किसी ने कहा, “पिछले सप्ताह मेरे पिताजी की मृत्यु हो गई। मेरे पिताजी धर्म प्रचारक थे। मेरे पिताजी जल्लाद की तरह मेरी माँ को बुरी तरह मारते थे। मैं यह सब देख कर अपने पिता को माफ नहीं कर सकता था। मेरे पिता के कारण मेरा विश्वास परमेश्वर और मसीह से हट चुका था। सालों तक नफरत का ज़हर भोगता रहा। बस मसीह के अनुगह ही से मेरा उद्धार हुआ। पहले मैं जिस आदमी को माफ नहीं कर सकता था अब उसे माफ करने की सामर्थ पा गया। मैं ने यीशु से माफी पा कर ही अपने पिता को माफ करने की सामर्थ पाई और बदले की ज़बर्दस्त पीड़ा से बाहर आ सका”।
है कोई आपके जीवन में जिसे आप आज माफ नहीं कर पा रहे हो?
अगर आप कहें कि मैं ने कोई पाप नहीं किया और ना ही करता हूँ, तो आप से कहने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है। केवल उन के लिए है, जो यह मानते और समझते हैं कि हम में पाप है। हम सब ने पाप किए हैं। मेरी असलियत क्या है; मसीह जानता है। आप क्या हैं और आपकी असलियत क्या है; मसीह जानता है। अपनी असलियत बस हम ही मानने को तैयार नहीं हैं। यीशु के लहू की दुहाई दे कर फिर से मसीह के लिए जीना शुरू करें।
पहला ज़रूरी काम है सुसमाचार को स्वीकारना और दूसरा है, दूसरों को सुसमाचार देना। सुसमाचार न देना सब से बड़ा अपराध है।
क्या आपने कभी अपने रिश्तेदारों को, पड़ौसियों को या अपने साथ काम करने वालों को, जो किसी भी वक्त अचानक नरक जा सकते हैं, उन्हें यह सुसमाचार दिया या नहीं दिया?
अगर नहीं तो अब सवाल यह उठता है कि आपने क्यों नहीं दिया? किसी डर के कारण या शर्म के कारण?
इस सुसमाचार के लिए प्रभु ने अपनी जान दी, आप उसी सुसमाचार से लजाते हो?
प्रभु का भक्त पौलुस कहता है, “हाय मुझ पर यदि मैं सुसमाचार न सुनाऊँ” और “मैं सुसमाचार से लजाता नहीं हूँ”
आप अपने बारे में क्या कहते हैं?
खैर गलती तो सब से होती है; पर गलती जान कर गलती में बने रहना एक भयानक अपराध है। आप सुसमाचार के लिए क्या करते हैं और कितना करते हैं?
वह आपकी अयोग्यता से कहीं ज़्यादा आपसे प्यार करता है। आप में कमज़ोरियाँ और पाप होने पर भी वह आप से प्यार करता है।
पहले अपने पाप की तरफ देखो और फिर पाप से छुटकारा देने वाले की तरफ देखो। जब तक आप अपने पाप नहीं देख पाएंगे तब तक आप कभी पाप से छुटकारा देने वाले को नहीं समझ पाएंगे।
मेरी आँखें धुँधला गई हैं। मेरी हड्डियाँ अब मेरा बोझ नहीं उठा पातीं। मेरा दिल थक चुका है। पर यह मेरी कहानी का अन्त नहीं है। मैं अपनी सारी निर्बलता में जीता हूँ, आज भी मुझे अपने ऊपर भरोसा नहीं है। सुबह तो सुहावनी शुरू होती है, पर अन्धेरा होते-होते कई बार कुछ अन्धेर कर बैठता हूँ। समय बहुत कुछ उजाड़ गया है पर यह भी मेरी कहानी का अन्त नहीं है।
मुझ में अब भी आशा है। मेरा प्रभु थकता नहीं। वह मुझ जैसे आदमी से भी नहीं थका। जैसा वो मुझ जैसे आदमी के साथ बड़ा वफादार रहा है, आपके साथ भी रहेगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें