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मंगलवार, 31 मार्च 2020

बाइबल, अन्य प्राचीन सभ्यताओं और संस्कृतियों के धार्मिक लेखों की तुलना में



कभी-कभी कुछ लोग यह बात उठाते हैं कि संसार की अन्य प्राचीन सभ्यताओं और संस्कृतियों की पुस्तकों में कुछ विषयों, जैसे कि अंतरिक्ष, ज्योतिष, स्वास्थ्य तथा चिकित्सा विज्ञान, आध्यात्मिक और अलौकिक बातों, इत्यादि के बारे में बहुत ज्ञान मिलता है; तो उस ज्ञान की तुलना में बाइबल की क्या स्थिति है? बाइबल अन्य लोगों, सभ्यताओं, और संस्कृतियों के प्राचीन लेखों में उल्लेखित इन उपरोक्त विषयों के संबंध में पूर्णतः मूक भी नहीं है, वरन उनके विषय परमेश्वर के दृष्टिकोण को बताती है। बाइबल में सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्रों और सितारों का उनके परमेश्वर द्वारा नियत उद्देश्यों और परमेश्वर की महिमा प्रगट करने के सन्दर्भ में (उत्पत्ति 1:14-18; अय्यूब 9:9; अय्यूब 38:31; भजन 19:1-2; भजन 104:19), और सितारों के द्वारा मार्गदर्शन (मत्ती 2:2) उल्लेख है, परन्तु बाइबल बिलकुल स्पष्ट रीति से इन आकाशीय वस्तुओं को कोई ईश्वरत्व प्रदान करने और इनकी उपासना करने का निषेध करती है (व्यवस्थाविवरण 4:19; 2राजाओं 23:4-5)। बाइबल स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के लिए बचाव की विधियाँ और पृथक किए जाने के बाए में बताती है (लैव्यव्यवस्था 7:19; लैव्यव्यवस्था 11:24-39; लैव्यव्यवस्था 13; गिनती 19:11-16); और टोन्हों, महूर्तों, भूत-सिद्धि, तांत्रिकों आदि में जुड़ने के लिए मना करती है (लैव्यव्यवस्था 19:26, 31; व्यवस्थाविवरण 18:10-12)। परन्तु क्योंकि बाइबल इन बातों तथा ऐसी ही अन्य बातों के संबंध में किसी विस्तृत व्याख्या, चर्चा, अथवा स्पष्टीकरण में नहीं जाती है, इसलिए इसे, उन अन्य लेखों के बाइबल से श्रेष्ठ या उच्च होने का कारण और प्रमाण नहीं मान लेना चाहिए।

ऐसा इसलिए, क्योंकि बाइबल की विषय-वस्तु बिलकुल भिन्न तथा अनुपम है उसे कभी भी नश्वर जगत, जिसका एक दिन नाश होकर अन्त जाएगा, से संबंधित ज्ञान की पुस्तक नहीं रखा गया। वरन, बाइबल, प्रभु यीशु मसीह में लाए गए विश्वास के द्वारा मनुष्य जाति के परमेश्वर से मेल कराए जाने के विषय में है, क्योंकि मानव जाति, अपने पाप के कारण परमेश्वर से पृथक हो रखी है और नश्वर जगत से संबंधित कैसा भी, कितना भी ज्ञान, किसी को भी पाप के अनंतकालीन विनाशकारी दुष्परिणामों से कभी भी नहीं बचा सकता है। ज़रा विचार कीजिए, इतनी विभिन्न प्रकार की बातों के विषय में इतना ज्ञान होते हुए भी, क्या संसार के किसी भी स्थान की वे प्राचीन सभ्यताएं और उनके ज्ञानी लोग अपने आप को या अपने समय के किसी एक भी व्यक्ति को उनके पाप और उसके दुष्परिणामों की समस्या से छुड़ा सके; पापों से बचने और उद्धार का मार्ग दे सके? कोई भी व्यक्ति पूर्व काल के या वर्तमान समय के ज्ञान में कितना भी गौरव या महिमा अनुभव कर ले, कठोर दुखदायी यथार्थ यही है कि कैसा भी नश्वर ज्ञान किसी को भी, कभी भी, पाप और उसके दुष्परिणामों की समस्या का समाधान नहीं प्रदान कर सकता है; और पाप में मरने वाले व्यक्ति का अनंतकालीन भविष्य बहुत ही अंधकारमय और दुखद है, क्योंकि उन्हें अनंतकाल के लिए नरक में रहना पड़ेगा, चाहे पृथ्वी पर उनके ज्ञान का स्तर कुछ भी क्यों न रहा हो। उन प्राचीन सभ्यातों और संस्कृतियों का सांसारिक और नाश्मान बातों का ज्ञान व्यक्ति को कभी प्रमाणित न हो सकने वाले जन्म-मरण के, तथा मरणोपरांत जीवन के काल्पनिक सिद्धांतों के चक्करों में उलझा तो सकता है, परन्तु व्यक्ति के निज पाप की समस्या के निवारण का कोई भी स्थाई, व्यवाहारिक और प्रमाणिक समाधान नहीं दे सकता है।

