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शनिवार, 31 दिसंबर 2011

संपर्क अक्टूबर २०११ - कहीं लौट न पाए

शायद यह सवाल कभी किसी ने आपसे न किया हो, क्या आपका जीवन पीछे जा रहा है?

आप पश्चाताप कर के फिर वही करते हो?

क्या आप वही सब तो नहीं कर रहे जो आप छोड़ चुके थे?

फिर वही सब कर रहे हो जो नहीं करना चाहिए था?

आपका प्रेम, प्रार्थना, प्रचार, उपवास, संगति और पारिवारिक प्रार्थना का क्या हाल है?

आपका पहला सा प्यार कहीं चला तो नहीं गया?

इन सवालों पर सोचिएगा, कहीं यह सवाल आपको बेचैन तो नहीं करते?

ये सवाल सब से नहीं पर आप से हैं जो इन पंक्तियों को अभी पढ़ रहे हैं।

हाँ या नहीं? जवाब दें।

यदि आपका उत्तर हाँ है, तो कहिएगा, “प्रभु मैं ने पहला सा जीवन कहीं खो दिया

और यह सच है कि मैं गिर चुका हूँ

अक्सर यह पूछा जाता है,

क्यों, सब ठीक है ना?”

हमारा जवाब यही होता है, “सब ठीक है

पर सच तो यह है के जीवन में सब ठीक नहीं होता। क्या आप उस समय यह कहने की हिम्मत रखते हैं किनहींमेरे जीवन में सब कुछ सही नहीं है। मेरे अन्दर बहुत विरोध और कपट पनप रहा है। प्रभु के लिए पहला सा प्यार, उपवास, संगति और प्रचार चला गया है। ऐसे सवालों को सहना मुश्किल है और उनका सही जवाब देना और भी मुश्किल है।

शायद आप सोचते भी न होंगे कि ऐसे सवाल भी आपसे कोई पूछ बैठेगा और हम पसन्द भी नहीं करते कि हमसे कोई ऐसे तीखे सवाल करे।

आप कह सकते हो कि आप होते कौन हो, जो मुझ से ऐसे सवाल करते हो?

मैं नहीं पूछ रहा, पर कोई है जो आपसे पूछ रहा है, “हे आदम तू कहाँ है? हे हव्वा तू कहाँ है?”

आज ये सवाल आपको संवार सकते हैं और जीवन को एक सही दिशा दे सकते हैं।

यह सवाल हमारी सही हालत को हमारे सामने ला देते हैं।

इससे पहले कि कहीं देर, बहुत देर न हो जाए, यह सवाल आपसे करना बहुत ज़रूरी है कि आपका जीवन कहीं पीछे तो नहीं हटता जा रहा?

अगर हाँ तो आप खतरों के बहुत करीब खड़े हो। किसी भी खतरनाक खबर में आप भी हो सकते हैं। जो लोग चेतावनियों को नज़रान्दाज़ करते हैं, ज़्यादातर वे ही मौत का शिकार होते हैं।

क्या आप मण्डली से दूर तो नहीं चले गए?

क्या आपके दिल में किसी के प्रति कोई दूरी तो नहीं आ गई?

क्या आपके पास प्रभु के काम के लिए समय नहीं रहा?

क्या आपके अन्दर विरोध, जलन, लालच, व्यभिचार तो नहीं भर गया?

कहीं यह सन्देश आपकी असली हालत तो आपके सामने नहीं रख रहा?

फिर पूछता हूँ आपसे, क्या आप पीछे लौट रहे हैं?

क्या आप कहीं खतरे की सीमा रेखा पर तो नहीं खड़े?

यह सन्देश आपको इन सवालों के घेरे में ला कर खड़ा करता है।

सोचो मेरे मित्र, मेहरबानी से अपने जीवन के बारे में सोचो।

अभी समय है; फिर कहीं देर न हो जाए;

मेरे मित्र, अपने आप को रोको मत पर चिल्लाओ,

हे यीशु मुझे बचा नहीं तो मैं गया।

मुझे उभार नहीं तो मैं मरा

दाऊद ने परमेश्वर को पुकारा औरदाऊद सब का सब लौटा लाया” ( १ शमूएल ३०:१९)

जो दाऊद का, वही परमेश्वर आपका भी है

आप भी उसे वैसे ही पुकारो और सब लौटा लो।

शनिवार, 24 दिसंबर 2011

संपर्क अक्टूबर २०११ - कहीं खोया था

ज़िन्दगी यूँ ही बिसरती चली जा रही थी,

चली जा रही थी बिना किसी मकसद,

चली जा रही थी उस मंज़िल की तरफ,

चली जा रही थी जिसका अन्त शून्य था,

चली जा रही थी, अचानक!

