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गुरुवार, 31 मार्च 2011

संपर्क फरवरी २०११ - उसने कहा मैंने सुना

गांव को पुलिस ने घेर रखा था। एक एक घर की तलाशी ली जा रही थी। पिछले दिनों की लूटपाट का माल घरों से पकड़ा जा रहा था। समीर साहब बहुत घबराए हुए थे। लूट्पाट की छोटी मोटी चीज़ें होतीं तो छिपा लेते, पर पांच बोरे शक्कर के कहां छुपाएं? पकड़े गए तो सीधे अन्दर जाएंगे। अन्धेरा होने का इन्तेज़ार करते रहे। रात के अन्धेरे में एक-एक बोरा करके पिछवाड़े के कुएं में डालने लगे। पाँचवे बोरे तक समीर साहब इतना थक चुके थे कि उसे कुएं में डालते डालते खुद भी कुएं में जा पड़े। बहुत शोर मचाया, बीवी चिल्लाई, गांव वाले इकट्ठे हो गए, किसी तरह उन्हें बाहर निकाला। चोट काफी लगी थी और सुबह होते-होते समीर साहब की चिड़िया फुर्र हो गयी और मियाँ दफना दिए गए। बाद में जब लोगों ने उस कुएँ का पानी पिया तो पानी मीठा था। लोगों ने सोचा, "यह पानी मीठा कैसे हो गया?" ज़रूर समीर खुदा का खास बन्दा होगा। शाम तक उस चोर की कब्र फूलों और मोमबत्तियों से सज गई। उस चोर की कब्र पर हर साल उसी दिन मेला लगने लगा और लोग उसे पूजने लगे।

चमत्कार को नमस्कार


इन्सानों में किसी न किसी को पूजने का स्वभाव होता है, वो चाहे डर से पूजें या मतलब से। कई बार लोग आश्चर्यकर्मों को देखकर आदमी को पूजने लगते हैं।

अन्तिम दिनों में लोग चिन्ह चमत्कारों पर विश्वास करेंगे और ऐसे लोगों के पीछे हो लेंगे। प्रभु तो हम से पहले ही कह चुका है। प्रभु यीशु ने २०१० साल पहले अन्तिम समय की जो भविष्यवाणियाँ कीं थीं, उसमें से एक यह भी है, "क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिन्ह और अद्भुत काम दिखाएंगे..." (मत्ती २४:२४)। सारे संसार में लोगों को कई प्रचारक चिन्ह-चमत्कारों से भरमा रहे हैं।

यह सच है कि परमेश्वर आश्चर्यकर्म करता और चंगाई देता है। पर उसमें भी उसकी कोई योजना होती है। वह हमें सिर्फ चंगाई देने और आश्चर्यकर्म दिखाने नहीं आया था। इसलिए हमारा विश्वास आशचर्यकर्मों पर नहीं, परमेश्वर के जीवित वचन पर होना चाहिये।

किताबों और शास्त्र (पवित्रशास्त्र) में अन्तर है। किताब पढ़ते ही वह पुरानी हो जाती है। पर पवित्रशास्त्र को जब हम रोज़-रोज़ और बार बार पढ़ते हैं तो वह हमें नया बनाने लगता है। वह हममें उतरने लगता है और हमें अपनी समानता में अंश-अंश करके बदलता जाता है। हर बार वह हमारे लिये नया बनता जाता है और हमें नया बनाता जाता है। जब पाप का विचार हमारे मन पर वार करता है तब यह शास्त्र हमारे मन के लिये शस्त्र बन जाता है। जब हम इससे दुष्टता पर वार करते हैं तब यह हमारे लिये सुरक्षा बन जाता है। जब निराशा हम पर वार करती है तब यह शस्त्र हमारी निराशा पर वार करता है और कहता है, "मत डर मैं हूँ" (मत्ती१४:२७)। यह शास्त्र मुझसे कहता है, मैं तेरी हर हार को जीत में बदल दूँगा।

इसी वचन से मैं परमेश्वर के स्वभाव को समझता हूँ। अगर परमेश्वर मेरे स्वभाव का होता तो क्या होता? तब तो यह दुनिया बहुत पहले ही खत्म हो गई होती और स्वर्ग में उल्लू बोल रहे होते। एक नरक से क्या काम चलता, कई नरक खड़े करने पड़ते। प्रभु का धन्यवाद हो, परमेश्वर मेरे जैसे स्वभाव का नहीं है।

