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शनिवार, 28 नवंबर 2009

सम्पर्क मई २००९: सम्पादकीय

एक बार फिर सम्पर्क आपके साथ आपके हाथ में है। यह सिर्फ आपकी प्रार्थनाओं का परिणाम है।
कभी तो नौ साल के बच्चे की भी मौत से मुलाकात हो जाती है और कभी ९० साल तक मौत का इंतिज़ार करना पड़ता है। जीवन निश्चित नहीं है पर मौत निश्चित है। संसार अपनी आखिरी सांसों पर टिका है।

दो हज़ार वर्षों से जो मंडलियाँ संसार को यह सण्देश दे रही हैं कि मन फिराओ, क्योंकि परमेश्वर का राज्य निकट है, अब अन्तिम पलों में प्रभु को इन्हीं से कहना पड़ रहा है कि अब तो तुम्हें ही मन फिराने की आवश्यकता आ गयी है। प्रकाशितवाक्य ३:१५ में प्रभु कह रहा है “मैं तेरे कामों को जानता हूँ।” वह मेरे और आपके सब कामों को जानता है। यूहन्ना ५: में प्रभु कहता है कि “मैं तुम्हें जानता हूँ कि तुममें परमेश्वर का प्रेम नहीं।” फिर वह २ कुरिन्थियों ५:१० में कहता है कि यह ज़रूरी है कि मेरे और आपके काम एक दिन सबके सामने खुलेंगे। जी हाँ, उस दिन अगर यह पाप धुले हुए नहीं होंगे, तो फिर ज़रूर सबके सामने खुले हुए होंगे।

किसी ने पूछा कि दुनिया का सबसे बड़ा झूठ क्या है? उत्तर मिला, यह कहना कि “मैं झूठ नहीं बोलता।” प्रभु का वचन कहता है कि “यदि हम कहें कि हममें कुछ भी पाप नहीं ... तो हम परमेश्वर को झूठा ठहराते हैं” (१ यूहन्ना १:८,१०)। प्रकाशितवाक्य २:५ में वह पूछता है “देख तो सही कि तू कहाँ से गिरा है?” फिर वह कहता है कि मैंने तुझे मन फिराने का मौका दिया है ताकि तू सब का सब लौटा ले आये। आने वाली रात में उपयोगी होने वाले दीये को दिन ढलने से पहिले संवार लेने में ही समझदारी है “क्योंकि वह रात आने वाली है जिसमें कोई काम नहीं कर सकता” (युहन्ना ९:४)।

जहाँ परमेश्वर के लोगों की आँखें परमेश्वर से हटीं, वहीं उनके जीवन में कोई दुर्घटना घटी। पहिले आदमी की आँखें जैसे ही परमेश्वर के वचन से हटीं वैसे ही संसार की सबसे बड़ी दुर्घटना घटी। परमेश्वर ने उसे अपनी बारी का माली बनाया था ताकि वह उसकि देखभाल करे और उसकी रक्षा करे (उत्पत्ति २:१५)। पर शैतान ने उस माली को मालिक बनने का ख़्वाब दिखाकर (“तू परमेश्वर के तुल्य हो जायेगा” उत्पत्ति ३:५) बहका दिया और परमेश्वर से दूर कर दिया। प्रभु यीशु ने अपने समय में एक ऐसी ही कहानी के द्वारा, जहाँ बारी के कुछ माली मालिक बनने की इच्छा में मालिक के उत्तराधिकारी का कत्ल कर देते हैं, उस समय के धर्मगुरों को उनके अनुचित व्यवहार और उसके परिणाम के बारे में जताया (मत्ती २१:२३-४६)। इस अंतिम युग में भी एक बारी बनायी गयी और उस बारी की ज़िम्मेदारी भी सेवकों को दी गयी। अब वे सेवक अपने आप को मालिक समझने लगे हैं और उन्होंने मालिक को निकाल कर बाहर कर दिया है। पर आज वह मालिक द्वार पर खड़ा खटखटा रहा है, अन्दर आना चाहता है, फिर से उन सेवकों के साथ संगति करना चाहता है - “देख मैं द्वार पर खड़ा खटखटाता हूँ, यदि कोई मेरी आवाज़ सुनकर द्वार खोलेगा तो मैं अन्दर आकर उसके साथ भोजन करूंगा और वह मेरे साथ।” (प्रकाशितवाक्य ३:२०)। उसने आप को और मुझे इस जीवन के लिये माली ठहराया है ताकि हम मालिक के लिये फल लायें (यूहन्ना १५:८, १६)। हमने परमेश्वर की इच्छाओं को अपने जीवन से बाहर कर दिया है ताकि हम अपनी इच्छाएं पूरी कर सकें। पर प्यारा प्रभु अभी भी हम से उम्मीद रखता है, वह द्वार पर खड़ा हुआ आज भी हमारा इंतिज़ार कर रहा है।

जीवन एक मौका है, खोने या पाने का। मैंने भी बहुत बार हारा हुआ जीवन जीया है। मेरे पास कोई उम्मीद ही बाकी नहीं बची थी। पर मेरे साथियों ने मेरी कमज़ोरियों का तमाशा नहीं बनाया। उन्होंने प्रभु के उस बड़े प्रेम में होकर, अपनी प्रार्थनाओं और परमेश्वर के वचन से मुझे फिर उभार लिया। यही आज मैं आप के साथ कर रहा हूँ। परमेश्वर के साथ आपके सम्बंध कैसे हैं? कहीं उससे कोई मनमुटाव तो नहीं चल रहा? यदि ऐसा है तो समय रहते ठीक-ठाक कर लीजीये। इससे पहिले देर हो जाये, जाग जाओ। मेरा फर्ज़ है आवाज़ लगाना। कोई जागता है या नहीं यह मेरे बस की बात नहीं है। ज़िन्दा पाप मन में कभी मरते नहीं हैं, ज़िन्दा पाप हमारी आशीशों को मारते हैं। पाप के इन जीवाणुओं को मार पाना किसी इन्सान या इन्सानी कार्य के बस में नहीं, इन्हें तो मसीह की मौत ही मार सकती है और मारती है-उनके अन्दर से जो मसीह की मौत को अपने अनन्त जीवन का मार्ग बना लेते हैं।

अब प्रभु की दया की दुहाई देने का वक्त है, अभी प्रभु की क्षमा आपके लिये उपलब्ध है। केवल एक सच्चे मन से की गई एक प्रार्थना - “हे यीशु, मेरे पाप क्षमा कर; मुझे सुधार दे, मुझे एक बार फिर उभार दे” न सिर्फ आपके वर्तमान को, वरन आपके अनन्त को भी बदलने की क्षमता रखती है।

आपकी प्रार्थनाओं और आपके सहयोग से सम्पर्क यहाँ तक आ पाया है। आपका इतना प्यार, इतने पत्र, फोन और सुझाव मुझे हिम्मत देते आये हैं, विनती है कि इस प्रेम और सम्पर्क को ऐसे ही बनाये रखिये। आपकी प्रार्थनाएं और प्रभु का आसरा सम्पर्क को उसके साहिल तक पहुंचाएगा।

प्रभु में आपका,
“सम्पर्क परिवार”

शनिवार, 21 नवंबर 2009

सम्पर्क दिसम्बर २०००: बात मौत के बाद की!

