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गुरुवार, 3 जनवरी 2019

पवित्र आत्मा की निन्दा को कभी न क्षमा होने वाला पाप क्यों कहा गया है?


        कभी न क्षमा होने वाला पाप “पवित्र आत्मा की निन्दा या निरादर को लेकर बहुत सी ग़लतफ़हमियाँ हैं, जिसके कारण इस अभिव्यक्ति का दुरुपयोग भी किया जाता है। यह निंदनीय है कि बहुत से प्रचारक तथा शिक्षक, मसीही विश्वासियों के मनों में अनुचित भय जागृत करने के लिए इस धारणा का दुरुपयोग करते हैं, जिससे कोई उनसे, उनके कार्यों और शिक्षाओं के लिए प्रश्न न कर सके। ऐसा करके ये लोग, प्रश्न करने वालों पर “पवित्र आत्मा का निरादर” करने का भय एवं आरोप लगाने के द्वारा, उनकी बहुत सी गलत सैद्धांतिक एवं विश्वास संबंधी शिक्षाओं, तथा उनके जीवन में पाए जाने वाले अनुचित व्यवहार के प्रति लोगों के मुंह बंद करते हैं। यह समझने के लिए कि यह “निरादर” वास्तव में है क्या, और यह क्यों केवल पवित्र आत्मा के विरुद्ध ही क्षमा नहीं हो सकता है, हमें परमेश्वर के वचन में से कुछ तथ्यों एवं शिक्षाओं को देखना होगा।

           सर्वप्रथम, यह केवल पवित्र आत्मा के विरुद्ध ही क्यों कहा गया है?
           परमेश्वर का वचन बाइबल हमारे प्रभु परमेश्वर को त्रिएक परमेश्वर दिखाती है, परमेश्वर पिता, परमेश्वर पुत्र प्रभु यीशु मसीह, और परमेश्वर पवित्र आत्मा। ये तीनों हर प्रकार से और हर बात में पूर्णतः एक और सामान हैं, इन तीनों में कोई भी, किसी भी प्रकार की भिन्नता नहीं है पवित्र त्रिएक परमेश्वर एक परमेश्वर तीन व्यक्तित्वों में। तो फिर ऐसा क्यों है की केवल “पवित्र आत्मा के निरादर” के लिए ही इतने कठोर परिणाम दिए गए हैं, और इन ही परिणामों का न तो कोई संकेत और न ही कोई दावा परमेश्वर पिता, या परमेश्वर पुत्र – प्रभु यीशु के विरुद्ध किए गए निरादर के लिए कहा गया है?

           इसे समझने के लिए त्रिएक परमेश्वर के तीन व्यक्तित्वों के संबंध में कुछ बारीकियों को देखना होगा।
           परमेश्वर पुत्र – प्रभु यीशु मसीह, जब पृथ्वी पर हमारे उद्धारकर्ता बन कर आए, तो वे अपनी स्वर्गीय महिमा, वैभव, स्वरूप, और स्थान को छोड़कर आए थे। बाइबल बताती है कि मानव स्वरूप में उन्होंने अपने आप को स्वर्गीय महिमा से शून्य कर लिया और वे स्वर्गदूतों से थोड़ा कम किए गए थे (फिलिप्पियों 2:5-8; इब्रानियों 2:9)। इस मानवीय स्वरूप में, वे संसार के पाप उठाने और संसार के छुटकारे के लिए बलिदान होने के लिए आए थे। इसके लिए उनका, तुच्छ समझा जाना, उनके विरुद्ध बोला जाना, उनका दुःख और ताड़ना सहना, और संसार के लोगों से तिरिस्कृत एवं निरादर होना, पूर्वनिर्धारित था (यशायाह 53)। उन्हें भी वही सब अनुभव करना और सहना था जिसमें होकर संसार के लोग निकलते हैं; उन्हें किसी भी अन्य मनुष्य के सामान जीवन जीना था (इब्रानियों 4:15; 5:7-8), और अंततः क्रूस की श्रापित मृत्यु सहन करनी थी। उनके इस मानवीय स्वरूप और अस्तित्व के सन्दर्भ में, मृत्यु सहने के लिए स्वर्गदूतों से कुछ कम किए जाने से, उनका यह मानवीय स्वरूप उनके त्रिएक परमेश्वरीय स्वरूप से कुछ “कम” था। इसलिए उनके मानवीय स्वरूप की निंदा या निरादर का दोष, जिसे उन्हें सहना ही था, परमेश्वर पवित्र आत्मा के निरादर से कुछ कम और भिन्न होता। क्योंकि हमारे प्रभु को हमारे उद्धार का मार्ग प्रदान करने की अपनी सेवकाई के दौरान अपमान और तिरिस्कार सहना निर्धारित किया गया था, इसलिए उनके (अर्थात उनके मानव स्वरूप के) विरुद्ध कही गई, या कही जाने वाली निंदनीय बातों को क्षमा न हो सकने वाल पाप कहना उनके पृथ्वी पर आने के उद्देश्य को ही विफल कर देता, और संसार को छुटकारे के स्थान पर नाश में भेज देता। इसलिए परमेश्वर पुत्र की निंदा को क्षमा न हो सकने वाला पाप नहीं कहा जा सकता था।