परमेश्वर का वचन मुझे परमेश्वर के स्वभाव को बताता है। वह उसकी क्षमा, प्यार और दया को बताता है। उसके क्षमा करने वले स्वभाव के कारण ही मैं बचा रह पाता हूँ। उसके इस प्यार को, उसकी दया और उसकी क्षमा को मैंने इस वचन से ही जाना है। परमेश्वर का वचन सिर्फ इतिहास का हिस्सा ही नहीं है, पर इसमें तो मेरे और आपके छिपे हुए जीवन का इतिहास भी लिखा है।

जो आईना असली चेहरा दिखाता है, वह बुरा लगता है, उसे कौन देखना चाहता है? सच्चा आईना वह है जो मेरी असली सूरत दिखाता है, पर वह हमें पसन्द नहीं आता। मैं तो सिर्फ आपके सामने आईना रख रहा हूँ।

सूरज को छिपाया जा सकता है, कितना आसान है - आप आँखें बंद कर लें, अंधेरा आ जाएगा और सूरज छिप जाएगा। भले ही आप कहते रहें कि उजाले में खड़े हैं, मगर अन्दर तो अन्धेरा ही है। अगर आप दिमाग़ के सोचने के दरवाज़े बंद कर लें, तो कितने ही उजाले सामने रख दें, सब अंधेरे में बदल जाएगा।


मूर्ख, ज्ञानी, प्रज्ञानी


तीन प्रकार के लोग होते हैं: मूर्ख, ज्ञानी और प्रज्ञानी। परमेश्वर का वचन बताता है कि मूर्ख वे हैं जो सुनते तो हैं पर मानते नहीं, गिरते तो हैं पर उठते नहीं। वे गलती करके अपनी गलती से सीखते नहीं, पर वही गलती करते हैं, "कुत्ता अपनी छांट की ओर और धोई हुई सुअरनी कीचड़ में लोटने के लिये फिर चली जाती है" (२ पतरस २:२२)। ज्ञानी वह होते हैं जो गलती करते तो हैं, पर गलतियों से सीख लेते हैं, उन्हें फिर नहीं करते, "क्योंकि धर्मी चाहे सात बार गिरे तौभी उठ खड़ा होता है" (नीतिवचन २४:१६)। परमेश्वर के वचन में कितनों की गलतियां दर्ज हैं, उन गलतियों के दुखदायी परिणाम भी उसमें दर्ज हैं। प्रज्ञानी वे हैं जो दुसरों की गलतियों से सीख लेते हैं, परमेश्वर के वचन में दर्ज बातों को पढ़कर उनसे सीख लेते हैं और बच निकलते हैं।


वो खबर जिससे आप बेखबर हो


हर रोज़ खूनी खबरों से लथपथ अखबार हर सुबह हमारे दरवाज़े पर डाल दिया जाता है। अगर खबर में खून खराबे की खबर न हो तो खबर खबर नहीं लगती। पर परमेश्वर के वचन में आपके लिए वो खबर है जिससे आप बेखबर हैं। जी हाँ, जीवन की खबर है; हाँ, बहुतायत के जीवन की खबर जिससे कि आप जीवन पाएं और बहुतायत का जीवन पाएं। परमेश्वर के वचन में बदलने की सामर्थ है, अगर वह आपके दिल में उतर आए तो जीवन ले आएगा। उसमें तो वो ज़िन्दगी है जिसमें आदमी मरकर भी जीता है।


हार जीत में बदल गई


अगर आप हालात से हिम्मत हार रहे हैं, तो यह हिम्मत हारना एक तरह से हार को निमंत्रण देना है। पर सच तो यह है कि अभी हम हारे नहीं हैं। अगर परमेश्वर के वचन में हारे हुए लोगों की जीत कहानी न होती तो फिर मुझे जीने का उत्साह कहाँ से मिलता? आपको मालूम है, जब मैं इस वचन में अपने जीवन की कहानी को देखता हूँ तो इस वचन से मुझ जैसे हारे हुए को एक नयी आशा मिलती है। मेरा प्रभु मुझे कभी नहीं छोड़ेगा, और न त्यागेगा (इब्रानियों १३:५)। वह मेरी हर हार को जीत में बदल देगा।

