यूहन्ना प्रेरित नये नियम के उन आठ लेखकों में से एक है जिनके द्वारा पवित्र आत्मा ने नये नियम की २७ पुस्तकों को लिखवाया। उनमें से ५ पुस्तकों का लेखक यूहन्ना है।
यूहन्ना यहूदी धर्म का अनुयायी और गलील प्राँत के बेथसदा के निवासी जब्दी और शलोमी के छोटे बेटे थे। ये लोग गलील की झील से मछली पकड़ने का धंधा किया करते थे। यह झील २१ की०मी० लम्बी और ११ की०मी० चौड़ी है। इतनी बड़ी झील में वे पूरी पूरी रात मशालें लेकर नाव खेते थे। भारी जाल जो १०० फीट के घेरे में फैलता था, उसे उन्हें बार बार फेंकना और खींचना पड़ता था। ऐसी सख्त मेहनत ने इनके कंधों, हाथों और जिस्म को आम आदमी से कहीं ज़्यादा मज़बूत बना दिया था।
ये लोग अपना दिमाग का कम और शरीर का ज़्यादा उपयोग करते थे और लड़ने मरने को तैयार रहते थे। इसलिए इस्त्रायली लोग गलील के लोगों को बिलकुल अक्ल से पैदल समझते थे। इस्त्राएल के सर्वोच्च धर्म गुरुओं का विश्वास था कि गलील से कभी कोई नबी प्रकट नहीं होगा (यूहन्ना ७:५२)। अजीब बात यह थी कि प्रभु ने अपने १२ में से ११ चेलों को ऐसे गलील से ही चुना; बस एक यहूदा से था और वह था यहूदा इस्करियोती।
प्रभु के चुनाव को देखिये, उसने जगत के बेवकूफों को चुन लिया, जिन्होंने जगत को उथल पुथल कर डाला और मानवीय इतिहास में ऐसा परिवर्तन लाए जो आज २००० साल बाद भी रुका नहीं। मेरे प्रभु ने ऐसे लोगों को ऐसा बना दिया जैसा कभी कोई सोच भी नहीं सकता। वही प्रभु आज भी वैसा ही है और उसने कहा “मैं तुम्हें बनाऊँगा (मत्ती ४:१९)। जो कोई मेरे पास आयेगा उसे मैं कभी न निकालूँगा (यूहन्ना ६:३७)।” जो भी हो, जैसा भी हो, वह उसे निकालेगा नहीं पर बना देगा।
प्रेरितों के काम ५:३६,३७ पद बताते हैं किउस काल में इस्त्राएलियों ने रोमी सरकार के विरुद्ध कई विद्रोह किये थे और और उन विद्रोहों को रोमियों ने बुरी तरह कुचल डाला था। यूहन्ना ऐसे माहौल में पैदा हुआ और बड़ा हुआ परन्तु वह एक सच्ची शाँती का खोजी था इसलिए वह यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले का चेला बन गया। एक दिन उसके इस गुरू ने एक व्यक्ति को उसे दिखाया और उससे एक बड़े भेद की बात कही। उसने प्रभु की ओर इशारा करते हुए कहा “देखो यह परमेश्वर का मेमना है जो जगत के पाप उठा ले जाता है (यूहन्ना १:२९)।” बस फिर क्या था, उसने अपनी जवानी में ही अपना जीवन प्रभु को समर्पित कर दिया और प्रभु ने उसे एक ऐसा साहसिक पुरुष बना डाला जो इतिहास में अनन्त तक जीवित रहेगा।
यूहन्ना रचित सुसमाचार में यूहन्ना प्रेरित पवित्र आत्मा के द्वारा इतने सटीक शब्द चित्र प्रस्तुत करता है जैसे सीधे घटना स्थल से कोई चश्मदीद गवाह बोल रहा हो। इन बातों को कोई चुनौती दे नहीं सकता, जैसे: “यह बात दसवें घंटे की है(यूहन्ना १:३९)”; “और यह बात छटे घंटे के लगभग हुई (यूहन्ना ४:६)।” यह सुसमाचार इन घटनाओं के लगभग ५० साल बाद लिखा गया था पर इन घटनाओं का प्रभाव देखिये कि यूहन्ना को घंटे तक याद थे।
