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मंगलवार, 30 अगस्त 2016

परमेश्वर की आराधना और महिमा - भाग 6: ’कारण तथा प्रभाव’ का संबंध:


कारण तथा प्रभावका संबंध

परमेश्वर की प्रत्येक सन्तान के जीवन में समान रूप से तथा लगातार लागू रहने वाले सिद्धांतों में से एक है: "धोखा न खाओ, परमेश्वर ठट्ठों में नहीं उड़ाया जाता, क्योंकि मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा" (गलतियों 6:7); इसी सिद्धांत को कुछ भिन्न शब्दों में यूँ भी कहा गया है: "परन्तु बात तो यह है, कि जो थोड़ा बोता है वह थोड़ा काटेगा भी; और जो बहुत बोता है, वह बहुत काटेगा" (2 कुरिन्थियों 9:6)। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर के लिए, मात्रा एवं गुणवत्ता में हमारे द्वारा किया गया निवेष ही यह निर्धारित करता है कि हम परमेश्वर से प्रत्युत्तर में क्या और कितना पाएंगे।

जब हम परमेश्वर से कुछ प्राप्त करते हैं, चाहे वह प्रार्थना के अथवा आराधना के प्रत्युत्तार में हो, तब यदि हम हमारे जीवन में किए गए उसके उपकार और कार्य का अंगीकार करने तथा खुलकर उसकी गवाही देने के लिए तैयार होते हैंअपने उजियाले को मनुष्यों के सामने चमकाने देते हैं (मत्ती 5:15-16), यदि हम सार्वजनिक रीति से, ईमानदारी से तथा आत्मा और सच्चाई से, उससे मिली आशीष के लिए उसे अपना धन्यवाद, आदर और आराधना अर्पित करते हैं, तो जो हम उसे देते हैं परमेश्वर कभी उसका कर्ज़दार नहीं बना रहता। जो हम आराधना में उसे देते हैं, उसके प्रत्युत्तर में वह और भी बढ़कर आशीषें हमें लौटा कर दे देता है। जैसे जैसे हमारी आराधना की मात्रा और गुणवत्ता बढ़ती जाती है, प्रत्युत्तर में परमेश्वर से मिलने वाली आशीषें भी उसी अनुपात में बढ़ती जाती हैं! कारण अर्थात पाना, उसके प्रभाव अर्थात प्रत्युत्तर का जनक हो जाता है, जो फिर से एक नए पाने और देने के सिलसिले का आरंभ बन जाता है, और यह सिलसिला बढ़ता रहता है - ऊँचाईयों को अग्रसर मार्ग, जिससे हम परमेश्वर द्वारा अधिकाधिक परिपूर्ण और आशीषित होते जाते हैं। कारण तथा प्रभाव के संबंध का यह सिद्धांत सभी विश्वासियों के लिए उपलब्ध और कार्यकारी है, परन्तु इसका सही उपयोग करना हमारे अपने हाथ में है।

मैं यह अपने व्यक्तिगत अनुभव से कह रहा हूँ - परमेश्वर को महिमा दें, वह लौटा कर आपको महिमा देगा; उसे आदर दें, उससे आदर पाएं; उसे श्रद्धा दें, उससे श्रद्धा पाएं; उसकी बड़ाई करें, उससे बड़ाई पाएं; अपने समय में से उसे दें, वह आपके जीवन में और समय भर देगा; अपने जीवन में उसे प्राथमिकता दें, वह आपको प्राथमिकता दिलवाएगा; उसके लिए कार्य करें, वह आपके लिए कार्य करेगा; पृथ्वी पर उसकी आवश्यकताओं को पूरा करें, वह आपकी आवश्यकताओं को पूरा करेगा केवल पृथ्वी पर ही नहीं वरन स्वर्ग में भी। यह सब कठिन और समझ के बाहर प्रतीत हो सकता है, परन्तु विश्वास के साथ कदम आगे बढ़ाएं, परमेश्वर आपको निराश कभी नहीं होने देगा।

प्रार्थना के द्वारा आप उतना ही पा सकते हैं जितनी आपकी सोच की सीमा और अपनी आवश्यकताओं के बारे में समझ है; परन्तु आराधना आपको आपकी कलपना से भी कहीं अधिक बढ़कर आशीषित और भरपूर कर सकती है (1 कुरिन्थियों 2:9)

आराधना के लिए उभारना परमेश्वर का तरीका है हमें उस बहुतायत के जीवन को उपलब्ध करवाने का जो परमेश्वर अपने लोगों को देना चाहता है: "... मैं इसलिये आया कि वे जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएं" (यूहन्ना 10:10)। आराधना इसलिए नहीं है कि हम परमेश्वर की तूती उसके लिए बजाएं; वरन इसलिए है ताकि जो भी फसल हम उसके लिए बोएं बहुतायात से उसका प्रतिफल पाएं।
आगे हम इस कारण और प्रभाव के संबंध को समझने के लिए कुछ और उदाहरण देखेंगे।