इस संसार के लिये मृत आत्माओं के देश से एक संदेश भेजा है - “जो कुछ सच्ची बातों से भरी पुस्तक में लिखा है वह मैं तुझे बताता हूँ (दानिय्येल १०:२१)।” “ऐसा न हो कि वे भी इस पीड़ा की जगह में आयें (लूका १६:२८)।” बहुतों के लिये स्वर्ग और नर्क एक नानी की कहनी सी है। बाईबल का दावा है कि उसमें लिखी एक भी बात झूठी नहीं है, कर सको तो कोई भी बात झूठी सबित करके दिखाओ। बाईबल के विरोधि एक नास्तिक वैज्ञानिक ने स्वीकारा कि यह एक अजीब सी बात है, इस किताब की भविष्यवाणी इतनी सत्य कैसे हैं? वह बाईबल को झूठा साबित कर नहीं पाया और अपने अहम के कारण प्रत्य्क्ष सत्य को स्वीकारना भी नहीं चाहा।

जीवन ही अकेला सत्य नहीं है। मौत भी उतना ही बड़ा सत्य है; और मौत के बाद आपकी हर बात का न्याय होना भी एक कड़ुवा सत्य है। इस सत्य से बचकर भागना मनुष्य की सीमाओं से बाहर है। इस सत्य को इन्सान नज़रंदाज़ कर सकता है, मिटा नहीं जा सकता, हटा नहीं सकता। “मनुष्य के लिये एक बार मरना फिर न्याय का होना अनिवार्य है - इब्रानियों ९:२७”

हमारे दिमाग़ की अपनी सीमाएं हैं, हम दिमाग़ी तौर पर बहुत बौने हैं। मौत के बाद की बात देख नहीं पाते। चिता हमें क्या चिताती है? वह हमारी सोई चेतना को जगाती है और कहती है कि तू भी एक दिन ऐसे ही जाएगा। मौत का कोई खास मौसम नहीं होता, न ही कोई खास उम्र और न ही कोई खास समय। शाम को हर कोई घर लौट कर नहीं आता, न ही हर एक स्वयं घर आ पाता है। कुछ लोगों को कुछ लोग उठा कर लाते हैं, फिर उठा कर ले जाने के लिये। कोई एक ऐसी ही शाम हमारे नाम की भी होगी। पर उसके बाद क्या होगा? परमेश्वर का वचन मौत की सीमाओं से आगे दिखाता है; और उससे पहिले हमारे दिल को हमें दिखाता है “क्योंकि वह आप ही जानता है कि मनुष्य के दिल में क्या है (यूहन्ना २:२५)।” एक दिन की बात है सुबह-सुबह हम अध्यापक हाज़िरी के रजिस्टर पर हस्ताक्षर कर रहे थे। बातों बातों में एक अध्यापक ने एक दूसरे अध्यापक से कहा ‘दास सहब आपके बाल तो बिल्कुल सफेद हो गये हैं।’ तभी एक और अध्यापक ने चुटकी ली ‘दास सहब के बाल ही सफेद हुये हैं दिल तो अभी भी वैसे का वैसा ही काला है।’ था तो यह मज़ाक पर सत्य था। आदमी का मन बहुत काला है। हम मन के तहखाने में बहुत सी शर्मनाक बातें छुपाकर रखते हैं। हमारा मन छुपकर बहुत से घिनौने विचारों से खेलता है, उनका मज़ा लेता है। हम अपने विचारों को जैसे ही आवारा छोड़ते हैं, वैसे ही वो विचार अपराधी बन जाते हैं।

आपके पास ऐसी पारखी आँखें नहीं हैं जो मन के भीतर झाँक सकें। आप कैसे ही क्यूँ न दिखते हों, प्रभु आपके मन को जानता है; क्योंकि उसने सृष्टि को रचा है और उसे उसका सम्पूर्ण ज्ञान है। उसको हमारे हर एक पल की और हर एक कल की खबर है। उसे मालूम है कि हम क्या क्या सोचते और क्या क्या करते हैं। वह हमारा शर्मनाक इतिहास जानता है। वह हर उस हरकत को जानता है जो आपने शर्म की सीमाओं को लाँघकर करी है, या जिसका विचार किया है और उसमें मज़ा लिया है। अपने अन्दर झाँक कर देखियेगा कि इस बात में कितना सत्य है। न जाने कितने काले कारनामों का इतिहास अपने सीने में छुपाकर, हम एक शरीफ इन्सान की तरह जीते हैं, वह हमारी और हमारी शराफत की हर हकीकत को जानता है।

आज बहुत सी माताएं हैं, जिन्होंने अपने उन बच्चों की हत्या कर दी है जो न चिल्ला सकते हैं, न कुछ बोल सकते हैं। आज माँ ही अपने बच्चों के साथ ऐसे भयानक ज़ुल्म कर रही है कि अपने पेट में ही गर्भपात करवा कर उन्होंने उन्हें मरवा रही है। उन्हें इस बात का एहसास ही नहीं होता कि उन्होंने हत्या का घिनौना पाप किया है। इस अन्तिम युग की त्रासदी यही है - पाप का एहसास ही इन्सान के जीवन से समाप्त हो चुका है। संसार के बुद्धीजीवियों के मुताबिक कोई परमेश्वर नहीं है। स्वर्ग नरक जो कुछ भी हो यहीं इस पृथ्वी पर ही है। क्योंकि वे सच्चे और न्यायी परमेश्वर को मानते ही नहीं इसिलिये पाप के परिणामों की चिन्ता भी उन्हें नहीं है। संसार अपनी बुद्धिमता पर इतराता है, कहता है:

मौज लो, मस्ती से जीओ,
भलाई को रौन्दकर,
मलाई मारते चलो,
बढ़े चलो, बढ़े चलो।


ईमानदार व्यक्ति को बेवकूफ कहा जाता है, दूसरों को धोख देना समझदारी कहलाती है। गरीब लोग वहशियों के शहरों में सहमें हुए से जीते हैं, दुराचरियों का सामना करने की हिम्मत जुटा पाना दुर्लभ होता जा रहा है। आदमी कोरे स्वार्थ में ढलता जा रहा है।

हमारी पृथ्वी भी कफी बूढ़ी हो चली है, उसकी भी समय सीमा समीप आ पहुँची है। इतनी गन्दगी ढोने की क्षम्ता उसमें नहीं है। हमने उसके जल, वायु, मिट्टी सब को दूषित कर डाला है, उसपर हमारे भयानक पापों का भार है। “सृष्टि करहा रही है और अपने छुटकारे की आशा देखती है (रोमियों ८:२२)।” सब वैज्ञानिक कहते हैं कि हमने पृथ्वी को बरबाद कर डाला है। बड़ी अजीब बात है कि हम बरबादी के कगार पर खड़े हैं फिर भी इतनी लपरवाही से जी रहे हैं। आदमी में एक अजीब सी प्यास है, जिसे वह पैसे से, अशलीलता और कामुक्ता से, तरह तरह के नशीले पदार्थों के सेवन से, स्वार्थ सिद्धी से बुझाने को जूझ रहा है, लेकिन असफल है। कोई बेरोज़्गारी से तो कोई परिवरिक परिस्थितियों और अशाँति से हताश है। आदमी भीतर से बहुत बेचैन है, अशाँत है। सोचता है कि क्या करूँ, कैसे करूँ; बस अब बहुत हो चुका है, अब और नहीं सहा जाता; कहाँ जाऊँ, कैसे जीऊँ। लेकिन उसका कोई प्रयास स्थायी शाँति नहीं देता। बेचैनी फिर लौट लौट कर आती है। भारत में ही लगभग ५ करोड़ व्यक्ति भारी मनसिक तनाव (डिप्रैशन) के रोगी हैं और एक लाख आदमी आत्महत्या करते हैं। लाखों आत्महत्याओं की तो रिपोर्ट दर्ज ही नहीं कराई जाती है। आदमी ज़्यादा अशान्त, उग्र, क्रोधी, तनावग्रस्त होता जा रहा है। हमारे पारिवारिक रिशतों में दरारें हैं। राजनैतिक समज की दशा यह है कि हमारे एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री ने स्वयं कुछ इस तरह लिखा है कि राजनेता सबकुछ करते हैं, सिर्फ जनता की भलई को छोड़कर।

धर्म ने हमें आपस मेंबाँट डाला है। धर्म के नाम पर हर साल हज़ारों बड़ी बेरहमी से काट डाले जाते हैं। बलात्कार, उग्रवाद, रिशवत, हत्याओं और अपराध ने हमारे समाज को दीमक की तरह खोखला कर दिया है। आखिर कहीं तो अन्त होगा, यह खोखला ढाँचा कभी न कभी तो चरमरा के ढहेगा। समझने वाला दिमाग़ और देखने वाली आँखें चाहिये, अन्त तो अब बिल्कुल समीप खड़ा है। बाईबल क्या कह रही है, “सुनो यहोवा(परमेश्वर) पृथ्वी को निर्जन और सुनसान करने पर है (यशायह २४:१); पृथ्वी शून्य और सत्या नाश हो जाएगी (यशायह २४:३)।” लेकिन परमेश्वर ऐसा क्यों करेगा? जवाब इस पद में लिखा है “पृथ्वी अपने रहने वालों के कारण अशुद्ध हो गई है, इस कारण पृथ्वी को श्राप डसेगा (यशायह २४:५,६)।” जैसे ही परमेश्वर का धैर्य टूटेगा, उसका कोप बरसेगा। तब उसकोकोई रोक न सकेगा। बरबादी अब पास ही तैयार खड़ी है।