आप इस सम्पर्क को पढ़ रहे हैं, मुझे खुशी है। क्योंकि इसमें मैं आपको एक खुशी की खबर देने जा रहा हूँ जो आज, कल और युगानुयुग के लिए है। आप आशीशित हैं क्योंकि आप इसे पढ़ रहे हैं। शैतान और दुष्टात्माएं नहीं चाहतीं कि आप इसे पढ़ें और विश्वास करें। यह बात ध्यान से सुन लीजिएगा; यह बात मेरी नहीं है, परमेश्वर की है और उसकी आत्मा की है। इसे न मानकर, आप मेरा अपमन नहीं करेंगे, वरन उसका अपमान करेंगे। अगर आप इस खुशी की खबर को पढ़कर अपने पास रख लेंगें तो यह खुशी बढ़ेगी नहीं बल्कि घटेगी। अगर आप इस खुशी को अपने अन्दर जीवित रखना चाहते हैं तो इस जीवन की खुशी को हर रोज़ बाँटना है। तब देखियेगा, यह बढ़ने लगेगी। क्या आप ऐसा करेंगे?

यदि आप कहते हैं कि मुझे यह बात बतानी नहीं आती; और यदि आप कहते हैं कि मैं क्या बाँटूं, मेरे पास तो कुछ नहीं है? ध्यान से दिखियेगा, यह आपके हाथ में क्या है? इसी को बाँट दीजिएगा, इसे बाँटने से यह खुशी बढ़ जाएगी और फल लाएगी।

क्या परमेश्वर के वचन ने आपसे कुछ कहा है? अगर यह वचन आपको चुभ रहा है तो आप में कहीं आत्मिक आग बची हुई है। भले ही आपका जीवन धुँआ ही क्यों न दे रहा हो, यह धुँआ ही सबूत है कि आप में आग अभी बाकी है। इसलिए प्रभु का वचन कहता है, "वह कुचले हुए सरकण्‍डे को न तोड़ेगा और धूआं देती हुई बत्ती को न बुझाएगा" (मत्ती १२:२०)।

रविवार, 27 मार्च 2011

संपर्क फरवरी २०११ - उलझे सवालों का सुलझा जवाब

इस सदी का मशहूर नास्तिक बर्टरैंड रस्सल अपने शब्द जाल कुछ इस तरह से बुनता है। एक बच्चा अपाहिज पैदा हुआ और वह अपना सारा जीवन दूसरों के सहारे बिस्तर पर बिताएगा। वह कहता है, परमेश्वर ऐसे बच्चों के साथ कैसे-कैसे खेल खेलता है। परमेश्वर इतना कठोर तो नहीं हो सकता। वह तो कोई जल्लाद ही होगा। न मानना ही परमेश्वर को मानने से भला है। दुखों ने ही तो परमेश्वर की उत्पत्ति की है। यदि दुख न रहें तो फिर परमेश्वर को कौन पूछेगा? दुख मिटा दो परमेश्वर खुद मिट जाएगा। उसने कहा कि सारे धर्मस्थलों को तुड़वाकर अस्पताल और स्कूल बनवा दो। इस संसार की दयनीय दशा देखकर लगता है कि यदि इसका बनाने वाला है तो वह हिटलर और मुसलोनी से भी ज़्यादा क्रूर है। जब तक परमेश्वर इन्सानी दिमाग़ में जीवित रहेगा, तब तक हत्याएं, उग्रवाद और हर तरह के कुकर्म होते रहेंगे।

अब सवाल यह है कि ये सब दुष्कर्म परमेश्वर करवाता है या हमारे धर्म?

