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गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

पवित्र आत्मा पाना भाग (5) – विशेष प्रयास – प्रतीक्षा करना (2); निष्कर्ष



4. क्या पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है? भाग (2)

 पिन्तेकुस्त के दिन जब शिष्यों ने पवित्र आत्मा पाया, और फिर पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से पतरस ने प्रचार किया, तो वहाँ उपस्थित उन भक्त यहूदी श्रोताओं ने पतरस से पूछा कि उद्धार पाने के लिए अब उन्हें क्या करना चाहिए (प्रेरितों 2:37); तब “पतरस ने उन से कहा, मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले; तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे” (प्रेरितों 2:38)। ध्यान कीजिए, पतरस ने उन से कहा कि विश्वास करने पर वे पवित्र आत्मा का दान पाएंगे; विश्वास कर के फिर पवित्र आत्मा पाने के लिए प्रतीक्षा करने के लिए नहीं कहा। पतरस द्वारा प्रचार उसे पवित्र आत्मा मिलते ही पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से किया गया था। उस के इस प्रचार के प्रभाव से इन पश्चाताप और विश्वास करने वालों के द्वारा अब मसीही विश्वासियों की मण्डली की स्थापना होने जा रही थी। उसके इस प्रचार और परिणामस्वरूप होने वाली घटना के साथ जुड़ी बातों को आने वाले समय में समस्त विश्व-व्यापी मसीही विश्वासियों की मण्डलियों की आधारभूत बातें बनना था, जैसे कि आज भी प्रेरितों 2 अध्याय की बातें और शिक्षाएं हमारे लिए हैं। इसलिए यदि पवित्र आत्मा पाने के लिए प्रतीक्षा करने की आवश्यकता थी, तो वहां उपस्थित पतरस और अन्य शिष्यों के सजीव और प्रत्यक्ष उदाहरण के साथ इस बात को बता तथा समझा कर, उसे पतरस के प्रचार की अन्य शिक्षाओं के साथ ही लिखवा कर, इस सिद्धांत या नियम को मण्डली के लिए स्थापित करवा देने के लिए इस से अच्छा और क्या अवसर हो सकता था? किन्तु ऐसा नहीं किया गया; न यहाँ, और न बाद में किसी अन्य पत्री अथवा नए नियम की शिक्षा में। वरन सदा यही कहा गया कि सच्चा पश्चाताप करने, और वास्तविक विश्वास करने से स्वतः ही पवित्र आत्मा तुरंत ही मिल जाएगा। इसी संदर्भ में यदि उपरोक्त तीन उदाहरणों पर पुनः ध्यान करें, तो भी यही सामने आता है कि पवित्र आत्मा मसीही विश्वास में आते ही सभी विश्वासियों को तुरंत ही दे दिया गया, बिना उस के लिए प्रतीक्षा करने के किसी भी उल्लेख के। यह बाइबल का प्रत्यक्ष सत्य है कि संपूर्ण नए नियम में कहीं पर भी, किसी को भी, कभी भी, पश्चाताप करने और मसीही विश्वास में आने के पश्चात पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए प्रतीक्षा करने के लिए कभी नहीं कहा गया है।

आज कुछ लोगों ने, लूका और प्रेरितों के इन प्रतीक्षा संबंधी पदों को अपना गलत आधार बनाकर, प्रतीक्षा करने का अपना ही सिद्धांत इसलिए गढ़ लिया है जिस से अपने आप को एक बहुत कठिन स्थिति से निकलने का मार्ग दे सकें। क्योंकि, जैसा ऊपर लूका 11:13 से संबंधित बातों की चर्चा करते में हमें देखा, मंडली में कुछ लोग होते हैं, जो दिखते तो प्रभु यीशु के विश्वासी और अनुयायी हैं, किन्तु वास्तव में प्रभु के प्रति उनका समर्पण सच्चा नहीं होता है और वे वास्तव में मसीही विश्वास में नहीं होते हैं, इसलिए प्रभु की ओर से उन्हें पवित्र आत्मा कभी नहीं दिया जाता है। ऐसे लोगों से, क्योंकि या तो उन के पास कोई और स्पष्टीकरण अथवा उत्तर नहीं है, या फिर उन में सच बोलने का साहस नहीं है, चर्च के पादरी और अगुवे प्रायः यही कहते हैं, लूका 24:49, और प्रेरितों 1:4, 8 के अनुसार उन्हें पवित्र आत्मा पाने के लिए प्रतीक्षा करने और लूका 11:13 के अनुसार प्रभु से मांगने की आवश्यकता है। जब कि वास्तव में उन्हें आवश्यकता केवल सच्चे मन से पश्चाताप करने और प्रभु के प्रति सच्चा समर्पण करने तथा ईमानदारी के साथ प्रभु और उस के वचन की आज्ञाकारिता में आ जाने की है, न कि बाइबल के प्रतिकूल इन शिक्षाओं में फंस कर अपना समय बर्बाद करने की।

