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बुधवार, 9 सितंबर 2009

सम्पर्क मई २००१: अनर्थ में पड़ा जीवन, जीवन का अर्थ खोज रहा था...

मेरा नाम लॉर्डी परदाना पूर्बा है, मेरी उम्र २५ वर्ष है और मैं इन्डोनेशिया देश का निवासी हूँ जो लगभग १३५० टापुओं का एक समूह है और हिन्द महासागर तथा प्रशांत महासागर के बीच में स्थित है। मैं इन्डोनिशिया से सिविल इंजीनियरिंग की उपाधि प्राप्त करने के बाद उच्च शिक्षा के लिये २८ जुलाई १९९९ को रूड़की विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए आया था और अब बहुत शीघ्र ही अपनी पढ़ाई खत्म करके अपने देश लौटने को हूँ। इस देश को छोड़ने से पहले अपने जीवन का सबसे मधुर और अद्भुत अनुभव आपके पास छोड़कर जाना चाहता हूँ।

मेरा जन्म एक नामधारी इसाई परिवार में हुआ। जब मैं ग्यारहवीं कक्षा का छात्र था, तब से मेरे मन में एक अजीब कशमकश थी। मैं अपने जीवन का सही अर्थ खोज रहा था और मेरे मन में सच्ची खुशी और प्रेम पाने की बहुत लालसा थी। उसका मूल कारण मेरी जटिल पारिवारिक समस्याएं थीं। आए दिन मेरे माँ-बाप के बीच और हम भाई-बहिनों के बीच में लड़ाईयाँ, चीखना-चिल्लाना मचा रहता जिससे मैं बहुत परेशान और बेचैन था। मैं अपने घर में किसी से अपने दिल की बात कह नहीं पाता था और इसलिए मैं अपना ज़्यादा समय घर के बाहर बिताने लगा। मैं अपने दोस्तों में खुशी खोजता था, यह सोचकर कि उनके साथ रह कर मैं अपनी सारी परेशानियाँ भूल सकूंगा। लेकिन धीरे-धीरे मैं उनके साथ शराब सिग्रेट पीना, झूठ बोलना, गाली-गलौच करना, घर से पैसे चुराना, जुआ खेलना और कई अन्य बुरे और अशलील कामों में धंसता चला गया।

उन दिनों मेरा मन उन लोगों से बहुत चिढ़ता और झुंझलाता था जो आत्मा-परमात्मा की बातें किया करते थे। वे मुझे कई बार मसीही संगति में बुलाते थे लेकिन मैं साफ इन्कार कर देता था। मैं उन्हें बेवकूफ समझता था और उनसे सीधा कहा करता था कि वे इन सब आत्मिक बतों में क्यों अपना समय बरबाद कर रहे हैं? अरे जवानी तो मौज मस्ती के लिये है और अपने तरीके से आज़ाद ज़िन्दगी जीने में ही मज़ा है। मैं नहीं चाहता था कि कोई मेरे आज़ाद जीवन पर बन्दिश लगाए। परन्तु मेरा जीवन बद से बदतर होता गया और मेरी पढ़ाई में भी नुकसान होने लगा। लेकिन मुझ पर कोई असर नहीं हुआ। १९९४ में मेरा दाखिला इन्डोनेशिया के एक अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया जो कि मेरे जीवन का एक सुन्दर सपना था। मुझे इस बात से बहुत खुशी थी कि यह कॉलेज मेरे घर से बहुत दुर एक दूसरे शहर में था। मैंने सोचा कि अब मैं अपने परिवार से दूर रह कर आज़ादी से जो चाहे सो कर सकूँगा। कॉलेज प्रारम्भ करते समय मेरा मन उन्माद से, घमंड से और बहुतेरी गन्दी कामनाओं से भरा हुआ था।

उन दिनों मेरा मन उन लोगों से बहुत चिढ़ता और झुंझलाता था जो आत्मा-परमात्मा की बातें किया करते थे। वे मुझे कई बार मसीही संगति में बुलाते थे लेकिन मैं साफ इन्कार कर देता था। मैं उन्हें बेवकूफ समझता था और उनसे सीधा कहा करता था कि वे इन सब आत्मिक बतों में क्यों अपना समय बरबाद कर रहे हैं? अरे जवानी तो मौज मस्ती के लिये है और अपने तरीके से आज़ाद ज़िन्दगी जीने में ही मज़ा है। मैं नहीं चाहता था कि कोई मेरे आज़ाद जीवन पर बन्दिश लगाए। परन्तु मेरा जीवन बद से बदतर होता गया और मेरी पढ़ाई में भी नुकसान होने लगा। लेकिन मुझ पर कोई असर नहीं हुआ। १९९४ में मेरा दाखिला इन्डोनेशिया के एक अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया जो कि मेरे जीवन का एक सुन्दर सपना था। मुझे इस बात से बहुत खुशी थी कि यह कॉलेज मेरे घर से बहुत दुर एक दूसरे शहर में था। मैंने सोचा कि अब मैं अपने परिवार से दूर रह कर आज़ादी से जो चाहे सो कर सकूँगा। कॉलेज प्रारम्भ करते समय मेरा मन उन्माद से, घमंड से और बहुतेरी गन्दी कामनाओं से भरा हुआ था।
लेकिन मेरे जीवन के लिए परमेश्वर की कुछ और ही कल्पना थी। जब मैं कॉलेज में दाखिले के लिये गय तो वहाँ मुझे कुछ सीनियर छात्र आकर मिले। उनका व्यवहार बहुत ही अच्छा था और इन आरम्भ के दिनों में उन्होंने मेरी बहुत सहयाता की। उनकी सहायता और प्रेम भाव को देखकर मैं भौंचक्का रह गया। एक दिन उन्होंने मुझे एक बाईबल अद्धयन की क्क्षा में आमंत्रित किया। मुझे आत्मिक बातों में ज़रा भी दिलचस्पी नहीं थी परन्तु मैं उन्हें निराश नहीं करना चाहता था इसलिए मैंने उन्का निमंत्रण स्वीकार कर लिया। ७ सितम्बर १९९४ को मैं पहली बार ऐसी सभा में गया जिसका विष्य था “उद्धार का निश्चय”। प्रचारक ने कहा कि मनुष्य अपने पाप के कारण अपने सृष्टिकर्ता परमेश्वर से अलग हो गया है और पाप की मज़दूरी अनन्तकाल की भयानक मौत है। उन्होंने एक उदाहरण से दर्शाया कि हम पापियों और परमेश्वर के बीच एक गहरी खाई है जिसको हम अच्छे कामों, अच्छे चरित्र, या किसी भी धर्म के सहारे लाँघ नहीं सकते। लेकिन परमेश्वेर ने अपने एकलौते पुत्र प्रभु यीशु मसीह को इस जगत में भेजा ताकि वह हम सब के पापों की सज़ाखुद अपने ऊपर क्रूस पर सहकर हमारे और परमेश्वर के बीच में एक मार्ग बन जाए। इसलिए प्रभु यीशु पर विश्वास करके कोई भी व्यक्ति नरक की भयानक मौत से बच कर स्वर्ग के अनन्त जीवन में पहुँच सकता है।