यूहन्ना प्रेरित हमारे सामने किसी एतिहासिक यीशु को नहीं रखता पर एक वास्तविक यीशु को जो स्वयं परमेश्वर है प्रस्तुत करता है। वह इसी बुनियादी सच्चाई को लेकर चलता है। वह अपना सुसमाचार आरंभ करता है “आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था और वचन ही परमेश्वर था। यही आदि में परमेश्वर के साथ था (यूहन्ना १:१,२)।” “आदि” शब्द किसी भी समय सीमा के साथ बांधा नहीं जा सकता। इन दो पदों में चार बार “था” शब्द का प्रयोग किया गया है। “आदि” में कितना भी पीछे चले जाएं, जहाँ जाएं वहाँ वचन “था” । यह वचन पैदा नहीं हुआ परन्तु हर जगह पहले ही से “था” । यह वचन सृष्टि नहीं, सृष्टिकर्ता है।
ध्यान दें इन तीन शब्दों पर - (१) ध्वनि, (२) शब्द, और (३) वचन। ध्वनि अर्थहीन होती है और शब्द या आवाज़ सन्देश वाहक होते हैं, जिनके द्वारा सन्देश या विचार हम तक पहुँचता है। लेकिन जिस “वचन” शब्द का प्रयोग यहाँ किया गया है वह इन दोनो से बिलकुल अलग है। उसमें अर्थ है, सामर्थ है: “और वह सब वस्तुओं को अपनी सामर्थ के वचन से सम्भालता है...” (इब्रानियों १:३)। इसी वचन के सुनने से विश्वास उत्पन्न होता है (रोमियों १०:१७)। यही वचन हमें सम्भालता और सुधारता है। यह वचन कोई फिलौसफी नहीं है, यह परमेश्वर के दिल की आवाज़ है। इसी वचन में परमेश्वर की सामर्थ और परमेश्वर की इच्छा है। यूहन्ना अपने इस सुसमाचार में ३६ बार इस “वचन” का प्रयोग करता है। ध्यान दें “वचन” शब्द का उप्योग करता है, वचन्मों का नहीं। प्रभु यीशु के ३७ नामों में से एक नम “परमेश्वर का वचन” भी है। यानि यही एकलौता वचन जो एकलौता पुत्र है।
मेरे लिए तो एक और बात है कि मैं इस वचन के द्वारा अपने अन्दर तक इमानदारी से देख पाता हूँ और यह मेरे लिए पवित्र आत्मा की आवाज़ है। प्रभु की दया से मैं इस वचन काअपने दिल से आदर करता हूँ, क्योंकि मैं जानता हूँ कि यही परमेश्वर है। यह मेरे लिए कोई इतिहास की किताब नहीं है, हर रोज़ का जीवन है। यह मेरे लिए ‘बड़े दिन’ या जन्म दिन का केक नहीं पर हर रोज़ की रोटी है। जब मैं दिल की सच्चाई से इसे पढ़ता हूँ तो मैं कई बार इसके सहारे अपने जीवन को पढ़ने लगता हूँ। जब मैं भटकने लगता हूँ तब यह मेरी अगुवाई कर सही मार्ग पर लाता है। इसमें ज़रा भी मिलावट नहीं है। शुरू में सारी सृष्टी इसी वचन के द्वारा ही सृजी गई और सृष्टी का अन्त भी इसी वचन के द्वारा ही होगा, और फिर सबका न्याय भी इसी वचन के अनुसार ही होना है।
यही वचन आदि में परमेश्वर के साथ था और आज यही वचन आपके पास है, जो आज आपसे बात कर रहा है। इसी वचन में प्रभु ने आज्ञाएं भी दीं हैं पर प्रभु बड़े दुखी मन से कहता है “जब तुम मेरा कहना नहीं मानतॆ तो क्यों मुझे हे प्रभु हे प्रभु कहते हो?” (लूका ६:४६)।
बहुतेरे विश्वासी बहुत सी पाप की छोटी छोटी रस्सियों से बन्धे खड़े हैं। जैसे इर्ष्या, विरोध, लालच, कई छिपे गंदे काम, दोगलापन-बोलते कुछ हैं पर करते कुछ और ही हैं। पाप की ऐसी छोटी छोटी रस्सियों से बन्धा जन कुछ भी करने की सामर्थ खो देता है।
