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मंगलवार, 29 अक्तूबर 2019

यीशु के मार/कोड़े खाने तथा यीशु के लहू द्वारा शारीरिक चंगाई





प्रश्न: क्या प्रभु यीशु मसीह के मार/कोड़े खाने से, और लहू से हम शारीरिक रोगों से चंगाई प्राप्त करते हैं?

उत्तर:
पवित्र शास्त्र की व्याख्या करते समय जो गलती सर्वाधिक तथा सामान्यतः की जाती है वह है बाइबल के किसी पद या खण्ड को, या पद के अंश को उसके संदर्भ के बाहर लेना; फिर उसे अपनी इच्छा या समझानुसार अर्थ प्रदान करना; और फिर उन गलत अर्थों को न केवल “परमेश्वर के सत्य’ समझकर मान लेना वरन उन्हें औरों को भी यही कहकर सिखाना; चाहे वे अर्थ संदर्भ की आवश्यकता तथा बाइबल में उस बात या शब्दों के प्रयोग के अनुसार सही न भी हों, जिससे कि फिर वे अवास्तविक एवं अस्वीकार्य हो जाते हैं। परमेश्वर का वचन बाइबल, 2 तिमुथियुस 2:15 में हमें सिखाता है किअपने आप को परमेश्वर का ग्रहणयोग्य (न कि मनुष्यों को) और ऐसा काम करने वाला ठहराने का प्रयत्न कर, जो लज्ज़ित होने न पाए और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो; तथा ऐसे शिक्षकों के पीछे हो लेने के फंदे में पड़ने वाला न हो जो सही शिक्षा देने के स्थान पर लोगों को केवल वही सुनाते-सिखाते हैं जो कि वे लोग सुनना-सीखना चाहते हैं (2 तिमुथियुस 4:2-4)। शैतान द्वारा परमेश्वर के वचन के दुरूपयोग के षड़यंत्र में फंसने से बचने के लिए (वह तो इतना धूर्त है कि उसने प्रभु यीशु को भी इस फंदे में फंसाने का प्रयास कियामत्ती 4:1-11), हम सभी को 1 थिस्सलुनीकियों 5:21 “सब बातों को परखो: जो अच्छी है उसे पकड़े रहो का ध्यान रखना और उसका पालन करना चाहिए; तथा बेरिया के मसीही विश्वासियों के समान होना चाहिए जिनकी बाइबल में इसलिए प्रशंसा हुई है क्योंकि वे पहले सभी शिक्षाओं को पवित्र शास्त्र से जांचते थे और तब ही उन पर विश्वास करते थे (प्रेरितों 17:11-12) – चाहे उन्हें सिखाने वाला पौलुस प्रेरित ही क्यों न रहा हो।

प्रभु यीशु के मार/कोड़े खाने के द्वारा चंगाई के संदर्भ में, बाइबल के जिस पद का अकसर प्रयोग किया जाता है वह है यशायाह 53:5 “परन्तु वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के हेतु कुचला गया; हमारी ही शान्ति के लिये उस पर ताड़ना पड़ी कि उसके कोड़े खाने से हम चंगे हो जाएं।पतरस ने इसी पद में से अपनी पहली पत्री में उद्धृत किया – “वह आप ही हमारे पापों को अपनी देह पर लिये हुए क्रूस पर चढ़ गया जिस से हम पापों के लिये मर कर के धामिर्कता के लिये जीवन बिताएं: उसी के मार खाने से तुम चंगे हुए” (1 पतरस 2:24)। यह काफी रोचक ‘संयोग’ है कि, इन दो पदों के अतिरिक्त (वास्तव में, केवल एक ही पद), संपूर्ण बाइबल में और कोई पद है ही नहीं जिसमें “मार/कोड़े” तथा “चंगाई” शब्द एक साथ आए हों। साथ ही, हम इन दोनों ही पदों में यह भी देखते हैं कि जिस ‘चंगाई’ की बात हो रही है वह पाप के दुष्प्रभाव से आत्मिक चंगाई है; न कि किसी रोग, बीमारी, विकार, या अन्य किसी शारीरिक व्याधि से देह की चंगाई।

