप स्वीकारने से रोक तो नहीं रहा है? कहीं किसी व्यक्ति के द्वारा मन में बैठाया कोई झूठा तर्क या डर आपको पाप क्षमा मांगने से तो नहीं पलट रहा है? यदि हाँ तो स्मरण रखिए , आपको किसी नए धर्म की कोई आवश्यकता नहीं है, सिर्फ पापों की क्षमा की आवश्यक्ता है। अपने पाप और उसके भयानक अंजाम को हमेशा के लिए विदाई देने को आपको केवल एक छोटी प्रार्थना सच्चे दिल से करनी है “ हे यीशु मुझ पापी पर दया कर, मेरे पाप क्षमा कर।” इस क्षमा को प्रभु यीशु से लेने का फैसला भी आप ही को करना है और न लेने का अंजाम भी आप ही को भुगतना है।

मंगलवार, 26 मई 2009

सम्पर्क अप्रैल २००३: मैं अकेला नहीं

मेरा नाम सतीश है और मैं मेरठ का रहने वाला हूँ। अपने परिवार में मैं अकेला ही लड़का था। जब मैं पाँच वर्ष क था तब मेरी माँ चल बसी। उसके बाद पिताजी ने दूसरी शादी करी जिससे उनके दो बच्चे और हुए। कुछ समय तो ठीक-ठाक चला, फिर माँ और पिताजी के बीच काफी झगड़े होने लगे। उसी दौरान हमारे मकान में एक किराएदार दम्पति रहने लगे। उनके पास भी कोई सन्तान नहीं थी। कुछ समय बाद वह किराएदार चल बसा; और माँ-पिताजी के बीच झगड़े इतने बढ़े कि माँ अपने मायके चली गयी। किराएदार के मरने के बाद पिताजी ने उसकी पत्नि के साथ सम्बंध बढ़ाने शुरू कर दिये और बात शादी तक आ गयी। जब माँ को पता चल तो वह अपने परिवार के साथ आई और मार-पीट तक हुई। सबने पिताजी को समझाया, लेकिन उन्होंने किसी की नहीं मानी और तीसरी शादी भी कर ली। कुछ समय बाद पिताजी का भी देहाँत हो गया। अब यह जो तीसरी माँ थी, घर का जो भी कीमती सामान था, सब बेचकर अपने घर चली गयी।

अब, १५ वर्ष की उम्र में, मैं अकेला रह गया। क्योंकि मुझे कोई कहने-समझाने वाला नहीं था, मेरी संगति बुरे लड़कों से होने लगी। लड़ाई-झगड़ा करना, शराब पीना, जुआ खेलना, चोरी करना- यह सब आदतें मुझे लड़कपन से ही लग गयीं और बढ़ती गयीं। मेरी बूआ को मुझ पर तरस आया और वह मुझे अपने गाँव ले गयीं। वहाँ भी मेरे अन्दर कोई सुधार नहीं आया। तब परिवार में यह फैसला हुआ कि मेरी शादी कर दी जाए, और १६ वर्ष की उम्र में ही मेरी शादी हो गयी। मेरे भी दो बच्चे, एक लड़का और एक लड़की पैदा हुए, लेकिन मेरी बुरी आदतों के कारण मेरी पत्नि अपने घर चली गयी। मैं बहुत खुश हुआ क्योंकि अब कोई रोक-टोक नहीं थी। मैं मौज मस्ती करता और सोचता था कि अगर वह नहीं आएगी तो और बहुत सी हैं। इस तरह मैं भी अपने बाप के नक्श-ए-कदम पर चलने में लगा हुआ था। हुआ यही कि पत्नि के घर वालों ने एक साल इन्तज़ार करके, उसकी शादी दूसरी जगह कर दी। समय बीतता गया, मैंने दूसरी शादी कर ली, फिर तीसरी शादी भी कर डाली।

बुरे कामों के कारण मुझे १९८९ में जेल भी जाना पड़ा। क्योंकि मुझ पर आतंक्वाद का केस लगा था, इसलिए मुझे कुछ निश्चित नहीं था कि मैं जेल से कब निकलूँगा, ५ साल में या १० साल में, या निकलूँगा भी कि नहीं। यही सोच कर मैंने अपनी पत्नि से कहा कि मेरा कोई भरोसा नहीं, मेरी मानो तो तुम दूसरी शादी कर लो। उसने कहा, चाहे कुछ भी हो मैं इन्तज़ार करूँगी, और इस तरह उसने मेरा पूरा साथ दिया। मेरे जेल जाने से मेरे कुछ रिशतेदार बहुत परेशान थे, वहीं कुछ खुश भी थे कि अब तो यह जेल में ही मर जाएगा क्योंकि ज़्यादा शराब और सिग्रेट के सेवन से मेरे फेफड़े खराब हो चुके थे। जेल में मैं कई देवताओं की पूजा-अर्चना बड़ी लगन से करने लगा। ३४महीने बाद मैं जेल से बाहर आया। अब बुरा ही करने की कई योजनाएं मेरे अन्दर थीं। परन्तु मेरी पत्नि ने मुझे समझाया और मुझे मेरी लड़की की कसम दी। तब हम गाँव छोड़कर दिल्ली चले गये। वहाँ एक फैकट्री में मुझे काम मिल गया लेकिन अपने क्रोध के कारण मैं वहाँ भी रह नहीं पाया। तब मैं मेरठ अपने गाँव वापस आ गया। यहाँ भी अपने क्रोधी स्वभाव के कारण मैं कहीं भी किसी काम में टिक नहीं पाया। जो भी मैंने थोड़ा बहुत कमाया था, वह सब दो साल तक खाली बैठकर खर्च कर डाला, बल्कि ऊपर से और कर्ज़ भी हो गया। अब मैं बहुत परेशान था कि क्या करूँ?

तभी एक भाई मेरे पास आया और कहने लगा, “क्या तुम रूड़की में होने वाली एक सभा में चलोगे?” मैंने कहा, “तुम मेरी हालत जानते हो, मेरे पास किराया-भाड़ा कुछ भी नहीं है।” उसने कहा, “किराए की चिंता मत करो, सब प्रबंध हो जाएगा, बस तुम चलो।” ३१ दिसम्बर की सुबह वह भाई मेरे पास फिर आया और बोला कि अपने परिवार को भी साथ ले चलो। मैंने सोचा कि चलो, वहाँ रोटी तो मिल ही जाएगी।

सभा शुरू हुई, और परमेश्वर के वचन यूहन्ना ५:२ ने मुझ से बात की, जिसमें एक कहानी थी कि एक कुण्ड था, उसके पास बहुत से बीमार इस आशा में पड़े थे कि कब उस कुण्ड का पानी स्वर्गदूत के द्वारा हिलाया जाए। पानी हिलते ही जो कुण्ड में पहिले उतरता, उसकी चाहे जो बीमारी क्यों न हो वह चंगा हो जाता था। वहाँ एक मनुष्य था जो ३८ वर्ष से इस उम्मीद में था कि पानी हिलने पर कोई उसे भी उस कुण्ड में उतार दे, लेकिन किसी को उस पर तरस नहीं आया। प्रभु यीशु को उस पर तरस आया और प्रभु ने उससे पूछा, “क्या तू चंगा होना चाहता है?” उसने कहा हाँ; तब यीशु ने कहा, “अपनी खाट उठा कर चल फिर।” उसी समय वह बीमार चंगा हो गया। मुझे लगा कि यह सब बातें तो मेरे जीवन में हैं; क्योंकि मेरे जीवन में तो पाप ही पाप था जो एक तरह से बीमारी ही थी। संदेश के अंत में प्रचारक ने निमंत्रण दिया कि जो कोई प्रभु यीशु के सामने अपने पाप मानना चाहता है वह अपना हाथ दिखा दे। मैंने तुरंत अपना हाथ ऊपर कर दिया। भाई ने प्रार्थना की और प्रभु ने उसी समय मेरे पाप क्षमा कर दिए। उस समय पाप क्षमा होने का वह अदभुत अनुभव मुझे आज तक है। फिर उसी समय एक भाई से मुलाकात हुई और उस भाई ने मुझे अपने सीने से लगा लिया। यह सब देखकर मेरी आँखों में आँसू आ गये। फिर एक भाई की गवाही सुनी। सब कुछ अलग था, इससे पहिले मैंने ऐसा कहीं नहीं देखा था। मुझे बहुत अच्छा लगा और उसी समय मैंने फैसला किया कि मैं इन लोगों के साथ ही रहूँगा। फिर जहाँ भी प्रभु की प्रार्थना सभा होती मैं वहीं जाने लगा।

कुछ दिनों बाद प्रभु की दया हुई और मेरी सिलाई की दुकान भी खुल गयी और सबसे अच्छी बात यह हुई कि संगति हमारे घर पर ही होने लगी; जो प्रभु की दया से आज तक बनी है। मेरे घर में प्रभु ने शांति, आनंद और आशिष दी। अब मैं और मेरा परिवार आनंद से रह रहे हैं, लेकिन कभी-कभी घर में क्रोध आ जाता है और गवाही को खराब करता है। इसलिए मेरे और मेरे परिवार के लिए प्रार्थना कीजिए। अब अंत में मैं यह कहना चाहता हूँ कि जो मैंने अब तक अनुभव किया है, मेरे और हर एक विश्वासी के जीवन के लिए ज़रूरी है कि - संगति में बने रहें, रविवार की आराधना में अवश्य सम्मिलित हों, प्रभु के भय में रहें और प्रभु की गवाही भी दें।

सोमवार, 25 मई 2009

सम्पर्क अप्रैल २००३: जबकि मैं देखता नहीं था, तौभी मैंने देखा

मेरा नाम जगदीश है और मेरा जन्म एक गौड़ ब्राह्मण घराने में हुआ। मैं अपने माता-पिता की बुढ़ापे की सन्तान हूँ। शारीरिक रीति से मेरे माता-पिता सन्तान पैदा करने के योग्य नहीं थे। बुढापे की सन्तान होने के नाते, तथा पाँच बहिनों के बाद पैदा होने के कारण मैं अपने परिवार का लाड़ला बच्चा था। छोटी उम्र में ही मेरी माताजी का देहाँत हो गया। साढ़े छः साल की उम्र में मेरी आँखें जाती रहीं। इसके बावजूद भी मैंने अपनी पढ़ाई ज़ारी रखी।
शुरू से ईश्वर प्राप्ति में मेरी बहुत आस्था थी। मैं छोटी उम्र से ही एक समय भोजन करता और बहुत समय विभिन्न देवी-देवताओं के सामने पूजा-अर्चना किया करता था। मैंने कोई ऐसा तीर्थ स्थान नहीं छोड़ा जहाँ मैं अपनी शान्ति तथा ईश्वर प्राप्ति के लिए नहीं गया। मेरी इन्हीं बातों को लेकर मेरे पिताजी काफी चिन्तित थे, क्योंकि मेरी छोटी उम्र से ही ये बातें उन्हें अटपटी लगती थीं। गाँव वाले सभी मुझे एक धार्मिक भक्त मानते थे, लेकिन मैं जानता हूँ मैं कैसा भक्त था। बाहरी तौर से तो मैं धार्मिक भक्त था परन्तु भीतरी जीवन बहुत गंदा और मक्कारी से भरा हुआ था। इतनी भक्ति और पूजा-अर्चना के बाद भी मेरे जीवन में कोई शान्ति नहीं, कोई आनन्द नहीं और कोई ईश्वर का भय नहीं था, यानि मैं एक पाखंडी जीवन जी रहा था। कुछ समय बाद मेरे पिताजी की भी मृत्यु हो गयी और मैं शारीरिक और आत्मिक, दोनों रीति से यतीम हो गया। परन्तु मेरी यह इच्छा हमेशा रही कि सच्चा ईश्वर कौन है और मैं उसे कैसे जानूँ?


