सिर्फ़ अपने लिए
एक बच्चों की कहानी है, जो आदमी के मन की असली कहानी को कहती है। एक कुत्ते ने बिल्ली से कहा, “मैंने रात को एक स्वपन देखा, कि बहुत बारिश हो रही है, पर पानी नहीं बरस रहा। तुझे मालूम है क्या बरस रहा था? हड्डियां और मीट की बोटीयाँ बरस रहीं थीं।” बिल्ली बोली, “बेवकूफ! बकवास क्यों करता है, क्या कभी ऐसा हो सकता है? मैं ने तो शास्त्रों से सुना है, कि कभी कभी चूहे ज़रूर बरस जाते हैं।” तो हम देखते हैं कि कुत्ते और बिल्लीयों का संसार यही है।
हर आदमी अपने अपने स्वार्थ की खोज में रहता है। क्योंकि मेरे पास ऐसे स्वभाव का कोई नहीं... क्योंकि सब अपने स्वार्थ की खोज में रहते हैं...” (फिलिप्पियों २:२०, २१)। अपने स्वार्थ से आगे वे सोच नहीं सकते।
कुत्ते से घास की बात करो तो उसे उलटी आने लगती है (कुत्ता घास तब खाता है जब उसे उल्टी करनी होती है)। गधे से घास की बात करो तो उसकी बाछें खिल जाती हैं। कुत्ता कहेगा, “क्या घास-फूंस की बात करते हो? कुछ हड्डी-बोटी की बात करो। कुछ स्वप्न जगें, कुछ मौज मिले, कुछ स्वाद खिले।” सब अपने स्वर्थ की ही बातें सुनना चाहते हैं। अपने स्वार्थ के आगे उन्हें न सुनना अच्छा लगता है और ना सोचना।
एक पत्नी कई दिन से परेशान थी। रात-रात भर खांसती। आदमी की नींद काफी खराब होती। परेशान आदमी ने सुबह होते ही अपनी पत्नी से कहा, “आज तो मैं ज़रूर तुम्हारे गले के लिये कुछ लाऊँगा।” पत्नी मुस्करा कर बोली, “सच! आज तुम मेरे गले के लिये कुछ लाऒगे... वही बड़े से लाकेट वाला हार जो हमने बी०टी० ज्वेलर्स के पास देखा था।” पती को पत्नी का ख़्याल नहीं था। बल्कि उसे तो सिर्फ अपनी नींद का ख़्याल था और पत्नी की सोच भी कुछ और ही थी।
ऐसे ही स्वार्थी लोगों का सँसार भी उनके स्वार्थ और उनके परिवार तक ही सीमित रहता है। आदमी भी जानवरों की सीमाओं में जीता है। ऐसे लोग जीवन भर बेचैनी ढोते हैं।
परमेश्वर को मानने वले तो बहुत हैं पर परमेश्वर की बात को मानने वाले बहुत ही थोड़े हैं। परमेश्वर से पाना और परमेश्वर को पाना यह दो अलग-अलग बातें हैं। परमेश्वर से सब पाना चाहते हैं पर परमेश्वर को पाना बहुत कम लोग चाह्ते हैं। सत्य की खोज में तो कोई-कोई हैं। अन्यथा भीड़ तो स्वार्थ की खोज में है, जिसे सम्पन्न्ता और सुख सुविधा चाहिये। वास्तव में वे परमेश्वर की खोज में नहीं परन्तु अपने स्वार्थ की खोज में हैं। इसीलिये कई झूठे शिक्षक सुरक्षा और सम्पन्न्ता का प्रलोभन देते हैं।
