सूचना: ई-मेल के द्वारा ब्लोग्स के लेख प्राप्त करने की सुविधा ब्लोगर द्वारा जुलाई महीने से समाप्त कर दी जाएगी. इसलिए यदि आप ने इस ब्लॉग के लेखों को स्वचालित रीति से ई-मेल द्वारा प्राप्त करने की सुविधा में अपना ई-मेल पता डाला हुआ है, तो आप इन लेखों अब सीधे इस वेब-साईट के द्वारा ही देखने और पढ़ने पाएँगे.
शिक्षा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
शिक्षा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

दाऊद द्वारा जनगणना


   प्रश्न: दाऊद द्वारा जनगणना के लिए कौन ज़िम्मेदार – परमेश्वर (2 शमूएल 24:1) या शैतान (1 इतिहास 21:1)?

 

उत्तर:

 2 शमूएल 24:1 “और यहोवा का कोप इस्राएलियों पर फिर भड़का, और उसने दाऊद को इनकी हानि के लिये यह कहकर उभारा, कि इस्राएल और यहूदा की गिनती ले।

1 इतिहास 21:1 “और शैतान ने इस्राएल के विरुद्ध उठ कर, दाऊद को उकसाया कि इस्राएलियों की गिनती ले।

    यह दोनों खण्ड परस्पर विरोधाभास प्रतीत में होते हैं, क्योंकि पढ़ते ही लगता है कि 2 शमूएल 24:1 में यह कार्य यहोवा ने करवाया, और 1 इतिहास 21:1 से लगता है कि वही कार्य शैतान ने करवाया – इसलिए असमंजस होता है।


    बात को समझने से पहले यह ध्यान रखना आवश्यक है कि परमेश्वर शैतान को भी अपनी योजनाओं की पूर्ति में प्रयोग कर सकता है, किन्तु साथ ही वह पहले से ही शैतान द्वारा अपने लोगों के विरुद्ध कुछ कर पाने की सीमाएं भी निर्धारित और स्थापित कर देता है, जैसा कि हम अय्यूब के जीवन से तथा प्रभु यीशु के द्वारा शिष्यों से अपने पकड़वाए जाने से पहले के वार्तालाप में देखते हैं (अय्यूब 1:12; 2:6; लूका 22:31-32)। साथ ही परमेश्वर पहले ही इस्राएलियों को यह चेतावनी दे चुका था कि यदि उसके लोग, उसके साथ बाँधी गई वाचा को तोड़ेंगे, तो वह भी उनसे अपना मुँह छुपा लेगा (व्यवस्थाविवरण 31:16-17), यदि वे उसे अपनी मूर्खता या व्यर्थ बातों से रिस दिलाएंगे, तो वह भी उन्हें मूर्खता के लिए रिस दिलाएगा (व्यवस्थाविवरण 32:21)। एक अन्य तथ्य जिसे ध्यान में रखना आवश्यक है, वह है कि जनगणना के दोनों ही वृतांतों से यह प्रकट है कि प्राथमिक दोष इस्राएली प्रजा का था, और दाऊद फिर इसमें खिंच गया, तथा मूर्खता करने के लिए उकसाया गया।


    अब हम 2 शमूएल 24:1 पर आते हैं – हम इसके सन्दर्भ, इससे पिछले अध्याय, अध्याय 23, से समझने पाते हैं कि यह घटना दाऊद के राज्य के बाद के समय के उन वर्षों की है, जब वह उस पूरे क्षेत्र में, अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भी, और अपनी प्रजा में भी, एक महान, प्रबल, और शक्तिशाली राजा स्थापित हो चुका था। अध्याय 23 उसके शूरवीर सेनापतियों और सैनिकों, सेना-नायकों और उनके पराक्रम के कार्यों आदि का भी वर्णन करता है। इस पृष्ठभूमि के साथ हम आगे देखते हैं कि इस अध्याय (2 शमूएल 24) का आरंभ “और यहोवा का कोप इस्राएलियों पर फिर भड़का” शब्दों के साथ होता है। अर्थात इस्राएल तथा दाऊद के जीवनों में कुछ ऐसा आ गया था जिस से परमेश्वर उनसे क्रुद्ध हुआ, और उसे इस्राएल तथा उसके राजा को कुछ पाठ सिखाने की आवश्यकता हुई। इन तथ्यों के आधार पर जो विचार सामने आता है वह यह है कि यद्यपि समस्त इस्राएल में सुरक्षा, निश्चिंतता, और समृद्धि का माहौल था, किन्तु अब उन्हें अपनी इस सुरक्षा, निश्चिंतता, और समृद्धि का कारण उनपर बनी रहने वाली परमेश्वर की कृपा और अनुग्रह नहीं, वरन उनके महान राजा तथा उसके शूरवीर, पराक्रमी सेनापतियों और विशाल सेना के कार्य और प्रताप दिखने लग गए थे। संभवतः यही भावना, अर्थात, प्रजा के लोगों और सेना की संख्या एवं सामर्थ्य में घमण्ड, या तो राजा दाऊद में भी आ गई थी, अन्यथा आने लगी थी। तभी, एक तो, उसके सेनापति योआब ने उसे समझाने और जनगणना न करने की सलाह दी परंतु दाऊद नहीं माना, और योआब को जनगणना के लिए जाना पड़ा (2 शमूएल 24:2-4; 1 इतिहास 21:2-4); और दूसरे, यह जनगणना करवाने के लिए दाऊद बाद में अपने आप को दोषी बता कर पश्चाताप भी करता है (2 शमूएल 24:10; 1 इतिहास 21:8)।


