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मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009

सम्पर्क फरवरी २००१: संपादकीय प्रभु में प्रियों

आपका आभार प्रकट करने के लिये हमारे पास बहुत ही सीमित शब्द हैं। आपके प्यार भरे पत्र और पवित्र प्रार्थनाएं हमें संभालती और हियाव देती हैं। प्रभु यीशु की दया और आपका सहयोग रह तो “सम्पर्क” की सीमाएं, नये सदस्यों के साथ फैलती जाएंगी।

किसी बात को जानने में और समझने में बहुत बड़ा फर्क है। एक पत्नि अपने पति से गुस्से में बोली, “मैं तुम्हें खूब अच्छी तरह समझती हूँ।” वह अपने पति को न सिर्फ जानती थी वरन सालों उसकी संगति में रहकर अब वह उसकी बातों को और उसकी फितरत को खूब समझती थी। आज अधिकांश नये विश्वासियों के पास प्रभु की संगति का समय समाप्त सा होता जा रहा है। सुबह उन्हें बिस्तर नहीं छोड़ता, दिन व्यवसाय और काम से संबंधित भागा-दौड़ी में निकल जाता है और शाम को टी०वी० उन्हें पकड़ लेता है; बस उनके दिन ऐसे ही बीतते जाते हैं।

इसलिये बहुत से विश्वासी जानते तो बहुत हैं पर वचन को गंभीरता से समझ नहीं पाते। आपसी संबंधों में छोटी छोटी बातों पर आपस में उलझकर मच्छर छानने में लगे हैं और अपनी बेवकूफी से ऊँट निगले जा रहे हैं। जलन विरोध और बदले की भावना आदि सब ऊँट ही तो हैं जो निगले जा रहे हैं। ऐसे विरोध के पुराने पाप कितनी नई समस्याओं को जन्म देते हैं।

मक्कारों की भीड़ में वास्तविक विश्वासी खो सा गया है। ढूँढ कर देखो तो दो चार वास्तविक विश्वासी ही मिल पायेंगे। अब तो आलम यह है कि कई विश्वासियों पर ही विश्वास नहीं हो पाता। कई दफा हम यह गलत धारणा मन में रखकर जीते हैं कि प्रभु हमारी बरदाश्त कर ही लेगा, हमें माफ कर ही देगा। हम खुद हर बार परमेश्वर से क्षमा चाहते हैं पर हम खुद दूसरों को क्षमा करना नहीं चाहते। लेकिन वचन में लिखा है “और यदि तुम क्षमा न करो तो तुम्हारा पिता भी जो स्वर्ग में है, तुम्हारा अपराध क्षमा न करेगा (मरकुस ११:२६)।” “और जब कभी तुम खड़े हुए प्रार्थना करते हो तो यदि तुम्हारे मन में किसी की ओर से कोई विरोध हो तो क्षमा करो इसलिए कि तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा करे (मरकुस ११:२५)।” सच्चाई से क्षमा पाया हर एक जीवन हमेशा दूसरों को क्षमा करने का मन रखता है।

प्रभु पहले हमारे लिये काम नहीं करना चाहता, पर वह पहले हममें काम करना चाहता है। लेकिन कितनों ने अपने मन सख्त कर लिये हैं और प्रभु को काम करने देने के लिये समर्पित नहीं होते। इसलिए उनका आत्मिक प्रचार आत्मिक उपचार नहीं कर पाता। अगर यह सच है कि कुछ छोटी छोटी बातों के कारण दुसरों के प्रति आप अपने मन में विरोध पाले हुए हैं, तो आपके लिए यह सच्चाई और भी अधिक तीखी होगी कि ऐसे आप परमेश्वर के अनुग्रह का अपमान कर रहे हैं, चाहे यह बात आपके गले से नीचे उतरे या ना उतरे। परमेश्वर से माफी माँगना तो बहुत सहज होता है पर अपने भाई, बहिन, माँ-बाप, पत्नि, दोस्तों और मण्डली के लोगों से, दिल की सच्चाई से माफी माँगना बहुत कठिन होता है। यही छोटे पाप आपकी बड़ी आशीशों को रोके खड़े रहते हैं और आपको प्रभु के अनुग्रह से वंचित कर देते हैं। मन की यह गन्दगी हमारी सारी बन्दगी को व्यर्थ ठहरा देती है।

प्रभु ने शायद आपके मन को गहराई से खोदा और क्या कहीं यही सब कुछ तो नहीं पाया? हम झुकना नहीं चाहते, शायद दूसरों को झुकना चहते हैं। पतरस बहुत सालों बाद ही यह सीख पाया कि दीनता से कमर बँधी रहनी चाहिये। प्रभु के साथ पतरस का तीन साल का काम का रिकार्ड बहुत अच्छा नहीं था। बारह चेलों में बड़े बनने की बड़ी इच्छा से जूझता रहा, प्रभु के लिये जान देने का दावा करने के बाद कितने शर्मनाक ढंग से प्रभु का इन्कार कर गया। प्रभु तो उसकी यह सब बातें पहले ही से जानता था, लेकिन फिर भी दीनता के तौलिये को कमर पर कस कर प्रभु ने अपने पकड़वाने वाले शत्रु तक के पैर धो डाले। पतरस ने दीनता के इस पाठ को कई सालों बाद सीखा, और तब यह लिखा कि “तुम सब के सब एक दूसरे की सेवा के लिये दीनता से कमर बाँधे रहो (१ पतरस ५:५)।” ऐसे विश्वासियों के जीवन में और उनकी बातों में अनुग्रह नहीं दिखता, क्योंकि उनहोंने अपनी कमर दीनता से नहीं बांधी। इसलिये उनके अन्दर का आदाम का नंगा स्वभाव स्बके सामने बार बार आता रहता है। अगर आपका दिल भी किसी के प्रति विरोध से भरा है तो फिर आपको फैसला करना है कि या तो आप उसे ठीक करें या फिर ताड़ना के लिये तैयार रहें। यदि दिल सख्त किया तो प्रभु अपनों को अनुशासित करना भी जानता है। ध्यान रहे कि प्रभु की ताड़ना को हलकी बात न समझें, “हे मेरे पुत्र प्रभु की ताड़ना को हलकी बात न जान...(इब्रानियों १२:५)।” प्रभु हमें वास्तविक दीनता और एक मनता में बनाये रखे।

बन्द करने से पहले आपकी प्रार्थनाओं के लिये अनुरोध करता हूँ। ऐसा न हो कि हम आपको उपदेश पहुँचा कर खुद निकम्मे साबित हों। “सम्पर्क” पत्रिका के प्रकाशन के लिये भी विशेष प्रार्थना करें और अपनी प्रतिक्रिया भी हमें अवश्य लिखें। प्रभु ने चाहा तो आपसे “सम्पर्क” के अगले अंक के माध्यम से फिर सम्पर्क करेंगे।

प्रभु में आपका,
“सम्पर्क” परिवार

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