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शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

संपर्क अक्टूबर २०११ - कहीं आप ही न हों

देश भ्रष्ट, महाभ्रष्ट, परमभ्रष्ट बनता जा रहा है। देश ही क्या सारा संसार नर्क जाने से पहले खुद नर्क बनता जा रहा है। आप चाहते तो होंगे कि हमारे देश में जितने भी अपराधी और भ्रष्ट हैं उन्हें सज़ा मिलनी ही चाहिए।

ज़रा यहाँ रुकिएगा!

आप अपने बारे में सोचिएगा?

क्योंकि आपने भी तो शायद कभी रिश्वत ली और दी होगी, चोरी की होगी, गर्भपात करवाए होंगे, बिना टिकिट यात्राएं की होंगी, झूठ बोला धोखा दिया होगा, गलत संबंध रखे होंगे और कुछ बुरी लतों से बंधे होंगे। क्या यह सत्य नहीं?

आप अपने आप से सवाल कीजिएगा। कुछ न कुछ तो किया होगा जो नहीं करना चाहिए था।

हर अपराध पाप है आप मानें या ना मानें। हम में पाप है और पाप का ज़हर हर आदमी के लहू में है। या यूँ कहिए कि आदमी के डी०एन०ए० में है जो हमें परेशान, महापरेशान और परमपरेशान बनाता जा रहा है। कभी कभी तो मन अपने आप से यूँ कहता है, “तू मरता क्यों नहीं?”

कुछ लोग कहते हैं कि सख्त कानून और सख्त सरकारें ही संसार को बदल सकती हैं। संसार में कई जगह सख्त से सख्त कानून हैं, उनकी सरकारें बहुत व्यवस्थित हैं, पर वे भी आदमी का स्वभाव बदल नहीं सके।

कई लोगों का कहना है कि कई बार हालात आदमी को बहुत बदल देते हैं। अमेरिका पर हुए ९ सितंबर २००१ के आतंकवादी हमले के बाद टी०वी० पत्रकारों ने कहा, “अब अमेरिका हमेशा के लिए बदल जाएगा। उस दिन अमेरिका में बड़ी राष्ट्रीय भावना दिखाई दी। घरों पर राष्ट्रीय ध्वज दिखाई दिए, मुँह में राष्ट्रीय नारे थे। पर कुछ दिन बाद आदमी वैसा का वैसा ही था जैसे वो पहले था। कोई भी हालात आदमी को नहीं बदल सका।

क्या धर्म बदलेगा?

क्या धर्म आदमी को बदलेगा? अब तो धर्म खुद ही बदल गया है। धर्म की धारणा बदल गई कि मेरा धर्म अच्छा और आपका बुरा, मेरा धर्म ही सही है बाकि सब गलत हैं। धर्म सदियों से समाज और इन्सान को बदल नहीं पाया। यदि आप अपना धर्म भी बदल लें तब भी कुछ बदलने वाला नहीं है।

एक खास इसाई संप्रदाय में एक परंपरा है - एक खास दिन अपने पाप को अपने पादरी के सामने स्वीकार कर लेते हैं और वह उन्हें क्षमा कर देता है। बात बड़ी अजीब सी है कि पाप किसी के साथ करो और क्षमा किसी दूसरे से माँगो।

खैर कहानी इस तरह है - किसी विशेष बृहस्पतिवार को उपदेश के बाद लोगों ने अपने-अपने पाप पादरी साहब को अकेले में बताए और पादरी साहब ने उनको क्षमा पाने के तरीके समझाए। अगले दिन हर शुक्रवार को रीति के अनुसार फिर पापों का मानना होता है।

शुक्रवार को एक ट्रक ड्राइवर के साथ मामला उलझ गया।

पादरी साहब ने पूछा,

मियाँ, एक बात तो बताओ,

कल तुम कह रहे थे के तुम ने

खेत से जहाँ कोई नहीं था

एक ही बोरी अनाज की चुराई थी।

आज तुम कह रहे कि दो बोरी चोरी से लाया हूँ।

मामला क्या है?”