बाइबल के आरंभ से लेकर अंत तक, उसकी विषय-वस्तु और अंतर्वस्तु प्रभु यीशु मसीह, और केवल उन ही के द्वारा प्रदान की जा सकने वाले पापों से मुक्ति और उद्धार ही हैं, “और किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिस के द्वारा हम उद्धार पा सकें” (प्रेरितों 4:12)। यह विषय-वस्तु, अर्थात, प्रभु यीशु, उनका जीवन, उनके गुण और चरित्र, उनके कार्य और सेवकाई, उनसे मिलने वाला उद्धार आदि, सभी को प्रभु यीशु मसीह के पृथ्वी पर जन्म लेने से सदियों पूर्व बाइबल के पुराने नियम खंड में विभिन्न प्रकार से बताया, सिखाया, और उदहारणों द्वारा दर्ज किया गया है; विभिन्न शिक्षाओं, नियमों, घटनाओं, व्यवहारों, कुछ ऐतिहासिक लोगों के जीवनों और उनके लेखों, तथा अनेकों परिस्थितियों में मनुष्यों के साथ परमेश्वर के व्यवहार, इत्यादि के द्वारा। इस बात को स्वयं प्रभु यीशु मसीह और बाइबल के अन्य लेखकों ने कहा है, और बारंबार इसकी पुष्टि की है, जैसा कि बाइबल के कुछ निम्नलिखित संबंधित हवालों से प्रकट है:
यूहन्ना 5:39 तुम पवित्र शास्त्र में ढूंढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उस में अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है, और यह वही है, जो मेरी गवाही देता है।
यूहन्ना 5:46 क्योंकि यदि तुम मूसा की प्रतीति करते, तो मेरी भी प्रतीति करते, इसलिये कि उसने मेरे विषय में लिखा है।
यूहन्ना 12:41 यशायाह ने ये बातें इसलिये कहीं, कि उसने उस की महिमा देखी; और उसने उसके विषय में बातें कीं।
लूका 24:27 तब उसने मूसा से और सब भविष्यद्वक्ताओं से आरंभ कर के सारे पवित्र शास्‍त्रों में से, अपने विषय में की बातों का अर्थ, उन्हें समझा दिया।
1 कुरिन्थियों 15:1-4 हे भाइयों, मैं तुम्हें वही सुसमाचार बताता हूं जो पहिले सुना चुका हूं, जिसे तुम ने अंगीकार भी किया था और जिस में तुम स्थिर भी हो। उसी के द्वारा तुम्हारा उद्धार भी होता है, यदि उस सुसमाचार को जो मैं ने तुम्हें सुनाया था स्मरण रखते हो; नहीं तो तुम्हारा विश्वास करना व्यर्थ हुआ। इसी कारण मैं ने सब से पहिले तुम्हें वही बात पहुंचा दी, जो मुझे पहुंची थी, कि पवित्र शास्त्र के वचन के अनुसार यीशु मसीह हमारे पापों के लिये मर गया। और गाड़ा गया; और पवित्र शास्त्र के अनुसार तीसरे दिन जी भी उठा।
इब्रानियों 10:7 तब मैं ने कहा, देख, मैं आ गया हूं, (पवित्र शास्त्र में मेरे विषय में लिखा हुआ है) ताकि हे परमेश्वर तेरी इच्छा पूरी करूं।

