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बुधवार, 24 अगस्त 2016

परमेश्वर की आराधना और महिमा - भाग 1: आराधना की आवश्यकता


 आराधना की आवश्यकता

भजन 107:8 "लोग यहोवा की करूणा के कारण, और उन आश्चर्यकर्मों के कारण, जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें!"

हम परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं; हम उससे अपने तथा औरों के लिए अनेक बातों को माँगते हैं; हो सकता है कि हम यह भी प्रार्थना करते हों कि परमेश्वर मुझे अपने लिए उपयोगी, या फिर और भी अधिक उपयोगी बना - लेकिन यह प्रार्थना कितने और/या कितनी ईमानदारी से माँगते हैं, यह हम सब के लिए गहन व्यक्तिगत आत्मपरीक्षण का विषय है।

लेकिन परमेश्वर से प्रार्थना करने से कहीं अधिक लाभकारी है उसकी आराधना करना; और आराधना का एक तरीका है परमेश्वर का धन्यवाद करना - सब बातों के लिए, जैसा पौलुस फिलिप्पियों 4:6-7 में कहता है: "किसी भी बात की चिन्‍ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख अपस्थित किए जाएं। तब परमेश्वर की शान्‍ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरिक्षत रखेगी।"

हर बात में परमेश्वर का धन्यवादी होना, विपरीत या समझ से बाहर या कठिन परिस्थितियों और अनुभवों के लिए भी, परमेश्वर में दृढ़ विश्वास का चिन्ह है; इस विश्वास का कि परमेश्वर हमारे, अर्थात अपने बच्चों के जीवनों में, केवल वही आने या होने देगा जो हमारे लिए अच्छा या हमारी भलाई के लिए है। इसलिए यदि हम उस पर और उसके द्वारा हमारे लिए निर्धारित मार्गों पर भरोसा रखते हैं, तो हम हर बात के लिए, वो चाहे कुछ भी क्यों ना हो, सदा उसका धन्यवाद करेंगे।

जो परमेश्वर का धन्यवाद और उसकी महिमा अर्थात आराधना नहीं करते वे शैतान का शिकार बन जाने के घोर खतरे में रहते हैं: रोमियों 1:21 "इस कारण कि परमेश्वर को जानने पर भी उन्होंने परमेश्वर के योग्य बड़ाई और धन्यवाद न किया, परन्तु व्यर्थ विचार करने लगे, यहां तक कि उन का निर्बुद्धि मन अन्धेरा हो गया।" रोमियों 1 का शेष भाग उन व्यर्थ विचारों और अन्धेरे मन के दुषपरिणामों का वर्णन करता है।

प्रीयों, परमेश्वर की आराधना करने और हर बात के लिए उसका धन्यवादी होने को अपने जीवन की नियमित आदत, अपने दैनिक आचरण तथा कार्य का अभिन्न भाग बना लें; जब भी कर सकते हैं - काम करते हुए, चलते हुए, बैठे हुए, यात्रा करते हुए, आदि, ऐसा करते रहें। अपने जीवनों में लगातार परमेश्वर का धन्यवाद और उसकी महिमा करते रहने का रवैया बना लें। ऐसा करने से परमेश्वर की शांति, परमेश्वर की आशीषें और परमेश्वर की सुरक्षा आपके जीवनों में आएगी; यह करना आपके लिए परमेश्वर की सन्तान होने के जीवन में बढ़ोतरी और तरक्की देने में बहुत सहायक होगा, केवल प्रार्थना करने से कहीं अधिक बढ़कर सहायक।

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