सामान्य उपयोग में, क्योंकि शब्द ‘चंगाई’ का प्रयोग मुख्यतः शारीरिक अस्वस्थताओं, तथा शरीर के रोगों के लिए होता है, इसलिए इस पर कुछ विशेष ध्यान दिए बिना, लोग बस यही मान लेते हैं कि इन पदों में भी जिस ‘चंगाई’ की बात हो रही है वह भी शारीरिक चंगाई ही है। दुर्भाग्यवश, बहुतेरे प्रचारक और शिक्षक भी यही चाहते हैं कि हम इसी गलती को मानें; इसलिए पवित्र शास्त्र के पदों को संदर्भ और वास्तविक लेख से बाहर लेकर और फिर उन पर आधारित व्याख्या करने के द्वारा वे इस गलत अर्थ और व्याख्या पर बल देते रहते हैं और उसे ही सिखाते रहते हैं। न तो वे स्वयँ व्याख्या करते समय पद के संदर्भ या खण्ड से संबंधित बातों पर ध्यान देते हैं, और न ही हमें प्रोत्साहित करते हैं कि हम किसी बात को स्वीकार करने या किसी निष्कर्ष पर आने से पहले, पूर्ण पद का अध्ययन उसके सही संदर्भ तथा संबंधित बातों में होकर करें।

एक अन्य बहुत महत्वपूर्ण और संबंधित तथ्य जिस पर ध्यान दिया जाना चाहिए यह है कि संपूर्ण बाइबल में कहीं पर भी, वाक्याँशउसके मार/कोड़े खाने से हम चंगे हो जाएंतथा  उसी के मार/कोड़े खाने से तुम चंगे हुएका कभी भी कहीं भी किसी करिश्माई शारीरिक चंगाई के लिए प्रयोग नहीं हुआ है; किसी भी भविष्यद्वक्ता, या प्रेरित, या परमेश्वर के जन के द्वारा कभी कहीं भी नहीं जबकि पुराने नियम में और नए नियम में करिश्माई शारीरिक चंगाइयों की घटनाओं की कोई कमी कतई नहीं है। हम नए नियम से शारीरिक चंगाई के कुछ उदाहरणों को देखते हैं:
·         पौलुस, तिमुथियुस को निर्देश देता है, “भविष्य में केवल जल ही का पीने वाला न रह, पर अपने पेट के और अपने बार बार बीमार होने के कारण थोड़ा थोड़ा दाखरस भी काम में लाया कर” (1 तिमुथियुस 5:23)। प्रगट है कि तिमुथियुस को बारंबार होने वाले किसी शारीरिक रोग के कारण परेशानी होती रहती थी, और पौलुस उससे थोड़ा थोड़ा दाखरसऔषधि के समान लेने के लिए कह रहा है क्यों यहाँ पर पौलुस ने तिमुथियुस से प्रभु यीशु के मार/कोड़े खाने के आधार पर चंगाई की माँग/दावा करने के लिए नहीं कहा?
·         स्वयँ पौलुस के शरीर में एक कांटा चुभाया गया के बारे में देखें पौलुस कहता हैऔर इसलिये कि मैं प्रकाशनों की बहुतायत से फूल न जाऊं, मेरे शरीर में एक कांटा चुभाया गया अर्थात शैतान का एक दूत कि मुझे घूँसे मारे ताकि मैं फूल न जाऊं। इस के विषय में मैं ने प्रभु से तीन बार बिनती की, कि मुझ से यह दूर हो जाए” (2 कुरिन्थियों 12: 7, 8)। पौलुस को इस समस्या के निवारण के लिए प्रभु से विनती क्यों करनी पड़ी; ऐसा करने के स्थान पर उसने प्रभु के मार/कोड़े खाने के आधार पर उपलब्ध चंगाई को क्यों नहीं माँग लिया? और जबकि प्रभु द्वारा विश्वास की प्रार्थना के प्रत्युत्तर में चंगाई देने के लिए पौलुस या तिमुथियुस के “विश्वास” पर तो संदेह किया ही नहीं जा सकता है!
·         हम प्रेरितों के काम में देखते हैं कि जब पतरस ने, प्रेरितों 3 में, मंदिर के प्रवेश द्वार पर बैठे जन्म के लंगड़े को चँगा किया, तो उसने लंगड़े मनुष्य से यह नहीं कहाप्रभु यीशु के मार/कोड़े खाने तुझे चँगा किया जाता है;” वरन, “तब पतरस ने कहा, चान्दी और सोना तो मेरे पास है नहीं; परन्तु जो मेरे पास है, वह तुझे देता हूं: यीशु मसीह नासरी के नाम से चल फिर” (प्रेरितों 3:6).

