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गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

पवित्र आत्मा पाना – 2 – विशेष प्रयास – माँगने से – लूका 11:13 (भाग 2)



क्या पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए कुछ विशेष करना पड़ता है?

1. क्या पवित्र आत्मा प्रभु से मांगने से मिलता है? (लूका 11:13)

(संबंधित तीसरी बात)


(3) तीसरी बात, इस देने और लेने को एक अन्य उदाहरण से भी समझिए; जब एक रोगी किसी डॉक्टर के पास जाकर उस से अपने रोग से चंगाई मांगता है, तो क्या चंगाई कोई डॉक्टर की मेज़ पर रखी वस्तु या उसकी जेब में रखी कोई टॉफी है जिसे डॉक्टर रोगी को पकड़ा देता है, और कहता “ले, दे दी तुझे चंगाई?” उसके पास सहायता प्राप्त करने के लिए आए उस रोगी को डॉक्टर अवश्य ही चंगाई देना चाहता है, देने के लिए तैयार भी है, किन्तु रोगी द्वारा उस चंगाई को प्राप्त करने की एक विधि, एक प्रक्रिया है, जिसके पालन के किए बिना, उस डॉक्टर के द्वारा वह चंगाई दे देना और रोगी के द्वारा उस चंगाई को प्राप्त कर लेना संभव नहीं है – इस प्रक्रिया में डॉक्टर रोगी की कुछ जांच करवाता है, उसके लिए उपयुक्त दवा लिखता है, कुछ परहेज़ बताता है, रोगी को इलाज के लिए उन दवाओं और परहेजों को एक निर्धारित समय तक तथा दिए गए निर्देशानुसार नियमित लेना होता है – अर्थात उस प्रक्रिया का सही पालन करना होता है, तब ही उसे चंगाई प्राप्त होती है। इसी प्रकार से, प्रभु भी अपने शिष्यों को उनकी सहायता के लिए पवित्र आत्मा देना चाहता है और देता है, क्योंकि मनुष्यों के लिए यही प्रभु यीशु की ओर से ठहराई गई पवित्र आत्मा की सेवकाई है (यूहन्ना 14:16-17, 26; 16:7-15)। अब फिर ध्यान कीजिए, जैसे लूका 11 में, वैसे ही यहाँ यूहन्ना 14 और 16 में भी यह बात चेलों के लिए ही कही गयी है।

अर्थात पवित्र आत्मा प्राप्त करना उनके लिए ही संभव है जो वास्तव में प्रभु के चेले हैं; किसी परिवार विशेष में जन्म लेने अथवा मनुष्यों द्वारा परमेश्वर के नाम में बनाए गए कुछ रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों को पूरा करने के द्वारा नहीं, वरन वे जो अपने पापों के लिए हृदय से किए गए सच्चे पश्चाताप और प्रभु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, प्रभु को जीवन पूर्णतः समर्पण कर के, उस के वचन की आज्ञाकारिता के अनुसार प्रभु के लिए जीवन जीने के संकल्प कर लेने के द्वारा प्रभु का अनुसरण करने और उस के चेले बन जाने का निर्णय लिया है।

यह भी सच है कि हर एक जो शिष्य होने का दावा करता है वह वास्तव में शिष्य नहीं होता है। कई तो प्रभु के साथ केवल अपनी शारीरिक आवश्यकताओं के लिए जुड़ते हैं (यूहन्ना 6:26-27); बहुतों ने तो मसीही सेवकाई को शारीरिक कमाई का माध्यम बना लिया है, वे प्रभु के नाम को सांसारिक संपत्ति जमा करने के लिए प्रयोग करते हैं (रोमियों 16:18; 1 तीमुथियुस 6:5; 2 तीमुथियुस 3:4; तीतुस 1:11; 2 पतरस 2:3, 13; यहूदा 1:12, 16)। बहुतेरे प्रभु के साथ जुड़ते तो हैं किन्तु प्रभु पर सच्चा विश्वास नहीं करते हैं (यूहन्ना 6:36, 64; 8:30-31); और कई प्रभु की सभी शिक्षाओं को स्वीकार करने और उन सभी का पालन करने के लिए तैयार नहीं होते हैं (यूहन्ना 6:66)। कई लोग मंडलियों में प्रभु के जन बनकर तो रहते हैं पर वास्तव में होते शैतान के जन हैं (2 कुरिन्थियों 11:13-15), और मंडलियों में फूट, झगड़ों और परेशानियों का कारण होते हैं (प्रेरितों 20:29-31; 1 यूहन्ना 2:18-19; 2 तीमुथियुस 3:5, 8; 4:14; 3 यूहन्ना 1:9-11)। प्रभु ने स्पष्ट बताया है कि वास्तव में उनका चेला कौन है (यूहन्ना 8:31-32; 14:21, 23), और इन आयतों से यह स्पष्ट है कि सच्चा शिष्य या विश्वासी वही है जो प्रभु के वचन की आज्ञाकारिता में, प्रभु की इच्छा के अनुसार, और प्रभु को समर्पित जीवन व्यतीत करता है; न कि वह जो प्रभु के नाम में अपनी इच्छा के अनुसार चलता और करता रहता है।

प्रभु तो प्रत्येक मनुष्य के हाल को जानता है, उसे पता है कि कौन उसका है और कौन नहीं (यूहन्ना 2:25; 2 तीमुथियुस 2:19)। अब स्वाभाविक प्रश्न है कि क्या प्रभु परमेश्वर ऐसे सभी पवित्र आत्मा मांगने वालों को, जो प्रभु के लोग होने का स्वांग तो भरते हैं किन्तु वास्तव में हैं नहीं, पवित्र आत्मा यूं ही दे देगा? जिनके जीवनों में प्रभु के वचन और आज्ञाकारिता का स्थान नहीं है वे प्रभु के पवित्र आत्मा को कैसे प्राप्त करने पाएंगे? क्या इन्हें भी पवित्र आत्मा पाने के लिए वास्तव में उद्धार या नया जन्म पाए हुए प्रभु के प्रति सच्चे, आज्ञाकारी, और समर्पित शिष्य नहीं होना होगा? और ऐसा होने की प्रक्रिया तो एक ही है, वही जो इस लेख के आरंभ में उद्धार या नया जन्म पाने के लिए दी गई है। तात्पर्य यह कि, प्रभु अवश्य ही अपने विश्वासियों को पवित्र आत्मा देता है, किन्तु केवल उन्हें जिन्होंने वास्तव में उद्धार पाया है, जिनका सच में नया जन्म हो गया है, जो वास्तव में प्रभु की दृष्टि में उसके चेले हो गए हैं; अन्यथा नहीं।

- क्रमशः
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