उद्धार प्राप्त करने का अर्थ है पाप के दुष्परिणामों – अनन्त
काल की मृत्यु, अर्थात पृथ्वी के इस जीवन के उपरान्त अनन्त काल के लिए परमेश्वर से
दूर हो कर नरक में, जहां से कभी कोई लौट कर वापस नहीं आ सकता है “और इन सब
बातों को छोड़ हमारे और तुम्हारे बीच एक भारी गड़हा ठहराया गया है कि जो यहां से
उस पार तुम्हारे पास जाना चाहें, वे न जा सकें, और न कोई वहां से इस पार हमारे पास आ
सके” (लूका 16:26), चले
जाने से बच जाना। बचाए जाने का अर्थ प्रभु यीशु मसीह में होकर अनन्त काल के लिए परमेश्वर
के सम्मुख धर्मी ठहरना और परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप हो जाना है “सो जब हम विश्वास से धर्मी ठहरे, तो अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा
परमेश्वर के साथ मेल रखें।” “क्योंकि बैरी होने की दशा में तो उसके पुत्र की
मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्वर के साथ हुआ फिर मेल हो जाने पर उसके जीवन के
कारण हम उद्धार क्यों न पाएंगे?” (रोमियों 5:1, 10)। उद्धार पाने या बचाए जाने के साथ ही प्राप्त होने वाले अन्य लाभ हैं परमेश्वर
की संतान बन जाना “परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का
अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते
हैं। वे न तो लोहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न
हुए हैं” (यूहन्ना
1:12-13), तथा मसीह यीशु के संगी वारिस बन जाना “और यदि सन्तान हैं, तो वारिस भी, वरन
परमेश्वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं, जब कि हम उसके
साथ दुख उठाएं कि उसके साथ महिमा भी पाएं” (रोमियों 8:17)।
प्रत्येक मनुष्य पाप करने के स्वभाव और प्रवृति के साथ
जन्म लेता है “मनुष्य है क्या कि वह निष्कलंक हो? और जो स्त्री से उत्पन्न हुआ वह है क्या
कि निर्दोष हो सके?” (अय्यूब
15:14); और “देख, मैं
अधर्म के साथ उत्पन्न हुआ, और पाप के साथ अपनी माता के गर्भ
में पड़ा” (भजन 51:5)।
पाप करना और अधर्मी होना हमारे अन्दर जन्म से विद्यमान प्रवृत्ति है जो हमारे आदि
माता-पिता हव्वा और आदम के पाप के परिणामस्वरूप मनुष्य जाति में वंशानुगत रीति से
है “इसलिये जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिये
कि सब ने पाप किया” (रोमियों
5:12)। जैसे कि एक डूबता हुआ मनुष्य अपने सिर के बालों से अपने आप को खींच कर
स्वयं को पानी से बाहर नहीं निकाल सकता है, वैसे ही पाप से अपवित्र एवं अशुद्ध
मनुष्य अपने किसी भी प्रयास से अपने आप को पवित्र एवं शुद्ध नहीं कर सकता है “हम तो सब के सब
अशुद्ध मनुष्य के से हैं, और हमारे धर्म के काम सब के
सब मैले चिथड़ों के समान हैं। हम सब के सब पत्ते के समान मुर्झा जाते हैं, और हमारे अधर्म के कामों ने हमें वायु के समान उड़ा दिया है” (यशायाह 64:6)। जैसे उस डूबते हुए मनुष्य को बचने के लिए बाहर
से किसी की सहायता चाहिए होती है, उसी प्रकार से पाप में डूबे हुए मनुष्य को भी
पाप से उभरने के लिए पाप से बाहर के किसी की सहायता की आवश्यकता होती है “जूफा
से मुझे शुद्ध कर, तो
मैं पवित्र हो जाऊंगा; मुझे धो, और मैं
हिम से भी अधिक श्वेत बनूंगा” (भजन 51:7)।
