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गुरुवार, 10 जून 2021

उद्धार पाने तथा बपतिस्मा लेने में क्या अंतर है?

 

प्रश्न: 

उद्धार पाने तथा बपतिस्मा लेने में क्या अंतर है? क्या उद्धार पवित्र आत्मा की छाप लगना, और बपतिस्मा पवित्र आत्मा का अभिषेक होना है?

 

उत्तर:

 बपतिस्मा, परमेश्वर के वचन  पवित्र शास्त्र बाइबल के नए नियम खण्ड के लिखे जाने की मूल भाषा, यूनानी, के शब्द “बैपतिज़ो” से आया है, और इस शब्द का शब्दार्थ होता है बारंबार डुबोना, गोता देना, जलमग्न करना, अभिभूत कर देना, या पूर्णतः भिगो देना।

 

शब्द उद्धार यूनानी भाषा के शब्द “सोटीरिया” से आया है जिसका शब्दार्थ होता है छुटकारा, सुरक्षित किया जाना, बचाव, अर्थात किसी हानि अथवा हानिकारक बात से बचा लिया जाना।

 

मसीही विश्वास के सन्दर्भ में, उद्धार पाने का अर्थ है पापों के परिणाम से बचाया जाना , क्योंकि प्रभु यीशु मसीह ने उन्हें अपने ऊपर लेकर हमारे लिए उनका संपूर्ण दण्ड सह लिया – समस्त मानव जाति के लिए। क्योंकि अब पापों की कीमत चुकाई जा चुकी है, उनके दुष्परिणाम भुगत लिए गए हैं, इसलिए अब किसी को भी अपने पापों के परिणामों से बचने के लिए अपनी ओर से या अपने लिए और कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है। अब बस इतना ही करना शेष है कि प्रभु यीशु द्वारा किए गए कार्य पर विश्वास कर के , व्यक्ति यह स्वीकार कर ले कि वह पापी है, प्रभु यीशु से उन पापों की क्षमा माँग ले, अपना जीवन प्रभु को समर्पित कर दे, और उसे अपना निज प्रभु एवं उद्धारकर्ता स्वीकार कर ले। उसके द्वारा यह करने पर, क्योंकि वह प्रभु यीशु मसीह में विश्वास करता है, इसलिए परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा, वह व्यक्ति उस अनन्तकाल की मृत्यु, उस अपरिवर्तनीय हानि की दशा से छुटकारा पा लेता है, सुरक्षित कर दिया जाता है, बचा लिया जाता है, जो उसके पापों में होने के कारण उसकी नियति थी; अब वह उस स्थिति से “बचा लिया” गया है, उसने उस अपरिवर्तनीय हानि की दशा में जाने से उद्धार पा लिया है। यह उनके किसी कर्मों के द्वारा नहीं (इफिसियों 2:5, 8), वरन साधारण विश्वास में, स्वेच्छा से, सच्चे मन से की गई एक ही प्रार्थना के द्वारा, बिना किसी अन्य मनुष्य के हस्तक्षेप अथवा मध्यस्थता के द्वारा हो जाता है। उद्धार पाया हुआ व्यक्ति हमेशा के लिए परमेश्वर की संतान बन जाता है (यूहन्ना 1:12-13) और उसका यह आदर उससे कभी भी वापस नहीं लिया जाएगा।

 

जो इस प्रकार से बचा लिए गए हैं, जिन्होंने उद्धार प्राप्त कर लिया है, केवल उन्हीं के लिए प्रभु यीशु मसीह ने मत्ती 28:19 में कहा है कि वे बपतिस्मा लेने के द्वारा अपने उद्धार की गवाही दें। बपतिस्मा लेने से उद्धार नहीं है; वरन उद्धार पाए हुए व्यक्ति को बपतिस्मा लेना है। इस पद में प्रभु द्वारा दिए गए निर्देशों के क्रम पर ध्यान कीजिए: पहले व्यक्ति को प्रभु यीशु का शिष्य या अनुयायी बनना है और तब ही उस शिष्य को बपतिस्मा दिया जाना है।

इससे यह स्पष्ट है कि बपतिस्मा और उद्धार दो बिलकुल पृथक बातें हैं। बपतिस्मा किसी को भी उद्धार के लिए योग्य नहीं बनाता है, परन्तु प्रभु यीशु मसीह में लाए गए विश्वास के द्वारा जो उद्धार प्राप्त कर लेते हैं, उनसे यह अपेक्षा रहती है कि वे बपतिस्मे के द्वारा इस बात की गवाही देंगे।

जिस क्षण व्यक्ति उद्धार पाता है, उसी क्षण से वह पवित्र आत्मा का मंदिर भी बन जाता है, और पवित्र आत्मा उसी पल से उसमें आकर निवास करने लग जाता है (इफिसियों 1:13; 1 कुरिन्थियों 3: 16; 6:19), अपनी भरपूरी और संपूर्णता में – पवित्र आत्मा परमेश्वरीय व्यक्ति है – उसे न तो टुकड़ों में दिया जा सकता है, और न ही वह टुकड़ों में दिया जाता है (यूहन्ना 3:34)। पवित्र आत्मा को प्राप्त करने के लिए किसी को भी इससे अतिरिक्त और कुछ भी करने की कोई आवश्यकता नहीं है, कि वह प्रभु यीशु में विश्वास लाकर, उस को अपना निज उद्धारकर्ता ग्रहण कर ले, उसे अपना जीवन समर्पित कर दे (देखें: http://samparkyeshu.blogspot.com/2020/04/1.html )। प्रभु यीशु में विश्वास करने से पवित्र आत्मा भी उनके जीवन में आ जाता है, और इसी तथ्य को विभिन्न प्रकार से व्यक्त किया गया है, जैसे कि पवित्र आत्मा की छाप लगना (इफिसियों  1:14), या पवित्र आत्मा का बपतिस्मा मिलना (प्रेरितों 11:15-17)। छाप लगने का अर्थ होता है उस पर उसके स्वामी की पहचाना का चिह्न लगा देना – उद्धार पाए हुए व्यक्ति के अंदर पवित्र आत्मा की उपस्थिति इस बात का चिह्न या छाप है कि वह अब प्रभु परमेश्वर का है (1 कुरिन्थियों 6:19, 20)। इसी प्रकार से, पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाने का अर्थ है पवित्र आत्मा में पूरी तरह से भीग जाना, या उसमें अभिभूत कर दिया जाना, या उसमें डुबो दिया जाना – पूर्णतः पवित्र आत्मा की अधीनता में आ जाना। ये सभी इसी एक बात, पवित्र आत्मा के नियंत्रण में आ जाने, को व्यक्त करने के विभिन्न तरीके हैं।

सोमवार, 11 मई 2020

पवित्र आत्मा को पाना – भाग 5 – उपसंहार


उपसंहार 

 हमने पवित्र आत्मा तथा पवित्र आत्मा को प्राप्त करने से प्रायः संबंधित विभिन्न शिक्षाओं तथा धारणाओं की सत्यता के बारे में अध्ययन किया है। जैसा उपरोक्त व्याख्या में प्रगट है, पवित्र आत्मा को प्राप्त करने से संबंधित इन आम शिक्षाओं का बाइबल से कोई आधार नहीं है और वे गलत हैं। परमेश्वर के वचन बाइबल से, हम कुछ बातों को सीखते हैं जिन्हें सदा ध्यान में रखना आवश्यक है, जिस से हम एक स्पष्ट और बाइबल के अनुसार सही विचार परमेश्वर पवित्र आत्मा के विषय रख सकें। 

पवित्र आत्मा परमेश्वर है, पवित्र त्रिएकत्व का एक व्यक्ति। उस की प्रत्येक मसीही विश्वासी के जीवन – आत्मिक तथा शारीरिक, में बहुत ही महतवपूर्ण भूमिका है, ऐसी भूमिका जिसे हलका नहीं किया जा सकता है, जिसे नज़रन्दाज़ नहीं किया जा सकता है, और जिसे महत्वहीन कह कर एक किनारे नहीं किया जा सकता है। स्वयं प्रभु यीशु मसीह के शब्दों में, वह हमारा परमेश्वर द्वारा प्रदान किया गया सहायक है जो हम में निवास करता है और सदैव हमारे साथ बना रहता है (यूहन्ना 14:16, 17), तथा हमें सब बातें सिखाता है, और सब बातें स्मरण करवाता है (यूहन्ना 14:26)। एक मसीही विश्वासी के जीवन में पवित्र आत्मा की भूमिका इतनी अनिवार्य, और इतनी लाभप्रद है कि स्वयं प्रभु यीशु ने उसे भेजा और अपने आप को एक ओर कर लिया कि वह उन के शिष्यों का दायित्व ले (यूहन्ना 16:7), जिस से कि वह उन्हें सत्य का मार्ग और आने वाली बातें बता सके (यूहन्ना 16:13)। 

पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन और सिखाए जाने के बिना, कोई भी परमेश्वर के वचन को उस की सत्यता और प्रभावी उपयोगिता के लिए सीख नहीं सकता है (1 कुरिन्थियों 2:9-15)। इस लिए जिसे भी परमेश्वर के वचन को सीखने और अध्ययन करने की सच्ची लालसा है, उसे यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि उस का मार्गदर्शन एवं सहायता करने के लिए पवित्र आत्मा उस के साथ है, अन्यथा वह सत्य को कभी नहीं सीख सकेगा, बस मानवीय विचार और बुद्धि की बातों में भटकता रहेगा, कभी सत्य की पहचान तक नहीं पहुँच पाएगा (2 तीमुथियुस 3:7)

हम विस्तार से देख चुके हैं कि पवित्र आत्मा को महिमान्वित करने के भेष में दी जाने वाली सभी बाइबल के प्रतिकूल और गलत शिक्षाओं के निहितार्थ कितने छलावों और खतरों से भरे हैं। परमेश्वर के वचन के अध्ययन करके सही निष्कर्षों तक पहुँचने के लिए, यह अनिवार्य है कि बाइबल के प्रत्येक खण्ड, प्रत्येक आयत, और उस के प्रत्येक भाग का उस के सही सन्दर्भ में तथा परमेश्वर के वचन में अन्य संबंधित शिक्षाओं को साथ ले कर अध्ययन किया जाए जिस से परमेश्वर के वचन की गलत समझ और गलत व्याख्या से बचा जा सके, क्योंकि परमेश्वर के वचन के सभी भाग एक दूसरे के पूरक ही हैं, वे कभी एक दूसरे का खंडन नहीं करते हैं। इस लिए ऐसी कोई भी बात जो संदर्भ में या अन्य संबंधित शिक्षाओं के साथ सहजता से सही नहीं बैठे, वह परमेश्वर के वचन से बाहर की बात है, और उसे स्वीकार नहीं करना चाहिए। और जबकि गलत शिक्षाएँ और झूठे सिद्धांत किसी आयत या उसके एक भाग, या किसी खण्ड को अलग से उस के सन्दर्भ से बाहर ले कर बिना बाइबल की अन्य संबंधित शिक्षाओं को ध्यान में रखे हुए एक विशेष विचार का समर्थन करने के लिए व्याख्या करने के द्वारा बनाई जाती हैं। 

शैतान भली-भाँति जानता है कि एक मसीही विश्वासी के जीवन में और जीवन के द्वारा पवित्र आत्मा के कार्यकारी होने का कितना महत्त्व है, और ऐसा होना उस की इच्छाओं तथा योजनाओं के लिए कितना घातक है। क्योंकि शैतान पवित्र आत्मा को मसीही विश्वासी के जीवन से निकाल तो नहीं सकता है, इस लिए वह प्रयास करता रहता है कि लोगों को बहला, फुसला, और बहका कर, उन्हें परमेश्वर द्वारा दिए गए इस सामर्थ्य और उपयोगिता के स्त्रोत के आज्ञाकारी एवं समर्पित न रहने दे। शैतान अच्छे से जानता है कि जैसे हव्वा के साथ, वैसे ही वह सरलता से हमें भी आकर्षक, लाभकारी, और अद्भुत प्रतीत होने वाली बातों के द्वारा फंसा कर बहका सकता है (उत्पत्ति 3:6), और इस प्रकार से परमेश्वर के वचन के तोड़ने-मरोड़ने और गलत व्याख्याओं के द्वारा हमें परमेश्वर के वचन से भटका कर दूर ले जा सकता है। इस लिए मसीही विश्वासी के जीवन में पवित्र आत्मा की भूमिका तथा आवश्यकता को समझने के लिए, और उस के विषय किसी गलत शिक्षा अथवा सिद्धांत में बहकाए जाने से बचने और सुरक्षित रहने के लिए, यह बहुत आवश्यक है कि हम कुछ बुनियादी सत्यों को अच्छे से समझ लें, और अपने आप को उन पर स्थिर और दृढ़ कर लें।ऐसी कोई भी शिक्षा या सिद्धांत जो इन बुनियादी बाइबल तथ्यों से सहजता से मेल नहीं खाती है या उन में सहजता से सही नहीं बैठती है, ऐसी कोई भी बात जिसे इन तथ्यों के अनुसार सही बैठाने के लिए कुछ तोड़ने-मोड़ने, और विशेष प्रयास करने की आवश्यकता पड़ती है, वह मनगढ़ंत है, और उस का तिरिस्कार किया जाना चाहिए।

ये बुनियादी तथ्य हैं: 

1. पवित्र आत्मा परमेश्वर है: वह मनुष्य के नियंत्रण में न तो है; और न ही उसे मनुष्य की इच्छाओं और विचारों के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य किया जा सकता है; तथा न ही उसे मनुष्य की अभिलाषाओं और अपेक्षाओं के अनुसार इधर-इधर किया जा सकता है। परमेश्वर के साथ हमारे संबंधों में, सदा ही परमेश्वर नियम बनाता है और सदा ही हम मनुष्य उन नियमों का पालन करते हैं।ऐसा कुछ भी जो इस बुनियादी नियम को पलटना या उसकी अनदेखी भी करना चाहता है वह परमेश्वर की ओर से नहीं हो सकता है।इस लिए ऐसी कोई भी शिक्षा जिस में ऐसे किसी सुझाव का संकेत मात्र भी है कि पवित्र आत्मा को बाध्य किया जा सकता है, उसे चालाकी से प्रयोग किया जा सकता है, या मनुष्य के किसी भी प्रयास के द्वारा उस से कुछ ऐसा करवाया जा सकता है जो परमेश्वर के वचन के अनुसार नहीं है, वह गलत शिक्षा है, अस्वीकार्य है, और उसे लेश मात्र भी स्थान नहीं दिया जाना चाहिए। 

2. पवित्र आत्मा व्यक्ति है, पवित्र त्रिएकत्व का एक भाग: पवित्र आत्मा कोई वस्तु नहीं है जिसे टुकड़ों में बाँटा जा सके, जिसे अधिक या कम किया जा सके, अथवा विस्तृत या संकुचित जा सके, या अंशों अथवा किस्तों में दिया और लिया जा सके। जिस प्रकार से इन में से कोई भी बात मेरे और आपके साथ नहीं की जा सकती है, क्योंकि हम व्यक्ति हैं, उसी प्रकार से ये उस के साथ भी नहीं की जा सकती हैं। जहाँ भी उस की उपस्थिति होगी, वह उस की सम्पूर्णता में होगी, न की टुकड़ों में अथवा खण्डों में। 

3. पवित्र आत्मा अपने लिए कोई महिमा नहीं लेता है, परन्तु सारी महिमा मसीह की ओर करता है: पवित्र आत्मा की भूमिका प्रभु यीशु मसीह की गवाही देना है (यूहन्ना 15:26), प्रभु की बातों को लेकर उन्हें हमें बताना है (यूहन्ना 16:15), प्रभु यीशु मसीह द्वारा कही गई बातों को सिखाना और स्मरण दिलाना है (यूहन्ना 14:26)। इस लिए जो यह कहते फिरते हैं कि उन्हें पवित्र आत्मा के द्वारा दर्शन और भविष्यवाणियाँ मिली हैं, ऐसी बातें जो कि बाइबल की बातों से बाहर होती हैं, वे सचेत हो जाएं – वे बहुत बड़े छलावे में हैं। लोगों को इस बात का एहसास होना चाहिए और उन्हें यह स्वीकार करना चाहिए कि, प्रभु यीशु के समान ही (यूहन्ना 8:26; 12:49), पवित्र आत्मा भी कभी अपने आप से कुछ नहीं कहता है, केवल वही कहता है जो वह सुनता है (यूहन्ना 16:13)। और जो भी वह कहता है वह सदा ही प्रभु यीशु को महिमा देने के लिए कहता है, कभी भी अपने आप को महिमा देने के लिए नहीं (यूहन्ना 16:14)। इस लिए ऐसा कोई भी विचार, धारणा, विश्वास, या व्यवहार जो प्रभु यीशु के स्थान पर पवित्र आत्मा को महिमा देने के लिए है वह पवित्र आत्मा की ओर से नहीं है, परमेश्वर की ओर से नहीं है; क्योंकि परमेश्वर कभी भी अपने आप का और अपने वचन का खण्डन नहीं करेगा। 