मेरी शादी भी हो गयी और मेरा पहिला बच्चा एक मसीही नर्सिंग होम में पैदा हुआ। वहाँ मैंने उन लोगों से मसीही प्रेम के बारे में कुछ जनकारी ली। नौ महीने तक मैं उनके मसीही सत्संग में इस इच्छा से जाता रहा कि देखें वहाँ और हमारे यहाँ में क्या फर्क है। बहुत बातों में मैंने उन से वाद-विवाद भी किया। मसीही लोगों के कहने पर मैंने एक बाईबल भी खरीद ली। जब वे लोग पूछते थे कि क्या बाईबल पढ़ते हो तो मैं बोलता था कि हाँ पढ़ता हूँ, जबकि मैंने उसे एक चमड़े की अटैची में बंद करके रखा हुआ था और पढ़ता नहीं था। एक रात मेरी पत्नि मुझ से यह कह कर सोई कि यीशु के मानने वालों के पास मत जाओ नहीं तो वे तुम्हें भी अपने जैसा ही कर देंगे और बच्चों के ब्याह-शादी भी नहीं होंगे। मैं उसकी इस बात पर बहुत हंसा, क्योंकि बात मूर्खता की थी, और अपनी पत्नि को यह कह कर चुप करा दिया कि अभी से सवा महीने की बच्ची की शादी की चिंता? फिर भी मैंने कहा, ठीक है, मैं उनके पास नहीं जाऊंगा।

२५ नवम्बर १९८३ की बात है, सुबह चार बजे किसी ने मेरा दरवाज़ा खट-खटाया। मैंने दरवाज़ा खोला तो बाहर कोई भी नहीं था। दोबारा फिर ऐसा ही हुआ, लेकिन फिर बाहर कोई भी नहीं था। अब तीसरी बार, मेरा नाम “जगदीश” लेकर, दरवाज़ा खट-खटाया गया। जैसे ही मैंने दरवाज़ा खोला तो मेरा कमरा चकाचौंध कर देने वाली रौशनी से भर गया। अब मैं था और एक मधुर आवाज़ थी। वहाँ न कोई आकृति थी, न कोई रंग और रूप था, बस वह रौशनी और आवाज़ थी। मेरी पत्नि को इस घटना के बारे में कुछ ख़बर नहीं थी। मैं बहुत भयभीत था, परन्तु उस आवाज़ ने जान लिया कि मैं डरा हुआ हूँ और उसने कहा “मत डर”। मैं रो पड़ा और पूछा, “महराज आप कौन हैं?” उस आवाज़ ने कहा, “तसल्ली रख, मैं बताऊंगा कि मैं कौन हूँ। बाईबल निकल और पढ़”। मैंने कहा, “महराज मैं देख नहीं सकता”, उस आवाज़ ने कहा, “क्या अब भी तुझे मेरी ज्योति पर शक है?” मैंने फिर कहा, “महाराज, मैं पढ़ नहीं सकता, मैं कहाँ से पढ़ूँ नहीं जानता”। उसने प्रश्न किया, “तू मेरे लोगों से तो कहता है कि मैं पढ़ता हूँ?” मैंने कहा, “महाराज मैं झूठ बोलता हूँ”। जब मैंने बाईबल निकल कर खोली तो उस आवाज़ ने कहा “यूहन्ना १४:६ पढ़”। जबकि मैं देख नहीं सकता था, तौभी बाईबल के बारीक और काले अक्षर मुझे डेढ़-दो फुट लम्बे और लाल स्याही से लिखे हुए दिखाई दिये, वहाँ लिखा था - “यीशु ने कहा मार्ग, सत्य और जीवन मैं ही हूँ। बिना मेरे द्वारा कोई पिता (परमेश्वर) के पास नहीं पहुँच सकता” (यूहन्ना १४:६)।

इस पद (यूहन्ना १४:६) का पढ़ना था कि मैं अपने जीवन में अदभुत आनन्द और अदभुत शांति महसूस करने लगा। मैं एक और विशेष किस्म की अनुभूति अपने अन्दर अनुभव करने लगा, कि मेरा तमाम बनावटीपन और मक्कारी का जीवन सच्चाई में बदल रहा है। जिन्होंने मेरे इस पहिले जीवन को देखा था, अब वे मुझ में बदलाव देखते थे। जो आवाज़ मुझे सुनाई दी थी, वह प्रभु यीशु मेरे पास चल कर आए थे। उन्होंने मुझे मेरे पापों से धो कर मुझे शुद्ध कर दिया, मुझे सच्ची शांति दी और नरक की आग से बचा कर मुझे अनन्त जीवन दे दिया। मेरा बपतिस्मा २६ मई १९८४ को फरीदाबाद में हुआ। उसी समय एक भाई ने प्रभु के वचन बाईबल में से एक प्रतिज्ञा दी “मेरे माता-पिता ने तो मुझे छोड़ दिया है, परन्तु यहोवा (परमेश्वर) मुझे सम्भाल लेगा (भजन संहिता २७:१०)” जबकि वह भाई मुझे व्यक्तिगत रीति से नहीं जानते थे। प्रभु के इस वचन से मुझे इतना आनंद मिला कि आनंद के मारे मैं एक तरफ जाकर फूट-फूट कर रोया। मेरे जीवन के ऐसे बहुत सारे अनुभव मेरे पास हैं, जब मैं अपने पिछले जीवन से उनको मिला के देखता हूँ तो मुझे पता चलता है कि प्रभु की दया दृष्टि मुझ पर बचपन से ही थी, इसीलिए प्रभु ने मुझे उद्धार देने के लिए जीवित रखा।

प्रिय पाठक, यदि आप भी अनन्त जीवन पाना चाहते हैं तो प्रभु यीशु के पास आएं।

रविवार, 24 मई 2009

सम्पर्क अप्रैल २००३: संपादकीय

प्रभु यीशु की बड़ी दया से एक बार फिर सम्पर्क आपके सम्मुख आ पाया है। यह प्रभु के पवित्र पात्रों की प्रार्थनाओं का उत्तर है। सम्पर्क का सम्पादकीय तो केवल चौंकन्ना करने के लिए एक चौकीदार की चेतावनी मात्र ही है।
सोच
वास्तव में वचन तब ही काम करता है जब वह हमारे जीवन में उतर जाए। वरना तो वचन बाईबल के काग़ज़ी पन्नों पर ही रह जाता है। जैसे ही यह जीवित वचन हमारे जीवन में उतरने लगता है, हमारा जीवन उभरने लगता है।
एक कहानी है: एक गैस के गुब्बारे बेचने वाला अक्सर जब बच्चों से घिरा होता तब एक गैस भरा गुब्बारा हवा में छोड़ देता। गुब्बारे को हवा में लहराता हुआ ऊपर को उठता देख, बच्चे बड़े आतुर होकर उससे गुब्बारे खरीदते और उसकी आमदनी बढ़ जाती। एक दिन जब उसने ऐसा ही किया तो एक छोटे बच्चे ने पीछे से उसकी कमीज़ खींची, गुब्बारे वाले का ध्यान अपनी ओर करके उसके गुब्बारों की ओर इशारा किया और बड़ी मासूमियत से पूछा, “भईया क्या ये काला गुब्बारा भी ऐसे ही ऊपर उड़ सकता है?” गुब्बारे वाले ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “बेटा, गुब्बारा अपने रंग से नहीं, पर जो उसके अन्दर भरा है, उससे ऊपर ऊड़ता है।” यही बात हमारे जीवन पर भी लागू होती है, जो अन्दर भरा है, वो ही हमें दिशा प्रदान करता है- संसार हमें नीचे अपनी ओर खींचता है और परमेश्वर का वचन हमें जीवन की ऊंचाईयों की ओर अग्रसर करता है।


ज़्यादतर विश्वासी एक ऐसा परमेश्वर चाहते हैं जो उनके मन के अनुसार उनकी इच्छाएं पूरी कर सके। जो इच्छाएं उनके अन्दर होती हैं, वही उनकी प्रार्थनों में भी बाहर आती हैं। पर परमेश्वर ऐसे लोगों को खोजता है जो उसके मन के अनुसार हों और जो उसकी इच्छा पूरी करना चाहते हों। हमारे प्रभु ने स्वयं के लिए प्रार्थना की-“हे पिता मेरी नहीं पर तेरी इच्छा पूरी हो।” चेलों को भी जो प्रार्थना उसने सिखाई, उसमें कहा, “जैसे तेरी इच्छा स्वर्ग में पूरी होती है, पृथ्वी पर भी हो।”