बाइबल का नया नियम खण्ड चार वृतांतों के साथ आरंभ होता है, जो प्रभु यीशु मसीह के पृथ्वी के जीवन, तथा उन के द्वारा सम्पूर्ण मानव जाति, समस्त संसार के सभी लोगों के लिए उद्धार का मार्ग बनाने और उपलब्ध करवाने के बारे में हैं। यह उद्धार जो उन्होंने सभी के लिए मुफ्त में उपलब्ध करवाया है, उसे अब प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन के लिए स्वेच्छा से अपनाना तथा कार्यान्वित करना है, बिना कोई भी कीमत चुकाए, बिना किन्ही कर्मों या अनुष्ठानों के: “और उसने तुम्हें भी जिलाया, जो अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे। जिन में तुम पहिले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा न मानने वालों में कार्य करता है। इन में हम भी सब के सब पहिले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे, और शरीर, और मन की मनसाएं पूरी करते थे, और और लोगों के समान स्‍वभाव ही से क्रोध की सन्तान थे। परन्तु परमेश्वर ने जो दया का धनी है; अपने उस बड़े प्रेम के कारण, जिस से उसने हम से प्रेम किया। जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे, तो हमें मसीह के साथ जिलाया; (अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है।) और मसीह यीशु में उसके साथ उठाया, और स्‍वर्गीय स्थानों में उसके साथ बैठाया कि वह अपनी उस कृपा से जो मसीह यीशु में हम पर है, आने वाले समयों में अपने अनुग्रह का असीम धन दिखाए। क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है। और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्‍ड करे (इफिसियों 2:1-9)। और प्रभु यीशु द्वारा इस प्रकार से उपलब्ध करवाई गई पापों की क्षमा के द्वारा उस व्यक्ति का परमेश्वर के साथ मेल होता है: “कि यदि तू अपने मुंह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपने मन से विश्वास करे, कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा। क्योंकि धामिर्कता के लिये मन से विश्वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुंह से अंगीकार किया जाता है। क्योंकि पवित्र शास्त्र यह कहता है कि जो कोई उस पर विश्वास करेगा, वह लज्जित न होगा।; “क्योंकि बैरी होने की दशा में तो उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्वर के साथ हुआ फिर मेल हो जाने पर उसके जीवन के कारण हम उद्धार क्यों न पाएंगे? (रोमियों 10:9-11; रोमियों 5:10)। नया नियम, प्रभु यीशु मसीह के जीवन के बारे में लिखे गए लेखों के बाद फिर आगे, प्रभु यीशु के कुछ अनुयायियों द्वारा लिखे गए अन्य लेखों के माध्यम से प्रभु यीशु मसीह के शिष्यों – जो कि सामूहिक रूप में प्रभु का चर्च, उसके बुलाए हुए कहलाते हैं, की आरंभिक गतिविधियों के इतिहास, घटनाओं, वृद्धि, कार्यों, और दायित्वों का वर्णन प्रदान करता है। और अंत में बाइबल तथा नए नियम का समापन होता है प्रकाशितवाक्य की पुस्तक के साथ जो संसार के अंत समय की भविष्यवाणियों का लेख है, उन अंत के दिनों का जिन में आज हम जी रहे हैं, जैसा कि हमारी आँखों के सामने पूरी हो रही विभिन्न अंत-समय की भविष्यवाणियों से प्रगट है (इनका एक विवरण मत्ती के 24 अध्याय में पढ़िए)। प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में विस्तृत वर्णन है सारे संसार और उसमें जन्म लेने वाले प्रत्येक मनुष्य के होने वाले अवश्यंभावी न्याय का, और उसके बाद के अनन्त जीवन का वह चाहे स्वर्ग में परमेश्वर के साथ हो, या बिना परमेश्वर के नरक में हो यह प्रत्येक मनुष्य द्वारा इस पृथ्वी पर अपने लिए किए गए उस चुनाव के अनुसार होगा, जो निर्णय उन्होंने प्रभु यीशु मसीह और उसके द्वारा प्रदान किए जा रहे उद्धार की जानकारी मिलने पर लिया था, और जिसके साथ उन्होंने पृथ्वी का अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत किया था, अपने इस निर्णय को सुधारने के सभी अवसरों के प्रदान किए जाने के बावजूद: “फिर मैं ने एक बड़ा श्वेत सिंहासन और उसको जो उस पर बैठा हुआ है, देखा, जिस के साम्हने से पृथ्वी और आकाश भाग गए, और उन के लिये जगह न मिली। फिर मैं ने छोटे बड़े सब मरे हुओं को सिंहासन के साम्हने खड़े हुए देखा, और पुस्‍तकें खोली गई; और फिर एक और पुस्‍तक खोली गई; और फिर एक और पुस्‍तक खोली गई, अर्थात जीवन की पुस्‍तक; और जैसे उन पुस्‍तकों में लिखा हुआ था, उन के कामों के अनुसार मरे हुओं का न्याय किया गया। और समुद्र ने उन मरे हुओं को जो उस में थे दे दिया, और मृत्यु और अधोलोक ने उन मरे हुओं को जो उन में थे दे दिया; और उन में से हर एक के कामों के अनुसार उन का न्याय किया गया। और मृत्यु और अधोलोक भी आग की झील में डाले गए; यह आग की झील तो दूसरी मृत्यु है। और जिस किसी का नाम जीवन की पुस्‍तक में लिखा हुआ न मिला, वह आग की झील में डाला गया (प्रकाशितवाक्य 20:11-15).

