स्वर्ग से गारंटीशुदा
यह आत्मिक सिद्धांत कि परमेश्वर की इच्छा में होकर उसके तथा उसके कार्य के लिए
जो भी हम निवेष करेंगे वह हमें उसका कई गुणा लौटा कर दे देगा कोई मनगढ़ंत बात नहीं है,
वरन यह वह निश्चित बात है जिसे
स्वयं प्रभु यीशु ने कहा है, जिसके साथ उसने यह भी कहा है कि परमेश्वर के लिए किए गए निवेष का प्रतिफल सौ गुणा
होगा।
पतरस द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में "यीशु ने कहा, मैं तुम से सच कहता हूं,
कि ऐसा कोई नहीं, जिसने मेरे और सुसमाचार के लिये
घर या भाइयों या बहिनों या माता या पिता या लड़के-बालों या खेतों को छोड़ दिया हो।
और अब इस समय सौ गुणा न पाए, घरों और भाइयों और बहिनों और माताओं और लड़के-बालों और खेतों को पर उपद्रव के साथ
और परलोक में अनन्त जीवन" (मरकुस 10:29-30)। प्रभु यीशु द्वारा अपने अटल शब्दों में दिए गए आश्वासन
पर ध्यान कीजिए - जो भी प्रभु और उसके सुसमाचार के लिए हम निवेष करते हैं स्वर्ग से
उसका सौ गुणा की प्रतिफल निश्चित है।
साथ ही यहाँ प्रभु दोहरे प्रतिफल की भी बात कर रहा है - पृथ्वी पर सौ गुणा,
और परलोक में अनन्त जीवन। यहाँ
प्रयुक्त शब्द "उपद्रव" से घबराईएगा नहीं, हम संसार में जो कोई भी लौकिक कार्य करते हैं उन प्रत्येक
के साथ परेशानियाँ भी जुड़ी होती ही हैं। हम में से कौन है जो यह कह सकता है कि उसके
सांसारिक कार्य में कोई परेशानी या कठिनाई कभी नहीं रही है? हम सबके कार्यों में ये रहती हैं; हम सब अपने कार्यों में उनके
साथ निभाते भी हैं और उनके होने के बावजूद भी अपने कार्य करते रहते हैं, यह जानते हुए कि हमारे कार्य
में परेशानियाँ एवं कठिनाईयाँ हमारे साथ लगी ही रहेंगी। यदि हमें किसी सांसारिक कंपनी
का प्रमुख कार्य-अधिकारी यह प्रस्ताव दे कि जो कुछ भी हम उसके प्रस्ताव के अन्तर्गत
उसकी कंपनी में निवेष करेंगे, उसका सौ-गुणा प्रतिफल हमें हर कीमत पर, अवश्य ही मिलेगा, परन्तु साथ ही कुछ परेशानियों को भी हमें उठाना पड़ेगा,
तो हम में से कितने हैं जो अपनी
सांसारिक संपदा की सौ-गुणा बढ़ोतरी के इस अवसर को हाथों से जाने देंगे, वह भी केवल इसलिए क्योंकि कुछ
परेशानियाँ साथ जुड़ी हुई हैं? यदि हम सांसारिक लोगों के आश्वासन पर, सांसारिक संपदा के लिए यह जोखिम उठाने को तैयार हैं,
तो प्रभु के कहने के निश्चय पर
इस लोक में सौ-गुणा एवं परलोक में अनन्तकाल के प्रतिफल के लिए क्यों नहीं?
इस असमंजस का उत्तर उस घटना में छुपा है जो पतरस द्वारा पूछे गए इस प्रश्न से ठीक
पहिले घटित हुई - पूरा परिपेक्ष समझने के लिए मरकुस 10:17-18 को पढ़िए। जिस जवान का यहाँ ज़िक्र है, वह अनन्त जीवन चाहता था,
वह प्रभु यीशु के प्रति श्रद्धा
भी रखता था और उसे यह भी विश्वास था कि प्रभु यीशु ही उसकी परेशानी का हल दे सकते हैं;
लेकिन जो उसके पास नहीं था वह
था प्रभु यीशु द्वारा दिए गए समाधान पर विश्वास करना और उसे अपने जीवन में कार्यान्वित
करना। प्रभु ने उसके प्रश्न का उसे समाधान उपलब्ध करवाया (मरकुस 10:21-22),
परन्तु उस जवान के लिए वह समाधान
बहुत उग्र तथा अनेपक्षित था, चुकाने के लिए वह एक बहुत बड़ी कीमत थी; और वह जैसा आया था वैसा ही निराश वापस लौट गया। प्रभु
यीशु ने जो उस जवान से करने के लिए कहा, वह उस बात से भिन्न नहीं था जो उसने अपने चेलों को सिखाई थी
- पाना चाहते हो तो देना सीखो: "दिया करो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा: लोग पूरा नाप दबा दबाकर और
हिला हिलाकर और उभरता हुआ तुम्हारी गोद में डालेंगे, क्योंकि जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा
जाएगा" (लूका 6:38)।
यही वह स्थान है जहाँ हम में से बहुतेरे आकर ठोकर खाते हैं, हानि उठाते हैं - प्रभु के प्रति
हमारे विश्वास, हमारी श्रद्धा के बावजूद; अनन्त जीवन की बातों के लिए हमारी इच्छा के बावजूद, हम प्रभु के वचनों को स्वीकार करके अपने जीवन में कार्यकारी
करना नहीं चाहते हैं; उन्हें सुनना तो चाहते हैं किंतु मानने की हिम्मत नहीं रखते। हम प्रभु की कही बात
पर विश्वास करने से घबराते हैं, जो प्रभु ने हमारे हाथों में दिया है, परन्तु अब उसे छोड़ देने के लिए कह रहा है, उसे हम प्रभु के कहने पर छोड़
देना नहीं चाहते। परमेश्वर चाहता है कि हम उस पर विश्वास रखें, उसके कहने पर स्वेच्छा से अपने
आप को खाली कर देने की हिम्मत रखें, ताकि वह और अधिक तथा और बेहतर से हमें भर सके। केवल जब हम दे
देते हैं, अपने आप को खाली कर देते
हैं, तब ही हम परमेश्वर के
लिए वह रिक्त स्थान उपलब्ध करवा पाते हैं जिसे वह नई और बेहतर आशीषों की भरपूरी से
भरना चाहता है।
कहावत है कि ’बेहतर’ ही अकसर ’सर्वोत्तम” का दुश्मन होता है; जो ’बेहतर’ आज आपके पास है, उसके कारण उस ’सर्वोत्तम’ से जो परमेश्वर आपको देना चाहता है अपने आप को वंचित ना रखें।
जो आपके पास है, उसे परमेश्वर के राज्य में निवेष करें, उसकी खेती में की खेती बो दें और भरपूरी की फसल पाने
के लिए तैयार रहें।