मत्ती 11:12 बाइबल के पेचीदा खण्डों में से एक है, और विभिन्न व्याख्या कर्ताओं
ने इसे विभिन्न अर्थ दिए हैं।
ऐसे खण्डों को समझने के लिए, इस बात को ध्यान में
रखना होता है कि भाषा और शब्दों के प्रयोग तथा उनके अर्थों में, समय के साथ
परिवर्तन आते रहते हैं, और बीते समय में शब्द का जो अर्थ हुआ करता था (मूल एवं अनुवादित
भाषा, दोनों में), आवश्यक नहीं कि आज भी
वही अर्थ या वैसा ही प्रयोग उतना ही उचित माना जाए।
इस पद को समझने में आने वाली कठिनाई का एक कारण
है यहाँ प्रयुक्त हुए शब्द ‘बलपूर्वक’
तथा ‘बलवान’; और सामान्यतः हमारे
द्वारा इन शब्दों को एक नकारात्मक अर्थ के साथ देखना। मूल यूनानी भाषा के जिन शब्दों का अनुवाद ‘बलपूर्वक’ और ‘बलवान’ हुआ है, उनके अन्य अर्थ ‘सशक्त’ और
‘दृढ़ता पूर्वक’ भी हो सकते हैं।
अब यदि इन अन्य अर्थों के प्रयोग के साथ इस पद के वाक्य को बनाया जाए, तो वह कुछ इस प्रकार का होगा: “और यूहन्ना बपतिस्मा
देने वाले के दिनों से लेकर अब तक प्रतिबद्ध लोग स्वर्ग के राज्य में सशक्त
प्रयासों के द्वारा दृढ़ता पूर्वक के साथ प्रवेश करते जा रहे हैं” (मत्ती
11:12 भावानुवाद); और यह इस पद को एक
अन्य इसी से संबंधित पद “व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता यूहन्ना तक रहे, उस समय से परमेश्वर के राज्य
का सुसमाचार सुनाया जा रहा है, और हर कोई उस में प्रबलता से प्रवेश करता है” (लूका 16:16) के अधिक समरूप
बना देता है।
इस पृष्ठभूमि के साथ,
इस पद की एक संभव व्याख्या तथा समझ इस प्रकार व्यक्त की जा सकती है: “जब से यूहन्ना बपतिस्मा
देने वाले ने पश्चाताप करने और पश्चाताप के बपतिस्मे को लेने का आह्वान किया है, तब से लेकर अब तक, जितनों ने भी इस
आह्वान को स्वीकार किया है, उन्होंने ऐसा मन में पक्का ठान कर तथा दृढ़ संकल्प के
साथ किया है, इस निश्चित प्रयास के साथ कि समस्त प्रतिरोध का सामना करेंगे और इस बुलाहट
में दृढ़ निश्चय के साथ बने रहेंगे।”
किन्तु यहाँ पर साथ ही एक अन्य बात का भी ध्यान रखना चाहिए, जब प्रभु यीशु मसीह
ने ये शब्द कहे थे, उस समय तक अनुग्रह
के द्वारा उद्धार के युग का आरंभ नहीं हुआ था और लोग उस समय परमेश्वर को स्वीकार्य
होने के लिए व्यवस्था पर आधारित कर्मों की धार्मिकता पर ही विश्वास रखते तथा पालन
करते थे, और इस लिए उनका मानना था कि परमेश्वर को ग्रहण योग्य होने के लिए उन्हें व्यवस्था
के अनुरूप, प्रबल और सशक्त प्रयास करना आवश्यक है। साथ ही,
प्रभु यीशु ने यहाँ पर बहुत विशिष्ट वाक्य प्रयोग किया है “और यूहन्ना बप्तिस्मा
देने वाले के दिनों से लेकर अब तक ”, जो उनकी बात को एक निश्चित समय सीमा के साथ जोड़
देता है; और इस के पश्चात न तो किसी सुसमाचार लेख में और न ही किसी भी पत्री में इस
अभिव्यक्ति (‘बल पूर्वक’
या ‘सशक्त’ या ‘दृढ़ता पूर्वक’ होना) को परमेश्वर के राज्य
में प्रवेश पाने के लिए पूर्व-आग्रह या शर्त के समान फिर कहीं नहीं कहा गया है। इसलिए
इस पद के आधार पर यह निष्कर्ष निकालना कि परमेश्वर के राज्य में प्रवेश प्राप्त
करने के लिए स्वयं के द्वारा किए गए प्रबल प्रयास आवश्यक हैं अनुचित है, पद की गलत व्याख्या है।
किन्तु परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा उसकी नया जन्म प्राप्त की हुई संतान
के लिए, जिन्होंने अपने पापों से पश्चाताप कर के प्रभु यीशु मसीह को अपना
व्यक्तिगत उद्धारकर्ता स्वीकार किया है,
उनके लिए मसीही विश्वास में उन्नत होते जाने तथा अपनी मसीही बुलाहट की पवित्रता को
बनाए रखने के लिए,
सशक्त और दृढ़ प्रयास करते रहना सदा ही अनिवार्य रहे हैं, जैसा कि हम पौलुस की सेवकाई से देखते हैं जिसने अपने
आप को सब कुछ सहते हुए भी दृढ़ता के साथ अनुशासन में बनाए रखा, और यही शिक्षा अपने
युवा सहकर्मी तिमुथियुस को भी दी (1 कुरिन्थियों 9:24-27, 2 तिमुथियुस
2:3-5 & 4:7)।
दूसरे शब्दों में, हमारे लिए जो इस अनुग्रह के युग में रहते हैं, उद्धार पाना और
परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के हकदार होना हमारे अपने किसी प्रयास से नहीं
है वरन पूर्णतः परमेश्वर के अनुग्रह और प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास लाने से है। परन्तु मसीही विश्वास में आ जाने के पश्चात, उस में उन्नत एवं परिपक्व
होते जाना तथा प्रभु के लिए सक्रिय एवं प्रभावी होना हमारे सशक्त एवं दृढ़ बने रहकर
प्रतिरोध का सामना करने के निश्चय बनाए रखने तथा अपने विश्वास को सतत प्रयास के
साथ निभाते रहने की माँग करता है।