पृथ्वी पर के उनके जीवन के अंत होने के साथ ही, उनके द्वारा उनके अनंतकाल से संबंधित निर्णय लागू हो जाते हैं और अब वे अपरिवर्तनीय हैं। जिन्होंने प्रभु यीशु को और उनके द्वारा दिए जा रहे पापों की क्षमा के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है, और उसके अनुसार अपने पापों से पश्चाताप कर लिया है, उससे अपने पापों की क्षमा मांग ली है, अपने जीवन उसे समर्पित कर दिए हैं, और उसकी तथा उसके वचन – बाइबल की आज्ञाकारिता में जीने का निर्णय ले लिया है, “तब सुनने वालों के हृदय छिद गए, और वे पतरस और शेष प्रेरितों से पूछने लगे, कि हे भाइयों, हम क्या करें? पतरस ने उन से कहा, मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले; तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे। क्योंकि यह प्रतिज्ञा तुम, और तुम्हारी सन्‍तानों, और उन सब दूर दूर के लोगों के लिये भी है जिन को प्रभु हमारा परमेश्वर अपने पास बुलाएगा। उसने बहुत और बातों में भी गवाही दे देकर समझाया कि अपने आप को इस टेढ़ी जाति से बचाओ। सो जिन्हों ने उसका वचन ग्रहण किया उन्होंने बपतिस्मा लिया; और उसी दिन तीन हजार मनुष्यों के लगभग उन में मिल गए। और वे प्रेरितों से शिक्षा पाने, और संगति रखने में और रोटी तोड़ने में और प्रार्थना करने में लौलीन रहे (प्रेरितों 2:37-42), वे, परमेश्वर की संतान होने के नाते से “परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। वे न तो लोहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं (यूहन्ना 1:12-13), अपने पिता के पास उसके निवास-स्थान – स्वर्ग में रहने के लिए जाएंगे (कृपया रोमियों अध्याय 5 पढ़िए)। जिन्होंने प्रभु यीशु मसीह को और उसके साथ अनन्त जीवन स्वर्ग में व्यतीत करने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है, पृथ्वी पर उनके द्वारा किए गए उनके इस निर्णय के अनुसार, उन्हें फिर अनंतकाल के लिए, परमेश्वर की उपस्थिति से बाहर नरक भेज दिया जाएगा जो कि शैतान और उसके दूतों का स्थान है: “तब वह बाईं ओर वालों से कहेगा, हे श्रापित लोगो, मेरे साम्हने से उस अनन्त आग में चले जाओ, जो शैतान और उसके दूतों के लिये तैयार की गई है” (मत्ती 25:41 आयतें 31 से 46 देखिए)

इस तथ्य से कदापि मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है कि, जैसा उस का दावा है, केवल बाइबल ही एक मात्र परमेश्वर का वचन है जिसके इस दावे की पुष्टि के लिए संसार के प्राचीन लेखों से, जिनमें गैर-मसीही लेख तथा वर्णन भी हैं, ऐतिहासिक प्रमाणों, और पुरातत्व विज्ञान से भी अटल और अकाट्य प्रमाण विद्यमान हैं। स्वयं बाइबल भी अपने विषय यही कहती है:
2 शमूएल 23:1-2 दाऊद के अन्तिम वचन ये हैं: यिशै के पुत्र की यह वाणी है, उस पुरुष की वाणी है जो ऊंचे पर खड़ा किया गया, और याकूब के परमेश्वर का अभिषिक्त, और इस्राएल का मधुर भजन गाने वाला है: यहोवा का आत्मा मुझ में हो कर बोला, और उसी का वचन मेरे मुंह में आया।
2 तीमुथियुस 3:15-17 और बालकपन से पवित्र शास्त्र तेरा जाना हुआ है, जो तुझे मसीह पर विश्वास करने से उद्धार प्राप्त करने के लिये बुद्धिमान बना सकता है। हर एक पवित्रशास्‍त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है। ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिये तत्‍पर हो जाए।
2 पतरस 1:21 क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जा कर परमेश्वर की ओर से बोलते थे