ट्रक ड्राइवर ने कहा, “पादरी साहब

कल तो एक बोरी चोरी करी थी और पश्चाताप किया।

आज भी उस खेत में कोई नहीं था।

इसलिए एक बोरी और भी हाथ लग गई।

इसलिए दो बोरी की चोरी हो गई।

अब दो बोरी का पश्चाताप करना पड़ेगा…”

यह पश्चाताप है या पश्चाताप का मज़ाक? क्या ऐसा पश्चाताप वास्तव में परिवर्तन ला सकता है? पर यह तो एक धर्म की रीति है।

मजबूरी का नाम परिवर्तन नहीं

कुछ लोग कहते हैं कि मजबूरियाँ आदमी को बदलती हैं। एक बच्चे ने माँ से बदतमीज़ी की। बाप ने कहा, “जब तक यह माँ से माफी नहीं माँगेगा तब तक इसे खाना नहीं मिलेगा। बच्चा ढिठाईपन दिखा कर अपने कमरे में चला गया। शाम धीरे धीरे रात में बदलने लगी। लड़के के पेट में चूहे फुदकने लगे, और लड़के की बरदाशात छूटने लगी। अब उसके पास माफी माँगने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा।

आखिर हार कर माँ के पास जाकर बोला, “माँ माफ कर दो।उसका यह पश्चाताप पाप का एहसास नहीं था पर यह भूख का एहसास था। ऐसा पश्चाताप वास्तविक पश्चाताप नहीं है।

हम बदलाव चाहते हैं कि मेरा जीवन बदले, परिवार बदले। आखिर जीवन कैसे बदले? क्या आप मानते हैं कि कोई परमेश्वर है? अगर है तो वो ही बदल सकता है; क्योंकि जो काम आदमी नहीं कर सकता वो परमेश्वर कर सकता है।

जब आदमी

मौत बस,

मौत ही माँगता हो

जो इस लेख को लिख रहा है यही इन्सान कितनी बार जीवन से भाग कर मौत माँगता था, मौत चाहता था। अचानक किसी ने मुझे यीशु के बारे में बताया। ईसाईयों के यीशु के बारे में नहीं, पर उस यीशु के बारे में जो जीवन देता है। आनन्द से भरा जीवन, एक ऐसा जीवन ओ जीने के लायक हो। मैं ने सिर्फ इतना ही तो कहा था, “हे यीशु मेरे पाप माफ करो और मेरा जीवन बदलो।सच मानिए मेरा धर्म नहीं बदला पर जीवन ही बदल गया।

यीशु की तस्वीर लगा लेने से क्या होता है? यह तो ऐसा है जैसे अन्धेरी दीवार पर प्रकाश शब्द लिख कर लटका देना। अन्धेरी दीवरों पर दीये की तस्वीर लगाने से भी उजियाला नहीं होता। अन्धेरे से मत लड़ो, जीत नहीं पाओगे। बस ज्योति को ले आओ, अन्धेरा भाग खड़ा होगा। इस सच्चाई की रौशनी में कोई अन्धेरा टिक नहीं सकता। यीशु ने कहा, “मैं जगत की ज्योति हूँ” (यूहन्ना ८:१२)

परमेश्वर प्यार है। वह आपको अपने स्वभाव में ढालना चाहता है। उसने आपके लिए अपनी ज़िन्दगी लुटा दी। वह आपको प्यार करता है। कोई कलम और ज़ुबान उसके प्यार को बता नहीं सकते। वो दोस्ती के लिए अपना हाथ आपकी तरफ बढ़ा रहा है। बात अब आप के हाथ फैलाने पर रुकी है। ताकि आप एक पश्चाताप की प्रार्थना के द्वारा एक ऐसा जीवन पा सकें जो आनन्द से भरा है। अब आप अपने को रोकिएगा नहीं। आप यहाँ प्रार्थना करेंगे, वहाँ पहुँचेगी और आप तक आनन्द और आशीष लेकर लौटेगी। जो आनन्द और खुशी आपको वो देगा और कोई नहीं दे पाएगा। बस मैंने इतना ही तो कहा था, “हे यीशु मुझ पापी पर दया करें।