“निश्पाप तो कोई मनुष्य नहीं है (१ राजा ८:४६)।” हाँ एक भी नहीं, सबने पाप किया है। जहाँ पाप है वहाँ श्राप है, जहाँ श्राप है वहाँ बेचैनी है। जब तक पाप से पीछा नहीं छूटेगा श्राप तब तक पीछा नहीं छोड़ेगा। यदि पाप से पीछा नहीं छूटा तो पाप का श्राप मौत के बाद भी पीछा नहीं छोड़ेगा। सच मानियेगा, प्रभु यीशु बहुत ही प्यारा परमेश्वेर है, बहुत कुछ सह लेता है। सब कुछ क्षमा करने का दिल रखता है। वह आपको प्यार करता है। वह आपको आपके पाप गिनाने नहीं आया, वह सिर्फ आपके पाप माफ करने आया है। संसार में कोई ऐसा पापी व्यक्ति नहीं है जिसे वह मफ न कर सके। उसी के सीने में ऐसा दिल है। आप मने या न माने, पर यही बात मानने के योग्य है कि वह पापियों को क्षमा देने के लिये आया है। आप पपों से क्षमा पाएं सिर्फ इसलिये उसने क्रूस पर अपनी जान दी। जब वह क्रूस पर उस भयानक पीड़ा में तड़प रहा था, तब भी उसकीपहली प्रार्थना यही थी कि “हे पिता इशें क्षमा कर क्योंकि यह नहीं जानते कि यह क्या कर रहे हैं (लूका २३:३४)।” प्रभु यीशु का एक ही मकसद है कि आप नाश न हों परन्तु अनन्त जीवन और आनन्द पाएं।

सहज सी बात है, क्षमा चाहिये तो क्षमा माँगिये। पृथ्वी पर प्रभु को क्षमा देने का अधिकार है (मरकुस २:१०)। जब तक आप पृथ्वी पर हैं आप क्षमा की भूमी पर हैं। पृथ्वी से विदा लेते ही क्षमा की सीमा समाप्त हो जाती है, न्याय की सीमा शुरू हो जाती है। अब सवाल यह है कि आप इस पृथ्वी पर कब तक हैं? इसका उत्तर तो सिर्फ परमेश्वर के पास है, किसी मनुष्य के नहीं। इसीलिए जब तक अवसर उपलब्ध है, क्षमा माँग लें; किसे पता है कि अगला पल क्या हो जाए।

सत्य वचन बाइबल हमें एक सत्यकथा बताता है। मौत के बाद की बात बताता है, अन्त और अनन्त के बीच से पर्दा हटाकर दिखाता है, कब्र के बाद की बात हमसे कहता है। एक बहुत धनवान व्यक्ति था, जब वह मरा तो उसका बहुत महँगा अन्तिम संस्कार हुआ। यहाँ आँखें बन्द हुईं और वहाँ खुलीं तो उसने अपने आप को बहुत भयानक पीड़ा में तड़पता हुआ पाया (लूका १६:१९-२३)। वहाँ उसके पास इतना भी नहीं था कि अपनी उस जलने की पीड़ा को कम करने के लिये एक बूँद पानी भी उसे मिल सके। ब उसे मालूम हुआ कि बहुत देर हो चुकी है, अब कुछ नहीं हो सकता। तब उसे अपने परिवार जनों का ध्यान आया और वह उनके लिये वहाँ से चिल्लाया “ऐसा न हो कि वे भी इस पीड़ा की जगह में आएं (लूका १६:२८)।” उसे मालूम था, उसने सुना था, अब उसे ध्यान भी आया कि मन फिराने से अर्थात पापों की क्षमा पा लेने से इस भयानक पीड़ा से बचा जा सकता था। पर उसने उस समय इस सच्चाई को बकवास जानकर इस पर विश्वास नहीं किया, समय रहते अम्ल नहीं किया (लूका १६:३०)। अब मौत के बाद पाप से पछाताने का कोई अर्थ ही नहीं रह गया था। इस अमीर व्यक्ति को स्वर्ग तो संसार में ही दिखता था, पर जब सच्चाई समझ में आई, क्षमा का समय निकल चुका था। भले ही आप विश्वास करें या न करें, सच्चाई यही है।
प्रभु यीशु पपों से क्षमा देने के लिये आया, कोई धर्म देने के लिये नहीं। धर्म बदल्ने के विचार को दफनाकर प्रभु के पास पापों की क्षमा वा अनन्त जीवन पाने के लिये आईये। उससे कहिये ‘हे प्रभु यीशु मुझ पापी पर दयाकर, मेरे पाप क्षमा कीजिये, मुझ बेचैन और अशान्त जन को अपनी शान्ति दीजिये। मैं विश्वास करता हूँ कि आप मेरे पापों की क्षमा के लिये क्रूस पर मरे और तीसरे दिन जी उठे। मुझे अपने पवित्र लहू से धोकर शुद्ध करें।’ उसका वायदा है कि जो कोई भि उसको पुकारता है प्रभु की क्षमा उसके लिये है”क्योंकि हे प्रभु तू भला और क्षमा करने वाला है, जितने तुझे पुकारते हैं उन सभों के लिये तू अति करुणामय है (भजन ८६:५)।”

आज शायद पाप आपको बहुत आकर्शक लगे, बहुत फायेदेमन्द हो, ज़रूरी लगे या मजबूरी लगे; पर उस पाप का श्राप आपको न यहाँ चैन से जीने देगा और न यहाँ से जाने के बाद यह श्राप आपका पीछा छोड़ेगा। आपकी एक पश्चाताप की प्रार्थना आपकी समझ से बहर काम करेगी, आपको तराशकर एक नये जीवन के साथ खड़ा कर देगी। आप खुद ही कह उठेंगे, क्या मैं वही आदमी हूँ? प्रभु को परख कर देखिये, प्रभु की क्षमा कॊ स्वीकारिये। आज तक जो भी सच्चे पश्चाताप और स्मर्पण के साथ उसके पास आया है, कभी निराश नहीं गया।

अब हम साल के अन्त में खड़े हैं। समय हमारी पकड़ से बाहर है। समय का कुछ पता नहीं कि कब हमारा ही समय आ जाये? क्यों नहीं क्षमा के लिये प्रभु की ओर हाथ उठाते? एक बार उससे कह कर तो देखिये कि हे प्रभु यीशु मसीह मुझ जीवन से हारे बेचैन और निराश व्यक्ति पर दया कीजिये, मुझ पापी पर दया कर मेरे पाप क्षमा कीजिये।

रविवार, 15 नवंबर 2009

सम्पर्क दिसम्बर २०००: उस प्रभु ने मेरा धर्म नहीं, जीवन बदला है

मैं श्याम नारायण हूँ जो अपको अपनी आप बीती बताने जा रहा हूँ। मेरा जन्म एक सामन्य से परिवार में हुआ। मेरा गाँव ऊँचडिह जिला इलाहबाद, उत्तर प्रदेश में है। मेरे माता -mता ईश्वर के पक्के भक्त थे। प्रातः जब तक नहा धोकर पूजा पाठ नहीं कर लेते थे, तब किसी से बात तक नहीं करते थे। यह देखकर मुझमें भी ईश्वर को देखने की प्रबल इच्छा जन्मी। एक दिन मैंने पिताजी से पूछा ‘ईश्वर कहाँ है?” उन्होंने एक आकृति की तरफ इशारा करके कहा, ये है ईश्वर। मैंने पूछा वे कहाँ रहते हैं? पिताजी ने मुझ से कहा अभी तू जानने योग्य नहीं है। पिताजी के एक धार्मिक गुरूजी से भी मैंने यही सवाल किया, उनका उत्तर था कि ईश्वर की प्राप्ति बड़ी तपस्या से हो पाती है। उनकी बताई विशेष पूजा और २१ दिन के उपवास को पूरा करने के बाद, २१वें दिन मैं ईश्वर की जय बोलकर बाढ़ से भरी हुई नदी में कूद गया, और डूबने लगा। बड़ी मुशकिल से लोगों ने मुझे बचाया, पर ऐसा दुर्भाग्य मेरा कि फिर भी मुझे ईश्वर की प्राप्ति नहीं हुई। तत्पश्चात मैंने घनघोर जँगल के एकाँत में जाकर, एक पेड़ के नीचे बैठकर तप्स्या की और गुरूजी का दिया हुआ मंत्र जपने लगा, पर फिर भी कुछ नहीं हुआ। फिर मैं एक बड़े महातीर्थ स्थान में गया, जहाँ बड़े पहुँचे हुए धार्मिक गुरू आते हैं। वहाँ पर मैंने उन धार्मिक गुरुओं से भी ईश्वर प्राप्ति का उपाय पूछा। उन्होंने जो उत्तर दिया उससे मुझे निराशा ही हाथ लगी।