5. पवित्र आत्मा पाने के लिए कुछ विशेष करना – निष्कर्ष

हमारी पवित्र आत्मा प्राप्त करने की इस चर्चा के सन्दर्भ में, ऊपर जिन तीन उदाहरणों की चर्चा की गई है उन से संबंधित घटनाओं में ध्यान देने के लिए जो मुख्य बात है, वह है कि बाइबल की ये घटनाएं भी यह प्रमाणित नहीं करती हैं कि पवित्र आत्मा पाने के लिए किसी विशेष प्रयास या कार्य अथवा किसी मध्यस्थता की आवश्यकता है – जैसे कि प्रायः इन घटनाओं के आधार पर, बड़ा ज़ोर देकर लोगों को गलत शिक्षाएं दी जाती हैं, लोगों को भरमाया जाता है। बाइबल में कहीं भी ऐसा कोई भी उदाहरण नहीं है जिसके आधार पर इस दावे को सही दिखाया जा सके कि व्यक्ति को पवित्र आत्मा पाने के लिए प्रभु के सामने प्रार्थना में गिड़गिड़ाने, या कोई अन्य प्रयास करने, अथवा परमेश्वर के किसी विशिष्ट सेवक की सहायता लेने की, या कुछ समय प्रतीक्षा करने की ज़रा सी भी आवश्यकता है। जैसे उद्धार पाना है, वैसे ही परमेश्वर पवित्र आत्मा को पाना भी, किसी भी मनुष्य या मानवीय विधि-विधान, या कार्य के आधीन, किसी मनुष्य के कैसे भी नियंत्रण में कदापि नहीं हैं। यदि विश्वासी प्रभु की दृष्टि में सही है, तो मसीही विश्वास में आते और उद्धार पाते ही उसे प्रभु की ओर से उद्धार के साथ ही पवित्र आत्मा भी दे दिया जाता है, उसकी आत्मिक सुरक्षा और मसीही जीवन में निर्देशन, उस के दैनिक जीवन के सही संचालन, और उस की आत्मिक परवरिश के लिए।
- क्रमशः
अगला लेख: पवित्र आत्मा का बपतिस्मा क्या है? (1)

बुधवार, 29 अप्रैल 2020

पवित्र आत्मा पाना भाग (5) – विशेष प्रयास – प्रतीक्षा करना (1)



4. क्या पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है? भाग (1)