क्या बाइबल में कहीं पर भी, कोई भी, एक भी ऐसा उदाहरण है जहाँ वाक्याँश “प्रभु के मार/कोड़े खाने के द्वारा तुझे चँगा किया जाता है” का शारीरिक चंगाई प्राप्त होने के लिए उल्लेख आया है? यदि नहीं, तो फिर, इस वाक्याँश का इतनी बहुतायत से प्रचार और शिक्षा में इतना प्रयोग और व्याख्या, तथा लोगों द्वारा इसे इतना सहज स्वीकार तथा ग्रहण किया जाना क्यों है? और भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि, लोग इतने भोले और आसानी से धोखा खाने वाले क्यों बने रहते हैं; और उन भरमाने तथा बहकाने वालों से इसके लिए परमेश्वर के वचन में से स्पष्टिकरण क्यों नहीं मांगते हैं?

सीधा और सपष्ट तथ्य यह है कि ये पद मसीह द्वारा हमारे लिए सहे गए दुखों के लिए तो है, परन्तु हमारे पापों के दुखों के लिए है, जिन्हें उसने अपने ऊपर ले लिया था। क्योंकि उसने हमारे दण्ड को अपने ऊपर ले लिया, हमारे स्थान पर उसने कोड़े खाए, हमें हमारे पापों के दण्ड से छुटकारा मिला है, और पाप के द्वारा कुचली गई हमारी आत्मा को चंगाई प्राप्त हुई है (यशायाह 61:1; लूका 4:18)। वाक्याँशउसके मार/कोड़े खाने से हम चंगे हुए...” रोग या बीमारियों से मिली किसी शारीरिक चंगाई के लिए नहीं प्रयोग हुआ है, वरन हमारे पापों के दुष्प्रभावों से हमें मिलने वाली चंगाई के लिए प्रयोग किया गया है।

इसी प्रकार से, बाइबल में यह कहीं नहीं आया है कि यीशु का लहू हमें शारीरिक रोगों और बीमारियों से चंगा करता है। प्रभु यीशु के लहू को अन्य कई बातों के लिए प्रभावी बताया गया है वे सभी आत्मिक हैं और प्रभु परमेश्वर के साथ हमारे संबंधों के बारे में हैं, जैसे कि हमारा प्रायश्चित (रोमियों 3:25); हमारा धर्मी ठहरना (रोमियों 5:9); हमें परमेश्वर के निकट लाने, अर्थात उससे मेल करवाने (इफिसियों 2:13); हमारे विवेक को मरे हुए कामों से शुद्ध करने (इब्रानियों 9:14); हमें पवित्र स्थान में प्रवेश प्रदान करने के हियाव देने के लिए (इब्रानियों 10:19); हमारे छुटकारे (1 पतरस 1:18-19); पापों से शुद्ध करने (1 यूहन्ना 1:7); पापों से छुड़ाए जाने (प्रकाशितवाक्य 1:5) के लिए। परन्तु कहीं पर भी प्रभु यीशु के लहू के द्वारा किसी भी शारीरिक चंगाई होने या किए जाने का कोई उल्लेख नहीं है, और न ही कभी किसी प्रेरित या नए नियम के किसी भी लेखक ने शारीरिक चंगाई के लिए न तो “प्रभु यीशु के लहू” को प्रयोग किया है और न ही ऐसा करने की कोई शिक्षा दी है।

इसलिए लोगों को यह सिखाना कि हम बाइबल के किसी पद या अंश को, किसी ऐसे स्वरूप या उपयोग के लिए मांगे या उसका दावा करें, जो कि परमेश्वर के वचन में उसके प्रयोग या उसके संदर्भ के अनुसार नहीं है, और परमेश्वर का वचन जिसके विषय न तो कुछ सिखाता है और न ही करने के लिए कहता है, तो उसे परमेश्वर के वचन के अनुसार सही शिक्षा कैसे माना और स्वीकार किया जा सकता है? ऐसी सभी शिक्षाएँ और प्रयोग परमेश्वर के वचन से बाहर के हैं; वे सभी 2 तिमुथियुस 2:15 के निर्देश के अनुसार नहीं हैं, इसलिए गलत और अस्वीकार्य होने के आधार पर उनका तिरिस्कार किया जाना चाहिए।


शनिवार, 19 अक्तूबर 2019

मैं अपने आस-पास और कार्यस्थल में यीशु का प्रचार कैसे कर सकता हूँ?