4. जैसा हम ने इस संपूर्ण लेख में देखा है, वास्तव में नया जन्म पाए हुए सच्चे मसीही विश्वासी पवित्र आत्मा का मंदिर हैं, न कि ऐसी टंकियाँ जो रिस सकती हैं या रिसती रहती हैं, जिन में से होकर कुछ समय या परिस्थितियों में पवित्र आत्मा रिस कर बाहर निकल जाता है। प्रत्येक सच्चे मसीही विश्वासी को पवित्र आत्मा उसी पल दे दिया जाता है जब वह मसीह यीशु में विश्वास लाता है, और तब से लेकर पृथ्वी पर उस की आख़िरी साँस तक पवित्र आत्मा उस में बसा रहता है उसके साथ बना रहता है। इस लिए मसीही विश्वास में आ जाने के पश्चात किसी भी प्रकार से पवित्र आत्मा को प्राप्त करने, या जीवन में पवित्र आत्मा की उपस्थिति की मात्रा को बढ़ाने या प्रभावी करने के लिए, कोई भी ‘बपतिस्मे’ अथवा ‘भरपूरी या परिपूर्णता’ कर पाने की बात गलत व्याख्या है, और बाइबल के सत्य का गलत प्रयोग है – ऐसा होना तो संभव है ही नहीं! पवित्र आत्मा की उन में विद्यमान उपस्थिति को और अधिक प्रमुख या बेहतर करने के लिए सच्चा मसीही विश्वासी जो कर सकता है, वह है उस के प्रति समर्पित तथा आज्ञाकारी बना रहे; वह जितना अधिक पवित्र आत्मा को उसे नियंत्रित एवं निर्देशित करने देगा, वह प्रभु के लिए उतना ही अधिक उपयोगी और सामर्थी बनेगा, और पवित्र आत्मा अपनी सामर्थ्य उस हो कर में उतना अधिक प्रगट करेगा। 

 समाप्त

रविवार, 10 मई 2020

पवित्र आत्मा को पाना – भाग 4 – भरना या परिपूर्ण होना – भाग 3 – निहितार्थ




पवित्र आत्मा से भरना या परिपूर्ण होना क्या है? – भाग 3

निहितार्थ

इस गलत शिक्षा को स्वीकार करने का अर्थ है, जैसे कि उपरोक्त ‘पवित्र आत्मा का बपतिस्मा’ के गलत शिक्षा के साथ है, मसीह की देह, उसकी कलीसिया को दो भागों में विभाजित करना – वे जन के पास यह भरपूरी या परिपूर्णता ‘है’, और वे जिन के पास यह ‘नहीं है।’ और फिर इस से, जिनके पास ‘है’ उन में ‘उच्च श्रेणी का होने,’ ‘बेहतर क्षमता और कार्य-कुशलता वाले होने,’ और ‘परमेश्वर से आशीष और प्रतिफल पाने पर अधिक दावा रखने’ की भावनाओं के द्वारा; तथा जिनके पास ‘नहीं है’ उन्हें इस ‘विशिष्ट विश्वासियों’ के समूह में सम्मिलित होने और उस समूह के लाभ अर्जित कर पाने के निष्फल व्यर्थ प्रयासों को करते रहने के चक्करों में फंसा देते हैं। दोनों ही स्थितियों में, अंततः परिणाम एक ही है – वास्तविक मसीही परिपक्वता और प्रभु के लिए प्रभावी होने में गिरावट (1 कुरिन्थियों 3:1-3) – जिनके पास ‘है’ उन में इस के कारण उठने वाले घमंड, वर्चस्व, तथा अधिकार रखने की भावनाओं के कारण; और जिनके पास ‘नहीं है’ उन्हें एक पूर्णतः अनावश्यक और अनुचित कार्य में समय गंवाने और व्यर्थ प्रयास करने में लगा देने के द्वारा, जिससे वे मसीही विश्वास, परमेश्वर के वचन, और प्रभु के लिए प्रभावी होने में बढ़ न सकें।

इस के अतिरिक्त, इस एक छोटी सी और अ-हानिकारक प्रतीत होने वाली बात से संबंधित गलत शिक्षा में शैतान ने एक बार फिर से परमेश्वर के विरुद्ध बहुत बड़ा षड्यंत्र लपेट कर ‘भक्ति की आदरणीय बात’ के रूप छिपा कर हम में घुसा दिया है। और हमारा इसलिए इस बात के प्रति सचेत होना, उस की सही समझ रखना, इस गलत शिक्षा से निकलना, और बच के रहना कितना अनिवार्य है (2 कुरिन्थियों 2:11)। पवित्र आत्मा प्राप्त कर लेने के पश्चात, उस की प्रभावी उपस्थिति एवं सामर्थ्य को बढ़ाने के लिए बाद में किसी अन्य प्रक्रिया के द्वारा एक भिन्न पवित्र आत्मा से भर जाने अथवा ‘परिपूर्ण’ होने के अनुभव का संभव होने की बात कहने से तो यही अर्थ निकलता है कि पवित्र आत्मा को बांटा जा सकता है, उसे घटाया या बढ़ाया जा सकता है, उसे किस्तों या टुकड़ों में लिया या दिया जा सकता है, आदि।

ये सभी बातें न केवल वचन के विरुद्ध हैं, वरन पवित्र आत्मा के त्रिएक परमेश्वर का स्वरूप होने का इनकार करने का प्रयास करती हैं। यह गलत शिक्षा पवित्र आत्मा को पवित्र त्रिएक परमेश्वर के एक व्यक्ति के स्थान पर, एक  वस्तु बना देती है जिसे काटा, छांटा, और बांटा जा सकता है और फिर मनुष्यों के प्रयासों द्वारा दिया या लिया जा सकता है। और सब से अनुचित यह कि यह शिक्षा, परमेश्वर पवित्र आत्मा को मनुष्य के हाथों का खिलौना बना देती हैं, कि मनुष्य अपने व्यवहार और आचरण, अर्थात अपने कर्मों के द्वारा निर्धारित और नियंत्रित कर सकता है कि पवित्र आत्मा कब, किसे, कैसे, और कितना दिया जाएगा, और फिर वह उस मनुष्य में क्या और कैसे कार्य करेगा!

अर्थात पवित्र आत्मा तो फिर परमेश्वर नहीं रहा वरन मनुष्य के हाथों की कठपुतली हो गया। और क्योंकि त्रिएक परमेश्वर के तीनों स्वरूप – परमेश्वर पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा समान और एक ही हैं, इसलिए या तो फिर शेष दोनों स्वरूप भी उस कठपुतली के समान हो गए, अन्यथा पवित्र त्रिएक परमेश्वर में विभाजन है, पवित्र आत्मा शेष दोनों से भिन्न और पृथक है, शेष दोनों से कुछ कम है, जिसका अर्थ है कि पवित्र त्रिएक परमेश्वर का सिद्धांत झूठा है, और परमेश्वर का वचन जो यह सिद्धांत सिखाता है, वह भी झूठा है।

इस गलत शिक्षा को स्वीकार करने का अर्थ है कि परमेश्वर मनुष्य की मुठ्ठी में आ गया; और अब मनुष्य उसे अपनी इच्छानुसार नियंत्रित और उपयोग करेगा! परमेश्वर इस घोर विधर्म के विचार से भी हमारी रक्षा करे, हमें इस के घातक फरेब में कभी भी न पड़ने दे। ये सभी गलत शिक्षाएं परमेश्वर और उसके पवित्र वचन को झुठलाने और उसे हमारे जीवनों में अप्रभावी करने के लिए बड़ी चतुराई तथा परोक्ष रीति से किए गए शैतान के हमले हैं; हमारे लिए इन शैतानी षड्यंत्रों को ध्यान दे कर समझना और उन से दूर रहना, और शैतान के इन छलावों में फँसने से बच कर रहना बहुत अनिवार्य है।

 - क्रमशः

अगला लेख:  उपसंहार

शनिवार, 9 मई 2020

पवित्र आत्मा को पाना – भाग 4 – भरना या परिपूर्ण होना – भाग 2 – समझना (2)




पवित्र आत्मा से भरना या परिपूर्ण होना क्या है? – भाग 2  
समझना (2)

