अभी ताज़ा - ताज़ा अपने कॉलेज से विज्ञान की डिग्री लेकर घर लौट रहा था कि रास्ते में पड़ती बड़ी नदी को छोटी नाव से पार करते समय जवान ने मल्लाह से पूछा, "क्या तुमने कभी विज्ञान सीखा है?" मल्लाह अपने भोलेपन में बोला, "नाहीं साहिब।" जवान बोला, "अरे तुमने अपना पूरा जीवन बर्बाद कर डाला।" अभी वह बात कर ही रहा था कि नाव नदी के बीच में तेज़ लहरों के भंवर में तेज़ी से घूम गई। तभी मल्लाह ने जवान से पूछा "साहिब आपने कभी तैरना सीखा है?" जवान बोला "नहीं।" मल्लाह बोला , आब आप विज्ञान को बुलाएं। वही आपको निकाल पायेगा।" मल्लाह पानी में तेजी से कूदा और तैरता हुआ पार निकल गया। जवान के पास ज्ञान और विज्ञान था पर बचने का कोई उपाय नहीं था। यह कहानी क्या कहती है? हमारा ज्ञान आने वाली परिस्थितीयों से हमें पार नहीं उतार पायेगा। संसार के पास ज्ञान और विज्ञान बहुत है पर आने वाले विनाशकारी प्रलय से बचने का कोई उपाय नहीं है।
अक्सर जानवर आत्महत्या नहीं करते, जबकि केवल भारत में ही लगभग ४ मिनट में एक आदमी कहीं न कहीं आत्महत्या कर रहा है। क्या जानवरों में आदमी जैसा उग्रवाद देखा जाता है? क्या कभी इतनी हत्याएँ, विरोध, जलन, और इतनी बीमारियाँ, इतनी निराशा और बेचैनी जानवरों में देखी जाती है जैसी आदमी झेलता है? क्या कभी सुना है कि जानवर अपने जंगल, जल और वायु को आदमी कि तरह बरबाद कर रहे हैं? जानवरों के पास न तो स्कूल हैं और न ही क़ानून, पुलिस, सेना, न्यायाधीश, अस्पताल, डाक्टर और न ही सरकार; यह सब कुछ नहीं होता और सच मानिए उनके पास न तो धर्म और न ही धर्मगुरु हैं। उनकी तुलना में आदमी जंगली जानवरों से भी ज्यादा जंगली है। यह आदमी का स्वाभाव है। आदमी ने जो ज्ञान कि गहरियों को खोद निकाला वही उसके लिए कबर बन गई है। इस पृथ्वी पर से जीवन कब विदाई ले ले, कुछ पता नहीं।
बहुत साल पहले मैं ने मुर्गी के दो बच्चे बड़े प्यार से पाल लिए। कुछ दिनों के बाद एक बच्चा मर गया। दूसरा छोटा प्यारा सा बच्चा मेरे साथ रहता और मेरे सीने पर बैठता। उसे लगने लगा कि मैं उसकी मां हूँ। वह मेरे पीछे - पीछे और मेरे पैरों के पास दौड़ता। घर में जहाँ कहीं मैं जाता, वोह मेरे साथ - साथ लगा रहता था। अगर उसकी मां भी उसके सामने लाई जाती तभ भी वह मुझे ही अपनी मां समझता। वास्तव में मैं उसकी मां नहीं था। ऐसे ही बच्चों को भी धर्म के पीछे लगा दिया जाता है और वे आपने आप को इंसान नहीं पर किसी विशेष धर्म का समझने लगते हैं। एक दिन वह मुर्गी का बच्चा मेरे ही पैरों से दबकर मर गया। ऐसे ही धर्म ने इंसानियत को अपने पैरों से दबाकर मार डाला। खतरनाक बात यह थी के वह मुर्गी का बच्चा मुझे अपनी मां कि तरह समझता था और मुझ में अपनी पुरी सुरक्षा का एहसास करता था। इसीलिए वह मेरे पीछे - पीछे मेरे पैरों में घुसता था और यही उसकी मौत का कारण बना। इंसान धर्म में अपनी सुरक्षा और सम्पन्नता समझता है और इसीलिए वह उसके पीछे - पीछे दौड़ता है। यही धर्म आज आदमी कि बर्बादी का कारण बन गया है।