पवित्र एवं निष्पाप परमेश्वर पाप के साथ संगति या समझौता
नहीं कर सकता है – यह उसके स्वभाव तथा चरित्र के प्रतिकूल है “जब तुम मेरी ओर
हाथ फैलाओ, तब मैं
तुम से मुंह फेर लूंगा; तुम कितनी ही प्रार्थना क्यों न करो,
तौभी मैं तुम्हारी न सुनूंगा; क्योंकि
तुम्हारे हाथ खून से भरे हैं। परन्तु तुम्हारे अधर्म के कामों ने तुम को तुम्हारे
परमेश्वर से अलग कर दिया है, और तुम्हारे पापों के कारण उस
का मुँह तुम से ऐसा छिपा है कि वह नहीं सुनता।” “वे उस समय यहोवा की दोहाई देंगे, परन्तु वह उनकी न सुनेगा, वरन उस समय वह उनके बुरे कामों के कारण उन से मुंह फेर लेगा” (यशायाह 1:15; 59:2; मीका 3:4)। किन्तु वह
अपनी सर्वश्रेष्ठ सृष्टि, मनुष्य, से बहुत प्रेम करता है और उस के साथ संगति रखना
चाहता है – यद्यपि मनुष्य अब पाप में गिर चुका है। परमेश्वर न केवल प्रेमी है, वरन
वह न्यायी भी है। वह पाप की यूं ही अनदेखी नहीं कर सकता है, परमेश्वर के न्याय की
मांग है कि प्रत्येक पापी को अपने ही पाप के लिए परमेश्वर द्वारा निर्धारित दण्ड –
मृत्य, अर्थात उससे पृथक हो जाने को सहना ही होगा “देखो, सभों के प्राण तो मेरे हैं; जैसा पिता का प्राण, वैसा ही पुत्र का भी प्राण है;
दोनों मेरे ही हैं। इसलिये जो प्राणी पाप करे वही मर जाएगा। जो
प्राणी पाप करे वही मरेगा, न तो पुत्र पिता के अधर्म का भार
उठाएगा और न पिता पुत्र का; धर्मी को अपने ही धर्म का फल,
और दुष्ट को अपनी ही दुष्टता का फल मिलेगा” (यहेजकेल 18:4, 20)। यदि मनुष्य को यह दण्ड सहना
पड़े, तो फिर वह परमेश्वर के साथ संगति में कभी लौटने नहीं पाएगा; किन्तु परमेश्वर,
अपने बड़े प्रेम के कारण, मनुष्य से संगति रखना चाहता है।
इस असंभव प्रतीत होने वाली विडंबना का समाधान भी
परमेश्वर ने ही बनाया, जिससे उसके न्याय की मांग भी पूरी हो जाए और वह मनुष्य के
साथ संगति भी रख सके। परमेश्वर ने स्वयं मनुष्य बनकर इस पृथ्वी पर प्रभु यीशु मसीह
के रूप में जन्म लिया “आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन
परमेश्वर था। और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से
परिपूर्ण हो कर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उस की ऐसी
महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा” (यूहन्ना 1:1, 14), और एक सामान्य मनुष्य के
समान जीवन जीते हुए भी एक निष्पाप तथा निष्कलंक जीवन बिताया “क्योंकि हमारा ऐसा
महायाजक नहीं, जो
हमारी निर्बलताओं में हमारे साथ दुखी न हो सके; वरन वह सब
बातों में हमारी समान परखा तो गया, तौभी निष्पाप निकला।” “सो ऐसा ही महायाजक हमारे योग्य था, जो पवित्र, और
निष्कपट और निर्मल, और पापियों से अलग, और स्वर्ग से भी ऊंचा किया हुआ हो” (इब्रानियों 4:15; 7:26); “न तो उसने पाप किया, और न उसके मुंह से छल की कोई बात निकली” (1 पतरस 2:22); “और तुम जानते हो, कि वह इसलिये प्रगट हुआ, कि पापों को हर ले जाए; और उसके स्वभाव में पाप
नहीं” (1 यूहन्ना 3:5)।
प्रभु यीशु ने कभी कोई भी पाप नहीं किया, वे आजीवन पाप से अनजान रहे। फिर भी, प्रभु
यीशु ने समस्त मानवजाति के सभी पापों को अपने ऊपर ले लिया, संसार के सभी मनुष्यों