धर्म के मानने और न मानने वालों का अगर बीता इतिहास देखा जाए तो एक सा ही है, जिन्होंने इन्सान और इन्सानियत को पूरी तरह तबाह करने में कोई कमी नहीं छोड़ी। इसलिये संसार में हर रोज़ इन्सानियत का कत्ल हो रहा है। हमारे धर्मों ने इन्सान को इन्सान नहीं रहने दिया। उन्होंने उसे एक ऐसी मशीन बना दिया है जो न सोच सकती है और न सही गलत का एहसास कर सकती है। अक्सर हमारे आज के धर्म हमारी सही सोचने की सामर्थ को समाप्त कर देते हैं। धर्म को मानने वालों ने धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों का खून बहाकर बड़ा दर्दनाक इतिहास लिखा है।

धर्म के लिये मरो या मार डालो। लोगों को अपना धर्म ही परमेश्वर दिखता है। अंधकार की शक्तियां लोगों को ऐसा अन्धा कर देती हैं कि भले ही इन्सान और इन्सानियत नाश क्यों न जाए, भले ही उन्हें धर्म के लिये कितना ही अधर्म क्यों न करना पड़े। क्या हमारे धर्मों की यही धारणा है? धर्मों की आपसी कड़वाहट अगर खत्म नहीं हुई तो यह इन्सानियत को ही खत्म कर डालेगी। या तो यह कड़वाहट ही रहेगी या फिर इन्सानियत ही।


आदमी में अपने आप को बरबाद करने की पूरी काबलियत है


लोग मर रहे हैं, मारे जा रहे हैं। बच्चे पैदा होते ही मार दिये जाते हैं या फिर उन्हें मां की कोख में ही मार दिया जाता है। हमारा सारा समाज ही सड़ा हुआ समाज बनता जा रहा है। हमने संसार को उसके आखिरी विनाश पर ला खड़ा किया है। हमने उसका पानी, बर्फ, हवा, पेड़-पौधे सब का सब दूषित कर दिया है। हम सब यह जानते हैं, पर फिर भी हम सब अपने में मस्त हैं।

आदमी ने न जाने क्या-क्या खो दिया है। उसने प्यार खो दिया, चैन खो दिया और इसना इतना खोया कि वह खुद खो गया है। उसने विश्वास खो दिया और अब किसी को किसी पर विश्वास ही नहीं रहा।

एक राजनेता के बेटे ने अपने बाप से कहा, "डैडी मुझे भी राजनीति सिखाओ।" बाप ने कहा, "चल राजनीति का पहिला सबक सीख ले। यहाँ आकर खड़ा हो और यहाँ से नीचे कूद।" बेटे ने कहा, "नहीं डैडी, चोट लग जाएगी।" बाप ने कहा, "अबे कूद, मैं हूँ न।" बेटे ने कहा, "नहीं डैडी"; बाप ने फिर कहा, "अबे कूद जा, मैं संभल लूंगा।" जैसे ही बेटा कुछ हिम्मत बांधकर कूदा, बाप झट से हट गया। बेटा बड़ी मुशकिल से उठा और झुंझलाकर बोला, "ये आपने क्या किया?" बाप बोला, "यही तो राजनीति का पहिला सबक है - कि राजनीति में अपने बाप पर भी विश्वास न करो।" ऐसे राजनेता हम पर राज करते हैं।

हम सोचते हैं कि हम अपनी परेशानियों को सुलझा लेंगे और अपनी समस्याओं को खुद ही ठीक कर लेंगे। हर एक देश सोचता है कि हम मिलकर सारे संसार की समस्याओं को सुलझा लेंगे, पर ऐसा होता नहीं। यू.एन.ओ. के बड़े-बड़े नेता शान्ति का सन्देश देते हैं, तरीके सुझाते हैं और शान्ति वार्ताएं करते हैं। पर उनके घर और उनके जीवनों में ही शन्ति नहीं है पर वे शान्ति बांटते फिरते हैं।