परमेश्वर सबसे प्यार करता है तो फिर वह कैसे दूसरो के नाश विनाश कि बात कर सकता है? मैं तो ऐसे परमेश्वर को कभी नहीं स्वीकारने का जो मुझे किसी धर्म और रीति - रस्मों से बांधेगा और मेरे मन में दूसरे धर्मों के प्रति विरोध भरेगा। मैं इसाई नहीं इंसान हूँ। मैं फिर से इसाई नहीं बनना चाहता। बचपन से इसाई धर्म मेरा पीछा करता रहा। उसने मुझे सिखाया और मेरे मन में यह बात जमा दी कि मैं औरों से अच्छा हूँ और दूसरे धर्म के लोगों के लिए मेरे मन में नफरत भर दी थी। इस तरह धर्म का धंदा हमें अंधा कर देता है।
मुझे तो ऐसा परमेश्वर चाहिए जो जगत के हर मनुष्य को प्यार कर सके और हर व्यक्ती को क्षमा कर सके। मुझ जैसे व्यक्ति को प्यार कर सके और जाति - धर्म या किसी उंच - नीच से न बंधा हो।
धर्म बदलने से किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो पायेगा। लोग धर्म बदलने की बात करते और सोचते हैं। सच तो यह है कि हमें जीवन बदलने की बात सोचनी चाहिए। धर्म बदलने से जीवन नहीं बदलेगा परन्तु मन बदलने से जीवन बदलेगा। जीवन बदलने से ही समस्यों का समाधान शुरू हो जाएगा।
अक्सर जानवर आत्महत्या नहीं करते, जबकि केवल भारत में ही लगभग ४ मिनट में एक आदमी कहीं न कहीं आत्महत्या कर रहा है। क्या जानवरों में आदमी जैसा उग्रवाद देखा जाता है? क्या कभी इतनी हत्याएँ, विरोध, जलन, और इतनी बीमारियाँ, इतनी निराशा और बेचैनी जानवरों में देखी जाती है जैसी आदमी झेलता है? क्या कभी सुना है कि जानवर अपने जंगल, जल और वायु को आदमी कि तरह बरबाद कर रहे हैं? जानवरों के पास न तो स्कूल हैं और न ही क़ानून, पुलिस, सेना, न्यायाधीश, अस्पताल, डाक्टर और न ही सरकार; यह सब कुछ नहीं होता और सच मानिए उनके पास न तो धर्म और न ही धर्मगुरु हैं। उनकी तुलना में आदमी जंगली जानवरों से भी ज्यादा जंगली है। यह आदमी का स्वाभाव है। आदमी ने जो ज्ञान कि गहरियों को खोद निकाला वही उसके लिए कबर बन गई है। इस पृथ्वी पर से जीवन कब विदाई ले ले, कुछ पता नहीं।
बहुत साल पहले मैं ने मुर्गी के दो बच्चे बड़े प्यार से पाल लिए। कुछ दिनों के बाद एक बच्चा मर गया। दूसरा छोटा प्यारा सा बच्चा मेरे साथ रहता और मेरे सीने पर बैठता। उसे लगने लगा कि मैं उसकी मां हूँ। वह मेरे पीछे - पीछे और मेरे पैरों के पास दौड़ता। घर में जहाँ कहीं मैं जाता, वोह मेरे साथ - साथ लगा रहता था। अगर उसकी मां भी उसके सामने लाई जाती तभ भी वह मुझे ही अपनी मां समझता। वास्तव में मैं उसकी मां नहीं था। ऐसे ही बच्चों को भी धर्म के पीछे लगा दिया जाता है और वे आपने आप को इंसान नहीं पर किसी विशेष धर्म का समझने लगते हैं। एक दिन वह मुर्गी का बच्चा मेरे ही पैरों से दबकर मर गया। ऐसे ही धर्म ने इंसानियत को अपने पैरों से दबाकर मार डाला। खतरनाक बात यह थी के वह मुर्गी का बच्चा मुझे अपनी मां कि तरह समझता था और मुझ में अपनी पुरी सुरक्षा का एहसास करता था। इसीलिए वह मेरे पीछे - पीछे मेरे पैरों में घुसता था और यही उसकी मौत का कारण बना। इंसान धर्म में अपनी सुरक्षा और सम्पन्नता समझता है और इसीलिए वह उसके पीछे - पीछे दौड़ता है। यही धर्म आज आदमी कि बर्बादी का कारण बन गया है।