प्रभु का क्रोध पाप पर है, आप पर नहीं। वह आपको बहुत प्यार करता है पर आपके पाप से नफरत करता है। परमेश्वर ने आपका वह पाप आप पर प्रकट किया है जो आप छिपाए बैठे हो। कल किसने देखा है? इसलिए अपने पाप के साथ कल का इंतज़ार करना बहुत खतरनाक है।

क्षमा या सज़ा

पर किसी ने आपके हाथ में यह पत्रिका सौंपी है ताकि आप अपने आप को जान लें। धन्य हैं वे जिनके पाप क्षमा हुए। इसमें एक अर्थ और छिपा है - दुखी हैं वे जिनके पाप क्षमा नहीं हुए। पाप की माफी पाने के लिए सबसे पहला काम है अपने आप को पापी मानना। यदि आप अपने आप को पापी नहीं मानते तो माफी माँगने का कोई अर्थ नहीं रहता।यदि हम कहें कि हम में कुछ भी पाप नहीं, तो अपने आप को धोखा देते हैंपर यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्यहै” (१ युहन्ना १:,)। पाप की माफी ही काफी नहीं है पर यह भी विश्वास करना है कि प्रभु यीशु मेरे पापों के लिए क्रूस पर मारा गया, गाड़ा गया और फिर तीसरे दिन जी उठा। उसका लहू मुझे सब पापों से शुद्ध करता है।

अगर आप अपने पाप की भयानकता का एहसास नहीं करते तो यह शुभ संदेश आपके लिए अशुभ संदेश होगा; क्योंकि इस संदेश को सुनने के बाद आपके पास कोई बहाना ना होगा कि आपको पाप की क्षमा का मौका नहीं दिया गया। प्रभु के बर्दाश्त की छिपी हुई सीमाएं हैं। कहीं ऐसा न हो कि उस दयालू परमेश्वर के पास भी आपके लिए दया न बचे; क्योंकि मौत के बाद दया का अर्थ नहीं बचता।

ये घड़ी आपके लिए बड़ी नसीब से मिली है, और फिर आपको यह घड़ी मिले या न मिले। अगर यह आपके हाथ से निकल गई तो फिर शायद आप इस घड़ी के लिए तरसते रह जाएंगे। जहाँ आपको नहीं होना चाहिए आप वहाँ जा पहुँचेंगे और वहाँ से लौट पाना फिर कभी संभव नहीं हो पाएगा। अभी फैसला कर लें कहीं ऐसा ना हो कि यह मौका आपको फिर कभी ना मिले।

बस यही तो कहना है, “हे यीशु मुझ पापी पर दया दिखाओ और मुझे मेरे पापों की क्षमा दे दो। एक ऐसा जीवन दे दो जो वास्तव में जीने के लायक हो।

शनिवार, 10 दिसंबर 2011

संपर्क अक्टूबर २०११ - कहीं देर न हो जाए

विश्व का एक बड़ा विद्वान बड़ी बेवकूफी की बात कहता है, “विज्ञान सब कुछ कर सकता है - विज्ञान एक ऐसी गोली बनाएगा कि बदमाश उसे खाएगा और सन्त बन जाएगा। सारा देश शरीफ बन जाएगा। न चोरी होगी, न पति-पत्नि में लड़ाई, न हत्या होगी और अमीर शोषण करना बन्द कर देंगे। क्या कभी ऐसा हो सकता है? ज़रा सोचिए! क्या विज्ञान सब कुछ कर सकता है? एक गोली खिलाओ और बदमाश शरीफ बन जाए? एक गोली खिलाओ और आपके घर के झगड़े मिट जाएं? एक गोली खिलाओ सरकारी कर्मचारी और नेता रिश्वत लेना छोड़ दें और बड़ी मेहनत करने लगें? अगर ऐसा हो पाता तो नर्क बनती यह दुनिया कब की स्वर्ग बन जाती। विज्ञान सब कुछ नहीं कर सकता। सच है, विज्ञान मानव का बहुत सहायक रहा है, पर उसने उसे भयानक हथियार भी दिए हैं; हवा, पानी, पर्यावरण - सब कुछ दूषित कर दिया और ज़हरीला बना दिया है।

