गुजरात के २६ जनवरी २००१ में आये भयानक भूकम्प से ठीक ८१ दिन पहिले. सम्पर्क के पहिले अंक (सम्पर्क ५ अक्टूबर २०००) के पृष्ठ तीन में यह अंश छपा था “और कोई भी अगला भूकम्प का झटका हमारे शहर को पल भर में मलबे के ढेर में बदल सकता है और उस मलबे के ढेर में कुछ ज़िंदा लोग मुर्दा लाशों को ढूँढते फिरेंगे।”
वैज्ञानिकों का मानना है कि पिछले दस सालों में आये भूकम्पों की संख्याओं में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है। परमेश्वर का वचन दो हज़ार साल पहिले ही हमें बताता है कि “यह सब बातें पीड़ाओं का आरम्भ होंगी।” “... और जगह जगह अकाल पड़ेंगे और भुईंडोल होंगे (मत्ती २४:७,८)।” आने वाली घटनाओं को देखकर लोगों के जी में जी न रहेगा। परमेश्वर के वचन के ११८९ अध्याय के लगभग ७,७४,७४७ शब्दों में से एक शब्द भी, हज़ारों साल के इतिहास में, कभी बिना पूरा हुए नहीं रहा और न रहेगा। परमेश्वर का वचन कहता है “पर यह जान रख कि अंतिम दिनों में कठिन समय आयेंगे (२ तिमुथियुस ३:१)।” अगले झटके में यह भी हो सकता है कि जिस छत के नीचे आप बैठे हों वही छत नीचे आ पड़े। अभी तो इस संसार को और भी अधिक भयानक पीड़ाओं, आपदाओं एवं बीमारियों का सामना करना है। ऐसी पीड़ा कि आदमी पीड़ा के मारे अपनी ज़ुबान खुद ही चबा जाए (प्रकाशितवाक्य १६:१०,११)। “यहोवा की पस्तक में से ढूँढ कर पढ़ो, इनमें से एक भी बात बिना पूरी हुए नहीं रहेगी (यशायह ३४:१६)।” ज़रा ध्यान दें, ‘परमेश्वर की पुस्तक’ बाईबल किसी धर्म विशेष की पुस्तक नहीं है। हमारे मनों में यह बात इस तरह बैठा दी गई है कि हम ‘यीशु मसीह’ को इसाई धर्म से अलग करके सोच ही नहीं सकते; जबकि यह सोच बिलकुल गलत और झूठ है। सम्पूर्ण बाईबल का एक एक पद छान डालिएगा, पहिले तो बाईबल में ‘इसाई’ या ‘इसाई धर्म’ जैसा कोई शब्द ही नहीं ढूँढ पाएंगे; फिर प्रभु की शिक्षाओं में धर्म परिवर्तन की कोई बात कहीं नहीं मिलेगी। प्रभु यीशु जगत के पापी, निराश और बेचैन लोगों को उद्धार देने और अपनी शाँति देने आया था, कोई धर्म देने नहीं। वह नहीं चाहता कि आने वाले प्रकोप की भयानकता की चपेट में कोई आ फंसे।
हमारे मनों में कुछ गलत धारणाऐं घर कर गई हैं। बात बहुत पुरानी है, जब मैं अविवाहित था। एक दिन मैं पापों क्षमा और सच्ची शाँति के बारे में कुछ पर्चे बाँट रहा था। एक जवान आकर कहने लगा कि यदि मैं इसाई धर्म अपना लूं तो मुझे क्या मिलेगा? मुझे तो खुद ही तीन पीढ़ी के बाद इसाई धर्म से छुटकारा मिला था, इसलिए अभी जवाब सोच ही रहा था कि उसने मुस्करा कर खुद ही बात फेंकी, “यार बस अमरीका-समरीका ही भिजवा देना।” मैंने कहा “यार मैं ही नहीं गया हूँ, तो तुम्हें कैसे भिजवाऊँगा?” उसने तुरन्त तीसरी बात ठोंकी, “अच्छा यार कम से कम मेरी शादी तो करवा ही दोगे?” मैंने कहा “इतने साल हो गये पर्चे बांटते बांटते, अभी मेरी ही शादि नहीं हुई तो तुम्हारी कहाँ से करवा दूँ? पर जो मुझे मिला है वह मैं तुम्हें बता सकता हूँ। मैं जीवन से निराश होकर मौत ढूँढता था पर पापों की क्षमा के बाद मुझे आनन्द से भरा हुआ जीवन मिल गया है।” यह इस बेचारे जवान की ही धारणा नहीं, अधिकांश व्यक्तियों में भी यह धारणा व्याप्त है।
