जिन भावनाओं का उल्लेख किया गया है वे सभी "शरीर के काम"
(गलातियों 5:19-20)हैं, और गलातियों 5:16 में लिखा
है "पर मैं कहता हूं, आत्मा के अनुसार चलो, तो तुम शरीर की लालसा किसी रीति से पूरी न करोगे" प्रभु यीशु ने, व्यक्ति
को अशुद्ध करने वाली बातों की एक सूची देने के पश्चात, मरकुस 7:20-21 में कहा:
"ये सब बुरी बातें भीतर ही से निकलती हैं और मनुष्य को अशुद्ध
करती हैं " (vs.23)। इसलिए यदि हमारे मन और विचार शरीर के
कार्यों, गलत तथा पापमय विचारों से जिनसे अशुद्धता
होती है, उन से भरे होंगे, तो उपयुक्त समय पर, शैतान हमसे वैसा ही करवा कर, हमें
पाप में फँसा देगा। हम इन सब पर परमेश्वर के पवित्र-आत्मा के द्वारा विजयी हो सकते
हैं – जो प्रत्येक नया जन्म पाए हुए मसीही
विश्वासी को मसीही जीवन में सहायता और मार्गदर्शन के लिए दिया गया है (यूहन्ना 16:13)। इसलिए
सबसे पहला कार्य जो हमें करना है वह है, यह सुनिश्चित करना, कि हम अपने पापों के
लिए पश्चाताप करने, प्रभु के सामने उन्हें स्वीकार करके उनके लिए उससे क्षमा
माँगकर, अपना जीवन उसे समर्पित करने के द्वारा नया जन्म पाए हुए परमेश्वर की संतान, एक मसीही विश्वासी हैं।
जब तक कि कोई परमेश्वर की क्षमा का अनुभव नहीं करेगा, वह स्वयँ भी क्षमा करने वाला नहीं बन सकेगा, और ऐसी भावनाओं पर जयवंत होने का मार्ग केवल क्षमा में
होकर ही है – परमेश्वर से औरों को क्षमा न करने के
लिए भी क्षमा माँगें, और उस व्यक्ति ने हमारे विरुद्ध जो
भी गलत अथवा अनुचित किया हो उसके लिए उसे क्षमा कर दें, जैसे कि प्रभु ने हमारे सारे पापों को जो हमने उसके विरुद्ध किए है क्षमा
कर दिया है (मत्ती
6:11, 14-15; 18:21-35; मरकुस
11:25-26; कुलुस्सियों 3:13).
इसके बाद, क्योंकि
जो कुछ हमारे हृदय और मन में है वही हमारे विचारों और कार्यों को नियंत्रित करता
है, इसलिए हमें अपने हृदय और मन को
परमेश्वरीय विचारों और परमेश्वर के वचन से भर लेना है। परमेश्वर के वचन बाइबल को
पढ़ने और उसका अध्ययन करने तथा मसीही गानों और आराधना संगीत, एवँ संदेशों को सुनने
में समय बिताएं। साथ ही अपने समय का सदुपयोग परमेश्वर के नए जन्म पाई हुई संतानों
के साथ संगति रखने में बिताएं, बाइबल
अध्ययन, प्रार्थना सभाओं, घरों में आयोजित होने वाली मसीही सभाओं आदि में यथासंभव
भाग लेने के द्वारा। परमेश्वर से प्रार्थना करें कि वह हमारे विचारों और लालसाओं
को अपने वचन की शिक्षाओं तथा उसकी इच्छा के अनुरूप कर दे। यह करने के लिए, फिलिप्पियों 4:4-9 हमारा
मार्गदर्शन करता है:
4 प्रभु में सदा आनन्दित रहो; मैं फिर कहता हूं, आनन्दित रहो। –सदा प्रभु
में मगन और आनन्दित रहें – जो
कार्य उसने किए हैं, जो कर रहा है, जो सहायता और सुरक्षा वह प्रदान करता है, हमारे साथ बनी रहने वाली उसकी लगातार उपस्थिति, हमारे लिए उसकी प्रतिज्ञाएँ, जो अनंतकालीन आशीषें उसने हमें प्रदान की हैं और देगा, इत्यादि के लिए।
5 तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो: प्रभु निकट है। – प्रभु यीशु के विचार और गुण जब हमारे मन को नियंत्रण में
ले लेंगे, तो उसके समान व्यवहार करने के प्रति
भी प्रयासरत रहें – केवल कुछ विशेष लोगों के प्रति ही
नहीं, वरन सबके प्रति कोमल और नम्र रहें, और यह हमारे व्यवहार से प्रगट रहना चाहिए।
6 किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के
सम्मुख अपस्थित किए जाएं। – प्रत्येक
बात के लिए परमेश्वर के धन्यवादी रहें, वह
चाहे अच्छी हो या बुरी, हमारे
जीवन की समझ न आने वाली और अस्पष्ट बातों के लिए भी, क्योंकि मसीही विश्वासी के जीवन में ऐसा कुछ नहीं होता है जिससे, परमेश्वर
के अनुग्रह और इच्छा में होकर, अन्ततः उसका भला नहीं होगा (रोमियों 8:28)। धन्यवादी
होना परमेश्वर के प्रति विश्वासी और भरोसेमंद होना है। इसलिए अपनी विनतियों को
परमेश्वर के समक्ष धन्यवाद के साथ प्रस्तुत करें। पद कहता है – "परमेश्वर के सम्मुख अपस्थित किए जाएं" अर्थात, न तो उनके विषय अधीर हों और न ही उनके लिए ज़ोर
दें, बस अपने निवेदन से उसे अवगत करवा दें
और शेष उस पर छोड़ दें। प्रत्येक बात के लिए परमेश्वर का एक समय और तरीका है, और वही सर्वोत्तम होता है (1 पतरस 5:6-7).