दाऊद परमेश्वर के मन के अनुसार व्यक्ति था। अपने लड़कपन से ही उसका विश्वास अपने परमेश्वर पर दृढ़ था। जब इस्राइलियों का सामना फिलिस्तियों की सेना से हुआ, तो ४० दिन तक एक गजराज सा विशाल फिलस्ती जिसका नाम गोलियत था, उन्हें ललकारता रहा और उन्का मज़ाक उड़ाता रहा। पर किसी इस्राइली में उसका सामना करने की हिम्मत नहीं थी। वे तो बस गोलियत को देखकर डरते और काँपते ही रहे, क्योंकि पूरी इस्राइली कौम की सोच में शक था, किसी को भी अपने परमेश्वर पर और उसकी सामर्थ पर विश्वास नहीं था। क्योंकि उनकी सोच सही नहीं थी, इस लिए कुछ करने की शक्ती भी उन्में नहीं थी। परन्तु परमेश्वर के प्रति सही सोच रखने वाले दाऊद ने, गोलियत की तुलना में कद और उम्र में बहुत छोटे होने और युद्ध विद्या में निपुण न होने के बावजूद भी, केवल परमेश्वर पर अपने विश्वास की सामर्थ से गोलियत को परास्त किया और इस्राइलियों को एक बड़ी विजय दिलवाई। परमेश्वर का वचन कहता है, “दुष्ट अपने...सोच विचार छोड़कर यहोवा की ओर फिरे...(यशायाह ५५:७)।” जो उसके वचन के अनुसार सोचते हैं, वो उससे सामर्थ भी पाते हैं। जो अपनी सोच में ही हार देखने लगते हैं, वे पहले से ही मान लेते हैं कि वे हार चुके हैं, और यह हार का डर उन्हें कुछ करने नहीं देता। कुछ लोगों ने सोच लिया है कि अब प्रार्थना से कुछ होने वाला नहीं है, इस अविश्वास के कारण उनके लिए कुछ होने वाला भी नहीं है। पर जो प्रभु आपके अन्दर है वह हारा हुआ नहीं है कि कुछ कर न सके। उसमें पूरी सामर्थ है कि वो आपकी हार को जीत में बदल दे, विश्वास से उसकी ओर हाथ तो बढ़ाइये। अपनी नहीं, उसकी सामर्थ और क्षमता पर भरोसा कीजिए।

बहुत बार अच्छे लोगों के साथ भी बुरी घटनाएं घट जाती हैं। १९१४ में थॉमस एडिसन नामक ६७ साल के वृद्ध वैज्ञानिक की करोड़ों की फैक्ट्री में आग लग गयी। उम्र के आखिरी पड़ाव पर उसने अपनी सारी उम्र की मेहनत की कमाई को जलता हुआ देखा, और बोला-“जो भी होता है, अच्छे के लिए ही होता है (रोमियों ८:२८)। इस आग में हमारी कमजोरियां और कमियां भी जलकर राख हो गयीं हैं। परमेश्वर की दया से अब हम नये सिरे से शुरू करंगे।” सिर्फ तीन हफते बाद ही उसने फोनोग्राफ की खोज कर डाली।

प्रभु आपको हारे हुए जीवन जीने के लिए विश्वास में नहीं लाया, बल्कि आपकी सोच ने आपको हार और निराशा में ला खड़ा किया है। निराश व्यक्ति अपनी साधारण सोच को भी खो देता है। ऐसा हारा हुआ जीवन, मौत से ज़्यादा, जीने से डरने लगता है। आप अपने विचारों को सुन सकते हैं। आप क्या सोचते हैं; कैसे सोचते हैं; क्या हमेशा उल्टी, गन्दी और विरोध की बातें ही सोचते हैं? बाईबल बताती है के मन में ग़लत सोचने भर से ही पाप हो जाता है (मत्ती ५:२८)। प्रार्थना करें कि प्रभु आपकी ऐसी “सोच” ही बदल डाले।

संगति
सुअरों के बाड़े में गन्दगी के सिवाय क्या मिलेगा? पवित्र लोगों की संगति में रहने से हमारी सोच भी पवित्र होने लगती है। हम कोई क्यों न हों, अकेले हों या दुकेले, मर्द हों या औरत, जवान हों या बूढ़े, रो़ज़गार वाले हों या बेरोज़गार, लेकिन प्रत्येक विश्वासी के लिए सही संगति सब से ज़रूरी है।
संगति या मण्डली अपने सबसे बुरे दिनों में से निकल रही है। शैतान का पूरा प्रयास है कि मण्डली की सामर्थ समाप्त हो जाए, मण्डली चाहे बची रहे। अर्थात केवल ‘नामधारी’ मण्डलियां रहें, जहाँ प्रार्थना-आराधना तो हो पर उनमें सामर्थ न हो। प्रभु ने तो विजयी मण्डली बनाई और उसे ऐसी सामर्थ दी कि उस पर अधोलोक के फाटक भी विजयी नहीं हो सकते (मत्ती १६:१८) और जिसकी पहचान उसके सदस्यों के आपसी प्रेम से होती है (यूहन्ना१३:३५)। यही प्रेम और एक मनता मण्डली की सामर्थ है, और इस एक मनता से जो चाहो वह करवा लो।

अगर विश्वासी के जीवन में परमेश्वर की उपस्थिति नहीं है तो वह आम आदमी की तरह है। यदि प्रभु की मण्डली में परमेश्वर की उपस्थिति नहीं है तो वह मण्डली, कमरे में एकत्रित कुछ लोगों की भीड़ मात्र है, प्रभु की मण्डली नहीं। मण्डली में जब आपस में प्रेम और एक मनता नहीं रहती तब उसकी सामर्थ समाप्त हो जाती है। कितने तो प्रभु के घर में सालों से रहते हैं पर फिर भी मन में बैर और विरोध से भरे रहते हैं; स्वर्ग जाने का दावा करते हैं पर मन में नरक पालते हैं। एक वास्तविक विश्वासी को अपने शत्रुओं से भी प्रेम रखना है (मत्ती ५:४४), फिर मण्डली के अपने भाई-बहिनों से विरोध रखने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। मैं मण्डली के सदस्यों और सेवकों को समझाना चाहता हूँ कि परमेश्वर अपना न्याय अपने घर से ही शुरू करेगा (१ पतरस ४:१७)। क्या आपको मालूम है कि अपने घर में वो न्याय कहाँ से शुरू करेगा? सेवकों से और अपने पवित्र स्थान ही से आरंभ करेगा, “उन्होंने पुरनियों से आरंभ किया जो भवन के सामने थे (यहेजकेल ९:६)”।

जब हम दूसरों को क्षमा नहीं करते तो हम परमेश्वर की क्षमा करने वाली आत्मा का अपमान करते हैं। न्याय के दिन कुछ गाएंगे और कुछ रोएंगे चिल्लाएंगे। आप किनके साथ होंगे?

परिश्रम
उद्धार तो सहज है, एक सच्ची क्षमा याचना की प्रार्थना से प्राप्त हो जाता है। पर आत्मिक सफलता और आशीश, मेहनत और ईमान्दारी पर निर्भर करती है। पौलुस को, आत्मिक रूप से, इतनी बड़ी सफलता कैसे मिली? पौलुस कहता है कि “मैंने सबसे बढ़कर परिश्रम किया, तुम्हें वैसा परिश्रम करना है जैसे तुमने मुझे करते देखा है और अब भी सुनते हो कि मैं वैसे ही करता हूँ (फिल्लिप्यों १:३०)”। सफलता कभी तुक्के से हाथ नहीं लगती, संकरे मार्ग में सख़्त मेहनत की ज़रूरत होती है। ज़्यादतर विश्वासी आराम के दायरे में जीना चाहते हैं। आप जानते हैं फिर भी वैसे जीते नहीं। आत्मिक अनुशासन मसीही जीवन में अनिवार्य है, इसका कोई दूसरा विकल्प नहीं है। कभी बाईबल पढ़ना छूट गया तो कभी संगती गोल कर गये। पारिवारिक प्रार्थनाओं का भी कुछ ऐसा ही हॉल है। उपवास से डर लगता है। बस उतना परिश्रम करते हैं जिससे काम चल जाए और जान छूट जाए “हे निक्कमे और आलसी दास तू जानता था (मत्ती २५:२६)”। जीवन में जीतने की इच्छा तो सभी रखते हैं, पर मात्र इच्छा रखने से तो जीत नहीं मिलती, उस जीत के अनुरूप परिश्रम भी तो करना पड़ता है। काम तो काम करने से ही होता है।

समस्याऐं
हमारा प्रभु बहुत परिश्रम करके जीया, लेकिन हमारे बीच आज तमाश्बीन विश्वासियों की कमी नहीं है। मण्डलीयाँ ऐसों से भरी पड़ीं हैं जो दूसरों की नाप-तौल करते रहते हैं, पर खुद कुछ नहीं करते। जो घोड़ा बोझ ढोता है वह कभी दुलत्ती नहीं मारता; दुलत्ती वही चलाता है जो कुछ बोझ नहीं ढो रहा होता।

आपका ऊंचा उठना शुरू हुआ नहीं कि टाँग खींचने वालों की भीड़ इकट्ठी होनी शुरू हो जाती है। ऐसे घटिया किस्म के लोग हमेशा मेहनत करने वालों से इर्ष्या करते हैं। मण्डली में ईमानदार और मेहनती विश्वासी अलग नज़र आते हैं। ये लोग ज़िद्दी नहीं होते, न बहाने गढ़ते हैं; वरन विनम्र, तहज़ीबदार और कुर्बानियाँ करने वाले होते हैं, अपनी गलती मान लेते हैं, दिखावे नहीं करते। ध्यान रहे, जितनी सफलता मिलेगी उतने आलोचक और रुकावट डालने वाले खड़े होते रहेंगे। पौलुस कहता है, “विरोधी बहुत हैं (१ कुरिन्थियों १६:९)”। शैतान ने इन लोगों पर प्रभु का काम बिगाड़ने का दायित्व सौंपा है। इनका आत्मिक अंधापन हमेशा दूसरों के दोष देखता है। इनके अंदर एक हिंसक, बदला लेने वाला स्वभाव रहता है। ये खुद कभी नहीं सीखते पर दूसरों को सिखाने का मन बनाए रखते हैं। इन लोगों के सहारे शैतान हमारी हिम्मत तोड़ना चाहता है जिससे या तो हम शैतान के शिकार हो जाएं या उसके साथ समझौता कर लें, और प्रभु का काम अवरुद्ध हो जाए।