के पाप को अपना कर वे सभी मनुष्यों के लिए कलवारी के क्रूस पर पाप बन गए “जो
पाप से अज्ञात था, उसी
को उसने हमारे लिये पाप ठहराया, कि हम उस में हो कर परमेश्वर
की धामिर्कता बन जाएं” (2
कुरिन्थियों 5:21), और मनुष्यों के स्थान पर उन्होंने स्वयं मृत्यु “क्योंकि
मसीह का प्रेम हमें विवश कर देता है;
इसलिये कि हम यह समझते हैं, कि जब एक सब के
लिये मरा तो सब मर गए। और वह इस निमित्त सब के लिये मरा, कि
जो जीवित हैं, वे आगे को अपने लिये न जीएं परन्तु उसके लिये
जो उन के लिये मरा और फिर जी उठा” (2 कुरिन्थियों 5:14-15); तथा परमेश्वर से दूर होने को
सह लिया “तीसरे पहर के निकट यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, एली, एली, लमा शबक्तनी अर्थात हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे
परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?” (मत्ती 27:46)। उन्होंने स्वेच्छा से तथा सब
कुछ जानते हुए क्रूस पर अपना बलिदान दिया “पिता इसलिये मुझ से प्रेम रखता है, कि मैं अपना प्राण देता हूं, कि उसे फिर ले लूं। कोई उसे मुझ से छीनता नहीं, वरन
मैं उसे आप ही देता हूं: मुझे उसके देने का अधिकार है, और
उसे फिर लेने का भी अधिकार है: यह आज्ञा मेरे पिता से मुझे मिली है” (यूहन्ना 10:17-18)। वे मारे गए, गाड़े गए, और
तीसरे दिन मृतकों में से जी उठ कर अपने ईश्वरत्व को प्रमाणित किया “उसी को, जब वह परमेश्वर की ठहराई हुई मनसा और
होनहार के ज्ञान के अनुसार पकड़वाया गया, तो तुम ने
अधर्मियों के हाथ से उसे क्रूस पर चढ़वा कर मार डाला। परन्तु उसी को परमेश्वर ने
मृत्यु के बन्धनों से छुड़ाकर जिलाया: क्योंकि यह अनहोना था कि वह उसके वश में
रहता।” “क्योंकि
उसने एक दिन ठहराया है, जिस में वह उस मनुष्य के द्वारा धर्म से जगत का न्याय करेगा, जिसे उसने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रामाणित कर दी है” (प्रेरितों 2:23-24; 17:31)।
क्योंकि केवल प्रभु यीशु ही हैं जिन्होंने मानवजाति के
पापों का स्थाई और उचित समाधान प्रदान किया है, इसलिए मनुष्यों के लिए उद्धार भी
केवल प्रभु यीशु मसीह में हो कर ही है, किसी अन्य के द्वारा नहीं, “और किसी
दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया,
जिस के द्वारा हम उद्धार पा सकें” (प्रेरितों 4:12)। अब संसार के सभी मनुष्यों के लिए प्रभु
यीशु द्वारा कलवारी के क्रूस पर किए गए कार्य के द्वारा उद्धार का मार्ग खुला है,
और यह सभी के लिए मुफ्त में उपलब्ध भी है “पर जैसा अपराध की दशा है, वैसी अनुग्रह के वरदान की नहीं, क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध से बहुत लोग मरे, तो
परमेश्वर का अनुग्रह और उसका जो दान एक मनुष्य के, अर्थात
यीशु मसीह के अनुग्रह से हुआ बहुतेरे लागों पर अवश्य ही अधिकाई से हुआ। और जैसा एक
मनुष्य के पाप करने का फल हुआ, वैसा ही दान की दशा नहीं,
क्योंकि एक ही के कारण दण्ड की आज्ञा का फैसला हुआ, परन्तु बहुतेरे अपराधों से ऐसा वरदान उत्पन्न हुआ, कि
लोग धर्मी ठहरे। क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध के कारण मृत्यु ने उस एक ही के