यदि आप वास्तव में प्रभु यीशु में अपने विश्वास को अपने आस-पास तथा सहकर्मियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो जो सबसे पहला कार्य आपको करना चाहिए वह है अपनी इस इच्छा को परमेश्वर के सामने रखें और उससे माँगें कि वह आपको इसके लिए तैयार करे तथा इसके विषय आपका मार्गदर्शन करे। उससे माँगें कि वह आपको उन संभव अवसरों को पहचानने की समझ-बूझ दे, तथा सिखाए कि उन अवसरों का सदुपयोग कैसे किया जाए; वह आपको उन लोगों के पास लेकर जाए जो सुसमाचार को ग्रहण करने, या कम से कम सुनने के लिए तैयार हैं, बिना किसी अनुचित विवाद अथवा बहस में पड़े (1 कुरिन्थियों 16:9)। परमेश्वर से माँगें कि वह आपको इसके लिए आवश्यक साहस, उचित शब्द, और सही अभिव्यक्ति की क्षमता प्रदान करे जिससे आप इस कार्य को यथोचित रीति से करने पाएँ (यशायाह 50:4), और जब आप प्रभु की इस सेवकाई को उसकी इच्छानुसार करें तो परमेश्वर आपके बैरियों एवँ विरोधियों को बाँध कर नियंत्रण में रखे।

सहज रीति से, बिना विरोध को निमंत्रण दिए “प्रचार” करने का सबसे अच्छा तरीका है, उसे जी कर दिखाना और अपने व्यावाहरिक जीवन की गवाही से उसे प्रगट करना (प्रकाशितवाक्य 12:11), क्योंकि आपके शब्दों से कहीं अधिक ऊँचा और प्रभावी आपका जीवन ‘बोलता’ है। दो प्रकार से हैपहली यह कि, प्रभु ने आपके जीवन को कैसे बदला, उसने आपको अन्दर से कैसे बदला है, और आपके हृदय-परिवर्तन के समय से लेकर अब तक वह कैसे आपकी सहायता करता रहा है, कैसे आपके हित में कार्य करता रहा है; इन बातों की आपके अपने शब्दों में दी गई मौखिक गवाही; और आपकी दूसरी व्यावाहरिक गवाही है, आपके दैनिक जीवन में आए परिवर्तनों की गवाही जो आपके साथी और आस-पास वाले देखते हैं आपकी जीवन-शैली, रूचियाँ, बात-चीत, व्यवहार, सत्य-निष्ठा, तथा कार्य-नैतिकता एवँ प्रतिबध्दता इत्यादि। गवाही के पहली रीति के माध्यम से, आप अपने व्यक्तिगत अनुभवों को बाँटते हैं आप किसी को यह नहीं कहते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए या नहीं करना चाहिए ऐसा करने से विरोध और तर्क या विवाद उत्पन्न हो सकते हैं; वरन, आप केवल वह बताएँ जो प्रभु ने आपके जीवन में किया है, और/या प्रभु ने किसी विशेष परिस्थिति में कैसे आपकी सहायता की। क्योंकि ये आपके व्यक्तिगत अनुभव हैं, इसलिए कोई भी इन्हें आपके लिए गलत या अस्वीकार्य नहीं ठहरा सकता है, और प्रभु इन्हें औरों के हृदयों में कार्य करने के लिए उपयोग करेगा; उनके अन्दर जिज्ञासा को जागृत करेगा कि वे भी अपने जीवनों में इन्हें आज़माएँ। गवाही के दूसरी रीति के माध्यम के द्वारा, अर्थात आपकी जीवन शैली इत्यादि की गवाही के द्वारा, आप अपने जीवन को निःशब्द किन्तु व्यवाहारिक रीति से गवाही देने देते हैं, और जब भी कोई आपके जीवन की किसी बात के लिए कोई प्रश्न उठाए, तो आप उसके साथ अपने विश्वास तथा सुसमाचार को बाँटने के लिए सदा तैयार बने रहें (2 तिमुथियुस 4:2).

एक और कार्य जो आप कर सकते हैं वह है किसी कठिनाई, या क्लेश, या समस्या, या तनाव में पड़े हुए, या जिसे किसी सहायता या मार्गदर्शन की आवश्यकता हो, ऐसे व्यक्ति के पास जाकर उसके लिए प्रार्थना करना। आप नम्रता और प्रेम सहित उससे उसके साथ प्रार्थना करने की अनुमति माँग सकते हैं, और यदि वे अनुमति प्रदान करते हैं, तो प्रार्थना में बिना कोई ‘प्रचार’ किए, एक छोटी, सार्थक और सरल प्रार्थना करें, परमेश्वर से माँगें कि वह उनकी परिस्थिति या कठिनाई में उनकी सहायता एवँ मार्गदर्शन करे, और इस परेशानी की परिस्थिति में वे परमेश्वर की शान्ति को अनुभव करने पाएँ। आप ऐसा फोन पर वार्तालाप के माध्यम से भी कर सकते हैं। अपने बैरी-विरोधियों के लिए भी प्रार्थनाएं अवश्य करें, चाहे वे उन्हें बिना बताए, खामोशी से की गई प्रार्थनाएं हों (रोमियों 12:14-21), और परमेश्वर स्वयँ ही उचित समय पर उन पर प्रगट करेगा कि उनके बैर-विरोध के बावजूद, आप उनके लिए प्रार्थना करते रहें हैं।

किन्तु सदा सचेत रहें, शैतान आपके विरोध में समस्याएँ या विरोध खड़े करने, या आपको विभिन्न प्रकार के प्रलोभनों तथा परीक्षाओं में फंसाने का कोई अवसर हाथ से जाने नहीं देगा, (1 तिमुथियुस 4:1-2), जिससे आपकी गवाही बिगाड़ी जा सके तथा निष्क्रीय करी जा सके। इसलिए बहुत ध्यान रखें और चौकस रहें कि आप क्या देखते हैं (भजन 101:3; 119:37), कहते हैं (इफिसियों 4:29), करते हैं (1 पतरस 2:11-12), और जीवन कैसे जीते हैं तथा कैसा व्यवहार करते हैं (1 कुरिन्थियों 11:1)। सदा हर बात के लिए प्रभु से लिपटे रहें, कभी अपने बुद्धिमत्ता पर भरोसा न रखें और प्रार्थना में प्रभु से पहले पूछे या मांगे बिना कुछ भी नहीं करें (नीतिवचन 3:5-6); अन्यथा शैतान आपको बहका कर किसी गलती में डाल देगा (2 कुरिन्थियों 11:3).

इसका यह अर्थ नहीं है कि आपके प्रयास सदा ही सकारात्मक तथा रचनात्मक स्वीकार किए जाएँगे, या आपको कभी किसी विरोध का सामना नहीं करना पड़ेगा, और जीवन आपके लिए सदा ही निर्विवाद एवँ सुचारू रीति से चलता रहेगा ऐसा तो हो ही नहीं सकता है फिलिप्पियों 1:29; 2 तिमुथियुस 3:12; कोई न कोई नकारात्मक प्रतिक्रियाएं तो सदा ही होती रहेंगी। इसलिए, “पर तू सब बातों में सावधान रह, दुख उठा, सुसमाचार प्रचार का काम कर और अपनी सेवा को पूरा कर।” (2 तिमुथियुस 4:5)


गुरुवार, 3 अक्तूबर 2019

वह पाप जिसका फल मृत्यु नहीं है



प्रश्न:  बाईबल में 1 यूहन्ना 5 :16-17 में वह कौन सा पाप है जिसका फल मृत्यु नहीं है ?

