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शुक्रवार, 27 मार्च 2020

उद्धार तथा पाप से मुक्ति – क्या और कैसे?



उद्धार प्राप्त करने का अर्थ है पाप के दुष्परिणामों – अनन्त काल की मृत्यु, अर्थात पृथ्वी के इस जीवन के उपरान्त अनन्त काल के लिए परमेश्वर से दूर हो कर नरक में, जहां से कभी कोई लौट कर वापस नहीं आ सकता है “और इन सब बातों को छोड़ हमारे और तुम्हारे बीच एक भारी गड़हा ठहराया गया है कि जो यहां से उस पार तुम्हारे पास जाना चाहें, वे न जा सकें, और न कोई वहां से इस पार हमारे पास आ सके” (लूका 16:26), चले जाने से बच जाना। बचाए जाने का अर्थ प्रभु यीशु मसीह में होकर अनन्त काल के लिए परमेश्वर के सम्मुख धर्मी ठहरना और परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप  हो जाना है “सो जब हम विश्वास से धर्मी ठहरे, तो अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल रखें।” “क्योंकि बैरी होने की दशा में तो उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्वर के साथ हुआ फिर मेल हो जाने पर उसके जीवन के कारण हम उद्धार क्यों न पाएंगे?” (रोमियों 5:1, 10)। उद्धार पाने या बचाए जाने के साथ ही प्राप्त होने वाले अन्य लाभ हैं परमेश्वर की संतान बन जाना “परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। वे न तो लोहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं” (यूहन्ना 1:12-13), तथा मसीह यीशु के संगी वारिस बन जाना “और यदि सन्तान हैं, तो वारिस भी, वरन परमेश्वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं, जब कि हम उसके साथ दुख उठाएं कि उसके साथ महिमा भी पाएं” (रोमियों 8:17)।

प्रत्येक मनुष्य पाप करने के स्वभाव और प्रवृति के साथ जन्म लेता है “मनुष्य है क्या कि वह निष्कलंक हो? और जो स्त्री से उत्पन्न हुआ वह है क्या कि निर्दोष हो सके?” (अय्यूब 15:14); और “देख, मैं अधर्म के साथ उत्पन्न हुआ, और पाप के साथ अपनी माता के गर्भ में पड़ा” (भजन 51:5)। पाप करना और अधर्मी होना हमारे अन्दर जन्म से विद्यमान प्रवृत्ति है जो हमारे आदि माता-पिता हव्वा और आदम के पाप के परिणामस्वरूप मनुष्य जाति में वंशानुगत रीति से है “इसलिये जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिये कि सब ने पाप किया” (रोमियों 5:12)। जैसे कि एक डूबता हुआ मनुष्य अपने सिर के बालों से अपने आप को खींच कर स्वयं को पानी से बाहर नहीं निकाल सकता है, वैसे ही पाप से अपवित्र एवं अशुद्ध मनुष्य अपने किसी भी प्रयास से अपने आप को पवित्र एवं शुद्ध नहीं कर सकता है हम तो सब के सब अशुद्ध मनुष्य के से हैं, और हमारे धर्म के काम सब के सब मैले चिथड़ों के समान हैं। हम सब के सब पत्ते के समान मुर्झा जाते हैं, और हमारे अधर्म के कामों ने हमें वायु के समान उड़ा दिया है(यशायाह 64:6)। जैसे उस डूबते हुए मनुष्य को बचने के लिए बाहर से किसी की सहायता चाहिए होती है, उसी प्रकार से पाप में डूबे हुए मनुष्य को भी पाप से उभरने के लिए पाप से बाहर के किसी की सहायता की आवश्यकता होती है “जूफा से मुझे शुद्ध कर, तो मैं पवित्र हो जाऊंगा; मुझे धो, और मैं हिम से भी अधिक श्वेत बनूंगा” (भजन 51:7)।

पवित्र एवं निष्पाप परमेश्वर पाप के साथ संगति या समझौता नहीं कर सकता है – यह उसके स्वभाव तथा चरित्र के प्रतिकूल है “जब तुम मेरी ओर हाथ फैलाओ, तब मैं तुम से मुंह फेर लूंगा; तुम कितनी ही प्रार्थना क्यों न करो, तौभी मैं तुम्हारी न सुनूंगा; क्योंकि तुम्हारे हाथ खून से भरे हैं। परन्तु तुम्हारे अधर्म के कामों ने तुम को तुम्हारे परमेश्वर से अलग कर दिया है, और तुम्हारे पापों के कारण उस का मुँह तुम से ऐसा छिपा है कि वह नहीं सुनता।” “वे उस समय यहोवा की दोहाई देंगे, परन्तु वह उनकी न सुनेगा, वरन उस समय वह उनके बुरे कामों के कारण उन से मुंह फेर लेगा” (यशायाह 1:15; 59:2; मीका 3:4)। किन्तु वह अपनी सर्वश्रेष्ठ सृष्टि, मनुष्य, से बहुत प्रेम करता है और उस के साथ संगति रखना चाहता है – यद्यपि मनुष्य अब पाप में गिर चुका है। परमेश्वर न केवल प्रेमी है, वरन वह न्यायी भी है। वह पाप की यूं ही अनदेखी नहीं कर सकता है, परमेश्वर के न्याय की मांग है कि प्रत्येक पापी को अपने ही पाप के लिए परमेश्वर द्वारा निर्धारित दण्ड – मृत्य, अर्थात उससे पृथक हो जाने को सहना ही होगा “देखो, सभों के प्राण तो मेरे हैं; जैसा पिता का प्राण, वैसा ही पुत्र का भी प्राण है; दोनों मेरे ही हैं। इसलिये जो प्राणी पाप करे वही मर जाएगा। जो प्राणी पाप करे वही मरेगा, न तो पुत्र पिता के अधर्म का भार उठाएगा और न पिता पुत्र का; धर्मी को अपने ही धर्म का फल, और दुष्ट को अपनी ही दुष्टता का फल मिलेगा” (यहेजकेल 18:4, 20)। यदि मनुष्य को यह दण्ड सहना पड़े, तो फिर वह परमेश्वर के साथ संगति में कभी लौटने नहीं पाएगा; किन्तु परमेश्वर, अपने बड़े प्रेम के कारण, मनुष्य से संगति रखना चाहता है।

इस असंभव प्रतीत होने वाली विडंबना का समाधान भी परमेश्वर ने ही बनाया, जिससे उसके न्याय की मांग भी पूरी हो जाए और वह मनुष्य के साथ संगति भी रख सके। परमेश्वर ने स्वयं मनुष्य बनकर इस पृथ्वी पर प्रभु यीशु मसीह के रूप में जन्म लिया “आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था। और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण हो कर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उस की ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा” (यूहन्ना 1:1, 14), और एक सामान्य मनुष्य के समान जीवन जीते हुए भी एक निष्पाप तथा निष्कलंक जीवन बिताया “क्योंकि हमारा ऐसा महायाजक नहीं, जो हमारी निर्बलताओं में हमारे साथ दुखी न हो सके; वरन वह सब बातों में हमारी समान परखा तो गया, तौभी निष्‍पाप निकला।” “सो ऐसा ही महायाजक हमारे योग्य था, जो पवित्र, और निष्‍कपट और निर्मल, और पापियों से अलग, और स्वर्ग से भी ऊंचा किया हुआ हो” (इब्रानियों 4:15; 7:26); “न तो उसने पाप किया, और न उसके मुंह से छल की कोई बात निकली” (1 पतरस 2:22); “और तुम जानते हो, कि वह इसलिये प्रगट हुआ, कि पापों को हर ले जाए; और उसके स्‍वभाव में पाप नहीं” (1 यूहन्ना 3:5)। प्रभु यीशु ने कभी कोई भी पाप नहीं किया, वे आजीवन पाप से अनजान रहे। फिर भी, प्रभु यीशु ने समस्त मानवजाति के सभी पापों को अपने ऊपर ले लिया, संसार के सभी मनुष्यों के पाप को अपना कर वे सभी मनुष्यों के लिए कलवारी के क्रूस पर पाप बन गए “जो पाप से अज्ञात था, उसी को उसने हमारे लिये पाप ठहराया, कि हम उस में हो कर परमेश्वर की धामिर्कता बन जाएं” (2 कुरिन्थियों 5:21), और मनुष्यों के स्थान पर उन्होंने स्वयं मृत्यु “क्योंकि मसीह का प्रेम हमें विवश कर देता है; इसलिये कि हम यह समझते हैं, कि जब एक सब के लिये मरा तो सब मर गए। और वह इस निमित्त सब के लिये मरा, कि जो जीवित हैं, वे आगे को अपने लिये न जीएं परन्तु उसके लिये जो उन के लिये मरा और फिर जी उठा” (2 कुरिन्थियों 5:14-15); तथा परमेश्वर से दूर होने को सह लिया “तीसरे पहर के निकट यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, एली, एली, लमा शबक्तनी अर्थात हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?” (मत्ती 27:46)। उन्होंने स्वेच्छा से तथा सब कुछ जानते हुए क्रूस पर अपना बलिदान दिया “पिता इसलिये मुझ से प्रेम रखता है, कि मैं अपना प्राण देता हूं, कि उसे फिर ले लूं। कोई उसे मुझ से छीनता नहीं, वरन मैं उसे आप ही देता हूं: मुझे उसके देने का अधिकार है, और उसे फिर लेने का भी अधिकार है: यह आज्ञा मेरे पिता से मुझे मिली है” (यूहन्ना 10:17-18)। वे मारे गए, गाड़े गए, और तीसरे दिन मृतकों में से जी उठ कर अपने ईश्वरत्व को प्रमाणित किया “उसी को, जब वह परमेश्वर की ठहराई हुई मनसा और होनहार के ज्ञान के अनुसार पकड़वाया गया, तो तुम ने अधर्मियों के हाथ से उसे क्रूस पर चढ़वा कर मार डाला। परन्तु उसी को परमेश्वर ने मृत्यु के बन्‍धनों से छुड़ाकर जिलाया: क्योंकि यह अनहोना था कि वह उसके वश में रहता।” “क्योंकि उसने एक दिन ठहराया है, जिस में वह उस मनुष्य के द्वारा धर्म से जगत का न्याय करेगा, जिसे उसने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रामाणित कर दी है” (प्रेरितों 2:23-24; 17:31)।

क्योंकि केवल प्रभु यीशु ही हैं जिन्होंने मानवजाति के पापों का स्थाई और उचित समाधान प्रदान किया है, इसलिए मनुष्यों के लिए उद्धार भी केवल प्रभु यीशु मसीह में हो कर ही है, किसी अन्य के द्वारा नहीं, “और किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिस के द्वारा हम उद्धार पा सकें” (प्रेरितों 4:12)। अब संसार के सभी मनुष्यों के लिए प्रभु यीशु द्वारा कलवारी के क्रूस पर किए गए कार्य के द्वारा उद्धार का मार्ग खुला है, और यह सभी के लिए मुफ्त में उपलब्ध भी है “पर जैसा अपराध की दशा है, वैसी अनुग्रह के वरदान की नहीं, क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध से बहुत लोग मरे, तो परमेश्वर का अनुग्रह और उसका जो दान एक मनुष्य के, अर्थात यीशु मसीह के अनुग्रह से हुआ बहुतेरे लागों पर अवश्य ही अधिकाई से हुआ। और जैसा एक मनुष्य के पाप करने का फल हुआ, वैसा ही दान की दशा नहीं, क्योंकि एक ही के कारण दण्ड की आज्ञा का फैसला हुआ, परन्तु बहुतेरे अपराधों से ऐसा वरदान उत्पन्न हुआ, कि लोग धर्मी ठहरे। क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध के कारण मृत्यु ने उस एक ही के द्वारा राज्य किया, तो जो लोग अनुग्रह और धर्म रूपी वरदान बहुतायत से पाते हैं वे एक मनुष्य के, अर्थात यीशु मसीह के द्वारा अवश्य ही अनन्त जीवन में राज्य करेंगे। इसलिये जैसा एक अपराध सब मनुष्यों के लिये दण्ड की आज्ञा का कारण हुआ, वैसा ही एक धर्म का काम भी सब मनुष्यों के लिये जीवन के निमित धर्मी ठहराए जाने का कारण हुआ” (रोमियों 5:15-18)।