जब मैं घर वापस लौटा तो सब लोग मेरा मज़ाक बनाते और मुझ पर हंसते थे। माता-पिता बड़े चिंतित रहने लगे। मेरा विवाह बचपन में ही हो गया था। किसी ने मेरे माता पिता को सलाह दी कि इसका गौना कराकर इसकी पत्नी को घर ले आओ, तब यह ईश्वर को भूल जाएगा और घर पर ही रहने लगेगा। मैंने इस बात का बड़ा विरोध किया, क्योंकि मेरा विचार था कि मैं गृहस्थी में फंसकर ईश्वर की खोज नहीं कर पाऊंगा। मुझे यह भी एहसास था कि मैं एक पापी हूँ और छुटकारा पाने के लिए मुझे कुछ करना है। पत्नी के आने के दो दिन पूर्व ही मैंने घर छोड़ दिया। तीसरे दिन एक और तीर्थ स्थान पर पहुँचा, जहाँ एक बड़े धार्मिक गुरूजी रहते थे। मैंने उन्हें भी अपनी आप बीती सुनाई और उनसे कहा कि जितना भी कठिन मार्ग क्यों न हो मैं उसपर चलूँगा, लेकिन मुझे ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग बताइये। उन्होंने मेरा निश्चय देखकर कहा, मैं तुम्हें अन्धेरे में नहीं रखना चाहता, मेरे बाल सफेद हो चुके हैं पर अभी तक मुझे ही ईश्वर की प्राप्ति नहीं हुई है, तो तुम्हें कैसे उस से मिलवा दूँ? हाँ यदि ईश्वर स्वयं चाहे तो तुम्हें मिल सकता है। इसलिए घर जाकर अपनी पi के साथ अपनी गृहस्थी बसाओ, और प्रार्थना में लगे रहो। मैं फिर निराश होकर घर लौट आया और फिर लोगों के उपहास, व्यंगय और कटाक्षों का पात्र बना। मेरे ससुर ने मुझे बुलवाकर खूब खरी खोटी सुनाई और सम्बंध तोड़ने तक की धमकी दी। मेरी पत्नी और मेरे बीच में कलह, लड़ाई-झगड़े दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगे। किसी ने कहा मुझ पर दुष्ट आत्मा का साया है। यह सुनकर मैं और भी क्रोधित होता था, कि मुझमें भूत कैसे हो सकता है, मैं तो ईश्वर का भक्त हूं? एक रिश्तेदार ने हम दोनों हाथ देखकर कहा कि यदि ये एक साथ रहेंगे तो इन्में से एक की मृत्यु तय है। अतः मेरी पत्नी की इच्छानुसार उसको उसके घर छोड़ दिया गया।

इस घटना के बाद तो मैं और भी मज़ाक का पात्र बन गया। लोग कहते थे कि यह मूर्खों से भी महामूर्ख है, इसे न तो ईश्वर ही मिला न पत्नी। इसका मूँह देखना भी पाप है। माँ दुखी थी और पिताजी ने भी बोलना बंद कर दिया ता । बड़ा भाई मुझे देखकर मूँह फेर लेता और कहता कि यदि मुझसे बोला तो तुझे जूते से मारूंगा। मैं बड़ा निराश हो गया था, सारी आशाएं मिट सी गईं और काम धंधा भी बंद हो गया था। जीवन में कुछ भी शेष बाकी न बचा। मैंने सोचा अब जीने से मरना बेहतर है। जब मैंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि अब इस जीवन को समाप्त करना ही भला होगा, तो सवाल उठा कि कैसे? ज़हर खरीदने के लिये भी मेरे पास पैसे नहीं थे। मैंने सोचा कि अपना रेडियो बेचकर ज़हर खरीदूंगा। उसे बेचेने से पहिले मैंने उसे आखिरी बार सुनने की लालसा से उसका बटन घुमाया तो अचानक से किसी जगह चल रहे कार्यक्रम में किसी के बोलने की आवाज़ आई “प्रिय मित्र यदि आपसे संसार, मात-पिता, पत्नि, दोस्त प्यार नहीं करते तो आप निराश न हों। यीशु आपको बुला रहा है। जितनों ने यीशु मसीह पर विश्वास किया उसने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया। यदि आप पश्चाताप करें और यीशु मसीह से अपने पापों की क्षमा माँगें, तो वह आज ही आपको नया जीवन देगा। आपका नाम स्वर्ग में लिखा जाएगा।”

यह सुनकर मैं फूट फूट कर रोया। और मैंने सच्चे हृदय से पश्चाताप करके, एक एक पाप की क्षमा प्रभु यीशु से माँगी। परिणाम स्वरूप एक अद्भुत शान्ति व आनन्द मेरे जीवन में भर गया। मैं जान गया कि परमेश्वर ने मेरे मन में आकर मेरे सब पाप क्षमा कर दिये और मेरा नाम स्वर्ग में लिख दिया है। मैं एक अनोखे उत्साह और प्रसन्न्ता से भर गया। यह १ अगस्त १९९६ का दिन था। गाँव के लोग यह देखकर आश्चर्यचकित थे कि यह सब कुछ गवाँ कर भी कितना खुश है, ज़रूर यह पागल हो गया है। कुछ लोग पूछते थे कि तुम्हें यह ज्ञान कहाँ से मिला? मैं बड़े आनन्द से कहता कि प्रभु यीशु ने मुझे पापों की क्षमा दी और मुझे नया जीवन देकर मृत्यु से बचाया है।

जबकि मैंने कोई धर्म नहीं बदला, पर मेरे पिताजी ने यही मान कर मुझे घर से निकाल दिया और कहा कि कहीं भी जा पर मुझे अपना मुँह दोबारा न दिखाना। उसके बाद मैं दिल्ली आया और रोहिणी इलके में एक प्रॉपर्टी डीलर की दुकन पर काम करने लगा। मैं प्रतिदिन प्रार्थना करता कि प्रभु किसी विश्वासी से मिलवा दे ताकि मैं प्रभु यीशु के बारे और जान सकूँ और संगति करके आत्मिक जीवन में बढ़ सकूँ। प्रभु ने मेरी प्रार्थना सुनकर एक विश्वासी भाई से भेंट करवाई। इस भाई के साथ मैंने प्रभु यीशु के विषय में शिक्षा पाना, प्रार्थना करना, संगति करना आरंभ किया। इस भाई ने मुझे बाईबल से एक पद दिखाया - प्रेरितों १६:३१, और मुझे अपने परिवार के लिये प्रार्थना करने को कहा। प्रार्थना के उत्तर में मुझे मेरे माता-पिता, भाई और पत्नि के पत्र आने लगे। मैंने उन्हें पत्र के द्वारा विस्तारपूर्वक लिख कर भेजा कि प्रभु यीशु ने मेरा जीवन कैसे बदल दिया है। जून १९९७ में मेरी पत्नि सहित सब परिवार जन दिल्ली आये तो वह मेरा बदला हुआ जीवन देखकर बहुत प्रभावित हुए। यह सब देखकर और प्रभु के बारे में सुनकर उन्हें भी लगा कि वास्तव में प्रभु जीवनों को बदलकर सच्ची शाँति प्रदान कर सकता है।

मंगलवार, 10 नवंबर 2009

सम्पर्क दिसम्बर २०००: परमेश्वर के वचन से सम्पर्क

जब यह साल बिल्कुल आखिरी सिरे पर खड़ा है, तो आईये यूहन्ना की पुस्तक के द्वारा परमेश्वर के अनुग्रह को देखें। “यूहन्ना” शब्द का अर्थ है यहोवा अनुग्रहकारी है। १९२९ की बात है, भाई वॉचमैन-नी से किसी ने बड़ा पैना सा सवाल किया, जो सीधे उसके सीने में उतर गया। सवाल था - “क्या तुम वैसे ही प्रभु के लिये जीते हो, जैसे शुरु मेंप्रभु के लिये जीते थे?” भाई वॉचमैन-नी टूट गया। भाई ने दिल की ईमानदारी से मान लिया कि जैसे शुरु में प्रभु के लिये जीने की उसकी इच्छा थी, अब उसमें वह वैसी इच्छा नहीं रही। उसने स्वीकारा कि उसका बहुत कुछ चला गया, पर सबसे बड़ी बात यह कि प्रभु के लिये जीने की इच्छा ही चली गई। लेकिन फिर भी उस अनुग्रहकारी परमेश्वर यहोवा ने वॉचमैन-नी को क्या से क्या बना डाला।

“मैंने परमेश्वर क ऐसा दिल दुखाया कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दियाताकि मैं नाश न होऊँ परन्तु अनन्त जीवन पाऊँ।” यूहन्ना की इस पुस्तक का यही उद्देश्य है - आप विशवास करके नाश न हों परन्तु अनन्त जीवन पाएं। अपने इस सुसमाचार में यूहन्ना ५० से ज़्यादा बार ‘जीवन’ शब्द का प्रयोग करता है, जैसे- ‘जीवन पाओ और बहुतायत का जीवन पाओ’, ‘जीवन का जल’, ‘जीवन की रोटी’, ‘जीवन की ज्योती’, ‘विश्वास करो और जीवन पाओ’आदि।
किसी ने कहा है कि जब हम विश्वास से परमेश्वर की तरफ देखते हैं तो हम आशा से आगे देखने लगते हैं और दूसरों की तरफ ओर से देखने लगते हैं। लेकिन जब हम परमेश्वर की तरफ शक से देखते हैं तो हम आगे निराशा से देखना शुरु करते हैं और दूसरों की तरफ नफरत से देखना शुरु कर देते हैं। यूहन्ना कहना चाहता है कि जब हम विश्वास से जीने लगते हैं तब ही हमारा जीवन जीने के लायक होता है। यूहन्ना के इस सुसमाचार का ५० प्रतिशत भाग प्रभु यीशु के जीवन की घटनाओं के बारे में बताता है और शेष ५० प्रतिशत प्रभु यीशु के उपदेशों के बारे में। जैसे हमने देखा था यूहन्ना के नाम का अर्थ है ‘यहोवा अनुग्रहकारी है’ और इस अनुग्रह को हम बड़ी सफाई से युहन्ना के जीवन में देखते हैं। यूहन्ना जब्‌दी नाम के एक सम्पन्न मछुआरे के घर में जन्मा था, उसकी माँ का नाम सलोमी था और उसका भाई याकुब प्रभु यीशु का सबसे पहिला चेला था जो प्रभु के लिये बलि हुआ (प्रेरितों १२:१२)। यूहन्ना शायद सबसे बड़ी उम्र में प्रभु के पास गया। याकूब और यूहन्ना दिल की ईमान्दारी से प्रभु से प्यार करते थे, लेकिन फिर भी मनुष्य थे। परमेश्वर का सत्य वचन बाईबल परमेश्वर के किसी भी प्रियजन का भी दोष दिखाने में कतई संकोच नहीं करती, क्योंकि वह सत्य है और सत्य सब कुछ साफ-साफ प्रकट कर देता है। इनकी सम्पन्न्ता के कारण इनमें एक स्वभाविक घमंड था। इन्हें दूसरों को अपने बराबर देखना पसंद नहीं था, वरन इनमें बड़ा बनने की प्रब्ल इच्छा थी। मत्ती २०:२०-२८ में हम एक घटना पाते हैं जहाँ यूहन्ना और याकूब ने अपनी माँ सलोमी को प्रभु के पास सिफारिश करने भेजा। प्रभु ने उससे पूछा कि वह क्या चाहती है? वह बोली के मेरे यह दोनो पुत्र तेरे राज्य में एक तेरी दाहिने और दूसरा बाएं बैठें। प्रभु अपने चेलों से कह चुका था कि तुम बारह सिंहासनों पर बैठकर इस्त्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करोगे। सिंहासन तो मिल ही चुके थे, अब बात थी कि प्रभु के दाएं और बाएं किसे बैठने को मिलेगा। इससे पहिले कि कोई और यह स्थान हथिया ले और हम पीछे रह जाएं, प्रभु के साथ यह बात अभी से तय कर ली जाए। फिर, प्रभु यह भी कह चुका था कि अगर दो जन एक मन होकर कुछ माँग लें तो वह उनके लिए हो जाएगा (मत्ती १८:१९)। इन दोनो ने माँ के सहारे माँग तो लिया, लेकिन प्रभु उनके मन के स्वार्थ और उनकी महत्त्वाकाँक्षा को जनता था इसलिए उसने कहा कि तुम नहीं जानते कि क्या माँगते हो, यह स्थान पहिले ही से परमेश्वर पिता ने निर्धारित कर दिये हैं।

इसी अनुग्रहकारी प्रभु ने अपने अनुग्रह से नये नियम की पाँच पुस्तकें, जो नये नियम का २० प्रतिशत भाग हैं, यूहन्ना के द्वारा लिखवाईं। इसी के द्वारा नये नियम की सबसे छोटी पुस्तक - यूहन्ना की दूसरी पत्री, और बाईबल का सबसे छोटा पद - यूहन्ना ११:२८ लिखा गया, और इसी के द्वारा बाईबल का सबसे अधिक उद्वत किया गया पद - यूहन्ना ३:१६ भी लिखा गया। यूहन्ना ही एक अकेला चेला था जो प्रभु के क्रुस के पास, प्रभु के साथ उन अन्तिम क्षणों में खड़ा था, और जिसे प्रभु ने अपनी माता की ज़िम्मेवारी सौंपी (यूहन्ना १९:२६,२७)। यूहन्ना रचित सुसमाचार में प्रभु यीशु के जीवन का चित्रण अन्य तीनों सुसमाचारों से भिन्न रूप में है। प्रभु यीशु मनुष्य भी था और ईशवर भी परन्तु इसका यह मतलब नहीं कि वह आधा मनुष्य और आधा परमेश्वर था। वह सम्पूर्ण परमेश्वर और सम्पूर्ण मनुष्य था। यूहन्ना इस मनुष्य प्रभु यीशु के ईश्वरीय स्वरूप को प्रस्तुत करता है। वह प्रभु यीशु की बुनियादी सच्चाईयों को एक विशवास योग्य रूप में गम्भीर पाठक के समने लेकर आता है। प्रभु ने ऐसे व्यक्तियों को भी, जो क्या थे, उन्हें क्या बना डाला। वास्तव में परमेश्वर अनुग्रहकारी है।

सृष्टी कितनी विशाल और समझ कि सीमाओं से कितनी परे है, फिर इस सृष्टीकर्ता परमेश्वर का तो क्य कहना! एक ऐसे असीम परमेश्वेर ने पृथ्वी और मनुष्यत्व की सीमाओं में आकर एक मनुष्य देह धारण की। मेरा प्यारा प्रभु क्या था और वह मेरे लिये क्या बन गया। दूसरी तरफ मैं क्या था और उसने अपने अनुग्रह से मुझे क्या बना दिया।

परमेश्वर के इस अनुग्रह को, परमेश्वर के अनुग्रह से आगे आने वाले दिनों में, ‘सम्पर्क’ के अगले अंकों में देखेंगे।

क्रमशः

शनिवार, 7 नवंबर 2009

सम्पर्क दिसम्बर २०००: संपादकीय

प्रभु में प्रियों,


सिर्फ प्रभु यीशु की दया और उसके पवित्र सन्तों कि प्रार्थनाओं के उत्तर में सम्पर्क का दुसरा अंक प्रस्तुत कर पा रहे हैं। अनेक भाई बहिनों के पत्रों ने हमें बहुत ही उत्साहित किया। उन्होंने लिखा कि उन्हें सम्पर्क के माध्यम से प्रभु ने कितना आशीशित किया। इसकी सारी महिमा हमारे प्रभु ही को मिले। आप में से कई लोगों ने हमारे लिये उपवास और प्रार्थनाएं कीं। उसके उत्तर को हम पिछले दिनों में साफ एहसास करते रहे। आपकी इस सहायता के लिए आपका बहुत धन्यवाद।


