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सोमवार, 21 जनवरी 2019

क्या 2 राजा 5:18-19 से नामान के उदाहरण के आधार पर मसीही विश्वासियों का गैर-मसीही उपासना तथा धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेना उचित माना जा सकता है?



परमेश्वर के वचन बाइबल के गलत अर्थ निकालने, गलत व्याख्या करने और उसकी गलत समझ रखने का प्रमुख और आम तौर से देखा जाने वाला कारण है बाइबल के अंशों को उनके संदर्भ से बाहर लेना, उन्हें छोटे भागों में विभाजित करके केवल उस विभाजित भाग मात्र को ही अपनी व्याख्या का आधार बनाना, और अपनी बात को मनवाने के लिए वचन को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करना। परमेश्वर के वचन के किसी भी भाग की शिक्षाओं को सही समझने और जानने के लिए उन्हें सदैव ही उनके संदर्भ में देखना और समझना चाहिए, न कि संदर्भ के बाहर।

यहाँ नामान के उपरोक्त कथन के अर्थ और उपयोगिता को समझने के लिए, उसे पद 17, “तब नामान ने कहा, अच्छा, तो तेरे दास को दो खच्चर मिट्टी मिले, क्योंकि आगे को तेरा दास यहोवा को छोड़ और किसी ईश्वर को होमबलि वा मेलबलि न चढ़ाएगा” के संदर्भ में देखा जाना चाहिए, जिसमें इसे समझने की कुंजी है।

एलीशा के निर्देशों का पालन – चाहे बहुत संकोच के साथ ही सही, करने के पश्चात स्वयँ नामान को ही आश्चर्य हुआ कि वह पूर्णतः चँगा हो गया है, और वह एलीशा के पास लौट कर आता है, इस बात के लिए बिलकुल दृढ़ और निश्चित कि इस्राएल के परमेश्वर को छोड़ और कोई परमेश्वर है ही नहीं (पद 15), और केवल वही परमेश्वर सभी आराधना और बलिदान के योग्य है, अन्य कोई नहीं। इस्राएल के परमेश्वर के प्रति नामान इतना निश्चित एवँ समर्पित हो गया कि उस परमेश्वर को अपने बलिदान चढ़ाने के लिए वेदी बनाने के लिए वह अपने मूर्तिपूजक देश, जहाँ वह रहता है, की मिट्टी भी प्रयोग करना नहीं चाहता है; वह चाहता है कि उसे “दो खच्चर मिट्टी” ले जाने की अनुमति दी जाए जिससे वह इस्राएल के परमेश्वर को अपनी भेंट चढ़ाने के लिए वेदी बना सके (इसे निर्गमन 20:23-26 के विचार के अन्तर्गत देखें)। नामान का यह आग्रह उसके प्रभु परमेश्वर, जिसमें वह अब विश्वास ले आया है और जिसे उसने उपासना और बलिदान के योग्य एकमात्र परमेश्वर स्वीकार कर लिया है, के प्रति उसके समर्पण और निष्ठा के विषय बहुतायत से ब्यान करता है।

परमेश्वर के प्रति नामान की इस निष्ठा और समर्पण को ध्यान में रखते हुए, अब हम 2 राजा 5:18-19 का आँकलन करते हैं। नामान के कथन में कुछ बहुत महत्वपूर्ण सत्य निहित हैं, जिनके आधार पर ही हम इन पदों से उचित और उपयोगी निष्कर्ष निकाल सकते हैं:

·         नामान प्रभु परमेश्वर के प्रति अपने विश्वास और समर्पण में अति-दृढ़ था। बिलकुल खुले रूप में, उसे अपने इस नए विश्वास का सबके सामने अंगीकार करने में न तो कोई संकोच था और न ही उसे अपने इस निर्णय के प्रति कोई संशय था कि अब से वह केवल इस्राएल के परमेश्वर ही की सेवा करेगा, किसी अन्य देवी-देवता की नहीं।
·         नामान, रिम्मोन के भवन में, स्वेच्छा से नहीं वरन केवल राजा के प्रति उसके कार्य के निर्वाह की बाध्यता के अन्तर्गत ही जाता।
·         रिम्मोन के सामने दण्डवत नामान को नहीं करना था वरन राजा को करना था; नामान उस दण्डवत की मुद्रा में तभी आता जब राजा को उसके हाथ के सहारे की आवश्यकता होती, अन्यथा नहीं।
·         रिम्मोन के भवन में नामान की उपस्थिति न ही राजा को प्रसन्न करने के उद्देश्य से होनी थी और न ही उपासना के लिए, परन्तु केवल राजा को सहारा देने वाले व्यक्ति के रूप में।
·         इस ज़िम्मेदारी के निर्वाह के प्रति भी नामान न तो सहमत था, और न ही इसे लेकर शान्ति से था, वरन अब उसके लिए यह एक मजबूरी थी, कोई स्वेच्छा से किया गया कार्य नहीं।
·         ऐसा करने के प्रति वह अपने संकोच और अनमने होने को सबके सामने खुले रूप से कहता है, यह जानते हुए कि जब वह इस विषय में एलीशा से बात कर रहा था तब उसके देश के अन्य लोग भी वहाँ उपस्थित थे, और वह उन संभावित परिणामों से भी भली-भांति अवगत था जो इन बातों का उसके राजा के कानों तक पहुँचने से हो सकते थे। परन्तु फिर भी उन लोगों की उपस्थिति में वह ऐसा करने के प्रति अपने संकोच को व्यक्त करने, या अपने विश्वास के बारे में बात करने में निर्भय तथा निःसंकोच था।

