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सोमवार, 4 मई 2020

पवित्र आत्मा का बपतिस्मा - भाग 2 - 1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग 3)



पवित्र आत्मा का बपतिस्मा क्या है? -  भाग 2   
1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग 3)

अब, हम 1 कुरिन्थियों 12:13 को आगे देखते हैं, उस के सन्दर्भ  तथा उन सम्बंधित बातों के साथ जिन्हें हम ने ऊपर देखा है। 1 कुरिन्थियों 12 अध्याय, रोमियों 12 अध्याय ही के समान, पवित्र आत्मा के वरदानों का अध्याय है, परन्तु एक अंतर के साथ, रोमियों 12 अध्याय में पवित्र आत्मा के बपतिस्मे का उल्लेख नहीं है। पौलुस इस अध्याय का आरंभ उन कुरिन्थियों को यह स्मरण दिलाने के साथ करता है कि उन्हें गूंगी मूरतों की उपासना करने से छुड़ाया गया है, और उन की आत्मिक परिपक्वता की दशा चाहे जो भी हो, यह उन में निवास करने वाले पवित्र आत्मा के द्वारा ही है कि, वे यीशु को प्रभु कहने पाते हैं (पद 1-3) और उन्हें पवित्र आत्मा के वरदान भी दिए गए हैं। फिर पद 4 से 11 तक पौलुस उन्हें उन आत्मा के विभिन्न वरदानों के बारे में लिखता है जो उन्हें दिए गए हैं।

उन की उपरोक्त उल्लेखित पृष्ठभूमि और आत्मिकता की दयनीय दशा को ध्यान में रखते हुए, एक महत्वपूर्ण बात पर ध्यान दीजिए, जिसे पवित्र आत्मा उन से पौलुस द्वारा बल दिलवा कर कहता है – उन की व्यक्तिगत आत्मिक दशा चाहे जैसी भी हो, परमेश्वर की दृष्टि में, परमेश्वर के उद्देश्यों के लिए, प्रभु के समक्ष वे सभी एक ही कलीसिया हैं, सभी एक समान स्तर के हैं; न कोई ऊँचा है, और न कोई नीचा, न कोई अधिक उपयोगी है, और न कोई कम उपयोगी; परमेश्वर के सामने वे सभी एक ही समान हैं। पौलुस इस बात को उन्हें किस प्रकार से दिखाता है? 

वह कहता है:

  • पद 4-6 में, एक ही आत्मा, एक ही प्रभु, एक ही परमेश्वर, सब में हर प्रकार का प्रभाव उत्पन्न करता है;
  • पद 7 में,  सब के लाभ पहुंचाने के लिये हर एक को आत्मा का प्रकाश दिया जाता है; (पवित्र आत्मा के वरदानों के विषय विचार करते समय यह एक बहुत महत्वपूर्ण ध्यान रखने योग्य तथ्य है – कोई भी वरदान, कैसा भी और कोई भी, किसी के भी व्यक्तिगत उपयोग के लिए नहीं है; प्रत्येक वरदान सारी कलीसिया के लाभ के लिए है - 1 कुरिन्थियों 14:2-4 को लेकर सामान्यतः दी जाने वाली गलत शिक्षा के प्रचलन के बावजूद);
  • पद 11 में, पवित्र आत्मा की विभिन्न वरदानों का पद 8-10 में वर्णन करने के पश्चात, एक और महत्वपूर्ण कथन दिया गया है – सभी, वरदान, किसी मनुष्य की इच्छा के अनुसार नहीं वरन पवित्र आत्मा की इच्छा के अनुसार, जिसे वह चाहे अर्थात हर एक को दिए गए हैं (हिन्दी अनुवाद में प्रयुक्त ‘जिसे’ मूल यूनानी भाषा में प्रयुक्त शब्द ‘हेकास्तोस’, जिसका अर्थ होता है सभी या प्रत्येक, को ठीक से व्यक्त नहीं करता है, किन्तु अंग्रेज़ी में अनुवाद ‘सभी’ है); हम यहाँ देखते हैं कि किसी के भी साथ, किसी भी आधार पर, किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं किया गया है। कोरिन्थ की कलीसिया के प्रत्येक मसीही विश्वासी को कोई न कोई वरदान दिया गया है जिस से वह प्रभु के लिए उपयोगी हो सके।
  • पद 12 से ले कर पद 27 तक इस बात की पुष्टि फिर से की गई है, एक शब्द चित्र के द्वारा जिसमें एक देह और उसके विभिन्न अंगों को दिखाया गया है, जो सब साथ मिल कर कार्य करते हैं, और एक भी अंग में कोई भी बिगाड़, अन्य सभी अंगों को प्रभावित करता है।


