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सोमवार, 11 मई 2020

पवित्र आत्मा को पाना – भाग 5 – उपसंहार


उपसंहार 

 हमने पवित्र आत्मा तथा पवित्र आत्मा को प्राप्त करने से प्रायः संबंधित विभिन्न शिक्षाओं तथा धारणाओं की सत्यता के बारे में अध्ययन किया है। जैसा उपरोक्त व्याख्या में प्रगट है, पवित्र आत्मा को प्राप्त करने से संबंधित इन आम शिक्षाओं का बाइबल से कोई आधार नहीं है और वे गलत हैं। परमेश्वर के वचन बाइबल से, हम कुछ बातों को सीखते हैं जिन्हें सदा ध्यान में रखना आवश्यक है, जिस से हम एक स्पष्ट और बाइबल के अनुसार सही विचार परमेश्वर पवित्र आत्मा के विषय रख सकें। 

पवित्र आत्मा परमेश्वर है, पवित्र त्रिएकत्व का एक व्यक्ति। उस की प्रत्येक मसीही विश्वासी के जीवन – आत्मिक तथा शारीरिक, में बहुत ही महतवपूर्ण भूमिका है, ऐसी भूमिका जिसे हलका नहीं किया जा सकता है, जिसे नज़रन्दाज़ नहीं किया जा सकता है, और जिसे महत्वहीन कह कर एक किनारे नहीं किया जा सकता है। स्वयं प्रभु यीशु मसीह के शब्दों में, वह हमारा परमेश्वर द्वारा प्रदान किया गया सहायक है जो हम में निवास करता है और सदैव हमारे साथ बना रहता है (यूहन्ना 14:16, 17), तथा हमें सब बातें सिखाता है, और सब बातें स्मरण करवाता है (यूहन्ना 14:26)। एक मसीही विश्वासी के जीवन में पवित्र आत्मा की भूमिका इतनी अनिवार्य, और इतनी लाभप्रद है कि स्वयं प्रभु यीशु ने उसे भेजा और अपने आप को एक ओर कर लिया कि वह उन के शिष्यों का दायित्व ले (यूहन्ना 16:7), जिस से कि वह उन्हें सत्य का मार्ग और आने वाली बातें बता सके (यूहन्ना 16:13)। 

पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन और सिखाए जाने के बिना, कोई भी परमेश्वर के वचन को उस की सत्यता और प्रभावी उपयोगिता के लिए सीख नहीं सकता है (1 कुरिन्थियों 2:9-15)। इस लिए जिसे भी परमेश्वर के वचन को सीखने और अध्ययन करने की सच्ची लालसा है, उसे यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि उस का मार्गदर्शन एवं सहायता करने के लिए पवित्र आत्मा उस के साथ है, अन्यथा वह सत्य को कभी नहीं सीख सकेगा, बस मानवीय विचार और बुद्धि की बातों में भटकता रहेगा, कभी सत्य की पहचान तक नहीं पहुँच पाएगा (2 तीमुथियुस 3:7)

हम विस्तार से देख चुके हैं कि पवित्र आत्मा को महिमान्वित करने के भेष में दी जाने वाली सभी बाइबल के प्रतिकूल और गलत शिक्षाओं के निहितार्थ कितने छलावों और खतरों से भरे हैं। परमेश्वर के वचन के अध्ययन करके सही निष्कर्षों तक पहुँचने के लिए, यह अनिवार्य है कि बाइबल के प्रत्येक खण्ड, प्रत्येक आयत, और उस के प्रत्येक भाग का उस के सही सन्दर्भ में तथा परमेश्वर के वचन में अन्य संबंधित शिक्षाओं को साथ ले कर अध्ययन किया जाए जिस से परमेश्वर के वचन की गलत समझ और गलत व्याख्या से बचा जा सके, क्योंकि परमेश्वर के वचन के सभी भाग एक दूसरे के पूरक ही हैं, वे कभी एक दूसरे का खंडन नहीं करते हैं। इस लिए ऐसी कोई भी बात जो संदर्भ में या अन्य संबंधित शिक्षाओं के साथ सहजता से सही नहीं बैठे, वह परमेश्वर के वचन से बाहर की बात है, और उसे स्वीकार नहीं करना चाहिए। और जबकि गलत शिक्षाएँ और झूठे सिद्धांत किसी आयत या उसके एक भाग, या किसी खण्ड को अलग से उस के सन्दर्भ से बाहर ले कर बिना बाइबल की अन्य संबंधित शिक्षाओं को ध्यान में रखे हुए एक विशेष विचार का समर्थन करने के लिए व्याख्या करने के द्वारा बनाई जाती हैं। 

