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गुरुवार, 9 जनवरी 2020

प्रभु में विश्वास का प्राथमिक आधार – आश्चर्य कर्म, या परमेश्वर का वचन?



    प्रभु यीशु में हमारे विश्वास का प्राथमिक आधार प्रभु का वचन होना चाहिए, न कि उसके नाम में किए गए आश्चर्य कर्म। प्रभु यीशु ने अपनी सेवकाई का आरंभ प्रचार के द्वारा किया था, न कि आश्चर्य कर्मों के द्वारा (मरकुस 1:14-15)। जब प्रभु यीशु ने अपने बारह शिष्यों को चुना, उन्हें सामर्थ्य प्रदान की और उन्हें अपने प्रतिनिधि बनाकर उनकी प्रथम सेवकाई के लिए भेजा, तब प्रभु द्वारा उन्हें दी गई प्राथमिक आज्ञा थी कि वे जा कर प्रचार करें कि स्वर्ग का राज्य निकट है; आश्चर्य कर्म करने के लिए कहना प्रचार के बाद था (मत्ती 10:1, 5-8; मरकुस 3:14-15)। यहाँ पर ध्यान देने के लिए यह महत्वपूर्ण बात है कि जो उन आश्चर्य कर्मों के लिए संदेह करेंगे उनके विरुद्ध कुछ नहीं कहा गया है, परन्तु जो उस वचन का तिरस्कार करें उनके लिए एक भयानक भविष्य रखा है (मत्ती 10:14-15)। यहाँ पर एक और भी ध्यान देने योग्य महत्वपूर्ण बात है जिसे प्रभु यीशु ने उस समय के लिए कहा यदि ये शिष्य उनकी सेवकाई के कारण उच्च अधिकारियों के सामने ले जाए जाते। प्रभु ने उन्हें आश्वस्त किया कि ऐसी परिस्थिति में उनके बचाव के लिए, उन्हें पवित्र आत्मा की सामर्थ्य द्वारा, बता दिया जाएगा कि क्या ‘कहें’, बजाय इसके कि क्या आश्चर्य कर्म ‘करें’ (मत्ती 10:18-20).

    युहन्ना 17 पढ़िए, जो प्रभु की वह महायाजकीय प्रार्थना है, जो उन्होंने क्रूस पर चढ़ाए जाने के लिए पकड़े जाने से पहले की थी। इस प्रार्थना में ध्यान कीजिए कि कैसे प्रभु बारंबार उस वचन पर ज़ोर दे रहे हैं जो उन्होंने अपने शिष्यों को दिया था, और जिसे उन्हें अपनी सेवकाई के दौरान औरों को पहुंचाना था। प्रभु के स्वर्गारोहण से ठीक पहले, जो महान आज्ञा प्रभु ने अपने शिष्यों को दी, वह थी कि वे जा कर उस वचन का प्रचार करें जिसे प्रभु ने उन्हें सौंपा था (मत्ती 28:18-20; प्रेरितों 1:8)। प्रथम कलीसिया का जन्म, जो हम प्रेरितों 2 में देखते हैं, पतरस द्वारा किए गए प्रचार से हुआ था न कि किसी आश्चर्य’ कर्म के द्वारा ‘अन्य भाषाएं’ बोलने के चमत्कार ने तो लोगों में असमंजस और उपहास उत्पन्न किया, विश्वास नहीं; किन्तु वचन के प्रचार के द्वारा पश्चाताप, विश्वास, और उद्धार आया। हम देखते हैं कि बाद में, जो मसीही विश्वासी सताव के कारण यरूशलेम से खदेड़े गए, वे भी वचन का प्रचार करते हुए गए (प्रेरितों 8:1-4)। पौलुस ने तिमुथियुस को बल देकर कहा कि परमेश्वर के वचन को सही रीति से और ठीक-ठीक सिखाया जाना चाहिए (2 तिमुथियुस 2:2, 15) क्योंकि वचन ही है जो विश्वास के द्वारा उद्धार प्राप्त करने के लिए बुद्धिमान बना सकता है (2 तिमुथियुस 3:14-17)