7 तब परमेश्वर की शान्ति, जो समझ
से बिलकुल परे है, तुम्हारे
हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरिक्षत रखेगी।। – हमारा चिन्तित या अधीर न होना, वरन हर बात के लिए धन्यवादी होना, यह
सुनिश्चित करेगा कि हमारे हृदय और मन परमेश्वर की शान्ति द्वारा नियंत्रित तथा
सुरक्षित रखे जाएँगे, जिससे शैतान हम में अपने विचार डालने
नहीं पाएगा, और हमें कुछ भी गलत करने के लिए
बहकाने नहीं पाएगा।
8 निदान, हे भाइयों, जो जो बातें सत्य हैं, और जो
जो बातें आदरणीय हैं, और जो
जो बातें उचित हैं, और जो
जो बातें पवित्र हैं, और जो
जो बातें सुहावनी हैं, और जो
जो बातें मनभावनी हैं, निदान, जो जो सदगुण और प्रशंसा की बातें हैं, उन्हीं पर ध्यान लगाया करो। – किसी बात पर मनन करने के लिए, उसे हमारे हृदयों और मनों में विद्यमान होना आवश्यक है; इसलिए, परमेश्वर
की बातों से, तथा इस पद में कहे गए अन्य सदगुणों
से अपने मनों को भर लें, और
उन्हीं में मगन रहें। ऐसे में फिर यदि वह बुरा लगने वाला व्यक्ति हमारी ओर आता भी
है, और हम अच्छी बातों के विषय विचार और
मनन कर रहे होंगे, तो गलत या बुरी बातों को हमारे
हृदयों में कोई स्थान नहीं मिलेगा।
9 जो बातें तुम ने मुझ से सीखीं, और ग्रहण की, और सुनी, और मुझ में देखीं, उन्हीं का पालन किया करो, तब परमेश्वर
जो शान्ति का सोता है तुम्हारे साथ रहेगा। – परमेश्वर के भक्त लोगों के जीवनों का अनुसरण करें, परमेश्वर के लोगों के जीवनों के समान तथा परमेश्वर के वचन के निर्देशों के
अनुसार व्यावाहारिक मसीही जीवन जीएं, और अपने
जीवन के द्वारा अपने मसीही विश्वास की गवाही दें – इससे हम शैतान की योजनाओं पर विजयी रहने में सहायता मिलेगी (प्रकाशितवाक्य 12:11).
फिलिप्पियों 4:4-9 के
अनुसार जीवन जीने से हमारे विचारों और लालसाओं में भारी परिवर्तन आ जाएगा, जो हमें नकारात्मक और बुरे विचारों पर जयवंत रखेगा। ऐसा
कर पाने के पश्चात इसे एक कदम और आगे ले जाकर रोमियों 12:17-21 का
भी पालन करें, परमेश्वर से मांगें कि वह हमें ऐसे
अवसर प्रदान करे जिनमें हम उस व्यक्ति के प्रति जिससे हमें समस्या है, भला बर्ताव
या उसकी सहायता कर सकें, और
ऐसा अनुग्रह और सामर्थ्य भी दे कि जब अवसर आए तो हम वास्तव में उसकी सहायता भी कर
सकें।
परमेश्वर की सन्तान होने के नाते, हमारे अन्दर परमेश्वर का पवित्र-आत्मा निवास करता है (1 कुरिन्थियों 6:19) जो हमें जयवंत होने में सहायक है, “क्योंकि परमेश्वर ने हमें भय की नहीं पर सामर्थ, और प्रेम, और संयम की आत्मा दी है” (2 तिमुथियुस 1:7), इसलिए निर्भय होकर परमेश्वर द्वारा उपलब्ध करवाए गए इस
सामर्थ्य, प्रेम और संयम के आत्मा के सहारे एक विजयी मसीही जीवन जीएं।