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रविवार, 3 मई 2020

पवित्र आत्मा का बपतिस्मा - भाग 2 - 1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग 2)



पवित्र आत्मा का बपतिस्मा क्या है? -  भाग
1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग 2)

     इस पद को आगे देखने से पहले, हम कुछ संबंधित जानकारी के बारे में देखते हैं; हम थोड़ा सा समय ‘बपतिस्मा’ शब्द पर, और कोरिन्थ की कलीसिया की पृष्ठभूमि को देखने में बिताएंगे। 

     पहले, शब्द ‘बपतिस्मा’; मूल यूनानी भाषा का शब्द, जिसका अनुवाद ‘बपतिस्मा’ हुआ है, ‘बैप्टिज़ो’ है; जिसका अर्थ होता है समो देना या डुबो देना। इसलिए किसी वस्तु का बपतिस्मा लिए या दिए जाने का अर्थ है उस वस्तु में डुबो देना, या उसके अन्दर समो देना। अब, यहाँ पर पद 12 में, मसीह की देह, अर्थात उसकी कलीसिया, की एकता के बारे में बताने और इस बात पर बल देने के बाद, पौलुस प्रेरित के द्वारा पवित्र आत्मा हमारी चर्चा के इस पद, पद 13 में उन अन्य-जातियों से परिवर्तित हुए लोगों को स्मरण दिला रहा है कि वे, कोरिन्थी, और यहूदी, तथा अन्य सभी, चाहे दास अथवा स्वतंत्र, सभी को एक समान ही ‘एक देह होने के लिए बपतिस्मा दिया गया है,’ अर्थात, सभी को एक ही देह में डुबो या समावेश कर दिया गया है; सभी को एक ही आवरण में ढांप दिया गया है, इसलिए अब मसीह की देह के किसी भी एक सदस्य की किसी दूसरे सदस्य से किसी भी बात में कोई भी भिन्नता करने का कोई भी आधार नहीं रह गया है। यह पद 12 की बात की स्पष्ट और सीधे से पुष्टि करने से अधिक और कुछ नहीं है, और यही बात इसके आगे के पदों से लेकर पद 27 तक के पदों की शिक्षाओं में प्रगट है। इस लिए यहाँ पर, कोई कहाँ से या कैसे इसमें इस शिक्षा या सिद्धांत को घुसा सकता है कि जो मसीही विश्वासी प्रभु की सेवा करना चाहते हैं, उन्हें यह पद एक विशेष कार्य अर्थात पवित्र आत्मा का बपतिस्मा लेने के लिए कहता है? कल्पना की कैसी भी उड़ान, इस पद में इस बचकानी और बाइबल के प्रतिकूल शिक्षा को बैठा नहीं सकती है, फिर भी लोग इतनी सरलता से इस गलत शिक्षा को स्वीकार कर लेते हैं, और एक पूर्णतः गलत शिक्षा को पवित्र शास्त्र का सच मान लेते हैं!

     दूसरी बात, इस पत्री की पृष्ठभूमि पर भी थोड़ा विचार करना आवश्यक है। पवित्र आत्मा की अगुवाई में पौलुस प्रेरित द्वारा कुरिन्थियों को – कोरिन्थ में स्थित कलीसिया, या मसीही विश्वासियों की मंडली को लिखी गई इस पत्री में एक विशिष्ट बात है। कोरिन्थ की वह कलीसिया विभिन्न प्रकार के पापों और समस्याओं से भरी हुई थी, और यह पत्री उनमें विद्यमान उन्हीं समस्याओं और पापों को संबोधित करने तथा उनका समाधान करने के लिए लिखी गई थी। उन के दुष्कर्मों की सूची पहले ही अध्याय से आरम्भ हो जाती है, और पत्री के अंत तक ज़ारी रहती है। परस्पर मतभेद और विभाजन, और कलीसिया के अगुवों और प्राचीनों के नाम में गुट बाज़ी से आरम्भ कर के, बच्चों जैसा अपरिपक्व व्यवहार, अनैतिकता, व्यभिचार, मूर्तियों को अर्पित वस्तुओं में संभागी होना, अपने आप को बड़ा दिखाना, अहंकार से सम्बंधित समस्याएँ, प्रभु भोज का दुरुपयोग और दुर्व्यवहार, तथा अन्य पापमय एवं अस्वीकार्य बातों का होना, सभी कोरिन्थ की कलीसिया में, उसके ‘मसीही विश्वासी’ सदस्यों के जीवनों में विद्यमान थे। लेकिन फिर भी पवित्र आत्मा पौलुस से पत्री के आरम्भ में ही लिखवाता है, “परमेश्वर की उस कलीसिया के नाम जो कुरिन्थुस में है, अर्थात उन के नाम जो मसीह यीशु में पवित्र किए गए, और पवित्र होने के लिये बुलाए गए हैं; और उन सब के नाम भी जो हर जगह हमारे और अपने प्रभु यीशु मसीह के नाम की प्रार्थना करते हैं” (1 कुरिन्थियों 1:2) – ये लोग जिनमें इतने निंदनीय पाप विद्यमान थे, उन्हें ‘परमेश्वर की कलीसिया’, ‘पवित्र किए गए’, ‘पवित्र होने के लिए बुलाए गए’, और संसार भर के उन सभी मसीही विश्वासियों के साथ ही स्वीकार किए गए हैं जो प्रभु का नाम लेते हैं, कहा गया है। इस पद, 1 कुरिन्थियों 12:13 की, इसे दिए गए बाइबल के प्रतिकूल उस अभिप्राय के सन्दर्भ में जिस का हम यहाँ अध्ययन कर रहे है, व्याख्या करने और समझ पाने में इस पृष्ठभूमि को ध्यान में बनाए रखना बहुत ही महत्वपूर्ण है।

 - क्रमशः

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