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गुरुवार, 19 मार्च 2020

मसीही विश्वास का आधार – संक्षेप में



बाइबल परमेश्वर का एकमात्र, अनंत, पूर्णतया दोष-रहित, कभी गलत नहीं ठहरने वाला, कभी न बदलने या बदला जा सकने वाला वचन है: “तेरा सारा वचन सत्य ही है; और तेरा एक एक धर्ममय नियम सदा काल तक अटल है” (भजन 119:160)। यह अनन्त काल के लिए स्वर्ग में स्थापित है: “हे यहोवा, तेरा वचन, आकाश में सदा तक स्थिर रहता है (भजन 119:89), और स्वयं प्रभु यीशु के अपने शब्दों में, अंत के समय, हम इसी वचन के द्वारा जांचे जाएंगे: “जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहराने वाला तो एक है: अर्थात जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा” (यूहन्ना 12:48).

बाइबल को वचन भी कहा जाता है और यह स्वयं परमेश्वर का लिखित रूप में प्रकटीकरण है: “आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था” (यूहन्ना 1:1)। प्रभु यीशु मानव रूप में परमेश्वर का अवतार, जीवित वचन हैं, “और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण हो कर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उस की ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा” (यूहन्ना 1:14), और वे उनकी उपाधिपरमेश्वर का पुत्र के द्वारा भी जाने जाते हैं जो बस प्रभु को संबोधित करने की एक उपाधि है; यह परमेश्वर के साथ उनके किसी पारिवारिक संबंध को नहीं दिखाती है: “स्वर्गदूत ने उसको उत्तर दिया; कि पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा, और परमप्रधान की सामर्थ्य तुझ पर छाया करेगी इसलिए वह पवित्र जो उत्पन्न होनेवाला है, परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा” (लूका 1:35)। बाइबल की विषय-वस्तु प्रभु यीशु हैं, और उनके बारे हमारी जानकारी के लिए जो भी आवश्यक है वह सब बाइबल में दिया गया है। अपने पृथ्वी के समय में प्रभु यीशु ने पापों से पश्चाताप और परमेश्वर के राज्य के बारे में प्रचार किया: “…यीशु ने गलील में आकर परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार किया। और कहा, समय पूरा हुआ है, और परमेश्वर का राज्य निकट आ गया है; मन फिराओ और सुसमाचार पर विश्वास करो ” (मरकुस 1:14-15); और वे सब के लिए भलाई करते रहेपरमेश्वर ने किस रीति से यीशु नासरी को पवित्र आत्मा और सामर्थ्य से अभिषेक किया: वह भलाई करता, और सब को जो शैतान के सताए हुए थे, अच्छा करता फिरा; क्योंकि परमेश्वर उसके साथ था” (प्रेरितों 10:38).

उनके अपने शब्दों में, प्रभु यीशु इस संसार में पापियों को बचाने आए थे: “मैं धर्मियों को नहीं, परन्तु पापियों को मन फिराने के लिये बुलाने आया हूं” (लूका 5:32)। वे संसार को पापों के दुष्परिणाम से बचाने के लिए आए थे: “क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए। परमेश्वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिए नहीं भेजा, कि जगत पर दंड की आज्ञा दे परन्तु इसलिए कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए। जो उस पर विश्वास करता है, उस पर दंड की आज्ञा नहीं होती, परन्तु जो उस पर विश्वास नहीं करता, वह दोषी ठहर चुका; इसलिए कि उसने परमेश्वर के एकलौते पुत्र के नाम पर विश्वास नहीं किया” (यूहन्ना 3:16-18)। हमें हमारे पापों से बचाने के लिए, यद्यपि उन्होंने निष्पाप जीवन जीया था: “न तो उसने पाप किया, और न उसके मुंह से छल की कोई बात निकली” (1 पतरस 2:22), फिर भी उन्होंने संसार के सभी लोगों के समस्त पाप अपने ऊपर ले लिए, और अपने प्राण बलिदान कर के उनका दण्ड चुका दिया, और फिर अपने परमेश्वर होने के प्रमाण स्वरूप, वे तीसरे दिन मृतकों में से जीवित हो उठे: “उसी ने अपने आप को हमारे पापों के लिये दे दिया, ताकि हमारे परमेश्वर और पिता की इच्छा के अनुसार हमें इस वर्तमान बुरे संसार से छुड़ाए” (गलातियों 1:4); “…पवित्र शास्त्र के वचन के अनुसार यीशु मसीह हमारे पापों के लिये मर गया। ओर गाड़ा गया; और पवित्र शास्त्र के अनुसार तीसरे दिन जी भी उठा” (1 कुरिन्थियों 15:3-4)। अब, जो कोई भी, वह चाहे किसी भी देश, जाति, रंग, शैक्षिक स्तर, या सांसारिक ओहदे का हो या अन्य किसी भी सांसारिक आधार के होते हुए भी, अपनी इच्छा के द्वारा सच्चे और नम्र मन से प्रभु यीशु द्वारा पापों की क्षमा प्राप्त करने के लिए किए गए कार्य को स्वीकार कर लेता है, पश्चाताप कर के उन से पापों के लिए क्षमा माँगता है, और स्वेच्छा से अपना जीवन प्रभु यीशु को समर्पित कर देता है, वह तुरंत ही सदा काल के लिए पापों से क्षमा पा लेता है और परमेश्वर की संतान हो जाता है: “परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। वे न तो लोहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं” (यूहन्ना 1:12-13); इस एक साधारण से विश्वास के कार्य के द्वारा जिसमें किसी भी मानवीय कार्य, या अनुष्ठान, या किसी भी अन्य मनुष्य की कोई भी मध्यस्थता की कोई आवश्यकता नहीं है: “क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है। और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे” (इफिसियों 2:8-9)। कोई भी, कभी भी, कहीं भी आप भी, इसी समय, अपने लिए यह कर सकते हैं: “यदि तू अपने मुंह से यीशु को प्रभु जान कर अंगीकार करे और अपने मन से विश्वास करे, कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा। क्योंकि धामिर्कता के लिये मन से विश्वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुंह से अंगीकार किया जाता है” (रोमियों 10:9-10), सच्चे मन से की गई विश्वास की प्रार्थना के द्वारा, कि : “प्रभु यीशु कृपया मेरे पापों को क्षमा करें और मुझे स्वीकार कर लें। मैं अपना जीवन आपके हाथों में समर्पित करता हूँ।उद्धार का उनका यह प्रस्ताव पूर्णतः मुफ्त है तथा सभी के लिए खुला है, उनके पाप चाहे कैसे भी और कितने भी जघन्य क्यों न हों प्रभु की क्षमा मनुष्य की किसी भी निकृष्टता या पाप की सीमा से कहीं बढ़कर है।

