यह दृष्टांत प्रभु यीशु द्वारा दिए गए दृष्टांतों
और शिक्षाओं में से, समझने और समझाने में, सबसे कठिन में से एक है। कठिनाई मुख्यतः
इस कारण है क्योंकि जो हम पढ़ते और देखते हैं उससे यह स्पष्ट है कि उस भण्डारी ने
गलत किया है, वह बेईमान रहा है, परन्तु फिर भी ऐसा लगता है मानो प्रभु उसकी
सराहना कर रहे हैं, और उसे अनुसरण के योग्य उदाहरण के समान
प्रस्तुत कर रहे हैं। यह कुछ सीमा तक सत्य भी है, परन्तु पूर्णतया नहीं।
इस दृष्टांत में प्रभु के अभिप्राय को समझने के
लिए हमें उस भण्डारी द्वारा प्रयुक्त बातों पर ध्यान देना होगा –योजना बनना, चतुराई, बुद्धिमत्ता, उद्देश्य या लक्ष्य साधना, और उचित कार्यविधि अपनाना, जिससे वह अपनी परिस्थिति का सर्वोत्तम उपयोग कर
सके। अन्त के पदों से, अर्थात 10 से 13 पदों से, यह बिलकुल स्पष्ट है कि प्रभु बेईमानी के विरुद्ध तथा गलत तरीकों से कमाए
गए धन के विरुद्ध है; अतः इसमें कोई संदेह नहीं है कि, यहाँ प्रभु अपने शिष्यों से न तो यह कह रहे थे और
न ही अभिप्राय दे रहे थे कि उस भण्डारी की बेईमानी अनुसरणीय है। किन्तु, निःसंदेह
भण्डारी ने जो किया प्रभु ने उसमें कुछ योग्य भी पाया, और इसलिए उन्होंने अपने शिष्यों से उससे कुछ सीखने और उन शिक्षाप्रद बातों
को अपने जीवनों में लागू करने के लिए कहा। जो प्रशंसनीय बातें प्रभु को उस भण्डारी
में दिखाई दीं वे थीं, जोखिम भरे समय में भी अपनी बुद्धिमता को
बनाए रखना, चतुर और बुद्धिमान होना, और योजनाबद्ध तरीके से अपने लक्ष्य को पूरा करना (लूका 16:3-4).
वह भण्डारी समझ गया था कि उसके हिसाब देने का समय
आ गया है (लूका 16:2); और वह अपने आते अन्त से भी अवगत था। किन्तु उसने न तो हिम्मत हारी और न ही
हार मानी; वरन जो भी समय और संसाधन उसे उपलब्ध थे
उसने उनका प्रयोग किया, और जो कुछ भी वह कर सकता था उसने किया, यह सुनिश्चित करने के लिए कि उसका भविष्य
अंधकारमय न रहे, परन्तु अच्छा हो जाए (लूका 16:5-7)। प्रभु अपने
शिष्यों को यही बात सिखा रहे थे (लूका 16:8), कि जैसे सँसार के लोग चतुर होते हैं शिष्यों को
भी चतुर होना चाहिए, और जो कुछ भी उनके पास है उसका, अपने
संसाधनों का उपयोग, उचित रीति से भली-भांति करना चाहिए। प्रभु
ने हमें मूर्ख या सरलता से धोखा खा जाने वाले होने के लिए नहीं बुलाया है, वरन चतुर और समझदार होने के लिए बुलाया है (मत्ती 10:16)। ऐसा नहीं है कि प्रभु हमें कुटिल या चालाक (बुरे
अभिप्राय में) बनाना चाहता है, परन्तु वह चाहता है कि हम अपनी परिस्थितियों का आंकलन करना सीखें, और फिर उसके अनुसार बुद्धिमत्ता से व्यवहार करें (लूका 12:56-58; लूका 14:25-33; मत्ती 10:23).
यह केवल प्रभु यीशु ही की, या केवल नए नियम की शिक्षा नहीं है। पुराने नियम
में, नीतिवचन की पुस्तक चतुर, बुद्धिमान, और
समझदार होने की शिक्षा के साथ आरंभ होती है (नीतिवचन 1:1-7); और तुरंत ही चतुर, बुद्धिमान, और समझदार
नहीं होने के दुष्परिणामों के विषय सचेत करती है (नीतिवचन 1:20-33)। दाऊद, जो परमेश्वर के मन के अनुसार व्यक्ति था, ने अपने दायित्वों के निर्वाह और
अपने प्राणों की रक्षा के लिए बुद्धिमानी से कार्य किया (1 शमूएल 18:5, 14,
30)। भजन 119:98-100 हमें दिखाता है कि कैसे परमेश्वर अपने अनुयायियों
को सँसार के लोगों से अधिक चतुर और सूझ-बूझ वाला बनाता है, और अपने वचनों के द्वारा अपने लोगों को चतुराई और बुद्धिमत्ता सिखाता है
जिससे, वे इन सदगुणों का उपयोग अपने दैनिक
जीवनों में, सँसार के लोगों और परिस्थितियों का
सामना करते समय करें, जिससे प्रभु के लिए जीने और उसके गवाह
होने के अपने उद्देश्यों को पूरा कर सकें।
प्रभु के शिष्यों का सदैव यही प्रयास रहना चाहिए
कि वे परमेश्वर के राज्य में अपना अनन्तकाल बिताने के लिए आदर के साथ प्रवेश करें; अर्थात, दूसरे शब्दों में, भले प्रतिफलों के साथ प्रवेश करें, जिन्हें वे अनन्तकाल में उपयोग करेंगे। अपने
पृथ्वी के समय में, अन्हें अच्छी योजनाएं बनाकर, चतुराई और
बुद्धिमता के साथ प्रभु के लिए जीवन जीने और गवाही देने के उद्देश्य की पूर्ति
करते रहना चाहिए, तथा इस कार्य के लिए जो अवसर परमेश्वर
उन्हें प्रदान करता है उनका भली-भांति उपयोग करना चाहिए। प्रभु यीशु के समान ही, प्रभु के शिष्यों को भी परमेश्वर की ओर से उन्हें
सौंपे गए उद्देश्यों को पूरा करने में दृढ़ बने रहना चाहिए (लूका 9:51-52); और पौलुस के समान, सभी शिष्यों को अपने
कार्यों को योजनाबद्ध तरीके से करना चाहिए (2 कुरिन्थियों 1:17)
तथा किसी न किसी प्रकार से
प्रभु के लिए उपयोगी होने के लिए प्रयासरत तथा सक्रीय रहना चाहिए, बजाए इसके कि निष्क्रीय रहकर बातों के होने की
प्रतीक्षा करें (प्रेरितों 16:6-10).
स्वर्ग में प्रवेश, अर्थात हमारा उद्धार, प्रभु में विश्वास लाने तथा अपने पापों से पश्चाताप
करने और प्रभु से उनकी क्षमा प्राप्त करने के द्वारा, केवल परमेश्वर के अनुग्रह ही से है। परन्तु हमारे अनन्तकाल के लिए प्रतिफल
हमें परमेश्वर द्वारा हमारे कर्मों के आधार पर प्रदान किए जाते हैं; मसीही विश्वासियों, अर्थात नया जन्म पाए हुए परमेश्वर की संतानों का न्याय, उनके उद्धार पाने के लिए नहीं वरन उन्हें प्रतिफल
प्रदान करने के लिए है, और कुछ ऐसे भी होंगे जो अनन्तकाल के लिए
स्वर्ग में छूछे हाथ प्रवेश करेंगे (1 कुरिन्थियों 3:12-15).
चतुर भण्डारी के दृष्टांत के द्वारा प्रभु अपने
शिष्यों को सिखा रहे हैं कि वे परिस्थितयों से कभी न घबराएं, चतुर और बुद्धिमान बनें, अपने उद्देश्य पर दृष्टि गड़ाए रखें और उस उद्देश्य को पूरा करने में
प्रयासरत रहें। परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी कठिन या निराशाजनक क्यों न हों, शिष्यों को चतुराई और बुद्धिमता के साथ उपयुक्त
कार्यविधि को अपनाना चाहिए,
जैसा कि उस भण्डारी ने किया, और विकट परिस्तिथियों को भी अपने पक्ष में मोड़
लिया। प्रभु के शिष्यों को अपनी सांसारिक धन-संपदा का उपयोग ऐसी रीति से करना
चाहिए कि 'जब वह जाता रहे,’ या चला जाए, अर्थात पृथ्वी के उनके समय के पूरे होने
पर, वे लोग जिन्हें शिष्यों के धन और
संसाधनों के द्वारा पृथ्वी पर लाभ पहुँचा, वे उन शिष्यों के आदर के साथ अनन्तकाल में प्रवेश का कारण बन जाएँ (लूका 16:9)।
इस दृष्टांत के द्वारा प्रभु हमें बेईमान होना
नहीं सिखा रहा है, वरन बिना निराश हुए, बिना हार माने, चतुर
और बुद्धिमान होना, अपने उद्देश्य की पूर्ति की कार्यविधि पर
अपना ध्यान केंद्रित रखना,
और बुद्धिमता के साथ अपनी परिस्थितियों
का प्रयोग करना सिखा रहा है, जिससे हम अपने अनन्तकाल के लिए प्रतिफल बनाए रखें और उन्हें
अधिक बढ़ा सकें।