अब अपने पापों से क्षमा तथा उद्धार पाने के लिए किसी भी मनुष्य को प्रभु यीशु पर विश्वास करके, उनसे अपने पापों की क्षमा मांगकर अपना जीवन उन्हें समर्पित करने के अतिरिक्त और कुछ भी करने की कोई भी आवश्यकता नहीं है “उन्होंने कहा, प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा” (प्रेरितों 16:31)। उद्धार हर किसी के लिए, वह चाहे किसी भी धर्म (चाहे वे इसाई धर्म का पालन करने वाले ही क्यों न हों), जाति, स्थान, रंग, शिक्षा, सांसारिक स्तर, या कुछ भी, कोई भी हो – केवल स्वयं पश्चाताप, अर्थात अपने पापी होने और पाप के दुष्परिणामों का सच्चे मन से एहसास करके, अपने पापों को स्वीकार करने, तथा स्वेच्छा से प्रभु यीशु से उन पापों के लिए क्षमा मांगने और उसे अपना जीवन समर्पित करने के द्वारा ही संभव है “पतरस ने उन से कहा, मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले; तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे” (प्रेरितों 2:38), अन्यथा नहीं । उद्धार पाने या बचाए जाने को ही नया जन्म पाना भी कहते हैं – सांसारिक और नश्वर जीवन में से निकल कर आत्मिक और अविनाशी जीवन में जन्म ले लेना; और बिना नया जन्म पाए कोई भी स्वर्ग में न तो प्रवेश कर सकता है और न ही उसे देख भी सकता है “यीशु ने उसको उत्तर दिया; कि मैं तुझ से सच सच कहता हूं, यदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता। नीकुदेमुस ने उस से कहा, मनुष्य जब बूढ़ा हो गया, तो क्योंकर जन्म ले सकता है? क्या वह अपनी माता के गर्भ में दुसरी बार प्रवेश कर के जन्म ले सकता है? यीशु ने उत्तर दिया, कि मैं तुझ से सच सच कहता हूं; जब तक कोई मनुष्य जल और आत्मा से न जन्मे तो वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता” (यूहन्ना 3:3-5); “हे भाइयों, मैं यह कहता हूं कि मांस और लोहू परमेश्वर के राज्य के अधिकारी नहीं हो सकते, और न विनाश अविनाशी का अधिकारी हो सकता है।” “क्योंकि अवश्य है, कि यह नाशमान देह अविनाश को पहिन ले, और यह मरनहार देह अमरता को पहिन ले। और जब यह नाशमान अविनाश को पहिन लेगा, और यह मरनहार अमरता को पहिन लेगा, तब वह वचन जो लिखा है, पूरा हो जाएगा, कि जय ने मृत्यु को निगल लिया” (1 कुरिन्थियों 15:50,53-54)। यह उद्धार अर्थात बचाया जाना या नया जन्म प्राप्त करना किसी धर्म का पालन करने से अथवा परिवार के अनुसार मिलने वाली, या उत्तराधिकार में प्राप्त होने वाली, या वंशागत बात नहीं है; और न ही यह किन्हीं कर्मों को करने या कोई रीति-रिवाज़ पूरे करने अथवा परंपराओं या विधि-विधानों के निर्वाह द्वारा होता है, यह केवल परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा और विश्वास, केवल मसीह यीशु में विश्वास से ही संभव है “जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे, तो हमें मसीह के साथ जिलाया; (अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है।) और मसीह यीशु में उसके साथ उठाया, और स्‍वर्गीय स्थानों में उसके साथ बैठाया। कि वह अपनी उस कृपा से जो मसीह यीशु में हम पर है, आने वाले समयों में अपने अनुग्रह का असीम धन दिखाए। क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है। और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्‍ड करे” (इफिसियों 2:5-9)।

प्रत्येक व्यक्ति को अपने पापों के लिए स्वयं नया जन्म लेना होता है। जो भी प्रभु यीशु पर स्वेच्छा तथा सच्चे मन से विश्वास करके, उनसे अपने पापों के लिए स्वयं क्षमा मांगता है, अपना जीवन उन्हें समर्पित कर के, उनका शिष्य होकर, उनकी आज्ञाकारिता में जीवन व्यतीत करने की ठान लेता है, केवल वही पापों से क्षमा प्राप्त करके उनके दुष्परिणामों से बचाया जाता, अर्थात उद्धार पाता है, और परमेश्वर की संतान होने, तथा उसके साथ अनन्त काल के लिए स्वर्ग में रहने का आदर प्राप्त करता है “क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है” (रोमियों 6:23)।

यही उद्धार या बचाया जाना है - पापों से मुक्ति तथा मृत्यु, अर्थात पापों के कारण मिलने वाली नरक की अनन्त घोर पीड़ा, और परमेश्वर से सदा काल के लिए पृथक होने, से निकलकर प्रभ यीशु मसीह पर लाए गए विश्वास के द्वारा परमेश्वर के साथ अनन्त काल के परमानन्द के अनन्त जीवन में प्रवेश करना।

इसलिए उद्धार प्राप्त करने के लिए, परमेश्वर के एकमात्र सच्चे, अचूक और अटल, दोषरहित, और अपरिवर्तनीय वचन – बाइबल के अतिरिक्त किसी अन्य पर लेश-मात्र भी भरोसा न करें, और अपने अनन्तकाल को सुरक्षित कर लेने के लिए ऊपर दिए गए कदम को विश्वास के साथ उठाएं। यह करने से आपके पास खो देने के लिए सिवाय आपके पापों और नरक में अनन्तकाल के अतिरक्त और कुछ नहीं है, वरन आपके पास अनन्तकाल के लिए स्वर्ग में पा लेने के लिए सब कुछ है। आप यह अभी इसी समय कर सकते हैं; आपको इसके लिए किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति अथवा सहायता की भी कोई आवश्यकता नहीं है। नया जन्म या उद्धार पाने  के लिए आपको बस सच्चे समर्पित मन से, एक सीधी सी प्रार्थना करनी है, जो कुछ इस प्रकार से हो सकती है, “प्रभु यीशु मैं आप में तथा आपके द्वारा कलवरी के क्रूस पर मेरे पापों की कीमत चुकाए जाने में विश्वास करता हूँ। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, और मुझे स्वीकार कर लें। मैं अपना जीवन आपको पूर्णतः समर्पित करता हूँ। कृपया मेरी सहायता करें की मैं अपना जीवन आपकी तथा आपके वचन – बाइबल की आज्ञाकारिता में व्यतीत कर सकूँ।” बस इतना ही, कोई रीति-रिवाज़ नहीं, किसी प्रकार के कोई कर्म या कार्य नहीं, किसी व्यक्ति के प्रति किसी भी प्रकार की कोई कृतज्ञता नहीं, बस सच्चे मन और खराई से, सामान्य विश्वास के द्वारा, प्रभु यीशु के साथ संबंध में आ जाना।

मंगलवार, 13 अगस्त 2019

क्या विश्वास से भटकने अथवा पीछे हटने वाले स्वर्ग जाएँगे?



प्रश्न:
एक बार जो व्यक्ति उद्धार पा गया तो क्या वह विश्वास से भटक जाने के बाद स्वर्ग जाएगा?