कहीं से जीवन आ गया।

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला का वो शाम का अद्भुत नज़ारा था। जैसे ही हमने दूर से शाम के झुटपुटे में हिमाचल की रानी को रौशनियों के गहनों से लदे देखा तो उसकी यह छ्टा देखते ही बनती थी। जैसे ही हमने कुछ देर बाद इस शहर के अन्दर अपने कदम रखे तो मेरा हृदय गदगद हो उठा। मैं शुरू से ही प्रकृति का बहुत प्रेमी रहा हूँ। जब मैंने उन ऊँचे पहाड़ों को देखा और देखा कि उन सुन्दर वादियों को कैसे एक महान कलाकार ने सुन्दर रंगों से सजाकर उनकी सुन्दरता में चार चाँद लगा दिए मैं सोचने लगा कि यह सृष्टि कितनी सुन्दर है। लेकिन मैंने यह नहीं सोचा कि इसको बनाने वाला कैसा है और वो कौन है?

खैर! सुबह हुई और शायद यह १९८६ के रविवार का दिन था। कहीं दूर से गिरजे के घंटों की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। मैं अपने आप को रोक नहीं पाया। मैंने ढूँढ़-ढाँढ़ की तो पाया यह माल रोड पर एक शानदार गिरजा था। लेकिन अन्दर जाने से पहले मेरे मन में ये सवाल थे कि यार, वहाँ अन्दर जो लोग हैं वो मेरे बारे में क्या सोचेंगे? कहीं वे मना तो नहीं करेंगे? क्योंकि मैं उनके धर्म का तो था नहीं। यही होता है जब हम किसी दूसरे धर्म के लोगों से मिलते हैं तो पहली ही बार में वो सामने वाला आदमी हमें औपरा सा लगता है। मेरे साथ ऐसा ही एक अनुभव बचपन में हुआ था जब मैं फुटपाथ से खरीद कर यीशु की काल्पनिक तसवीर घर ले आया था, तो मेरे पिताजी ने कहा, “तू इसको क्यों लेकर आया है? यह तो इसाईयों का भगवान है। दूसरे धर्म के लोगों को देख कर हमारे दिमाग़ में एकदम उनकी एक तसवीर आती है - उनकी संसकृति, धार्मिक तौर-तरीके, उनका खाना-पीना, रहन-सहन और उनकी बुराईयों के आधार पर।

दिशा रहित उपदेश दिल तक नहीं पहुँचा

वैसे मैं मन्दिर अकसर जाता था, मस्जिद और गुरुद्वारे भी गया था। बस मैं गिरजे में कभी नहीं गया था। उस समय मेरे मन में बड़ी झिझक थी। इसी कशमकश में डरते डरते गिरजे के अन्दर जा कर सबसे पिछली बेंच पर जा कर बैठ गया। पर वहाँ का माहौल मेरे लिए बड़ा औपरा सा था क्योंकि मैं उसका आदि नहीं था। जैसे वे खड़े होते मैं भी हो जाता। जैसे वो हाथ इधर-उधर करते मैं भी करने लगता। और भजन गीत! उसका तो पूछो ही मत! मैंने बहुत कोशिश करी कि उनके साथ लग कर गाऊँ, पर मैं फेल था। क्योंकि ऐसे गीत मैंने कभी सुने नहीं थे। पादरी साहब खड़े हो कर जो संदेश दे रहे थे उसका कुछ भी मेरे पल्ले नहीं पड़ रहा था।

लेकिन अचानक मेरे मन में यीशु नाम के लिए बहुत ही आदर प्रेम उमड़ने लगा। मैं तो सोचता था कि यीशु इसाईयों के गुरू हैं जिसे इसाई धर्म के लोग ही मानते हैं। उसी समय एक अजीब सी शांति और खुशी ने मुझे घेर लिया; यह अनुभव मेरे लिए बिलकुल अलग था। मैंने ऐसा अनुभव कभी नहीं किया था। गिरजे की सभा खत्म होने पर मैं बाहर आया, अपने मन में यह ठान कर कि,