आदमी मिट्टी का है और मिट्टी देने के लिये उसे कुछ गज़ ज़मीन ही तो चाहिये


ज़्यादातर ज़िन्दगियां इसी सोच में बीतती हैं कि क्या खाएंगे? क्या पहिनेंगे? क्या कमाएंगे? बच्चों को कैसा बनाएंगे? क्या यही ज़िन्दगी है? यह जिस्म आदमी को सिर्फ भूख मिटाने के लिये नहीं दिया गया, अब वह भूख चाहे पेट की हो या अभिलाषाओं की। आदमी के पास एक अनजानी प्यास है। उसे पैसे की प्यास है जिसे पाकर भी वह अपने आप को प्यासा पाता है। ऊंचा पद पाने की प्यास है पर उसे पाकर भी वह वैसा ही प्यासा है। लगातार सोचता है कि ऐसा क्या पाऊं जिसे पाकर मेरी प्यास बुझे? आदमी इतना अधूरा सा क्यों है? आदमी इतना मजबूर सा क्यों है? वह जैसा जीना चाहता है वैसा जी नहीं पाता। आदमी ने बहुत कुछ पाया और बहुत कुछ कमाया पर फिर भी उसे लगता है कि अभी कुछ और बाकी है जो नहीं पाया है। हर आदमी जानता है कि आदमी मिट्टी है और वह मिट्टी में ही मिल जाएगा। उसे मिट्टी देने के लिये कुछ गज़ ज़मीन से ज़्यादा और क्या चाहिये? वह जानता है कि सब कुछ छोड़कर जाएगा, पर फिर भी वह जोड़ने की जुगाड़ में ही लग रहता है कि और क्या पा लूं?

इस सदी की सबसे बड़ि त्रासदी है, या यूँ कहीये इस सदी पर सबसे बड़ी लानत यह है कि आदमी खुशी और प्यार के लिये तरसता है। संसार में, घर और परिवार में शान्ति नहीं है। हर ज़िन्दगी की अजीब सी कहानी है। आदमी कितना अधूरा है, कितना मजबूर है। वह करे तो क्या करे? पाप उसके सीने पर चढ़कर एक भारीपन बनाए रखता है। आदमी का दिल इतना उलझा रहता है कि वह अपनी आखिरी सांस तक बेचैनी को झेलता है। गरीब की परेशानी है कि जब भूख लगे तो क्या खाऊँ? अमीर की परेशानी है - क्या खाऊँ कि भूख लगे? समस्या दोनो के पास है। एक जीवन रोटी के लिये तरसता है और दूसरा भूख के लिये।

मौत का डर तो आदमी में है पर परमेश्वर का डर नहीं रहा। कब्र, कफन, शमशान और लाश जैसे शब्द सुनते ही सिहरन उठती है और उन्हें सुनकर एक डर सताता है।

कब्र के आगे आपके साथ कोई नहीं जाएगा। कब्र के पार तो आप के पाप ही आपका साथ निभाएंगे। जो कुछ आप बोओगे वही तो काटोगे। कैक्टस बोओगे तो गुलाब नहीं काटोगे, धतूरा बोओगे तो उससे आप सेब नहीं काटोगे। आप पाप बोकर उससे हमेशा की मौत काटोगे। पर कौन है जिसने पाप को बोया और उसकी सज़ा किसी और ने काटी हो? वह कौन है जो आपकी शर्मनाक हालत पर आपको अपनाने से न शर्माता हो?

एक प्रचारक ने कहा, "इस संसार में ऐसा कोई जन है जिस ने कभी झूठ न बोला हो" भीड़ में से एक आदमी ने अपना हाथ ऊँचा किया, "हाँ ऐसे एक नहीं अनेक लोग हैं।" प्रचारक ने पूछा, "कौन हैं?" उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, "जन्म के गूँगे; जिन्होंने कभी बोला ही नहीं, तो वे झूठ क्या बोलेंगे?" तब प्रचारक ने कहा कि एक जन्मे के गूँगे की माँ ने उससे पूछा, "यहाँ तीन लड्डू रखे थे, एक कहाँ गया? किसने खाया?" गूँगे ने इशारे से कहा, "मैंने नहीं खाया।" वह शब्दों से नहीं पर इशारों से ही झूठ बोल गया। क्या आप सोचते हैं कि जो जज झूठ बोलने पर अपराधी को सज़ा सुना देता है, उस जज ने सव्यं कभी झूठ नहीं बोला होगा? इसलिये परमेश्वर का वचन कहता है एक भी धर्मी नहीं, एक भी नहीं (रोमियों ३:१०); मैं भी नहीं, आप भी नहीं।


