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सोमवार, 21 सितंबर 2009

सम्पर्क मई २००१: मित्र मेरे, कल कहीं देर न हो जाए

मेरे साथ एक पुराने अध्यापक थे। जितने पुराने वह स्वयं थे, उससे कहीं पुरानी उनके पास एक साईकिल थी। अकसर उनके चेहरे के चबूतरे पर बारह बजे रहते थे। सीनियर अध्यापक होने पर भी उनके कपड़ों की हालत शर्मनाक रहती थी। वह रिटायर भी इसी हालत ही में हुए। यह लाखों का खिलाड़ी कबाड़ियों की तरह जीया। वह अपने पैसे को तो नहीं खा सका पर उसका पैसा उसके जीवन को खा गया। पैसा और रोटी जीवन के लिए ज़रूरी हैं यह सच है, लेकिन यदि रोटी ही जीवन को खा जाए तो कैसा दुर्भाग्य है। जंगली जानवर भी अपनी ज़रूरतें पूरी कर लेते हैं, पेड़ भी एक ही जगह खड़े-खड़े अपनी ज़रूरतें पूरी कर लेते हैं। लेकिन अजीब सी बात है कि आदमी इतना बुद्धीमान होते हुए भी अभाव में ही जीता है, ‘और थोड़ा और’ की लालसा हमेशा उसे सताती रहती है। आदमी के साथ कुछ गड़बड़ ज़रूर है।

आवश्यकताओं की अपनी सीमाएं हैं लेकिन लालच असीम है। आवश्यकताओं की पूर्ती सम्भव है पर लालच को पूरा करना असम्भव है, और हवस तो जैसे एक पागलपन है। ज़्यादतर लोग इस पागलपन की दौड़ में जुटे पड़े हैं, उन्हें बस यही लगता रहता है कि “मेरे पास उससे कुछ कम न हो, कम से कम उतना तो हो ही”। पहले इन्सांन, आदम और हव्वा की सारी ज़रूरतें आनन्द की भरपूरी के साथ बाग़-ए-अदन में ही पूरी हो जाती थीं। फिर भी उनके लालच ने उन्हें भयानकता में ढकेल दिया। कुछ लोग ग़रीबी की गुलामी से आज़ादी पाने के लिए बहुत श्रम करते हैं। कुछ को आज़ादी मिल भी जाती है लेकिन तब तक वे धन के गुलाम बन चुके होते हैं - खाई से निकले और खड्ड में जा पड़े। दुःख की बात यह कि चैन फिर भी नहीं मिलता, न गरीब को और न अमीर को।

हमारे समाज में जगह जगह सड़ाहट भरी पड़ी है, कहाँ और कैसे बच कर कदम रखें सूझ नहीं पड़ता। हमारे उँचे लोग बातें तो बहुत ऊँचीं करते हैं पर अकसर उनके काम बहुत नीचे होते हैं। ज्ञान के आकाश में वे चील की तरह बहुत उँचे उड़ते तो दिखते हैं, पर उनकी निगाहें किसी घूरे पर पड़े सड़े-गले मरे जानवर पर लगी रहतीं हैं। उनके मन में बहुत गन्दगी रहती है और मौके की तलाश में रहते हैं कि कहीं दांव लगे और हाथ साफ करें। हमारे जीवन में भी ऐसे दोगले स्वभाव के साथ जीते हैं। अशलीलता के विरोध में बलते तो हैं पर अशलीलता देखने को हमारा मन मचलता है। अगर कहीं यही अशलीलता हमारी बहन या बेटी दिखा दे तो हमारी कहानी बिलकुल बदल जाती है। हमारा विवेक मर चुका है। आज हमारा समाज, परिवार, व्यापार, व्यवहार सब कुछ हमारे स्वार्थ को ही समर्पित है।