लालच हमेशा अन्धा कर देता है और बुद्धी को हर लेता है। भीड़ चँगाई और समस्याओं के समाधान के लिये इन झूठे शिक्षकों के पीछे एक अन्धी दौड़ में शामिल हो जाती है। फिर यह भीड़ अपने आप में एक बड़ा आकर्शण बन जाती है और आकर्शण बनकर एक बड़ी भीड़ को इकठ्ठा करती है। पागलों की तरह दौड़ती इस भीड़ को देखकर लोग कहने लगते हैं कि यह सब पागल थोड़े ही हैं। यह बड़ी भीड़ बड़े अहंकार को भी जन्म देती है और यह अहंकार इन झूठे शिक्षकों के सिर च़ढ़कर चीखता है। ये लोग कोयल की तरह बहुत मीठा बोलते हैं पर चालाक भी कोयल की तरह ही होते हैं। कहा जाता है कि कोयल अपने अंडे कौवे के घोंसले में देती है और कौवा जो बहुत चालाक बनता है वही उसके अंडे सेता है। ये शिक्षक बहुत प्यार से बोलते हैं सिर्फ इसलिये कि अपने स्वार्थ को दूसरों के घोंसलों में पाल सकें।
एक बड़ा व्यापारी हवाई जहाज़ से यात्रा कर रहा था। जहाज़ में किसी तक्नीकी ख़राबी के कारण जहाज़ हवा में डगमगाने लगा। उसमें बैठे हर मुसाफिर को सामने मौत नज़र आने लगी। घबराहट और दह्शत के माहौल में लगभग सभी यात्री अपने-अपने परमेश्वर को याद करने लगे और प्रार्थनाओं में सौदबाज़ी करनी शुरू कर दी, “प्रभु बचाओगे तो ऐसा करुँगा, ऐसा नहीं करुँगा, बस एक बार पहुंचा दो ।” उस व्यापारी ने हाल ही में एक नया घर बनवाया था जिसमें वह गृह प्रवेश भी नहीं कर पाया था। उसने भी घबराहट में परमेश्वर से वायदा कर डाला, “परमेश्वर अगर आप बचाओगे तो उस घर को बेचकर ग़रीबों में दान कर दूंगा।” अभी प्राथना की ही थी कि जहाज़ अचानक ठीक हो गया और सुरक्षित उतर आया।”
अब उस व्यापारी को दूसरी घबराहट शुरू हो गयी जल्दबाज़ी में वह परमेश्वर से क्या वायदा कर गया। अब वह सोचने लगा कि इस समस्या से बाहर कैसे निकला जाये? रातों की नींद उड़ गयी। अगर नया घर बेच कर दान नहीं दिया तो किसी और बड़ी समस्या में न फंस जाऊँ, यह डर भी उसे सताने लगा। करोंड़ों का मकान देना भी कोई कम बड़ी समस्या नहीं थी। वायेदे से पीछे हटने से भी डर लगता था। आखिर तीन दिन के बाद उसने घर बेचने का फैसला कर डाला।
शहर के बड़े-बड़े लोग घर को ख़रीदने के लिए जमा हुए। व्यापारी ने कहना शुरू किया कि मेरे मकान की कीमत १ हज़ार रूपये है। यह बात सुनते ही भीड़ में ख़लबली मच गयी - “क्या सेठ का दिमाग़ तो नहीं फिर गया?” व्यापारी ने अपनी बात ज़ारी रखी और कहा, “पर इसके साथ एक शर्त है। मेरे पास एक कुत्ता भी है, जो भी उसे खरीदेगा उसे ही एक हज़ार रूपये में यह घर खरीदने का मौका मिलेगा।” कुत्ते की बोली ४ करोड़ से शुरु हुई और ४.८० करोड़ पर जाकर रुकी। जिसने कुत्ते को खरीदा व्यापारी ने उसे ही १ हज़ार में अपना घर भी बेच दिया। तब वह हाथ जो़ड़कर परमेश्वर के सामने १ हज़ार रुपये लेकर आया और कहने लगा, “प्रभु यह घर का दाम है जिसका मैंने वायदा किया था, ग़रीबों में बाँट रहा हूँ।” जब स्वार्थ सामने आकर खड़ा हो जाता है तो हम आदमी को क्या परमेश्वर को भी धोखा दे डालते हैं। परमेश्वर को बेवकूफ बनाने की कोशिश न करें।
प्रभु को साफ ऐह्सास है कि आपके मन में क्या है? (यूहन्ना २:२४, २५)। परन्तु ऐसे स्वार्थी लोगों को भी परमेश्वर बिना किसी स्वर्थ के प्यार करता है।
क्या कभी आपने यह प्यार भरी प्रार्थना की है कि हे! प्रभु आपने मेरे लिये बहुत कुछ किया है और बहुत कुछ दिया है। हे! प्रभु मैं भी आप्के लिये कुछ कर सकूँ।
हम समपर्क के माध्यम से परमेश्वर के दिल की आवाज़ आप तक पहुंचा रहे हैं।
हर आदमी अपने अपने स्वार्थ की खोज में रहता है। क्योंकि मेरे पास ऐसे स्वभाव का कोई नहीं... क्योंकि सब अपने स्वार्थ की खोज में रहते हैं...” (फिलिप्पियों २:२०, २१)। अपने स्वार्थ से आगे वे सोच नहीं सकते।
कुत्ते से घास की बात करो तो उसे उलटी आने लगती है (कुत्ता घास तब खाता है जब उसे उल्टी करनी होती है)। गधे से घास की बात करो तो उसकी बाछें खिल जाती हैं। कुत्ता कहेगा, “क्या घास-फूंस की बात करते हो? कुछ हड्डी-बोटी की बात करो। कुछ स्वप्न जगें, कुछ मौज मिले, कुछ स्वाद खिले।” सब अपने स्वर्थ की ही बातें सुनना चाहते हैं। अपने स्वार्थ के आगे उन्हें न सुनना अच्छा लगता है और ना सोचना।
एक पत्नी कई दिन से परेशान थी। रात-रात भर खांसती। आदमी की नींद काफी खराब होती। परेशान आदमी ने सुबह होते ही अपनी पत्नी से कहा, “आज तो मैं ज़रूर तुम्हारे गले के लिये कुछ लाऊँगा।” पत्नी मुस्करा कर बोली, “सच! आज तुम मेरे गले के लिये कुछ लाऒगे... वही बड़े से लाकेट वाला हार जो हमने बी०टी० ज्वेलर्स के पास देखा था।” पती को पत्नी का ख़्याल नहीं था। बल्कि उसे तो सिर्फ अपनी नींद का ख़्याल था और पत्नी की सोच भी कुछ और ही थी।
ऐसे ही स्वार्थी लोगों का सँसार भी उनके स्वार्थ और उनके परिवार तक ही सीमित रहता है। आदमी भी जानवरों की सीमाओं में जीता है। ऐसे लोग जीवन भर बेचैनी ढोते हैं।
परमेश्वर को मानने वले तो बहुत हैं पर परमेश्वर की बात को मानने वाले बहुत ही थोड़े हैं। परमेश्वर से पाना और परमेश्वर को पाना यह दो अलग-अलग बातें हैं। परमेश्वर से सब पाना चाहते हैं पर परमेश्वर को पाना बहुत कम लोग चाह्ते हैं। सत्य की खोज में तो कोई-कोई हैं। अन्यथा भीड़ तो स्वार्थ की खोज में है, जिसे सम्पन्न्ता और सुख सुविधा चाहिये। वास्तव में वे परमेश्वर की खोज में नहीं परन्तु अपने स्वार्थ की खोज में हैं। इसीलिये कई झूठे शिक्षक सुरक्षा और सम्पन्न्ता का प्रलोभन देते हैं।
लालच हमेशा अन्धा कर देता है और बुद्धी को हर लेता है। भीड़ चँगाई और समस्याओं के समाधान के लिये इन झूठे शिक्षकों के पीछे एक अन्धी दौड़ में शामिल हो जाती है। फिर यह भीड़ अपने आप में एक बड़ा आकर्शण बन जाती है और आकर्शण बनकर एक बड़ी भीड़ को इकठ्ठा करती है। पागलों की तरह दौड़ती इस भीड़ को देखकर लोग कहने लगते हैं कि यह सब पागल थोड़े ही हैं। यह बड़ी भीड़ बड़े अहंकार को भी जन्म देती है और यह अहंकार इन झूठे शिक्षकों के सिर च़ढ़कर चीखता है। ये लोग कोयल की तरह बहुत मीठा बोलते हैं पर चालाक भी कोयल की तरह ही होते हैं। कहा जाता है कि कोयल अपने अंडे कौवे के घोंसले में देती है और कौवा जो बहुत चालाक बनता है वही उसके अंडे सेता है। ये शिक्षक बहुत प्यार से बोलते हैं सिर्फ इसलिये कि अपने स्वार्थ को दूसरों के घोंसलों में पाल सकें।
