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गुरुवार, 24 जनवरी 2019

मत्ती 25:31-46 के आधार पर, क्या उद्धार कर्मों, अर्थात भले कार्यों के द्वारा है?



इसमें लेशमात्र भी कोई संदेह या अस्पष्टता नहीं है की बाइबल के अनुसार उद्धार केवल परमेश्वर के अनुग्रह ही से है, अन्य किसी रीति से नहीं। उद्धार को किसी भी प्रकार से, कैसे भी भले कार्यो अथवा अच्छे आचरण के द्वारा 'कमाया' नहीं जा सकता है, वरन यह परमेश्वर का उपहार है, जिसे प्रभु यीशु मसीह द्वारा कलवारी के क्रूस पर किए गए कार्य के द्वारा समस्त मानव जाति के लिए सेंतमेंत उपलब्ध करवाया गया है, और उद्धार प्राप्त करने में किसी भी मनुष्य द्वारा किए गए किसी भी कार्य की कोई भी, लेशमात्र भी, भूमिका  नहीं है (इफिसियों 2:1-9, रोमियों 3:27-28)।

परमेश्वर के अनुग्रह से एक बार मिला उद्धार अनन्तकाल के लिए होता है, उसे कभी गंवाया या मिटाया नहीं जा सकता है (यूहन्ना 10:28-29), और उद्धार पाए हुए व्यक्ति अनन्तकाल तक प्रभु परमेश्वर के साथ रहेंगे (यूहन्ना 14:3)। परमेश्वर ने उद्धार पाई हुई अपनी प्रत्येक संतान के करने के लिए पहले ही से कुछ न कुछ कार्य निर्धारित करके रखे हैं (इफिसियों 2:10), और परमेश्वर की इच्छा तथा आशा है की उसकी संतान उन कार्यों को भली-भांति पूर्ण करें; और ऐसा जीवन व्यतीत करें जो उन्हें परमेश्वर से उपहार के रूप में मिले उद्धार को प्रदर्शित करता है और उसकी गवाही देता है, तथा परमेश्वर को महिमा देता है (रोमियों 6:11-14; 12:1-2; 14:7-8; 1 कुरिन्थियों 6:19-20; 2 कुरिन्थियों 5:15).

परमेश्वर द्वारा निर्धारित और मसीही विश्वासियों को सौंपे गए कार्यों को परमेश्वर के वचन और निर्देशों के अनुसार किया जाना है। मसीही विश्वासियों के सभी कार्य बहुत बारीकी से उनके स्वीकार्य एवं स्थाई बने रहने वाली गुणवत्ता के लिए जाँचे जाएंगे (1 कुरिन्थियों 3:11-15); उन कार्यों की इसी बने रहने वाली गुणवत्ता के अनुसार विश्वासियों को अनन्तकाल के लिए प्रतिफल दिए जाएंगे। कुछ विश्वासियों को तब पता चलेगा की उनके कोई भी कार्य जांच से सफलतापूर्वक नहीं निकलने पाए हैं, उनके सभी कार्यों को अस्वीकृत करके रद्द कर दिया गया है, और वे अब खाली हाथ रह गए हैं; परन्तु कार्यों के अस्वीकार तथा रद्द हो जाने के बावजूद, उनका उद्धार रद्द नहीं किया गया; वे अभी भी 'उद्धार' पाए हुए हैं, स्वर्ग में प्रभु के साथ हैं, परन्तु अनन्तकाल के लिए खाली हाथ हैं (पद 15)। विश्वासियों के न्याय के समय (1 पतरस 4:17), उनका न्याय उद्धार के लिए उनकी योग्यता की जांच करने या प्रदान करने के लिए नहीं होगी – यह तो सदा के लिए उस एक पल में ही निर्धारित होकर स्थापित हो गया था जिस पल उन्होंने अपने पापों से पश्चाताप करके प्रभु यीशु को अपना उद्धारकर्ता ग्रहण किया था, जब वे पृथ्वी पर जीवित थे। उनके कर्मों के अनुसार उनका न्याय अर्थात, परमेश्वर और उसके वचन के प्रति उनके समर्पण तथा आज्ञाकारिता की गुणवत्ता की जांच मसीही विश्वासियों को उनके अनन्तकाल के लिए दिए जाने वाले प्रतिफलों के लिए होगी। दाख की बारी के स्वामी के दृष्टान्त  (मत्ती 20:1-16) से हम देखते हैं कि उन्हें भी जिन्होंने, औरों की अपेक्षा कम समय तक कार्य किया, परंतु स्वामी की इच्छानुसार किया, उन्हें भी वही पारिश्रमिक मिला जो अन्य सभी को दिया गया। परमेश्वर द्वारा हमें भेजे गए कार्य करने के अवसरों को उपयोग में लाना और उन अवसरों का हम किस रीति से सदुपयोग करते हैं, परमेश्वर और उसके वचन के प्रति हमारे समर्पण का अडिग और संपूर्ण होना, ही हमारे अनन्तकालीन प्रतिफलों को निर्धारित करता है।