हम अजीब बेईमान हैं जो ईमान्दार को बेवकूफ कहते हैं। दूसरों की बेईमानी को गाते हैं और अपनी छिपाते हैं। हम अपनी असलियत खुद नहीं देखना चाहते पर अपने को अच्छा साबित करने में ज़रा भी नहीं चूकते। हर गन्द बकने वाला अपने बारे में यही कहता कि “मैं दिल से बुरा नहीं हूँ, जो कहना होता है कह देता हुँ, दिल में नहीं रखता।” हर शराबी कहता है कि “मैं चोरी करके नहीं पीता, बस ग़म हलका करने को एक-आध बोतल चख लेता हूँ।” हर रिशवत लेने वाला कहता है कि “ मैं किसी को नाजायज़ दबा कर पैसे नहीं लेता, बस आटे में नमक की तरह खा लेता हूँ, ज़्यादतर तो उस कमाई में से ऊपर वाले को दान में दे देता हूँ।” वे सोचते हैं कि परमेश्वर उनकी रिशवत की कमाई में से कुछ हिस्सा लेकर उसे सही ठहरा देगा, या फिर परमेश्वर कोई भिखारी है जो उनके चोरी और रिशवत के टुकड़ों पर पल रहा है। ज़रा सोचिये तो सही कि क्या परम-पवित्र परमेश्वर ऐसी अपवित्र कमाई का एक ज़रा सा अंश भी स्वीकार करेगा?

हर बुरा व्यक्ति अपनी बुराई दबाता है और दूसरे की खुल कर गाता है। जो जितनी अच्छी तरह अपनी बुराई छिपा लेता है, वह उतना अच्छा दिखाई देता है। आदमी नकली इत्र से अपनी असली दुर्गंध छिपाता फिरता है। परमेश्वर का वचन सच कहता है “ज़रा भी फर्क नहीं, सबने पाप किया है।” समाज के रोएं रोएं में ज़हर समा चुका है। हममें से कोई भी अपना दोष स्वीकरने को तैयार नहीं। पत्नी सोचती है पति गलत है। पति, पत्नि के दोष गाता है; माँ-बाप बच्चों के। सास बहु को गलत कहती है तो बहु सास को। हमारा अहंकार हमें हमारे पापों को मानने नहीं देता, लेकिन पाप तो सबने किया है। परमेश्वर का वचन कहता है कि “निष्पाप तो कोई जन नहीं है (२ इतिहास ६:३६)।” यही पाप हमारी बेचैनी और परेशानी का मूल कारण है।

हम एक बासी सा जीवन जीते-जीते उकता गये हैं। श्रम तो बहुत करते हैं पर कमाते बेचैनी ही हैं। दौड़ते तो दिनभर हैं पर पहुँचते कहीं नहीं। हर शाम आदमी थका-हारा हुआ सा घर लौटता है और फिर अगले दिन वैसे ही भागना शुरू कर देता है। चैन पाने की अभिलाषा में बेचैनी भोगता है। संघर्ष बहुत करना पड़ता है पर हार ही हाथ लगती है। जीवन से हताश लोगों की कतार में एक आप भी हो सकते हैं। हो सकता है कि आप भी अपने जीवन के तनावों से तंग आकर झुंझला चुके हों। शायद चारों तरफ आपको समस्याएं ही दिखती हों उनके समाधान नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि जो सपने आप सालों से बुनते आए हैं वे अब अचानक सार्थक होते नहीं दिखते। जीवन के ऐसे दिनों में आदमी में हालात का सामना करने का साहस ही नहीं बचता और तब वह मौत माँगता है। शायद आप भी सोचते हों कि काश मैं न होता; अब तो चिता पर चढ़कर ही चैन मिलेगा, बस अब मौत के बाद ही सुख होगा। यह एक भयानक भ्रम है, एक गलत धारणा है। चिता पर या कब्र में तो आपका शरीर जाएगा, आप नहीं।

