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शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

संपर्क अक्टूबर २०११ - कहीं आप ही न हों

देश भ्रष्ट, महाभ्रष्ट, परमभ्रष्ट बनता जा रहा है। देश ही क्या सारा संसार नर्क जाने से पहले खुद नर्क बनता जा रहा है। आप चाहते तो होंगे कि हमारे देश में जितने भी अपराधी और भ्रष्ट हैं उन्हें सज़ा मिलनी ही चाहिए।

ज़रा यहाँ रुकिएगा!

आप अपने बारे में सोचिएगा?

क्योंकि आपने भी तो शायद कभी रिश्वत ली और दी होगी, चोरी की होगी, गर्भपात करवाए होंगे, बिना टिकिट यात्राएं की होंगी, झूठ बोला धोखा दिया होगा, गलत संबंध रखे होंगे और कुछ बुरी लतों से बंधे होंगे। क्या यह सत्य नहीं?

आप अपने आप से सवाल कीजिएगा। कुछ न कुछ तो किया होगा जो नहीं करना चाहिए था।

हर अपराध पाप है आप मानें या ना मानें। हम में पाप है और पाप का ज़हर हर आदमी के लहू में है। या यूँ कहिए कि आदमी के डी०एन०ए० में है जो हमें परेशान, महापरेशान और परमपरेशान बनाता जा रहा है। कभी कभी तो मन अपने आप से यूँ कहता है, “तू मरता क्यों नहीं?”

कुछ लोग कहते हैं कि सख्त कानून और सख्त सरकारें ही संसार को बदल सकती हैं। संसार में कई जगह सख्त से सख्त कानून हैं, उनकी सरकारें बहुत व्यवस्थित हैं, पर वे भी आदमी का स्वभाव बदल नहीं सके।

कई लोगों का कहना है कि कई बार हालात आदमी को बहुत बदल देते हैं। अमेरिका पर हुए ९ सितंबर २००१ के आतंकवादी हमले के बाद टी०वी० पत्रकारों ने कहा, “अब अमेरिका हमेशा के लिए बदल जाएगा। उस दिन अमेरिका में बड़ी राष्ट्रीय भावना दिखाई दी। घरों पर राष्ट्रीय ध्वज दिखाई दिए, मुँह में राष्ट्रीय नारे थे। पर कुछ दिन बाद आदमी वैसा का वैसा ही था जैसे वो पहले था। कोई भी हालात आदमी को नहीं बदल सका।

क्या धर्म बदलेगा?

क्या धर्म आदमी को बदलेगा? अब तो धर्म खुद ही बदल गया है। धर्म की धारणा बदल गई कि मेरा धर्म अच्छा और आपका बुरा, मेरा धर्म ही सही है बाकि सब गलत हैं। धर्म सदियों से समाज और इन्सान को बदल नहीं पाया। यदि आप अपना धर्म भी बदल लें तब भी कुछ बदलने वाला नहीं है।

एक खास इसाई संप्रदाय में एक परंपरा है - एक खास दिन अपने पाप को अपने पादरी के सामने स्वीकार कर लेते हैं और वह उन्हें क्षमा कर देता है। बात बड़ी अजीब सी है कि पाप किसी के साथ करो और क्षमा किसी दूसरे से माँगो।

खैर कहानी इस तरह है - किसी विशेष बृहस्पतिवार को उपदेश के बाद लोगों ने अपने-अपने पाप पादरी साहब को अकेले में बताए और पादरी साहब ने उनको क्षमा पाने के तरीके समझाए। अगले दिन हर शुक्रवार को रीति के अनुसार फिर पापों का मानना होता है।

शुक्रवार को एक ट्रक ड्राइवर के साथ मामला उलझ गया।

पादरी साहब ने पूछा,

मियाँ, एक बात तो बताओ,

कल तुम कह रहे थे के तुम ने

खेत से जहाँ कोई नहीं था

एक ही बोरी अनाज की चुराई थी।

आज तुम कह रहे कि दो बोरी चोरी से लाया हूँ।

मामला क्या है?”