           परमेश्वर पिता के संदर्भ में, शब्द “परमेश्वर” और “पिता” सभी संस्कृतियों और धर्मों में सामान्यतः प्रयोग किए जाने वाले शब्द हैं, जिन्हें नास्तिक और धर्म को न मानने वाले भी प्रयोग करते रहते हैं; बहुधा सौगंध खाने और अपशब्दों के साथ भी, जैसे कि, “अरे मेरे परमेश्वर/या ख़ुदा” “परमेश्वर नाश करे,” “परमेश्वर के श्रापित,” “परमेश्वर की सौगंधआदि। किसी व्यक्ति द्वारा इन शब्दों का प्रयोग करने का यह अर्थ नहीं है कि वह इन्हें पवित्र त्रिएक परमेश्वरत्व में से पिता परमेश्वर के लिए प्रयोग कर रहा है। इसी प्रकार से शब्द “पिता” भी संसार भर में अनेकों अभिप्रायों के साथ प्रयोग किया जाता है, और इसे भी बहुधा अपशब्दों और सौगंध लेने में भी प्रयोग किया जाता है। इसलिए शब्द “पिता” तथा शब्द “परमेश्वर”, जो कि किसी भी मत अथवा धर्म में किसी आराध्य के लिए प्रयोग हो सकता है, का किसी भी प्रकार से दुरुपयोग, यदि उसे परमेश्वर के निरादर की परिभाषा से पृथक नहीं रखा जाता, तो स्वतः ही शब्दों का इस प्रकार से प्रयोग करने वाला व्यक्ति, तुरंत ही सदा काल के लिए दोषी ठहराया जाता, और उसके पास फिर कभी उद्धार पाने का कोई अवसर नहीं रहता। इसलिए ये दोनों शब्द “पिता” एवं “परमेश्वर” का दुरुपयोग कभी क्षमा न हो सकने वाले पापों में सम्मिलित नहीं किए जा सकता था।

           अब पवित्र त्रिएक परमेश्वरत्व में केवल परमेश्वर पवित्र आत्मा ही शेष रहा। यहां पर एक बहुत ही महत्वपूर्ण ध्यान देने योग्य बात यह है कि परमेश्वर पवित्र आत्मा का विचार केवल मसीही और यहूदी धर्म-विचारधारा में ही पाया जाता है; संसार के अन्य किसी भी धर्म या विश्वास में यह विद्यमान नहीं है। क्योंकि पवित्र आत्मा के बारे में पुराने नियम के समय में भी लोगों को भली-भांति पता था (उदाहरण के लिए, उत्पत्ति 1:2; भजन 104:30; 139:7 आदि) – जो कि वह पवित्र शास्त्र है जिसे फरीसी, सदूकी, और शास्त्री पढ़ा करते थे, इसलिए वे किसी भी प्रकार से उनके विषय अनभिज्ञ होने का दावा नहीं कर सकते थे, और न ही उनके त्रिएक परमेश्वर का भाग होने से अनजान होने का कह सकते थे। इसलिए, परमेश्वर पिता तथा परमेश्वर पुत्र के विषय में उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए, मूलतः, पवित्र आत्मा के विरुद्ध कही गई निरादर की कोई बात ही एकमात्र सच्चे परमेश्वर की निंदा मानी जा सकती है। पवित्र परमेश्वर के विरुद्ध बात करना वही पाप है जिसके कारण लूसिफर गिराया गया (यशायाह 14:12-14; यहेजकेल 28:12-15), और शैतान बन गया सदा काल के लिए परमेश्वर और उससे संबंधित किसी बात का विरोधी। लूसिफर ने परमेश्वर की महिमा और महानता के विरुद्ध बलवा किया और बातें करीं, परमेश्वर को उसके समस्त महिमा, वैभव, महानता, अधिकार और सामर्थ्य में भली-भाँति जानने के बावजूद; जानकारी रखते हुए भी जानबूझकर किया गया यह विद्रोह लूसिफर के लिए क्षमा न होने वाला पाप बन गया, और उसे शैतान बना दिया, तथा उसे स्वर्ग से निष्कासित कर दिया गया।