आपको परमेश्वर ने अनन्त बनाया है और आप अनन्त हैं। जब आप पृथ्वी पर आए थे तो आपको एक शरीर दीया गया था; जब आप पृथ्वी से जायेंगे तब यह शरीर पृथ्वी पर ही छोड़कर जायेंगे। मृत्यु के द्वारा आप सिर्फ अपने शरीर का ही अस्तित्व समाप्त करेंगे पर आप तो अनन्त हैं। पृथ्वी और पृथ्वी के काम तो नाश हो जायेंगे पर आप अनन्त हैं और आपको एक अनन्त भोगना है। मृत्यु जीवन की सम्पूर्ण समाप्ति नहीं है क्योंकि आपका अस्तित्व मौत के बाद भी रहेगा। आपकी तुलना किसी भी जीव से नहीं की जा सकती (उत्पत्ति २:२०)। आपके रचियेता ने आपके जैसा कोई दूसरा जीव बनाया ही नहीं। हमारे वैज्ञानिक कहते हैं कि मानुष वनमानुष से बहुत मिलता है। आदमी का डी.एन.ए. वनमानुष के डी.एन.ए. से ९० प्रतिशत से भी अधिक मेल खाता है। वे साबित करना चाहते हैं कि आदमी को परमेश्वर ने नहीं बनाया, वह वनमानुष से बना है। थोड़ा सा दिमाग पर ज़ोर देकर सोचें, आदमी चाँद को पाँव से रौन्द आया है और ग्रहों की यात्रा की तैयारी कर रहा है। लेकिन वनमानुष हज़ारों सलों से नंगा ही घूम रहा है, कम से कम एक कच्छा ही अपने लिए बना लेता! आदमी और वनमानुष में कहीं कोई तुलना है?

यदि हमारे धर्मों के पास पाप की बीमारी का ईलाज होता तो संसार इतनी भयानकता से घिरा, बेचैनी और घुटन सहता न होता। बहुतों के पास धन भी है और धर्म भी फिर भी वे हताश, परेशान और दुखी हैं। आदमी अपने पापों में पड़ा रहता है, फिर भी दूसरों को तुच्छ और नीच, और अपने को श्रेष्ठ समझने का अहंकार ढोता है। धर्म के भ्रम जाल ने मानव-मानव के बीच घृणा को ही जन्म दिया है। सब धर्मों के अनुयायियों के कामों में रत्ती भर भी फर्क नहीं है। आदमी एक सा है, उसके काम एक से हैं सिर्फ उसके धर्मों के नाम फर्क हैं। वैज्ञानिक हमारे शरीर के एक अंश, हमारे डी.एन.ए. का विशलेषण करके बता सकते हैं कि व्यक्ति विशष के माँ-बाप कौन हैं, पर यह कभी नहीं बता सकते कि उसका धर्म कौन सा है। परमेश्वर एक है और उसने समस्त मानव जाति को एक सा ही रचा है, अलग अलग धर्मों में बाँट कर नहीं और फर्क करके नहीं रचा। “उसने एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियां सारी पृथ्वी पर रहने के लिये बनाई हैं (प्रेरितों १७:२६)।”

जब भी हम धर्म के बारे में बात करते हैं तो हम एक खतरे के दायरे में आकर बात करते हैं। यह बहुत संवेदनशील विषय है और आदमी एकदम धर्म के विषय में उत्तेजित हो उठता है। धर्म अनजाने में हमारे मन में यह धारणा धर देता है कि मैं एक श्रेष्ठ धर्म का व्यक्ति हूँ और दूसरे धर्म के लोग बुरे हैं या मेरे धर्म से कमतर हैं। धर्म को लेकर यह मानसिकता, सार्वजनिक रूप से, मनों में गहराई से घर चुकी है। यह धारणा आदमी को आदमी से बाँट देती है। यह अहंकार एक कैंसर के समान है - जहाँ हमारा शरीर अपने ही विरोध में मौत बोना और पालना शुरू कर देता है, और यह मानसिकता हमारे समाज में ऐसा ही प्रभाव लाती है। इस संवेदनशील उत्तेजना का उपयोग हमारे धार्मिक और राजनैतिक नेता अपने स्वार्थ हेतु सहजता से कर लेते हैं। परमेश्वर को इतना छोटा बनाकर धर्म के दड़बे में घुसेड़ने की कोशिश करना न सिर्फ एक निहायत ही बेवकूफी है वरन परमेश्वर का अपमान भी है। परमेश्वर असीम है और उसका प्रेम असीम है। वह जाति और धर्म के दायरे से बाहर हर व्यक्ति से प्रेम करता है, क्योंकि परमेश्वर प्रेम है। वह कभी भी धर्म परिवर्तन की बात नहीं करता, परन्तु वह मन परिवर्तन की बात करता है और पाप से मन फिराने की बात करता है, ताकि आप जो अनन्त हैं, अनन्त आनन्दमय जीवन पायें।