ऐसा कौन सा धर्म है जिसे परमेश्वर ने सर्टिफिकेट दिया हो कि यह ‘परमेश्वर का धर्म’ है? आदमी जब पैदा होता है तब धर्म की कैद से आज़ाद होता है। धीरे धीरे धर्म का ज़हर दिमागों में भर कर आदमी को ज़हरीला बनाया जाता है। उसके मन में भरा जाता है कि ‘मेरा धर्म अच्छा है और दूसरे का बुरा।’ धर्म ने आदमी को आदमी से जोड़ा नहीं वरन आपस में तोड़ डाला है। सारी उम्र आदमी धारणाओं की एक कैद में जीता है, धर्म की ज़ंज़ीरों को गहने की तरह पहिनता है, और इन धारणाओं से जुड़े भले-बुरे के बोझ से दबी ज़िन्दगी को शमशान तक घसीटता है। धर्म हमारी एक ऐसी कैद है जहाँ हम आजीवन कारावास काटते हैं, जन्म से मृत्यु तक। धर्म के बाहर झांकना भी पाप समझा जाता है, पर जो वास्तव में पाप है, उसे पाप नहीं मानते।
एक भी ऐसा धर्म दिखा दीजीए या ढूँढ कर बताईये जिसमें जान लेने वालों या देने वालों, झूठ बोलने वालों आदि की कमी हो। सिर्फ नाम का ही तो फर्क है, व्यवहार तो सब के अनुयायियों में एक जैसा ही है। क्या यह सब चचेरे - मौसेरे भाई नहीं? धर्म पहिले तो हमें अन्धा बना देता है, और फिर हमें आईना दिखाता है। परमेश्वर पहिले हमारी आँखें खोलता है, तब हमें आईना दिखाता है, हमारी बेचैनी, निराशा, बोझ बनी ज़िन्दगी और इन सब की वजह हमारे जीवन का पाप हमें दिखाता है। रिशवत लेना और देना आज एक आम और खुली बात हो गयी है। झूठ और फरेब के सहारे अपना उल्लू सीधा करना अक्लमंदी मानी जाती है। अश्लीलता का खुला नाच हमारे परिवारों में घुस आया है। स्वयं माँ-बाप अपने बच्चों को अशलील नाच-गानों में भाग लेने और नुमाइश बनने को उत्साहित कर रहे हैं। टी०वी० ने बच्चों को बचपन में ही जवान बना दिया है। जिस किसी जीवन में पाप है, उस में पाप का श्राप और उससे उत्पन्न बेचैनी भी होगी। यही बेचैनी हर एक मनुष्य, मनुष्यों के परिवार और फिर इन परिवारों से बने हमारे समाज में भी दिखेगी, उन पर प्रभाव करेगी। इसीलिए हमारे परिवार और समाज इस बेचैनी को ढो रहे हैं।
एक आयकर विभाग में काम करने वाला व्यक्ति मुझे अपना नया घर दिखा रहा था। घर काफी बड़ा और महंगी चीज़ों से सुसज्जित था। वह व्यक्ति बार बार मुझ से कहता “बस यह सब ऊपर वाले की कृपा है” और मैं अपने मन में कह रहा था कि यह सब ऊपरी कमाई की कृपा है। बस चोरी करने का अवसर मिलना चाहिये - बिजली की चोरी या ऑफिस से कागज़ कलम की चोरी हो। रेल में बिन टिकट यात्रा कर लो। शादी से पहिले और शादी के बाद भी गलत सम्बंध रख लो, कितने गर्भपात करा लो। मुझे ताज्जुब होता है ऐसे बूढ़े लोगों को देखकर जिनके पैर कब्र में लटके हैं, मुँह में दाँत नहीं, पेट में आँत काम नहीं करती, आँखों पर मोटे चश्मे लगे हैं लेकिन अशलील पुस्तक-पत्रिकाओं, चित्रों और फिल्मों में पोपले मुँह खोलकर ऐसी ललचाई निगाहों से घूरते हैं कि यदि मौका मिले तो पता नहीं क्या कुछ कर डालें।