इस साल की समाप्ति के साथ-साथ कितने ही मौके जो हमारे पास थे, वे भी समाप्त हो गये। समय के अनुसार हमें बहुत आगे होना चाहिये था, पर शयद हम पिछड़ गये। कुछ अपने थे जो हमारे साथ नहीं रहे। कुछ, जो अपने जीवन की परेशानियों से थक चुके होंगे, अपने को मोहताज और हारा हुआ महसूस कर रहे होंगे। कुछ निराशा के कगार पर खड़े होंगे, शयद कुछ ने प्रभु से मौत भी मांगी होगी। बाईबल में कुछ धर्मी जन थे, जैसे मूसा, जिसके द्वारा बाईबल का लगभग १/८ हिस्सा लिखा गया, जो नये नियम के लगभग दो तिहाई भाग के बराबर है, ऐसा प्रभु का महन दास क्या कहता है “...मुझ पर तेरा इतना अनुग्रह हो कि तू मेरे प्राण एकदम ले ले - (गिनती ११:१५) ऐसा महान दास इतनी निराशा में दिखता है। योना नबी क्या प्रार्थना करता है-सो अब हे यहोवा (परमेश्वर) मेरे प्राण ले ले, क्योंकि मेरे लिये जीवित रहने से मरना भला है - (योना ४:) अय्युब क्या कहता है मैं गर्भ में क्यों न मर गया? (अय्युब ३:११) एलिय्याह ने निराश होकर क्या मांगा हे यहोवा बस है, अब मेरा प्राण ले ले, क्योंकि मैं अपने पुरखाओं से अच्छा नहीं हूँ - (१ राजा १९:) यर्मियाह प्रभु के सामने कैसे रोता है उसने मुझे गर्भ में ही क्यों न मार डाला कि मेरी माता का गर्भाशय ही मेरी कब्र होती - (यर्मियाह २०:१७) ये सब धर्मी जन थे और धर्मी जन की प्रार्थनों से बहुत कुछ हो सकता है (याकूब ५:१६) इन धर्मी जनों ने प्रर्थनाएं तो कीं पर इनकी प्रार्थनाएं सुनी नहीं गईं। आप ही अकेले ऐसी निराशाओं का सामना नहीं कर रहे हैं। बाईबल का ६० सदियों का इतिहास ऐसे निराश, हारे हुए लोगों से भरा है जो अपने को पूरी तरह से हारे हुए महसूस करते थे। पर प्रभु ने इन्हीं के द्वारा बड़े बड़े काम कर डाले। यही उसकी महानता है कि उसने ऐसे नालायकों, कमज़ोरों और अयोग्यों को बड़ी योग्यता से उप्योग कर डाला है। शायद बीते वर्ष में आपने पाप को गम्भीरता से न लिया हो और आप पाप में गिर गये हों। हाँ यह तो सत्य है कि पाप के कारण ताड़ना सह कर उसकी महंगी कीमत तो चुकनी पड़ती है। पर प्यारा प्रभु आपको ना छोड़ेगा ना त्यागेगा। इब्राहिम ने मिस्त्र मेंजाकर और सारा के कहने में आकर हाज़िरा के पास जाकर पाप किया। इस विश्वासियों के पिता ने यह बड़े अविश्वास का काम किया। मूसा पृथ्वी का सबसे नम्र व्यक्ति था। उसने घमंड से कहा, मैं कब तक तुम्हारे लिये पानी निकालता रहूँगा। दाऊद जिसके द्वारा भजन संहिता के ७३ अनुपम भजन लिखे गये हैं, इस प्रभु के जन ने व्यभिचार और हत्या का पाप करके प्रभु के दिल को कैसा दुखाया था। पतरस अपने प्रभु का तीन बार शर्मनाक ढंग से इन्कार कर गया। प्रभु ने इनमें से एक को भी न कभी छोड़ा और न त्यागा। आपका प्रभु आज भी अपके लिये वैसा ही है। भले ही आप क्यों न बदल गये हों, आने वाले सालों में वो वैसा ही बना रहेगा जैसा पहले था, और यह बात इस काबिल है कि ऐसे ही कबूल की जाए।


यह तो सत्य है कि पाप बहुत महंगा मेहमान है, पर आप पाप के लिये नहीं हैं और न संसार के लिये। आपको परमेश्वर ने एक विशेष उद्देश्य के लिये सृजा है। अगला साल भी इतना सहज तो नहीं होगा जितना आप सोचते हैं। शैतान एक हारे हुए युद्ध की लड़ाई लड़ रह है। युद्ध हारकर पीछे हटती हुई सेना, जितना नुकसान कर सकती है, करती हुई लौटती है। शैतान भी आपका नुक्सान कर सकता है पर आपको नाश नहीं कर सकता। आपको निराश कर सकता है पर आपका विनाश नहीं कर सकता।


एलिय्याह के दिन ऐसे ही दिन थे। ईज़ेबेल और अहाब जैसे दुराचारी लोगों के हाथ में राजनैतिक सत्ता थी। ये वे लोग थे जिन्होंने नाबोत जैसे ईमान्दार लोगों पर झूठे मुकद्दमे चलाकर उनकी हत्या करवा दी और उनकी ज़मीन हड़प कर ली (१ राजा २१:-१६)। उनके दिनों में बाल के पुजारी बड़े प्रबल थे। उन्हें पूरा रजनैतिक संरक्षण प्राप्त था। वे यहोवा की वेदियों को ढाते और सच्चे नबियों की हत्या करवा डालते थे (१ राजा १९:१०)। उन दिनों में झूठे नबियों की भी कोई कमी नहीं थी जो यहोवा के नाम से भविष्यवाणी करते थे। ऐसे हालात में ७००० ऐसे सच्चे लोग भी थे जिन्होंने बाल के आगे अर्थात ऐसे विपरीत हालातों के आगे घुटने नहीं टेके थे (१ राजा १९:१८)। एलिय्याह के द्वारा प्रजा का हृदय यहोवा की ओर फिरने लगा था। इन हालात में इजेबेल रानी को राजनैतिक सत्ता हाथ से छिन जाने का डर सताने लगा। उसे एलिय्याह का पत्ता साफ करना था पर वह यह भी जानती थी कि एलिय्याह की सीधी हत्या करवाना अपने विरुद्ध बगावत को आमंत्रण देना था। इजेबेल ने चालाकी से काम लिया और एलिय्याह के पास सिर्फ एक दूत भेजकर उसे कहा के अगले २४ घंटों में मैं तुझे मरवा दूंगी (१ राजा १९:)। अगर वह मरवाना ही चाहती थी तो केवल एक दूत ही क्यों भेजा, हत्यारों का दल भेज देती; और फिर अपने शिकार को चेतावनी क्यों देनी, सीधे वार करती? वह एलिय्याह को मारना नहीं उसे डराकर भगाना चहती थी, और एलिय्याह उसके झांसे में आकर डर कर वहाँ से भाग निकला। अकसर शैतान हमें भी ऐसे ही किसी झांसे में फंसा कर हमसे अपनी मर्ज़ी करवा डालता है।


पुराने नियम के अन्तिम दो पदों और में परमेश्वर कहता है - मैं तुम्हारे पास एलिय्याह को भेजूँगा... (मलाकी ४:) और मैं आकर पृथ्वी को सत्यनाश करूं (मलाकी ४:)पुराने नियम में एलिय्याह यर्दन नदी के पार से जीवित स्वर्ग पर उठा लिया गया (२ राजा २:-११) और यर्दन नदी के तट पर यूँ उसकी पुराने नियम की सेवकाई समाप्त हुई। नये नियम में फिर उसी यर्दन नदी के तट से यूहन्ना के रूप में एलिय्याह की सेवकाई फिर शुरू होती है। आप भी जहाँ पाप में गिर गये, जहाँ हालात से थक गये या जहाँ प्रार्थना, प्रचार या संगति में कमज़ोर पड़ गये हों, बस प्रभु की ओर हाथ फैलाइये और वही प्रभु आपको यह नया साल एक नई विजय के साथ पूरा कराएगा। शैतान यह जानता है कि जब तक प्रभु का ठहराया हुआ समय न आये, वह आपका बाल भी बाँका नहीं कर पायेगा। निराश और हताश एलिय्याह के पास प्रभु ने भोजन भेजा और उसे फिर से उठाकर तैयार किया; एलिय्याह के समान प्रभु आप से भी कहता है उठकर खा, क्योंकि तुझे बहुत भारी यात्रा करनी है (१ राजा १९:-)


