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बुधवार, 29 अप्रैल 2020

पवित्र आत्मा पाना भाग (5) – विशेष प्रयास – प्रतीक्षा करना (1)



4. क्या पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है? भाग (1)

लूका 24:49 और प्रेरितों 1:4, 8 के आधार पर यह कहा जाता है कि प्रभु यीशु ने स्वयं पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए शिष्यों से प्रतीक्षा करने के लिए कहा है। इसलिए पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए प्रभु का उपयुक्त समय आने की प्रतीक्षा करने को कहना वचन के अनुसार है, और प्रतीक्षा करनी चाहिए। किन्तु यहाँ पर भी इन पदों से यह निष्कर्ष निकालते समय फिर उन्हीं दो गलतियों को दोहराया जा रहा है – सन्दर्भ से बाहर लेना, और अन्य संबंधित शिक्षाओं का ध्यान न रखना। निःसंदेह, प्रभु ने अपने उन आरंभिक शिष्यों से पवित्र आत्मा पाने के लिए प्रतीक्षा करने के लिए कहा था, किन्तु उस प्रतीक्षा का मुख्य उद्देश्य उस समय के उन शिष्यों से प्रभु द्वारा उन्हें दी गई संसार भर में सुसमाचार प्रचार करने की महान आज्ञा के अंतर्गत सेवकाई आरंभ करने से पहले उसके लिए उचित तैयारी करना और सामर्थ्य पाना था, जो उन्हें उन में पवित्र आत्मा के आने से मिलनी थी, न कि बस यूं ही, उन के मसीही जीवन के लिए बिना किसी परमेश्वर द्वारा नियुक्त सेवकाई या उद्देश्य के पवित्र आत्मा पा लेने की प्रतीक्षा करना। यहाँ यह बात बिलकुल स्पष्ट है कि प्रभु ने पहले उन शिष्यों को अपनी सेवकाई निर्धारित कर के सौंपी, फिर उस सेवकाई के लिए उन शिष्यों की नियुक्ति की गई, और फिर उस सेवकाई के लिए उन निर्धारित और नियुक्त शिष्यों को सामर्थ्य प्रदान की गई – हर संबंधित बात, हर कदम प्रभु की ओर से निर्धारित और संचालित, प्रभु की इच्छा के अनुसार। जैसा आज लोग करने और सिखाने का प्रयास करते हैं, वह प्रभु द्वारा कही और की गई बात के अनुरूप कदापि नहीं है, लेश-मात्र भी नहीं। 

आज तो लोग बस चाहते हैं कि पहले एक बार सामर्थ्य मिल जाए फिर देखेंगे कि उस के द्वारा क्या किया जा सकता है। परमेश्वर कभी कुछ भी निरुद्देश्य या किसी के ‘मज़े लेने के लिए’ नहीं करता है। आज लोगों से कहा जाता है, उन्हें सिखाया जाता है कि पवित्र आत्मा पा लेने के आनंद और उल्लास के अनुभव के लिए, उस के लिए प्रार्थना और प्रतीक्षा करें! इस प्रकार से पवित्र आत्मा मांगने वाले उन लोगों में न तो इस की कोई समझ है कि परमेश्वर ने उन्हें क्यों बुलाया है; और न ही उन लोगों को इस बात का कोई एहसास है कि प्रभु की सेवकाई के लिए उन्हें क्या कीमत चुकानी पड़ सकती है; उन्हें बस यही बताया और सिखाया जाता है कि पवित्र आत्मा तथा उसके वरदानों को प्राप्त करने के अद्भुत अनुभव से होने वाले उत्साह और उल्लास के लिए उसे माँगें। यह वह प्रतीक्षा करना कदापि नहीं है जिसके लिए प्रभु ने अपने आरम्भिक चेलों से कहा था। प्रभु यीशु ने आने वाले समयों के सभी शिष्यों के लिए इसे कोई सिद्धांत या नियम बना कर स्थापित नहीं किया था। यदि यह कहा जाए कि यह प्रभु की ओर से नियम या सिद्धांत था, तो फिर यह भी स्वीकार करना पड़ेगा कि प्रेरितों 2:38 में पतरस के पहले प्रचार और पहले शिष्यों के बनने के साथ ही पतरस द्वारा इस नियम को तोड़ दिया गया, सिद्धान्त की अवहेलना की गई, निःसंकोच इसकी अनाज्ञाकारिता की गई – और यदि यह हुआ है तो फिर प्रभु की आशीष और समर्थन उस अनाज्ञाकारिता के साथ कैसे बनी रही, प्रभु ने अनाज्ञाकारी लोगों को अपनी कलीसिया में कार्य कैसे कर लेने दिया? किन्तु यदि प्रभु की आशीष और समर्थन रहा – जैसा की प्रत्यक्ष है, तो फिर यह भी स्पष्ट है कि वह अनाज्ञाकारिता नहीं थी; अर्थात वह प्रभु द्वारा दिया गया कोई ऐसा नियम या सिद्धांत नहीं था, वरन प्रतीक्षा करने के लिए कहना केवल उस समय के उन शिष्यों के लिए ही कही गई बात थी – और यही सत्य है।
- क्रमशः
अगला लेख: क्या पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है? भाग (2); निष्कर्ष

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