मुझे यह सब बातें पूरी तरह समझ में नहीं आईं। उन्होंने मुझसे पूछा कि यदि आज रात तुम्हारी मौत हो जाए तो क्या तुम स्वर्ग जाओगे या नरक? इस सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं था, क्योंकि मुझे यह एहसास हो रहा था कि मैं पाप से भरा हूँ और मुझ में कोई भी अच्छाई नहीं है। मैंने सोचा कि अगर यह सब बातें सही हैं तो मेरा नरक जाना तय है। फिर उन्होंने दोहराया कि प्रभु यीशु मसीह मेरे सब पापों को क्षमा कर, मेरी ज़िन्दगी को एक नई शुरुआत दे सकते हैं। तब मैंने उनके साथ एक छोटी प्रार्थना की और प्रभु यीशु से अपने पापों की माफी माँग ली। जो कुछ भी उस दिन हुआ मुझे पूरी तरह समझ में तो नहीं आया, परन्तु आज जब पीछे मुड़कर देखता हूँ तो मुझे एहसास होता है कि परमेश्वर की आत्मा ने मेरे जीवन में काम करना शुरू कर दिया था। मुझे स्वर्ग-नरक, जीवन-मृत्यु, पाप और पापों की माफी, ऐसे कई सवाल जिन्हें मैं सोचता भी नहीं था, सताने लगे। इन विचारों ने मेरा दिल तोड़ दिया और मैंने रो-रोकर प्रार्थना में प्रभु के सामने मान लिया कि मैं एक भयानक पापी हूँ। मैंने न केवल अपना वरन कईयों का जीवन बरबाद कर दिया है। मैंने प्रभु से कहा “प्रभु मेरे सारे पाप और अधर्म को माफ कर दे। मैं अपना जीवन बदलना चाहता हूँ, प्रभु मेरी सहायता कर।”

तभी मेरे मन में सच्ची शांति आ गयी और मौत का डर चला गया। साथ ही मेरे विचार और मेरा व्यवहार भी बदलने लगा। फिर भी मैं अपने विश्वासी दोस्तों से कहता थ कि यह परिवर्तन तो थोड़े ही दिनों का है और बहुत जल्द ही मेरी स्थिति पहले जैसी हो जाएगी। यह विचार मुझे डराता भी था। लेकिन जैसे-जैसे मैं परमेश्वर के वचन को रोज़ पढ़ने लगा तो मुझे एहसास होने लगा कि परमेश्वर मुझ से बात कर रहा है। यह परमेश्वर कोई बेजान वस्तु नहीं पर मुर्दों में से जी उठा प्रभु यीशु है और उसी की सामर्थ मुझे सम्भाले हुए है। परमेश्वर के वचन को पढ़ने से मुझे बहुत शान्ति और खुशी मिलने लगी और साथ ही मुझे मेरे उन पापों का भी एहसास होने लगा जो मैंने दूसरों के विरोध में किए थे। परमेश्वर की दया से मैं उन लोगों से माफी माँग सका और मैंने अपने परिवार जनों से भी अपने सम्बंध ठीक कर लिए। मैं उनके लिए प्रार्थना भी करने लगा।

मैं अब एहसास करता हूँ कि यह सब परमेश्वर की ओर से ही हुआ है। आज मेरे पास सच्ची शांति और प्रेम है। मैं अपने जीवन के पथ पर अकेला नहीं क्योंकि प्रभु यीशु मेरा सच्चा मित्र है। मेरी समस्याओं में मेरे पास हमेशा एक आशा है कि प्रभु यीशु न तो मुझे कभी छोड़ेगा और न त्यागेगा।







1 टिप्पणी:

  1. अच्‍छे जीवन जीने की प्रेरणा जहां से भी मिले .. वहां से ही सवेरा माना जाना चाहिए !!

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