कितने लोग जो इस पत्रिका को पढ़ रहे हैं वह अपनी हालत जान गये होंगे, पर अपने पाप को नहीं मानेंगे। अपने विश्वासी साथियों के पास जाकर, मण्डली के साथ अपने संबन्धों को ठीक-ठाक करने की कोशिश भी नहीं करेंगे। पवित्रआत्मा चेताता है कि उनकी यह ढिटाई उन्हें बहुत महंगी पड़ेगी। कितनों को सच्चाई स्वीकारने में शर्म आती है। मक्कारी की मार ने उनकी गवाही को ही मार डाला है। पहले जो परिश्रम किया उसे खुद ही रौंद डाला है।

किसी ने व्यंग्य किया कि हमारे राजनेताओं से ज़यादा ईमानदार तो वेष्याएं होती हैं। ऐसे गिरे नेता भी, मौका पड़ने पर आपस में बात कर, गिले-शिक्वे पीछे छोड़ कर, एक साथ हो लेते हैं। पर कितने ऐसे विश्वासी हैं जो आपस में बात तक करने को भी राज़ी नहीं होते। उनका अहंकार उन्हें माफी मांगने और माफी देने से रोकता है। आपसे ज़्यादा प्रभु आपको जानता है। अपने को उससे छुपना मात्र बेवकूफी है। क्या अपने एहसास किया कि जब आप इस पत्रिका को पढ़ रहे हैं तो प्रभु आप से बात कर रहा है? अगर आप उसकी आवाज़ सुन रहे हैं तो दिल सख़्त न करें। अब फैसले के पल आ पहुँचे हैं।

इतनी सीधी और सरल सच्चाई है कि कम से कम समझ वाला भी समझ सकता है। मौके हमेशा आपका इंतिज़ार करते नहीं रहेंगे। शैतान चाहता है कि आप उस वक़्त तक इन्तज़ार करते रहें जब कोई कुछ नहीं कर पाएगा। अगर कोई पाप आपके सीने में खटक रहा है तो अहंकार छोड़ उठिए और अपने प्रभु और उसके लोगों के साथ अपने संबन्ध ठीक-ठाक कर लीजिए। प्रभु आपकी हार को भी जीत में बदलने की सामर्थ रखता है।

सम्पर्क का सम्पादक आपसे निवेदन करता है कि आप उसे भी अपनी प्रार्थना में सम्भाले रखें।

- सम्पर्क परिवार

गुरुवार, 21 मई 2009

सम्पर्क अक्टूबर २००३: मैंने प्रभु यीशु को कैसे जाना

मेरा नाम अनुरोध सक्सैना है। मेरा जन्म लखनऊ में और पालन पोषण उत्तर प्रदेश के कानपुर ज़िले में हुआ। परिवार में किये जाने वाले सभी रीति-रिवाज़ों को देखकर मैंने भी उन्हें अपनाया। नौवीं कक्षा से मैंने घर के पास स्थित एक प्रसिद्ध मन्दिर में अपने एक अच्छे मित्र के साथ, जो उस मन्दिर में जाता था, जाना शुरू किया और लगातार तीन साल तक जाता रहा। मन्दिर जाने का उद्देश्य अच्छे अंक प्राप्त करना और विवेक शुद्ध रखना था। अपनी पढ़ाई की मेज़ पर भी मैं ईश्वर की मूर्ति के सामने धूप जलाता था। लेकिन यह सब करने के बाद भी मुझ में इन सब बातों के लिए न तो कभी कोई लगन हुई और न ही कोई परिवर्तन आया।

अपनी बारहवीं कक्षा पास करने के बाद मैंने रूड़की विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा पास की, जिसके द्वारा मुझे रूड़की विश्वविद्यालय में दाखिला मिल गया और मैं अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने रूड़की आ गया। बहुत शीघ्र ही मैं हास्टल की ज़िन्दगी और वहाँ की स्वतंत्रता का मज़ा लेने लगा। साथ ही मैंने एक मन्दिर भी ढूँढ लिया और मैं अक्सर वहाँ जाने लगा।

एक दिन एक व्यक्ति ने मुझे विश्वविद्यालय में होने वाली एक प्रार्थना सभा में, जिसमें वहीं के कुछ छात्र आते थे, आमंत्रित किया। वहाँ पारमेश्वर के वचन का अद्धयन भी होता था। सभा के बाद एक भाई ने मुझे नए नियम की एक प्रति दी और फिर से अगली सभा में आने के लिए भी आमंत्रित किया। इस तरह मैं बार-बार वहाँ जाने लगा। कुछ ही समय के छोटे से अन्तराल में मुझे यह एहसास हो गया कि परमेश्वर और उसका वचन बहुत पवित्र हैं और उसकी दृष्टी में एक छोटा सा ग़लत विचार भी पाप के बराबर है।

अब मैं इससे पूरी तरह सहमत था कि केवल यही परमेश्वर ‘परमेश्वर’ कहलाने के योग्य है। इससे पहले मेरी धारणा यह थी कि प्रभु यीशु इसाई धर्म का ईश्वर है। लेकिन अब मुझे समझ में आया कि प्रभु यीशु की वास्तविक्ता क्या है और वह इस संसार में क्यों आए। मुझे यह निश्चय भी हो गया कि यह बात बिल्कुल सत्य है कि प्रभु यीशु ने क्रूस पर इस जगत के पापियों के लिए अपनी जान दी और वह मर कर फिर तीसरे दिन जी उठे। उन्होंने अपना बहुमूल्य लहू हमें शुद्ध करने के लिए बहाया। यदि हम उन्हें अपने हृदय में ग्रहण करते हैं तो हम पापों से क्षमा और अनन्त जीवन पाते हैं।

यह सुसमाचार सुनने के बाद मैंने कई बहानों में छिपना शुरू कर दिया जो मैं ईमान्दारी से आपके सामने प्रभु की महिमा के लिए रखना चाहता हूँ।

१. यदि मैंने प्रभु यीशु के पीछे चलने क निर्णय कर लिया तो मुझे बहुत उदास रहना पड़ेगा। मैं सोचता था कि यदि मैं विश्वासी बन गया तो मुझे लम्बा और दुखी चेहरा लेकर इस संसार में घूमना पड़ेगा। मुझे बस सीधे मूँह चलना पड़ेगा, न तो मैं दाएं देख सकूँगा और न बाएं। मेरे पास कोई खुशी नहीं होगी जब तक मैं दूसरे संसार में न पहुँच जाऊं। दूसरे शब्दों में यूँ कहिए कि मुझे दुखी, खिन्न और उदासी से भरा जीवन जीना पड़ेगा। न तो मैं सिनेमा देखने जा पाऊंगा और न ही कोई सांसारिक आनंद ले पाऊँगा।
लेकिन नहीं प्रिय पाठक मैं आपको यह बताना चाहता हूँ कि केवल प्रभु यीशु ही है जो हमारे जीवन में सच्ची खुशी, शान्ति और आनंद देता है। वह ‘शान्ति का राज्कुमार’ है (यशायह ९:६), परन्तु कठिन तो पापी का मार्ग होता है (नीतिवचन १३:१५)।

२. मैं सोचता था कि यदि मैंने यह निर्णय कर लिया तो मैं विश्वास में नहीं रह सकूँगा और निश्चय ही गिर जाऊंगा, क्योंकि मैं उस स्तर पर चल नहीं पाऊंगा।
लेकिन नहीं प्रिय पाठक, मैं आपको बताना चाहता हूँ यह सत्य नहीं है। जब्कि मैं अभी भी कमज़ोर हूँ और बहुत सी गलतियां कर जाता हूँ लेकिन प्रभु यीशु हमें कभी नहीं छोड़ता, कभी नहीं त्यागता। हम सब उसकी भेड़ें हैं और वह हमारा सच्चा चरवाहा है, जिसने हमारे लिए अपने प्राणों को दे दिया, वही हमारी रक्षा और अगुवाई करता है। वह हमारे लिए सदा जीवित है। हमारी निर्बलताओं और अज्ञानता में प्रभु यीशु ही हमारे प्रति सबसे अधिक धैर्य रख सकता है और रखता भी है; ताकि हमें अपने पाप के अंगीकार, उस पाप से पश्चाताप और उसकी क्षमा का अवसर सदैव उपलब्ध रहे। आप तभी खड़े रह पाएंगे जब परमेश्वर आपके साथ खड़ा होगा।

३. मैंने यह सोचा कि मैं इस निर्णय को कुछ समय के लिए टाल देता हूँ और इसके बारे में बाद में सोचूँगा, अभी तो मेरे पास बहुत पढ़ाई और काम है।
लेकिन नहीं प्रिय पाठक, प्रभु हमारे प्रति बहुत अनुग्रहकारी है लेकिन कोई यह नहीं जानता कि मृत्यु कब आकर इस अव्सर को छीन लेगी “मनुष्यों के लिए एक बार मरना और उसके बाद न्याय का होना नियुक्त है (इब्रानियों ९:२७)।” क्या आप उस आग की झील में अनन्त काल के लिए अपने जाने का ख़तरा मोल ले सकते हैं?