लूका 24:49 और प्रेरितों 1:4, 8 के आधार पर यह कहा जाता है कि प्रभु यीशु ने स्वयं पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए शिष्यों से प्रतीक्षा करने के लिए कहा है। इसलिए पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए प्रभु का उपयुक्त समय आने की प्रतीक्षा करने को कहना वचन के अनुसार है, और प्रतीक्षा करनी चाहिए। किन्तु यहाँ पर भी इन पदों से यह निष्कर्ष निकालते समय फिर उन्हीं दो गलतियों को दोहराया जा रहा है – सन्दर्भ से बाहर लेना, और अन्य संबंधित शिक्षाओं का ध्यान न रखना। निःसंदेह, प्रभु ने अपने उन आरंभिक शिष्यों से पवित्र आत्मा पाने के लिए प्रतीक्षा करने के लिए कहा था, किन्तु उस प्रतीक्षा का मुख्य उद्देश्य उस समय के उन शिष्यों से प्रभु द्वारा उन्हें दी गई संसार भर में सुसमाचार प्रचार करने की महान आज्ञा के अंतर्गत सेवकाई आरंभ करने से पहले उसके लिए उचित तैयारी करना और सामर्थ्य पाना था, जो उन्हें उन में पवित्र आत्मा के आने से मिलनी थी, न कि बस यूं ही, उन के मसीही जीवन के लिए बिना किसी परमेश्वर द्वारा नियुक्त सेवकाई या उद्देश्य के पवित्र आत्मा पा लेने की प्रतीक्षा करना। यहाँ यह बात बिलकुल स्पष्ट है कि प्रभु ने पहले उन शिष्यों को अपनी सेवकाई निर्धारित कर के सौंपी, फिर उस सेवकाई के लिए उन शिष्यों की नियुक्ति की गई, और फिर उस सेवकाई के लिए उन निर्धारित और नियुक्त शिष्यों को सामर्थ्य प्रदान की गई – हर संबंधित बात, हर कदम प्रभु की ओर से निर्धारित और संचालित, प्रभु की इच्छा के अनुसार। जैसा आज लोग करने और सिखाने का प्रयास करते हैं, वह प्रभु द्वारा कही और की गई बात के अनुरूप कदापि नहीं है, लेश-मात्र भी नहीं। 

आज तो लोग बस चाहते हैं कि पहले एक बार सामर्थ्य मिल जाए फिर देखेंगे कि उस के द्वारा क्या किया जा सकता है। परमेश्वर कभी कुछ भी निरुद्देश्य या किसी के ‘मज़े लेने के लिए’ नहीं करता है। आज लोगों से कहा जाता है, उन्हें सिखाया जाता है कि पवित्र आत्मा पा लेने के आनंद और उल्लास के अनुभव के लिए, उस के लिए प्रार्थना और प्रतीक्षा करें! इस प्रकार से पवित्र आत्मा मांगने वाले उन लोगों में न तो इस की कोई समझ है कि परमेश्वर ने उन्हें क्यों बुलाया है; और न ही उन लोगों को इस बात का कोई एहसास है कि प्रभु की सेवकाई के लिए उन्हें क्या कीमत चुकानी पड़ सकती है; उन्हें बस यही बताया और सिखाया जाता है कि पवित्र आत्मा तथा उसके वरदानों को प्राप्त करने के अद्भुत अनुभव से होने वाले उत्साह और उल्लास के लिए उसे माँगें। यह वह प्रतीक्षा करना कदापि नहीं है जिसके लिए प्रभु ने अपने आरम्भिक चेलों से कहा था। प्रभु यीशु ने आने वाले समयों के सभी शिष्यों के लिए इसे कोई सिद्धांत या नियम बना कर स्थापित नहीं किया था। यदि यह कहा जाए कि यह प्रभु की ओर से नियम या सिद्धांत था, तो फिर यह भी स्वीकार करना पड़ेगा कि प्रेरितों 2:38 में पतरस के पहले प्रचार और पहले शिष्यों के बनने के साथ ही पतरस द्वारा इस नियम को तोड़ दिया गया, सिद्धान्त की अवहेलना की गई, निःसंकोच इसकी अनाज्ञाकारिता की गई – और यदि यह हुआ है तो फिर प्रभु की आशीष और समर्थन उस अनाज्ञाकारिता के साथ कैसे बनी रही, प्रभु ने अनाज्ञाकारी लोगों को अपनी कलीसिया में कार्य कैसे कर लेने दिया? किन्तु यदि प्रभु की आशीष और समर्थन रहा – जैसा की प्रत्यक्ष है, तो फिर यह भी स्पष्ट है कि वह अनाज्ञाकारिता नहीं थी; अर्थात वह प्रभु द्वारा दिया गया कोई ऐसा नियम या सिद्धांत नहीं था, वरन प्रतीक्षा करने के लिए कहना केवल उस समय के उन शिष्यों के लिए ही कही गई बात थी – और यही सत्य है।
- क्रमशः
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