उत्तर:
जिसने भी उद्धार पाया है, अर्थात, स्वेच्छा तथा सच्चे मन से, अपने पापों से पश्चाताप करके, प्रभु यीशु मसीह को अपना निज उद्धारकर्ता स्वीकार किया है, उससे अपने पापों की क्षमा माँगी है, और अपना जीवन उसे समर्पित किया है, परमेश्वर के अनुग्रह से केवल वही व्यक्ति स्वर्ग जाएगा – लेकिन मनुष्य की वास्तवक आत्मिक दशा केवल परमेश्वर ही जानता है, इसलिए कौन स्वर्ग जाएगा और कौन नहीं, इसका निर्धारण केवल परमेश्वर ही कर सकता है, और कोई नहीं।

परमेश्वर के वचन, बाइबल के अनुसार, यह बिलकुल स्पष्ट और स्थापित है कि उद्धार सदा काल के लिए है अर्थात ‘eternal’ है। इब्रानियों की पत्री का लेखक, प्रभु यीशु मसीह के द्वारा मनुष्यों को उद्धार प्रदान करने के लिए किए गए कार्यों के विषय लिखता है, “और पुत्र होने पर भी, उसने दुख उठा उठा कर आज्ञा माननी सीखी। और सिद्ध बन कर, अपने सब आज्ञा मानने वालों के लिये सदा काल के उद्धार (eternal salvation) का कारण हो गया” (इब्रानियों 5:8-9)। प्रभु यीशु मसीह ने भी कहा कि उस पर विश्वास लाए हुए उसके लोगों को वह अनन्त जीवन (अर्थात कभी समाप्त न होने वाला अक्षय जीवन, eternal life) प्रदान करता है, तथा साथ ही यह आश्वासन भी दिया कि कोई भी प्रभु या परमेश्वर के हाथों से उन अनन्त जीवन पाए हुओं को नहीं छीन सकता है (यूहन्ना 10:27-29) – प्रभु का यह वायदा बहुत ही गंभीर एवं बहुत महत्वपूर्ण तात्पर्य रखने वाला कथन है। प्रभु के इस वायदे के आधार पर, उद्धार खो देने का अभिप्राय होता है कि, शैतान ने किसी विधि से उन उद्धार पाए हुए व्यक्तियों को प्रभु या परमेश्वर के हाथ से छीन कर फिर से अपनी आधीनता में ले लिया है। यदि किसी भी प्रकार यह संभव होता, तो फिर तीन असंभव बातें संभव हो जाती हैं – पहली यह कि शैतान परमेश्वर से अधिक शक्तिशाली है; दूसरी यह प्रभु यीशु ने झूठ बोला, उसने झूठा आश्वासन दिया कि कोई भी उद्धार पाए हुओं को उसके या परमेश्वर पिता के हाथों से छीन नहीं सकता है; और तीसरी यह कि प्रभु को न शैतान की, न अपनी और न परमेश्वर की शक्ति की वास्तविकताओं का पता है, और वह यूं ही कुछ भी कहे जा रहा है! क्योंकि यह हो पाना पूर्णतः असंभव है, इसलिए प्रगट है कि कोई भी व्यक्ति, जिसने वास्तव में उद्धार पाया है, वह यूहन्ना 10:27-29 के आधार पर अपना उद्धार कभी भी नहीं खो सकता है। और क्योंकि उद्धार पाए हुओं पर दण्ड की कोई आज्ञा नहीं है (रोमियों 8:1), इसलिए जो वास्तव में उद्धार पाए हुए हैं, वे स्वर्ग में अवश्य ही प्रवेश करेंगे, चाहे विश्वास में उनकी परिपक्वता एवं स्थिति का स्तर कुछ भी क्यों न हो।

किन्तु यह बात केवल परमेश्वर ही जानता है कि कौन वास्तविक मसीही विश्वासी है और कौन नहीं। उदाहरण के लिए युहूदा इस्करियोती को ही लीजिए; वह प्रभु द्वारा बुलाया गया, प्रभु के साथ रहा, प्रभु से शिक्षा पाई, प्रभु की सामर्थ्य और निर्देशन द्वारा, अन्य शिष्यों के साथ सुसमाचार प्रचार पर भी गया और उनके साथ मिलकर प्रचार किया, आश्चर्यकर्म भी किए, किन्तु अन्त में वह प्रभु के द्वारा विनाश का पुत्रऔर नाश होने वालाकहा गया (यूहन्ना 17:12), और अनन्त विनाश में चला गया। प्रभु यीशु मसीह ने भी अपने पहाड़ी प्रचार के अन्त में कहा है कि हर कोई जो उन्हें हे प्रभुकहता है, वह स्वर्ग में प्रवेश नहीं करेगा, चाहे उन्होंने प्रभु के नाम में कई प्रकार के प्रचार, आश्चर्यकर्म, तथा अद्भुत एवँ उल्लेखनीय कार्य ही क्यों न किए हों – प्रभु ने उन लोगों के इन कामों को ‘कुकर्म’ कहा ; स्वर्ग में केवल वे ही प्रवेश करेंगे जो परमेश्वर पिता के आज्ञाकारी रहते हैं और परमेश्वर की इच्छे के अनुसार कार्य करते हैं (मत्ती 7:21-23)। इसलिए लोगों के प्रगट व्यवहार, प्रचार, और कार्यों के आधार पर हम किसी भी मनुष्य के विषय यह निश्चित नहीं कह सकते हैं कि प्रभु में विश्वास रखने का दावा करने और उसके नाम से प्रचार और कार्य करने वाला प्रत्येक व्यक्ति वास्तव में उद्धार पाया हुआ है भी कि नहीं! पौलुस ने भी इस बात के विषय सचेत किया और समझाया कि शैतान और उसके दूत भी ज्योतिर्मय स्वर्गदूतों और मसीह के प्रेरितों का स्वरूप धारण कर के लोगों को बहकाते हैं (2 कुरिन्थियों 11:3, 13-15)। इसलिए व्यक्ति के उद्धार पाया हुआ होने की वास्तविकता तो केवल परमेश्वर ही जानता है, और वही इसका निर्णय कर सकता है, तथा करता है।

साथ ही, बाइबल यह भी कहती है कि ऐसे भी मसीही विश्वासी पाए जाएँगे जो सच्चे मन से पश्चाताप करके प्रभु के पास तो आए, वे वास्तव में उद्धार पाए हुए भी थे, किन्तु उन्होंने प्रभु के लिए ऐसा कुछ नहीं किया जो जांचे जाने पर प्रतिफल दिए जाने के योग्य स्वीकार किया जाता। जब न्याय के समय उनके काम जांचे जाएँगे, तो वे उद्धार पाया हुआ होने के कारण स्वर्ग में तो प्रवेश करेंगे, परन्तु छूछे हाथ, बिना कुछ भी प्रतिफल लिए, और अनन्त-काल तक फिर ऐसे ही छूछे हाथ ही रहेंगे (1 कुरिन्थियों 3:9-15)। सँसार के सभी लोगों के समान, किए गए कर्मों के अनुसार, न्याय तो मसीही विश्वासियों का भी होगा, वरन न्याय आरंभ ही मसीही विश्वासियों से होगा (1 पतरस 4:17-18), परन्तु मसीही विश्वासियों का यह न्याय उनके उद्धार पाने के लिए नहीं, वरन अनन्तकाल के लिए उनके कर्मों के आधार पर उन्हें प्रतिफल दिए जाने के लिए होगा – उद्धार कर्मों के आधार पर नहीं है, परन्तु प्रतिफल कर्मों के आधार पर हैं। उद्धार तो केवल पापों से पश्चाताप और प्रभु यीशु पर लाए विश्वास के आधार पर परमेश्वर के अनुग्रह ही से है; किसी भी या कैसे भी कामों, अथवा प्रथाओं, या रीति-रिवाजों, या अनुष्ठानों/विधि-विधानों आदि के पालन के द्वारा कदापि नहीं है (इफिसियों 2:1-9)।