बाइबल में कुछ बातों के लिये अवश्य शब्द का प्रयोग किया गया है। यह उन बातों के अनिवार्य या न टल सकने वाला होने को दिखाता है, जिनके संदर्भ में इस अवश्य का प्रयोग हुआ है, जैसे- . नये सिरे से जन्म लेना अवश्य है (यूहन्ना ३:)। मुझे पिता के घर में रहना अवश्य है (लूका २:४९)। ३. अवश्य है कि वह बढ़े और मैं घटूँ (यूहन्ना ३:३०) - प्रभु के घर में छोटा बनने से ही बड़ा बना जाता है; मेरा मैं घटना और प्रभु का हमारे जीवन में बढ़ना अनिवार्य है। छोटा बनकर माफी माँगने से कभी पीछे न हटें। ४. अवश्य है कि उसके भजन (आरधना) करने वाले आत्मा और सच्चाई से उसका भजन(आरधना) करें (यूहन्ना ४:२४)। ५. सुसमाचार सुनाना अवश्य है (१ कुरिन्थियों ९:१६)। इन सब बातों को मैं अवश्य नहीं कह रहा, बाइबल कह रही है, इसलिए आप भी इन बातों को अवश्य ही मान लें।


प्रभु में आपका


सम्पर्क परिवार

सोमवार, 2 नवंबर 2009

सम्पर्क फरवरी २००१: सुन तो लो... कल क्या होगा

गुजरात के २६ जनवरी २००१ में आये भयानक भूकम्प से ठीक ८१ दिन पहिले. सम्पर्क के पहिले अंक (सम्पर्क ५ अक्टूबर २०००) के पृष्ठ तीन में यह अंश छपा था “और कोई भी अगला भूकम्प का झटका हमारे शहर को पल भर में मलबे के ढेर में बदल सकता है और उस मलबे के ढेर में कुछ ज़िंदा लोग मुर्दा लाशों को ढूँढते फिरेंगे।”

वैज्ञानिकों का मानना है कि पिछले दस सालों में आये भूकम्पों की संख्याओं में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है। परमेश्वर का वचन दो हज़ार साल पहिले ही हमें बताता है कि “यह सब बातें पीड़ाओं का आरम्भ होंगी।” “... और जगह जगह अकाल पड़ेंगे और भुईंडोल होंगे (मत्ती २४:७,८)।” आने वाली घटनाओं को देखकर लोगों के जी में जी न रहेगा। परमेश्वर के वचन के ११८९ अध्याय के लगभग ७,७४,७४७ शब्दों में से एक शब्द भी, हज़ारों साल के इतिहास में, कभी बिना पूरा हुए नहीं रहा और न रहेगा। परमेश्वर का वचन कहता है “पर यह जान रख कि अंतिम दिनों में कठिन समय आयेंगे (२ तिमुथियुस ३:१)।” अगले झटके में यह भी हो सकता है कि जिस छत के नीचे आप बैठे हों वही छत नीचे आ पड़े। अभी तो इस संसार को और भी अधिक भयानक पीड़ाओं, आपदाओं एवं बीमारियों का सामना करना है। ऐसी पीड़ा कि आदमी पीड़ा के मारे अपनी ज़ुबान खुद ही चबा जाए (प्रकाशितवाक्य १६:१०,११)। “यहोवा की पस्तक में से ढूँढ कर पढ़ो, इनमें से एक भी बात बिना पूरी हुए नहीं रहेगी (यशायह ३४:१६)।” ज़रा ध्यान दें, ‘परमेश्वर की पुस्तक’ बाईबल किसी धर्म विशेष की पुस्तक नहीं है। हमारे मनों में यह बात इस तरह बैठा दी गई है कि हम ‘यीशु मसीह’ को इसाई धर्म से अलग करके सोच ही नहीं सकते; जबकि यह सोच बिलकुल गलत और झूठ है। सम्पूर्ण बाईबल का एक एक पद छान डालिएगा, पहिले तो बाईबल में ‘इसाई’ या ‘इसाई धर्म’ जैसा कोई शब्द ही नहीं ढूँढ पाएंगे; फिर प्रभु की शिक्षाओं में धर्म परिवर्तन की कोई बात कहीं नहीं मिलेगी। प्रभु यीशु जगत के पापी, निराश और बेचैन लोगों को उद्धार देने और अपनी शाँति देने आया था, कोई धर्म देने नहीं। वह नहीं चाहता कि आने वाले प्रकोप की भयानकता की चपेट में कोई आ फंसे।

हमारे मनों में कुछ गलत धारणाऐं घर कर गई हैं। बात बहुत पुरानी है, जब मैं अविवाहित था। एक दिन मैं पापों क्षमा और सच्ची शाँति के बारे में कुछ पर्चे बाँट रहा था। एक जवान आकर कहने लगा कि यदि मैं इसाई धर्म अपना लूं तो मुझे क्या मिलेगा? मुझे तो खुद ही तीन पीढ़ी के बाद इसाई धर्म से छुटकारा मिला था, इसलिए अभी जवाब सोच ही रहा था कि उसने मुस्करा कर खुद ही बात फेंकी, “यार बस अमरीका-समरीका ही भिजवा देना।” मैंने कहा “यार मैं ही नहीं गया हूँ, तो तुम्हें कैसे भिजवाऊँगा?” उसने तुरन्त तीसरी बात ठोंकी, “अच्छा यार कम से कम मेरी शादी तो करवा ही दोगे?” मैंने कहा “इतने साल हो गये पर्चे बांटते बांटते, अभी मेरी ही शादि नहीं हुई तो तुम्हारी कहाँ से करवा दूँ? पर जो मुझे मिला है वह मैं तुम्हें बता सकता हूँ। मैं जीवन से निराश होकर मौत ढूँढता था पर पापों की क्षमा के बाद मुझे आनन्द से भरा हुआ जीवन मिल गया है।” यह इस बेचारे जवान की ही धारणा नहीं, अधिकांश व्यक्तियों में भी यह धारणा व्याप्त है।

ऐसा कौन सा धर्म है जिसे परमेश्वर ने सर्टिफिकेट दिया हो कि यह ‘परमेश्वर का धर्म’ है? आदमी जब पैदा होता है तब धर्म की कैद से आज़ाद होता है। धीरे धीरे धर्म का ज़हर दिमागों में भर कर आदमी को ज़हरीला बनाया जाता है। उसके मन में भरा जाता है कि ‘मेरा धर्म अच्छा है और दूसरे का बुरा।’ धर्म ने आदमी को आदमी से जोड़ा नहीं वरन आपस में तोड़ डाला है। सारी उम्र आदमी धारणाओं की एक कैद में जीता है, धर्म की ज़ंज़ीरों को गहने की तरह पहिनता है, और इन धारणाओं से जुड़े भले-बुरे के बोझ से दबी ज़िन्दगी को शमशान तक घसीटता है। धर्म हमारी एक ऐसी कैद है जहाँ हम आजीवन कारावास काटते हैं, जन्म से मृत्यु तक। धर्म के बाहर झांकना भी पाप समझा जाता है, पर जो वास्तव में पाप है, उसे पाप नहीं मानते।

एक भी ऐसा धर्म दिखा दीजीए या ढूँढ कर बताईये जिसमें जान लेने वालों या देने वालों, झूठ बोलने वालों आदि की कमी हो। सिर्फ नाम का ही तो फर्क है, व्यवहार तो सब के अनुयायियों में एक जैसा ही है। क्या यह सब चचेरे - मौसेरे भाई नहीं? धर्म पहिले तो हमें अन्धा बना देता है, और फिर हमें आईना दिखाता है। परमेश्वर पहिले हमारी आँखें खोलता है, तब हमें आईना दिखाता है, हमारी बेचैनी, निराशा, बोझ बनी ज़िन्दगी और इन सब की वजह हमारे जीवन का पाप हमें दिखाता है। रिशवत लेना और देना आज एक आम और खुली बात हो गयी है। झूठ और फरेब के सहारे अपना उल्लू सीधा करना अक्लमंदी मानी जाती है। अश्लीलता का खुला नाच हमारे परिवारों में घुस आया है। स्वयं माँ-बाप अपने बच्चों को अशलील नाच-गानों में भाग लेने और नुमाइश बनने को उत्साहित कर रहे हैं। टी०वी० ने बच्चों को बचपन में ही जवान बना दिया है। जिस किसी जीवन में पाप है, उस में पाप का श्राप और उससे उत्पन्न बेचैनी भी होगी। यही बेचैनी हर एक मनुष्य, मनुष्यों के परिवार और फिर इन परिवारों से बने हमारे समाज में भी दिखेगी, उन पर प्रभाव करेगी। इसीलिए हमारे परिवार और समाज इस बेचैनी को ढो रहे हैं।