यदि व्यक्ति पवित्र आत्मा के निर्देशानुसार चलता नहीं है (गलातियों 5:16, 25), उसकी आज्ञाकारिता के द्वारा उसकी सामर्थ्य को प्रयोग नहीं करता है, तो पवित्र आत्मा उसके जीवन में अप्रभावी तथा निष्क्रिय रहता है (इफिसियों 4:30; 1 थिस्सलुनीकियों 5:19)। इसे इस उदाहरण द्वारा समझिए - आपके घर में बिजली का कनेक्शन और तार लगे हैं और उन तारों में बिजली प्रवाहित होती रहती है; किन्तु जब तक आप कोई कार्यशील, एवं बिजली से चलने वाला उपयुक्त उपकरण उसके साथ जोड़कर बिजली को अपना कार्य नहीं करने देते हैं, तब तक उस बिजली की आपके घर में उपस्थिति निष्क्रिय एवं प्रभाव रहित है। आप जैसा और जितना शक्तिवान उपकरण जोड़ेंगे और बिजली को उस में से प्रवाहित होकर कार्यकारी होने देंगे, उतना ही आप उस विद्यमान बिजली की सामर्थ्य को प्रत्यक्ष देखेंगे, और उसका सदुपयोग करेंगे। उपकरण चाहे छोटा और कम शक्ति का हो, अथवा बड़ा और अधिक शक्ति का, उसमें प्रवाहित होने वाली बिजली एक ही और समान गुणवत्ता की होगी। उस बिजली की सामर्थ्य का प्रदर्शन तथा उपयोग उस उपकरण द्वारा बिजली का प्रयोग करने की क्षमता पर निर्भर होगा।

इसी प्रकार से आप जितना अधिक परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी और समर्पित रहेंगे, जितना उसके वचन के अनुसार चलेंगे, जितना परमेश्वर को और उसके वचन को अपने जीवन में उच्च स्थान और आदर देंगे, उतना अधिक पवित्र आत्मा की सामर्थ्य आप में होकर कार्य करेगी, प्रकट होगी। यदि आपका आत्मिक जीवन कमज़ोर रहेगा, तो आपको अपने जीवन में पवित्र आत्मा की सामर्थ्य भी उतनी ही कम अनुभव होगी तथा दिखाई देगी। यदि आप मात्र औपचारिकता पूरी करने के लिए बाइबल का एक छोटा खंड पढ़ना, और कुछ औपचारिक प्रार्थना दोहराना भर ही कर सकते हैं – और बहुतेरे तो यह भी नहीं करते हैं, तो फिर आप कैसे आशा रख सकते हैं कि आप के जीवन में पवित्र आत्मा की जीवंत तथा सामर्थी उपस्थिति दिखाई देगी?

बच्चों को नियमित स्कूल में जाना होता है, बैठ कर, और ध्यान देकर पढ़ना होता है, ठीक से अपना गृह कार्य करना होता है, परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना पड़ता है, तभी वे ज्ञान और समझ में बढ़ने पाते हैं, और जीवन में कुछ कर पाने के योग्य होने पाते हैं। यह उनके प्रतिदिन कुछ मिनिट तक स्कूल के विभिन्न गलियारों में हो कर भाग आने तथा शेष दिन को अन्य बातों में व्यतीत करने के द्वारा नहीं होता है। इसी प्रकार से आत्मिक पाठशाला में भी उचित समय के लिए बैठना, वहां पर्याप्त समय बिताना, तथा ध्यान दे कर पवित्र आत्मा से सीखना, और जीवन के अनुभवों की परीक्षाओं से हो कर निकलना होता है। तब ही प्रभु का जीवन और सामर्थ्य व्यक्ति के जीवन में दिखाई देती है।

प्रत्येक वास्तविक नया जन्म पाया हुआ मसीही विश्वासी पवित्र आत्मा का मंदिर है और पवित्र आत्मा मसीही विश्वासी में सदा विद्यमान है, बसा हुआ है (2 तीमुथियुस 1:14)। मसीही विश्वासी जब अपने आत्मिक स्तर एवं परिपक्वता के अनुसार, पवित्र आत्मा की सामर्थ्य और आज्ञाकारिता में होकर परमेश्वर की महिमा एवं कार्य के लिए कुछ ऐसा करने पाता है, जो उसके लिए अपने आप से, या किसी मानवीय सामर्थ्य अथवा ज्ञान या योग्यता से कर पाना संभव नहीं था, तो वह पवित्र आत्मा से भरकर कार्य करना होता है, जैसा कि हम ऊपर पतरस, यूहन्ना और पौलुस के उदाहरणों से देख चुके हैं।

क्योंकि सामान्यतः सभी मसीही विश्वासी परमेश्वर और उसके वचन के प्रति अपने विश्वास, समर्पण, और आज्ञाकारिता में न तो एक सामान स्तर के होते हैं, और न ही सभी उस स्तर के होते हैं जितने कुछ विशिष्ट लोग अपनी मसीही आज्ञाकारिता और परिपक्वता के कारण होते हैं, इसलिए ऐसा लगता है कि पवित्र आत्मा से भरकर कार्य करना, अर्थात पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से कुछ अद्भुत या विलक्षण काम करना, केवल कुछ विशिष्ट लोगों के लिए ही संभव है। किन्तु यह भ्रांति है; और इस भ्रान्ति का दुरुपयोग ‘पवित्र आत्मा से भरने’ की आवश्यकता की गलत शिक्षा को सिखाने और प्रचार करने के लिए किया जाता है। आत्मिकता और आज्ञाकारिता में बढ़िए, और आप भी पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से भरकर कार्य करने वाले हो जाएंगे।

बड़ा ही सामान्य और स्वाभाविक सा उदाहरण है, आप किसी भी दुर्बल और रोगी मनुष्य से वैसा और उतना ही शारीरिक परिश्रम करने की आशा नहीं रखेंगे जो एक स्वस्थ और बलवंत मनुष्य सहजता से कर सकता है।

जब तक संसार और सांसारिकता के साथ समझौते का रोग हम मसीही विश्वासियों को आत्मिक रीति से दुर्बल और आत्मिक रीति से अस्वस्थ बनाए रखेगा; जब तक कि हम संसार के लोगों की आज्ञाएँ मानने और उन लोगों के लिए काम करते रहने को प्राथमिकता देने के लिए, परमेश्वर और उस के वचन की आज्ञाकारिता को अपने जीवनों में उन से विचले दर्जे का स्थान देते रहेंगे, तथा उसे एक सर्वोपरि अनिवार्यता के स्थान पर सुविधा के अनुसार किया गया कार्य बना कर, अपनी आत्माओं को दुर्बल बनाए रखेंगे, हम भी वह सब कदापि नहीं करने पाएंगे जो एक आत्मिक जीवन में स्वस्थ और सबल व्यक्ति के लिए कर पाना संभव है। और हम भी इस प्रकार की गलत शिक्षाओं को गढ़ने और प्रचार करने वालों के भ्रम द्वारा ठगे जाते रहेंगे, इधर-उधर उछाले जाते रहेंगे (इफिसियों 4:14)

परमेश्वर ने हमें अपनी पवित्र आत्मा के द्वारा आवश्यक सामर्थ्य तथा अपने वचन के द्वारा उपयुक्त मार्गदर्शन दे रखा है; अब यह हम पर है कि हम उसका सदुपयोग करें और प्रभु के योग्य गवाह बनें।

 - क्रमशः
अगला लेख:  पवित्र आत्मा से भरना या परिपूर्ण होना क्या है? भाग 3 –  निहितार्थ

शुक्रवार, 8 मई 2020

पवित्र आत्मा को पाना – भाग 4 – भरना या परिपूर्ण होना – भाग 2 समझना (1)


पवित्र आत्मा से भरना या परिपूर्ण होना क्या है? – भाग 2  

समझना (1)


सामान्य समझ के अनुसार भी यह कोई भेद की या किसी विशेष अतिरिक्त समझ से समझी जाने वाली बात नहीं है। जैसे कि हम देखते हैं कि प्रेरितों 2:4 में, अन्य चेलों के साथ, पतरस ने भी पवित्र आत्मा पाया, और प्रेरितों 4:8 में उसने पवित्र आत्मा से भर कर मसीहियों का विरोध कर रहे अधिकारियों का प्रभावी एवं सफल रीति से सामना किया और उनके सामने प्रभु परमेश्वर का प्रचार किया। पतरस और यूहन्ना के लिए, उनकी अपनी योग्यता, शिक्षा, और हैसियत के आधार पर यह बहुत असाधारण तथा उनके सामर्थ्य के बाहर का कार्य था, क्योंकि वे ‘अनपढ़ और साधारण’ मनुष्य थे (प्रेरितों 4:13), और उनके सामने वचन में पारंगत और विद्वान तथा उच्च अधिकारी लोग थे; लेकिन फिर भी बिना किसी घबराहट या गलती के उन दोनों ने उन विद्वान उच्च अधिकारियों को निरुत्तर कर दिया (प्रेरितों 4:14); और वे लोग पहचान गए की ऐसा उन दोनों के प्रभु के साथ रहने के कारण संभव हुआ है।