परमेश्वर सबसे प्यार करता है तो फिर वह कैसे दूसरो के नाश विनाश कि बात कर सकता है? मैं तो ऐसे परमेश्वर को कभी नहीं स्वीकारने का जो मुझे किसी धर्म और रीति - रस्मों से बांधेगा और मेरे मन में दूसरे धर्मों के प्रति विरोध भरेगा। मैं इसाई नहीं इंसान हूँ। मैं फिर से इसाई नहीं बनना चाहता। बचपन से इसाई धर्म मेरा पीछा करता रहा। उसने मुझे सिखाया और मेरे मन में यह बात जमा दी कि मैं औरों से अच्छा हूँ और दूसरे धर्म के लोगों के लिए मेरे मन में नफरत भर दी थी। इस तरह धर्म का धंदा हमें अंधा कर देता है।
मुझे तो ऐसा परमेश्वर चाहिए जो जगत के हर मनुष्य को प्यार कर सके और हर व्यक्ती को क्षमा कर सके। मुझ जैसे व्यक्ति को प्यार कर सके और जाति - धर्म या किसी उंच - नीच से न बंधा हो।
धर्म बदलने से किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो पायेगा। लोग धर्म बदलने की बात करते और सोचते हैं। सच तो यह है कि हमें जीवन बदलने की बात सोचनी चाहिए। धर्म बदलने से जीवन नहीं बदलेगा परन्तु मन बदलने से जीवन बदलेगा। जीवन बदलने से ही समस्यों का समाधान शुरू हो जाएगा।
क्या धर्म परमेश्वर से अलग हैं? धर्म बड़ा है या परमेश्वर? धर्म तो मात्र कुछ लोगों का ही होता है, सबका नहीं। धर्म के दायरे। धर्म अपने लोगों में ही सिमटा रहता है। वास्तव में तो परमेश्वर सबका है और वह सबको ही प्यार करता है।
सच है की सच के सहारे संसार चल नहीं सकता?
आज का विचार है कि सन्सार को जीतना है तो इमान्दारी को बेवकूफी समझना पड़ेगा। बेईमानी के गणित से ही सन्सार में सब कुछ जु़ड़ता है। इमान्दारी से तो घटता ही घटता है जुड़ता कुछ भी नहीं। जैसे जैसे बुद्धि ब़ढ़ती है बेईमानी भी ब़ढ़ने लगती है।
कुछ कहते हैं कि सच में अब सच के सहारे संसार नहीं चल सकता। अगर सच कह दें तो कितने ही घरों में तलक हो जायेंगे, कितने बचों को बाप को बाप कहने में दिक्कत आएगी और हमारे राजनेता, वकील, पुलिस और सरकारी कर्मचारी अधिकांश जेल में ही पाए जायेंगे. सच के सहारे ठेकेदार काम नहीं कर पायेगा। कितने ही लड़के लड़कियों कि शादियाँ रुक जाएँगी। हमारे धर्म गुरु मुंह छिपाते फिरेंगे। यूँ समझिये कि सारा संसार गड़बडा जायेगा। झूट पर जमीं ज़िन्दगी ज़्यादा नहीं जी सकेगी क्यूंकि उसकी जड़ें नर्क से जुड़ी हैं।
मौत कब, कैसे और कहाँ आएगी... आयेगी तो ज़रूर
पृथ्वी पर कोई ऐसे जगह नहीं जहाँ दुःख कि ख़बर न हो और ऐसे कोई रह नहीं जिसमें कोई कांटा न हो। हाँ, मैं जगह कि बात कर रहा हूँ। वह आपका घर भी हो सकता है और दिल भी। जहाँ कई चुभन आपको टीसती हैं। जहाँ जीवन जीना एक साजा लगती है। इसलिए आदमी खुशियों के लिए तरसता है और चैन को ढूंढता है।
नौकरी है पर नौकरी में परेशानियाँ हैं। खर्चे पूरे नहीं होते क्योंकि आमदनी इतनी नहीं है, बिमारी ठीक नहीं होती, दुश्मन और विरोधी पीछा नहीं छोड़ते, बच्चों से परेशान हैं, लड़की कि शादी नहीं होती, रिटायरमैंट के बाद क्या होगा? यह क्या हुआ? ऐसा क्यों हुआ? ऐसा नहीं होना चाहिए था। ऐसे ही कितने ही डर हमें सताते रहते हैं। डर हमें चैन के समय में भी बेचैन रखते हैं। क्या परमेश्वर को ऐसा नहीं करना चाहिए था? क्या परमेश्वर ग़लत कर गया? हममें शक जाता है और विश्वास कहीं चिप सा जाता है। बुरी आदतें और गुस्से का स्वाभाव इतनी मुश्किलें हैं जिन्होंनें जीना मुश्किल कर दिया है।
खुशी राम बहुत दुखी मन से सुबह-सुबह हाथ में रस्सी लिए तेज़ी से जा रहे थे। चाय वाले ने पूछा, "खुशीराम जी कहाँ चले?" खिसियाए से गुराकर बोले, "मरने जा रहा हूँ... चलेगा?" कुछ देर बाद खुशीराम लंगाड़ते हुए लौटे। चाय वाले ने फिर पुचा, "मियां आप तो मरने गए थे फिर वापस कैसे लौट आएय?" खुशीराम बोले, "कम्बखत किस्मत ने साथ नहीं दिया। पेड़ पर लटका कर फंदा जैसे ही गले में डालने लगा तो उसी दाल पर एक कला सांप तेज़ी से मेरी तरफ़ बढ़ा. बस वहीँ से डर के मारे कूद पड़ा। रस्सी वहीँ लटकी रह गयी और टांग में मोच आ गयी। पेड़ पर दोबारा चड़ने कि हिम्मत नहीं जुटा पाया।" यहाँ हम देखते हैं कि मौत मांगते ही आदमी को भी मौत कि दहशत डराती है।
डर हमारे स्वभाव में रचा-बसा है। जिस तरह जलन, इर्ष्या, घमंड, लालच और व्यभिचार इस तरह हमारे स्वभाव से जुड़े हैं की अगर छूटना भी चाहें तो छूट नहीं सकते। बुरी लत लागना बहुत आसान है पर बुरी लत छोड़ना उतना सहज नहीं। चूहेदानी कभी चूहे के पीछे नहीं भागती पर चूहा अपनी लालसा और लालच के कारण अपने आप को चूहेदानी में फंसा देता है। अब वह चाहकर भी छूटना चाहे तो छूट नहीं पाटा। हम भी अपने पाप से अपने आप छूट यह इसी।
यह इसी तरह की बात है यदि मई आप से कहूँ आप अपना क्रोध, व्यभिचार, लालच, और विरोध छोड़ दें तो यह वैसी ही बेवकूफी की बात है जैसे हम किसी कैंसर के मरीज़ से कहें तू अपना कैंसर छोड़ दे। आप चाह कर भी अपनी पाप को और पापमय स्वभाव को छोड़ नहीं पायेंगे।
मौत तो तब भी आ जाती है जब उसके आने की कोई उम्मीद नहीं होती। पर ज्यादातर लोग इस भरोसे जीते हैं की लोग मरते हैं, मर रहे है पर मैं अभी नहीं मरने वाला। पर सच तो यह है की कहीं भी और कभी भी इस जीवन के सफर कण अंत हो सकता है। मौत तो निश्चित है पर मौत के बारे में तीन बातें पुरी तरह अनिश्चित हैं - १. कब आएगी २. कहाँ आएगी और ३. कैसे आएगी... पर आएगी ज़रूर।
मौत के पार मानवीय बुद्धी कभी नहीं जा सकती। मौत तक ही बुद्धी साथ देती है। मौत आते ही उसका साथ छुट जाता है। वह मौत के पार कहाँ जाती है तो फिर मौत के बाद की बात बुद्धी कहाँ बता पायेगी? क्योंकि वह कभी मौत के उस पार गयी ही नहीं। मौत के उस पार की बात वाही बता सकता है जोमौत के उस पार जा कर लौटा हो। हाँ वही होगा जो उस पार की बातें हमें बता पायेगा। आपको मालूम है मौत के पार उतरकर मेरा प्रभु इस पार लौटा है और उसी ने मौत के पार की बात हमें बतायी है क्यूंकि वह मुर्दों में से जी उठा है।
कोई है जो आपको प्यार करता है
हमारे मन की बनावट कुछ इस तरह की है कि कोई खोज ही नहीं पाटा। आप कभी सोच नहीं सकते की मैं ऐसा भी कर सकता हूँ और आप कर जाते हैं। आदमी चैन से जी नहीं सकता। और... और पाने की चाह उसे बेचैन बनाये रखती है। लेकिन कोई बात नहीं आप कितने ही गंदे विचारों के व्यक्ती क्यों न हों, कितने ही गंदे काम क्यों न किए हों, कितने ही चालाक क्यों न हों, कितने ही विरोध और बदले के भाव से क्यों न बहरे हों, कितने ही गंदे विचारों के व्यक्ती क्यों न हों, कितने ही गिरे हुए शब्दों का उपयोग क्यों न करते हों, कितनी ही बुराईयों से क्यों न भरे हों, कितनी ही बुरी लातों से क्यों न लादे हों, कितने ही मतलबी क्यों न हों कितने ही निराश क्यों न हो गए हों, कैसे ही क्यों न हों या फिओर आप और आपका परिवार कितनी ही निराशाओं से क्यों न गुज़र रहा हो। येशु आपको प्यार करता है, नफरत नहीं। पृथ्वी पर कोई ऐसा व्यक्ती नहीं जिसे प्रभु येशु क्षमा न कर सके।
प्रभु कैसे लोगों से प्यार करता है? प्रभु एक तपती दोपहर में सूखार गांव में एक कुँए के पास बैठा था. एक स्त्री वहां आयी। वह यहूदी धरम के अनुसार एक नीच जाती की समरी स्त्री थी। यहूदी जाति के उच्च वर्ग ने उन्हें पुरी तरह से अपने समाज से बहार रखा था। वे इनके हाथों से कुछ खा-पी नहीं सकते थे। यहूदी समाज बहुत संपन और शिक्षित समाज था। इसलिए वे सामरियों को तुच्छ जानते थे।
वह समरी स्त्री भी बहुत बदतमीज़ स्वाभाव की थी। सीधी-सीधी बात को भी सीधाई से नहीं कहती थी। थी तो वह बेवकूफ पर अपने आप को बड़ी अक्लमंद समझती थी। बहुत चालाक बनती थी। गाँव भर में उसकी किसी से नहीं बनती थी। शायद पिछ्ले पांच पतियों ने उसे इसी स्वभाव के कारण छोड़ दिया था। वह छटे के साथ बिना विवाह किये रह्ती थी। व्यभिचारी थी। ऐसी तिरिस्किरित और अस्भ्य औरत से प्रभु बड़ी सभ्यता से बात करता है। (यूहन्ना ४:१ -२४)। कैसी अजीब बात है, इस औरत में सारी बुराई थी। पर प्रभु में सारी ही भलाई थी। कोई सोच नहीं सकता था कि ऐसों को भी जो प्यार के लायाक हि नहीं थे, प्रभु उन्हें भी प्यार करता है।
प्रभु की क्षमा और प्यार को हम किसी सीमा में नहीं बाँध सकते। इसीलिये उस्की क्षमा और प्यार धर्म की सीमाओं से बाहर है। आप कोई क्यों न हों? कैसे ही क्यों न हों? क्या कुछ ना किया हो? प्रभु आपको प्यार करता है। उसकी क्षमा आपके लिये है। वह ऐसों को भी प्यार करता है जो प्यार करने के लायाक ही न हों। और ऐसा आदमी जो दया के लायक भी न हो वह उसपर भी दया दिखाने का दिल रखता है। यह बात सिर्फ के ही बस की बात है क्योंकि आप्को प्यार करता है। ऐसी दया केवल प्रभु यीशु के पास है। आपको सिर्फ एक प्रार्थना की आवश्यक्ता है। वह प्रार्थना सिर्फ आपके लिये ही होगी। वह आप ही करेंगे और आप ही बदलना शुरू हो जायेंगे। तो फिर ऐसी दया उससे क्यों न मांगें, यह वाक्य कहकर, “हे यीशू मुझ पापी पर दया करें।” इस प्रार्थना से आपका धर्म नहीं बल्कि जीवन परिवर्तन हो जायेगा।
जिस पल हम यह समझ लेंगे कि परेशानी मेरे स्वभाव और गन्दी आदतों के काराण है तो बस आधा काम हो गया। अब आप किनारे के पास आ गये। एक दिल से की गयी प्रार्थना ही आपको आपकी परेशानियों से पार उतार देगी।