           परमेश्वर की पवित्रता, वैभव, और महानता के विरुद्ध किए गए निरादर के इस पाप को यदि हमारे लिए क्षमा योग्य बना दिया जाता, तो फिर परमेश्वर के उच्च तथा निष्पक्ष न्याय की मांग होगी की लूसिफर को भी क्षमा मिलनी चाहिए और यह परमेश्वर की पवित्रता, वैभव, महानता, और पूर्ण सार्वभौमिकता का उपहास हो जाएगा। लूसिफर का पाप न केवल अत्यंत जघन्य था, वरन क्योंकि उसके पतन के समय, किसी ने भी किसी के पाप की कोई कीमत नहीं चुकाई थी, जैसे कि मसीह यीशु ने हमारे लिए चुका दी है, इसलिए पाप के लिए कोई प्रायश्चित का समाधान उपलब्ध भी नहीं था; इसका निवारण दंड के द्वारा ही संभव था। ऐसी परिस्थिति में, मात्र क्षमा की प्रार्थना का स्वीकार किए जाने का अर्थ होता स्वर्गीय स्थानों में अनियंत्रित अव्यवस्था एवं अराजकता को निमंत्रण देना। कोई भी सृजा गया प्राणी अपनी इच्छानुसार कुछ भी कर लेता और, बस क्षमा मांग कर उसके परिणामों से बच निकालता और यह कदापि स्वीकार नहीं की जा सकने वाली स्थिति हो जाती। इसलिए यह अनिवार्य था कि लूसिफर से उसके द्वारा किए गए इस निरादर के पाप का हिसाब लिया जाए और उसे पाप का दण्ड भोगने का उदाहरण बना कर प्रस्तुत किया जाए। लूसिफर को उचित दण्ड दिया ही जाना था; ऐसा दण्ड जो उसके पाप के घोर और जघन्य होने के अनुपात में हो। यदि परमेश्वर के निरादर का पाप एक के लिए क्षमा होने योग्य नहीं है, तो फिर परमेश्वर के निष्पक्ष न्याय के अनुसार, यह औरों के लिए भी क्षमा नहीं किया जा सकता है। इसीलिए, पवित्र आत्मा के विरूद्ध निरादर के पाप को भी कभी क्षमा नहीं किया जा सकता है।

           दूसरा, अब हम देखते हैं की शब्द ‘निंदा या निरादर’ का, उसके क्षमा न हो सकने वाले पाप के सन्दर्भ में, परमेश्वर के वचन में अभिप्राय क्या है। हम मिकल्संस एन्हांस्ड डिक्शनरी ऑफ़ द ग्रीक एंड हीब्र्यु टेस्टामेंट्स से देखते हैं कि यह शब्द यूनानी शब्द ब्लास्फेमियो” (स्ट्रौंग्स G987) से आया है, जिसका अर्थ है:
1. धिक्कारना, अपशब्द के साथ विरोध में बोलना, हानि पहुंचाना।
2. कलंकित करना, किसी की प्रतिष्ठा को हानि पहुंचाना, बदनाम करना।
3. (विशेषतः) किसी के प्रति निरादर पूर्वक बोलना।