प्रेरितों 13:52 में फिर से आया है कि चेले पवित्र आत्मा तथा आनंद से भरते रहे – यह बारंबार होता ही रहा, अर्थात वे उसकी सामर्थ्य से कार्य करते ही रहे; न कि यह कि थोड़े-थोड़े समय बाद पवित्र आत्मा उनमें से चला जाता था, और उन्हें फिर से उसे प्राप्त करना पड़ता था – यह तो हो नहीं सकता था, क्योंकि प्रभु ने उन से वायदा किया था कि पवित्र आत्मा सर्वदा उन के साथ रहेगा (यूहन्ना 14:16); और ऊपर हम देख चुके हैं कि पवित्र आत्मा को, अन्दर एक स्तर बनाए रखने के लिए, थोड़े-थोड़े भागों में नहीं लिया जा सकता है।

पौलुस के लिए आया है कि उसने प्रेरितों 9:17 में पवित्र आत्मा पाया, या, परिपूर्ण हो गया, और फिर प्रेरितों 13:9 में जब उसे शैतान की शक्ति का सामना करना पड़ा तो लिखा है कि उसने यह पवित्र आत्मा से भर कर किया। वचन ऐसा कोई संकेत या शिक्षा नहीं देता है कि इन लोगों को पवित्र आत्मा फिर से, या परिस्थिति के अनुसार किसी भिन्न प्रकार का, या फिर किसी भिन्न मात्रा में दिया गया; न ही यह कि वह छोड़ कर जा चुका था और उसे फिर से तथा अब पहले से अधिक मात्रा में दिया गया; और तब उन्होंने उससे “भर कर” कार्य किया। पवित्र आत्मा तो वही और उतना ही था जो आरंभ में उन्हें मिला था; जो भिन्न था वह था परिस्थिति के अनुसार प्रभु की आधीनता और आज्ञाकारिता में हो कर उनके द्वारा पवित्र आत्मा की सामर्थ्य का प्रभावी रीति से उपयोग करना, और कार्य को उसकी सामर्थ्य से पूरा करना।

वास्तव में यह “पवित्र आत्मा से भर कर कार्य करना” कोई अनोखी या अनूठी बात नहीं है, जो केवल कुछ ही लोगों के लिए होती हो । किन्तु बहुत से प्रचारक इसे ऐसी अनोखी और अनूठी बात बना कर ही अनुचित प्रस्तुत करते रहते हैं, अपने वर्चस्व को बनाए रखने, और अपने आप को प्रभावी और असामान्य दिखाने के लिए इसकी गलत शिक्षा देते रहते हैं, जो बाइबल के तथ्यों से बिलकुल मेल नहीं खाती है। अभिव्यक्ति, “पवित्र आत्मा से भर कर कार्य करना”, प्रतिदिन की सामान्य भाषा और भाषा के उपयोग के अनुसार ही है।

हम सभी के द्वारा प्रतिदिन उपयोग एवं अनुभव की जाने वाली कुछ अभिव्यक्तियों पर ध्यान कीजिए: जब आप कभी कहते, पढ़ते, या सुनते हैं कि, "उसने प्रेम से भर कर...," या "वह आनंद से भर गया,और उसने..." या "उसने क्रोध से भर कर...", आदि, तो आप इसे कैसे समझते हैं? क्या आप यह समझते हैं कि व्यक्ति ने नए सिरे से या किसी विशेष अनोखी रीति से ऐसा प्रेम, आनंद, क्रोध, आदि को प्राप्त किया, जो सामान्यतः अन्य लोगों में नहीं होता है, या जैसा अन्य लोगों के पास नहीं होता है, और तब वह कार्य किया? या आप बिना किसी विशेष प्रयास अथवा माथापच्ची के सहज ही समझ जाते हैं कि उस व्यक्ति ने उसमें पहले से ही विद्यमान उस बात का एक विशेष बल के साथ किसी विशिष्ट कार्य के लिए, अथवा विशिष्ट परिस्थिति में विशेष रीति से उपयोग किया, या उसे कार्यान्वित किया?

बस यही अभिप्राय पवित्र आत्मा से भरकर कार्य करने से है। यह बस यही कहने का तरीका है कि प्रत्येक सच्चे मसीही विश्वासी में पहले से ही विद्यमान पवित्र आत्मा की सहायता से उसने कुछ अनोखा या असामान्य कर दिया, कुछ ऐसा जो उस व्यक्ति की सामान्य योग्यताओं और क्षमताओं के आधार पर वह नहीं कर सकता था, जैसा कि हम ऊपर पतरस, यूहन्ना, और पौलुस के उदाहरणों में देख चुके हैं।

 - क्रमशः
अगला लेख:  पवित्र आत्मा से भरना या परिपूर्ण होना क्या है? भाग 3 – समझना (2)

गुरुवार, 7 मई 2020

पवित्र आत्मा को पाना – भाग 4 – पवित्र आत्मा से भरना या परिपूर्ण होना (1) - इफिसियों 5:18



पवित्र आत्मा से भरना या परिपूर्ण होना क्या है? – भाग 1  इफिसियों 5:18

पवित्र आत्मा से भर जाना से अभिप्राय है पवित्र आत्मा की सामर्थ्य, उसके नियंत्रण में होकर कार्य करना। इसके लिए इफिसियों 5:18 “और दाखरस से मतवाले न बनो, क्योंकि इस से लुचपन होता है, पर आत्मा से परिपूर्ण होते जाओ” के आधार पर दावा किया जाता है कि पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होने या भर जाने की शिक्षा बाइबल में दी गई है। किन्तु यदि हम बहुधा ज़ोर देकर दोहराई जाने वाली पवित्र आत्मा संबंधी गलत शिक्षाओं के प्रभाव से निकल कर इस वाक्य को साधारण समझ से देखें, और वह भी उसके सही सन्दर्भ में, तो यहाँ असमंजस की कोई बात ही नहीं है। इस वाक्य का सीधा सा और स्पष्ट अर्थ है; यहां दाखरस द्वारा मनुष्य को नियंत्रित कर लेने वाले प्रभाव को व्यक्त करने के लिए अलंकारिक भाषा का प्रयोग किया गया है। पवित्र आत्मा की प्रेरणा से पौलुस ने जो लिखा है उसे ऐसे समझा जा सकता है, “जिस प्रकार दाखरस से ‘परिपूर्ण’ व्यक्ति दाखरस के मतवाला कर के लुचपन का व्यवहार करवाने के प्रभाव द्वारा पहचाना जाता है कि वह उस के अन्दर विद्यमान दाखरस के प्रभाव तथा नियंत्रण में है, उसी प्रकार मसीही विश्वासी को अपने आत्मा से भरे हुए या ‘परिपूर्ण’ होने को अपने आत्मिक व्यवहार के द्वारा प्रदर्शित और व्यक्त करना है कि वह पवित्र आत्मा से भरा हुआ है, उसके नियंत्रण में है” और फिर पद 19 से 21 में वह पवित्र आत्मा से भरे हुए होने पर किए जाने वाले अपेक्षित व्यवहार की बातें बताता है।

इस वाक्य में एक और बात पर ध्यान कीजिए, पौलुस ने लिखा है, ‘...परिपूर्ण होते जाओ’ अर्थात यह लगातार चलती रहने वाली प्रक्रिया है कि लगातार पवित्र आत्मा के प्रभाव और नियंत्रण में बने रहो; इसे यदा-कदा किए जाने वाला कार्य मत समझो। इसका यह अर्थ न तो है और न ही हो सकता है कि तुम्हें पवित्र आत्मा की मात्रा बारंबार लेते रहना पड़ेगा जब तक कि तुम उस से ‘भर’ नहीं जाते हो; या फिर यह कि क्योंकि पवित्र आत्मा व्यक्ति में से रिस कर निकलता रहता है, इस लिए जब भी ऐसा हो जाए तो उसे फिर से ‘भर’ लेने के लिए पर्याप्त मात्रा में उसे ले लो। यह तो कभी हो ही नहीं सकता है, क्योंकि जैसा ऊपर देखा है, पवित्र आत्मा परमेश्वर है, पवित्र त्रिएक परमेश्वर का एक व्यक्तित्व, उसे बांटा नहीं जाता है, वह टुकड़ों या किस्तों में नहीं मिलता है, उसे घटाया या बढ़ाया नहीं जा सकता है, और वह हर किसी सच्चे मसीही विश्वासी में मात्रा तथा गुणवत्ता में समान ही होता है। क्योंकि यही सच है तो फिर यही संभव है कि व्यक्ति के सच्चे मसीही विश्वास में आते ही जैसे ही पवित्र आत्मा उसे मिला, वह तुरंत ही उससे ‘भर गया’ अथवा ‘परिपूर्ण’ भी हो गया, क्योंकि अब जो पवित्र आत्मा मिल गया उससे अतिरिक्त, या अधिक, या दोबारा तो कभी मिल ही नहीं सकता है; जो है, जितना है, हमेशा वही और उतना ही रहेगा; अब तो बस उस व्यक्ति को पवित्र आत्मा की उपस्थिति को व्यक्त करते रहना है, अपने व्यवहारिक जीवन में पवित्र आत्मा के प्रभाव को दिखाते रहना है। तो इसलिए अब जिसमें जो भिन्नता हो सकती है वह व्यक्ति के पवित्र आत्मा के प्रति समर्पण एवं आज्ञाकारिता को व्यक्त करना या व्यवहारिक जीवन में प्रदर्शित करना है; किन्तु उसका यह व्यवहार और आचरण (जैसा कि हम शीघ्र ही देखेंगे) उस में पवित्र आत्मा की ‘मात्रा’ का सूचक नहीं है – क्योंकि न तो वह मात्रा और न गुणवत्ता कभी भी बदल नहीं सकती है।