इलाज तो बीमारी का होता है तन्दरुस्ती का नहीं। अगर आपको एहसास है कि आप पाप के बीमार हैं, पाप ने आप के सारे सुखों को सोख लिया है और आप बेचैन हैं तो जन लें कि प्रभु यीशु पापों की क्षमा देने के लिए ही आया था। पापों की क्षमा पाना किसी विदेशी सम्प्रदाय में सम्मिलित होना नहीं है। यह सोच भी मूर्खता पूर्ण है कि परमेश्वर किसी धर्म विशेष के लोगों को ही स्वर्ग लेजायेगा। परमेश्वर किसी का पक्षपात नहीं करता (कुलुस्सियों ३:२५)। उसने जगत से प्रेम किया, जगत के हर वर्ग से, ताकि जो कोई जैसा भी हो अगर यह विश्वास करे कि प्रभु यीशु ने क्रूस पर सिर्फ उसके पापों की क्षमा के लिये अपना लहु बहा कर अपनी जान दे दी और तीसरे दिन जी उठा, तो वह व्यक्ति अनन्त विनाश से बच जायेगा और अपनी बेचैनी से छुटकारा पायेगा। यह असम्भव कार्य केवल प्रभु यीशु के लिये ही सम्भव था क्योंकि वह स्वयं परमेश्वर है। वह आपको प्यार करता है और नहीं चाहता कि आप नाश हों और हमेशा-हमेशा की बेचैनी में जा पड़ें।

क्या परमेश्वर हमारी पुकार केवल गिरजे या धर्म स्थानों से ही सुनता है? परमेश्वर तो पृथ्वी के हर स्थान पर उपलब्ध है। बस एक बार दिल से पुकार कर उसे परख कर तो देखें, उससे कह कर तो देखें कि हे प्रभु मुझ पापी पर दया करें। आपने छिपकर कैसे-कैसे शर्मनाक काम किये हैं, क्या आपको उनका एहसास नहीं है? क्या पापों की बेचैनी आपके जीवन में नहीं है? आप अकेले में सिर्फ प्रभु यीशु के सामने अपने पापों को मान कर क्षमा माँग लें। ऐसी प्रार्थना से धर्म नहीं जीवन बदल जायेगा। मेरे मित्र, कौन सा विचार आपको अपने पापों से माफी माँगने से रोक रहा है? आप अपने पापों के कारण अपने परमेश्वर से दूर हो गये हैं, परमेश्वर की शांति और उसके आनन्द से कहीं दूर निकल गये हैं और बेचैनी भोग रहे हैं। प्रभु यीशु ये दूरियां आपके जीवन से हमेशा के लिये दूर कर डालेगा।

हमारी जीवन यात्रा भयानक खत्रों से भरी पड़ी है। कोई भी अन्होंनी कभी भी हो सकती है। किसी सड़क को पार करते करते कहीं आप संसार से ही पार न हो जायें। आप भौंचक्के से रह जायेंगे,कह उठेंगे कि यह क्या हुआ और अब क्या होग? मित्र मेरे कल कहीं देर न हो जाये। आप पूछ सकते हैं कि पाप से पश्चाताप की ऐसी प्रार्थना करने से क्या होगा? पर आप एक बार प्रभु यीशु को पुकार कर तो देखिये, आपका जीवन ही बदल जायेगा। मित्र मेरे जैसे ही यहाँ आपका बोल बंद होगा वैसे ही वहाँ आप की पोल का पुलिंदा खुलेगा। यह एक कोरा सिद्धांत मात्र नहीं है, बल्कि एक वास्तविकता है। एक बार क्षमा की याचना कर के तो देखें, इससे पहले कि हमेशा की देर हो जाये।

शास्त्रों के सिद्धांतों को सिर पर चढ़ा लने से सिद्धता प्राप्त नहीं होती। उत्सुकता है, तलाश है, जितना ज्ञान मिले उतना दिमाग में सजा के रख लो। ज्ञान बढ़ेगा और आपका महत्व बढ़ेगा, पर ध्यान रहे, आपकी बेचैनी वैसी ही रहेगी। पाप की यह बेचैनी आपका पीछा नहीं छोड़ेगी, बढ़ ज़रूर सकती है पर घटेगी कदापि नहीं। आप पाप की सज़ा से मुक्त नहीं हो पायेंगे। केवल सच्ची क्षमा ही इस सज़ा से मुक्त करा सकती है। अभी, हाँ अभी वह क्षमा पालेने का समय है। कल के भयानक खतरों का बचाव आज ही ज़रूरी है। मित्र मेरे कल कहीं देर न हो जाये।

किसी धर्म का लेबल अपने उपर लगा लेने की ज़रूरत नहीं है। प्रभु यीशु आपको आपके सारे पापों से क्षमा देकर एक आनन्द से भरा जीवन सौंपेगा। आप खुद ही कह उठेंगे मैंने क्या-क्या किया, मैं क्या था और उसने मुझे क्या बना दिया। सम्पर्क का अगला अंक अपके हाथ में आने से पहले कहीं कोई अन्होंनी न हो जाये। अभी हाथ उठाक्र पुकारियेगा हे यीशु मुझ पापी पर दया करें, मेरे पाप क्षमा करें। मित्र मेरे कल कहीं देर न हो जाये।

प्रभु कहता है और कि “जो कोई मेरे पास आयेगा उसे मैं कभी नहीं निकलूँगा (यूहन्ना ६:३७)” वास्तविकता भी यही है। आप जैसे भी हों जहाँ भी हों, जो भी हों, प्रभु यीशु का प्रेम आपको आमंत्रित कर रहा है। अगला कदम उठाइयेगा, श्राप से पार होकर अनन्त सुरक्षा के द्वार में प्रवएश पाइएगा। द्वार अभी आपके लिये खुला है, हाँ अभी भी मौका है, मित्र मेरे कल कहीं देर न हो जाये। आप शायद बहुत पढ़े लिखे न भी हों, पर इन पंकतियों को तो पढ़ ही रहे हैं। शायद बहुत समझदार भी न हों पर इन साधारण विचारों को तो समझ पा रहे हैं। इतना ही बहुत है आपको पापों से मुक्ति और स्वर्गीय चैन पाने के लिये। बस सच्चे दिल से पुकारिये हे प्रभु यीशु मेरे पाप क्षमा कर, मुझ पापी पर दया कर। मित्र मेरे कल कहीं देर न हो जाये।

बुधवार, 9 सितंबर 2009

सम्पर्क मई २००१: अनर्थ में पड़ा जीवन, जीवन का अर्थ खोज रहा था...

मेरा नाम लॉर्डी परदाना पूर्बा है, मेरी उम्र २५ वर्ष है और मैं इन्डोनेशिया देश का निवासी हूँ जो लगभग १३५० टापुओं का एक समूह है और हिन्द महासागर तथा प्रशांत महासागर के बीच में स्थित है। मैं इन्डोनिशिया से सिविल इंजीनियरिंग की उपाधि प्राप्त करने के बाद उच्च शिक्षा के लिये २८ जुलाई १९९९ को रूड़की विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए आया था और अब बहुत शीघ्र ही अपनी पढ़ाई खत्म करके अपने देश लौटने को हूँ। इस देश को छोड़ने से पहले अपने जीवन का सबसे मधुर और अद्भुत अनुभव आपके पास छोड़कर जाना चाहता हूँ।

मेरा जन्म एक नामधारी इसाई परिवार में हुआ। जब मैं ग्यारहवीं कक्षा का छात्र था, तब से मेरे मन में एक अजीब कशमकश थी। मैं अपने जीवन का सही अर्थ खोज रहा था और मेरे मन में सच्ची खुशी और प्रेम पाने की बहुत लालसा थी। उसका मूल कारण मेरी जटिल पारिवारिक समस्याएं थीं। आए दिन मेरे माँ-बाप के बीच और हम भाई-बहिनों के बीच में लड़ाईयाँ, चीखना-चिल्लाना मचा रहता जिससे मैं बहुत परेशान और बेचैन था। मैं अपने घर में किसी से अपने दिल की बात कह नहीं पाता था और इसलिए मैं अपना ज़्यादा समय घर के बाहर बिताने लगा। मैं अपने दोस्तों में खुशी खोजता था, यह सोचकर कि उनके साथ रह कर मैं अपनी सारी परेशानियाँ भूल सकूंगा। लेकिन धीरे-धीरे मैं उनके साथ शराब सिग्रेट पीना, झूठ बोलना, गाली-गलौच करना, घर से पैसे चुराना, जुआ खेलना और कई अन्य बुरे और अशलील कामों में धंसता चला गया।