द्वारा राज्य किया, तो जो लोग अनुग्रह और धर्म रूपी वरदान
बहुतायत से पाते हैं वे एक मनुष्य के, अर्थात यीशु मसीह के
द्वारा अवश्य ही अनन्त जीवन में राज्य करेंगे। इसलिये जैसा एक अपराध सब मनुष्यों
के लिये दण्ड की आज्ञा का कारण हुआ, वैसा ही एक धर्म का काम
भी सब मनुष्यों के लिये जीवन के निमित धर्मी ठहराए जाने का कारण हुआ” (रोमियों 5:15-18)।
अब अपने पापों से क्षमा तथा उद्धार पाने के लिए किसी भी
मनुष्य को प्रभु यीशु पर विश्वास करके, उनसे अपने पापों की क्षमा मांगकर अपना जीवन
उन्हें समर्पित करने के अतिरिक्त और कुछ भी करने की कोई भी आवश्यकता नहीं है “उन्होंने
कहा, प्रभु यीशु मसीह
पर विश्वास कर, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा” (प्रेरितों 16:31)। उद्धार हर किसी के लिए, वह
चाहे किसी भी धर्म (चाहे वे इसाई धर्म का पालन करने वाले ही क्यों न हों), जाति,
स्थान, रंग, शिक्षा, सांसारिक स्तर, या कुछ भी, कोई भी हो – केवल स्वयं पश्चाताप, अर्थात
अपने पापी होने और पाप के दुष्परिणामों का सच्चे मन से एहसास करके, अपने पापों को
स्वीकार करने, तथा स्वेच्छा से प्रभु यीशु से उन पापों के लिए क्षमा मांगने और उसे
अपना जीवन समर्पित करने के द्वारा ही संभव है “पतरस ने उन से कहा, मन फिराओ, और तुम
में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले;
तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे” (प्रेरितों 2:38), अन्यथा नहीं । उद्धार पाने या बचाए
जाने को ही नया जन्म पाना भी कहते हैं – सांसारिक और नश्वर जीवन में से निकल कर
आत्मिक और अविनाशी जीवन में जन्म ले लेना; और बिना नया जन्म पाए कोई भी स्वर्ग में
न तो प्रवेश कर सकता है और न ही उसे देख भी सकता है “यीशु ने उसको उत्तर दिया; कि मैं तुझ से सच सच कहता हूं, यदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता।
नीकुदेमुस ने उस से कहा, मनुष्य जब बूढ़ा हो गया, तो क्योंकर जन्म ले सकता है? क्या वह अपनी माता के
गर्भ में दुसरी बार प्रवेश कर के जन्म ले सकता है? यीशु ने
उत्तर दिया, कि मैं तुझ से सच सच कहता हूं; जब तक कोई मनुष्य जल और आत्मा से न जन्मे तो वह परमेश्वर के राज्य में
प्रवेश नहीं कर सकता” (यूहन्ना
3:3-5); “हे भाइयों, मैं यह कहता हूं कि मांस और लोहू परमेश्वर के राज्य के अधिकारी नहीं हो
सकते, और न विनाश अविनाशी का अधिकारी हो सकता है।” “क्योंकि अवश्य है, कि यह नाशमान देह अविनाश को पहिन ले,
और यह मरनहार देह अमरता को पहिन ले। और जब यह नाशमान अविनाश को पहिन
लेगा, और यह मरनहार अमरता को पहिन लेगा, तब वह वचन जो लिखा है, पूरा हो जाएगा, कि जय ने मृत्यु को निगल लिया” (1 कुरिन्थियों 15:50,53-54)। यह उद्धार अर्थात बचाया
जाना या नया जन्म प्राप्त करना किसी धर्म का पालन करने से अथवा परिवार के अनुसार
मिलने वाली, या उत्तराधिकार में प्राप्त होने वाली, या वंशागत बात नहीं है; और न
ही यह किन्हीं कर्मों को करने या कोई रीति-रिवाज़ पूरे करने अथवा परंपराओं या विधि-विधानों
के निर्वाह द्वारा होता है, यह केवल परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा और विश्वास,