एक बार हमारे आदरणीय भाई जॉर्डन खान मेरठ में आए थे। मैं उस समय लड़का सा ही था। वहाँ एक आदमी प्रार्थना में ज़ोर ज़ोर से शैतान को बाँध रहा था (शायद भाई जॉर्डन खान उस व्यक्ति को जानते हों)। भाई ने बीच में ही ज़ोर से डाँटकर कहा, “चुप कर तू क्या शैतान को बाँधेगा, तुझे तो खुद शैतान ने बाँध रखा है।” शब्द तीखे थे पर सत्य थे। अनेक लोग परमेश्वर के सामने घुटने झुकाए दिखते हैं पर वास्तव में उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन में शैतान के सामने घुटने झुका रखे हैं। जब उनके काम फंस जाते हैं तो चुपचाप इधर उधर रिश्वत देकर अपना काम निकलवा लेते हैं और फिर आकर सुनाते हैं कि कैसे प्रभु ने मेरे काम करवा डाले। क्या वास्तव में वह कम प्रभु ने करवाये या रिशवत ने? ये वे जीवन हैं जिनमें परमेश्वर के वचन का कोई काम नहीं है। ऐसे जीवन परमेश्वर के वचन का सीधा अपमान करते हैं, उस वचन का जो स्वयं परमेश्वर ही है।
एक बार की बात है, एक बूढ़े व्यक्ति ने अपने साथियों से पूछा, “ज़रा सामने देखो, वह जो आदमी बकरी को बाँधकर खींचे ले ज रहा है; क्या तुम मुझे बता सकते हो कि उस आदमी ने बकरी को बाँध रखा है या बकरी ने उस आदमी को?” उसके दोस्तों ने कहा “अबे यार तू वाकई में सठिया गया है। क्य तुझे दिखता नहीं कि आदमी ने बकरी को बाँध रखा है।” बुज़ुर्ग ने जवाब दिया “तो यार इन दोनो के बीच से इस रस्सी को हटा दे और तब बता कि बकरी आदमी के पीछे आएगी या आदमी बकरी के पीछे भागेगा।”
चाहे देखने में आदमी ने बकरी को बाँध रखा हो पर वासत्व में बकरी ने आदमी को बाँध रखा है। ऐसे ही कई नामधारी विश्वासियों को शैतान ने पाप की छोटी छोटी रस्सियों से बाँध रखा है। लेकिन इसी वचन में प्रभु ने अपनी बड़ी दया में कहा है “तुम सत्य को जानोगे और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा...(यूहन्ना ८:३२)।” “उसका वचन सत्य है। (यूहन्ना १७:१७)”
अगली बार प्रभु ने चाहा तो “सम्पर्क” के माध्यम से आप और हम फिर परमेश्वर के इस जीवित वचन से सम्पर्क करेंगे।
यूहन्ना यहूदी धर्म का अनुयायी और गलील प्राँत के बेथसदा के निवासी जब्दी और शलोमी के छोटे बेटे थे। ये लोग गलील की झील से मछली पकड़ने का धंधा किया करते थे। यह झील २१ की०मी० लम्बी और ११ की०मी० चौड़ी है। इतनी बड़ी झील में वे पूरी पूरी रात मशालें लेकर नाव खेते थे। भारी जाल जो १०० फीट के घेरे में फैलता था, उसे उन्हें बार बार फेंकना और खींचना पड़ता था। ऐसी सख्त मेहनत ने इनके कंधों, हाथों और जिस्म को आम आदमी से कहीं ज़्यादा मज़बूत बना दिया था।
ये लोग अपना दिमाग का कम और शरीर का ज़्यादा उपयोग करते थे और लड़ने मरने को तैयार रहते थे। इसलिए इस्त्रायली लोग गलील के लोगों को बिलकुल अक्ल से पैदल समझते थे। इस्त्राएल के सर्वोच्च धर्म गुरुओं का विश्वास था कि गलील से कभी कोई नबी प्रकट नहीं होगा (यूहन्ना ७:५२)। अजीब बात यह थी कि प्रभु ने अपने १२ में से ११ चेलों को ऐसे गलील से ही चुना; बस एक यहूदा से था और वह था यहूदा इस्करियोती।
प्रभु के चुनाव को देखिये, उसने जगत के बेवकूफों को चुन लिया, जिन्होंने जगत को उथल पुथल कर डाला और मानवीय इतिहास में ऐसा परिवर्तन लाए जो आज २००० साल बाद भी रुका नहीं। मेरे प्रभु ने ऐसे लोगों को ऐसा बना दिया जैसा कभी कोई सोच भी नहीं सकता। वही प्रभु आज भी वैसा ही है और उसने कहा “मैं तुम्हें बनाऊँगा (मत्ती ४:१९)। जो कोई मेरे पास आयेगा उसे मैं कभी न निकालूँगा (यूहन्ना ६:३७)।” जो भी हो, जैसा भी हो, वह उसे निकालेगा नहीं पर बना देगा।