मैं सहारनपुर आ कर गिरजे ज़रूर जाया करूँगा

दुनियावी परत मुझ पर चढ़ती चली गई

मैं नास्तिक नहीं था। मैं मानता था कि परमेश्वर है, पर मैं उसे जानता नहीं था। दावा तो करता था कि मैं उसे ही मानता हूँ और उसके अलावा मैं किसी और को नहीं मानता। लेकिन जैसे-जैसे बड़ा होता गया तो दुनियावी परत मुझ पर चढ़ती चली गई। मेरे घर का भी अजीब सा माहौल था। हर दूसरे-तीसरे दिन लड़ाईयाँ होती थीं। लोग तमाशा देखते थे। मैं अधिकतर देखता था कि मेरे माँ-बाप में बनती नहीं है। मैं ऐसे माहौल में पला बड़ा हुआ।

बस तू ही सिकन्दर है

मेरा जीवन भी अजीब था। बाहर से तो मैं दूसरों के सामने बहुत अच्छा था पर अपने आप को अन्दर से मैं ही जानता था कि कितना दोगला था। मैं अपने बुरे कामों को दूसरों से छिपाता था। इसलिए अपने बचाव को हमेशा ध्यान रख कर काम करता था। लेकिन जब भी मैं कोई पाप करता तो मेरा विवेक मुझे बहुत काटता था। मैं ने कई बार बहुत कोशिश करी कि मैं अपने उन गलत कामों को छोड़ सकूँ। मैं बार-बार निश्चय करता और बार-बार हार जाता; इस से मैं बहुत परेशान था। मैं ने बहुत सारे दोस्त बना लिए थे और मुझे इस बात पर घमंड था। जब शाम को उनके साथ घूमता तो लगता कि बस तू ही है सिकन्दर। लेकिन अस्लियत तो बाद में खुली जब वे एक दिन मुझे अकेले पिटता हुआ छोड़ कर अलग हो गए थे।

खालीपन का एहसास

मैं सिगरेट शराब भी पीने लगा था। पर मैं इनका आदि कभी नहीं बना। लेकिन कुछ समय बाद ये दोस्त, सिगरेट, शराब और सिनेमा और सब गलत काम फीके पड़ने लगे थे। जब भी मैं अकेला होता तो अपने अन्दर एक खालीपन का एहसास करता था। और अपने आप को बहुत ही बुझा हुआ और अशान्त पाता था।

कुछ भी पल्ले नहीं पड़ा

१९८८ में मेरे घर वालों के साथ मेरी अनबन हो गई और मैं घर से बाहर किराए पर कमरा ले कर रहने लगा। उस समय मेरे पास बाइबल के नए नियम की एक प्रति थी जो मैं ने कुछ साल पहले कुछ प्रचारकों से खरीदी थी। जब मैं ने उसे पढ़ा तो उसके पहले ही पन्ने पर कुछ लोगों के नाम और उनके बाप-दादों के नाम लिखे थे। जैसे: यीशु मसीह की वंशावली, दाऊद, इब्राहिम, याकूब आदि; उसमें कुछ भी मेरे पल्ले नहीं पड़ा। मैं ने सोचा यह किताब मेरे मतलब की नहीं। फिर भी मैं ने उसे रख लिया। जब मैं अपने घर से अलग हुआ तो पता नहीं कैसे वो नया नियम मैं अपने साथ ही ले आया। एक दिन जब मैं ने उसे खोल कर पढ़ना शुरू किया तो मैं उसे पढ़ता ही चला गया। तब से मैं ने रोज़ कि अपनी आदत बना ली थी कि इस प्रेम सन्देश नामक पुस्तक को मैं कम से कम एक घंटा ज़रूर पढ़ा करूँगा। जब मैं शाम को अपने काम से घर आता तो मैं पहले उसे ही पढ़ता था। अब मेरा मन उसे पढ़ने में लगने लगा था।

उस समय मेरे पास कोई नहीं था जो मुझे प्रभु यीशु के बारे में और समझाता। लेकिन एक अनजानी सी शक्ति मुझे अपनी तरफ खींच रही थी। मैं यीशु का नाम लेता और उस किताब में लिखी प्रभु यीशु की प्रार्थना किया करता था। एक अजीब सा परिवर्तन मैं अपने अन्दर महसूस कर रहा था। मैं ने अपने दोस्तों के साथ घूमना-फिरना बन्द कर दिया। गलत कामों से दूर रहने लगा था और यहाँ तक कि अब मुझे उन में कोई रुचि ही नहीं रही। जब भी मैं कुछ गलत करता तो वो अनजानी शक्ति मुझे रोकती थी। मैं सोचने लगा कि यह सब कैसे हो रहा है? बस मैं इतना जानता था कि प्रभु यीशु के लिए मेरे मन में बड़ा आदर और प्रेम आ गया था। तभी मैं ने सहारनपुर के एक गिरजे में जाना शुरू कर दिया। लेकिन वहाँ जा कर भी मुझे निराशा ही हाथ लगी, क्योंकि वहाँ कोई मुझ से बात नहीं करता था।

एक अलग खुशी का एहसास

एक दिन मेरे घर के पास एक जन ने मुझ से बात करी और बातों-बातों में उससे प्रभु यीशु की बात होने लगी। मुझे पता चला कि वह प्रभु यीशु पर विश्वास करता है। फिर वह मुझे बताने लगा कि यहाँ पास में ही एक संगति होती है, आप वहाँ पर आया करो। करीब एक महीने की टालमटोली के बाद मैं उस संगति में गया, यह सोच कर कि चलो वहाँ देखते हैं कि क्या होता है। वह दिन १५ परवरी १९९० का था। बहुत ही साधारण तरीके से लोग वहाँ सभा में बैठे थे। मुझे वहाँ ज़्यादा तो समझ नहीं आया पर वहाँ बैठ कर एक अलग ही खुशी का एहसास हुआ।

एक हल्केपन का एहसास

सभा के बाद एक भाई ने मुझसे बात करी और पूछा, “क्या आपने प्रभु यीशु से प्रार्थना की? क्या आपने प्रभु यीशु को ग्रहण किया?”

मैं ने जवाब दिया, “नहीं। वैसे तो मैं अपनी समझ के अनुसार प्रार्थना करता ही था और मैं प्रभु का वचन भी पढ़ता था। लेकिन पापों से क्षमा, नरक, स्वर्ग और मरने के बाद क्या होगा? मैं इन सब बातों से अनजान था। लेकिन उस दिन मैं ने उस भाई के साथ प्रार्थना करी और प्रभु को ग्रहण किया। मैं ने प्रार्थना में कहा,

हे प्रभु यीशु मैं एक पापी हूँ और आप पर विश्वास करता हूँ कि आपने मेरे पापों के लिए अपनी जान क्रूस पर दी और अपना लहू बहाया और तीसरे दिन जी उठे। हे प्रभु आप मेरे पापों को क्षमा करें। यह प्रार्थना करना था कि उसके बाद तो ऐसा महसूस हुआ कि जैसे पता नहीं मुझे क्या मिल गया, इतना आनन्द और इतनी खुशी जो मैं ने कभी महसूस नहीं की थी। इतना हल्कापन कि जैसे किसी ने सिर से बोझ उतार दिया हो। उसके बाद मैं लगातार उन सभाओं में जाता रहा।

उसके बाद मुझे एक धुन सवार हो गई कि मैं प्रभु यीशु के बारे में लोगों को बताऊँ। ऐसा मैं लगातार करता रहा। मेरी खुशी और आनन्द बढ़ता गया। लेकिन मेरे मन में अब भी शक आते थे कि मेरे पाप क्षमा हुए या नहीं? एक दिन मैं प्रभु का वचन पढ़ रहा था तो मेरे सामने यह पद आया,

“…और उसके पुत्र यीशु का लहू हमें सब पापों से शुद्ध करता है” “यदि हम अपने पापों को मान लें तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है” (१ युहन्न १:, )

फिर पुराने नियम से प्रभु का वचन मेरे सामने आया, “मैं वही हूँ जो अपने नाम के निमित तेरे अपराधों को मिटा देता हूँ और तेरे पापों को फिर कभी स्मरण ना करूँगा” (यशायाह ४३:२५)