उसके इस विश्वास और समर्पण के विषय एलीशा उसे प्रत्युत्तर देता है “कुशल से विदा हो”; दूसरे शब्दों में, एलीशा ने उसे आश्वस्त किया कि “चिन्ता मत कर, परमेश्वर तेरे विश्वास और समर्पण के बारे में, तथा इसके बारे में तेरे मन की भावनाओं के बारे में भली-भांति जानता है, और वह तेरे हृदय की दशा का अनुसार तेरा मूल्याँकन करेगा (इसे 1 शमूएल 16:7; 1 इतिहास 28:9; 2 इतिहास 16:9; नीतिवचन 16:2; यिर्मयाह 17:10; Jeremiah 20:12; लूका 16:15 के संदर्भ में देखें), इसलिए अपनी परिस्थितियों और मजबूरियों को लेकर परेशान न हो, केवल वह कर जो तेरे लिए सही है।”

इसलिए हम कह सकते हैं कि यहाँ पर एलीशा नामान को परमेश्वर के द्वारा अपने लोगों से बारंबार तथा बलपूर्वक कही गई बात – मूर्तियों और मूर्तिपूजा से बिलकुल परे और दूर रहो, के विरुद्ध जाने की अनुमति नहीं दे रहा था, और न ही बात को यूँ ही बिना गंभीरता से लिए कुछ कह रहा था। पुराने नियम में बहुधा दोहराए गए मूर्तिपूजा के विरुद्ध के इस सत्य के नए नियम के समानान्तर के लिए 2 कुरिन्थियों 6:14-18 देखें। परमेश्वर अपने वचन के विरुद्ध कभी नहीं जाएगा, और न ही किसी के भी लिए उसे किसी रीति से काटेगा या बदलेगा। स्मरण रखिए कि वचन स्वयँ देहधारी प्रभु यीशु मसीह ही है (यूहन्ना 1:1-4, 14) – स्वयँ परमेश्वर, मानव देह में, और बाइबल की बातों में कोई भी परस्पर विरोध, परमेश्वर द्वारा अपना ही प्रतिवाद करने के तुल्य है – जो कि बिलकुल असंभव बात है!

इसके अतिरिक्त, बाइबल में कहीं पर भी, पुराने अथवा नए नियम में, इस घटना के आधार पर परमेश्वर के लोगों का मूर्तियों या मूर्तिपूजा से किसी भी रीति से जुड़ने को न्यायसंगत या उचित नहीं ठहराया गया है, जबकि ऐसा किया जा सकता था, यदि इस घटना के अनुसार ऐसा करना सही निष्कर्ष होता। पौलुस ने भे जब कुरिन्थियों को लिखी अपनी पहली पत्री में मूर्तियों और मूर्तियों को अर्पित भोजन वस्तुओं के विषय में निर्देश दिए, तो इस घटना का कहीं उपयोग नहीं किया।

इसलिए यह स्पष्ट होना चाहिए कि परमेश्वर ने मसीही विश्वासियों को कदापि यह अनुमति नहीं दी है कि वे अविश्वासियों की उपासना के रीति रिवाजों एवँ अनुष्ठानों का भाग हों; और नामान का उदाहरण, केवल उन अविश्वासियों को प्रसन्न रखने के लिए जिनके साथ या जिनके आधीन कोई विश्वासी काम कर रहा है, परमेश्वर के इस निर्देश से बचकर निकलने का मार्ग प्रदान नहीं करता है।

मैं इस बात को अपने जीवन के अनुभव से जानता हूँ। मैं भी गैर-मसीही और मूर्तिपूजक लोगों के साथ तथा उनके आधीन काफी समय से विभिन्न समय और स्थानों पर कार्य करता रहा हूँ। नौकरी के लिए प्रत्येक साक्षात्कार के समय मैं सदा ही साक्षात्कार लेने और मुझे नौकरी पर रखने वाले अधिकारियों से यह स्पष्ट कहा है कि मैं उनके यहाँ नौकरी करते समय कभी भी, किसी भी परिस्थिति में, किसी उपासना, भेंट, बलिदान या अन्य किसी भी धार्मिक गतिविधि अथवा अनुष्ठान में कोई भाग नहीं लूँगा; और परमेश्वर के अनुग्रह तथा सहायता से मैं आज तक अपनी इस बात पर कायम रहा हूँ; और इसके कारण न तो मेरे नौकरी पर रखे जाने और न ही बढ़ोतरी दिए जाने, या महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियों को मुझे सौंपें जाने में कभी कोई बाधा आई है। मैं आज तक निःसंकोच मूर्तियों के आगे अर्पित की गई किसी भी वस्तु को खाने से मना करता आया हूँ – नम्रता के साथ और हाथ जोड़कर अपने विश्वास को व्यक्त करने के द्वारा, बिना किसी को कोई कटु या अपमानजनक व्यवहार दिखाए। और मैंने आज तक उन लोगों के द्वारा आयोजित किसी भी धार्मिक कार्यक्रम या मृतकों के नाम से किए जाने वाले भोज में भाग नहीं लिया है। परमेश्वर सदा मेरे साथ बना रहा है, और मुझे हर उस हानि से बचाता रहा है जिसका भय दिखा कर शैतान लोगों को ऐसे दृढ़ रवैये को अपनाने से रोकने का प्रयास करता रहता है।

इसलिए, परमेश्वर पर भरोसा रखिए, उसके वचन के अनुसार चलिए (इब्रानियों 13:5-6), और परमेश्वर की विश्वासयोग्यता तथा सामर्थ्य का स्वयँ अनुभव कीजिए।