    इस्राएलियों के द्वारा परमेश्वर के स्थान पर पराक्रमी दाऊद और उसकी शूरवीर सेना को अपनी सुरक्षा, निश्चिंतता, और समृद्धि का आधार समझ लेना, और दाऊद का भी, जो परमेश्वर को इतनी निकटता से जानता था, शैतान की बात पर ध्यान लगाना, चिताए जाने पर भी नहीं सुधारना, शैतान के बहकावे में आ जाना और इस संबंध में परमेश्वर की इच्छा आ पता न करना, परमेश्वर को बुरा लगा (1 इतिहास 21:7)। दाऊद जब तक शाऊल से जान बचा कर भाग रहा था, वह अपनी हर बात के लिए परमेश्वर से पूछा करता था। जब राजा बनकर सुरक्षित तथा आदरणीय हो गया तो निश्चिन्त होकर अपने आप पर भरोसा करने लग गया – वाचा के संदूक को यरूशलेम लाने का निर्णय लेना (2 शमूएल 6:1-8), मंदिर बनवाने का निर्णय लेना (1 इतिहास 17:1-4), इस जनगणना का आदेश देना, बतशेबा के साथ व्यभिचार और उसके पति ऊरिय्याह की हत्या करवाना (2 शमूएल 23:7-10), आदि उसकी इस प्रवृत्ति के उदाहरण हैं। परमेश्वर को हलके में लेने और उसके आदर तथा महिमा को चुराने के दोषी दाऊद और उसकी प्रजा दोनों ही थे, और परमेश्वर अपने आदर और महिमा के विषय बहुत विशिष्ट रहता है तथा जलन रखता है (यशायाह 42:8; 48:11; भजन 50:21-22); इसलिए परमेश्वर को दाऊद और उसकी प्रजा के लोगों, दोनों ही को यह पाठ पढ़ाना पड़ा (मलाकी 2:2)। शैतान हमेशा अवसर की तलाश में रहता है कि परमेश्वर के लोगों में कोई अनुचित अभिलाषा उत्पन्न हो, और वह उनकी उस अनुचित अभिलाषा की चिंगारी को भड़का कर उन्हें ही भस्म कर देने वाली आग बना दे (याकूब 1:12-15)। दाऊद और उसकी प्रजा ने परमेश्वर के बाड़े की मर्यादा को तोड़ा, उसकी सुरक्षा के बाहर आए, और सर्प ने उन्हें डस लिया (सभोपदेशक 10:8)। 


    दाऊद और उसकी प्रजा के लोगों को यह पाठ पढ़ाने के लिए परमेश्वर ने शैतान को दाऊद को उकसा लेने दिया कि वह दाऊद से जनगणना करवाए (1 इतिहास 21:1) – जनगणना करवाने के पश्चात दाऊद को अपनी गलती का एहसास हुआ, और उसे बहुत पछतावा भी हुआ, किन्तु उसे तथा प्रजा को ताड़ना भी सहनी पड़ी। उस जनगणना के परिणामों के द्वारा परमेश्वर इस्राएलियों और दाऊद को यह दृढ़ता से सिखाने पाया कि उनकी सुरक्षा उनके सैनिकों की संख्या और पराक्रम, राजा के महान होने में नहीं है, वरन परमेश्वर स्वयं उनकी सुरक्षा और सहायता, उनकी निश्चिंतता का आधार है; उसके अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति या बात में इस सुरक्षा का भरोसा रखना न केवल खतरनाक है, वरन हानिकारक भी है – और यही शिक्षा आज हमारे लिए भी है।

रविवार, 24 मार्च 2019

बाइबल शिक्षा कैसे पाएँ


प्रश्न:
 क्योंकि मैं नौकरी करता हूँ, इसलिए किसी सेमिनरी में जाने में समर्थ हूँ। क्या किसी रीति से में घर से ही बाइबल अध्ययन सीख सकता हूँ, जिससे मैं प्रभु के विषय और जानकारी प्राप्त कर सकूँ?