इन पदों से मुझे निश्चय हो गया था कि प्रभु ने मेरे पाप माफ कर दिये और इससे मुझे बड़ा हियाव मिला।

मैं लगातार प्रभु के लोगों के साथ वहाँ पर संगति करता रहा और प्रभु के घर में हर एक सभा में सम्मिलित होता था। १९९१ में मुझे प्रभु की सेवकाई करने का बोझ मिला। उसी दौरान मैं रुड़की आ गया। वहाँ प्रभु के लोगों के साथ मिल कर प्रभु की सेवा करने लगा। तब से मैं और मेरा परिवार यहीं हैं।

उतार-चढ़ाव आज भी ज़िन्दगी के साथ चलते हैं

अन्त में मैं आपको बताना चाहता हूँ कि मेरे आत्मिक जीवन में काफी उतार-चढ़ाव भी आए। आत्मिक गिरावटें आईं, बुरी तरह से पाप में गिर गया। मैं प्रभु से बहुत दूर भी चला गया। जो कोई नहीं जानता सिर्फ मैं या मेरा प्रभु जानता है।

शायद कोई कह सकता है कि प्रभु में आने के बाद भी यह सब! मैं कहता हूँ, हाँ लेकिन मैं उसे जानता हूँ जिसने मुझ से प्रेम किया, उस ने मुझे नहीं छोड़ा। वो ही एक दिन अपनी सिद्धता में तैयार करके मुझे ले जाएगा। परमेश्वर का प्रेम सच्चा है जो उकताता नहीं। ये प्रभु यीशु का प्रेम है जो आपको कभी भी उभार सकता है। जब कि मैं विश्वासयोग्य नहीं रहा, वह आज तक मेरे साथ विश्वासयोग्य है।

आप भी आज उसे पुकार कर देखें, “हे प्रभु मुझे भी एक खुशी और शान्ति से भरा हुआ जीवन चाहिए

- चेतन चमन

रुड़की

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

संपर्क अक्टूबर २०११ - कहीं आप ही न हों

देश भ्रष्ट, महाभ्रष्ट, परमभ्रष्ट बनता जा रहा है। देश ही क्या सारा संसार नर्क जाने से पहले खुद नर्क बनता जा रहा है। आप चाहते तो होंगे कि हमारे देश में जितने भी अपराधी और भ्रष्ट हैं उन्हें सज़ा मिलनी ही चाहिए।

ज़रा यहाँ रुकिएगा!

आप अपने बारे में सोचिएगा?

क्योंकि आपने भी तो शायद कभी रिश्वत ली और दी होगी, चोरी की होगी, गर्भपात करवाए होंगे, बिना टिकिट यात्राएं की होंगी, झूठ बोला धोखा दिया होगा, गलत संबंध रखे होंगे और कुछ बुरी लतों से बंधे होंगे। क्या यह सत्य नहीं?

आप अपने आप से सवाल कीजिएगा। कुछ न कुछ तो किया होगा जो नहीं करना चाहिए था।

हर अपराध पाप है आप मानें या ना मानें। हम में पाप है और पाप का ज़हर हर आदमी के लहू में है। या यूँ कहिए कि आदमी के डी०एन०ए० में है जो हमें परेशान, महापरेशान और परमपरेशान बनाता जा रहा है। कभी कभी तो मन अपने आप से यूँ कहता है, “तू मरता क्यों नहीं?”

कुछ लोग कहते हैं कि सख्त कानून और सख्त सरकारें ही संसार को बदल सकती हैं। संसार में कई जगह सख्त से सख्त कानून हैं, उनकी सरकारें बहुत व्यवस्थित हैं, पर वे भी आदमी का स्वभाव बदल नहीं सके।

कई लोगों का कहना है कि कई बार हालात आदमी को बहुत बदल देते हैं। अमेरिका पर हुए ९ सितंबर २००१ के आतंकवादी हमले के बाद टी०वी० पत्रकारों ने कहा, “अब अमेरिका हमेशा के लिए बदल जाएगा। उस दिन अमेरिका में बड़ी राष्ट्रीय भावना दिखाई दी। घरों पर राष्ट्रीय ध्वज दिखाई दिए, मुँह में राष्ट्रीय नारे थे। पर कुछ दिन बाद आदमी वैसा का वैसा ही था जैसे वो पहले था। कोई भी हालात आदमी को नहीं बदल सका।

क्या धर्म बदलेगा?