ट्रक ड्राइवर ने कहा, “पादरी साहब

कल तो एक बोरी चोरी करी थी और पश्चाताप किया।

आज भी उस खेत में कोई नहीं था।

इसलिए एक बोरी और भी हाथ लग गई।

इसलिए दो बोरी की चोरी हो गई।

अब दो बोरी का पश्चाताप करना पड़ेगा…”

यह पश्चाताप है या पश्चाताप का मज़ाक? क्या ऐसा पश्चाताप वास्तव में परिवर्तन ला सकता है? पर यह तो एक धर्म की रीति है।

मजबूरी का नाम परिवर्तन नहीं

कुछ लोग कहते हैं कि मजबूरियाँ आदमी को बदलती हैं। एक बच्चे ने माँ से बदतमीज़ी की। बाप ने कहा, “जब तक यह माँ से माफी नहीं माँगेगा तब तक इसे खाना नहीं मिलेगा। बच्चा ढिठाईपन दिखा कर अपने कमरे में चला गया। शाम धीरे धीरे रात में बदलने लगी। लड़के के पेट में चूहे फुदकने लगे, और लड़के की बरदाशात छूटने लगी। अब उसके पास माफी माँगने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा।

आखिर हार कर माँ के पास जाकर बोला, “माँ माफ कर दो।उसका यह पश्चाताप पाप का एहसास नहीं था पर यह भूख का एहसास था। ऐसा पश्चाताप वास्तविक पश्चाताप नहीं है।

हम बदलाव चाहते हैं कि मेरा जीवन बदले, परिवार बदले। आखिर जीवन कैसे बदले? क्या आप मानते हैं कि कोई परमेश्वर है? अगर है तो वो ही बदल सकता है; क्योंकि जो काम आदमी नहीं कर सकता वो परमेश्वर कर सकता है।

जब आदमी

मौत बस,

मौत ही माँगता हो

जो इस लेख को लिख रहा है यही इन्सान कितनी बार जीवन से भाग कर मौत माँगता था, मौत चाहता था। अचानक किसी ने मुझे यीशु के बारे में बताया। ईसाईयों के यीशु के बारे में नहीं, पर उस यीशु के बारे में जो जीवन देता है। आनन्द से भरा जीवन, एक ऐसा जीवन ओ जीने के लायक हो। मैं ने सिर्फ इतना ही तो कहा था, “हे यीशु मेरे पाप माफ करो और मेरा जीवन बदलो।सच मानिए मेरा धर्म नहीं बदला पर जीवन ही बदल गया।

यीशु की तस्वीर लगा लेने से क्या होता है? यह तो ऐसा है जैसे अन्धेरी दीवार पर प्रकाश शब्द लिख कर लटका देना। अन्धेरी दीवरों पर दीये की तस्वीर लगाने से भी उजियाला नहीं होता। अन्धेरे से मत लड़ो, जीत नहीं पाओगे। बस ज्योति को ले आओ, अन्धेरा भाग खड़ा होगा। इस सच्चाई की रौशनी में कोई अन्धेरा टिक नहीं सकता। यीशु ने कहा, “मैं जगत की ज्योति हूँ” (यूहन्ना ८:१२)

परमेश्वर प्यार है। वह आपको अपने स्वभाव में ढालना चाहता है। उसने आपके लिए अपनी ज़िन्दगी लुटा दी। वह आपको प्यार करता है। कोई कलम और ज़ुबान उसके प्यार को बता नहीं सकते। वो दोस्ती के लिए अपना हाथ आपकी तरफ बढ़ा रहा है। बात अब आप के हाथ फैलाने पर रुकी है। ताकि आप एक पश्चाताप की प्रार्थना के द्वारा एक ऐसा जीवन पा सकें जो आनन्द से भरा है। अब आप अपने को रोकिएगा नहीं। आप यहाँ प्रार्थना करेंगे, वहाँ पहुँचेगी और आप तक आनन्द और आशीष लेकर लौटेगी। जो आनन्द और खुशी आपको वो देगा और कोई नहीं दे पाएगा। बस मैंने इतना ही तो कहा था, “हे यीशु मुझ पापी पर दया करें।