    प्रभु यीशु मसीह वचन हैं; वह वचन जो परमेश्वर के साथ है; वह वचन जो परमेश्वर है; वह वचन जिसने देहधारी होकर हमारे बीच में डेरा किया (यूहन्ना 1:1, 14) – वह, जो जीवित वचन है, वही जो मसीही विश्वास का विषय और आधार है। आश्चर्य कर्म विश्वास का आधार नहीं हैं, वरन जो वचन या सुसमाचार लोगों को सुनाया जाता है उसकी पुष्टि करने के चिन्ह हैं (मरकुस 16:15-20); सदा से ही परमेश्वर का वचन ही मसीही विश्वास का आधार रहा है। इसीलिए शैतान हमें सदा ही परमेश्वर के वचन से दूर ले जाने का प्रयास करता है, और ऐसा करने के लिए आश्चर्य कर्म और अद्भुत चिन्हों को विश्वास का आधार बनाना उसके धोखे और बहकावे के कार्यों में बहुत सहायक होते हैं। लोग, परमेश्वर के वचन के अध्ययन और आज्ञाकारिता में संलग्न होने के स्थान पर, ऐसी लालसाओं में पड़ जाते हैं कि वे भी आश्चर्य कर्म करने वाले हो जाएं, या आश्चर्य कर्मों के द्वारा उन्हें कुछ लाभ मिल जाए, या आश्चर्य कर्म करने वाले कहलाए जाने के द्वारा उनका नाम और ख्याति हो जाए, आदि।

    आश्चर्य कर्म तो शैतान, उसके दूत, और उसका अनुसरण करने वाले भी कर सकते हैं (निर्गमन 7:11-12, 22; 8:7; प्रेरितों 16:16-18; 2 थिस्सलुनीकियों 2:9-10; प्रकाशितवाक्य 13:11-15), और यदि व्यक्ति परमेश्वर के वचन – “सत्य में दृढ़ता से स्थापित न हो, तो शैतान के धोखों और अद्भुत चिन्हों द्वारा बहकाए जाने के द्वारा उन के विनाश में जाने का खतरा बना रहता है, उसी विनाश में जिसमें इस प्रकार के चिन्ह और अद्भुत कार्य करने वाले अंततः जाएंगे (प्रकाशितवाक्य 19:20; 20:10).

    इसलिए हमारे लिए यह सुनिश्चित कर लेना अनिवार्य है कि परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह में हमारा विश्वास किसी चिन्ह अथवा आश्चर्य कर्म आदि पर आधारित नहीं है वरन परमेश्वर के वचन जो अचूक और दोषरहित है, पर विश्वास लाने और भरोसा रखने पर आधारित है। हमें परमेश्वर के वचन बाइबल  को प्रार्थना सहित पढ़ने और उस पर मनन करने में समय बिताना चाहिए,और उसमें होकर परमेश्वर से मार्गदर्शन के खोजी होना चाहिए (1 शमुएल 3:21; भजन 119:105)। परमेश्वर के वचन में दृढ़ और स्थापित होना ही शैतान के द्वारा बहकाए जाने से बचे रहने का अचूक उपाय है इसके लिए कुलुस्सियों 2 पर भी मनन करें।

रविवार, 24 मार्च 2019

बाइबल शिक्षा कैसे पाएँ


प्रश्न:
 क्योंकि मैं नौकरी करता हूँ, इसलिए किसी सेमिनरी में जाने में समर्थ हूँ। क्या किसी रीति से में घर से ही बाइबल अध्ययन सीख सकता हूँ, जिससे मैं प्रभु के विषय और जानकारी प्राप्त कर सकूँ?