४. मैं यह सोचता था कि परमेश्वर की सेवा करना बहुत कठिन है।
लेकिन नहीं! यह मेरी ग़लतफहमी थी। मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि क्या परमेश्वर किसी का कर्ज़दार रह सकता है? क्या शैतान एक सरल स्वामी, और परमेश्वर एक कठिन स्वामी है? प्रभु इन विचारों को दूर रखे।

५. मैंने परमेश्वर के वचन को पढ़ने के लिए बहाना किया। मैंने सोचा कि यदि मैं एक ही बार में परमेश्वर के वचन को पढ़कर इसे समझ जाऊंगा तो ठीक है।
लेकिन नहीं! सूर्य के नीचे और पृथ्वी पर बाईबल के समान कोई भी पुस्तक नहीं है। प्रिय पाठक मैं आपको बताना चाहता हूँ कि कोई भी व्यक्ति जिसने परमेश्वर के वचन को शुरू से अन्त तक पढ़ा है, उसके बारे में ग़लत धारणा नहीं रख सकता। जब तक मैं स्वयं पूरी तरह ध्यान से पढ़ न लूँ, मैं कैसे अपनी राय उसके बारे में दूसरों पर प्रकट कर सकता हूँ? ऐसा करना तो झूठ बोलना होगा।

इन बहानों के साथ-साथ मेरे पाप भी बहुत थे और मुझे बहुत मुश्किल समय में से होकर गुज़रना पड़ा। फिर एक दिन, मैंने उपवास रखकर अपने पापों से पश्चाताप किया और प्रभु से प्रार्थना की कि मुझे अपने बहुमूल्य लहू से धो दे, और उसने मुझे निराश नहीं किया।

प्रिय पाठक, मैंने अपना हृदय खोलकर, अपने अन्दर के वो सब बहाने जो मुझे पश्चाताप करके प्रभु यीशु को अपना मुक्तिदाता ग्रहण करने से रोकते थे बता दिए हैं। इसलिए यदि आप में से कोई भी अपने आप को ऐसे ही किसी बहाने के पीछे छिपाए हुए है तो मेरा आप से बहुत विनम्र निवेदन है कि आप विलम्ब न करें। परमेश्वर का वचन कहता है-“देखो अभी वह उद्धार का दिन है (२ कुरिन्थियों ६:२)”। आप बहानों से छुटकारा नहीं पा सकते। जैसे मैंने इतना समय व्यर्थ बरबाद कर दिया, आप न करें।

मैं सुसमाचार के बारे में जनता था, जैसे आप में से बहुत सारे पाठक भी जानते होंगे; लेकिन सिर्फ जानना ही काफी नहीं है। परमेश्वर के वचन में लिखा है कि, “तुम सत्य को जानोगे और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा (यूहन्ना ८:३२)।” यह नहीं लिखा कि सत्य के बारे में जानोगे, परन्तु यह कि सत्य को जानोगे तब स्वतंत्रता मिलेगी। “परमेश्वर अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता है (प्रेरितों के काम १७:३०)।” अपने दुष्ट कार्यों को त्याग कर उस क्रोध से भागो, ऐसा न हो कि तुम भी “बाहरी अन्धकार में डाले जाओ जहाँ रोना और दातों का पीसना होगा (मत्ती २५:३०)।”

प्रभु के अनुग्रह से मेरा विवाह एक विश्वासी लड़की से होने वाला है और मैं नौकरी भी कर रहा हूँ। मेरी प्रभु से यही प्रार्थना है कि जो भी इस गवाही को पढ़ते हैं, वो प्रभु यीशु को ग्रहण करने के लिए एक निर्णय भी ले सकें, जो पापियों का मित्र है। उसको ग्रहण करने में विलम्ब न करें।




सम्पर्क अक्टूबर २००३: मुझे मिल गया मेरा छुड़ाने वाला

मेरा नाम दीपक मसीह है और मेरा जन्म १९६९ में एक इसाई परिवार में हुआ। हम छः भाई हैं। जब मैं चार साल का था तब मेरे पिताजी का देहांत हो गया था। परिवार बड़ा और ग़रीब होने के कारण सब भाई छोटा मोटा काम करने लगे। मेरी मां भी एक मिशन स्कूल में आया का काम करती थी, इसलिए मुझे भी उस स्कूल में दाखिला मिल गया। घर के सब सदस्य काम करते थे, और कोई मुझे पूछने वाला न होने के कारण मैं छोटी ही उम्र में बिगड़ गया। छोटी कक्षा से ही मैंने स्कूल से भागकर सिनेमा देखना सीख लिया। इसी दौरान सिनेमा के बाहर खाने-पीने की दुकान लगाने वाले से मेरी दोस्ती हो गई। वहीं से मुझे शराब-सिग्रेट पीना, ब्किट ब्लैक करना और अन्य कई बुरी लतें लग गईं। यहीं से मेरा बुरा जीवन शुरू हुआ और बुराई में धंसता ही चला गया।

इसी बीच मेरी मुलाकात एक और लड़के से हुई जो कि मेरी तरह ही था और देखते ही देखते हम दोनों में बहुत गहरी दोस्ती हो गई। हम दोनो साथ रहते और सिनेमा देखते। आए दिन कहीं न कहीं लड़ाई-झगड़ा करना और किसी न किसी के साथ मार-पीट करना, यही हमारी दिनचर्या थी। अब यहां तक होने लगा कि हमारी बदमाशी का फायदा उठाने के लिए लोग हमें अपने लिए इस्तेमाल करने लगे।

एक दिन मैं और मेरा दोस्त ऐसे ही ‘काम’ से अलग-अलग गए। लौटने पर मुझे पता चला कि मेरे दोस्त ने किसी को जान से मार दिया और वह भाग गया है। इसलिए मुझे उसके परिवार को भगाकर, खुद भी भागना पड़ा। इस तरह पुलिस केस बनते चले गए और घर पर पुलिस का आना-जाना शुरू हो गया। मेरा दोस्त पकड़ा गया और उसे जेल हो गई। कुछ समय बाद वह जेल से छूट गया। इसके बाद ऐसी कई और घटनाएं हुईं। उसका परिवार बुरी तरह बरबाद हो गया और उसके पिताजी की उसके दुशमनों ने हत्या कर दी।

अब मैं बहुत बेचैन रहने लगा। पुलिस मेरे पीछे थी और मैं उस से छिपकर जी रहा था। रात को अगर पुलिस की जीप की आवाज़ सुनाई देती तो मेरी आंख खुल जाती। इसलिए मैं अपने घर की छत पर सोता था ताकि भागने में आसानी रहे। कई बार सोचता था कि मैं मरने के बाद नरक में जाऊंगा क्योंकि मेरे काम बुरे हैं। यदि आज मैं इन्हें छोड़ भी दूँ तो भी मेरे पहले पाप मुझे नरक लेकर जाएंगे ही, यदि नहीं छोड़ता तो कभी न कभी मेरे दुशमन मुझे मार डालेंगे। इसी उधेड़-बुन में मैं काफी परेशान रहने लगा। अब मुझे एक ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो मुझे इन सब परेशानियों से छुटकारा दे सके।

इसी दौरान १९९२ में यू०पी० में नयी-नयी सत्ता में आयी भाजपा सरकार ने छोटे-बड़े सभी बदमाशों को पकड़कर मारना और जेल में डालना शुरू कर दिया। एक दिन किसी कारणवश हमारे यहाँ के एक लड़के को पुलिस ने पकड़ लिया और पूछ-ताछ के दौरान उसने हम सब के घर के पते बता दिये जिसके कारण हमारा एक साथी भी पकड़ा गया। हम फिर से अपनी जान बचा कर भागे। अब हम सब अलग-अलग थे। मैं सोचने लगा कि अब मैं क्या करूँ? मैंने निर्णय लिया कि मैं अपने जीवन को नये सिरे से शुरू करूंगा और मैं यह सब छोड़ दूँगा। लेकिन कुछ समय के बाद जब मैं घर वापस आया तो मेरे साथी भी वापस आ गये और फिर से वही दौर शुरू हो गया। एक दिन हम सब साथी एक व्यायामशाला इकट्ठे होकर में ताश खेल रहे थे, जोकि मेरे घर के करीब ही थी। लेकिन मेरा मन वहां नहीं लग रहा था और मैं कई बार वहां से गया। एक बार मैं दूसरे की छत से होकर अपने घर आया तो क्या देखता हूँ कि हमारे यहां कुछ लोग आये हुए हैं जो प्रभु यीशु के बारे में बता रहे थे। मैं उनको जानता था, उनमें से एक ने मुझसे बैठने के लिए कहा। मैंने कहा बस रहने दो मैं ऐसे ही ठीक हूँ, लेकिन मुझे ढोंगियों से नफरत है। उसने बुरा नहीं माना पर प्यार से कहा, “परखकर देखो परमेश्वर कैसा भला है (भजन संहिता ३४:८)।” जब तक परखकर नहीं देखोगे तो आप उसे जानोगे कैसे? मैंने वहां से जाने के लिए जैसे ही दरवाज़ा खोला तो एक अनजानी सी शक्ती ने मुझे रोक लिया। मैंने अपने मन में कहा कि सुनने में क्या बुराई है, कहीं यह चिपक थोड़ी ही जाएगी। मैं वहां रुक गया। वे क्या प्रचार कर रहे थे मुझे कुछ समझ में नहीं आया। उन्में से एक भाई नेत्रहीन था और वह अपने जीवन के बारे में गवाही देकर बता रहा था कि उसके जीवन को प्रभु यीशु ने कैसे बदल दिया। जब वह बताते हुए रो रहा था तो उसके साथ मैं भी रो रहा था। ऐसी खुशी मुझे इससे पहले कभी महसूस नहीं हुई थी। उस समय मैंने एक निर्णय लिया कि अब मैं इन लोगों के साथ रहूँगा, क्योंकि मैंने उनमें सच्चाई को देखा। उन्होंने मुझे बाईबल के नए नियम की एक प्रति देकर कहा कि इसे पढ़ना और प्रार्थना करके प्रभु को परखकर देखो। रात को सोने से पहले जब मैं उस नये नियम को पढ़ने बैठा तो बिजली चली गयी। मैंने प्रार्थना की तो बिजली आ गयी। यह मेरे लिए किसी आश्चर्यकर्म से कम नहीं था। मैंने प्रार्थना की कि प्रभु मुझे पाँच बजे उठा दीजिए और मैंने देखा कि मेरी आंख पाँच बजे से पहले ही खुल गयी। इससे मेरी खुशी बढ़ती चली गयी। इसके बाद मैंने संगति में जाना शुरू कर दिया और मेरे जीवन में धीरे-धीरे परिवर्तन आना शुरू हो गया।

रविवार की आराधना के दिन जब मैं प्रभु के लोगों की संगति में गया तो मेरा दिल खुशी से भरा था। वहाँ मैंने प्रभु-भोज में भी हिस्सा लिया, यह सोच कर कि मैं एक इसाई हूँ। अगले रविवार के दिन प्रभु-भोज के समय रोटी में हिस्सा लेने के बाद मैंने दाख़्ररस लेने के लिए अपना हाथ बढ़ाया ही था कि प्रभु-भोज दे रहे भाई ने कहा कि जो कोई व्यक्ति पाप में है और बीड़ी-सिग्रेट या और कोई नशा करता हो तो कृप्या इसमें भाग न ले। यह सुनकर मैंने अपना बढ़ाया हुआ हाथ तुरंत नीचे कर लिया। सभा के बाद एक भाई और उसकी माँ ने मुझसे पूछ लिया कि मैंने ऐसा क्यों किया? मैंने कहा क्योंकि मैं तम्बाकू खाता हूँ और उसके बगैर मैं रह नहीं सकता। उन्होंने तभी बाईबल में से एक पद मुझे दिखाया जिसमें लिखा था ककि तुम्हारी देह पवित्र आत्मा का मंदिर है, जो इस मंदिर को नाश करेगा, परमेश्वर उसे नाश करेगा - १ कुरिन्थियों ३:१६, १७। उसके बाद मैंने प्रार्थना-उपवास करके प्रभु से मेरी इस कमज़ोरी से छुटकारे के लिए सहायता मांगी और प्रभु की दया से मुझे सब नशे से छुटकारा भी मिल गया।