प्रभु का क्रोध पाप पर है, आप पर नहीं। वह आपको बहुत प्यार करता है पर आपके पाप से नफरत करता है। परमेश्वर ने आपका वह पाप आप पर प्रकट किया है जो आप छिपाए बैठे हो। कल किसने देखा है? इसलिए अपने पाप के साथ कल का इंतज़ार करना बहुत खतरनाक है।

क्षमा या सज़ा

पर किसी ने आपके हाथ में यह पत्रिका सौंपी है ताकि आप अपने आप को जान लें। धन्य हैं वे जिनके पाप क्षमा हुए। इसमें एक अर्थ और छिपा है - दुखी हैं वे जिनके पाप क्षमा नहीं हुए। पाप की माफी पाने के लिए सबसे पहला काम है अपने आप को पापी मानना। यदि आप अपने आप को पापी नहीं मानते तो माफी माँगने का कोई अर्थ नहीं रहता।यदि हम कहें कि हम में कुछ भी पाप नहीं, तो अपने आप को धोखा देते हैंपर यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्यहै” (१ युहन्ना १:,)। पाप की माफी ही काफी नहीं है पर यह भी विश्वास करना है कि प्रभु यीशु मेरे पापों के लिए क्रूस पर मारा गया, गाड़ा गया और फिर तीसरे दिन जी उठा। उसका लहू मुझे सब पापों से शुद्ध करता है।

अगर आप अपने पाप की भयानकता का एहसास नहीं करते तो यह शुभ संदेश आपके लिए अशुभ संदेश होगा; क्योंकि इस संदेश को सुनने के बाद आपके पास कोई बहाना ना होगा कि आपको पाप की क्षमा का मौका नहीं दिया गया। प्रभु के बर्दाश्त की छिपी हुई सीमाएं हैं। कहीं ऐसा न हो कि उस दयालू परमेश्वर के पास भी आपके लिए दया न बचे; क्योंकि मौत के बाद दया का अर्थ नहीं बचता।

ये घड़ी आपके लिए बड़ी नसीब से मिली है, और फिर आपको यह घड़ी मिले या न मिले। अगर यह आपके हाथ से निकल गई तो फिर शायद आप इस घड़ी के लिए तरसते रह जाएंगे। जहाँ आपको नहीं होना चाहिए आप वहाँ जा पहुँचेंगे और वहाँ से लौट पाना फिर कभी संभव नहीं हो पाएगा। अभी फैसला कर लें कहीं ऐसा ना हो कि यह मौका आपको फिर कभी ना मिले।

बस यही तो कहना है, “हे यीशु मुझ पापी पर दया दिखाओ और मुझे मेरे पापों की क्षमा दे दो। एक ऐसा जीवन दे दो जो वास्तव में जीने के लायक हो।

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही बढ़िया और सरल उदहारणों के माध्यम से आपने क्षमा ,परिवर्तन ,पश्चाताप जैसी भावनाओं को बखूबी समझा है बहुत बढ़िया सारगर्भित एवं सारथा आलेख... जब तक हम खुद नहीं सुधार जाते सामने वाले को बुयारा कहना गलत है क्यूंकी जब हम दूसरे पर उंगली उठाते हैं तो हमारी ही तीन उँगलियाँ हमारी ओर ही इशारा कर रही होतो है।
    समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

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  2. पिता परमेश्वर पवित्र आत्मा पिता यीशु पिता का मेरे दिल से धन्यवाद है कि पिता ने आप जैसा महान और प्यारा दास हमारे बीच में भेजा ।

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