तुम उधर रह गए, हम इधर

जो विज्ञान नहीं कर सका, क्या हमारे धर्म कर सकते हैं? कितने ही संप्रदाय मोक्ष-मुक्ति की कितनी ही युक्ति बताते और सिखाते हैं; ऐसी युक्ति जो कभी मुक्ति नहीं दे सकती। धर्मों ने भी अपनी एड़ी-पन्जों का पूरा ज़ोर लगा लिया, लेकिन उसने आदमी को आदमी नहीं, उग्रवादी ज़रूर बना दिया।

हमारे धर्म हमें इन्सानियत से कहीं दूर ले गए हैं। हमारे धर्मों की दीमक इन्सानी प्यार को कहीं चट कर गई है।

प्यार का पुल टूट गया,

तुम उधर रह गए,

और हम इधर,

धर्मों की धाराओं ने हमें आपस में बांट दिया है। हम इन्सान नहीं रहे; अब हम इसाई, मुसलमान, सिक्ख और हिन्दू बन कर जी रहे हैं।

जब तक हम जन्म के आधार पर आदमी पर धर्म थोपते रहेंगे, तब तक संसार धर्मों का यह अधर्म सहता रहेगा, और भयानक उग्रवाद को, आपसी जलन और द्वेष को और निर्दोषों की हत्या को भोगता रहेगा। पूरे मानवीय इतिहास में कभी भी इतने अधर्म के काम नहीं हुए जो धर्म के नाम पर आज हो रहे हैं।

खूनी खबरों से लतपथ

खूनी खबरों से लथपथ अखबार हर सुबह हमारे दरवाज़े पर डाल दिया जाता है। हम आदी हो गए हैं ऐसी खबरों के और ऐसी ही खबरें हमें खबरें लगती हैं बाकी सब खबरें बकवास हैं।

हम ईमानदारी की बात तो करते हैं और ईमानदारी के आन्दोलन भी करते हैं। पर हम दुसरों के साथ क्या ईमानदार होंगे, जब हम खुद अपने ही साथ ईमानदार नहीं? हमारा विवेक हम से कहता है, “तू लालची है।

एक पति से कहता है, “तू अपनी पत्नि के साथ ईमानदार नहीं; तू घमंडी है

हम अपने विवेक की आवाज़ को टाल कर अपने आप से कहते हैं, “बिना रिश्वत दिए कहाँ काम चलता है?”

रेल में बिना टिकिट चलने से कोई पाप थोड़े ही लगता है? इतना तो चलता है, सब करते हैं

जैसे मछली जीवन भर पानी में रह कर कभी यह नहीं जान पाती कि मैं गीली हूँ, वैसे ही आदमी जीवन भर पाप में रह कर कभी यह एहसास नहीं कर पाता कि मैं पापी हूँ।

आदमी को सही और गलत की कोई चिन्ता नहीं। उसे चिन्ता है तो सिर्फ अपने स्वार्थ और अपनी मस्ती की। सच तो यह है कि हम अपने आप से ही ईमानदार नहीं। क्या आप अपनी ज़िन्दगी को बहुत करीब से देख सकते हो, जहाँ आपके पाप आपको साफ दिखाई दें?