शैतान भली-भाँति जानता है कि एक मसीही विश्वासी के जीवन में और जीवन के द्वारा पवित्र आत्मा के कार्यकारी होने का कितना महत्त्व है, और ऐसा होना उस की इच्छाओं तथा योजनाओं के लिए कितना घातक है। क्योंकि शैतान पवित्र आत्मा को मसीही विश्वासी के जीवन से निकाल तो नहीं सकता है, इस लिए वह प्रयास करता रहता है कि लोगों को बहला, फुसला, और बहका कर, उन्हें परमेश्वर द्वारा दिए गए इस सामर्थ्य और उपयोगिता के स्त्रोत के आज्ञाकारी एवं समर्पित न रहने दे। शैतान अच्छे से जानता है कि जैसे हव्वा के साथ, वैसे ही वह सरलता से हमें भी आकर्षक, लाभकारी, और अद्भुत प्रतीत होने वाली बातों के द्वारा फंसा कर बहका सकता है (उत्पत्ति 3:6), और इस प्रकार से परमेश्वर के वचन के तोड़ने-मरोड़ने और गलत व्याख्याओं के द्वारा हमें परमेश्वर के वचन से भटका कर दूर ले जा सकता है। इस लिए मसीही विश्वासी के जीवन में पवित्र आत्मा की भूमिका तथा आवश्यकता को समझने के लिए, और उस के विषय किसी गलत शिक्षा अथवा सिद्धांत में बहकाए जाने से बचने और सुरक्षित रहने के लिए, यह बहुत आवश्यक है कि हम कुछ बुनियादी सत्यों को अच्छे से समझ लें, और अपने आप को उन पर स्थिर और दृढ़ कर लें।ऐसी कोई भी शिक्षा या सिद्धांत जो इन बुनियादी बाइबल तथ्यों से सहजता से मेल नहीं खाती है या उन में सहजता से सही नहीं बैठती है, ऐसी कोई भी बात जिसे इन तथ्यों के अनुसार सही बैठाने के लिए कुछ तोड़ने-मोड़ने, और विशेष प्रयास करने की आवश्यकता पड़ती है, वह मनगढ़ंत है, और उस का तिरिस्कार किया जाना चाहिए।

ये बुनियादी तथ्य हैं: 

1. पवित्र आत्मा परमेश्वर है: वह मनुष्य के नियंत्रण में न तो है; और न ही उसे मनुष्य की इच्छाओं और विचारों के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य किया जा सकता है; तथा न ही उसे मनुष्य की अभिलाषाओं और अपेक्षाओं के अनुसार इधर-इधर किया जा सकता है। परमेश्वर के साथ हमारे संबंधों में, सदा ही परमेश्वर नियम बनाता है और सदा ही हम मनुष्य उन नियमों का पालन करते हैं।ऐसा कुछ भी जो इस बुनियादी नियम को पलटना या उसकी अनदेखी भी करना चाहता है वह परमेश्वर की ओर से नहीं हो सकता है।इस लिए ऐसी कोई भी शिक्षा जिस में ऐसे किसी सुझाव का संकेत मात्र भी है कि पवित्र आत्मा को बाध्य किया जा सकता है, उसे चालाकी से प्रयोग किया जा सकता है, या मनुष्य के किसी भी प्रयास के द्वारा उस से कुछ ऐसा करवाया जा सकता है जो परमेश्वर के वचन के अनुसार नहीं है, वह गलत शिक्षा है, अस्वीकार्य है, और उसे लेश मात्र भी स्थान नहीं दिया जाना चाहिए। 