एक हारा हुआ इन्सान जीत के जीवन में आ खड़ा हुआ


मैं अपने आप से और अपने परिवार से बहुत नाउम्मीद आदमी था। ऐसा नहीं था कि पैसा नहीं था; पर प्यार नहीं था खुशी और चैन नहीं था। आपको मालूम है मेरा सब कुछ बदल गया। धर्म बदलने की तो ज़रूरत नही पड़ी, पर एक दुआ मेरे लिये वो दवा बन गई जिसने सब कुछ बदल डाला। मेरी नफरत को प्यार में, हार को जीत में और निराशा को आशा में बदल डाला। देखा तो सब कुछ नया हो गया। यह मेरा नया जन्म था। सिर्फ एक दुआ से यह हुआ और यह दुआ थी, "हे यीशु मुझ पापी पर दया करें और मेरे पापों को क्षमा करें।" यही दुआ आपके लिये भी ऐसे ही दवा का काम कर सकती है।

मैं अपने प्रचार को रंग देने के लिये यह बातें नहीं कह रहा हूँ; पर सच कह रहा हूँ, मन की सच्चाई से कह रहा हूँ। आप माने या न माने इस बेचैनी को निकालने का बस यही एक रास्ता है - अपनाएं या न अपनाएं, यह आप पर है। आप माने या न माने, फैसला आपके हाथ में ही है; आप अपना फैसला ले सकते हैं।


वो फैसला जो फासले मिटा दे


मैं मानता हूँ कि किसी का धर्म परिवर्तन करना या कराना एक भयानक पाप है। हाँ, जीवन बदल जाए, आप अपने पापों से छुटकारा पाकर पार उतर जाएं और आनन्द और शान्ति से भर जाएं, एक ऐसा परिवर्तन ज़रूर आना चाहिये।

कहीं ऐसा न हो जो नहीं होना चाहिये, वह अचानक हो जाए। आप कह सकते हैं कि यह तो प्रचार मात्र है। मैं आपको नहीं जानता, पर सच जानिये इस सन्देश पर आपका नाम लिखा है। यह पत्रिका परमेश्वर के पत्र के रूप में आपके लिये है। मैं आप से बात कर रहा हूँ, आपसे जो परमेश्वर की दया से इन लाईनों को पढ़ रहे हैं। यदी आप ठीक हैं, भले-चंगे हैं और चैन से हैं तो आपको परमेश्वर की क्या ज़रूरत है और आपको उससे क्या लेना देना? हाँ, अगर आप परेशान हैं, हारे हुए हैं और अपनी लतों से लदे हुए हैं, तो आपके लिये परमेश्वर तैयार खड़ा है।

आप सोचते हैं कि आप कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति नहीं हैं; शायद संसार भी आपको कोई खास महत्व न देता हो, पर आप परमेश्वर के लिये बहुत ही महत्वपूर्ण हो। इतने कि उसने आपके लिये क्रूस पर अपनी जान दे दी, आपके लिये अपना लहू बहा दिया। वह आपके लिये वो कर सकता है जो आप अपने लिये सोच भी नहीं सकते। वह आपके माँगने और सोचने से कहीं बढ़कर आपके लिये कर सकता है (इफिसियों ३:२०)।

परमेश्वर मनुष्यों को बचाने में लगा है, चाहे वे किसी जाति का, किसी भी धर्म का और कोई भी क्यों न हो - वह सब को प्यार करता है। हम तो उसी से प्यार करते हैं जो हमें प्यार करता है, पर वह तो उन्हें भी प्यार करता है जो उससे नफरत करते हैं। उसके इसी प्यार ने वो वार किया है जो आज तक कोई नहीं कर पाया। यह जो आप पढ़ रहें हैं, मात्र उपदेश नहीं है।

अगर आप अपने आप को पापी नहीं मानते, तो आप किसी को कोई धोखा नहीं देते। सच तो यह है कि आप अपने आप को ही धोखा दे रहे हैं।

यह वक्त अगर फिसल गया तो फिर आपके हाथ की पकड़ में कभी नहीं आएगा। शायद फिर आपको पाप से पश्चाताप करने का मौका ही न मिल पाए। मैं आपसे फरियाद करता हूँ कि अभी ही एक प्रार्थना करें, "हे यीशु मुझ पापी पर दया करो, मेरे पाप क्षमा करो।"

क्षमा पाने की शर्त तो बस यही है कि आप क्षमा मांग लें। परमेश्वर हमें कैसे माफ कर सकता है? एक दिल से निकली दुआ कभी खाली नहीं जाती। सिर्फ इतनी दुआ माफी के लिये काफी है, "हे यीशु मुझ पापी पर दया करें, मेरे पाप क्षमा करें।"