लेकिन अब भी मुझ से कुछ न कुछ पाप होता ही था। मैं अब भी अपने पाप के स्वभाव से परेशान था। मुझे एक पद- १ युहन्ना १:७ बताया भी गया था, फिर भी मुझ से पाप हो ही जाता था। मैंने एक भाई से इस विषय में बात की। उसने मुझे समझाया और पूछा कि क्या कोई मनुष्य काम शुरू करके उसे अधूरा छोड़ता है? मैंने कहा कि नहीं। तब उसने कहा कि जो काम प्रभु ने तुम्हारे जीवन में शुरू किया है वह उसे पूरा किए बिना तुम्हें कैसे छोड़ सकता है? वह अन्त तक इस काम को तुम्हारे जीवन में पूरा करेगा। उसने मुझे बताया कि पापों की क्षमा के लिए मूँह से प्रभु यीशु का अंगीकार करना ज़रूरी है-रोमियों ९:९,१०। उसी रात को मैंने अपने सारे पापों के लिए प्रभु से क्षमा मांगी और प्रभु ने मुझे पापों की क्षमा का निश्चय भी दिया।

अब मेरे जीवन ने एक नया मोड़ ले लिया। मैं अब तक कोई काम धंधा नहीं करता था। इस विषय में एक भाई ने मुझे बताया कि प्रभु के वचन में लिखा है कि जो काम न करे वह खाने भी न पाए - २ थिस्सलुनीकियों ३:१०। अतः मैंने फैसला किया कि मैं काम करे बगैर नहीं खाऊंगा। लेकिन मुझे मेरे दुश्मनों का डर भी सताने लगा कि अगर बाहर निकलूँगा तो वे मेरे आड़े आएंगे। इसलिए मैंने बाज़ार से फल लाकर अपनी ही गली में बेचना शुरू कर दिया। इसके बाद मैंने सबज़ी बेचना शुरू कर दिया। जो भी मिलता उसे मैं अपनी गवाही भी देता। लोग आश्चर्य में थे कि इसे क्या हो गया? एक दिन मेरे कुछ दुश्मन मिले और प्रभु ने उनके सामने खड़े होकर मुझे उनसे माफी माँगने की हिम्मत भी दी। मैंने उनसे माफी माँगी तो हुआ यह कि वो हंसकर मुझे छोड़कर चलते बने।

इसके बाद मुझे एक स्कूल में नौकरी भी मिल गयी, लेकिन १५ दिन बाद ही मुझे नौकरी से निकाल भी दिया गया। निकले जाने का कारण था कि मैंने स्कूल में परमेश्वर के वचन का प्रचार किया था। मैं बहुत रोया कि मेरी नौकरी प्रभु के प्रचार की वजह से गयी। एक भाई ने मुझे तसल्ली दी कि प्रभु के सेवकों ने तो अपनी जान तक दे दी, मुझे तो सिर्फ नौकरी ही छोड़नी पड़ी है, यह तो खुशी की बात है। फिर मुझे आई०टी०सी० सिग्रेट फैकट्री में नौकरी मिल गयी। इसी दौरान दिल्ली में पवित्र महासभा होने वाली थी। उस महासभा में नये लोगों के बपतिस्मों की तैयारी हो रही थी। मुझे भी बपतिस्मा लेने के बारे में बताया गया। मैंने कहा मुझे क्या ज़रूरत है क्योंकि मैं तो एक इसाई परिवार से हूँ, सो मैं नहीं लूँगा, मेरा बपतिस्मा तो बचपन में ही हो चुका है। फिर मुझे बताया गया कि यह प्रभु की आज्ञा है। एक रात को जब मैं प्रभु का वचन पढ़ रहा था तो यह पद मेरे सामने आया, “क्या कोई जल की रोक कर सकता है, कि ये बपतिस्मा न पाएं, जिन्होंने हमारी नाईं पवित्र आत्मा पाया है? (प्रेरितों के काम १०:४७)” इससे मैं आश्वस्त हो गया और मुझे यह समझ में आ गया कि यह प्रभु की आज्ञा है। अगले दिन बपतिस्में हुए और मैंने भी बपतिस्मा लिया। प्रभु की इस आज्ञा को पूरी करने के द्वारा जो खुशी मुझे उस समय मिली मैं उसे आज तक नहीं भूला। उसी समय मुझे बाईबल में से एक प्रतिज्ञा मिली - यशायाह ४८:६, जिसने मुझे मेरी सेवकाई बता दी, कि मुझे चुप नहीं बैठना है और मुझे प्रभु की सेवा करनी है।

एक दिन किसी भाई ने मुझ से पूछा कि “तुम क्या काम करते हो?” मैंने बताया कि मैं सिग्रेट फैक्ट्री में काम करता हूँ। उसने इस बात से खेद प्रकट किया और कहा कि यह ठीक नहीं है। वह मुझे समझाने लगा कि यदि कोई ताड़ के पेड़ के नीचे बैठकर दूध पीए तो क्या कोई उस पर विश्वास करेगा? बल्कि वह यही कहेगा कि ताड़ी पी रहा है। उसके बाद मैंने वह नौकरी छोड़ दी और घरों में रंग-रोगन करने का काम करने लगा, इसके बाद और भी कई कम बदले।

इसी दौरान मेरी शादी हो गयी और फिर प्रभु ने हमें आशीश के रूप में दो बच्चे-एक बेटी और एक बेटा भी दिए। मैं काफी समय तक पारिवारिक समस्याओं से होकर भी गुज़रा, जिसके कारण मेरे आत्मिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए। कई बार पूरी तरह से प्रभु की सेवा करने की भी ठानी, लेकिन नहीं कर पाया। बस अपना काम भी करता रहा और प्रभु की सेवा भी करता रहा। ३१ दिसम्बर २००० की रात्री सभा में प्रभु ने मुझे अपने वचन से एक प्रतिज्ञा दी, “हे अति प्रीय पुरुष, मत डर, तुझे शांति मिले; तू दृढ़ हो और तेरा हियाव बन्धा रहे (दानियेल १०:१९)।” इसके बाद प्रभु ने मेरे परिवार में शान्ति दी और मैं पूरी तरह से प्रभु की सेवा में आने के लिए फिर से प्रार्थना करने लगा।

उन दिनों जिस कम्पनी में मैं काम कर रहा था, वह कम्पनी भारत छोड़ कर चीन चली गयी और ३१ जुलाई २००३ को मुझे उससे मुक्त होना पड़ा। क्योंकि प्रभु ने मुझे पूरी तरह उसकी सेवा करने के लिए बोझ दिया था, अब मैं प्रभु की दया से अपने आस-पास के इलाकों में प्रभु की सेवा कर रहा हूँ। मेरा आप से निवेदन है कि आप मेरे और मेरे परिवार के लिए प्रार्थना करें कि प्रभु मेरी सहायता करे और मैं उस सेवकाई को, जिसके लिए उसने मुझे बुलाया है, पूरा कर सकूँ।

सम्पर्क अक्टूबर २००३: अभी अन्धेरा और भी बाकी है

कहीं किसी ने एक कहानी गढ़ कर कही। एक राजा के पास एक फकीर पहुँचा। राजा कुछ मसती में था, मुस्कुरा कर बोला, “मांगो क्या मांगते हो।” फकीर के हाथ में एक छोटा पर अजीब सा थैला था। फकीर बोला, “महाराज, बस इस थैले में सोने के सिक्के भरकर दे दीजिए।” राजा ने फौरन आज्ञा दी और महामंत्री ने स्वर्ण मुद्राएं उसके छोटे थैले में डालनी शुरू कीं। हज़ारों स्वर्ण मुद्राएं डाली गयीं पर वह छोटा थैला भरने में ही नहीं आ रहा था। अब घबराया सा राजा हार कर बोला, “सन्यासी महाराज, यह छोटा थैला कोई जादूई थैला लगता है।” फकीर ने बड़ी लापरवाही से कहा, “नहीं राजन, यह थैला कोई जादूई थैला नहीं है। यह थैला तो आदमी के दिल से बना है।” मित्र मेरे, आदमी का दिल पैसे से, पद से, ज्ञान से और मान से, कितना ही क्यों न भर लो, पर उसका दिल कभी भर नहीं पाएगा। आदमी के दिल को बनाने वाले ने अपने लिये बनाया है और केवल वही है जो इस दिल के खालीपन को भर सकता है, संतुष्ट कर सकता है। उसके बिना यह दिल खाली ही रहेगा, बेचैन रहेगा और फिर बेचैनी में ही मरेगा।

धर्म खुद में खाली और खोखले हैं, वे आदमी के दिल के खालीपन को क्या भर पाएंगे। हज़ारों धर्म, हज़ारों सालों से, हज़ारों कर्तब और तरीकों से एक मन को भी संतुष्ट नहीं कर पाए। आज तक आदमी का मन उस खालीपन की बेचैनी को भोग रहा है।

५ मई २००३ के “मिड डे” अखबार में एक सर्वेक्षण छपा था, जिसके अनुसार - २०% बच्चे अपना १५वाँ जन्म दिन मनाने से पहले ही सैक्स (व्यभिचार) में फंस चुके होते हैं; ६७% माँ-बाप अपने बच्चों के इस व्यभिचार को जान ही नहीं पाते। अनुमान्तः एक साल में १५ साल से कम उम्र की ८०,००० लड़कियाँ माँ बन चुकी होती हैं। पाप बड़ी तेज़ी से हमारे घरों में पनप रहा है। इस कारण हर घर अनसुलझी परेशानियों से घिरा है। आदमी परिवार से, समाज से, बिमारियों से और बेरो़ज़गारियों से हार गया है। वह ज़िन्दा तो है पर सहमा सा अपने अन्दर शम्शान सह रहा है। कुछ ने तो सोच लिया क्यूँ ऐसी सज़ा सहने के लिए जीएं। उनके मन ने मान लिया है कि अब कुछ नहीं बदलने वाला है। ऐसी मौत माँगती ज़िन्दगियों की कमी नहीं। बेवजह की बातों से, बुरी आदतों से, पाप से घिरा हर घर बिखर जाता है। घर दरवाज़ों और दीवारों से कभी नहीं बनता, पर प्रेम से बनता है, प्रेम से पनपता है और प्रेम से सजता है। परिवार में यदि प्रेम नहीं है तो कुछ नहीं है। परमेश्वर प्रेम है, जब परमेश्वर ही जीवन और घर में नहीं है तो प्रेम कहाँ होगा, हाँ प्रेम का दिखावा ज़रूर हो सकता है।