प्रभु यीशु ही परमेश्वर तक पहुंचने का एकमात्र मार्ग हैं, “यीशु ने उस से कहा, मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता” (यूहन्ना 14:6); पापों से बचने का वे ही एकमात्र मार्ग हैं: “और किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिस के द्वारा हम उद्धार पा सकें” (प्रेरितों 4:12)। उनका राज्य इस जगत का नहीं है: “यीशु ने उत्तर दिया, कि मेरा राज्य इस जगत का नहीं, यदि मेरा राज्य इस जगत का होता, तो मेरे सेवक लड़ते, कि मैं यहूदियों के हाथ सौंपा न जाता: परन्तु अब मेरा राज्य यहां का नहीं ” (यूहन्ना 18:36)। यह संसार और इस संसार की सभी बातें तथा सभी सांसारिक लोग नाश हो जाएंगे: “तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो: यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उस में पिता का प्रेम नहीं है। क्योंकि जो कुछ संसार में है, अर्थात शरीर की अभिलाषा, और आंखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड, वह पिता की ओर से नहीं, परन्तु संसार ही की ओर से है। और संसार और उस की अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा” (1 यूहन्ना 2:15-17); इसलिए प्रभु यीशु तैयारी कर रहे हैं कि उनके चेले उनके साथ सदा काल के लिए स्वर्ग में रहें: “तुम्हारा मन व्याकुल न हो, तुम परमेश्वर पर विश्वास रखते हो मुझ पर भी विश्वास रखो। मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं, यदि न होते, तो मैं तुम से कह देता क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूं। और यदि मैं जा कर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूं, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहां ले जाऊंगा, कि जहां मैं रहूं वहां तुम भी रहो” (यूहन्ना 14:1-3)। अपने स्वर्गारोहण से ठीक पहले, प्रभु यीशु ने अपने चेलों को यह जिम्मेदारी दी कि वे सारे संसार में जाएं और किसी धर्म का नहीं तथा न ही किसी धर्म परिवर्तन का, वरन उनमें लाए गए विश्वास के द्वारा पापों से उद्धार के सुसमाचार (अच्छे समाचार) का प्रचार करें और सिखाएं, और संसार के सभी स्थानों के लोगों को प्रभु का चेला बनाएं, क्योंकि उन्होंने समस्त जगत के सभी लोगों के लिए उनके सभी पापों की कीमत को चुका दिया है: “यीशु ने उन के पास आकर कहा, कि स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार मुझे दिया गया है। इसलिए तुम जा कर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से बप्तिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ: और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूं” (मत्ती 28:18-20)

ध्यान कीजिए कि: मैं आज आकाश और पृथ्वी दोनों को तुम्हारे साम्हने इस बात की साक्षी बनाता हूं, कि मैं ने जीवन और मरण, आशीष और शाप को तुम्हारे आगे रखा है; इसलिए तू जीवन ही को अपना ले, कि तू और तेरा वंश दोनों जीवित रहें (व्यवस्थाविवरण 30:19) – इसलिए अपने लिए बुद्धिमत्ता से चुनाव कर लीजिए।

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