 उत्तर:
परमेश्वर के वचन के प्रति हमारा प्रेम, बाइबल को जो स्थान हम अपने जीवनों में प्रदान करते हैं, वही परमेश्वर के प्रति हमारे प्रेम का माप और सूचक है (यूहन्ना 14:21, 23)। परमेश्वर के वचन को हम जितना अधिक जानेंगे, उसे अपने दैनिक जीवन में जितना अधिक महत्व देंगे, वह हमारी दैनिक गतिविधियों और आवश्यकताओं के लिए उतना ही अधिक उपयोगी तथा लाभदायक होगा (भजन 119:97-105)।

परमेश्वर के वचन को सीखने का सबसे उत्तम, सरल, और कारगर तरीका है स्वयँ उसे पढ़ना, उस पर नियमित मनन तथा विचार करना, और प्रतिदिन उसे अपने व्यवाहरिक जीवन में लागू करना। यदि आप पापों से पश्चाताप करने तथा प्रभु यीशु को जीवन समर्पण के द्वारा नया जन्म पाए हुए मसीही विशवासी हैं, तो परमेश्वर का पवित्र आत्मा आपके अन्दर निवास करता है (1 कुरिन्थियों 6:19; इफिसियों 1:13), और पवित्र आत्मा स्वयँ हम मसीही विशावासियों – प्रभु यीशु के शिष्यों, को न केवल उसकी बातें सिखाता है, परन्तु उन्हें समझाता है तथा उन्हें उपयोग में लाना बताता है (यूहन्ना 14:26; 16:13-15)। बुनियादी और अपरिवर्तनीय वास्तविकता तो यह है कि बिना पवित्र-आत्मा की सहायता एवँ मार्गदर्शन के कोई परमेश्वर और उसके निर्देशों के बारे में सीख ही नहीं सकता है (1 कुरिन्थियों 2:11-14), कहीं से भी नहीं, किसी से भी नहीं। इसलिए बाइबल को जानने और समझने का बुनयादी आधार है नया जन्म पाया हुआ मसीही विश्वासी होना, जिससे परमेश्वर पवित्र-आत्मा आपकी सहायता कर सके और आपको परमेश्वर का वचन सिखा सके। अकसर लोगों में एक बेबुनियाद संकोच होता है कि वे परमेश्वर के वचन के सीख सकने योग्य भले नहीं हैं, वे परमेश्वर की धार्मिकता के मापदण्ड पर वचन सीखने के योग्य नहीं है। ये भय निराधार हैं और शैतान के द्वारा हैं; भजन 25:8-14 से देखिए कि परमेश्वर किन लोगों को सिखाता है; और आप पाएँगे कि परमेश्वर हमारी किसी भी कमज़ोरी या अयोग्यता के कारण अपना वचन हमें सिखाने से पीछे नहीं हटता है – वह तो तैयार है और प्रतीक्षा कर रहा है, यदि आप नया जन्म पाने की उस बुनियादी आवश्यकता को पूरा करके विश्वास के साथ उसके पास आने और उससे सीखने के लिए तैयार हैं।

मैं भी आपके समान नौकरी करने वाला व्यक्ति हूँ, और कभी किसी बाइबल स्कूल या ट्रेनिंग के लिए नहीं गया। बस परमेश्वर पर विश्वास करके उससे ही उसका वचन माँगता हूँ और जो वह देता है, उसे बाँट देता हूँ, तथा अपने जीवन में लागू करते रहने में प्रयासरत रहता हूँ। मैं नियमित योजनाबद्ध विधि से बाइबल पढ़ता हूँ, और परमेश्वर के अनुग्रह तथा मार्गदर्शन से प्रति वर्ष में एक बार बाइबल को आरंभ से अन्त तक पढ़ लेता हूँ, और यह लगभग पिछले तीस वर्ष से होता आया है, अर्थात जब से मैंने नया जन्म पाया; यद्यपि मैं जन्म और परवरिश से एक ईसाई परिवार से हूँ, और पारंपरिक ईसाई रीति-रिवाजों के पालन के साथ मेरी परवरिश हुई थी। प्रश्नों का उत्तर देने या वचन की सेवकाई के लिए जो तैयारी करनी होती है वह इस दैनिक बाइबल के पढ़ने के अतिरिक्त होती है। जो परमेश्वर मुझे सिखाता है उसे औरों तक पहुँचाने की लालसा के फलस्वरूप परमेश्वर ने मुझे उसके वचन को सिखाने और बाँटने की इस सेवा का अवसर प्रदान किया है – स्वयं-सेवी होकर, किसी पारिश्रमिक, या धन, अथवा किसी चर्च या संस्था में किसी स्तर, पदवी आदि के लिए नहीं, बस इसलिए कि प्रभु के बारे में लोगों को सिखा सकूँ और समझा सकूँ, जिससे मैं स्वयँ भी और अधिक सीख सकूँ। मैंने देखा है कि जितना अधिक मैं इस वचन को औरों के साथ बाँटता हूँ, उतना अधिक यह मेरे जीवन में विभिन्न रीतियों से लाभप्रद होता है।

