इस संपर्क में आपके प्रवेश के लिए आपका स्वागत है। मैं आपसे व्यक्तिगत तौर से सीधी बात करूँगा। सीधे आपसे, जी हाँ! सिर्फ आप ही से।
हमारे शब्द पैदा होते हैं और फिर मर जाते हैं। क्योंकि वे एक मरण्हार के शब्द हैं। मैं आपसे जीवित शब्दों के बारे में बात करूँगा। यह वो शब्द हैं जो परमेश्वर से जन्में हैं जो कभी मरता नहीं और ये शब्द भी नहीं मरेंगे। ये शब्द केवल कागज़ पर छपे शब्द नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि ये शब्द यहीं रह जाएंगे। पर यह शब्द आपका पीछा करेंगे क्योंकि ये ज़िन्दा शब्द हैं, ज़िन्दा परमेश्वर के शब्द हैं। ये मौत के बाद भी आपका पीछा नहीं छोड़ेंगे। इन्हीं श्ब्दों के द्वारा मौत के बाद आपका इन्साफ भी होगा।
वचन कहता है, “प्रभु के वचन को अपने मन में अधिकाई से बसने दो” (कुलुस्सियों ३:१६)। प्रभु आपको इसलिए पुकार रहा है क्योंकि वह आपका जवाब चाहता है। मान लीजिए कि आप जान-बूझ कर मुझे अनसुना कर दें तो आप मेरा अपमान करते हैं। अगर आप आज परमेश्वर की आवाज़ को सुनकर अनसुना कर दें तो यह उसका अपमान करना है। वह आपके इंतज़ार में है। वह चाहता है कि यह शब्द आपके दिल में जगह पाएं।
आदमी के मन में बहुत जगह है,
भलाई भुलाकर और बुराई सजाकर रखने की
ज़रा झांको तो अपने मन में कितनों के लिए बुराई है?
और कितनों की भलाई भूल गए?
आदमी की बात तो छोड़िए,
परमेश्वर के एहसानों का भी एहसास नहीं रहा।
संवारते शब्द
परमेश्वर के शब्द चोट तो बहुत करते हैं। इनकी चोट दर्द ही नहीं देती, पर यह दवा भी है। इनकी चोट इसलिए है कि आप दिल से अपने लिए एक दुआ कर सकें। दिल से निकली दुआ ही दवा बन जाएगी। आप अभी, जी हाँ अभी, आज ही कह कर तो देखिए, “प्रभु मुझे आपकी बात मानने का दिल दीजिए”।
आम किताबों में शब्दों को फूलों और तितलियों की तरह दबा कर रख दिया जाता है। वो वहाँ रखे अच्छे तो लगते हैं पर उनमें जीवन नहीं होता। जिन शब्दों में जीवन नहीं वो जीवन क्या देंगे? पर परमेश्वर के शब्दों में जीवन है, बहुतायत का जीवन है। इन शब्दों को अपना कर तो देखो। इसलिए वचन को प्रार्थना के साथ ध्यान से पढ़ो और ध्यान से सुनो।
मैं इन शब्दों से सिर्फ पन्ने नहीं भरना चाहता, पर चाहता हूँ कि इनकी सच्चाई आपके जीवन में उतर आए। पौलुस के वे शब्द जो उसने पवित्र आत्मा के द्वारा लिखे हैं, “हमारी पत्री तुम ही हो… जिसे स्याही से नहीं… पर जीवते परमेश्वर के आत्मा से… हृदय की मांस रूपी पट्टियों पर लिखा है” (२ कुरिन्थियों ३:२-३)। आपके स्वभाव से लोग क्या पढ़ते हैं? स्वभाव से ज़िन्दगी पढ़ी जाती है। केवल आपको ही नहीं, लोग आपके परिवार को भी पढ़ते हैं।
कुछ विश्वासी गवाही देते हैं।
गवाही अच्छी है।
जी हाँ, आपकी गवाही अच्छी है!
पर यह तो कल की है!
आपकी आज की क्या गवाही है?
क्या प्रभु से पहला सा प्यार है;
क्या पहला सा लगाव है?
प्रभु के काम के लिए,
प्रभु के घर के लिए,
प्रभु के लोगों के लिए,
ज़रा आज की सच्चाई तो बताना,
अपनी आज की गवाही तो बताना!
अभी इन शब्दों को जो आप पढ़ रहे हैं, क्या परमेश्वर इन के द्वारा आपसे बात कर रहा है? आप सुनें या ना सुनें, समझें या ना समझें, ये शब्द आपका पीछा कर रहे हैं। आप कहो तो सही, प्रभु मुझे सुनने वाले कान दे।
सामर्थी शब्द
“धन्य हैं वे जो परमेश्वर के वचन को सुनते और मानते हैं” (प्रकाशितवाक्य १:३)। वचन को सुनना है, मानना है, जीना है और इसे दूसरों को बताना है।
क्या आप मानते हैं?
क्या आप जीते हैं?
क्या इसे दूसरों को बताते हैं? हाँ या नहीं - अपने आप से पूछिएगा।
मसीह तो बहुतों के जीवन में है; पर बहुत कम हैं जिनका जीवन मसीह है, जो दूसरों को बताते हैं कि मसीह ने उनके लिए क्या किया। पर अब लोग देखना चाहते हैं कि आप मसीह के लिए क्या करते हैं?
हे प्रभु मुझे शक्ति दो और अभी दो। आपने मेरे लिए बहुत किया, अब मैं भी आपके लिए कुछ कर सकूँ, हाँ आज से ही, अभी से ही। अगर कोई शक्ति आपको यह प्रार्थना करने को मजबूर कर रही है, तो रुकिएगा नहीं। आपके दिल की दुआ कोई सुन रहा है, आप यकीन करें।
आपकी प्रार्थनाएं ही हमें पवित्र और इमानदार रख सकती हैं। आपकी प्यार भरी प्रार्थनाओं से आज तक हम संभले रहे हैं।
इसी उम्मीद से कि आप हमें अपने प्रार्थनाओं से संभाले रखेंगे - संपर्क संपादक
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