एक नहीं, एक भी नहीं

किसी आदमी से पूछिएगा! क्या कुछ और चाहिए? वह कहेगा, “हाँ थोड़ा और मिल जाता तो क्या बात होती! मेरी नाक सही नहीं है। रंग थोड़ा सा और साफ होता,

मेरे सिर पर कुछ ज़्यादा बाल होते,

मेरे पास उस के जैसी बीवी होती,

या उसके जैसा पति होता तो मैं ज़्यादा खुश होती

एक नहीं, एक भी नहीं,

जो भी ज़िन्दगी में चाहा मिल गया और बहुत मिला पर खुशी नहीं मिली, तो फिर क्या मिला? ऐसी ज़िन्दगी के साथ ज़रूर कोई कमी है।

यहाँ पर कौन खुश है और कौन सन्तुष्ट?

ऐसी कोई ज़िन्दगी नहीं

जिसमें कोई ग़म न हो।

परेशानी न हो,

बेचैनी न हो।

एक नहीं, एक भी नहीं.

एक बच्चा बहुत सन्तुष्ट है - उसकी सोच में भी नहीं है कि बिजली के बिल का क्या होगा? शाम के खाने में क्या मिलेगा? एक मोज़ा अलग रंग का है दूसरा अलग रंग का; निक्कर पीछे से फटी हो, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता और ना ही उसे कोई चिंता सताती है। ऊँगली पर चोट लगे तो एक छोटी से पप्पी उसके दर्द को कम कर देती है। यहाँ तो वह हाल है कि दर्द की गोली खाकर भी अपने दर्द और परेशानियों को गाते फिरते हैं।

पाप ही परेशानी का मूल कारण है। कोई भी अहंकारी आदमी, घमंडी आदमी, लालची, स्वार्थी, क्रोधी आदमी न खुश रहेगा और न ही किसी को रहने देगा। वो न खुशी से जीएगा और न ही खुशी से जीने देगा। आपको ज़रूर कुछ बातें परेशान करती होंगी। जैसे: शायद कुछ पड़ौसी, नौकरी में आपका बॉस, परिवार में आपके रिश्तेदार, पत्नि या पति। या फिर आपकी कुछ बुरी लतें। एक भी नहीं जो परेशान न हो। क्योंकि एक भी ऐसा नहीं जिसने पाप न किया हो।

डूबता डूबते को कैसे बचाएगा

कोई पापी किसी पापी को कैसे छुटकारा दे सकता है या पाप से निकाल सकता है? खुद डूबता हुआ आदमी किसी डूबते हुए को कैसे बचा सकता है? धर्म, कानून हालात हमें पाप की परेशानियों से नहीं छुड़ा सकते। रिश्वत लेते ही एक डर सताने लगता है। बिना टिकिट रेल में चढ़ते ही आप यात्रा का आनन्द खो देते हैं और डर के साथ यात्रा काटते हैं। जब तक आप उतर नहीं जाते लगातार एक डर आपको सताता है। रिश्वत के साथ बेचैनी का डर खाता रहता है। रिश्वतखोरी की धर-पकड़ की खबरें आपको डराती रहती हैं। आप जीवन की यात्रा का सारा आनन्द खो देते हैं। आपका व्यभिचार आपके घर की खुशी को झगड़ों में बदल डालेगा। आपका पाप आपके जीवन की यात्रा का आनन्द ही खत्म कर देगा। बात यहीं नहीं थमेगी। पाप की बात तो मौत के बाद आगे तक आपके साथ जाएगी। एक परमेश्वर का दास कहता है,

हाय मुझे कौन इस पाप की देह से छुड़ाएगा?”

परमेश्वर ही है जिसमें कोई पाप नहीं है। यीशु में कोई पाप नहीं है, क्योंकि यीशु परमेश्वर है। क्या आप यीशु का नाम सुनते ही इसाई धर्म के बारे में तो नहीं सोचने लगते? क्या यह पत्रिका आपको किसी धर्म के बारे में बता रही है? आप माने या ना मानें, इस पत्रिका का इसाई धर्म से कोई लेना देना नहीं है। हमारा पूरा विश्वास है कि किसी का धर्म परिवर्तन करना पाप है। हम आपको यीशु के बारे में बता रहे हैं जो आपको पाप के श्राप से, बेचैनी के श्राप से छुटकारा देने आया।

उसने वो शान्ति दी,

आनन्द दिया,

वो प्यार दिया, कि जीवन ही दीये की तरह चमकने लगा,

वह धर्म देने नहीं आया,

वो जीवन देने आया,

प्यार भरा प्यारा सा जीवन।

मौके तो हमेशा इंतज़ार नहीं करते

मौके हमेशा के लिए नहीं रहते। पर यह मौका आपके लिए ठहरा है कि आप नाश न हों। जिन्होंने अपने पाप से पश्चाताप नहीं किया उन्होंने अपना अन्त ठहरा लिया है। आपको एक मौका मिल रहा है जो कितनों को नहीं मिला। पर आप कितने सौभाग्यशाली हैं कि परमेश्वर ने आपको फिर यह मौका दिया है कि आप अपने पाप से पश्चाताप करके एक प्रार्थना करें, “हे यीशु मुझ पापी पर दया करें

कुछ जो साथ थे वो मिट कर आज इतिहास में हैं। जो बचे हैं वो कल के इतिहास में किसी भी वक्त चले जाएंगे। मैं अपने एक मित्र को उसकी आखिरी विदाई देने जा रहा था। यह उसका आखिरी सफर था। उसे शमशान तक छोड़ना था। शमशान में एक अजीब सी खामोशी थी। पर उस खामोशी का डर हर एक चेहरे पर साफ था। वहाँ आते ही सबको अपनी-अपनी मौत का डर सताने लगता है। जब कभी ज़िन्दगी के बीच मौत की तस्वीर उभर कर आती है तब सब कुछ व्यर्थ लगने लगता है। मौत तो हर एक के रास्ते में है, बस हम सबका वक्त अलग-अलग हो सकता है।

वक्त तेज़ी से डूब रहा है। सच मानिए अब बहुत शीघ्र ज़मीन पर कुछ ऐसा गुज़रेगा जिसे हमने कभी सोचा भी नहीं था। अब बहुत तेज़ी के साथ कुछ होगा ज़रूर जिसे कोई रोक नहीं पाएगा। सुबह से शाम तक कई हादसों के बारे में हम सुनते हैं। हो सकता है आप कुछ हादसों से बच भी निकलें हों पर अभी कोई आखिरी हादसा है जो आपका इंतिज़ार कर रहा है। शायद एक दिल का दौरा आपके जीवन की राह पर है जो धीरे-धीरे बढ़ रहा है। आपको मालूम भी नहीं होगा और अचानक खेल खत्म हो जाएगा। मौत आपके हाथ से हर मौका ले लेगी। आपकी बीमारी और परेशानी आपको मौत तक ही परेशान कर सकती है। पर इकलौता पाप ही है जो मौत के बाद भी आपको भयानक परेशानी में डाल सकता है। वहाँ कभी भी परेशानियों का अन्त न होगा। पर वहाँ जो होगा वह सब अनन्त होगा।

शायद आपकी हर आस उजड़ चुकी हो और सारी हिम्मत बिखर चुकी हो। लगता हो कि अब कुछ भी सुधरने वाला नहीं। चाहे आप कितने ही बड़े पापी क्यों न हों और कितना ही हारे हुए क्यों न हों। अब आपको लगता हो कि मैं ज़िन्दगी से पूरी तरह हार चुका हूँ। प्रभु यीशु आपको कहता है, “मत डर, मैं हूँ, मैं तुझे बनाऊँगाहे बोझ से थके मांदे लोगों मेरे पास आओ

यह सन्देश आपके लिए वह कर सकता है जो आप अपने लिए कभी नहीं कर सकते। यह आपको वह दे सकता है जो आप कभी पा नहीं सकते। यह आपको ऐसी खुशी और शान्ति और पापों की क्षमा दे सकता है। बस! विश्वास कर के एक प्रार्थना की ज़रूरत है, “हे यीशु मुझ पापी पर दया करें। मेरे पाप को यीशु के नाम से क्षमा करें। बस यही प्रार्थना असंभव काम को संभव कर डालती है।

आप इस पत्रिका को पढ़ कर चुपचाप एक तरफ रख सकते हैं। पर आप फिर यह नहीं कह पाओगे कि प्रभु आपने मुझे पाप से पश्चाताप का मौका कब दिया?

आपके पास समस्याएं हैं। पर हो सकता है कि मेरे पास आप से भी बड़ी समस्याएं हों। लेकिन मेरे पास मेरी समस्याओं से भी बड़ा मेरा परमेश्वर है। जो मुझ जैसे आदमी से भी प्यार करता है। उसने मेरे और आपके पापों के लिए अपने प्राण दिये। वह इतना सामर्थी है कि मर कर फिर जी उठा। उसी से मैंने एक दिन कहा था, “हे यीशु! मुझ पापी पर दया कर के मेरे पापों को माफ कर दो और मुझे अपने लहू से धो दो। इन कुछ पलों की प्रार्थना के बाद मैं ने एक नया जीवन जीया है। सच मानिए,

बहुतायत का जीवन,

अद्भुत जीवन,

आनन्द का जीवन।

क्या आप एक ऐसी प्रार्थना करके प्रभु को परख कर देखेंगे?

हे यीशु! मुझ पापी पर दया करें

शनिवार, 3 दिसंबर 2011

संपर्क अक्टूबर २०११ - संपादकीय

इस संपर्क में आपके प्रवेश के लिए आपका स्वागत है। मैं आपसे व्यक्तिगत तौर से सीधी बात करूँगा। सीधे आपसे, जी हाँ! सिर्फ आप ही से।

हमारे शब्द पैदा होते हैं और फिर मर जाते हैं। क्योंकि वे एक मरण्हार के शब्द हैं। मैं आपसे जीवित शब्दों के बारे में बात करूँगा। यह वो शब्द हैं जो परमेश्वर से जन्में हैं जो कभी मरता नहीं और ये शब्द भी नहीं मरेंगे। ये शब्द केवल कागज़ पर छपे शब्द नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि ये शब्द यहीं रह जाएंगे। पर यह शब्द आपका पीछा करेंगे क्योंकि ये ज़िन्दा शब्द हैं, ज़िन्दा परमेश्वर के शब्द हैं। ये मौत के बाद भी आपका पीछा नहीं छोड़ेंगे। इन्हीं श्ब्दों के द्वारा मौत के बाद आपका इन्साफ भी होगा।

वचन कहता है, “प्रभु के वचन को अपने मन में अधिकाई से बसने दो” (कुलुस्सियों ३:१६)। प्रभु आपको इसलिए पुकार रहा है क्योंकि वह आपका जवाब चाहता है। मान लीजिए कि आप जान-बूझ कर मुझे अनसुना कर दें तो आप मेरा अपमान करते हैं। अगर आप आज परमेश्वर की आवाज़ को सुनकर अनसुना कर दें तो यह उसका अपमान करना है। वह आपके इंतज़ार में है। वह चाहता है कि यह शब्द आपके दिल में जगह पाएं।

आदमी के मन में बहुत जगह है,

भलाई भुलाकर और बुराई सजाकर रखने की

ज़रा झांको तो अपने मन में कितनों के लिए बुराई है?

और कितनों की भलाई भूल गए?