बुधवार, 23 मार्च 2011

संपर्क फरवरी २०११ - जो समझना न चाहे, उसे कौन समझाए

एक साहब थे समाज सुधारक। बेचारे बड़ी मेहनत से समझा रहे थे एक शराबी को कि शराब कितनी बेकार चीज़ है। उन्होंने कहा, "मान लीजिए किसी गधे के सामने दो बाल्टी रखी जाएं। उनमें से एक में पानी हो और दूसरे में शराब, तो गधा कभी शराब नहीं पीएगा। वह पानी ही पीएगा। क्या मेरी यह बात समझ रहे हो?" शराबी बोला, "जी समझ रहा हूँ।" समाज सुधारक ने पूछा, "क्या समझ रहे हो?" शराबी बोला, "जो आप समझा रहे हो वही तो समझ रहा हूँ - कि वो सब गधे हैं जो शराब नहीं पीते।" उस समाज सुधारक ने अपना सिर पकड़ लिया। अगर आप समझना न चाहें तो फिर कौन समझा सकता है।

ज़रा इस बात को समझिये - अब यह नए ताज़े १२ महीनों से भरा साल हमारे सामने है। भंडार घर में यह हम सबके लिये १२ बंडलों में बंधा हुआ रखा है। इन १२ महीनों में ५२ हफते, ८ हज़ार ७ सौ ६० घंटे, ५ लाख २५ हज़ार ६ सौ मिनिट, ३ करोड़ १५ लाख ३६ हज़ार सैकेंड यह सब आपके लिये हैं। मैं और आप इस बहुमूल्य समय के उपहार के योग्य नहीं थे फिर भी हमें दिया गया है। आप इन में से २४ घंटे ही एक बार में ले पाएंगे। यह आप पर निर्भर करता है कि आप इनका सदुपयोग करते हैं या दुरूपयोग। हममें से कोई भी इतना सामर्थी नहीं कि जो इन बीते पलों में से एक को भी वापस ला सके।

आपको मालूम है जितनी देर में आप एक सांस ले रहे हैं उतनी देर में १० आदमी अपनी आखिरी सांस लेकर दुनिया से विदा हो रहे हैं। यह साल आपको उपहार के रूप में दिया गया है। गरीब हो या अमीर, कमज़ोर हों या मज़बूत, हारे हुए हों या जीते हुए, किसी भी धर्म के हों और किसी भी जाति के हों, प्रभु किसी से भी कोई भेद नहीं रखता। जो समय एक बार चला गया तो वह हमेशा के लिये चला गया। अब तो बस आगे देखने का वक्त है।

चलिये मैं और आप इस नए साल को एक नयी ताज़गी के साथ शुरू करें। हर एक गलती को सही करने का अवसर आ गया है।
सज़ा को क्षमा में बदलने का,
नफरत को प्यार में बदलने का,
श्राप को आशीश में बदलने का,
मौका आ गया है।

जी हां मौका है माफी देने का और माफी पाने का। अगर चुके तो बहुत कुछ चूक जाएगा। अन्दर झांक कर देखो तो सही कितनों से कितनी नफरत से भरे हैं, कड़वाहट से भरे हैं। पुरानी कड़वाहट को हमेशा के लिये यहीं दफन कर दें।

"जा पहले अपने भाई से मेल मिलाप कर ले" (मत्ती ५:२४)। हिम्मत है या कायरों की तरह परमेश्वर की आवाज़ को टालकर इस नए साल की आशीशों को फिर से रौंदेंगे? क्या आप समझ रहे हैं, या समझना ही नहीं चाहते? अगर ज़िद पर अड़े खड़े रहे तो फिर कोई कुछ नहीं कर पाएगा।

कहीं हममें से कुछ लोग हमेशा के लिये विदा न हो जाएं। जब तू परमेश्वर की आवाज़ सुने तो अपने दिल को सख्त न करना (इब्रानियों ३:१५)।

हम परमेश्वर के प्यार को इस कागज़ के टुकड़े पर आपके लिये सजाकर लाए हैं। अब यह आप पर है कि आप इसे ठुकराएं या अपनाएं।

जब मैंने परमेश्वर की आवाज़ को सुना तो देर न की। (भजन ११९:६०)।