स्वर्गीय सत्य हमारी शर्मनाक हालत को सबके सामने लाकर रख देता है। हम परिवार में कुछ होते हैं, दोस्तों में कुछ और अपने अधिकारी के सामने कुछ और ही बन जाते हैं। परमेश्वर का वचन हमारी सारी पर्तों को हटा कर हमारा असली चेहरा हमें दिखाता है। आज की ज़िन्दगी एक नाटक से ज़्यादा नाटकीय है।
कहा जाता है कि ज़्यादातर पत्नियाँ बनावटी आँसू और दिखावटी हंसी में माहिर होती हैं, क्योंकि वे सोचती हैं कि इसके बिना तो गाड़ी खिसकती ही नहीं। बाहर भेड़ सी दिखने वाली बीवी, घर में आकर भेड़िये सी भी हो जाती है। ऐसे ही एक परिवार में बेटे ने झल्लाकार कहा, “रोज़ लेट हो जाता हूँ, डैडी कम से कम घड़ी तो रिपेयर करवा दो।” ‘धर्मपत्नि’ पतिदेव की तरफ इशारा करते हुए बीच में बोली, “इस घर में बहुत चीज़ें रिपेयर के लिये पड़ीं हैं, शुरुआत तो इस बुढ्ढे की खोपड़ी से होनी चाहिए।” ऐसी ‘धर्मपत्नियों’ से बोलते समय आपका सुर ज़रा ऊपर नीचे हुआ नहीं कि घर को युद्ध का मैदान बनते देर नहीं लगती। वे बात-बेबात पर लड़ने को बेताब अड़ी खड़ी रहती हैं। अगर किसी ज़िद्द पर अड़ गयीं, तो फिर वो बीवी क्या जो ज़िद्द छोड़ दे और वो ज़िद्द क्या बीवी जो छोड़ दे।

पर कुछ घरों की कहानी इससे उलट होती है। वहाँ कुछ मर्द ऐसे होते हैं जो नीच तरीकों से अपनी मर्दान्गी दिखाते हैं-अपनी बीवी पर हाथ उठाकर, उन्हें तरह तरह से प्रताड़ित कर के यो दूसरों के सामने ज़लील करके । तमीज़ और शर्म कभी हमारे घरों में कोई चीज़ होती थी। अब बाप अपनी बेटी के सामने पूरे गन्दे और नंगे शब्दों के साथ गाली बकता है। जैसे-जैसे उनका बुढ़ापा बढ़ने लगता है, वे सठियाने, खिसियाने और ज़्यादा ही बतियाना शुरू कर देते हैं। वे इतना मंज चुके होते हैं कि ऐसा कोई मुद्दा नहीं होता जो उनकी पकड़ के बाहर हो। रिटायरमैंट के बाद तो बात ही कुछ और हो जाती है, काम काफी बढ़ जाते हैं; जैसे-पड़ौसियों का ज़बरदस्ती सिर खाना, मौहल्ले की दुकान पर निठल्ले बैठ आने-जाने वालों पर टिप्णीयां करना, सब्ज़ी वालों से झक मारना, पुराने घिसे-पिटे किस्सों को बार-बार दोहराना, अख़बार में छपे हुए हर विज्ञापन से लेकर मण्डी के भाव तक को चाट जाना इत्यादि। आम लोग इनसे इस तरह डरने लगते हैं जैसे पागल कुत्ते का काटा पानी से डरता है। परिवार में औलाद भी पीछे नहीं है। वह भी बाप को बाप तब तक समझती है जब तक बाप की जेब गरम है। बाद में तो बाप बोझ बन जाता है। प्रिय पाठक, आपके परिवार का क्या हाल है?

परिवार से आगे खिसक कर देखें, आज हमारे समाज का क्या हाल है? पहले कहा जाता था, जितने मूँह उतनी बातें; पर आज बात बदल गयी है। मूँह कम हैं बातें ज़्यादा हैं। मूँह खाने के लिए और जीभ कोसने के लिए प्रयोग होती है। खाने के भी कई विकल्प हैं - चाहो तो गाली खा लो, कसम खा लो, हवा खा लो, कान खा लो, किसी का सिर खा लो, घूंसे खा लो, किसी का माल खा लो और हिम्मत हो तो सिर्फ माल ही नहीं पूरा माल गोदाम खा लो। कुछ लोग तो कहने लगे हैं कि ईमान्दार व्यक्ति वह है जिसे बेईमानी करने का मौका नहीं मिला।

भ्रष्टाचार हमारी परंपराओं में पूरी तरह से खप गया है। इससे अछूता बच निकलना अपने आप में आदमी के बस से बाहर है। कुछ कर्मचारी हैं जिनका नियम है नियम से रोज़ लेट आना, किसी के बनते काम में ज़बरदस्ती टाँग अड़ाना ताकि बन्दा कुछ नज़राना चढ़ाकर जाए। जैसे ही कर्मचारी, तरक्की पा, अधिकारी बन्कर घूमने वाली कुर्सी तक पहुँचता है, उसका दिमाग़ ही घूम जाता है। ग़ुरूर इतना आ जाता है कि खुद को खुदा और दूसरों को गधा समझने लगता है। बिकाऊ माल की तरह, कितने ही अधिकारियों और कर्मचारियों की भी एक कीमत होती है। उस कीमत पर वह आराम से खरीदा जा सकता है। बस इतना हो कि आप उसकी दिखावटी ईमान्दारी पर उंगली न उठाएं। वो जता देते हैं कि आखिर आपको भी तो पानी में ही रहना है, तो ध्यान रखिएगा, कहीं मगरमच्छों से ज़रा सी छेड़-छाड़ बहुत महंगी न पड़ जाए।

हमारे स्वतंत्र देश में सबसे अधिक स्वतंत्रता और सुरक्षा की ज़रूरत अपराधियों को है, जो हमारी पुलिस बड़ी मुस्तैदी से उन्हें मुहैया भी करा देती है, सिर्फ महीना बांधने की ज़रूरत है। पहले एक खेल होता था चोर भाग, सिपाही आया। आज कहते हैं कि सिपाही भाग चोर आया। एक बार एक सिपाही ने एक चोर से पूछा, “मियां धंधा कैसा चल रह है?” चोर बोला, “भाई साहब क्या बताऊं, लाकर और बैंक का ज़माना है। आजकल कुछ खास हाथ नहीं लगता। धंधा बदलने की सोच रहा हूँ। अब चोरी छोड़ नेतागिरी करूंगा।”

हमारी राज व्यवस्था को चलाने हेतु ‘नेताश्री’ लोगों की ज़रूरत होती है। नेतागिरी का बुनियादी उसूल है, दूसरों को आपस में लड़ाओ और खुद नेता बन जाओ। उन्हें लोगों को किसी न किसी बात पर लड़वाना ज़रूरी होता है; जैसे-धर्म पर, ज़ात पर, भाषा पर, शिक्षा पर, इत्यादि। असल में हमारे यहां दो तरह के लोग हैं - एक लड़ने वाले और दूसरे लड़वाने वाले। लड़ाने वाले अक्ल लड़ाते हैं और दूसरों को आपस में भिड़ा देते हैं। पर लड़ने वालों को अक्ल की ज़रूरत ही नहीं होती। उन्हे तो बस थोड़ा सा उक्सा भर दो, फिर तो मुद्दे या परिणाम के बारे में जाने-सोचे बिना, तुरंत, तोड़-फोड़, आगज़नी और मारने-काटने को तत्पर और तैयार हो जाते हैं। हमारे धर्मगुरू भी इसी तरह हमें आपस में भिड़ाने को भड़काते रहते हैं। धर्म के नाम पर हमारे मनों में इतनी नफरत भर दी गई है कि पूरा समाज भिखराव के रास्ते पर खड़ा है। धर्म के उद्देश्य और रास्ते बदल चुके हैं और आदमी के दिमाग़ को धर्म के दीमक ने इस लायक नहीं छोड़ा कि वह कुछ सही सोच सके। मज़हबी बदले की भावना के घने बादलों में घिरा समाज, इस भावना के अंजाम से बेपरवाह, अपने ही विनाश की ओर अग्रसर है।

आत्मिक इलाज करने वाले नामधारी संतों की गिनती का कोई अन्त नहीं। वे हमारे गली छाप डाक्टरों की तरह हर गली में दुकान खोले बैठे हैं। ग़रीब लोगों का उल्लू बना कर, अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं। हमारी एक पड़ोसन एक दिन एक डाक्टर से अपना ख़राब दांत निकलवाकर घर लौटी। कुछ देर बाद जब सुन्न करने वाले इंजैकशन का असर ख़त्म हुआ तो दांत में पहले जैसा दर्द फिर शुरू हो गया। जब जांच-पड़ताल की तो पता चला कि ख़राब दांत तो वहीं का वहीं है, उसके बगल वाला अच्छा दांत बाहर कर दिया गया। बेचारी बहुत चीखी-चिल्लाई, पर अब क्या होता? ऐसे ही दमदार कोत्वाल के कारनामे हैं, नत्थूजी चोरी करते हैं पर फत्तूजी को जेल भेज दिया जाता है।

जो एक दूसरे को धोखे बांट रहे हैं, देर-सवेर एक दिन, अचानक वे ख़ुद बड़े धोखे के अखाड़े में आ खड़े होंगे और तब सहने के सिवाय कुछ नहीं कर पाएंगे। जो कुछ हम बोएंगे, वही हम काटेंगे। अनन्त सत्य यही है।