एक आयकर विभाग में काम करने वाला व्यक्ति मुझे अपना नया घर दिखा रहा था। घर काफी बड़ा और महंगी चीज़ों से सुसज्जित था। वह व्यक्ति बार बार मुझ से कहता “बस यह सब ऊपर वाले की कृपा है” और मैं अपने मन में कह रहा था कि यह सब ऊपरी कमाई की कृपा है। बस चोरी करने का अवसर मिलना चाहिये - बिजली की चोरी या ऑफिस से कागज़ कलम की चोरी हो। रेल में बिन टिकट यात्रा कर लो। शादी से पहिले और शादी के बाद भी गलत सम्बंध रख लो, कितने गर्भपात करा लो। मुझे ताज्जुब होता है ऐसे बूढ़े लोगों को देखकर जिनके पैर कब्र में लटके हैं, मुँह में दाँत नहीं, पेट में आँत काम नहीं करती, आँखों पर मोटे चश्मे लगे हैं लेकिन अशलील पुस्तक-पत्रिकाओं, चित्रों और फिल्मों में पोपले मुँह खोलकर ऐसी ललचाई निगाहों से घूरते हैं कि यदि मौका मिले तो पता नहीं क्या कुछ कर डालें।

कितनों ने अपनी बुरी लतों से अपने परिवारों को नरक बना डाला है। कितने ही पति-पत्नी मजबूरी में साथ जुड़कर रहते दिखते हैं, पर उनके दिल कभी जुड़े नहीं। कुछ के पास बहुत धारदार बुद्धी और पैसे की भरमार है फिर भी अन्दर एक खालीपन और बेचैनी है। परेशान से एक मजबूरी की ज़िन्दगी जी रहे हैं और अपनी बेचैनी दुसरों के जीवन में भी घोल रहे हैं। ऐसी ज़िन्दगी को क्या खाक ज़िन्दगी कहेंगे? इन्सान ने इन्सानियत को कन्धा देकर शमशान तक पहुँचा दिया है। बस अब इस मरी हुई इन्सानियत का दाह संस्कार भर करना ही बाकी है। जो भी हम बो रहे हैं उन पापों का परिणाम भी हम ही काटेंगे। अचानक वह सब हो जाएगा जिसकी आप कल्पना भी नहीं करते हैं। अब इस संसार का अन्त उसके समीप खड़ा है। परमेश्वर आपके और हर एक के हर एक पाप का खुला हिसाब लेगा, चाहे वह कितने ही छिप कर या चालाकी से क्यों न किये गए हों। मौत के बाद की भयाकनता को शायद हम अपने शब्दों के सहारे आपको नहीं समझा पाएं, परमेश्वर का वचन कहता है “जीवते परमेश्वर के हाथों में पड़ना भयानक बात है (इब्रानियों १०:३१)” और उससे बचकर भागना असंभव है। लेकिन अपने न्याय से पहिले, परमेश्वर अपने प्रेम में, आपको पश्चाताप का अवसर और निमंत्रण दे रहा है।

मेरे प्रिय पाठक, कहीं आपके जीवन में कुछ ऐसे छिपे पाप तो नहीं जो आपको बेचैन करते हैं, कचोटते हैं? आप कैसे ही क्यों न हों, आपके काम कितने ही शर्मनाक क्यों न हों, परमेश्वर का प्रेम सब को क्षमा करने की क्षमता रखता है। प्रेम सब कुछ सह लेता है। प्रभु यीशु प्रेम है, उसने जगत से ऐसा प्रेम किया और उपाय किया कि जो कोई विश्वास करे वह नाश न हो(यूहन्ना ३:१६)। बस इतना ध्यान रखियेगा कि जब तक आप जगत में हैं तब तक उसके प्रेम की सीमाओं में हैं, जगत से बाहर निकलते ही आप उसके न्याय के अन्तर्गत आ जाते हैं जहां क्षमा नहीं, हिसाब लेना ही है।

आपका मन आपको धोखा दे सकता है और कह सकता है कि आपकी सच्चाई जानने के बाद आप जैसे व्यक्ति को कोई कैसे क्षमा कर सकता है, कैसे प्यार कर सकता है? वह तो आपके जीवन की हर बात और हर पाप को जानता है, केवल उसके सम्मुख उन्हें स्वीकार करने और क्षमा माँगने भर की बात है। या फिर आपको बहका सकता है कि यह तो छोटी सी बात है, सभी करते हैं, ऐसा किये बिना तो काम नहीं चल सकता, आदि। लेकिन जान रखिये पाप तो पाप ही है और उसका अन्जाम भी करने वाले को भुगतना ही है, फिर वह पाप छोटा हो या बड़ा, सब करते हों या कभी कोई करता हो। साथ ही यह भी जान रखिये कि कोई पाप या पापी परमेश्वर प्रभु यीशु की क्षमा और प्रेम से बड़ा नहीं है। परमेश्वर ऐसा प्यार क्यूँ करता है? क्यूँकि वह स्वभाव से ही प्रेम है। आपसे पूछा जाये कि माँ अपने बच्चों से ऐसा प्यार क्यूँ करती है? क्यूँकि यह माँ का स्वभाव है। यदि मैं आपसे कहूँ कि ‘ज़रा पानी को आग पर रखकर ठंडा कर लो’ तो यह बात निरर्थक होगी। क्यूँकि आग का स्वभाव है गर्म करना या जलाना और वह अपने स्वभाव के अनुसार ही कार्य करेगी, स्वभाव के विपरीत नहीं। इसी तरह प्रभु यीशु का स्वभाव है प्रेम करना, ऐसा प्रेम जो सबके सब पापों को क्षमा कर सकता है। वह नहीं चाहता कि आप इस जग पर आने वाली भयानक विपदाओं को भोगें और मौत के बाद हमेशा की भयानकता को।

प्रभु यीशु को धर्म के कट्टर अनुयायियों ने इतनी बुरी तरह ताड़ना दे देकर और अपमानित करके मारा कि उसकी स्वरूप आदमियों का सा नहीं दिखता था। कोड़ों से मार मार कर उसकी पीठ की खाल उधेड़ दी, थप्पड़ और घूँसे मारकर उसके चेहरा बिगाड़ दिया, सिर पर काँटों का ताज गूंथकर फंसा दिया। इस लहुलुहान और दयनीय दशा में भारी काठ का क्रुस उसकी पीठ पर लादकर उसे शहर से बाहर एक पहाड़ी पर ले गये, निर्वस्त्र किया, उसके हाथ और पाँव में कील ठोककर उस क्रूस पर लटका दिया फिर उसका ठठा करने लगे। अपने इन शत्रुओं को, इस भारी यातना में भी, प्रभु ने प्रेम से ही देखा और उनके नाश के लिये नहीं वरन उनके क्षमा के लिए प्रार्थना की “हे पिता इन्हें क्षमा कर, ये जानते नहीं कि ये क्या कर रहे हैं (लूका २३:३४)।”

लोग तो परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं, यहाँ परमेश्वर आपसे प्रार्थना कर रहा है कि आप अपने पाप की क्षमा माँग लें। संसार अपनी क्षमा की सीमाओं को लाँघ रहा है। कल का इन्तज़ार न कीजियेगा, कल कहीं काल के गाल में न हो। बस ‘आज’ आपके हाथ में है। प्रभु की तरफ क्षमा के लिये हाथ फैलाइये। इस धरती के धरातल पर कोई ऐसा दुष्ट नहीं है जिसे वह क्षमा न कर सके। वह नहीं चाहता कि आप नाश हों, इसिलिये उसने क्रूस पर अपनी जान दी और तीसरे दिन जी भी उठा। वह जीवित परमेश्वर है। अब आपके फैसले का समय है। या तो आप उसके ऐसे बेमिसाल और समझ के बाहर प्यार को ठोकर मारकर कहिये कि यह सब बकवास है, या फिर उसकी क्षमा को आदर और प्यार से अपने दिल में स्वीकार कीजिये और उससे कहिये - ‘हे प्रभु यीशु मुझ पापी पर दया कर, मेरे पाप क्षमा कर।’