ऐसे भी अनेकों लोग हैं जो मसीही विश्वास में आने के पश्चात, किसी कारणवश विश्वास से भटक गए, परन्तु प्रभु ने अपने वायदे (इब्रानियों 13:5) के अनुसार, उन्हें कभी छोड़ा नहीं। देर-सवेर, किसी न किसी रीति से, प्रभु उन्हें फिर विश्वास में लौटा कर ले आया, और फिर वे बहुत सामर्थी होकर प्रभु के लिए इस्तेमाल हुए, विश्वास में अपने लौट कर आने की गवाही के द्वारा वे अनेकों अन्य भटके हुए या कमज़ोर विश्वासियों के लिए प्रोत्साहन और हिम्मत का कारण बने। यदि आज के संदर्भ से देखें, तो जब प्रभु यीशु ने कलवारी के क्रूस पर समस्त सँसार के पापों का दण्ड अपने ऊपर लिया, उस समय तो हमारा कोई भौतिक अस्तित्व था ही नहीं। साथ ही बाइबल में कहीं यह नहीं लिखा है कि प्रभु ने लोगों के केवल उन ही पापों को अपने ऊपर लेकर उनके दण्ड को सहा जो लोगों ने प्रभु के पास आने – अर्थात, उद्धार पाने से पहले किए थे; और उन लोगों के उद्धार पाने के बाद के पापों का निवारण प्रभु ने उन लोगों के हाथों में, उनके द्वारा किए गए कर्मों पर छोड़ दिया – यह तो असंभव है – उद्धार का एक भाग परमेश्वर के अनुग्रह पर, और दूसरा भाग मनुष्यों के कर्मों के आधार पर कैसे हो सकता है? प्रभु ने तो प्रत्येक व्यक्ति के समस्त जीवन में किए गए समस्त पापों की पूरी-पूरी कीमत क्रूस पर पहले ही चुका दी है, चाहे इतिहास में उसका अस्तित्व कभी भी हो। प्रभु ने उसके पापों के दुष्परिणाम से उस व्यक्ति के अधूरे नहीं परन्तु संपूर्ण निवारण का मार्ग बना कर दे दिया है; अब किसी भी मनुष्य के लिए उद्धार का जीवन जीने के लिए कुछ भी करना शेष नहीं रहा है। जब व्यक्ति के जन्म से लेकर उसके मरण के समय तक के सभी पापों को प्रभु ने अपने ऊपर ले लिया, उनकी पूरी कीमत चुका दी, तो फिर उस व्यक्ति को स्वर्ग जाने से रोकने वाला कौन सा पाप बच गया? क्या उसके विश्वास से भटक जाने का पाप भी उसके जीवन के अन्य पापों में सम्मिलित नहीं है, जिसकी कीमत प्रभु द्वारा कलवारी के क्रूस पर चुकाई जा चुकी है? 

और यदि यह मान लिया जाए कि व्यक्ति उद्धार पाने के बाद अपने जीवन की शुद्धता और पवित्रता, तथा निष्पाप रहने को अपने ही प्रयासों, कार्यों, और सामर्थ्य से बनाए रख सकता है, तो फिर वह यही कार्य उद्धार पाने से पहले भी कर सकता था – फिर तो प्रभु का आना न केवल व्यर्थ हो गया, वरन पापी, मरणहर मनुष्य, प्रभु परमेश्वर से भी बढ़कर हो गया! क्योंकि फिर तो मनुष्य मात्र अपने कर्मों से ही वह कर सकने की क्षमता रखता है जिसके लिए प्रभु को स्वर्ग छोड़कर धरती पर मनुष्य रूप में आना पड़ा, दुःख और अपमान सहना पड़ा, और अपनी जान देनी पड़ी – यह तो पूर्णतः असंगत और असंभव विचार है! फिर, ऐसा कौन सा उद्धार पाया हुआ व्यक्ति है जो सच्चे मन से कहा सकता है कि उद्धार पाने के बाद उससे कभी भी – शरीर, मन, ध्यान, विचार में, कोई भी पाप नहीं हुआ? प्रेरित यूहन्ना कहता है: “यदि हम कहें, कि हम में कुछ भी पाप नहीं, तो अपने आप को धोखा देते हैं: और हम में सत्य नहीं। यदि कहें कि हम ने पाप नहीं किया, तो उसे झूठा ठहराते हैं, और उसका वचन हम में नहीं है” (1 यूहन्ना 1:8, 10) – ध्यान कीजिए कि वह प्रेरित और उद्धार पाया हुआ होने के बावजूद, “हम” शब्द के प्रयोग द्वारा, अपने आप को भी पाप करने वालों में सम्मिलित कर रहा है। तो फिर अब विश्वास से भटके और न भटके हुए में क्या अन्तर रह गया? पाप विश्वास से भटकने वाले ने भी किया, और पाप उन्होंने भी किया है और करते हैं जो अभी भी विश्वास में बने हुए हैं – और क्योंकि पाप की मजदूरी मृत्यु है (रोमियों 6:23), इसलिए दोनों ही समान स्थिति में हैं, और दोनों ही अपने कैसे भी कार्यों या कर्मों के द्वारा अथवा उनके आधार पर नहीं वरन प्रभु के अनुग्रह, क्षमा, और प्रेम द्वारा ही परमेश्वर के सम्मुख धर्मी ठहरते हैं, और दोनों ही फिर स्वर्ग जाने के लिए प्रभु के अनुग्रह और क्षमा द्वारा ही स्वीकार्य माने जाते हैं।

इसलिए ऐसे लोगों के लिए जो विश्वास से भटक गए हैं प्रार्थना करते रहना चाहिए, न कि उनकी भर्त्सना करनी चाहिए; और उनका विश्वास में लौट कर आना तथा प्रभु के लिए उपयोगी होना प्रभु के हाथों में, उसके समय और योजना के अनुसार, पूरा होने के लिए छोड़ देना चाहिए।

शनिवार, 15 जून 2019

बाइबिल के अनुसार मोक्ष क्या है तथा मोक्ष कैसे प्राप्त कर सकते हैं?