उत्तर:
           इन पदों ने बहुतेरों को असमंजस में रखा हुआ है, और इनकी अनेकों व्याख्याएं की गई हैं। इसलिए कोई पूर्णतः स्पष्ट और सभी को स्वीकार्य उत्तर शायद संभव न हो। सामान्यतः 1 यूहन्ना 5:16-17 को समझने का प्रयास करते समय या व्याख्या करते समय, बाइबल में पाप और उसके दुष्परिणाम से संबंधित पदों, जैसे कि रोमियों 3:23 और रोमियों 6:23, तथा ऐसे ही अन्य पदों का ध्यान करते हुए व्याख्या दी जाती है या समझने का प्रयास किया जाता है।

           परन्तु हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यूहन्ना ने जब यह पत्री लिखी थी तो अन्य पत्रियों और लेखों को संकलित करके तैयार हुआ नया नियम तब उसके पाठकों को उपलब्ध नहीं था, जैसा कि अब हमारे हाथों में है। इसलिए जिन लोगों को यह पत्री लिखी गई थी, उनके पास वे सब पद और शिक्षाएँ नहीं थे जो अब नए नियम में संकलित होकर हमारे पास हैं, और जिनके आधार पर अब हम इन पदों को समझने के प्रयास करते हैं। इसलिए वे लोग तब यूहन्ना द्वारा लिखी इस बात को उस प्रकार से नहीं देख और समझ सकते थे जैसा कि हम आज बहुधा देखते और समझते हैं; और न ही तब वे लोग इनमें कोई ऐसे अर्थ डाल सकते थे जो नए नियम में अन्य स्थानों पर लिखी बातों के आधार पर हैं, जिस प्रकार के अर्थों को इनमें डालकर इन्हें समझने के प्रयास आज हम करते हैं। इसलिए इन पदों का अर्थ उसी संदर्भ में देखा तथा समझा जाना चाहिए, जिस संदर्भ में उन लोगों ने तब पढ़ा और समझा होगा जब यूहन्ना ने यह पत्री उन्हें लिखी थी; क्योंकि वही अर्थ इन पदों का मूल या प्राथमिक अर्थ है, शेष सभी अर्थ और अभिप्राय उस मूल अर्थ के सहायक हैं, उनसे वह मूल अर्थ बदल नहीं सकता है।

           यूहन्ना की इस पत्री के आरंभिक अध्यायों को पढ़ने से प्रतीत होता है कि यूहन्ना ने यह पत्री ऐसे लोगों की मण्डली को लिखी थी जिनमें से कुछ तो मसीही विश्वास में ‘बालक’ थे, किन्तु अधिकांश मसीही विश्वास में दृढ़ और स्थापित थे, परिपक्व थे, और धार्मिकता से संबंधित बातों को जानते थे (1 यूहन्ना 2:7, 13, 14, 20, 21, 24, 27)। इसलिए बहुत संभव है कि वे पुराने नियम और मूसा में होकर इस्राएलियों को मिली व्यवस्था का कुछ ज्ञान और समझ रखते थे। परमेश्वर यहोवा को मानने वालों के लिए क्या पाप है और क्या नहीं है, इसकी समझ परमेश्वर के उस वचन के आधार पर थी जिसे हम आज पुराना नियम कहते हैं; और उसमें भी मुख्यतः “व्यवस्था” के आधार पर। जब हम पुराने नियम की धार्मिकता और व्यवस्था के आधार पर देखते हैं, तो व्यवस्था में कुछ पाप ऐसे थे जिनका कोई प्रायश्चित नहीं था, उनके लिए मृत्यु-दण्ड की आज्ञा थी; उदाहरण के लिए देखिए: निर्गमन 28:43; लैव्यवस्था 22:9; गिनती 1:51; गिनती 3:10; गिनती 3:38; गिनती 18:7; गिनती 18:22; गिनती 18:32; आदि। लैव्यवस्था 10:1-2 में हम देखते हैं कि नादाब और अबीहू को पश्चाताप करने का, या उनके लिए किसी को कोई विनती अथवा प्रायश्चित अर्पित करने का अवसर ही नहीं दिया गया, वे तुरंत ही मर गए। जो लोग पुराने नियम की धार्मिकता और परमेश्वर की व्यवस्था से अवगत थे, वे समझते थे कि व्यवस्था में ऐसे पाप उल्लेखित हैं जिनका परिणाम मृत्यु है, उनके लिए कोई प्रायश्चित या क्षमा का प्रावधान किया ही नहीं गया है, इसलिए उनकी क्षमा की कोई गुंजाइश ही नहीं है, उनके लिए क्षमा मिल ही नहीं सकती है।