केवल बाइबल ही वह एकमात्र पूर्णतः दोषरहित, अचूक एवं अटल, अनन्तकालीन, अपरिवर्तनीय, परमसिद्ध, परमेश्वर का वचन है, “तेरा सारा वचन सत्य ही है; और तेरा एक एक धर्ममय नियम सदा काल तक अटल है” (भजन 119:160) जो सदा काल के लिए स्वर्ग में स्थापित है, “हे यहोवा, तेरा वचन, आकाश में सदा तक स्थिर रहता है” (भजन 119:89) – इसलिए वह किसी के भी द्वारा कभी भी न तो बदला जा सकता है और न ही कभी नष्ट किया जा सकता है, किसी भी प्रकार से नहीं, कोई चाहे कुछ भी कहता रहे या कैसे भी दावे करता रहे। बाइबल प्रभु यीशु का लिखित प्रगटीकरण है, जो कि बाइबल की विषय-वस्तु और अंतर्वस्तु हैं, और इसीलिए बाइबल को ‘जीवित वचन’ भी कहा जाता है: “आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था। यही आदि में परमेश्वर के साथ था। सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उस में से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न न हुई। उस में जीवन था; और वह जीवन मुनष्यों की ज्योति थी” (यूहन्ना 1:1-4)। केवल प्रभु यीशु ही एक मात्र हैं जो परमेश्वर होते हुए भी, अपने आप को शून्य करके मानव जाति के उद्धार के लिए संसार में देहधारी हो कर आए, और एक सामान्य मनुष्य के समान जीवन बिताया तथा दुःख उठाए: वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्‍वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया। और मनुष्य के रूप में प्रगट हो कर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली” (फिलिप्पियों 2:7-8); परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। वे न तो लोहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं। और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण हो कर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उस की ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा” (यूहन्ना 1:12-14); “सो जब हमारा ऐसा बड़ा महायाजक है, जो स्‍वर्गों से हो कर गया है, अर्थात परमेश्वर का पुत्र यीशु; तो आओ, हम अपने अंगीकार को दृढ़ता से थामें रहे। क्योंकि हमारा ऐसा महायाजक नहीं, जो हमारी निर्बलताओं में हमारे साथ दुखी न हो सके; वरन वह सब बातों में हमारी समान परखा तो गया, तौभी निष्‍पाप निकला। इसलिये आओ, हम अनुग्रह के सिंहासन के निकट हियाव बान्‍धकर चलें, कि हम पर दया हो, और वह अनुग्रह पाएं, जो आवश्यकता के समय हमारी सहायता करे” (इब्रानियों 4: 14-16)। क्योंकि परमेश्वर में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता है, उसे कभी भी किसी भी प्रकार से बदला, या झूठा अथवा कपटी, या नष्ट नहीं किया जा सकता है इसी लिए उसके लिखित प्रगटीकरण बाइबल को भी कभी भी, किसी के भी द्वारा, बदला, या झूठा अथवा दोगला, या नष्ट नहीं किया जा सकता है।

बाइबल अपने आप में अनुपम है, यह संसार के कैसे भी, कहीं के भी, कभी के भी, किसी के भी द्वारा लिखे गए धार्मिकता संबंधी लेखों से बिलकुल भिन्न और अतुल्य है; क्योंकि यह ऐसी पुस्तक नहीं है जिसे ज्ञान के लिए पढ़ा जाता है, वरन यह परमेश्वर का जीवित वचन है जो अपने पाठक के जीवन को पढ़ता है और उसके जीवन को उसके सामने अन्दर-बाहर संपूर्णतः खोल कर रख देता है। यह किसी धर्म से संबंधित पुस्तक नहीं है, वरन यह पापों से पश्चाताप और प्रभु यीशु में विश्वास करने तथा यह स्वीकार कर लेने से संबंधित है कि प्रभु यीशु ने अनंत उद्धार का एकमात्र संभव मार्ग एक ही बार में सदा के लिए उपलब्ध करवा दिया है। बाइबल ऐसे अनेकों व्यक्तित्वों के बारे में नहीं है जिन्हें यद्यपि ईश्वरीय गुणों वाला माना जाता है फिर भी जिनमें बताया गया है कि उन में परस्पर अहंकार से संबंधित तथा भावनात्मक समस्याएँ हैं, जिनमें परस्पर एक-दूसरे पर वर्चस्व और सामर्थ्य प्रमाणित करने की स्पर्धा देखी जाती है, जो मनुष्यों से उपासना पाने की होड़ में रहते हैं, जो मादक पेय और पदार्थों का सेवन करते हैं, तथा कामुक भावनाएं जागृत करने वाली गतिविधियों में आनन्द लेते हैं – अर्थात वे सभी बातें पाई जाती हैं जिन्हें मनुष्यों को करने के लिए मना किया जाता है जिससे मनुष्य धर्मी और भला बन सके। और इन ईश्वरीय गुणों वाले व्यक्तित्वों द्वारा मनुष्यों के पवित्र हो जाने के लिए निर्धारित धर्म के कामों, रीतियों, अनुष्ठानों, तपस्याओं आदि के करने पर भी ये व्यक्तित्व कभी यह देखने को तैयार नहीं होते हैं कि कोई भी मनुष्य किसी प्रकार से उनके समान या उनके स्तर तक पहुँच सके। यदि कोई मनुष्य कभी अपने किसी प्रयास से उनके स्तर के निकट पहुँचने लगता है तो तुरंत ही षड्यंत्र बनाए और कार्यान्वित किए जाते हैं जिससे वह मनुष्य किसी प्रकार से पाप में गिरकर फिर से नाशमान अस्तित्व में पहुँच जाए। वरन, बाइबल उस एकमात्र सच्चे और सिद्ध पवित्र परमेश्वर के बारे में है जो बुराई के साथ रहना या समझौता करना तो बहुत दूर की बात है, उसे देख भी नहीं सकता है, “तेरी आंखें ऐसी शुद्ध हैं कि तू बुराई को देख ही नहीं सकता, और उत्पात को देखकर चुप नहीं रह सकता; फिर तू विश्वासघातियों को क्यों देखता रहता, और जब दुष्ट निर्दोष को निगल जाता है, तब तू क्यों चुप रहता है?” (हबक्कूक 1:13)। परन्तु फिर भी वह पतित मानव जाति से इतना प्रेम करता है कि उसे बचा कर पुनः उसी सिद्ध स्वरूप में, जिसमें उसने मनुष्य को रचा था, लाना चाहता है, “फिर परमेश्वर ने कहा, हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं; और वे समुद्र की मछलियों, और आकाश के पक्षियों, और घरेलू पशुओं, और सारी पृथ्वी पर, और सब रेंगने वाले जन्तुओं पर जो पृथ्वी पर रेंगते हैं, अधिकार रखें। तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया, नर और नारी कर के उसने मनुष्यों की सृष्टि की। और परमेश्वर ने उन को आशीष दी: और उन से कहा, फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो; और समुद्र की मछलियों, तथा आकाश के पक्षियों, और पृथ्वी पर रेंगने वाले सब जन्तुओ पर अधिकार रखो” (उत्पत्ति 1: 26-28); “परन्तु जब हम सब के उघाड़े चेहरे से प्रभु का प्रताप इस प्रकार प्रगट होता है, जिस प्रकार दर्पण में, तो प्रभु के द्वारा जो आत्मा है, हम उसी तेजस्‍वी रूप में अंश अंश कर के बदलते जाते हैं” (2 कुरिन्थियों 3:18), और उसके लिए प्रावधान भी कर दिया है। यह वह पुस्तक है जो प्रोत्साहित करती है कि सारे संसार में जाकर मानव जाति के हित के सुसमाचार को सभी को बताया जाए, न कि मनुष्यों के लिए लाभकारी बातों को अपने तक सीमित कर के, छुपा कर रखा जाए, जिससे कि उनसे फिर लोगों से लाभ उठाया जाए या शोषण किया जाए।