प्रेरितों के काम ५:३६,३७ पद बताते हैं किउस काल में इस्त्राएलियों ने रोमी सरकार के विरुद्ध कई विद्रोह किये थे और और उन विद्रोहों को रोमियों ने बुरी तरह कुचल डाला था। यूहन्ना ऐसे माहौल में पैदा हुआ और बड़ा हुआ परन्तु वह एक सच्ची शाँती का खोजी था इसलिए वह यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले का चेला बन गया। एक दिन उसके इस गुरू ने एक व्यक्ति को उसे दिखाया और उससे एक बड़े भेद की बात कही। उसने प्रभु की ओर इशारा करते हुए कहा “देखो यह परमेश्वर का मेमना है जो जगत के पाप उठा ले जाता है (यूहन्ना १:२९)।” बस फिर क्या था, उसने अपनी जवानी में ही अपना जीवन प्रभु को समर्पित कर दिया और प्रभु ने उसे एक ऐसा साहसिक पुरुष बना डाला जो इतिहास में अनन्त तक जीवित रहेगा।
यूहन्ना रचित सुसमाचार में यूहन्ना प्रेरित पवित्र आत्मा के द्वारा इतने सटीक शब्द चित्र प्रस्तुत करता है जैसे सीधे घटना स्थल से कोई चश्मदीद गवाह बोल रहा हो। इन बातों को कोई चुनौती दे नहीं सकता, जैसे: “यह बात दसवें घंटे की है(यूहन्ना १:३९)”; “और यह बात छटे घंटे के लगभग हुई (यूहन्ना ४:६)।” यह सुसमाचार इन घटनाओं के लगभग ५० साल बाद लिखा गया था पर इन घटनाओं का प्रभाव देखिये कि यूहन्ना को घंटे तक याद थे।
यूहन्ना प्रेरित हमारे सामने किसी एतिहासिक यीशु को नहीं रखता पर एक वास्तविक यीशु को जो स्वयं परमेश्वर है प्रस्तुत करता है। वह इसी बुनियादी सच्चाई को लेकर चलता है। वह अपना सुसमाचार आरंभ करता है “आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था और वचन ही परमेश्वर था। यही आदि में परमेश्वर के साथ था (यूहन्ना १:१,२)।” “आदि” शब्द किसी भी समय सीमा के साथ बांधा नहीं जा सकता। इन दो पदों में चार बार “था” शब्द का प्रयोग किया गया है। “आदि” में कितना भी पीछे चले जाएं, जहाँ जाएं वहाँ वचन “था” । यह वचन पैदा नहीं हुआ परन्तु हर जगह पहले ही से “था” । यह वचन सृष्टि नहीं, सृष्टिकर्ता है।
ध्यान दें इन तीन शब्दों पर - (१) ध्वनि, (२) शब्द, और (३) वचन। ध्वनि अर्थहीन होती है और शब्द या आवाज़ सन्देश वाहक होते हैं, जिनके द्वारा सन्देश या विचार हम तक पहुँचता है। लेकिन जिस “वचन” शब्द का प्रयोग यहाँ किया गया है वह इन दोनो से बिलकुल अलग है। उसमें अर्थ है, सामर्थ है: “और वह सब वस्तुओं को अपनी सामर्थ के वचन से सम्भालता है...” (इब्रानियों १:३)। इसी वचन के सुनने से विश्वास उत्पन्न होता है (रोमियों १०:१७)। यही वचन हमें सम्भालता और सुधारता है। यह वचन कोई फिलौसफी नहीं है, यह परमेश्वर के दिल की आवाज़ है। इसी वचन में परमेश्वर की सामर्थ और परमेश्वर की इच्छा है। यूहन्ना अपने इस सुसमाचार में ३६ बार इस “वचन” का प्रयोग करता है। ध्यान दें “वचन” शब्द का उप्योग करता है, वचन्मों का नहीं। प्रभु यीशु के ३७ नामों में से एक नम “परमेश्वर का वचन” भी है। यानि यही एकलौता वचन जो एकलौता पुत्र है।