तन तो सजा है, पर मन का मकान अन्दर से ढह रहा है। बहुत कुछ बदला है पर आदमी अन्दर से कहीं बदला है? हत्या, व्यभिचार, आतंक, रिश्वत, बैर और जलन सब वैसा ही है; सिर्फ कपड़े, रहन सहन और भाषा बदली है। अब पाप के भारी शब्दों को हल्का करके कहने का रिवाज़ है; जैसे ‘रिश्वत’ की कमाई को उपर की कमाई या सुविधा शुल्क कहते हैं; ‘व्यभिचार’ को संबंध कहते हैं; ‘बदला लेने’ को अब इसे ज़रा सिखाना पड़ेगा और ‘ईमान्दार’ आदमी को बेवकूफ कहते हैं। हमारी दुनिया की उम्र उस मंज़िल तक पहुंच गयी है जहां उसे काला तो सफेद दिखता है और सफेद काला। बहिश्त के बाग़ीचे से जब आदम ज्ञान का फल खाकर बाहर आया तब से उसका ज्ञान तो तेज़ी से बढ़ता जा रहा है, साथ ही वह अपनी तबाही की तैयारी भी पूरी करता जा रहा है। उसने अपनी पृथ्वी को भी विनाश के कगार पर ला कर खड़ा कर दिया है। उसने वायु, जल, ज़मीन यानि जीवन के हर साधन को ज़हरीला कर दिया है। हमारी पृथ्वी पर भारी दबाव है और आदमी के विनाश का अध्याय साथ ही जुड़ा है; वास्तव में तो सारी सृष्टी ही कराह रही है।

प्रिय पाठक, आप में से कितने ही अपनी आदतों से परेशान होंगे। आप गाली नहीं देना चाहते पर मूँह से निकल जाती है; आप गुस्सा नहीं करना चाहते पर अपने को रोक नहीं पाते। कई अपनी बुरी लतों जैसे शराब, सिगरेट, व्यभिचार आदि से अपना पीछा नहीं छुड़ा पा रहे हैं। वे अपना शरीर, परिवार, पैसा सब कुछ धीरे धीरे बरबाद करते जा रहे हैं। आप में अपने आप इन बुराईयों को रोक पाने की सामर्थ नहीं है। कहीं सम्पर्क आप ही के जीवन की अनसुलझी कहानी तो नहीं कह रहा है?
बस दिखावा ही आदमी पर सवार है, सदा यही प्रयास रहता है कि अन्दर का छिपा आदमी कहीं बाहर न दिख जाए। दिखावे का चरित्र जीना, अपने आप से बेईमानी करना है। इन्हीं पापों की वजह से आपके अन्दर का आदमी बेचैन, झुंझलाया और बेबस है। कुछ तो इतने निराश हैं कि अब वे आत्म हत्या पर उतारू हैं। आप अपनी इन बुराईयों से, अपनी ही ताकत से, कभी नहीं छूट पाएंगे और न ही मन में रमीं-जमीं वासनाओं को अपनी सामर्थ से मार पाएंगे। पाप में फंसा आदमी, उसके हल की तलाश में अपने जीवन को घसीटता ही रहेगा। हमारे काले कारनामों का कच्चा चिट्ठा पक्की स्याही से लिखा जा रहा है। हमारे जीवन के अनखुले और अधखुले हर एक पन्ने को एक दिन खोला जाएगा। कोई ऐसा पन्ना नहीं है जो खुलेगा नहीं। हर पन्ने पर लिखी हर एक बात की एक दिन ठीक-ठीक जांच पड़ताल होगी। कुछ भी ढंपा नहीं रहेगा। अगर आप अपनी आंखें बन्द करके अपने अन्दर देखना शुरू करें तो आपका मन खुद ही बयान देगा कि आप जो बाहर से दूसरों को दिखाते हैं वैसे वास्तव में अन्दर से हैं नहीं। आपका मन आपके अन्दर की वास्त्विक स्थिती, अन्दर दबी हुई बेचैनी और परेशानियों को भी बयान करेगा।

इस मौजूदा ज़िंदगी में ज़्यादतर इन्सान एक घुटन के साथ जी रहे हैं। जीना उनकी मजबूरी है। साथ ही एक तलाश भी ज़ारी है कि कहीं कुछ राहत की सांस मिले। सपनों के सांचे में जीवन ढालने के लिए जी-जान लगा कर भी निराशा ही मिलती है। जिधर आपकी चाह है, उधर आपकी राह नहीं है। जब तक जीवन में पाप रहेगा, तब तक आदमी परेशान और बेचैन रहेगा। कोई भी अपने पाप से अपने आप को छुड़ा नहीं सकता। मौत के बाद भी पाप और उसकी खौफनाक बेचैनी पीछा नहीं छोड़ेगी। हर एक व्यक्ति अपने स्वभाव से ही पापी है। प्रभु यीशु इसी पाप के स्वभाव और पाप को नाश करने आया, पापी को नहीं। प्रभु यीशु नहीं चाहता कि एक भी पापी नाश हो। वह तो हर एक को मन फिराने और पापों की क्षमा माँगने का अवसर देता है, क्योंकि वह पापी से प्यार करता है - हर एक पापी से, और पाप से भरे इस जगत से भी - “क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नाश न हो परन्तु अनन्त जीवन पाए।”- यूहन्ना ३:१६।

इस सत्य को जानिएगा और मानिएगा तो जो भी जैसा भी आप से बुरा हो गया हो वह सब सदैव के लिए समाप्त हो सकता है। आप नए सिरे से, एक नए जन्म से शुरू कर सकते हैं। आप अपने बेचैन और परेशान जीवन को आनन्द से भर सकते हैं। पाप से पश्चाताप की सिर्फ एक प्रार्थना के बाद फिर आपको अपने किए पर कोई पछ्तावा नहीं रहेगा। धर्म परिवर्तन की बात सोच कर आप इस सच्चाई को ज़लील करते हैं। संप्रदाय नहीं पर स्वभाव बदलने की ज़रूरत है। धर्म परिवर्तन से किसी के जीवन में कोई परिवर्तन कभी नहीं आता। प्रभु यीशु ने क्रूस पर अपनी जान इस लिए दी कि आपकी जान नरक के विनाश से, जहां की पीड़ा कभी कम नहीं होती, बच जाए। यह शाश्वत सत्य इसाई ‘धर्म’ के अनुयाइयों पर भी ठीक वैसा ही लागू है जैसा किसी और पर; इसाई ‘धर्म’ के अनुयाइयों को भी पश्चाताप करने, मन फिराने और नये जन्म की वैसी ही आवश्यक्ता है जैसी किसी अन्य को - “क्योंकि सबने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं (रोमियों ३:२३)”। ‘नरक’ के बिना प्रचार बड़ा भला लगता है, पर ‘नरक’ एक सच्चाई है। इसको छिपा कर प्रचार करना लोगों को धोखा देना है। पाप के साथ जीवन जीता हर व्यक्ति, नारकीय बेचैनी को यहीं से भोगना शुरू कर देता है और मृत्यु के बाद उस बेचैनी को पूरी भयानकता के साथ हमेशा के लिए भोगता रहेगा।

हर शरीर से जन्मे हुए पर मौत की मोहर लगी है। अभी तक आदमी ऐसे दरवाज़े नहीं बना सका जो मौत को रोक सकें। एक दिन मैं यहां नहीं रहूंगा, आप यहां नहीं रहेंगे, पर यहां के बाद जहां भी होंगे, वहां हम अपने कर्मों का फल ज़रूर भोगते रहेंगे। हम यहां किये हुए अपने कुकर्मों के इतिहास को किसी कूड़े के ढेर पर फेंक कर नहीं जा पाएंगे, वह इतिहास तो हमारे साथ ही जाएगा और हमारे विरोध में साक्षी भी बनेगा। अपने जीवन के उन आखिरी पलों का ज़रा एहसास करिएगा, जब आप अपने प्राणों को छोड़ने वाले ही होंगे; ये पल कभी न कभी तो निश्चय ही आएंगे। उस समय जब आपके घिनौने और छिपे पाप आपको याद आएंगे और यह कि आप उनके साथ कहां जाएंगे, तो सोचिए कैसा लगेगा? ज़रूरी नहीं कि उस समय आप के पास मन फिरने या पश्चाताप का अव्सर हो या आप पश्चाताप करने की स्थिति में हों। यह अव्सर और सामर्थ तो आज आपके पास है, कल नहीं भी हो सकती है।

मेरे प्यारे पाठक कुछ भी अन्होनी कभी भी हो सकती है। अचानक ऐसी खबर, जिसे आप कभी सुनना न चाहते हों आपको सुननी पड़ सकती है। जो बात आप सहना न चाहें, आपको सहनी पड़ सकती है। मौत का सिर्फ एक झटका, आपको अचानक ही कभी, आंसुओं की दहकती झील में हमेशा के लिए झोंक देगा। मौत आपके पास से हर एक मौका हमेशा के लिए छीन लेगी, फिर बस एक खौफनाक आंधियारे के चीखते सन्नाटों की अनन्तकालीन तड़पन ही आपके साथ रह जाएगी। प्रभु यीशु आपके जीवन में पाप को नाश करेगा, आपको नहीं। धर्म परिवर्तन के भ्रम को जीवन में मत पालिएगा। प्रभु यीशु पाप की क्षमा देने आया, कोई धर्म नहीं। एक ईमान्दारी की प्रार्थना से यीशु को परखें और कहें, “हे प्रभु यीशु मुझ पापी पर दया कर के मेरे पाप क्षमा करें। मैं विश्वास करता हूं कि आपने मेरे पापों के लिए अपना जीवन दिया, ताकि मैं अनन्त आनन्दमय जीवन पाऊं।”

समय तेज़ी से फिसल रहा है। दिन हफतों में, हफते महीनों में और महीने सालों में बदल रहे हैं। कहीं आप खड़े सोचते ही न रह जाएं और समय आपको सलाम मार जाए। हां मेरे मित्र, जो आपने पढ़ा है, कहीं वह आप ही का जीवन तो नहीं है? यदि आपके पाप आप पर प्रगट हुए हैं तो अब आपको अपने बारे में एक फैसला करना ही है-आप प्रभु यीशु की क्षमा के इस आमंत्रण को या तो अपनाएंगे या ठुकराएंगे, निर्णय आपका ही है। वह तो इसी का इंतिज़ार कर रहा है कि कब आप कहें ‘हे प्रभु यीशु मुझ पापी पर दया करके अपनी क्षमा और शांति मुझे दें। हे प्रभु मेरी प्रार्थना की लाज रखें। प्रभु यीशु के नाम में, आमीन।’