कितनों ने अपनी बुरी लतों से अपने परिवारों को नरक बना डाला है। कितने ही पति-पत्नी मजबूरी में साथ जुड़कर रहते दिखते हैं, पर उनके दिल कभी जुड़े नहीं। कुछ के पास बहुत धारदार बुद्धी और पैसे की भरमार है फिर भी अन्दर एक खालीपन और बेचैनी है। परेशान से एक मजबूरी की ज़िन्दगी जी रहे हैं और अपनी बेचैनी दुसरों के जीवन में भी घोल रहे हैं। ऐसी ज़िन्दगी को क्या खाक ज़िन्दगी कहेंगे? इन्सान ने इन्सानियत को कन्धा देकर शमशान तक पहुँचा दिया है। बस अब इस मरी हुई इन्सानियत का दाह संस्कार भर करना ही बाकी है। जो भी हम बो रहे हैं उन पापों का परिणाम भी हम ही काटेंगे। अचानक वह सब हो जाएगा जिसकी आप कल्पना भी नहीं करते हैं। अब इस संसार का अन्त उसके समीप खड़ा है। परमेश्वर आपके और हर एक के हर एक पाप का खुला हिसाब लेगा, चाहे वह कितने ही छिप कर या चालाकी से क्यों न किये गए हों। मौत के बाद की भयाकनता को शायद हम अपने शब्दों के सहारे आपको नहीं समझा पाएं, परमेश्वर का वचन कहता है “जीवते परमेश्वर के हाथों में पड़ना भयानक बात है (इब्रानियों १०:३१)” और उससे बचकर भागना असंभव है। लेकिन अपने न्याय से पहिले, परमेश्वर अपने प्रेम में, आपको पश्चाताप का अवसर और निमंत्रण दे रहा है।
मेरे प्रिय पाठक, कहीं आपके जीवन में कुछ ऐसे छिपे पाप तो नहीं जो आपको बेचैन करते हैं, कचोटते हैं? आप कैसे ही क्यों न हों, आपके काम कितने ही शर्मनाक क्यों न हों, परमेश्वर का प्रेम सब को क्षमा करने की क्षमता रखता है। प्रेम सब कुछ सह लेता है। प्रभु यीशु प्रेम है, उसने जगत से ऐसा प्रेम किया और उपाय किया कि जो कोई विश्वास करे वह नाश न हो(यूहन्ना ३:१६)। बस इतना ध्यान रखियेगा कि जब तक आप जगत में हैं तब तक उसके प्रेम की सीमाओं में हैं, जगत से बाहर निकलते ही आप उसके न्याय के अन्तर्गत आ जाते हैं जहां क्षमा नहीं, हिसाब लेना ही है।
आपका मन आपको धोखा दे सकता है और कह सकता है कि आपकी सच्चाई जानने के बाद आप जैसे व्यक्ति को कोई कैसे क्षमा कर सकता है, कैसे प्यार कर सकता है? वह तो आपके जीवन की हर बात और हर पाप को जानता है, केवल उसके सम्मुख उन्हें स्वीकार करने और क्षमा माँगने भर की बात है। या फिर आपको बहका सकता है कि यह तो छोटी सी बात है, सभी करते हैं, ऐसा किये बिना तो काम नहीं चल सकता, आदि। लेकिन जान रखिये पाप तो पाप ही है और उसका अन्जाम भी करने वाले को भुगतना ही है, फिर वह पाप छोटा हो या बड़ा, सब करते हों या कभी कोई करता हो। साथ ही यह भी जान रखिये कि कोई पाप या पापी परमेश्वर प्रभु यीशु की क्षमा और प्रेम से बड़ा नहीं है। परमेश्वर ऐसा प्यार क्यूँ करता है? क्यूँकि वह स्वभाव से ही प्रेम है। आपसे पूछा जाये कि माँ अपने बच्चों से ऐसा प्यार क्यूँ करती है? क्यूँकि यह माँ का स्वभाव है। यदि मैं आपसे कहूँ कि ‘ज़रा पानी को आग पर रखकर ठंडा कर लो’ तो यह बात निरर्थक होगी। क्यूँकि आग का स्वभाव है गर्म करना या जलाना और वह अपने स्वभाव के अनुसार ही कार्य करेगी, स्वभाव के विपरीत नहीं। इसी तरह प्रभु यीशु का स्वभाव है प्रेम करना, ऐसा प्रेम जो सबके सब पापों को क्षमा कर सकता है। वह नहीं चाहता कि आप इस जग पर आने वाली भयानक विपदाओं को भोगें और मौत के बाद हमेशा की भयानकता को।
प्रभु यीशु को धर्म के कट्टर अनुयायियों ने इतनी बुरी तरह ताड़ना दे देकर और अपमानित करके मारा कि उसकी स्वरूप आदमियों का सा नहीं दिखता था। कोड़ों से मार मार कर उसकी पीठ की खाल उधेड़ दी, थप्पड़ और घूँसे मारकर उसके चेहरा बिगाड़ दिया, सिर पर काँटों का ताज गूंथकर फंसा दिया। इस लहुलुहान और दयनीय दशा में भारी काठ का क्रुस उसकी पीठ पर लादकर उसे शहर से बाहर एक पहाड़ी पर ले गये, निर्वस्त्र किया, उसके हाथ और पाँव में कील ठोककर उस क्रूस पर लटका दिया फिर उसका ठठा करने लगे। अपने इन शत्रुओं को, इस भारी यातना में भी, प्रभु ने प्रेम से ही देखा और उनके नाश के लिये नहीं वरन उनके क्षमा के लिए प्रार्थना की “हे पिता इन्हें क्षमा कर, ये जानते नहीं कि ये क्या कर रहे हैं (लूका २३:३४)।”
लोग तो परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं, यहाँ परमेश्वर आपसे प्रार्थना कर रहा है कि आप अपने पाप की क्षमा माँग लें। संसार अपनी क्षमा की सीमाओं को लाँघ रहा है। कल का इन्तज़ार न कीजियेगा, कल कहीं काल के गाल में न हो। बस ‘आज’ आपके हाथ में है। प्रभु की तरफ क्षमा के लिये हाथ फैलाइये। इस धरती के धरातल पर कोई ऐसा दुष्ट नहीं है जिसे वह क्षमा न कर सके। वह नहीं चाहता कि आप नाश हों, इसिलिये उसने क्रूस पर अपनी जान दी और तीसरे दिन जी भी उठा। वह जीवित परमेश्वर है। अब आपके फैसले का समय है। या तो आप उसके ऐसे बेमिसाल और समझ के बाहर प्यार को ठोकर मारकर कहिये कि यह सब बकवास है, या फिर उसकी क्षमा को आदर और प्यार से अपने दिल में स्वीकार कीजिये और उससे कहिये - ‘हे प्रभु यीशु मुझ पापी पर दया कर, मेरे पाप क्षमा कर।’
वैज्ञानिकों का मानना है कि पिछले दस सालों में आये भूकम्पों की संख्याओं में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है। परमेश्वर का वचन दो हज़ार साल पहिले ही हमें बताता है कि “यह सब बातें पीड़ाओं का आरम्भ होंगी।” “... और जगह जगह अकाल पड़ेंगे और भुईंडोल होंगे (मत्ती २४:७,८)।” आने वाली घटनाओं को देखकर लोगों के जी में जी न रहेगा। परमेश्वर के वचन के ११८९ अध्याय के लगभग ७,७४,७४७ शब्दों में से एक शब्द भी, हज़ारों साल के इतिहास में, कभी बिना पूरा हुए नहीं रहा और न रहेगा। परमेश्वर का वचन कहता है “पर यह जान रख कि अंतिम दिनों में कठिन समय आयेंगे (२ तिमुथियुस ३:१)।” अगले झटके में यह भी हो सकता है कि जिस छत के नीचे आप बैठे हों वही छत नीचे आ पड़े। अभी तो इस संसार को और भी अधिक भयानक पीड़ाओं, आपदाओं एवं बीमारियों का सामना करना है। ऐसी पीड़ा कि आदमी पीड़ा के मारे अपनी ज़ुबान खुद ही चबा जाए (प्रकाशितवाक्य १६:१०,११)। “यहोवा की पस्तक में से ढूँढ कर पढ़ो, इनमें से एक भी बात बिना पूरी हुए नहीं रहेगी (यशायह ३४:१६)।” ज़रा ध्यान दें, ‘परमेश्वर की पुस्तक’ बाईबल किसी धर्म विशेष की पुस्तक नहीं है। हमारे मनों में यह बात इस तरह बैठा दी गई है कि हम ‘यीशु मसीह’ को इसाई धर्म से अलग करके सोच ही नहीं सकते; जबकि यह सोच बिलकुल गलत और झूठ है। सम्पूर्ण बाईबल का एक एक पद छान डालिएगा, पहिले तो बाईबल में ‘इसाई’ या ‘इसाई धर्म’ जैसा कोई शब्द ही नहीं ढूँढ पाएंगे; फिर प्रभु की शिक्षाओं में धर्म परिवर्तन की कोई बात कहीं नहीं मिलेगी। प्रभु यीशु जगत के पापी, निराश और बेचैन लोगों को उद्धार देने और अपनी शाँति देने आया था, कोई धर्म देने नहीं। वह नहीं चाहता कि आने वाले प्रकोप की भयानकता की चपेट में कोई आ फंसे।