 उत्तर:
परमेश्वर के वचन के प्रति हमारा प्रेम, बाइबल को जो स्थान हम अपने जीवनों में प्रदान करते हैं, वही परमेश्वर के प्रति हमारे प्रेम का माप और सूचक है (यूहन्ना 14:21, 23)। परमेश्वर के वचन को हम जितना अधिक जानेंगे, उसे अपने दैनिक जीवन में जितना अधिक महत्व देंगे, वह हमारी दैनिक गतिविधियों और आवश्यकताओं के लिए उतना ही अधिक उपयोगी तथा लाभदायक होगा (भजन 119:97-105)।

परमेश्वर के वचन को सीखने का सबसे उत्तम, सरल, और कारगर तरीका है स्वयँ उसे पढ़ना, उस पर नियमित मनन तथा विचार करना, और प्रतिदिन उसे अपने व्यवाहरिक जीवन में लागू करना। यदि आप पापों से पश्चाताप करने तथा प्रभु यीशु को जीवन समर्पण के द्वारा नया जन्म पाए हुए मसीही विशवासी हैं, तो परमेश्वर का पवित्र आत्मा आपके अन्दर निवास करता है (1 कुरिन्थियों 6:19; इफिसियों 1:13), और पवित्र आत्मा स्वयँ हम मसीही विशावासियों – प्रभु यीशु के शिष्यों, को न केवल उसकी बातें सिखाता है, परन्तु उन्हें समझाता है तथा उन्हें उपयोग में लाना बताता है (यूहन्ना 14:26; 16:13-15)। बुनियादी और अपरिवर्तनीय वास्तविकता तो यह है कि बिना पवित्र-आत्मा की सहायता एवँ मार्गदर्शन के कोई परमेश्वर और उसके निर्देशों के बारे में सीख ही नहीं सकता है (1 कुरिन्थियों 2:11-14), कहीं से भी नहीं, किसी से भी नहीं। इसलिए बाइबल को जानने और समझने का बुनयादी आधार है नया जन्म पाया हुआ मसीही विश्वासी होना, जिससे परमेश्वर पवित्र-आत्मा आपकी सहायता कर सके और आपको परमेश्वर का वचन सिखा सके। अकसर लोगों में एक बेबुनियाद संकोच होता है कि वे परमेश्वर के वचन के सीख सकने योग्य भले नहीं हैं, वे परमेश्वर की धार्मिकता के मापदण्ड पर वचन सीखने के योग्य नहीं है। ये भय निराधार हैं और शैतान के द्वारा हैं; भजन 25:8-14 से देखिए कि परमेश्वर किन लोगों को सिखाता है; और आप पाएँगे कि परमेश्वर हमारी किसी भी कमज़ोरी या अयोग्यता के कारण अपना वचन हमें सिखाने से पीछे नहीं हटता है – वह तो तैयार है और प्रतीक्षा कर रहा है, यदि आप नया जन्म पाने की उस बुनियादी आवश्यकता को पूरा करके विश्वास के साथ उसके पास आने और उससे सीखने के लिए तैयार हैं।

