प्रश्न: दाऊद द्वारा जनगणना के लिए कौन ज़िम्मेदार – परमेश्वर (2 शमूएल 24:1) या शैतान (1 इतिहास 21:1)?
उत्तर:
2 शमूएल 24:1 “और यहोवा का
कोप इस्राएलियों पर फिर भड़का, और उसने दाऊद को इनकी हानि के लिये यह कहकर उभारा, कि इस्राएल और यहूदा
की गिनती ले।”
1
इतिहास 21:1 “और शैतान ने इस्राएल के विरुद्ध उठ कर, दाऊद को उकसाया कि
इस्राएलियों की गिनती ले।”
यह दोनों खण्ड परस्पर विरोधाभास प्रतीत में होते
हैं, क्योंकि पढ़ते ही लगता
है कि 2 शमूएल 24:1 में यह कार्य यहोवा ने करवाया, और 1 इतिहास 21:1 से लगता है
कि वही कार्य शैतान ने करवाया – इसलिए असमंजस होता है।
बात को समझने से पहले यह ध्यान रखना आवश्यक है कि
परमेश्वर शैतान को भी अपनी योजनाओं की पूर्ति में प्रयोग कर सकता है, किन्तु साथ ही वह
पहले से ही शैतान द्वारा अपने लोगों के विरुद्ध कुछ कर पाने की सीमाएं भी
निर्धारित और स्थापित कर देता है, जैसा कि हम अय्यूब के
जीवन से तथा प्रभु यीशु के द्वारा शिष्यों से अपने पकड़वाए जाने से पहले के
वार्तालाप में देखते हैं (अय्यूब 1:12; 2:6; लूका 22:31-32)। साथ ही परमेश्वर पहले ही इस्राएलियों
को यह चेतावनी दे चुका था कि यदि उसके लोग, उसके साथ बाँधी गई वाचा को तोड़ेंगे, तो वह भी उनसे अपना
मुँह छुपा लेगा (व्यवस्थाविवरण 31:16-17), यदि वे उसे अपनी मूर्खता या व्यर्थ
बातों से रिस दिलाएंगे, तो वह भी उन्हें
मूर्खता के लिए रिस दिलाएगा (व्यवस्थाविवरण 32:21)। एक अन्य तथ्य जिसे ध्यान में
रखना आवश्यक है, वह है कि जनगणना के
दोनों ही वृतांतों से यह प्रकट है कि प्राथमिक दोष इस्राएली प्रजा का था, और दाऊद फिर इसमें
खिंच गया, तथा मूर्खता करने के
लिए उकसाया गया।
अब हम 2 शमूएल 24:1 पर आते हैं – हम इसके सन्दर्भ,
इससे पिछले अध्याय, अध्याय 23, से समझने पाते हैं
कि यह घटना दाऊद के राज्य के बाद के समय के उन वर्षों की है, जब वह उस पूरे
क्षेत्र में, अपने राज्य की सीमाओं
के बाहर भी, और अपनी प्रजा में भी,
एक महान, प्रबल, और शक्तिशाली राजा स्थापित हो चुका था। अध्याय 23 उसके शूरवीर
सेनापतियों और सैनिकों, सेना-नायकों और उनके
पराक्रम के कार्यों आदि का भी वर्णन करता है। इस पृष्ठभूमि के साथ हम आगे देखते
हैं कि इस अध्याय (2 शमूएल 24) का आरंभ “और यहोवा का कोप इस्राएलियों पर फिर भड़का”
शब्दों के साथ होता है। अर्थात इस्राएल तथा दाऊद के जीवनों में कुछ ऐसा आ गया था
जिस से परमेश्वर उनसे क्रुद्ध हुआ,
और उसे इस्राएल तथा उसके राजा को कुछ पाठ सिखाने की आवश्यकता हुई। इन तथ्यों के
आधार पर जो विचार सामने आता है वह यह है कि यद्यपि समस्त इस्राएल में
सुरक्षा, निश्चिंतता, और समृद्धि का माहौल था, किन्तु अब उन्हें अपनी इस सुरक्षा,
निश्चिंतता, और समृद्धि का कारण उनपर बनी रहने वाली परमेश्वर की कृपा और अनुग्रह नहीं, वरन उनके महान राजा तथा
उसके शूरवीर, पराक्रमी सेनापतियों
और विशाल सेना के कार्य और प्रताप दिखने लग गए थे। संभवतः यही भावना, अर्थात, प्रजा के लोगों और