बाइबल इस लिए भी संसार की किसी भी पुस्तक या लेख से अनुपम तथा अतुल्य है क्योंकि यह:
·         मनुष्य द्वारा अपने लिए अर्जित किए गए नाशमान लाभ के बारे में नहीं, वरन उस अनन्त जीवन तथा स्वर्गीय आशीषों के बारे में है जिन्हें परमेश्वर ने अपने प्रेम और अनुग्रह में मानव जाति को बिना किसी कीमत के प्रदान करना प्रस्तावित किया है।
·         लोगों को वर्गों और जातियों में बाँट कर उन्हें विभाजित कर के पृथक रखने के बारे में नहीं, वरन सभी लोगों को उद्धार तथा नया जन्म पाए हुए परमेश्वर की एक समान संतान बनाकर परमेश्वर के परिवार में एक करके जोड़ देने के बारे में है।
·         सांसारिक साम्राज्यों को स्थापित करने तथा औरों पर प्रभुता करने के बारे में नहीं, वरन प्रभु यीशु के समान नम्रता और प्रेम के साथ औरों की सहायता और सेवा करने के बारे में है।
·         संघर्षों और युद्धों को जीतने के बारे में नहीं, वरन दिलों को जीतने तथा लोगों के हृदयों में परमेश्वर के सिंहासन को लगाने के बारे में है।
·         नाश्मान वस्तुओं के ज्ञान को प्राप्त करने और उनमें उन्नत होने के बारे में नहीं, वरन उद्धार पाने परमेश्वर के प्रेम और अनुग्रह से एक ही बार सदा काल के लिए पाप के दुष्परिणाम से बचाए जाने के बारे में है;
·         क्योंकि यह सृजी गई वस्तुओं के बारे में नहीं, वरन सृजनहार प्रभु परमेश्वर के बारे में है जो मानवजाति को बचाने के लिए मनुष्य बन गया;
·         पापियों का नाश करने के बारे में नहीं, वरन उनसे प्रेम करने और उन्हें एक ही बार में अनन्तकाल के लिए बचा लेने के बारे में है।

इसलिए, बाइबल की तुलना संसार के किसी भी अन्य लेख से कर के बाइबल को गौण दिखाने का प्रयास करना ऐसे है जैसे रॉकेट विज्ञान पर एक उच्च प्रशंसा एवं मान्यता प्राप्त पाठ्य-पुस्तक को लेकर उसका इसलिए तिरस्कार कर के उसे एक ओर रख दिया जाए, क्योंकि उस पुस्तक में वर्णमाला के “क, ख, ग, घ...’ और बच्चों की कविताओं के सीखने के बारे में कुछ नहीं लिखा गया है बाइबल को लेकर ऐसा कोई भी विश्लेषण करने, कोई भी ऐसी तुलना करने या इस प्रकार का कोई भी निष्कर्ष निकालने के लिए कोई आधार है ही नहीं, कदापि नहीं।