एक बड़ा व्यापारी हवाई जहाज़ से यात्रा कर रहा था। जहाज़ में किसी तक्नीकी ख़राबी के कारण जहाज़ हवा में डगमगाने लगा। उसमें बैठे हर मुसाफिर को सामने मौत नज़र आने लगी। घबराहट और दह्शत के माहौल में लगभग सभी यात्री अपने-अपने परमेश्वर को याद करने लगे और प्रार्थनाओं में सौदबाज़ी करनी शुरू कर दी, “प्रभु बचाओगे तो ऐसा करुँगा, ऐसा नहीं करुँगा, बस एक बार पहुंचा दो ।” उस व्यापारी ने हाल ही में एक नया घर बनवाया था जिसमें वह गृह प्रवेश भी नहीं कर पाया था। उसने भी घबराहट में परमेश्वर से वायदा कर डाला, “परमेश्वर अगर आप बचाओगे तो उस घर को बेचकर ग़रीबों में दान कर दूंगा।” अभी प्राथना की ही थी कि जहाज़ अचानक ठीक हो गया और सुरक्षित उतर आया।”
अब उस व्यापारी को दूसरी घबराहट शुरू हो गयी जल्दबाज़ी में वह परमेश्वर से क्या वायदा कर गया। अब वह सोचने लगा कि इस समस्या से बाहर कैसे निकला जाये? रातों की नींद उड़ गयी। अगर नया घर बेच कर दान नहीं दिया तो किसी और बड़ी समस्या में न फंस जाऊँ, यह डर भी उसे सताने लगा। करोंड़ों का मकान देना भी कोई कम बड़ी समस्या नहीं थी। वायेदे से पीछे हटने से भी डर लगता था। आखिर तीन दिन के बाद उसने घर बेचने का फैसला कर डाला।
शहर के बड़े-बड़े लोग घर को ख़रीदने के लिए जमा हुए। व्यापारी ने कहना शुरू किया कि मेरे मकान की कीमत १ हज़ार रूपये है। यह बात सुनते ही भीड़ में ख़लबली मच गयी - “क्या सेठ का दिमाग़ तो नहीं फिर गया?” व्यापारी ने अपनी बात ज़ारी रखी और कहा, “पर इसके साथ एक शर्त है। मेरे पास एक कुत्ता भी है, जो भी उसे खरीदेगा उसे ही एक हज़ार रूपये में यह घर खरीदने का मौका मिलेगा।” कुत्ते की बोली ४ करोड़ से शुरु हुई और ४.८० करोड़ पर जाकर रुकी। जिसने कुत्ते को खरीदा व्यापारी ने उसे ही १ हज़ार में अपना घर भी बेच दिया। तब वह हाथ जो़ड़कर परमेश्वर के सामने १ हज़ार रुपये लेकर आया और कहने लगा, “प्रभु यह घर का दाम है जिसका मैंने वायदा किया था, ग़रीबों में बाँट रहा हूँ।” जब स्वार्थ सामने आकर खड़ा हो जाता है तो हम आदमी को क्या परमेश्वर को भी धोखा दे डालते हैं। परमेश्वर को बेवकूफ बनाने की कोशिश न करें।
प्रभु को साफ ऐह्सास है कि आपके मन में क्या है? (यूहन्ना २:२४, २५)। परन्तु ऐसे स्वार्थी लोगों को भी परमेश्वर बिना किसी स्वर्थ के प्यार करता है।
क्या कभी आपने यह प्यार भरी प्रार्थना की है कि हे! प्रभु आपने मेरे लिये बहुत कुछ किया है और बहुत कुछ दिया है। हे! प्रभु मैं भी आप्के लिये कुछ कर सकूँ।
हम समपर्क के माध्यम से परमेश्वर के दिल की आवाज़ आप तक पहुंचा रहे हैं।
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