           इस शब्द की उपरोक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि, यह निरादर का पाप एक ऐच्छिक, जानबूझकर योजनानुसार किया गया कार्य है; जो तथ्यों पर आधारित हो सकता है अथवा नहीं भी हो सकता है, वरन जो तथ्यों का दुरुपयोग करके उन तथ्यों के यथार्थ से बिलकुल भिन्न अभिप्राय देने के द्वारा किया गया भी हो सकता है। और यह केवल व्यक्ति को नीचा दिखाने और बदनाम करने के उद्देश्य से किया गया हो जो चाहे सही हो या गलत। सीधे शब्दों में, निरादर व्यक्ति को दुष्ट कहना और इसका प्रचार करना है यह भली-भांति जानते हुए भी कि वह व्यक्ति बुरा नहीं है; और उसके बुरा न होने के प्रमाण होते हुए भी, उसे बदनाम करने के उद्देश्य से, जानबूझकर ऐसा करना।

           पवित्र आत्मा के विरुद्ध निरादर का पाप पवित्र आत्मा या उसकी सामर्थ्य अथवा कार्यों के प्रति असमंजस में या अनिश्चित होना, या उस पर संदेह करना, या उसके विषय कोई स्पष्टीकरण की अपेक्षा करना, या कुछ और अधिक खुलासा अथवा विवरण माँगना नहीं है, यह इस बात से भली-भांति प्रकट होता है की यद्यपि प्रभु के कार्य पवित्र आत्मा के अभिषेक और सामर्थ्य के साथ किए गए थे (प्रेरितों 10:38), किन्तु फिर भी अनेकों को, जिन में नए नियम के कुछ बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति भी सम्मिलित हैं, प्रभु तथा उसकी सेवकाई के प्रति संदेह था, यहाँ तक कि अविश्वास भी थायूहन्ना बप्तिस्मा देने वाले को संदेह हुआ की क्या प्रभु वह प्रतिज्ञा किया हुआ मसीहा था भी की नहीं (मत्ती 11:2-3); प्रभु के शिष्यों को ही उस पर संदेह था की वह वास्तव में है कौन (मरकुस 4:38-41); प्रभु यीशु के अपने भाई भी उस पर विश्वास नहीं रखते थे (यूहन्ना 7:5); दुष्टात्मा के वश में लड़के के पिता को संदेह था कि वह उसके पुत्र को ठीक कर सकता है कि नहीं (मरकुस 9:24); मृतक लाज़रस की बहिन मार्था को संदेह था, कि प्रभु लाज़रस को मृतकों में से जिलाने पाएगा (यूहन्ना 11:21-28); थोमा को प्रभु के पुनरुत्थान पर संदेह था (यूहन्ना 20:25) इत्यादि। किन्तु इन में से किसी को भी प्रभु ने उनके प्रश्नों, संदेहों, और अविश्वास के कारण कभी क्षमा न हो पाने वाले पाप का दोषी न तो कहा और न इसके लिए उन्हें दण्डित किया। पवित्र आत्मा का प्रतिरोध करने और उसके अनाज्ञाकारी होने की निंदा अवश्य की गई है (प्रेरितों 7:51-53), परन्तु इस “कभी क्षमा न होने वाला पाप” नहीं कहा गया है।

           यहाँ तक कि प्रभु के विरोध में भद्दी या अपमानजनक भाषा के उपयोग को (पतरस द्वारा प्रभु का तीन बार असभ्य भाषा के प्रयोग के साथ किया गया इनकार – मत्ती 26:69-74), भी बाइबल में अनादर या क्षमा न होने वाला पाप नहीं कहा गया है। हमें यह स्मरण करना और ध्यान करना आवश्यक है कि केवल फरीसी, सदूकी, और शास्त्री ही नहीं थे जिन्होंने प्रभु यीशु में दुष्टात्मा होने का दोषारोपण किया था, आम लोगों में से भी कई लोगों ने यही कहा था (मत्ती 10:25; मरकुस 3:21; यूहन्ना 7:20; 8:48, 52; 10:20); परन्तु इन में से किसी भी अवसर पर प्रभु यीशु ने न तो उन्हें क्षमा न होने वाले पाप का दोषी कहा और न ही उन्हें इसके विषय सचेत किया। ऐसे निरादर को कभी न क्षमा होने वाला पाप है, प्रभु ने केवल फरीसीयों से ही मरकुस 3:28-30 और लूका 12:10 में ही कहा है; क्यों?