संसार का कोई भी ज्ञान, कोई भी लेख, कभी बाइबल के कहीं भी निकट नहीं पहुँच सकता है क्योंकि बाइबल ही एक मात्र स्वर्ग की पुस्तक है, जो पृथ्वी के मनुष्यों को उनके छुटकारे के लिए प्रदान की गई है।


रविवार, 24 मार्च 2019

बाइबल शिक्षा कैसे पाएँ


प्रश्न:
 क्योंकि मैं नौकरी करता हूँ, इसलिए किसी सेमिनरी में जाने में समर्थ हूँ। क्या किसी रीति से में घर से ही बाइबल अध्ययन सीख सकता हूँ, जिससे मैं प्रभु के विषय और जानकारी प्राप्त कर सकूँ?

 उत्तर:
परमेश्वर के वचन के प्रति हमारा प्रेम, बाइबल को जो स्थान हम अपने जीवनों में प्रदान करते हैं, वही परमेश्वर के प्रति हमारे प्रेम का माप और सूचक है (यूहन्ना 14:21, 23)। परमेश्वर के वचन को हम जितना अधिक जानेंगे, उसे अपने दैनिक जीवन में जितना अधिक महत्व देंगे, वह हमारी दैनिक गतिविधियों और आवश्यकताओं के लिए उतना ही अधिक उपयोगी तथा लाभदायक होगा (भजन 119:97-105)।

परमेश्वर के वचन को सीखने का सबसे उत्तम, सरल, और कारगर तरीका है स्वयँ उसे पढ़ना, उस पर नियमित मनन तथा विचार करना, और प्रतिदिन उसे अपने व्यवाहरिक जीवन में लागू करना। यदि आप पापों से पश्चाताप करने तथा प्रभु यीशु को जीवन समर्पण के द्वारा नया जन्म पाए हुए मसीही विशवासी हैं, तो परमेश्वर का पवित्र आत्मा आपके अन्दर निवास करता है (1 कुरिन्थियों 6:19; इफिसियों 1:13), और पवित्र आत्मा स्वयँ हम मसीही विशावासियों – प्रभु यीशु के शिष्यों, को न केवल उसकी बातें सिखाता है, परन्तु उन्हें समझाता है तथा उन्हें उपयोग में लाना बताता है (यूहन्ना 14:26; 16:13-15)। बुनियादी और अपरिवर्तनीय वास्तविकता तो यह है कि बिना पवित्र-आत्मा की सहायता एवँ मार्गदर्शन के कोई परमेश्वर और उसके निर्देशों के बारे में सीख ही नहीं सकता है (1 कुरिन्थियों 2:11-14), कहीं से भी नहीं, किसी से भी नहीं। इसलिए बाइबल को जानने और समझने का बुनयादी आधार है नया जन्म पाया हुआ मसीही विश्वासी होना, जिससे परमेश्वर पवित्र-आत्मा आपकी सहायता कर सके और आपको परमेश्वर का वचन सिखा सके। अकसर लोगों में एक बेबुनियाद संकोच होता है कि वे परमेश्वर के वचन के सीख सकने योग्य भले नहीं हैं, वे परमेश्वर की धार्मिकता के मापदण्ड पर वचन सीखने के योग्य नहीं है। ये भय निराधार हैं और शैतान के द्वारा हैं; भजन 25:8-14 से देखिए कि परमेश्वर किन लोगों को सिखाता है; और आप पाएँगे कि परमेश्वर हमारी किसी भी कमज़ोरी या अयोग्यता के कारण अपना वचन हमें सिखाने से पीछे नहीं हटता है – वह तो तैयार है और प्रतीक्षा कर रहा है, यदि आप नया जन्म पाने की उस बुनियादी आवश्यकता को पूरा करके विश्वास के साथ उसके पास आने और उससे सीखने के लिए तैयार हैं।