यदी हम अपने पापों को मानने के लिये तैयार नहीं होंगे तो हम दूसरे की गलतीयाँ गिनाते रहेंगे और अपनी किसमत को कोसते रहेंगे। पर्मेश्वर आपको कोई तर्क नहीं दे रहा बल्कि एक तरीका दे रहा है। वह आपको एक मार्ग दे रहा है और एक द्वार दे रहा है। जब आपको पर्मेश्वर की खुशियां पकड़ लेंगी तब सन्सार की खुशिया उसके आगे फीकी लगने लगेंगी। आप अपनी बुद्धी से स्रिशटी और स्रिश्टीकर्ता को नहीं समझ सकते और ना ही उसके प्यार को समझ पायेंगे।
यह बड़ी अजीब बात है कि जिसके आगे सारी स्रिश्टी हाथ फैलाए रह्ती है यदि वह आपके सामने हाथ फैलाए तो यह कैसी अजीब बात है? “... मैं सारा दिन अपने हाथ एक आज्ञा न मानने वाली और विवाद करने वाली प्रजा की ओर पसारे रहा ” (रोमियों १०:२१)। और वह सारे जगत के सामने क्रूस पर हाथ फैलाए हुए कहता रहा “ऐ बाप इन्हें माफ कर, क्योंकि ये नहीं जानते कि यह क्या कर रहे हैं। ” क्योंकि क्षमा देने वाला परमेश्वर क्षमा देने से अपने आपको रोक नहीं सकता। दया करने वाला परमेश्वर दया करने से अपने आपको रोक नहीं सकता। रोक तो आप अपने को रहे हैं।
कल का क्या भरोसा? जो आज हमारे पास है वह कल सब छिन सकता है। परिवार, पैसा, शरीर, नौकरी कुछ भी हो जिसके लिये हम जी रहे हैं। सच मानिए सब कुछ छिन सकता है। सिर्फ आप ही अकेले खड़े होंगे और आपके पाप आपके साथ आपके बहुत पास खड़े होंगे। आपके पाप आपको वहाँ ले जाएंगे जहाँ आप जाना नहीं चाह्ते। आपके बारे में आपसे अच्छा फैसला आपके लिये कोई दूसरा नहीं ले सकता। अब आप इन दो बातों में से एक अवश्य करेंगे - या तो आप प्रभु यीशू की बात को मानकर एक प्रार्थना करेंगे, या फिर इस लेख को पढ़कर ऐसे ही एक तरफ छोढ़ देंगे।
भविश्य अन्धेरे में है। आज शाम तक क्या कुछ हो जाए कुछ कह नहीं जा सकता। आज नहीं तो कल क्या कुछ हो जाए? आप माने य ना माने किसी न किसी कल में कुछ होना ही है। सब अन्धेरे में है पर एक बात अन्धेरे में नहीं है, वह यह कि आपके पास हमेशा के अन्धेरे से बच निकलने का मार्ग अभी बाकी है। मौका अभी बाकी है, सच मानिये वक्त अभी बाकी है। अभी हमारी रातों में एक सुबह छुपी है और एक उम्मीद बाकी है। हाँ अभी वह रात नहीं आयी जिसकी कोई सुबह नहीं। इसीलिए कहीं ये देरी आपको बहुत दूर न ले जाये जहाँ से फिर लौटना सम्भव ना हो। देर तो आपकी एक प्रार्थना की है। इसीलिए अभी एक छोटी प्रार्थना करें - “ हे यीशू मुझ पापी पर दया करके मेरे पाप क्षमा करें ” - और सारी दूरी दूर कर डालिए।
क्षमा की सीमा से बंधा
प्रभु की क्षमा और प्यार को हम किसी सीमा में नहीं बाँध सकते। इसीलिये उस्की क्षमा और प्यार धर्म की सीमाओं से बाहर है। आप कोई क्यों न हों? कैसे ही क्यों न हों? क्या कुछ ना किया हो? प्रभु आपको प्यार करता है। उसकी क्षमा आपके लिये है। वह ऐसों को भी प्यार करता है जो प्यार करने के लायाक ही न हों। और ऐसा आदमी जो दया के लायक भी न हो वह उसपर भी दया दिखाने का दिल रखता है। यह बात सिर्फ के ही बस की बात है क्योंकि आप्को प्यार करता है। ऐसी दया केवल प्रभु यीशु के पास है। आपको सिर्फ एक प्रार्थना की आवश्यक्ता है। वह प्रार्थना सिर्फ आपके लिये ही होगी। वह आप ही करेंगे और आप ही बदलना शुरू हो जायेंगे। तो फिर ऐसी दया उससे क्यों न मांगें, यह वाक्य कहकर, “हे यीशू मुझ पापी पर दया करें।” इस प्रार्थना से आपका धर्म नहीं बल्कि जीवन परिवर्तन हो जायेगा।