क्या धर्म आदमी को बदलेगा? अब तो धर्म खुद ही बदल गया है। धर्म की धारणा बदल गई कि मेरा धर्म अच्छा और आपका बुरा, मेरा धर्म ही सही है बाकि सब गलत हैं। धर्म सदियों से समाज और इन्सान को बदल नहीं पाया। यदि आप अपना धर्म भी बदल लें तब भी कुछ बदलने वाला नहीं है।

एक खास इसाई संप्रदाय में एक परंपरा है - एक खास दिन अपने पाप को अपने पादरी के सामने स्वीकार कर लेते हैं और वह उन्हें क्षमा कर देता है। बात बड़ी अजीब सी है कि पाप किसी के साथ करो और क्षमा किसी दूसरे से माँगो।

खैर कहानी इस तरह है - किसी विशेष बृहस्पतिवार को उपदेश के बाद लोगों ने अपने-अपने पाप पादरी साहब को अकेले में बताए और पादरी साहब ने उनको क्षमा पाने के तरीके समझाए। अगले दिन हर शुक्रवार को रीति के अनुसार फिर पापों का मानना होता है।

शुक्रवार को एक ट्रक ड्राइवर के साथ मामला उलझ गया।

पादरी साहब ने पूछा,

मियाँ, एक बात तो बताओ,

कल तुम कह रहे थे के तुम ने

खेत से जहाँ कोई नहीं था

एक ही बोरी अनाज की चुराई थी।

आज तुम कह रहे कि दो बोरी चोरी से लाया हूँ।

मामला क्या है?”

ट्रक ड्राइवर ने कहा, “पादरी साहब

कल तो एक बोरी चोरी करी थी और पश्चाताप किया।

आज भी उस खेत में कोई नहीं था।

इसलिए एक बोरी और भी हाथ लग गई।

इसलिए दो बोरी की चोरी हो गई।

अब दो बोरी का पश्चाताप करना पड़ेगा…”

यह पश्चाताप है या पश्चाताप का मज़ाक? क्या ऐसा पश्चाताप वास्तव में परिवर्तन ला सकता है? पर यह तो एक धर्म की रीति है।

मजबूरी का नाम परिवर्तन नहीं

कुछ लोग कहते हैं कि मजबूरियाँ आदमी को बदलती हैं। एक बच्चे ने माँ से बदतमीज़ी की। बाप ने कहा, “जब तक यह माँ से माफी नहीं माँगेगा तब तक इसे खाना नहीं मिलेगा। बच्चा ढिठाईपन दिखा कर अपने कमरे में चला गया। शाम धीरे धीरे रात में बदलने लगी। लड़के के पेट में चूहे फुदकने लगे, और लड़के की बरदाशात छूटने लगी। अब उसके पास माफी माँगने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा।

आखिर हार कर माँ के पास जाकर बोला, “माँ माफ कर दो।उसका यह पश्चाताप पाप का एहसास नहीं था पर यह भूख का एहसास था। ऐसा पश्चाताप वास्तविक पश्चाताप नहीं है।

हम बदलाव चाहते हैं कि मेरा जीवन बदले, परिवार बदले। आखिर जीवन कैसे बदले? क्या आप मानते हैं कि कोई परमेश्वर है? अगर है तो वो ही बदल सकता है; क्योंकि जो काम आदमी नहीं कर सकता वो परमेश्वर कर सकता है।

जब आदमी

मौत बस,

मौत ही माँगता हो

जो इस लेख को लिख रहा है यही इन्सान कितनी बार जीवन से भाग कर मौत माँगता था, मौत चाहता था। अचानक किसी ने मुझे यीशु के बारे में बताया। ईसाईयों के यीशु के बारे में नहीं, पर उस यीशु के बारे में जो जीवन देता है। आनन्द से भरा जीवन, एक ऐसा जीवन ओ जीने के लायक हो। मैं ने सिर्फ इतना ही तो कहा था, “हे यीशु मेरे पाप माफ करो और मेरा जीवन बदलो।सच मानिए मेरा धर्म नहीं बदला पर जीवन ही बदल गया।