इस सम्पूर्ण खण्ड में, जो कि 1 कुरिन्थियों 12:13 को सन्दर्भ प्रदान करता है, क्या कहीं पर भी, स्पष्ट शब्दों में कहना तो बहुत दूर की बात है, ज़रा सा संकेत मात्र भी है, कि प्रभु की सेवकाई के योग्य समझे जाने के लिए किसी भी आधार पर कोई भी भिन्नता की गई – क्या तथाकथित पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाया हुआ होना या न होना को भी कहीं कोई आधार बनाया गया? क्या कहीं पर यह कहा गया है कि क्योंकि उसने पवित्र आत्मा का बपतिस्मा नहीं पाया था इसलिए उस व्यक्ति को पवित्र आत्मा का वरदान पाने के अयोग्य समझा गया? क्या कहीं पर भी ऐसा लिखा या अभिप्राय दिया गया है कि यद्यपि प्रत्येक मसीही विश्वासी मसीह की देह का, उस की कलीसिया का अंग है, किन्तु ये प्रबल वरदान जैसे कि बुद्धि, ज्ञान, विश्वास, चंगाई, सामर्थ्य के काम, भविष्यवाणी, आत्माओं की परख, अनेकों प्रकार की भाषाएँ और भाषाओं का अर्थ बताना आदि केवल उन्हीं को दी गए जिन्होंने अलग से पवित्र आत्मा का बपतिस्मा भी पाया था? और रोमियों 12 इस खंड का समानांतर लेख पवित्र आत्मा के बपतिस्मे का उल्लेख भी नहीं करता है!

इस लिए किस आधार पर, बाइबल के कौन से समर्थन के अनुसार, यह शिक्षा दी जाती है और दावा किया जाता है कि प्रभु के लिए कारगर होने के लिए मसीही विश्वासी को पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाना आवश्यक है? यदि कोरिन्थ के मसीही विश्वासियों की इतनी दुर्बल आत्मिक स्थिति के बावजूद भी, उन्हें इतने अद्भुत और सामर्थी आत्मिक वरदानों को दिए जाने के योग्य समझा गया, और उन में से प्रत्येक को पवित्र आत्मा द्वारा प्रभु के लिए उपयोगी होने की क्षमता रखने वाला माना गया, तो फिर कोई इस बात का दावा कैसे कर सकता है कि प्रभु के लिए प्रभावी होने के लिए विशेषतः पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाना आवश्यक है?

क्या यह मसीह के देह में फूट डालने, विभाजन करने, और कुछ को औरों से बड़ा या बेहतर जता कर उन के द्वारा दूसरों पर हावी होने का प्रयास करना नहीं है? ऐसे में इस प्रकार की शिक्षा को सिखाने और मानने के द्वारा कलीसिया में विभाजन और भेदभाव उत्पन्न करने की संभावनाओं को ले आना क्या परमेश्वर का कार्य होगा, या फिर शैतान का? क्या पवित्र आत्मा का बपतिस्मा कह कर इस जान बूझकर दी गई गलत शिक्षा और परमेश्वर के वचन की गलत व्याख्या पर बल देने में कोई भी सद्गुण अथवा आत्मिक उन्नति की संभावना है?


 - क्रमशः

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