जिस पल हम यह समझ लेंगे कि परेशानी मेरे स्वभाव और गन्दी आदतों के काराण है तो बस आधा काम हो गया। अब आप किनारे के पास आ गये। एक दिल से की गयी प्रार्थना ही आपको आपकी परेशानियों से पार उतार देगी।
यदी हम अपने पापों को मानने के लिये तैयार नहीं होंगे तो हम दूसरे की गलतीयाँ गिनाते रहेंगे और अपनी किसमत को कोसते रहेंगे। पर्मेश्वर आपको कोई तर्क नहीं दे रहा बल्कि एक तरीका दे रहा है। वह आपको एक मार्ग दे रहा है और एक द्वार दे रहा है। जब आपको पर्मेश्वर की खुशियां पकड़ लेंगी तब सन्सार की खुशिया उसके आगे फीकी लगने लगेंगी। आप अपनी बुद्धी से स्रिशटी और स्रिश्टीकर्ता को नहीं समझ सकते और ना ही उसके प्यार को समझ पायेंगे।
अभी हर रात में एक सुबह छिपी है
यह बड़ी अजीब बात है कि जिसके आगे सारी स्रिश्टी हाथ फैलाए रह्ती है यदि वह आपके सामने हाथ फैलाए तो यह कैसी अजीब बात है? “... मैं सारा दिन अपने हाथ एक आज्ञा न मानने वाली और विवाद करने वाली प्रजा की ओर पसारे रहा ” (रोमियों १०:२१)। और वह सारे जगत के सामने क्रूस पर हाथ फैलाए हुए कहता रहा “ऐ बाप इन्हें माफ कर, क्योंकि ये नहीं जानते कि यह क्या कर रहे हैं। ” क्योंकि क्षमा देने वाला परमेश्वर क्षमा देने से अपने आपको रोक नहीं सकता। दया करने वाला परमेश्वर दया करने से अपने आपको रोक नहीं सकता। रोक तो आप अपने को रहे हैं।
देरी कहीं दूर न ले जाए
कल का क्या भरोसा? जो आज हमारे पास है वह कल सब छिन सकता है। परिवार, पैसा, शरीर, नौकरी कुछ भी हो जिसके लिये हम जी रहे हैं। सच मानिए सब कुछ छिन सकता है। सिर्फ आप ही अकेले खड़े होंगे और आपके पाप आपके साथ आपके बहुत पास खड़े होंगे। आपके पाप आपको वहाँ ले जाएंगे जहाँ आप जाना नहीं चाह्ते। आपके बारे में आपसे अच्छा फैसला आपके लिये कोई दूसरा नहीं ले सकता। अब आप इन दो बातों में से एक अवश्य करेंगे - या तो आप प्रभु यीशू की बात को मानकर एक प्रार्थना करेंगे, या फिर इस लेख को पढ़कर ऐसे ही एक तरफ छोढ़ देंगे।
भविश्य अन्धेरे में है। आज शाम तक क्या कुछ हो जाए कुछ कह नहीं जा सकता। आज नहीं तो कल क्या कुछ हो जाए? आप माने य ना माने किसी न किसी कल में कुछ होना ही है। सब अन्धेरे में है पर एक बात अन्धेरे में नहीं है, वह यह कि आपके पास हमेशा के अन्धेरे से बच निकलने का मार्ग अभी बाकी है। मौका अभी बाकी है, सच मानिये वक्त अभी बाकी है। अभी हमारी रातों में एक सुबह छुपी है और एक उम्मीद बाकी है। हाँ अभी वह रात नहीं आयी जिसकी कोई सुबह नहीं। इसीलिए कहीं ये देरी आपको बहुत दूर न ले जाये जहाँ से फिर लौटना सम्भव ना हो। देर तो आपकी एक प्रार्थना की है। इसीलिए अभी एक छोटी प्रार्थना करें - “ हे यीशू मुझ पापी पर दया करके मेरे पाप क्षमा करें ” - और सारी दूरी दूर कर डालिए।
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