मेरे लिए तो एक और बात है कि मैं इस वचन के द्वारा अपने अन्दर तक इमानदारी से देख पाता हूँ और यह मेरे लिए पवित्र आत्मा की आवाज़ है। प्रभु की दया से मैं इस वचन काअपने दिल से आदर करता हूँ, क्योंकि मैं जानता हूँ कि यही परमेश्वर है। यह मेरे लिए कोई इतिहास की किताब नहीं है, हर रोज़ का जीवन है। यह मेरे लिए ‘बड़े दिन’ या जन्म दिन का केक नहीं पर हर रोज़ की रोटी है। जब मैं दिल की सच्चाई से इसे पढ़ता हूँ तो मैं कई बार इसके सहारे अपने जीवन को पढ़ने लगता हूँ। जब मैं भटकने लगता हूँ तब यह मेरी अगुवाई कर सही मार्ग पर लाता है। इसमें ज़रा भी मिलावट नहीं है। शुरू में सारी सृष्टी इसी वचन के द्वारा ही सृजी गई और सृष्टी का अन्त भी इसी वचन के द्वारा ही होगा, और फिर सबका न्याय भी इसी वचन के अनुसार ही होना है।
यही वचन आदि में परमेश्वर के साथ था और आज यही वचन आपके पास है, जो आज आपसे बात कर रहा है। इसी वचन में प्रभु ने आज्ञाएं भी दीं हैं पर प्रभु बड़े दुखी मन से कहता है “जब तुम मेरा कहना नहीं मानतॆ तो क्यों मुझे हे प्रभु हे प्रभु कहते हो?” (लूका ६:४६)।
बहुतेरे विश्वासी बहुत सी पाप की छोटी छोटी रस्सियों से बन्धे खड़े हैं। जैसे इर्ष्या, विरोध, लालच, कई छिपे गंदे काम, दोगलापन-बोलते कुछ हैं पर करते कुछ और ही हैं। पाप की ऐसी छोटी छोटी रस्सियों से बन्धा जन कुछ भी करने की सामर्थ खो देता है।
एक बार हमारे आदरणीय भाई जॉर्डन खान मेरठ में आए थे। मैं उस समय लड़का सा ही था। वहाँ एक आदमी प्रार्थना में ज़ोर ज़ोर से शैतान को बाँध रहा था (शायद भाई जॉर्डन खान उस व्यक्ति को जानते हों)। भाई ने बीच में ही ज़ोर से डाँटकर कहा, “चुप कर तू क्या शैतान को बाँधेगा, तुझे तो खुद शैतान ने बाँध रखा है।” शब्द तीखे थे पर सत्य थे। अनेक लोग परमेश्वर के सामने घुटने झुकाए दिखते हैं पर वास्तव में उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन में शैतान के सामने घुटने झुका रखे हैं। जब उनके काम फंस जाते हैं तो चुपचाप इधर उधर रिश्वत देकर अपना काम निकलवा लेते हैं और फिर आकर सुनाते हैं कि कैसे प्रभु ने मेरे काम करवा डाले। क्या वास्तव में वह कम प्रभु ने करवाये या रिशवत ने? ये वे जीवन हैं जिनमें परमेश्वर के वचन का कोई काम नहीं है। ऐसे जीवन परमेश्वर के वचन का सीधा अपमान करते हैं, उस वचन का जो स्वयं परमेश्वर ही है।
एक बार की बात है, एक बूढ़े व्यक्ति ने अपने साथियों से पूछा, “ज़रा सामने देखो, वह जो आदमी बकरी को बाँधकर खींचे ले ज रहा है; क्या तुम मुझे बता सकते हो कि उस आदमी ने बकरी को बाँध रखा है या बकरी ने उस आदमी को?” उसके दोस्तों ने कहा “अबे यार तू वाकई में सठिया गया है। क्य तुझे दिखता नहीं कि आदमी ने बकरी को बाँध रखा है।” बुज़ुर्ग ने जवाब दिया “तो यार इन दोनो के बीच से इस रस्सी को हटा दे और तब बता कि बकरी आदमी के पीछे आएगी या आदमी बकरी के पीछे भागेगा।”
चाहे देखने में आदमी ने बकरी को बाँध रखा हो पर वासत्व में बकरी ने आदमी को बाँध रखा है। ऐसे ही कई नामधारी विश्वासियों को शैतान ने पाप की छोटी छोटी रस्सियों से बाँध रखा है। लेकिन इसी वचन में प्रभु ने अपनी बड़ी दया में कहा है “तुम सत्य को जानोगे और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा...(यूहन्ना ८:३२)।” “उसका वचन सत्य है। (यूहन्ना १७:१७)”
अगली बार प्रभु ने चाहा तो “सम्पर्क” के माध्यम से आप और हम फिर परमेश्वर के इस जीवित वचन से सम्पर्क करेंगे।
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