मेरे अपने जीवन के अनुभव के आधार पर मेरी यही सलाह है कि आप नियमित और क्रमवार बाइबल पढ़ना आरंभ करें – चाहे समझ में आए या न आए। मैंने बाइबल को पूरा पहली बार, अपमानित होने के बाद ज़िद में होकर पढ़ा था, कि कम से कम एक बार तो बाइबल को पूरा पढूंगा ही, क्योंकि मेरे एक हिंदू मित्र ने मुझे ताना मारा था कि तूने अपने ही धर्म-ग्रन्थ को न तो पूरा पढ़ा है और न ही उसे जानता है फिर भी मुझे उसके बारे में बताना चाहता है – और तब से इस वचन का चस्का ही लग गया। बस प्रार्थना के साथ, एक सच्चे, खोजी और समर्पित मन के साथ पढ़िए; परमेश्वर से मांगिए कि वह आपको सिखाए और बताए (याकूब 1:5); और फिर जो भी वह आपको सिखाता या बताता है, उसे अपने जीवन में लागू करें तथा उसे किसी और के साथ बाँट दें, और आप पाएँगे कि ऐसा करने से आपके जीवन में परिवर्तन आ रहा है, आपके अन्दर वचन की समझ उत्पन्न हो रही है, और जैसे जैसे आप परमेश्वर द्वारा आपको सिखाए गए वचन को सही रीति से उपयोग करेंगे, वह आपको अपने वचन में से और अधिक सिखाता चला जाएगा।

इतना ध्यान रखें कि मनुष्य का भय खाकर परमेश्वर अपने वचन की जो भी शिक्षा आपको देता है उसके निर्वाह में संकोच या समझौता न करें – ऐसा करना हानिकारक होगा (नीतिवचन 29:25; यिर्मयाह 1:9-10, 17-19; गलातियों 1:10)। आरंभ में थोड़ा समय लगेगा, परमेश्वर अपने तरीके से आपको आरंभिक बातों के सिखाने के साथ आरंभ करेगा, जैसे एक आत्मिक बच्चे से (1 पतरस 2:1-2)। उसके ऐसा करने के समय हो सकता है कि आपको मनुष्यों द्वारा सिखाई गई कई बातों को छोड़ना या भूलना भी पड़े, जिससे आप परमेश्वर से सीख सकें। वह आपको आपके जीवन में जिन बातों की आवश्यकता है उनके बारे में, और जो सेवकाई वह आप से लेना चाहता है उसके अनुसार ही सिखाना आरंभ करेगा तथा सिखाता जाएगा। जब आप उसके प्रति समर्पित और विश्वासयोग्य बने रहेंगे, उसके वचन का सही उपयोग करते रहेंगे (2 कुरिन्थियों 4:1-2; 2 तिमुथियुस 2:15-16; 2 तिमुथियुस 3:14-16), तो धीरे-धीरे वह आपको और गूढ़ बातें भी सिखाने लगेगा। इसलिए थोड़ा धैर्य रखें और प्रभु तथा उसके वचन के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने के प्रयास में कभी ढीले नहीं हों, कोई कमी नहीं आने दें। उसके मार्गों में दृढ़ता से डटे रहें और जीवन में आपको इसके लिए कभी पछतावा नहीं होगा  (यशायाह 40:31)।

घर बैठे बाइबल सीखने का इससे उत्तम और सहज तरीका और कोई नहीं है।