हमारे मनों में कुछ गलत धारणाऐं घर कर गई हैं। बात बहुत पुरानी है, जब मैं अविवाहित था। एक दिन मैं पापों क्षमा और सच्ची शाँति के बारे में कुछ पर्चे बाँट रहा था। एक जवान आकर कहने लगा कि यदि मैं इसाई धर्म अपना लूं तो मुझे क्या मिलेगा? मुझे तो खुद ही तीन पीढ़ी के बाद इसाई धर्म से छुटकारा मिला था, इसलिए अभी जवाब सोच ही रहा था कि उसने मुस्करा कर खुद ही बात फेंकी, “यार बस अमरीका-समरीका ही भिजवा देना।” मैंने कहा “यार मैं ही नहीं गया हूँ, तो तुम्हें कैसे भिजवाऊँगा?” उसने तुरन्त तीसरी बात ठोंकी, “अच्छा यार कम से कम मेरी शादी तो करवा ही दोगे?” मैंने कहा “इतने साल हो गये पर्चे बांटते बांटते, अभी मेरी ही शादि नहीं हुई तो तुम्हारी कहाँ से करवा दूँ? पर जो मुझे मिला है वह मैं तुम्हें बता सकता हूँ। मैं जीवन से निराश होकर मौत ढूँढता था पर पापों की क्षमा के बाद मुझे आनन्द से भरा हुआ जीवन मिल गया है।” यह इस बेचारे जवान की ही धारणा नहीं, अधिकांश व्यक्तियों में भी यह धारणा व्याप्त है।
ऐसा कौन सा धर्म है जिसे परमेश्वर ने सर्टिफिकेट दिया हो कि यह ‘परमेश्वर का धर्म’ है? आदमी जब पैदा होता है तब धर्म की कैद से आज़ाद होता है। धीरे धीरे धर्म का ज़हर दिमागों में भर कर आदमी को ज़हरीला बनाया जाता है। उसके मन में भरा जाता है कि ‘मेरा धर्म अच्छा है और दूसरे का बुरा।’ धर्म ने आदमी को आदमी से जोड़ा नहीं वरन आपस में तोड़ डाला है। सारी उम्र आदमी धारणाओं की एक कैद में जीता है, धर्म की ज़ंज़ीरों को गहने की तरह पहिनता है, और इन धारणाओं से जुड़े भले-बुरे के बोझ से दबी ज़िन्दगी को शमशान तक घसीटता है। धर्म हमारी एक ऐसी कैद है जहाँ हम आजीवन कारावास काटते हैं, जन्म से मृत्यु तक। धर्म के बाहर झांकना भी पाप समझा जाता है, पर जो वास्तव में पाप है, उसे पाप नहीं मानते।
एक भी ऐसा धर्म दिखा दीजीए या ढूँढ कर बताईये जिसमें जान लेने वालों या देने वालों, झूठ बोलने वालों आदि की कमी हो। सिर्फ नाम का ही तो फर्क है, व्यवहार तो सब के अनुयायियों में एक जैसा ही है। क्या यह सब चचेरे - मौसेरे भाई नहीं? धर्म पहिले तो हमें अन्धा बना देता है, और फिर हमें आईना दिखाता है। परमेश्वर पहिले हमारी आँखें खोलता है, तब हमें आईना दिखाता है, हमारी बेचैनी, निराशा, बोझ बनी ज़िन्दगी और इन सब की वजह हमारे जीवन का पाप हमें दिखाता है। रिशवत लेना और देना आज एक आम और खुली बात हो गयी है। झूठ और फरेब के सहारे अपना उल्लू सीधा करना अक्लमंदी मानी जाती है। अश्लीलता का खुला नाच हमारे परिवारों में घुस आया है। स्वयं माँ-बाप अपने बच्चों को अशलील नाच-गानों में भाग लेने और नुमाइश बनने को उत्साहित कर रहे हैं। टी०वी० ने बच्चों को बचपन में ही जवान बना दिया है। जिस किसी जीवन में पाप है, उस में पाप का श्राप और उससे उत्पन्न बेचैनी भी होगी। यही बेचैनी हर एक मनुष्य, मनुष्यों के परिवार और फिर इन परिवारों से बने हमारे समाज में भी दिखेगी, उन पर प्रभाव करेगी। इसीलिए हमारे परिवार और समाज इस बेचैनी को ढो रहे हैं।