केवल मसीह यीशु में विश्वास से ही संभव है “जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे, तो हमें मसीह के साथ जिलाया; (अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है।) और मसीह यीशु में उसके साथ उठाया,
और स्वर्गीय स्थानों में उसके साथ बैठाया। कि वह अपनी उस कृपा से
जो मसीह यीशु में हम पर है, आने वाले समयों में अपने अनुग्रह
का असीम धन दिखाए। क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ
है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन
परमेश्वर का दान है। और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई
घमण्ड करे” (इफिसियों
2:5-9)।
प्रत्येक व्यक्ति को अपने पापों के लिए स्वयं नया जन्म
लेना होता है। जो भी प्रभु यीशु पर स्वेच्छा तथा सच्चे मन से विश्वास करके, उनसे
अपने पापों के लिए स्वयं क्षमा मांगता है, अपना जीवन उन्हें समर्पित कर के, उनका
शिष्य होकर, उनकी आज्ञाकारिता में जीवन व्यतीत करने की ठान लेता है, केवल वही
पापों से क्षमा प्राप्त करके उनके दुष्परिणामों से बचाया जाता, अर्थात उद्धार पाता
है, और परमेश्वर की संतान होने, तथा उसके साथ अनन्त काल के लिए स्वर्ग में रहने का
आदर प्राप्त करता है “क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु
मसीह यीशु में अनन्त जीवन है” (रोमियों 6:23)।
यही उद्धार या बचाया जाना है - पापों से मुक्ति तथा मृत्यु,
अर्थात पापों के कारण मिलने वाली नरक की अनन्त घोर पीड़ा, और परमेश्वर से सदा काल
के लिए पृथक होने, से निकलकर प्रभ यीशु मसीह पर लाए गए विश्वास के द्वारा परमेश्वर
के साथ अनन्त काल के परमानन्द के अनन्त जीवन में प्रवेश करना।
इसलिए उद्धार प्राप्त करने के लिए, परमेश्वर के एकमात्र
सच्चे, अचूक और अटल, दोषरहित, और अपरिवर्तनीय वचन – बाइबल के अतिरिक्त किसी अन्य
पर लेश-मात्र भी भरोसा न करें, और अपने अनन्तकाल को सुरक्षित कर लेने के लिए ऊपर
दिए गए कदम को विश्वास के साथ उठाएं। यह करने से आपके पास खो देने के लिए सिवाय
आपके पापों और नरक में अनन्तकाल के अतिरक्त और कुछ नहीं है, वरन आपके पास अनन्तकाल
के लिए स्वर्ग में पा लेने के लिए सब कुछ है। आप यह अभी इसी समय कर सकते हैं; आपको
इसके लिए किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति अथवा सहायता की भी कोई आवश्यकता नहीं है।
नया जन्म या उद्धार पाने के लिए आपको बस
सच्चे समर्पित मन से, एक सीधी सी प्रार्थना करनी है, जो कुछ इस प्रकार से हो सकती
है, “प्रभु यीशु मैं आप में तथा आपके द्वारा कलवरी के क्रूस पर मेरे पापों की कीमत
चुकाए जाने में विश्वास करता हूँ। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, और मुझे
स्वीकार कर लें। मैं अपना जीवन आपको पूर्णतः समर्पित करता हूँ। कृपया मेरी सहायता
करें की मैं अपना जीवन आपकी तथा आपके वचन – बाइबल की आज्ञाकारिता में व्यतीत कर
सकूँ।” बस इतना ही, कोई रीति-रिवाज़ नहीं, किसी प्रकार के कोई कर्म या कार्य नहीं,
किसी व्यक्ति के प्रति किसी भी प्रकार की कोई कृतज्ञता नहीं, बस सच्चे मन और खराई
से, सामान्य विश्वास के द्वारा, प्रभु यीशु के साथ संबंध में आ जाना।
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