           आईए देखते हैं की किस प्रकार से फरीसियों के लिए प्रभु यीशु का निरादर करना क्षमा न हो सकने वाले पाप ठहरा:
           यूहन्ना 3:1-3 को देखिए: “फरीसियों में से नीकुदेमुस नाम एक मनुष्य था, जो यहूदियों का सरदार था। उसने रात को यीशु के पास आकर उस से कहा, हे रब्बी, हम जानते हैं, कि तू परमेश्वर की आरे से गुरू हो कर आया है; क्योंकि कोई इन चिन्हों को जो तू दिखाता है, यदि परमेश्वर उसके साथ न हो, तो नहीं दिखा सकता। यीशु ने उसको उत्तर दिया; कि मैं तुझ से सच सच कहता हूं, यदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता। यहाँ, यह बिलकुल स्पष्ट है की निकुदेमुस प्रभु से जो कह रहा था, उसके अनुसार फरीसी भली-भांति जानते थे कि प्रभु यीशु परमेश्वर की ओर से गुरु होकर आए हैं, तथा उनके कार्य यह प्रमाणित करते थे कि परमेश्वर उनके साथ है, और उन में होकर काम कर रहा है। धर्म के अगुवे प्रभु यीशु के इससे पहले के जीवन के बारे में न तो अनभिज्ञ थे और न किसी संदेह में थे; वरन, वे इन सब बातों के बारे में अच्छे से जानते थे! और न ही प्रभु ने अपने बारे में उन्हें किसी संदेह में छोड़ा था। न केवल यहाँ पर, वरन अन्य अनेकों अवसरों पर, यहाँ तक कि उस समय तक भी जब उन्हें झूठे मुकद्दमों में दोषी ठहराने के प्रयास किए जा रहे थे, प्रभु ने यह बारम्बार स्पष्ट बता दिया था की वे कौन हैं (यूहन्ना 5:17-43; 8:25; 10:24; 14:11; लूका 22:67-70), परन्तु उन्होंने कभी भी प्रभु पर विश्वास नहीं किया (यूहन्ना 12:37), वरन यह सब जानते हुए भी, बुरे उद्देश्यों एवं स्वार्थी भावनाओं के अंतर्गत, उन्होंने प्रभु को मार डालने का षड्यंत्र रचा (यूहन्ना 11:47-50).

           दूसरे शब्दों में, यद्यपि यहूदियों के धार्मिक अगुवे यह भली-भांति जानते थे कि प्रभु यीशु वास्तव में कौन हैं, और यह भी कि परमेश्वर उनके साथ है, तथा उन में होकर कार्य कर रहा है, फिर भी जानबूझकर, स्वार्थी लाभ के लिए, उन्होंने प्रभु की अवहेलना की, उन पर अविश्वास किया, और सबसे बुरा यह कि जानबूझकर उनके बारे में लोगों का गलत मार्गदर्शन किया, उन सभी के समक्ष प्रभु के कार्यों और शिक्षाओं में होकर दिखाए जा रहे परमेश्वर पवित्र आत्मा की सामर्थ्य को शैतानों के सरदार के सामर्थ्य कहने के द्वारा। उनका यह, प्रभु के विरोध में स्वार्थ के अंतर्गत जानबूझकर कही गई बात, प्रभु के बारे में जानकारी रखते हुए भी और यह जानते हुए भी कि प्रभु पर उनके द्वारा लगाए जाने वाले आरोप झूठे हैं, प्रभु का निरादर करना, उन्हें अपमानित करना, केवल इसे ही प्रभु ने पवित्र आत्मा के विरुद्ध किया गया कभी क्षमा न हो सकने वाला पाप कहा है।

           इसलिए, पवित्र आत्मा के विरुद्ध कभी क्षमा न हो सकने वाले पाप वह नहीं हैं जो बहुधा वर्तमान के अनेकों धार्मिक अगुवों के द्वारा कहे और बताए जाते हैं। बाइबल में यह वाक्यांश एक बहुत ही विशिष्ट अपराध के लिए प्रयोग किया गया है, और केवल उस अपराध को ही यह कहा जाना चाहिए।