 - क्रमशः
अगला लेख:  पवित्र आत्मा से भरना या परिपूर्ण होना क्या है? भाग 2 – समझना (1)

बुधवार, 6 मई 2020

पवित्र आत्मा का बपतिस्मा – भाग 3 – संख्या; निहितार्थ




पवित्र आत्मा का बपतिस्माभाग 3
कितने बपतिस्मे
निहितार्थ

पवित्र आत्मा का बपतिस्मा कोई अलग से मिलने या लिए जाने वाला बपतिस्मा नहीं है; और न ही इसे प्राप्त करने के लिए मसीही विश्वासियों को कोई निर्देश दिए गए हैं। पवित्र आत्मा, पौलुस में हो कर स्पष्ट कहता है “एक ही प्रभु है, एक ही विश्वास, एक ही बपतिस्मा” (इफिसियों 4:5)। अब यदि उद्धार पाने के बाद लिया गया एक तो पानी का बपतिस्मा है और फिर यदि उस तथाकथित शिक्षा के अनुसार परमेश्वर के लिए प्रभावी होने के लिए एक और पवित्र आत्मा का बपतिस्मा भी है, तो फिर ये तो एक नहीं वरन दो अलग-अलग बपतिस्मे हो गए, और इफिसियों में दी गई ‘एक ही बपतिस्मा’ होने की बात झूठी हो गई! अर्थात पवित्र आत्मा ने, जिसकी प्रेरणा से समस्त पवित्र शास्त्र लिखा गया है (2 तीमुथियुस 3:16), वचन में झूठ डलवा दिया, उसी ने अपने ही बात काट दी, अपने ही विषय गलती कर दी – जो कि असंभव है, ऐसा विचार करना भी घोर मूर्खता है।

अब क्योंकि जल का बपतिस्मा तो स्थापित है ही – यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला भी वही  देता था (मरकुस 1:4-5, 8), प्रभु यीशु ने भी उस से वही बपतिस्मा लिया (मरकुस 1:9), प्रभु ने अपनी महान आज्ञा में भी शिष्यों को यही देने के लिए कहा (मत्ती 28:19), और प्रेरितों दो अध्याय में कलीसिया की स्थापना के साथ ही प्रथम मसीही विश्वासियों को भी यही दिया गया (प्रेरितों 2:41), तथा तब से अब तक सभी मसीही विश्वासियों को दिया जाता रहा है; इसलिए एक बपतिस्मे की गिनती तो यहीं पर इस पानी के बपतिस्मे के साथ समाप्त हो जाती है। पवित्र आत्मा का बपतिस्मा अलग से पाने की शिक्षा देने वाले तो फिर एक और अतिरिक्त बपतिस्मा लेने की शिक्षा देकर, जानते-बूझते हुए परमेश्वर के वचन में गलती डालते हैं, परमेश्वर के वचन को झूठा बनाते हैं, अपनी गलत धारणा के समर्थन के लिए वचन का दुरुपयोग करते हैं। जबकि प्रेरितों 11:15-18 में यह बिलकुल स्पष्ट कर दिया गया है, प्रभु के नाम और प्रभु द्वारा दी गई शिक्षा के आधार पर यह साफ बता दिया गया है, कि पवित्र आत्मा प्राप्त करना और पवित्र आत्मा का बपतिस्मा एक ही हैं, इन्हें पृथक करने या अलग देखने की न तो कोई आवश्यकता है और न ही बाइबल में कोई ऐसी शिक्षा अथवा निर्देश है।

अब इस पर ज़रा ध्यान कीजिए कि भक्ति और वचन के आदर के रूप में शैतान ने कितनी चतुराई से लोगों को परमेश्वर के वचन को झूठा ठहराने और उसकी अनाज्ञाकारिता करने के लिए झांसे में डाला है। इसीलिए पौलुस पवित्र आत्मा के द्वारा ऐसी गलत शिक्षाओं को देने वालों के लिए सचेत करता है, “यह मैं इसलिये कहता हूं, कि कोई मनुष्य तुम्हें लुभाने वाली बातों से धोखा न दे” (कुलुस्सियों 2:4); “परन्तु मैं डरता हूं कि जैसे सांप ने अपनी चतुराई से हव्‍वा को बहकाया, वैसे ही तुम्हारे मन उस सीधाई और पवित्रता से जो मसीह के साथ होनी चाहिए कहीं भ्रष्‍ट न किए जाएं” (2 कुरिन्थियों 11:3)। जैसा हम पहले की चर्चाओं में देख और स्थापित कर चुके हैं, प्रेरितों 11:16 तथा 1 कुरिन्थियों 12:13 में उल्लेखित ‘पवित्र आत्मा का बपतिस्मा’ अलंकारिक भाषा के प्रयोग द्वारा सभी वास्तविक मसीही विश्वासियों को पवित्र आत्मा के द्वारा प्रभु की एक ही देह अर्थात कलीसिया में समान रूप से सम्मिलित कर दिए जाने और समान स्थान तथा आदर प्रदान कर दिए जाने की अभिव्यक्ति है; न कि भविष्य में किए जाने के लिए कोई निर्देश।

बपतिस्मा एक ही है – जल में डुबकी का बपतिस्मा, जिसे मसीही विश्वास में आने के बाद ही प्रत्येक व्यक्ति को प्रभु की आज्ञाकारिता पूरी करने के लिए लेना है – बपतिस्मे से उद्धार नहीं है (प्रेरितों 2:38 की गलत व्याख्याओं द्वारा बहकाए न जाएं; देखिए: क्या प्रेरितों के काम 2:38 यह शिक्षा देता है कि उद्धार के लिए बपतिस्मा लेना आवश्यक है?), उद्धार पाए हुओं के लिए, प्रभु के प्रति समर्पित और आज्ञाकारी होने की गवाही देने के लिए बपतिस्मा है (मत्ती 28:19) – बपतिस्मा उन्हें दिया जाना था जो शिष्य बन जाते थे; न की बपतिस्मा लेने से व्यक्ति शिष्य बनता था)।


निहितार्थ

मसीह की देह, अर्थात उस की कलीसिया अस्तित्व में आ चुकी है; और जितनों ने नया जन्म पाया है, अर्थात वे जो सच्चे मन से पापों से पश्चाताप करने, सत्यनिष्ठा के साथ अपने पापों के लिए प्रभु से क्षमा माँगने, और वास्तविकता में अपना जीवन पूर्णतः प्रभु को समर्पित करने के द्वारा मसीह यीशु में विश्वास में आ गए हैं, वे स्वतः ही प्रभु की देह के अंग और पवित्र आत्मा का मंदिर बन जाते हैं, और परमेश्वर पवित्र आत्मा उन के अन्दर निवास करने लगता है। यदि इस पद के आधार पर यह विचार रखा जाए, कि केवल वे जिन्होंने अतिरिक्त पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाया है, वे ही प्रभु की देह के कार्यकारी और प्रभावी सदस्य हो सकते हैं, तो फिर यह एक बहुत खतरनाक और बाइबल के बिलकुल विपरीत सिद्धांत  ले आता है – प्रभु की कम से कम दो देह होने का – एक देह वे जिन्होंने पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाया है और दूसरी देह वो जिन्होंने यह बपतिस्मा नहीं पाया है; पहले वाले तो प्रभु के लिए उपयोगी होंगे और दूसरे वाले उपयोगी नहीं होने पाएँगे। ऐसी स्थित में स्वाभाविक है कि अनन्तकाल के लिए प्रभु की लगभग सभी आशीषें और प्रतिफल पहले वाले लोगों के लिए होंगे, जबकि दूसरे वाले लोगों को अनंतकाल के लिए लगभग खाली हाथ ही रहना पड़ेगा। अब आप स्वयं ही देख लीजिए कि भक्तिपूर्ण प्रतीत होने वाला यह सिद्धांत वास्तव में कितना घातक, घिनौना, पवित्र शास्त्र के प्रतिकूल, परमेश्वर के स्वभाव के बिलकुल विपरीत, तथा पूर्णतः तिरस्कार योग्य है।

