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बुधवार, 28 अक्तूबर 2009

सम्पर्क फरवरी २००१: यात्रा की समाप्ति के समीप

(संपादक के संक्षिप्त शब्दों के साथ)

एक ऐसे जीवन के साथ थोड़ी देर गुज़ारिएगा जो अब मौत के बिल्कुल करीब खड़ा है। मालूम नहीं पर ऐसा हो सकता है कि जब तक “सम्पर्क” का यह अंक आप तक पहुँचे वह प्रभु के पास न पहुँच जाए। डॉक्टरों के अनुसार उसके जिस्म में जीने के लिए अब ज़्यादा कुछ बचा ही नहीं है। जनवरी में इस भाई का यह संदेश मुझे मिला कि वह मुझ से मिलना चाहता है। मैं उससे जाकर मिला। मिलते ही उसने मुझसे पूछा, भाई आपकी तबियत कैसी है? और कहा मैं आपके लिए प्रार्थना करता हूँ। उसके चेहरे पर कोई उदासी नहीं थी, वह खुश था, जबकि वह मौत के इतना करीब था, मौत का ज़रा सा भी डर उसमें नहीं था। मौत के सामने खड़ा होकर जैसे मौत का मज़ाक बना रहा हो। वह अपने प्रभु के पास जाने की तैयारी में था। जब हम उसे छोड़ कर जाने लगे तो उसने मुझसे कहा कि मेरे पास लोग आते हैं पर उन्हें देने के लिए मेरे पास सुसमाचार के पर्चे नहीं हैं। मैंने जाते हुए पिछले सम्पर्क के अंक की कुछ प्रतियां उसे दीं। उसमें इस संसार से जाते जाते भी अपने प्रभु के लिए कुछ कर डालने की साहसिक इच्छा थी। ऐसे जलते हुए जीवन के सामने खड़ा होना ज़रा भी सहज नहीं है।

(अनिल भाई ने यह गवाही खुद नहीं लिखी क्योंकि वह लिखने लायक हाल में नहीं था। वह जो बोलता गया, एक दूसरा भाई लिखता रहा।)

मेरा नाम अनिल कुमार है। मेरा जन्म उत्तरांचल के हरिपुर गाँव, ज़िला देहरादून में सन् १९६५ में हुआ। कई साल के बाद हम हिमाचल प्रदेश के किल्लौड़ गाँव में आकर बस गए। जब मैं बड़ा हुआ तो मेरे मन में यह इच्छा जन्मी के मैं परमेश्वर को कैसे पा सकता हूँ? इसलिए मैं हमेशा परमेश्वर की खोज में लगा रहा करता था। मैंने बहुत दूर दूर अनेकों तीर्थों की यात्राएं भी कर डालीं लेकिन मुझे सच्चे परमेश्वर की शांति नहीं मिल पाई। एक दिन मुझे एक जन ने प्रभु यीशु के बारे में पढ़ने के लिए एक पर्चा दिया। मैंने उसे पढ़ा पर विश्वास नहीं कर पाया कि प्रभु यीशु ही सच्चा परमेश्वर है और वही मुझे सच्ची शाँति दे सकता है। इसके बाद मैं अचानक बहुत बिमार हो गया और मुझे अस्पताल में भर्ती कराया गया। उस अस्पताल में भी प्रभु यीशु का सुसमाचार सुनाया जाता था। एक दिन मैंने परमेश्वर के वचन से एक पद, “हे सब बोझ से दबे और थके लोगों मेरे पास आओ मैं तुम्हें विश्राम दूंगा-मत्ती ११:२८” पर सुसामाचार सुना। पहली बार मुझे एहसास हुआ जैसे कोई मुझसे बात कर रहा है और आशवासन दे रहा है कि मैं तुम्हें विश्राम दूँगा। मुझे निश्चय हो गय कि यह किसी मनुष्य की आवाज़ नहीं है, यह परमेश्वर ही मुझसे बोल रहा है।

इसके बाद मुझे यह अहसास हुआ कि मैं एक पापी मनुष्य हूँ और पाप के बोझ से दबा एक बेचैन व्यक्ति हूँ। मुझे पाप के बोझ से छुटकारे की ज़रूरत है। मैंने परमेश्वर के वचन की इस सच्चाई पर विश्वास किया कि प्रभु यीशु ने मेरे पापों का बोझ अपने उपर लेकर अपनी जान दी और मर कर तीसरे दिन जी उठा। अचानक मेरी बीमारी बढ़ने लगी और मुझे खून की काफी उल्टियाँ आने लगीं। लेकिन मैं प्रभु की दया के सहरे चँगा होकर घर आ गया। घर आने के बाद मैं प्रभु यीशु को और जो काम उसने मेरे जीवन में किया था, फिर सब भूल गया।

यूं सालों बीत गये, तब एक दिन हमारे गाँव में कुछ विश्वासी भाई प्रभु यीशु का संदेश लेकर आये। उन भाईयों ने मुझे फिर प्रभु यीशु के प्रेम के बारे में बताया। इससे मेरे विश्वास में एक नयी जान जागी और मैं प्रभु में बढ़ने लगा। उन्होंने मुझे निमंत्रण दिया कि भाई आप हमारे यहाँ संगति में आया करो। फिर मैं लगातार प्रभु के लोगों की संगति में जाने लगा। जब मैं प्रभु के लोगों में आया तो तब प्रभु ने मुझे अपने वचन से यह निश्चय दिया कि उसने मेरे पापों को माफ कर दिया और मेरे अन्दर पाप की बिमारी को चंगा कर दिया है। प्रभु ने मुझे अद्भुत शांति और अद्भुत आनंद से भर दिया।

आज भी मैं शारीरिक तौर से बहुत बीमार हूँ और बीमारी के बिस्तर पर हूँ लेकिन तौ भी मेरे पास प्रभु की अद्भुत शांति और आनन्द है। मैंने परमेश्वर के वचन में अय्युब नाम के एक व्यक्ति के बारे में पढ़ा है कि वह कैसी कैसी मुशकिलों और दुखों से होकर गुज़रा लेकिन तब भी उसने न केवल विश्वास को थामे रखा, वरन उसने परमेश्वर को धन्यवाद ही दिया। इससे मेरे विश्वास को और बढ़ोत्री मिली कि चाहे दुख हो या खुशी, हमें प्रभु को नहीं भूलना चाहिए, बल्कि धन्यावाद ही देना चाहिए कि प्रभु परमेश्वर जो भी तूने किया उसके लिए तेरा धन्यवाद हो। परमेश्वर के वचन में मैंने पढ़ा कि सब बातें मिलकर, उनके लिए जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं, भला ही उत्पन्न करती हैं - रोमियों ८:२८। अब मेरे पास एक जीवित आशा है कि चाहे मैं मरुं या जीऊँ, प्रभु मुझे नहीं छोड़ेगा। अगर मैं मर गया तो एक दिन प्रभु के साथ स्वर्ग में होऊंगा। इस संसार से जाने से पहले मैं आप से कहना चाहता हूँ, प्रियों क्या आपके पास ऐसा अद्भुत आनन्द और सच्ची शांति है? यदि नहीं तो आज ही प्रभु यीशु की तरफ अपने हाथ फैला कर उससे माँगें और वह आपको देगा।

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