मैं भी आपके समान नौकरी करने वाला व्यक्ति हूँ, और कभी किसी बाइबल स्कूल या ट्रेनिंग के लिए नहीं गया। बस परमेश्वर पर विश्वास करके उससे ही उसका वचन माँगता हूँ और जो वह देता है, उसे बाँट देता हूँ, तथा अपने जीवन में लागू करते रहने में प्रयासरत रहता हूँ। मैं नियमित योजनाबद्ध विधि से बाइबल पढ़ता हूँ, और परमेश्वर के अनुग्रह तथा मार्गदर्शन से प्रति वर्ष में एक बार बाइबल को आरंभ से अन्त तक पढ़ लेता हूँ, और यह लगभग पिछले तीस वर्ष से होता आया है, अर्थात जब से मैंने नया जन्म पाया; यद्यपि मैं जन्म और परवरिश से एक ईसाई परिवार से हूँ, और पारंपरिक ईसाई रीति-रिवाजों के पालन के साथ मेरी परवरिश हुई थी। प्रश्नों का उत्तर देने या वचन की सेवकाई के लिए जो तैयारी करनी होती है वह इस दैनिक बाइबल के पढ़ने के अतिरिक्त होती है। जो परमेश्वर मुझे सिखाता है उसे औरों तक पहुँचाने की लालसा के फलस्वरूप परमेश्वर ने मुझे उसके वचन को सिखाने और बाँटने की इस सेवा का अवसर प्रदान किया है – स्वयं-सेवी होकर, किसी पारिश्रमिक, या धन, अथवा किसी चर्च या संस्था में किसी स्तर, पदवी आदि के लिए नहीं, बस इसलिए कि प्रभु के बारे में लोगों को सिखा सकूँ और समझा सकूँ, जिससे मैं स्वयँ भी और अधिक सीख सकूँ। मैंने देखा है कि जितना अधिक मैं इस वचन को औरों के साथ बाँटता हूँ, उतना अधिक यह मेरे जीवन में विभिन्न रीतियों से लाभप्रद होता है।

मेरे अपने जीवन के अनुभव के आधार पर मेरी यही सलाह है कि आप नियमित और क्रमवार बाइबल पढ़ना आरंभ करें – चाहे समझ में आए या न आए। मैंने बाइबल को पूरा पहली बार, अपमानित होने के बाद ज़िद में होकर पढ़ा था, कि कम से कम एक बार तो बाइबल को पूरा पढूंगा ही, क्योंकि मेरे एक हिंदू मित्र ने मुझे ताना मारा था कि तूने अपने ही धर्म-ग्रन्थ को न तो पूरा पढ़ा है और न ही उसे जानता है फिर भी मुझे उसके बारे में बताना चाहता है – और तब से इस वचन का चस्का ही लग गया। बस प्रार्थना के साथ, एक सच्चे, खोजी और समर्पित मन के साथ पढ़िए; परमेश्वर से मांगिए कि वह आपको सिखाए और बताए (याकूब 1:5); और फिर जो भी वह आपको सिखाता या बताता है, उसे अपने जीवन में लागू करें तथा उसे किसी और के साथ बाँट दें, और आप पाएँगे कि ऐसा करने से आपके जीवन में परिवर्तन आ रहा है, आपके अन्दर वचन की समझ उत्पन्न हो रही है, और जैसे जैसे आप परमेश्वर द्वारा आपको सिखाए गए वचन को सही रीति से उपयोग करेंगे, वह आपको अपने वचन में से और अधिक सिखाता चला जाएगा।

इतना ध्यान रखें कि मनुष्य का भय खाकर परमेश्वर अपने वचन की जो भी शिक्षा आपको देता है उसके निर्वाह में संकोच या समझौता न करें – ऐसा करना हानिकारक होगा (नीतिवचन 29:25; यिर्मयाह 1:9-10, 17-19; गलातियों 1:10)। आरंभ में थोड़ा समय लगेगा, परमेश्वर अपने तरीके से आपको आरंभिक बातों के सिखाने के साथ आरंभ करेगा, जैसे एक आत्मिक बच्चे से (1 पतरस 2:1-2)। उसके ऐसा करने के समय हो सकता है कि आपको मनुष्यों द्वारा सिखाई गई कई बातों को छोड़ना या भूलना भी पड़े, जिससे आप परमेश्वर से सीख सकें। वह आपको आपके जीवन में जिन बातों की आवश्यकता है उनके बारे में, और जो सेवकाई वह आप से लेना चाहता है उसके अनुसार ही सिखाना आरंभ करेगा तथा सिखाता जाएगा। जब आप उसके प्रति समर्पित और विश्वासयोग्य बने रहेंगे, उसके वचन का सही उपयोग करते रहेंगे (2 कुरिन्थियों 4:1-2; 2 तिमुथियुस 2:15-16; 2 तिमुथियुस 3:14-16), तो धीरे-धीरे वह आपको और गूढ़ बातें भी सिखाने लगेगा। इसलिए थोड़ा धैर्य रखें और प्रभु तथा उसके वचन के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने के प्रयास में कभी ढीले नहीं हों, कोई कमी नहीं आने दें। उसके मार्गों में दृढ़ता से डटे रहें और जीवन में आपको इसके लिए कभी पछतावा नहीं होगा  (यशायाह 40:31)।

घर बैठे बाइबल सीखने का इससे उत्तम और सहज तरीका और कोई नहीं है।