मनुष्य की आत्मिक दशा, उसके निवारण तथा समाधान के विषय परमेश्वर के वचन बाइबल के कुछ पद देखिए, जो पौलुस प्रेरित द्वारा रोम के मसीही विश्वासियों को लिखी गए पत्र में से लिए गए हैं:

रोमियों 2:20-30 :-

Romans 3:20 क्योंकि व्यवस्था के कामों से कोई प्राणी उसके साम्हने धर्मी नहीं ठहरेगा, इसलिये कि व्यवस्था के द्वारा पाप की पहिचान होती है।
Romans 3:21 पर अब बिना व्यवस्था परमेश्वर की वह धामिर्कता प्रगट हुई है, जिस की गवाही व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता देते हैं।
Romans 3:22 अर्थात परमेश्वर की वह धामिर्कता, जो यीशु मसीह पर विश्वास करने से सब विश्वास करने वालों के लिये है; क्योंकि कुछ भेद नहीं।
Romans 3:23 इसलिये कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं।
Romans 3:24 परन्तु उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंत मेंत धर्मी ठहराए जाते हैं।
Romans 3:25 उसे परमेश्वर ने उसके लोहू के कारण एक ऐसा प्रायश्चित्त ठहराया, जो विश्वास करने से कार्यकारी होता है, कि जो पाप पहिले किए गए, और जिन की परमेश्वर ने अपनी सहनशीलता से आनाकानी की; उन के विषय में वह अपनी धामिर्कता प्रगट करे।
Romans 3:26 वरन इसी समय उस की धामिर्कता प्रगट हो; कि जिस से वह आप ही धर्मी ठहरे, और जो यीशु पर विश्वास करे, उसका भी धर्मी ठहराने वाला हो।
Romans 3:27 तो घमण्ड करना कहां रहा उस की तो जगह ही नहीं: कौन सी व्यवस्था के कारण से? क्या कर्मों की व्यवस्था से? नहीं, वरन विश्वास की व्यवस्था के कारण।
Romans 3:28 इसलिये हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं, कि मनुष्य व्यवस्था के कामों के बिना विश्वास के द्वारा धर्मी ठहरता है।
Romans 3:29 क्या परमेश्वर केवल यहूदियों ही का है? क्या अन्यजातियों का नहीं? हां, अन्यजातियों का भी है।
Romans 3:30 क्योंकि एक ही परमेश्वर है, जो खतना वालों को विश्वास से और खतना रहितों को भी विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराएगा।

बाइबल के अनुसार मनुष्य स्वभाव से ही पापी है और अपने अन्दर विद्यमान पाप करने के स्वभाव के कारण पाप करता है, न कि पाप करने के द्वारा पापी होता है। अर्थात पाप करने की प्रवृत्ति के आधीन है, जिस कारण वह परमेश्वर की संगति और जीवन से दूर है – क्योंकि पाप मनुष्य को परमेश्वर से दूर करता है: “परन्तु तुम्हारे अधर्म के कामों ने तुम को तुम्हारे परमेश्वर से अलग कर दिया है, और तुम्हारे पापों के कारण उस का मुँह तुम से ऐसा छिपा है कि वह नहीं सुनता” (यशायाह 59:2)। परमेश्वर से यह दूरी ही मृत्यु, अर्थात नरक में परमेश्वर से अनन्तकाल की दूरी की दशा है। जिस प्रकार पानी में डूबता हुआ मनुष्य अपने ही सिर या बालों को पकड़ कर अपने आप को पानी से बाहर नहीं खींच सकता है, उसे किसी अन्य की सहायता की आवश्यकता होती है; उसी प्रकार पाप में पड़ा हुआ मनुष्य अपने कर्मों से न तो अपने पापों के दुष्परिणामों से बच सकता है और न ही परमेश्वर की धार्मिकता तथा पवित्रता के स्तर तक पहुँच सकता है। मनुष्य की सारी धार्मिकता परमेश्वर की दृष्टि में मैले चिथड़ों के समान है “हम तो सब के सब अशुद्ध मनुष्य के से हैं, और हमारे धर्म के काम सब के सब मैले चिथड़ों के समान हैं। हम सब के सब पत्ते की नाईं मुर्झा जाते हैं, और हमारे अधर्म के कामों ने हमें वायु की नाईं उड़ा दिया है” (यशायाह 64:6), और अपनी आत्मिक अशुद्धता की दशा के कारण कोई भी स्वयँ से कुछ भी शुद्ध उत्पन्न करने में असमर्थ है “अशुद्ध वस्तु से शुद्ध वस्तु को कौन निकाल सकता है? कोई नहीं” (अय्यूब 14:4); “कौन कह सकता है कि मैं ने अपने हृदय को पवित्र किया; अथवा मैं पाप से शुद्ध हुआ हूं?” (नीतिवचन 20:9)। इसलिए, “फिर मनुष्य ईश्वर की दृष्टि में धमीं क्योंकर ठहर सकता है? और जो स्त्री से उत्पन्न हुआ है वह क्योंकर निर्मल हो सकता है?” (अय्यूब 25:4)।