           दूसरी बात, 1 यूहन्ना 5:16 में दो बार “विनती” शब्द का प्रयोग किया गया है। “विनती” के लिए जिन शब्दों का मूल यूनानी भाषा में प्रयोग किया गया है वे दोनों स्थानों पर अलग-अलग शब्द हैं। पहली बार प्रयुक्त शब्द है ‘aiteo’ जिसका अर्थ होता है ‘to ask (पूछना)’, या, ‘to request (निवेदन करना)’; और दूसरी बार प्रयुक्त शब्द है ‘erotao’ जिसका अर्थ होता है ‘to interrogate (पूछताछ करना, या जानकारी लेना)’। बाइबिल के अंग्रेज़ी के भिन्न अनुवादों में देखने से भी यही बात सामने आती है कि सभी अनुवादक इन्हें “प्रार्थना” का अर्थ रखने वाली “विनती” नहीं लिखते हैं। इन मूल शब्दों के अर्थों के आधार पर 1 यूहन्ना 5:16 को इस अभिप्राय से देख सकते हैं, “यदि कोई अपने भाई को ऐसा पाप करते देखे, जिस का फल मृत्यु न हो, तो विनती (‘aiteo’ - निवेदन) करे, और परमेश्वर, उसे, उन के लिये, जिन्हों ने ऐसा पाप किया है जिस का फल मृत्यु न हो, जीवन देगा। पाप ऐसा भी होता है जिसका फल मृत्यु है: इस के विषय में मैं विनती (‘erotao’ - पूछताछ करने या जानकारी एकत्रित करने) के लिये नहीं कहता।” यहाँ दूसरी बार प्रयुक्त “विनती” शब्द का अभिप्राय उस प्रकार से “प्रार्थना” करना नहीं है, जैसा कि हम सामान्यतः समझते हैं और जिसके अन्तर्गत परमेश्वर से कुछ माँगते हैं।

           यहाँ दो बहुत महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान देना अत्यावश्यक है, जिनका इस पद की व्याख्या एवँ समझ पर सीधा-सीधा प्रभाव पड़ता है। पहली, जैसा कि इस पद के आरंभ में आया है, यूहन्ना द्वारा यह बात “अपने भाई” अर्थात किसी मसीही विश्वासी जन के लिए कही जा रही है; अर्थात ऐसे व्यक्ति के लिए जिसके मसीह यीशु में विश्वास लाने के द्वारा परमेश्वर के अनुग्रह से पाप क्षमा हो गए हैं और वह प्रभु की सन्तान बनकर अनन्त जीवन में प्रवेश कर चुका है (यूहन्ना 1:12-13)। मसीही विश्वासी होने के नाते, वह अब व्यवस्था की बातों और अनिवार्यताओं से बाहर है, व्यवस्था की आवश्यकताओं की उस पर कोई पकड़ शेष नहीं है (रोमियों 7:6; कुलुस्सियों 2:14); अब न तो व्यवस्था के आधार पर उसका आँकलन किया जा सकता है, और न ही वह व्यवस्था के अनुसार दोषी ठहराया जा सकता है या उसे कोई दण्ड दिया जा सकता है।