साथ ही, एक बार फिर, यह लोगों को सत्य बताने की ज़िम्मेदारी से बचने का प्रयास है; यह बताने के दायित्व से मुँह मोड़ना है कि यदि उन्हें अपने जीवनों में पवित्र आत्मा की उपस्थिति का अनुभव नहीं हो रहा है तो दो ही संभावनाएं हैं, या तो उन्होंने वास्तव में उद्धार तथा नया जन्म नहीं पाया है, इसलिए उन्हें इसे सुधारने के लिए तुरंत निर्णय और उपयुक्त कार्य करना चाहिए; अथवा, उनके जीवन पवित्र आत्मा को पूर्णतः समर्पित नहीं हैं, वे वास्तव में पवित्र आत्मा के आज्ञाकारी नहीं हैं, इस लिए वह उन में हो कर कार्य नहीं कर रहा है; और फिर इस का भी तुरंत उचित सुधार करना आवश्यक है।

 - क्रमशः
अगला लेख:  पवित्र आत्मा से भरना या परिपूर्ण होना क्या है? (भाग 1)

मंगलवार, 5 मई 2020

पवित्र आत्मा का बपतिस्मा - भाग 2 - 1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग 4)




पवित्र आत्मा का बपतिस्मा क्या है? -  भाग 2  
 1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग 4)


इस पद 1 कुरिन्थियों 12:13 को फिर से देखिए – यहाँ प्रयोग किया गया वाक्यांश है ‘हम सब ने...बपतिस्मा लिया’ – भूतकाल; पूरा किया गया, कर लिया गया कार्य। यहाँ प्रयुक्त ‘हम’ का अभिप्राय पौलुस और सोस्थिनेस (1 कुरिन्थियों 1:1), तथा पौलुस के अन्य सेवकाई में सहायक साथियों से, तथा सभी यहूदीयों, अन्यजातियों, यूनानियों, स्वतंत्र अथवा दासों से है। सभी को एक साथ मसीह की एक ही देह में डुबो या समो दिया गया। अब, क्या सम्पूर्ण नए नियम में, कहीं पर भी ऐसा लिखा गया है कि पौलुस या सेवकाई के उस के साथियों में से किसी ने भी कोई अलग से पवित्र आत्मा का बप्तिस्मा लिया था; या ऐसा बपतिस्मा लेने के बाद उन्हें सामर्थ्य प्राप्त हुई और तब वे अपनी उस संसार को उल्ट-पुलट कर देने वाली सेवकाई (प्रेरितों 17:6) पर निकले? दमिश्क के मार्ग पर जाते हुए पौलुस के उद्धार पाने और बदल जाने के बाद बपतिस्मा लेने की घटना भली-भांति दर्ज की गई है (प्रेरितों 9:18) ; साथ ही यह भी लिखा गया है कि, “
और वह तुरन्त आराधनालयों में यीशु का प्रचार करने लगा, कि वह परमेश्वर का पुत्र है” (प्रेरितों 9:20) । उस ने यह इतनी लगन और प्रबलता के साथ किया कि लोग चकित रह गए (प्रेरितों 9:21), और इस के बाद से पौलुस और भी अधिक सामर्थी होता चला गया, तथा यहूदियों के मुंह बंद करता चला गया
(प्रेरितों 9:22)। क्योंकि कोई उस के सामने खड़ा नहीं रह सकता था, इस लिए अंततः यहूदियों ने उसे मार डालने की योजना बनाना आरम्भ कर दिया  (प्रेरितों 9:23)। पौलुस का यह सेवकाई आरम्भ करना क्या इस बात को बिलकुल स्पष्ट नहीं दिखा देता है कि प्रभु के लिए उपयोगी एवं प्रभावी होने के लिए पवित्र आत्मा के किसी बपतिस्मे की कोई आवश्यकता नहीं है?


अपने मुख्य पद 1 कुरिन्थियों 12:13 पर वापस लौटते हैं, यद्यपि यहाँ पर यह तो लिखा है कि “हम सब ने...एक ही आत्मा के द्वारा एक देह होने के लिये बपतिस्मा लिया...”, किन्तु यहाँ पर यह कहीं नहीं लिखा है कि इस पद में जिनका उल्लेख है उनमें से किसी ने भी, कभी भी ऐसा किए जाने के लिए कहा, या प्रतीक्षा की, या प्रार्थना की। यह पवित्र आत्मा के द्वारा स्वयं ही किया गया था – उन सभी को अपने में ढांप लिया और सब को मसीही विश्वासियों में मिलाकर एक देह कर दिया। साथ ही, यहाँ पर ऐसा कुछ नहीं लिखा गया है कि उन में से कुछ को उन के लिए यह करने के योग्य पाया गया, किन्तु कुछ औरों को छोड़ दिया गया क्योंकि वे इस के योग्य नहीं पाए गए। और न ही कहीं यह लिखा है, या ऐसा संकेत भी किया गया है कि, कोरिन्थ की मंडली, या किसी भी अन्य मसीही विश्वासियों की मंडली में यदि कभी भी कोई नया सदस्य आएगा, तो फिर उन्हें भी यह पवित्र आत्मा का बपतिस्मा लेना होगा यदि वे प्रभु की सेवा करना चाहते हैं, प्रभु के लिए प्रभावी होना चाहते हैं। ऐसे सभी विचारों को इस पद के आधार पर बताना और सिखाना बचकाना है, काल्पनिक है। इस पद से ऐसी कोई भी शिक्षा न तो बनाई जा सकती है, और न ही सही ठहराई जा सकती है।



  यह पद एक उत्तम उदाहरण है बाइबल के केवल कुछ चुने हुए शब्दों या वाक्यांशों को लेकर, उन्हें तोड़-मरोड़ कर झूठे सिद्धांतों और शिक्षाओं को बनाने और बढ़ावा देने का (ऐसा ही अन्य उदाहरण 1 कुरिन्थियों 14 में भी है, परन्तु उसे हम फिर कभी, जब प्रभु की इच्छा और मार्गदर्शन होगा, तब देखेंगे)। पवित्र आत्मा का बपतिस्मा लेने के सिद्धांत का पालन करने वाले इस पद का बहुत बल के साथ प्रयोग करते हैं, इस के आधार पर अपनी बात को सही ठहराने के दावे करते हैं, क्योंकि इस पद में लिखा है, “क्योंकि हम सब ने क्या यहूदी हो, क्या युनानी, क्या दास, क्या स्‍वतंत्र एक ही आत्मा के द्वारा एक देह होने के लिये बपतिस्मा लिया...।” परन्तु पद के इस पहले भाग के बाद वे बड़ी आसानी से इस पद के अंत में कही गई बात, “...और हम सब को एक ही आत्मा पिलाया गया” को बताना, या उस पर भी कार्य करना, कहना भूल जाते हैं, छोड़ देते हैं।



क्या आज तक कभी किसी को भी यह कहते या जोर देते सुना है कि ‘पवित्र आत्मा को पीना भी आवश्यक है?’ क्या ‘बपतिस्मा लिया’ और ‘पिलाया गया’ एक ही वाक्य के भाग नहीं हैं? यदि वाक्य का पहला भाग इतना आवश्यक और महत्वपूर्ण है कि उस पर सिद्धांत ही बना कर खड़ा कर दिया गया है और उसे बल दे कर सिखाया जाता है, तो फिर वाक्य के दूसरे भाग की पूर्णतः अवहेलना क्यों की जाती है? यदि यह कहा जाए की वाक्य का दूसरा भाग बात कहने के लिए अलंकारिक भाषा का प्रयोग है, तो फिर यही बात वाक्य के पहले भाग पर क्यों लागू नहीं होती है? क्यों नहीं यह स्वीकार कर के कि इस पूरे वाक्य में बात कहने के लिए अलंकारिक भाषा का प्रयोग किया गया है, इस समस्त गढ़े गए झूठे सिद्धांत और शिक्षा, बाइबल की बातों की गलत व्याख्या और गलत प्रयोग के झूठ का अंत कर दिया जाए? सीधी और स्पष्ट बात है कि इन दो अलंकारिक वाक्यांशों के प्रयोग के द्वारा यह बताया गया है कि मसीह की देह के प्रत्येक सदस्य को पवित्र आत्मा द्वारा पूर्णतः घेरे में ले लिया गया है – अन्दर से भी और बाहर से भी – और हर सदस्य इस प्रकार से पवित्र आत्मा में पूर्णतः सुरक्षित और ढांपा हुआ है।