सेना की संख्या एवं सामर्थ्य में घमण्ड, या
तो राजा दाऊद में भी आ गई थी,
अन्यथा
आने लगी थी। तभी, एक तो, उसके सेनापति योआब ने उसे समझाने और जनगणना
न करने की सलाह दी
परंतु दाऊद नहीं माना, और योआब
को जनगणना के लिए जाना पड़ा (2
शमूएल 24:2-4; 1 इतिहास 21:2-4);
और दूसरे,
यह
जनगणना करवाने के लिए दाऊद बाद में अपने आप को दोषी बता कर पश्चाताप भी करता है (2
शमूएल 24:10; 1 इतिहास 21:8)।
इस्राएलियों के द्वारा परमेश्वर के स्थान पर पराक्रमी दाऊद और उसकी शूरवीर सेना को अपनी सुरक्षा, निश्चिंतता, और समृद्धि का आधार समझ लेना, और दाऊद का भी, जो परमेश्वर को इतनी निकटता से जानता था, शैतान की बात पर ध्यान लगाना, चिताए जाने पर भी नहीं सुधारना, शैतान के बहकावे में आ जाना और इस संबंध में परमेश्वर की इच्छा आ पता न करना, परमेश्वर को बुरा लगा (1 इतिहास 21:7)। दाऊद जब तक शाऊल से जान बचा कर भाग रहा था, वह अपनी हर बात के लिए परमेश्वर से पूछा करता था। जब राजा बनकर सुरक्षित तथा आदरणीय हो गया तो निश्चिन्त होकर अपने आप पर भरोसा करने लग गया – वाचा के संदूक को यरूशलेम लाने का निर्णय लेना (2 शमूएल 6:1-8), मंदिर बनवाने का निर्णय लेना (1 इतिहास 17:1-4), इस जनगणना का आदेश देना, बतशेबा के साथ व्यभिचार और उसके पति ऊरिय्याह की हत्या करवाना (2 शमूएल 23:7-10), आदि उसकी इस प्रवृत्ति के उदाहरण हैं। परमेश्वर को हलके में लेने और उसके आदर तथा महिमा को चुराने के दोषी दाऊद और उसकी प्रजा दोनों ही थे, और परमेश्वर अपने आदर और महिमा के विषय बहुत विशिष्ट रहता है तथा जलन रखता है (यशायाह 42:8; 48:11; भजन 50:21-22); इसलिए परमेश्वर को दाऊद और उसकी प्रजा के लोगों, दोनों ही को यह पाठ पढ़ाना पड़ा (मलाकी 2:2)। शैतान हमेशा अवसर की तलाश में रहता है कि परमेश्वर के लोगों में कोई अनुचित अभिलाषा उत्पन्न हो, और वह उनकी उस अनुचित अभिलाषा की चिंगारी को भड़का कर उन्हें ही भस्म कर देने वाली आग बना दे (याकूब 1:12-15)। दाऊद और उसकी प्रजा ने परमेश्वर के बाड़े की मर्यादा को तोड़ा, उसकी सुरक्षा के बाहर आए, और सर्प ने उन्हें डस लिया (सभोपदेशक 10:8)।
दाऊद और उसकी प्रजा के
लोगों को यह पाठ पढ़ाने के लिए परमेश्वर
ने शैतान को दाऊद को उकसा लेने दिया कि वह दाऊद से जनगणना करवाए (1 इतिहास 21:1) – जनगणना करवाने के पश्चात दाऊद को अपनी गलती का एहसास हुआ, और उसे बहुत पछतावा भी हुआ, किन्तु
उसे तथा प्रजा को ताड़ना भी सहनी पड़ी। उस जनगणना के परिणामों के द्वारा परमेश्वर इस्राएलियों
और दाऊद को यह दृढ़ता से सिखाने पाया
कि उनकी सुरक्षा उनके सैनिकों की संख्या और पराक्रम,
राजा के महान होने में नहीं है,
वरन परमेश्वर स्वयं उनकी सुरक्षा और सहायता, उनकी
निश्चिंतता का आधार है;
उसके अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति या बात में इस सुरक्षा का
भरोसा रखना न केवल खतरनाक है,
वरन हानिकारक भी है – और यही शिक्षा आज हमारे लिए भी है।