उन दिनों मेरा मन उन लोगों से बहुत चिढ़ता और झुंझलाता था जो आत्मा-परमात्मा की बातें किया करते थे। वे मुझे कई बार मसीही संगति में बुलाते थे लेकिन मैं साफ इन्कार कर देता था। मैं उन्हें बेवकूफ समझता था और उनसे सीधा कहा करता था कि वे इन सब आत्मिक बतों में क्यों अपना समय बरबाद कर रहे हैं? अरे जवानी तो मौज मस्ती के लिये है और अपने तरीके से आज़ाद ज़िन्दगी जीने में ही मज़ा है। मैं नहीं चाहता था कि कोई मेरे आज़ाद जीवन पर बन्दिश लगाए। परन्तु मेरा जीवन बद से बदतर होता गया और मेरी पढ़ाई में भी नुकसान होने लगा। लेकिन मुझ पर कोई असर नहीं हुआ। १९९४ में मेरा दाखिला इन्डोनेशिया के एक अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया जो कि मेरे जीवन का एक सुन्दर सपना था। मुझे इस बात से बहुत खुशी थी कि यह कॉलेज मेरे घर से बहुत दुर एक दूसरे शहर में था। मैंने सोचा कि अब मैं अपने परिवार से दूर रह कर आज़ादी से जो चाहे सो कर सकूँगा। कॉलेज प्रारम्भ करते समय मेरा मन उन्माद से, घमंड से और बहुतेरी गन्दी कामनाओं से भरा हुआ था।

उन दिनों मेरा मन उन लोगों से बहुत चिढ़ता और झुंझलाता था जो आत्मा-परमात्मा की बातें किया करते थे। वे मुझे कई बार मसीही संगति में बुलाते थे लेकिन मैं साफ इन्कार कर देता था। मैं उन्हें बेवकूफ समझता था और उनसे सीधा कहा करता था कि वे इन सब आत्मिक बतों में क्यों अपना समय बरबाद कर रहे हैं? अरे जवानी तो मौज मस्ती के लिये है और अपने तरीके से आज़ाद ज़िन्दगी जीने में ही मज़ा है। मैं नहीं चाहता था कि कोई मेरे आज़ाद जीवन पर बन्दिश लगाए। परन्तु मेरा जीवन बद से बदतर होता गया और मेरी पढ़ाई में भी नुकसान होने लगा। लेकिन मुझ पर कोई असर नहीं हुआ। १९९४ में मेरा दाखिला इन्डोनेशिया के एक अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया जो कि मेरे जीवन का एक सुन्दर सपना था। मुझे इस बात से बहुत खुशी थी कि यह कॉलेज मेरे घर से बहुत दुर एक दूसरे शहर में था। मैंने सोचा कि अब मैं अपने परिवार से दूर रह कर आज़ादी से जो चाहे सो कर सकूँगा। कॉलेज प्रारम्भ करते समय मेरा मन उन्माद से, घमंड से और बहुतेरी गन्दी कामनाओं से भरा हुआ था।
लेकिन मेरे जीवन के लिए परमेश्वर की कुछ और ही कल्पना थी। जब मैं कॉलेज में दाखिले के लिये गय तो वहाँ मुझे कुछ सीनियर छात्र आकर मिले। उनका व्यवहार बहुत ही अच्छा था और इन आरम्भ के दिनों में उन्होंने मेरी बहुत सहयाता की। उनकी सहायता और प्रेम भाव को देखकर मैं भौंचक्का रह गया। एक दिन उन्होंने मुझे एक बाईबल अद्धयन की क्क्षा में आमंत्रित किया। मुझे आत्मिक बातों में ज़रा भी दिलचस्पी नहीं थी परन्तु मैं उन्हें निराश नहीं करना चाहता था इसलिए मैंने उन्का निमंत्रण स्वीकार कर लिया। ७ सितम्बर १९९४ को मैं पहली बार ऐसी सभा में गया जिसका विष्य था “उद्धार का निश्चय”। प्रचारक ने कहा कि मनुष्य अपने पाप के कारण अपने सृष्टिकर्ता परमेश्वर से अलग हो गया है और पाप की मज़दूरी अनन्तकाल की भयानक मौत है। उन्होंने एक उदाहरण से दर्शाया कि हम पापियों और परमेश्वर के बीच एक गहरी खाई है जिसको हम अच्छे कामों, अच्छे चरित्र, या किसी भी धर्म के सहारे लाँघ नहीं सकते। लेकिन परमेश्वेर ने अपने एकलौते पुत्र प्रभु यीशु मसीह को इस जगत में भेजा ताकि वह हम सब के पापों की सज़ाखुद अपने ऊपर क्रूस पर सहकर हमारे और परमेश्वर के बीच में एक मार्ग बन जाए। इसलिए प्रभु यीशु पर विश्वास करके कोई भी व्यक्ति नरक की भयानक मौत से बच कर स्वर्ग के अनन्त जीवन में पहुँच सकता है।