  स्पष्ट और सीधी बात है कि इस पद में किसी पवित्र आत्मा के बपतिस्मे के द्वारा प्रभु के लिए उपयोगी होने की कोई शिक्षा नहीं है। ऐसी गलत शिक्षाओं को इस में घुसाना परमेश्वर के वचन को बिगाड़ना है, और लोगों को बहका कर उन्हें एक व्यर्थ और निष्फल प्रयास में समय बर्बाद करने में लगाना है।



 - क्रमशः

अगला लेख: पवित्र आत्मा का बप्तिस्मा – भाग 3 – कितने बपतिस्मे; निहितार्थ

सोमवार, 4 मई 2020

पवित्र आत्मा का बपतिस्मा - भाग 2 - 1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग 3)



पवित्र आत्मा का बपतिस्मा क्या है? -  भाग 2   
1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग 3)

अब, हम 1 कुरिन्थियों 12:13 को आगे देखते हैं, उस के सन्दर्भ  तथा उन सम्बंधित बातों के साथ जिन्हें हम ने ऊपर देखा है। 1 कुरिन्थियों 12 अध्याय, रोमियों 12 अध्याय ही के समान, पवित्र आत्मा के वरदानों का अध्याय है, परन्तु एक अंतर के साथ, रोमियों 12 अध्याय में पवित्र आत्मा के बपतिस्मे का उल्लेख नहीं है। पौलुस इस अध्याय का आरंभ उन कुरिन्थियों को यह स्मरण दिलाने के साथ करता है कि उन्हें गूंगी मूरतों की उपासना करने से छुड़ाया गया है, और उन की आत्मिक परिपक्वता की दशा चाहे जो भी हो, यह उन में निवास करने वाले पवित्र आत्मा के द्वारा ही है कि, वे यीशु को प्रभु कहने पाते हैं (पद 1-3) और उन्हें पवित्र आत्मा के वरदान भी दिए गए हैं। फिर पद 4 से 11 तक पौलुस उन्हें उन आत्मा के विभिन्न वरदानों के बारे में लिखता है जो उन्हें दिए गए हैं।

उन की उपरोक्त उल्लेखित पृष्ठभूमि और आत्मिकता की दयनीय दशा को ध्यान में रखते हुए, एक महत्वपूर्ण बात पर ध्यान दीजिए, जिसे पवित्र आत्मा उन से पौलुस द्वारा बल दिलवा कर कहता है – उन की व्यक्तिगत आत्मिक दशा चाहे जैसी भी हो, परमेश्वर की दृष्टि में, परमेश्वर के उद्देश्यों के लिए, प्रभु के समक्ष वे सभी एक ही कलीसिया हैं, सभी एक समान स्तर के हैं; न कोई ऊँचा है, और न कोई नीचा, न कोई अधिक उपयोगी है, और न कोई कम उपयोगी; परमेश्वर के सामने वे सभी एक ही समान हैं। पौलुस इस बात को उन्हें किस प्रकार से दिखाता है? 

वह कहता है:

  • पद 4-6 में, एक ही आत्मा, एक ही प्रभु, एक ही परमेश्वर, सब में हर प्रकार का प्रभाव उत्पन्न करता है;
  • पद 7 में,  सब के लाभ पहुंचाने के लिये हर एक को आत्मा का प्रकाश दिया जाता है; (पवित्र आत्मा के वरदानों के विषय विचार करते समय यह एक बहुत महत्वपूर्ण ध्यान रखने योग्य तथ्य है – कोई भी वरदान, कैसा भी और कोई भी, किसी के भी व्यक्तिगत उपयोग के लिए नहीं है; प्रत्येक वरदान सारी कलीसिया के लाभ के लिए है - 1 कुरिन्थियों 14:2-4 को लेकर सामान्यतः दी जाने वाली गलत शिक्षा के प्रचलन के बावजूद);
  • पद 11 में, पवित्र आत्मा की विभिन्न वरदानों का पद 8-10 में वर्णन करने के पश्चात, एक और महत्वपूर्ण कथन दिया गया है – सभी, वरदान, किसी मनुष्य की इच्छा के अनुसार नहीं वरन पवित्र आत्मा की इच्छा के अनुसार, जिसे वह चाहे अर्थात हर एक को दिए गए हैं (हिन्दी अनुवाद में प्रयुक्त ‘जिसे’ मूल यूनानी भाषा में प्रयुक्त शब्द ‘हेकास्तोस’, जिसका अर्थ होता है सभी या प्रत्येक, को ठीक से व्यक्त नहीं करता है, किन्तु अंग्रेज़ी में अनुवाद ‘सभी’ है); हम यहाँ देखते हैं कि किसी के भी साथ, किसी भी आधार पर, किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं किया गया है। कोरिन्थ की कलीसिया के प्रत्येक मसीही विश्वासी को कोई न कोई वरदान दिया गया है जिस से वह प्रभु के लिए उपयोगी हो सके।
  • पद 12 से ले कर पद 27 तक इस बात की पुष्टि फिर से की गई है, एक शब्द चित्र के द्वारा जिसमें एक देह और उसके विभिन्न अंगों को दिखाया गया है, जो सब साथ मिल कर कार्य करते हैं, और एक भी अंग में कोई भी बिगाड़, अन्य सभी अंगों को प्रभावित करता है।


इस सम्पूर्ण खण्ड में, जो कि 1 कुरिन्थियों 12:13 को सन्दर्भ प्रदान करता है, क्या कहीं पर भी, स्पष्ट शब्दों में कहना तो बहुत दूर की बात है, ज़रा सा संकेत मात्र भी है, कि प्रभु की सेवकाई के योग्य समझे जाने के लिए किसी भी आधार पर कोई भी भिन्नता की गई – क्या तथाकथित पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाया हुआ होना या न होना को भी कहीं कोई आधार बनाया गया? क्या कहीं पर यह कहा गया है कि क्योंकि उसने पवित्र आत्मा का बपतिस्मा नहीं पाया था इसलिए उस व्यक्ति को पवित्र आत्मा का वरदान पाने के अयोग्य समझा गया? क्या कहीं पर भी ऐसा लिखा या अभिप्राय दिया गया है कि यद्यपि प्रत्येक मसीही विश्वासी मसीह की देह का, उस की कलीसिया का अंग है, किन्तु ये प्रबल वरदान जैसे कि बुद्धि, ज्ञान, विश्वास, चंगाई, सामर्थ्य के काम, भविष्यवाणी, आत्माओं की परख, अनेकों प्रकार की भाषाएँ और भाषाओं का अर्थ बताना आदि केवल उन्हीं को दी गए जिन्होंने अलग से पवित्र आत्मा का बपतिस्मा भी पाया था? और रोमियों 12 इस खंड का समानांतर लेख पवित्र आत्मा के बपतिस्मे का उल्लेख भी नहीं करता है!

इस लिए किस आधार पर, बाइबल के कौन से समर्थन के अनुसार, यह शिक्षा दी जाती है और दावा किया जाता है कि प्रभु के लिए कारगर होने के लिए मसीही विश्वासी को पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाना आवश्यक है? यदि कोरिन्थ के मसीही विश्वासियों की इतनी दुर्बल आत्मिक स्थिति के बावजूद भी, उन्हें इतने अद्भुत और सामर्थी आत्मिक वरदानों को दिए जाने के योग्य समझा गया, और उन में से प्रत्येक को पवित्र आत्मा द्वारा प्रभु के लिए उपयोगी होने की क्षमता रखने वाला माना गया, तो फिर कोई इस बात का दावा कैसे कर सकता है कि प्रभु के लिए प्रभावी होने के लिए विशेषतः पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाना आवश्यक है?

क्या यह मसीह के देह में फूट डालने, विभाजन करने, और कुछ को औरों से बड़ा या बेहतर जता कर उन के द्वारा दूसरों पर हावी होने का प्रयास करना नहीं है? ऐसे में इस प्रकार की शिक्षा को सिखाने और मानने के द्वारा कलीसिया में विभाजन और भेदभाव उत्पन्न करने की संभावनाओं को ले आना क्या परमेश्वर का कार्य होगा, या फिर शैतान का? क्या पवित्र आत्मा का बपतिस्मा कह कर इस जान बूझकर दी गई गलत शिक्षा और परमेश्वर के वचन की गलत व्याख्या पर बल देने में कोई भी सद्गुण अथवा आत्मिक उन्नति की संभावना है?


 - क्रमशः

अगला लेख: पवित्र आत्मा का बप्तिस्मा – भाग 2 – 1 कुरिन्थियों 12:13 (भाग 4)