2. पवित्र आत्मा व्यक्ति है, पवित्र त्रिएकत्व का एक भाग: पवित्र आत्मा कोई वस्तु नहीं है जिसे टुकड़ों में बाँटा जा सके, जिसे अधिक या कम किया जा सके, अथवा विस्तृत या संकुचित जा सके, या अंशों अथवा किस्तों में दिया और लिया जा सके। जिस प्रकार से इन में से कोई भी बात मेरे और आपके साथ नहीं की जा सकती है, क्योंकि हम व्यक्ति हैं, उसी प्रकार से ये उस के साथ भी नहीं की जा सकती हैं। जहाँ भी उस की उपस्थिति होगी, वह उस की सम्पूर्णता में होगी, न की टुकड़ों में अथवा खण्डों में। 

3. पवित्र आत्मा अपने लिए कोई महिमा नहीं लेता है, परन्तु सारी महिमा मसीह की ओर करता है: पवित्र आत्मा की भूमिका प्रभु यीशु मसीह की गवाही देना है (यूहन्ना 15:26), प्रभु की बातों को लेकर उन्हें हमें बताना है (यूहन्ना 16:15), प्रभु यीशु मसीह द्वारा कही गई बातों को सिखाना और स्मरण दिलाना है (यूहन्ना 14:26)। इस लिए जो यह कहते फिरते हैं कि उन्हें पवित्र आत्मा के द्वारा दर्शन और भविष्यवाणियाँ मिली हैं, ऐसी बातें जो कि बाइबल की बातों से बाहर होती हैं, वे सचेत हो जाएं – वे बहुत बड़े छलावे में हैं। लोगों को इस बात का एहसास होना चाहिए और उन्हें यह स्वीकार करना चाहिए कि, प्रभु यीशु के समान ही (यूहन्ना 8:26; 12:49), पवित्र आत्मा भी कभी अपने आप से कुछ नहीं कहता है, केवल वही कहता है जो वह सुनता है (यूहन्ना 16:13)। और जो भी वह कहता है वह सदा ही प्रभु यीशु को महिमा देने के लिए कहता है, कभी भी अपने आप को महिमा देने के लिए नहीं (यूहन्ना 16:14)। इस लिए ऐसा कोई भी विचार, धारणा, विश्वास, या व्यवहार जो प्रभु यीशु के स्थान पर पवित्र आत्मा को महिमा देने के लिए है वह पवित्र आत्मा की ओर से नहीं है, परमेश्वर की ओर से नहीं है; क्योंकि परमेश्वर कभी भी अपने आप का और अपने वचन का खण्डन नहीं करेगा। 

4. जैसा हम ने इस संपूर्ण लेख में देखा है, वास्तव में नया जन्म पाए हुए सच्चे मसीही विश्वासी पवित्र आत्मा का मंदिर हैं, न कि ऐसी टंकियाँ जो रिस सकती हैं या रिसती रहती हैं, जिन में से होकर कुछ समय या परिस्थितियों में पवित्र आत्मा रिस कर बाहर निकल जाता है। प्रत्येक सच्चे मसीही विश्वासी को पवित्र आत्मा उसी पल दे दिया जाता है जब वह मसीह यीशु में विश्वास लाता है, और तब से लेकर पृथ्वी पर उस की आख़िरी साँस तक पवित्र आत्मा उस में बसा रहता है उसके साथ बना रहता है। इस लिए मसीही विश्वास में आ जाने के पश्चात किसी भी प्रकार से पवित्र आत्मा को प्राप्त करने, या जीवन में पवित्र आत्मा की उपस्थिति की मात्रा को बढ़ाने या प्रभावी करने के लिए, कोई भी ‘बपतिस्मे’ अथवा ‘भरपूरी या परिपूर्णता’ कर पाने की बात गलत व्याख्या है, और बाइबल के सत्य का गलत प्रयोग है – ऐसा होना तो संभव है ही नहीं! पवित्र आत्मा की उन में विद्यमान उपस्थिति को और अधिक प्रमुख या बेहतर करने के लिए सच्चा मसीही विश्वासी जो कर सकता है, वह है उस के प्रति समर्पित तथा आज्ञाकारी बना रहे; वह जितना अधिक पवित्र आत्मा को उसे नियंत्रित एवं निर्देशित करने देगा, वह प्रभु के लिए उतना ही अधिक उपयोगी और सामर्थी बनेगा, और पवित्र आत्मा अपनी सामर्थ्य उस हो कर में उतना अधिक प्रगट करेगा। 

 समाप्त

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