प्रश्न:
सबत क्या है; क्या यह और सन्डे एक
ही हैं? मसीहियों को आराधना सन्डे को करनी चाहिए या सबत के दिन करनी चाहिए?
उत्तर:
सीधा, स्पष्ट और एक वाक्य का उत्तर
है कि सबत और सन्डे एक ही दिन नहीं है,
और बाइबल के अनुसार मसीहियों को सन्डे के दिन आराधना करनी चाहिए।
‘सबत’ शब्द का अर्थ
होता है विश्राम। सामान्यतः इसका अभिप्राय यहूदी कैलेंडर के सातवें दिन, और हमारे वर्तमान
कैलेंडर के शनिवार का दिन होता है,
क्योंकि इस दिन परमेश्वर ने अपनी सृष्टि के कार्य को पूर्ण करके विश्राम किया
(उत्पत्ति 2:2-3) और यह सातवाँ दिन अपनी दस आज्ञाओं में अपने लोगों के विश्राम के
लिए ठहरा दिया (निर्गमन 20:8-11)। किन्तु पुराने नियम में सबत या विश्राम दिन
अनिवार्यतः यहूदी सप्ताह का सातवाँ दिन नहीं है – कोई भी ‘विश्राम दिन’ या ‘काम न करने का
दिन,’
सबत का
दिन कहा जा सकता है – लैव्यव्यवस्था 23 अध्याय देखें, जहाँ परमेश्वर के अन्य पर्व
और उन्हें मनाने की विधियां दी गई हैं,
और 25 अध्याय देखें, जहाँ एक पूरे निर्धारित
वर्ष को ही सबत या विश्राम का वर्ष कहा गया है। इसी प्रकार निर्गमन 31:13 और लैव्यव्यवस्था
19:3 तथा 26:2 में भी बहुवचन ‘विश्राम दिनों’ आया है (अंग्रेज़ी अनुवादों
में शब्द sabbaths का प्रयोग हुआ है), अर्थात एक ही दिन सबत का दिन नहीं था, जो यह स्पष्ट करता
है कि पुराने नियम में शब्द ‘सबत’ केवल यहूदी सप्ताह के सातवें दिन के लिए ही नहीं
था, वरन परमेश्वर द्वारा
निर्धारित किसी भी विश्राम या काम से अवकाश लेने के समय के लिए था। शब्द के प्रयोग
का संदर्भ निर्धारित करता था कि यह किस अभिप्राय से कहा जा रहा है; किन्तु सामान्यतः यह
यहूदी सप्ताह के सातवें दिन,
हमारे शनिवार, के लिए था, जिसे परमेश्वर की
व्यवस्था और दस आज्ञाओं के अनुसार कोई भी कार्य करने के लिए नहीं वरन परमेश्वर की
उपासना के लिए व्यतीत किया जाना था – यह व्यवस्था की माँग थी, उनके लिए जो
व्यवस्था के अंतर्गत परमेश्वर के लोग थे,
वे चाहे जन्म से अब्राहम के वंशज हों,
या स्वेच्छा से यहूदियों के साथ रहने वाले हों (निर्गमन 20:10), या जिन्होंने
यहूदी धर्म और व्यवस्था को अपना लिया हो – जैसे कि उन लोगों की वह मिली-जुली भीड़
जो इस्राएलियों के साथ मिस्र से निकलकर आई थी (निर्गमन 12:38), या बाद में जो लोग
यहूदी बने (एस्तेर 8:17; 9:27; यशायाह 14:1; 45:14; ज़कर्याह 8:20-23) – उन सभी पर
परमेश्वर द्वारा दी गई व्यवस्था लागू होती थी, और उसका उन्हें पालन करना था, सबत
का दिन या शनिवार परमेश्वर के लिए पृथक एवं पवित्र रखना था और व्यवस्था में दी गई
विधि के अनुसार उसका पालन करना था।
हमारा आज का इतवार, या सन्डे, यहूदी कैलेंडर का
सप्ताह का पहला दिन है;
और हमारे वर्तमान कैलेंडर का सातवाँ दिन। यह दिन हम मसीही विश्वासियों के लिए
विशेष इस लिए है क्योंकि इस दिन प्रभु यीशु मसीह मृतकों में से जी उठे थे (मरकुस
16:9, देखें पद 1-9)। इसीलिए प्रभु यीशु मसीह के अनुयायी, प्रभु की आराधना करने और
प्रभु-भोज में सम्मिलित होने के लिए ‘सप्ताह के पहले दिन’ अर्थात सन्डे के दिन एकत्रित
हुआ करते थे (प्रेरितों 20:7; 1 कुरिन्थियों 16:2) – और यह बात परमेश्वर के पवित्र
आत्मा ने लिखवाई है (2 तिमुथियुस 3:16-17), हमारी शिक्षा और पालन के लिए। और नए
नियम में कहीं भी ऐसा करने के लिए मसीही विश्वासियों की न तो निन्दा की गई है और न
ही इसे सुधारने, तथा वापस ‘सबत’ या
शनिवार के दिन पर जाने के लिए कहा गया है। अर्थात, सब्त के स्थान पर सन्डे के
दिन आराधना करने की यह बात परमेश्वर की ओर से है, परमेश्वर को स्वीकार्य है, और मसीही
विश्वासियों के लिए उचित एवं मान्य है। बाद में इसे ‘प्रभु का दिन’ भी कहा गया है
(प्रकाशितवाक्य 1:10) – और यह भी पवित्र
आत्मा ही के द्वारा लिखवाया गया है। इसे वापस यहूदी सबत पर पलट देने का न तो कोई
निर्देश है, और न ही कोई औचित्य, अथवा अनिवार्यता है।
आज बहुत से लोग मसीही
विश्वासियों को भरमा कर सन्डे के स्थान पर सबत के दिन की ओर ले जाना चाहते हैं, और अपनी बात के
समर्थन में पुराने नियम से व्यवस्था के हवाले देते हैं। किन्तु वे बाइबल से यह
नहीं दिखाते हैं कि मसीह यीशु ने हमारे लिए व्यवस्था को पूरा कर दिया, उसे हमारे
सामने से हटा कर क्रूस पर ठोक दिया,
और व्यवस्था के पालन के लिए हम भी मसीह के साथ क्रूस पर मर गए हैं (रोमियों 7:4;
10:4; कुलुस्सियों 2:13-15) – इन पदों में ध्यान कीजिए, मसीह में व्यवस्था पूरी हो
गई, अर्थात, उसकी सभी आवश्यकताएँ
पूरी कर दी गई हैं; और अब उसका अन्त, अर्थात परिपूर्ण होने के कारण समापन हो गया
है; अब व्यवस्था टूट
नहीं सकती है – उसका संपूर्ण पालन कर के,
उस पुस्तक को बन्द कर के,
उसके स्थान पर परमेश्वर ने मसीह यीशु में लाए गए विश्वास के द्वारा अपने अनुग्रह
की धार्मिकता लागू कर दी गई है। मसीह ने व्यवस्था को क्रूस पर जड़ कर उसे हमारे
सामने से हटा दिया है – अब धार्मिकता के लिए हमें उसके मार्ग पर चलने की कोई
आवश्यकता ही नहीं रह गई है;
मसीह में होकर हम व्यवस्था के लिए मर गए हैं – इसलिए अब न तो व्यवस्था का हम पर
कुछ अधिकार रह गया है और न ही हम उसके पालन कर पाने की दशा में हैं; अब हम मसीह में
विश्वास के द्वारा जीते हैं – अब हमें व्यवस्था और उसकी बातों के पालन करने की कोई
आवश्यकता नहीं है; हम प्रभु यीशु मसीह
में विश्वास के द्वारा धर्मी ठहरते हैं,
न कि व्यवस्था के पालन के द्वारा (रोमियों 3:22-31; 10:8-11)।
इस पर भी ध्यान करें कि पहली
कलीसिया और प्रेरितों – प्रभु यीशु के शिष्यों, के समय पर ही इस बात पर
खुलकर और विस्तार से चर्चा हुई थी,
और निष्कर्ष निकाल कर यह आज्ञा दे दी गई थी कि न तो कभी कोई व्यवस्था को पूरा करने
पाया है (प्रेरितों
15:10)
और न ही व्यवस्था की बातों को पूरा करने की कोई आवश्यकता है (प्रेरितों 15:24)। साथ ही, पौलुस ने पवित्र
आत्मा के अगुवाई में अपनी पटरियों में यह बिलकुल स्पष्ट कर दिया था कि व्यवस्था के
पालन से कोई भी परमेश्वर के दृष्टि में धर्मी नहीं ठहरेगा (रोमियों 3:20; गलातियों 3:11), और जो भी व्यवस्था
के अनुसार जीना चाहता है वह संपूर्ण व्यवस्था का पालन करने के श्राप के अधीन है
(गलातियों 3:10),
परन्तु
मसीह यीशु ने हमें इस श्राप के अधीन आने से छुड़ा लिया है (गलातियों 3:13); और याकूब लिखता है कि
जो व्यवस्था के एक भी बिंदु का दोषी है,
वह संपूर्ण व्यवस्था का दोषी है (याकूब 2:10) – तो हम क्यों अपने आप को इस असम्भव और पूर्णतया अनावश्यक बोझ
के नीचे ले कर आएँ?
अब, जो भी अपने आप को व्यवस्था
की बातों के पालन के अधीन लाना चाहता है,
उसके लिए कहा गया है कि वह ‘श्रापित
है’, व्यवस्था के द्वारा
धर्मी नहीं ठहरता है, और व्यवस्था का
विश्वास से कोई संबंध नहीं है (गलातियों 3:10-13)। और शैतान के ये लोग, धर्मी बनकर (2
कुरिन्थियों 11:3, 13-15),
मसीह यीशु के नाम में हमें वापिस व्यवस्था के पालन में ढकेलने का प्रयास कर रहे
हैं हमें श्रापित करना चाह रहे हैं जिससे हम मसीह में विश्वास की हमारी आशीषों को
गँवा दें, व्यर्थ कर दें।
इनसे सावधान रहें, इनकी चिकनी-चुपड़ी बातों
में न आएँ, क्योंकि सबत के पालन
का यह झूठ बहुत बल के साथ अनेकों रीतियों और सभी माध्यमों से प्रचार किया जा रहा
है, लोगों को भरमाया जा
रहा है। इनसे बच कर रहें,
इनकी बातों से दूर रहें।