मैं भी आपके समान नौकरी करने वाला व्यक्ति हूँ, और कभी किसी बाइबल स्कूल या ट्रेनिंग के लिए नहीं गया। बस परमेश्वर पर विश्वास करके उससे ही उसका वचन माँगता हूँ और जो वह देता है, उसे बाँट देता हूँ, तथा अपने जीवन में लागू करते रहने में प्रयासरत रहता हूँ। मैं नियमित योजनाबद्ध विधि से बाइबल पढ़ता हूँ, और परमेश्वर के अनुग्रह तथा मार्गदर्शन से प्रति वर्ष में एक बार बाइबल को आरंभ से अन्त तक पढ़ लेता हूँ, और यह लगभग पिछले तीस वर्ष से होता आया है, अर्थात जब से मैंने नया जन्म पाया; यद्यपि मैं जन्म और परवरिश से एक ईसाई परिवार से हूँ, और पारंपरिक ईसाई रीति-रिवाजों के पालन के साथ मेरी परवरिश हुई थी। प्रश्नों का उत्तर देने या वचन की सेवकाई के लिए जो तैयारी करनी होती है वह इस दैनिक बाइबल के पढ़ने के अतिरिक्त होती है। जो परमेश्वर मुझे सिखाता है उसे औरों तक पहुँचाने की लालसा के फलस्वरूप परमेश्वर ने मुझे उसके वचन को सिखाने और बाँटने की इस सेवा का अवसर प्रदान किया है – स्वयं-सेवी होकर, किसी पारिश्रमिक, या धन, अथवा किसी चर्च या संस्था में किसी स्तर, पदवी आदि के लिए नहीं, बस इसलिए कि प्रभु के बारे में लोगों को सिखा सकूँ और समझा सकूँ, जिससे मैं स्वयँ भी और अधिक सीख सकूँ। मैंने देखा है कि जितना अधिक मैं इस वचन को औरों के साथ बाँटता हूँ, उतना अधिक यह मेरे जीवन में विभिन्न रीतियों से लाभप्रद होता है।

मेरे अपने जीवन के अनुभव के आधार पर मेरी यही सलाह है कि आप नियमित और क्रमवार बाइबल पढ़ना आरंभ करें – चाहे समझ में आए या न आए। मैंने बाइबल को पूरा पहली बार, अपमानित होने के बाद ज़िद में होकर पढ़ा था, कि कम से कम एक बार तो बाइबल को पूरा पढूंगा ही, क्योंकि मेरे एक हिंदू मित्र ने मुझे ताना मारा था कि तूने अपने ही धर्म-ग्रन्थ को न तो पूरा पढ़ा है और न ही उसे जानता है फिर भी मुझे उसके बारे में बताना चाहता है – और तब से इस वचन का चस्का ही लग गया। बस प्रार्थना के साथ, एक सच्चे, खोजी और समर्पित मन के साथ पढ़िए; परमेश्वर से मांगिए कि वह आपको सिखाए और बताए (याकूब 1:5); और फिर जो भी वह आपको सिखाता या बताता है, उसे अपने जीवन में लागू करें तथा उसे किसी और के साथ बाँट दें, और आप पाएँगे कि ऐसा करने से आपके जीवन में परिवर्तन आ रहा है, आपके अन्दर वचन की समझ उत्पन्न हो रही है, और जैसे जैसे आप परमेश्वर द्वारा आपको सिखाए गए वचन को सही रीति से उपयोग करेंगे, वह आपको अपने वचन में से और अधिक सिखाता चला जाएगा।

इतना ध्यान रखें कि मनुष्य का भय खाकर परमेश्वर अपने वचन की जो भी शिक्षा आपको देता है उसके निर्वाह में संकोच या समझौता न करें – ऐसा करना हानिकारक होगा (नीतिवचन 29:25; यिर्मयाह 1:9-10, 17-19; गलातियों 1:10)। आरंभ में थोड़ा समय लगेगा, परमेश्वर अपने तरीके से आपको आरंभिक बातों के सिखाने के साथ आरंभ करेगा, जैसे एक आत्मिक बच्चे से (1 पतरस 2:1-2)। उसके ऐसा करने के समय हो सकता है कि आपको मनुष्यों द्वारा सिखाई गई कई बातों को छोड़ना या भूलना भी पड़े, जिससे आप परमेश्वर से सीख सकें। वह आपको आपके जीवन में जिन बातों की आवश्यकता है उनके बारे में, और जो सेवकाई वह आप से लेना चाहता है उसके अनुसार ही सिखाना आरंभ करेगा तथा सिखाता जाएगा। जब आप उसके प्रति समर्पित और विश्वासयोग्य बने रहेंगे, उसके वचन का सही उपयोग करते रहेंगे (2 कुरिन्थियों 4:1-2; 2 तिमुथियुस 2:15-16; 2 तिमुथियुस 3:14-16), तो धीरे-धीरे वह आपको और गूढ़ बातें भी सिखाने लगेगा। इसलिए थोड़ा धैर्य रखें और प्रभु तथा उसके वचन के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने के प्रयास में कभी ढीले नहीं हों, कोई कमी नहीं आने दें। उसके मार्गों में दृढ़ता से डटे रहें और जीवन में आपको इसके लिए कभी पछतावा नहीं होगा  (यशायाह 40:31)।

घर बैठे बाइबल सीखने का इससे उत्तम और सहज तरीका और कोई नहीं है।