यीशु की तस्वीर लगा लेने से क्या होता है? यह तो ऐसा है जैसे अन्धेरी दीवार पर प्रकाश शब्द लिख कर लटका देना। अन्धेरी दीवरों पर दीये की तस्वीर लगाने से भी उजियाला नहीं होता। अन्धेरे से मत लड़ो, जीत नहीं पाओगे। बस ज्योति को ले आओ, अन्धेरा भाग खड़ा होगा। इस सच्चाई की रौशनी में कोई अन्धेरा टिक नहीं सकता। यीशु ने कहा, “मैं जगत की ज्योति हूँ” (यूहन्ना ८:१२)

परमेश्वर प्यार है। वह आपको अपने स्वभाव में ढालना चाहता है। उसने आपके लिए अपनी ज़िन्दगी लुटा दी। वह आपको प्यार करता है। कोई कलम और ज़ुबान उसके प्यार को बता नहीं सकते। वो दोस्ती के लिए अपना हाथ आपकी तरफ बढ़ा रहा है। बात अब आप के हाथ फैलाने पर रुकी है। ताकि आप एक पश्चाताप की प्रार्थना के द्वारा एक ऐसा जीवन पा सकें जो आनन्द से भरा है। अब आप अपने को रोकिएगा नहीं। आप यहाँ प्रार्थना करेंगे, वहाँ पहुँचेगी और आप तक आनन्द और आशीष लेकर लौटेगी। जो आनन्द और खुशी आपको वो देगा और कोई नहीं दे पाएगा। बस मैंने इतना ही तो कहा था, “हे यीशु मुझ पापी पर दया करें।

प्रभु का क्रोध पाप पर है, आप पर नहीं। वह आपको बहुत प्यार करता है पर आपके पाप से नफरत करता है। परमेश्वर ने आपका वह पाप आप पर प्रकट किया है जो आप छिपाए बैठे हो। कल किसने देखा है? इसलिए अपने पाप के साथ कल का इंतज़ार करना बहुत खतरनाक है।

क्षमा या सज़ा

पर किसी ने आपके हाथ में यह पत्रिका सौंपी है ताकि आप अपने आप को जान लें। धन्य हैं वे जिनके पाप क्षमा हुए। इसमें एक अर्थ और छिपा है - दुखी हैं वे जिनके पाप क्षमा नहीं हुए। पाप की माफी पाने के लिए सबसे पहला काम है अपने आप को पापी मानना। यदि आप अपने आप को पापी नहीं मानते तो माफी माँगने का कोई अर्थ नहीं रहता।यदि हम कहें कि हम में कुछ भी पाप नहीं, तो अपने आप को धोखा देते हैंपर यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्यहै” (१ युहन्ना १:,)। पाप की माफी ही काफी नहीं है पर यह भी विश्वास करना है कि प्रभु यीशु मेरे पापों के लिए क्रूस पर मारा गया, गाड़ा गया और फिर तीसरे दिन जी उठा। उसका लहू मुझे सब पापों से शुद्ध करता है।

अगर आप अपने पाप की भयानकता का एहसास नहीं करते तो यह शुभ संदेश आपके लिए अशुभ संदेश होगा; क्योंकि इस संदेश को सुनने के बाद आपके पास कोई बहाना ना होगा कि आपको पाप की क्षमा का मौका नहीं दिया गया। प्रभु के बर्दाश्त की छिपी हुई सीमाएं हैं। कहीं ऐसा न हो कि उस दयालू परमेश्वर के पास भी आपके लिए दया न बचे; क्योंकि मौत के बाद दया का अर्थ नहीं बचता।

ये घड़ी आपके लिए बड़ी नसीब से मिली है, और फिर आपको यह घड़ी मिले या न मिले। अगर यह आपके हाथ से निकल गई तो फिर शायद आप इस घड़ी के लिए तरसते रह जाएंगे। जहाँ आपको नहीं होना चाहिए आप वहाँ जा पहुँचेंगे और वहाँ से लौट पाना फिर कभी संभव नहीं हो पाएगा। अभी फैसला कर लें कहीं ऐसा ना हो कि यह मौका आपको फिर कभी ना मिले।

बस यही तो कहना है, “हे यीशु मुझ पापी पर दया दिखाओ और मुझे मेरे पापों की क्षमा दे दो। एक ऐसा जीवन दे दो जो वास्तव में जीने के लायक हो।