मत्ती 25:31-46 में दिया गया दृष्टान्त मसीही विश्वासियों के इसी न्याय के संदर्भ में है – वे परमेश्वर तथा उसके वचन के आज्ञाकारी रहे हैं की नहीं, और परमेश्वर की संतान होने के नाते उनसे जैसी आशा रखी गई थी, उन्होंने वैसे कार्य किए हैं कि नहीं। हम इस दृष्टान्त में देखते हैं कि पद 33 में एक पृथक करना दिखाया गया है – भेड़ों और बकरियों का – ध्यान करें की वे 'भेड़' या 'बकरियां' बने या बनाए नहीं गए, वरन वे पहले से ही 'भेड़' और 'बकरियां' थे; पद 34 और 37 में, प्रभु भेड़ों को "पिता के धन्य" और "धर्मी" कहता है – ये उपनाम भूतकाल में हैं, अर्थात उनका यह स्तर निर्धारित करके उन्हें दिया जा चुका था, उन्हें राजा के समक्ष प्रस्तुत करने से पहले ही से (पद 31-32)। इस पूरे दृष्टान्त में प्रभु कहीं पर भी 'भेड़ों' से यह कहता या संकेत देता नहीं दिखाई देता है कि “मेरे नाम में किए गए भले कार्यों के आधार पर, मैं अब तुम्हें मेरी भेड़ें होने का अधिकार देता हूँ, उद्धार पाने का अधिकार देता हूँ, धर्मी स्वीकार किए जाने का अधिकार देता हूँ, और परमेश्वर के धन्य कहलाए जाने का अधिकार देता हूँ।” ये भेड़ें ही थीं जिन्होंने नए जन्म पाने और उद्धार तथा परमेश्वर के परिवार का सदस्य, धर्मी, और परमेश्वर के धन्य होने के कारण उनमें विद्यमान स्वर्गीय स्वभाव के कारण ऐसे कार्य किए जो उनके स्वर्गीय स्वभाव के अनुरूप थे और उस स्वभाव को प्रदर्शित करते थे जिससे वे 'बकरियों' से पृथक दिखते हैं।  उन बकरियों के पास भी वही अवसर आए किन्तु क्योंकि इनमें वैसा स्वर्गीय स्वभाव तथा गुण नहीं थे, इसलिए उन्होंने कुछ भी स्वर्गीय करने या दिखाने की कोई प्रवृत्ति अथवा इच्छा नहीं प्रदर्शित की। 'भेड़ों' ने उद्धार पाने और परिवर्तित होने से उनमें विद्यमान स्वर्गीय स्वभाव के अनुसार कार्य किए; और उसी प्रकार 'बकरियों' ने अपनी अपरिवर्तित, उद्धार नहीं पाई हुई दशा के अनुसार कार्य किए। उनके कार्यों ने उन्हें 'भेड़' या 'बकरी' नहीं बनाया, परन्तु उनके 'भेड़' अथवा 'बकरी' होने से उन्होंने अपनी उस प्रवृत्ति एवं दृष्टिकोण के अनुसार कार्य किए और दिखाए।