अपने पापों के निवारण का जो कार्य मनुष्य अपने लिए नहीं कर सकता है, परमेश्वर ने मानवजाति के लिए कर के दे दिया। परमेश्वर ने मानव स्वरूप में जन्म लिया - प्रभु यीशु मसीह। प्रभु यीशु मसीह ने सँसार में मानव स्वरूप और परिस्थितियों में रहते हुए भी निष्पाप तथा निष्कलंक जीवन बिताया “क्योंकि हमारा ऐसा महायाजक नहीं, जो हमारी निर्बलताओं में हमारे साथ दुखी न हो सके; वरन वह सब बातों में हमारी नाईं परखा तो गया, तौभी निष्‍पाप निकला” (इब्रानियों 4:15)। प्रभु ने सँसार के सभी मनुष्यों के सभी पापों को अपने ऊपर ले लिया, और वह जो पाप से अनजान था अब सँसार के सभी मनुष्यों के पापों को अपने ऊपर लेकर उनके लिए पाप बन गया “जो पाप से अज्ञात था, उसी को उसने हमारे लिये पाप ठहराया, कि हम उस में हो कर परमेश्वर की धामिर्कता बन जाएं” (2 कुरिन्थियों 5:21), “मसीह ने जो हमारे लिये श्रापित बना, हमें मोल ले कर व्यवस्था के श्राप से छुड़ाया क्योंकि लिखा है, जो कोई काठ पर लटकाया जाता है वह श्रापित है” (गलातियों 3:13), “वह आप ही हमारे पापों को अपनी देह पर लिये हुए क्रूस पर चढ़ गया जिस से हम पापों के लिये मर कर के धामिर्कता के लिये जीवन बिताएं: उसी के मार खाने से तुम चंगे हुए” (1 पतरस 2:24)। और तब उस पाप की दशा में वह मृत्यु जो मनुष्यों को सहनी थी, प्रभु ने उनके स्थान पर सह ली – अर्थात संसार के सभी मनुष्यों के सभी पापों का दण्ड सह लिया या अपने ऊपर ले लिया। प्रभु ने अपना बलिदान दिया और वह क्रूस पर मारा गया, गाड़ा गया, और अपने परमेश्वरत्व तथा मृत्यु पर विजयी होने को प्रमाणित करने के लिए, सदेह तीसरे दिन फिर जी भी उठा – “इसी कारण मैं ने सब से पहिले तुम्हें वही बात पहुंचा दी, जो मुझे पहुंची थी, कि पवित्र शास्त्र के वचन के अनुसार यीशु मसीह हमारे पापों के लिये मर गया। और गाड़ा गया; और पवित्र शास्त्र के अनुसार तीसरे दिन जी भी उठा” (1 कुरिन्थियों 15:3-4)। प्रभु यीशु मसीह का जीवन, मृत्यु और मृतकों में से पुनरुत्थान महज़ धारणाएँ अथवा किंवदंतियां नहीं हैं, वरन अकाट्य और स्थापित ऐतिहासिक तथ्य हैं जिन्हें आज तक अनेकों प्रयासों के बावजूद भी कभी कोई गलत प्रामाणित नहीं कर सका है, और इनके पर्याप्त प्रमाण परमेश्वर के वचन बाइबल के बाहर भी उस समय के लेखों में उपलब्ध हैं।

क्योंकि प्रभु यीशु ने सँसार के प्रत्येक मनुष्य के लिए, वह चाहे किसी भी समय, स्थान, धर्म, जाति आदि का क्यों न हो, उसके पापों का दण्ड चुका दिया है, इसलिए अब किसी भी मनुष्य को अपने किसी भी प्रयास द्वारा अपने पापों के निवारण को खोजने की आवश्यकता नहीं है। अब जो कोई प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर के, उन से अपने पापों की क्षमा माँगता है, और प्रभु के क्रूस पर मारे जाने, गाड़े जाने और तीसरे दिन जी उठने को स्वेच्छा तथा सच्चे मन से स्वीकार करता है, अपना जीवन प्रभु यीशु मसीह को समर्पित करता है, उसे प्रभु द्वारा पापों के क्षमा मिलती है, परमेश्वर के साथ उनका मेल-मिलाप हो जाता है “सो जब हम विश्वास से धर्मी ठहरे, तो अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल रखें। जिस के द्वारा विश्वास के कारण उस अनुग्रह तक, जिस में हम बने हैं, हमारी पहुंच भी हुई, और परमेश्वर की महिमा की आशा पर घमण्ड करें” (रोमियों 5:1-2); और ऐसा व्यक्ति परमेश्वर की सन्तान, उसके घराने का सदस्य हो जाता है – “परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। वे न तो लोहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं” (यूहन्ना 1:12-13)।

यही मोक्ष या उद्धार या नया जन्म पाना है – नश्वर सांसारिक दशा और अनन्त काल के नर्क की ‘मृत्यु’ से छूटकर, परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा प्रभु यीशु मसीह में लाए गए विश्वास के द्वारा परमेश्वर की सन्तान होने और अनन्तकाल की आशीष तथा परमेश्वर की संगति एवं सुरक्षा का जीवन प्राप्त कर लेना – मृत्यु की दशा से निकलकर चिरस्थाई जीवन और आशीष की दशा में आ जाना; किन्ही कर्मों से नहीं वरन परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा, प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने से।

इफिसियों 2:1-9 :-
Ephesians 2:1 और उसने तुम्हें भी जिलाया, जो अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे।
Ephesians 2:2 जिन में तुम पहिले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा न मानने वालों में कार्य करता है।
Ephesians 2:3 इन में हम भी सब के सब पहिले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे, और शरीर, और मन की मनसाएं पूरी करते थे, और और लोगों के समान स्‍वभाव ही से क्रोध की सन्तान थे।
Ephesians 2:4 परन्तु परमेश्वर ने जो दया का धनी है; अपने उस बड़े प्रेम के कारण, जिस से उसने हम से प्रेम किया।
Ephesians 2:5 जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे, तो हमें मसीह के साथ जिलाया; (अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है।)
Ephesians 2:6 और मसीह यीशु में उसके साथ उठाया, और स्‍वर्गीय स्थानों में उसके साथ बैठाया।
Ephesians 2:7 कि वह अपनी उस कृपा से जो मसीह यीशु में हम पर है, आने वाले समयों में अपने अनुग्रह का असीम धन दिखाए।
Ephesians 2:8 क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है।
Ephesians 2:9 और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्‍ड करे। 

गुरुवार, 24 जनवरी 2019

मत्ती 25:31-46 के आधार पर, क्या उद्धार कर्मों, अर्थात भले कार्यों के द्वारा है?



इसमें लेशमात्र भी कोई संदेह या अस्पष्टता नहीं है की बाइबल के अनुसार उद्धार केवल परमेश्वर के अनुग्रह ही से है, अन्य किसी रीति से नहीं। उद्धार को किसी भी प्रकार से, कैसे भी भले कार्यो अथवा अच्छे आचरण के द्वारा 'कमाया' नहीं जा सकता है, वरन यह परमेश्वर का उपहार है, जिसे प्रभु यीशु मसीह द्वारा कलवारी के क्रूस पर किए गए कार्य के द्वारा समस्त मानव जाति के लिए सेंतमेंत उपलब्ध करवाया गया है, और उद्धार प्राप्त करने में किसी भी मनुष्य द्वारा किए गए किसी भी कार्य की कोई भी, लेशमात्र भी, भूमिका  नहीं है (इफिसियों 2:1-9, रोमियों 3:27-28)।

परमेश्वर के अनुग्रह से एक बार मिला उद्धार अनन्तकाल के लिए होता है, उसे कभी गंवाया या मिटाया नहीं जा सकता है (यूहन्ना 10:28-29), और उद्धार पाए हुए व्यक्ति अनन्तकाल तक प्रभु परमेश्वर के साथ रहेंगे (यूहन्ना 14:3)। परमेश्वर ने उद्धार पाई हुई अपनी प्रत्येक संतान के करने के लिए पहले ही से कुछ न कुछ कार्य निर्धारित करके रखे हैं (इफिसियों 2:10), और परमेश्वर की इच्छा तथा आशा है की उसकी संतान उन कार्यों को भली-भांति पूर्ण करें; और ऐसा जीवन व्यतीत करें जो उन्हें परमेश्वर से उपहार के रूप में मिले उद्धार को प्रदर्शित करता है और उसकी गवाही देता है, तथा परमेश्वर को महिमा देता है (रोमियों 6:11-14; 12:1-2; 14:7-8; 1 कुरिन्थियों 6:19-20; 2 कुरिन्थियों 5:15).