आदमी की बात तो छोड़िए,

परमेश्वर के एहसानों का भी एहसास नहीं रहा।

संवारते शब्द

परमेश्वर के शब्द चोट तो बहुत करते हैं। इनकी चोट दर्द ही नहीं देती, पर यह दवा भी है। इनकी चोट इसलिए है कि आप दिल से अपने लिए एक दुआ कर सकें। दिल से निकली दुआ ही दवा बन जाएगी। आप अभी, जी हाँ अभी, आज ही कह कर तो देखिए, “प्रभु मुझे आपकी बात मानने का दिल दीजिए

आम किताबों में शब्दों को फूलों और तितलियों की तरह दबा कर रख दिया जाता है। वो वहाँ रखे अच्छे तो लगते हैं पर उनमें जीवन नहीं होता। जिन शब्दों में जीवन नहीं वो जीवन क्या देंगे? पर परमेश्वर के शब्दों में जीवन है, बहुतायत का जीवन है। इन शब्दों को अपना कर तो देखो। इसलिए वचन को प्रार्थना के साथ ध्यान से पढ़ो और ध्यान से सुनो।

मैं इन शब्दों से सिर्फ पन्ने नहीं भरना चाहता, पर चाहता हूँ कि इनकी सच्चाई आपके जीवन में उतर आए। पौलुस के वे शब्द जो उसने पवित्र आत्मा के द्वारा लिखे हैं, “हमारी पत्री तुम ही होजिसे स्याही से नहींपर जीवते परमेश्वर के आत्मा सेहृदय की मांस रूपी पट्टियों पर लिखा है” (२ कुरिन्थियों ३:-)। आपके स्वभाव से लोग क्या पढ़ते हैं? स्वभाव से ज़िन्दगी पढ़ी जाती है। केवल आपको ही नहीं, लोग आपके परिवार को भी पढ़ते हैं।

कुछ विश्वासी गवाही देते हैं।

गवाही अच्छी है।

जी हाँ, आपकी गवाही अच्छी है!

पर यह तो कल की है!

आपकी आज की क्या गवाही है?

क्या प्रभु से पहला सा प्यार है;

क्या पहला सा लगाव है?

प्रभु के काम के लिए,

प्रभु के घर के लिए,

प्रभु के लोगों के लिए,

ज़रा आज की सच्चाई तो बताना,

अपनी आज की गवाही तो बताना!

अभी इन शब्दों को जो आप पढ़ रहे हैं, क्या परमेश्वर इन के द्वारा आपसे बात कर रहा है? आप सुनें या ना सुनें, समझें या ना समझें, ये शब्द आपका पीछा कर रहे हैं। आप कहो तो सही, प्रभु मुझे सुनने वाले कान दे।

सामर्थी शब्द

धन्य हैं वे जो परमेश्वर के वचन को सुनते और मानते हैं” (प्रकाशितवाक्य १:)। वचन को सुनना है, मानना है, जीना है और इसे दूसरों को बताना है।

क्या आप मानते हैं?

क्या आप जीते हैं?

क्या इसे दूसरों को बताते हैं? हाँ या नहीं - अपने आप से पूछिएगा।

मसीह तो बहुतों के जीवन में है; पर बहुत कम हैं जिनका जीवन मसीह है, जो दूसरों को बताते हैं कि मसीह ने उनके लिए क्या किया। पर अब लोग देखना चाहते हैं कि आप मसीह के लिए क्या करते हैं?

हे प्रभु मुझे शक्ति दो और अभी दो। आपने मेरे लिए बहुत किया, अब मैं भी आपके लिए कुछ कर सकूँ, हाँ आज से ही, अभी से ही। अगर कोई शक्ति आपको यह प्रार्थना करने को मजबूर कर रही है, तो रुकिएगा नहीं। आपके दिल की दुआ कोई सुन रहा है, आप यकीन करें।

आपकी प्रार्थनाएं ही हमें पवित्र और इमानदार रख सकती हैं। आपकी प्यार भरी प्रार्थनाओं से आज तक हम संभले रहे हैं।

इसी उम्मीद से कि आप हमें अपने प्रार्थनाओं से संभाले रखेंगे - संपर्क संपादक