कार्यों ने उद्धार नहीं दिया, वरन उद्धार की दशा ने नया जन्म पाए हुए परिवर्तित लोगों से स्वर्गीय कार्य करवाए। यही बात अन्य सभी भले कार्यों और उद्धार से संबंधित बाइबल के हवालों पर भी लागू होती है।
  

शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

परमेश्वर की आराधना और महिमा - भाग 3: आराधना के तरीके


आराधना के तरीके

हमने यह देखा है कि हर बात और हर परिस्थिति में परमेश्वर का धन्यवाद करना उसकी आराधना और महिमा करने का एक तरीका है; यह परमेश्वर की सन्तान के रूप में हमारे विकास के लिए केवल प्रार्थना ही करने की अपेक्षा कहीं अधिक लाभदायक है। हमने क्रिस्टी बाउर के अनुभव और पुस्तक से देखा कि परमेश्वर के धन्यवादी होने की आदत को बनाने के लिए जान-बूझकर किए गए प्रयासों ने ना केवल उनकी पुरानी हताशा को चंगा किया वरन परमेश्वर के प्रति उनके रवैये को बदल डाला और उसके प्रेम को उन्हें एक बिलकुल नए प्रकार से अनुभव करवाया। अब परमेश्वर की आराधना और महिमा के बारे में और आगे देखें - हर बात के लिए और हर परिस्थिति में परमेश्वर के धन्यवादी होने के अलावा, हम उसकी आराधना तथा महिमा और कैसे कर सकते हैं?

प्रभु यीशु के पहाड़ी उपदेश में उनके द्वारा अपने चेलों को दी गई आरंभिक शिक्षाओं में एक है: "उसी प्रकार तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के साम्हने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में हैं, बड़ाई करें" (मत्ती 5:16)। यह हमें परमेश्वर की आराधना और महिमा करने का एक और तरीका देता है - हमारे कार्यों के द्वारा। जब हम अपने जीवनों को परमेश्वर के लिए एक सजीव उदाहरण बनाते हैं, जब हमारे कार्यों, व्यवहार और रवैये के कारण संसार के लोग परमेश्वर की महिमा करते हैं; हम परमेश्वर की आराधना करते हैं। प्रेरित पतरस के द्वारा परमेश्वर का पवित्र आत्मा इस आराधना का एक और पक्ष हमारे सामने लाता है: "अन्यजातियों में तुम्हारा चालचलन भला हो; इसलिये कि जिन जिन बातों में वे तुम्हें कुकर्मी जान कर बदनाम करते हैं, वे तुम्हारे भले कामों को देख कर; उन्‍हीं के कारण कृपा दृष्टि के दिन परमेश्वर की महिमा करें" (1 पतरस 2:12); अर्थात, संसार के लोगों की प्रतिक्रिया तथा रवैया चाहे जैसा हो, हमें आदरपूर्ण व्यवहार और भले कार्यों को कठिन परिस्थितियों के बावजूद बनाए रखना है, जिससे जो वर्तमान में हमारी आलोचना तथा बुराई करते हैं, अन्ततः परमेश्वर की महिमा करने वाले हों।


हम परमेश्वर की आराधना और महिमा अपने मसीही विश्वास की ज्योति को छुपाने या दबाने की बजाए उसे संसार के सामने चमकने देने के द्वारा करते हैं; तथा परमेश्वर को महिमा देने वाले अपने मसीही विश्वास के कार्यों के प्रगटिकरण के द्वारा भी।