परमेश्वर द्वारा निर्धारित और मसीही विश्वासियों को सौंपे गए कार्यों को परमेश्वर के वचन और निर्देशों के अनुसार किया जाना है। मसीही विश्वासियों के सभी कार्य बहुत बारीकी से उनके स्वीकार्य एवं स्थाई बने रहने वाली गुणवत्ता के लिए जाँचे जाएंगे (1 कुरिन्थियों 3:11-15); उन कार्यों की इसी बने रहने वाली गुणवत्ता के अनुसार विश्वासियों को अनन्तकाल के लिए प्रतिफल दिए जाएंगे। कुछ विश्वासियों को तब पता चलेगा की उनके कोई भी कार्य जांच से सफलतापूर्वक नहीं निकलने पाए हैं, उनके सभी कार्यों को अस्वीकृत करके रद्द कर दिया गया है, और वे अब खाली हाथ रह गए हैं; परन्तु कार्यों के अस्वीकार तथा रद्द हो जाने के बावजूद, उनका उद्धार रद्द नहीं किया गया; वे अभी भी 'उद्धार' पाए हुए हैं, स्वर्ग में प्रभु के साथ हैं, परन्तु अनन्तकाल के लिए खाली हाथ हैं (पद 15)। विश्वासियों के न्याय के समय (1 पतरस 4:17), उनका न्याय उद्धार के लिए उनकी योग्यता की जांच करने या प्रदान करने के लिए नहीं होगी – यह तो सदा के लिए उस एक पल में ही निर्धारित होकर स्थापित हो गया था जिस पल उन्होंने अपने पापों से पश्चाताप करके प्रभु यीशु को अपना उद्धारकर्ता ग्रहण किया था, जब वे पृथ्वी पर जीवित थे। उनके कर्मों के अनुसार उनका न्याय अर्थात, परमेश्वर और उसके वचन के प्रति उनके समर्पण तथा आज्ञाकारिता की गुणवत्ता की जांच मसीही विश्वासियों को उनके अनन्तकाल के लिए दिए जाने वाले प्रतिफलों के लिए होगी। दाख की बारी के स्वामी के दृष्टान्त  (मत्ती 20:1-16) से हम देखते हैं कि उन्हें भी जिन्होंने, औरों की अपेक्षा कम समय तक कार्य किया, परंतु स्वामी की इच्छानुसार किया, उन्हें भी वही पारिश्रमिक मिला जो अन्य सभी को दिया गया। परमेश्वर द्वारा हमें भेजे गए कार्य करने के अवसरों को उपयोग में लाना और उन अवसरों का हम किस रीति से सदुपयोग करते हैं, परमेश्वर और उसके वचन के प्रति हमारे समर्पण का अडिग और संपूर्ण होना, ही हमारे अनन्तकालीन प्रतिफलों को निर्धारित करता है।

मत्ती 25:31-46 में दिया गया दृष्टान्त मसीही विश्वासियों के इसी न्याय के संदर्भ में है – वे परमेश्वर तथा उसके वचन के आज्ञाकारी रहे हैं की नहीं, और परमेश्वर की संतान होने के नाते उनसे जैसी आशा रखी गई थी, उन्होंने वैसे कार्य किए हैं कि नहीं। हम इस दृष्टान्त में देखते हैं कि पद 33 में एक पृथक करना दिखाया गया है – भेड़ों और बकरियों का – ध्यान करें की वे 'भेड़' या 'बकरियां' बने या बनाए नहीं गए, वरन वे पहले से ही 'भेड़' और 'बकरियां' थे; पद 34 और 37 में, प्रभु भेड़ों को "पिता के धन्य" और "धर्मी" कहता है – ये उपनाम भूतकाल में हैं, अर्थात उनका यह स्तर निर्धारित करके उन्हें दिया जा चुका था, उन्हें राजा के समक्ष प्रस्तुत करने से पहले ही से (पद 31-32)। इस पूरे दृष्टान्त में प्रभु कहीं पर भी 'भेड़ों' से यह कहता या संकेत देता नहीं दिखाई देता है कि “मेरे नाम में किए गए भले कार्यों के आधार पर, मैं अब तुम्हें मेरी भेड़ें होने का अधिकार देता हूँ, उद्धार पाने का अधिकार देता हूँ, धर्मी स्वीकार किए जाने का अधिकार देता हूँ, और परमेश्वर के धन्य कहलाए जाने का अधिकार देता हूँ।” ये भेड़ें ही थीं जिन्होंने नए जन्म पाने और उद्धार तथा परमेश्वर के परिवार का सदस्य, धर्मी, और परमेश्वर के धन्य होने के कारण उनमें विद्यमान स्वर्गीय स्वभाव के कारण ऐसे कार्य किए जो उनके स्वर्गीय स्वभाव के अनुरूप थे और उस स्वभाव को प्रदर्शित करते थे जिससे वे 'बकरियों' से पृथक दिखते हैं।  उन बकरियों के पास भी वही अवसर आए किन्तु क्योंकि इनमें वैसा स्वर्गीय स्वभाव तथा गुण नहीं थे, इसलिए उन्होंने कुछ भी स्वर्गीय करने या दिखाने की कोई प्रवृत्ति अथवा इच्छा नहीं प्रदर्शित की। 'भेड़ों' ने उद्धार पाने और परिवर्तित होने से उनमें विद्यमान स्वर्गीय स्वभाव के अनुसार कार्य किए; और उसी प्रकार 'बकरियों' ने अपनी अपरिवर्तित, उद्धार नहीं पाई हुई दशा के अनुसार कार्य किए। उनके कार्यों ने उन्हें 'भेड़' या 'बकरी' नहीं बनाया, परन्तु उनके 'भेड़' अथवा 'बकरी' होने से उन्होंने अपनी उस प्रवृत्ति एवं दृष्टिकोण के अनुसार कार्य किए और दिखाए।

कार्यों ने उद्धार नहीं दिया, वरन उद्धार की दशा ने नया जन्म पाए हुए परिवर्तित लोगों से स्वर्गीय कार्य करवाए। यही बात अन्य सभी भले कार्यों और उद्धार से संबंधित बाइबल के हवालों पर भी लागू होती है।