मुझे यह सब बातें पूरी तरह समझ में नहीं आईं। उन्होंने मुझसे पूछा कि यदि आज रात तुम्हारी मौत हो जाए तो क्या तुम स्वर्ग जाओगे या नरक? इस सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं था, क्योंकि मुझे यह एहसास हो रहा था कि मैं पाप से भरा हूँ और मुझ में कोई भी अच्छाई नहीं है। मैंने सोचा कि अगर यह सब बातें सही हैं तो मेरा नरक जाना तय है। फिर उन्होंने दोहराया कि प्रभु यीशु मसीह मेरे सब पापों को क्षमा कर, मेरी ज़िन्दगी को एक नई शुरुआत दे सकते हैं। तब मैंने उनके साथ एक छोटी प्रार्थना की और प्रभु यीशु से अपने पापों की माफी माँग ली। जो कुछ भी उस दिन हुआ मुझे पूरी तरह समझ में तो नहीं आया, परन्तु आज जब पीछे मुड़कर देखता हूँ तो मुझे एहसास होता है कि परमेश्वर की आत्मा ने मेरे जीवन में काम करना शुरू कर दिया था। मुझे स्वर्ग-नरक, जीवन-मृत्यु, पाप और पापों की माफी, ऐसे कई सवाल जिन्हें मैं सोचता भी नहीं था, सताने लगे। इन विचारों ने मेरा दिल तोड़ दिया और मैंने रो-रोकर प्रार्थना में प्रभु के सामने मान लिया कि मैं एक भयानक पापी हूँ। मैंने न केवल अपना वरन कईयों का जीवन बरबाद कर दिया है। मैंने प्रभु से कहा “प्रभु मेरे सारे पाप और अधर्म को माफ कर दे। मैं अपना जीवन बदलना चाहता हूँ, प्रभु मेरी सहायता कर।”

तभी मेरे मन में सच्ची शांति आ गयी और मौत का डर चला गया। साथ ही मेरे विचार और मेरा व्यवहार भी बदलने लगा। फिर भी मैं अपने विश्वासी दोस्तों से कहता थ कि यह परिवर्तन तो थोड़े ही दिनों का है और बहुत जल्द ही मेरी स्थिति पहले जैसी हो जाएगी। यह विचार मुझे डराता भी था। लेकिन जैसे-जैसे मैं परमेश्वर के वचन को रोज़ पढ़ने लगा तो मुझे एहसास होने लगा कि परमेश्वर मुझ से बात कर रहा है। यह परमेश्वर कोई बेजान वस्तु नहीं पर मुर्दों में से जी उठा प्रभु यीशु है और उसी की सामर्थ मुझे सम्भाले हुए है। परमेश्वर के वचन को पढ़ने से मुझे बहुत शान्ति और खुशी मिलने लगी और साथ ही मुझे मेरे उन पापों का भी एहसास होने लगा जो मैंने दूसरों के विरोध में किए थे। परमेश्वर की दया से मैं उन लोगों से माफी माँग सका और मैंने अपने परिवार जनों से भी अपने सम्बंध ठीक कर लिए। मैं उनके लिए प्रार्थना भी करने लगा।

मैं अब एहसास करता हूँ कि यह सब परमेश्वर की ओर से ही हुआ है। आज मेरे पास सच्ची शांति और प्रेम है। मैं अपने जीवन के पथ पर अकेला नहीं क्योंकि प्रभु यीशु मेरा सच्चा मित्र है। मेरी समस्याओं में मेरे पास हमेशा एक आशा है कि प्रभु यीशु न तो मुझे कभी छोड़ेगा और न त्यागेगा।