           दूसरी यह, कि इस पद के अन्त में लिखा है “...पाप ऐसा भी होता है जिसका फल मृत्यु है: इस के विषय में मैं बिनती करने के लिये नहीं कहता” और इसी वाक्य को लेकर सारा असमंजस, अनिश्चितता, दुविधा होती है। ध्यान देने तथा समझने योग्य बात यह है कि यहाँ पर यूहन्ना ने यह नहीं कहा है कि “क्योंकि उस व्यक्ति के वे पाप क्षमा ही नहीं किए जाएँगे, इसलिए मैं उनके लिए प्रार्थना करने के लिए नहीं कह रहा हूँ” – किन्तु सामान्यतः हम इस पद को पढ़ते समय यही अर्थ निकालते तथा मानते हैं, जबकि ऐसा लिखा ही नहीं गया है। किन्तु यदि हम यहाँ “विनती” के स्थान पर मूल यूनानी भाषा में प्रयुक्त शब्द ‘erotao’ के शब्दार्थ ‘to interrogate’ (पूछताछ करना, या जानकारी लेना) का उपयोग करें, तो फिर वाक्य बन जाता है “...पाप ऐसा भी होता है जिसका फल मृत्यु है: इस के विषय में मैं ‘पूछताछ’ करने के लिये नहीं कहता।” अब यूहन्ना के कहे इस वाक्य का अभिप्राय हो जाता है, “...पाप ऐसा भी होता है जिसका व्यवस्था के अनुसार फल मृत्यु है: परन्तु तुम्हें इसके विषय कोई पूछताछ करने की आवश्यकता नहीं है।” अब जब इसे ऊपर कही गई पहली “भाई” वाली बात के साथ जोड़ कर देखा जाए तो यहाँ यूहन्ना द्वारा कही गई बात हो जाती है, “...व्यवस्था के अनुसार ऐसा पाप तो है जिसके लिए मृत्यु है: परन्तु इसके लिए तुम्हें जानकारी लेने या पूछताछ करने की आवश्यकता नहीं है।” तात्पर्य यह कि, जब प्रभु ही ने उस व्यक्ति को क्षमा कर दिया है जो व्यवस्था के अनुसार क्षमा नहीं किया जा सकता था, उसे अपने मण्डली का सदस्य और अपनी सन्तान बनाकर अपने परिवार में सम्मिलित कर लिया है, तो फिर अब तुम्हें उसके पापों का लेखा-जोखा लेने, उसके विषय पूछताछ करने या जानकारी एकत्रित करने की क्या आवश्यकता है? उससे चाहे ऐसा भी पाप हो जाए जो व्यवस्था के अनुसार क्षमा योग्य नहीं है, परन्तु तुम्हारा उसके पाप के क्षमा-योग्य होने या न होने की बात से कोई लेना-देना नहीं है, इसलिए तुम उसकी पूछताछ मत करो।

           यदि इस पद, 1 यूहन्ना 5:16, को उससे पहले के पदों के संदर्भ में देखें, तो भी उन पदों में व्यक्त बात के साथ यह अभिप्राय सही बैठता है। 1 यूहन्ना 5:13-15 में यूहन्ना अपने पाठकों को समझा रहा है कि प्रभु यीशु मसीह में विश्वास करने से जो अनन्त जीवन मिला है, उसके कारण हमें यह हियाव भी दिया गया है कि हम परमेश्वर से माँग सकें, और हमें यह आश्वासन है कि परमेश्वर हमारे निवेदन सुनकर, यदि वे उसकी इच्छा के अनुसार हैं, तो उन्हें पूरा करेगा। क्योंकि यूहन्ना 3:16 के अनुसार परमेश्वर की इच्छा मसीह यीशु पर विश्वास करने वालों को जीवन प्रदान करने की है, और अब प्रभु यीशु मसीह में होकर व्यवस्था की बातें और दण्ड हम पर लागू नहीं हैं, इसलिए हम निःसंकोच परमेश्वर से उन लोगों को जीवन दान देने के लिए प्रार्थना कर सकते हैं, जो व्यवस्था के अनुसार इस जीवन दान के योग्य नहीं थे, और परमेश्वर उन लोगों को भी जीवन दान देगा।

           संभव है कि व्यवस्था के आधार पर कुछ लोगों को यह संकोच रहा हो कि जिस पाप के लिए परमेश्वर ने पहले ही किसी क्षमा का प्रावधान नहीं किया है और अपनी दी हुई व्यवस्था में मृत्यु निर्धारित कर दी है, उसी के लिए अब हम परमेश्वर से अपनी बात से पलटने और बदलने के लिए कैसे निवेदन कर सकते हैं? यूहन्ना यहाँ उन्हें हिम्मत दे रहा है कि यदि कोई ऐसा पाप कर भी दे, जिसका दण्ड व्यवस्था के अनुसार मृत्यु है, तो भी अब प्रभु यीशु मसीह में होकर उसकी क्षमा और जीवन दान के लिए अवसर उपलब्ध है, मार्ग खुला है।