एक आयकर विभाग में काम करने वाला व्यक्ति मुझे अपना नया घर दिखा रहा था। घर काफी बड़ा और महंगी चीज़ों से सुसज्जित था। वह व्यक्ति बार बार मुझ से कहता “बस यह सब ऊपर वाले की कृपा है” और मैं अपने मन में कह रहा था कि यह सब ऊपरी कमाई की कृपा है। बस चोरी करने का अवसर मिलना चाहिये - बिजली की चोरी या ऑफिस से कागज़ कलम की चोरी हो। रेल में बिन टिकट यात्रा कर लो। शादी से पहिले और शादी के बाद भी गलत सम्बंध रख लो, कितने गर्भपात करा लो। मुझे ताज्जुब होता है ऐसे बूढ़े लोगों को देखकर जिनके पैर कब्र में लटके हैं, मुँह में दाँत नहीं, पेट में आँत काम नहीं करती, आँखों पर मोटे चश्मे लगे हैं लेकिन अशलील पुस्तक-पत्रिकाओं, चित्रों और फिल्मों में पोपले मुँह खोलकर ऐसी ललचाई निगाहों से घूरते हैं कि यदि मौका मिले तो पता नहीं क्या कुछ कर डालें।
कितनों ने अपनी बुरी लतों से अपने परिवारों को नरक बना डाला है। कितने ही पति-पत्नी मजबूरी में साथ जुड़कर रहते दिखते हैं, पर उनके दिल कभी जुड़े नहीं। कुछ के पास बहुत धारदार बुद्धी और पैसे की भरमार है फिर भी अन्दर एक खालीपन और बेचैनी है। परेशान से एक मजबूरी की ज़िन्दगी जी रहे हैं और अपनी बेचैनी दुसरों के जीवन में भी घोल रहे हैं। ऐसी ज़िन्दगी को क्या खाक ज़िन्दगी कहेंगे? इन्सान ने इन्सानियत को कन्धा देकर शमशान तक पहुँचा दिया है। बस अब इस मरी हुई इन्सानियत का दाह संस्कार भर करना ही बाकी है। जो भी हम बो रहे हैं उन पापों का परिणाम भी हम ही काटेंगे। अचानक वह सब हो जाएगा जिसकी आप कल्पना भी नहीं करते हैं। अब इस संसार का अन्त उसके समीप खड़ा है। परमेश्वर आपके और हर एक के हर एक पाप का खुला हिसाब लेगा, चाहे वह कितने ही छिप कर या चालाकी से क्यों न किये गए हों। मौत के बाद की भयाकनता को शायद हम अपने शब्दों के सहारे आपको नहीं समझा पाएं, परमेश्वर का वचन कहता है “जीवते परमेश्वर के हाथों में पड़ना भयानक बात है (इब्रानियों १०:३१)” और उससे बचकर भागना असंभव है। लेकिन अपने न्याय से पहिले, परमेश्वर अपने प्रेम में, आपको पश्चाताप का अवसर और निमंत्रण दे रहा है।
मेरे प्रिय पाठक, कहीं आपके जीवन में कुछ ऐसे छिपे पाप तो नहीं जो आपको बेचैन करते हैं, कचोटते हैं? आप कैसे ही क्यों न हों, आपके काम कितने ही शर्मनाक क्यों न हों, परमेश्वर का प्रेम सब को क्षमा करने की क्षमता रखता है। प्रेम सब कुछ सह लेता है। प्रभु यीशु प्रेम है, उसने जगत से ऐसा प्रेम किया और उपाय किया कि जो कोई विश्वास करे वह नाश न हो(यूहन्ना ३:१६)। बस इतना ध्यान रखियेगा कि जब तक आप जगत में हैं तब तक उसके प्रेम की सीमाओं में हैं, जगत से बाहर निकलते ही आप उसके न्याय के अन्तर्गत आ जाते हैं जहां क्षमा नहीं, हिसाब लेना ही है।
आपका मन आपको धोखा दे सकता है और कह सकता है कि आपकी सच्चाई जानने के बाद आप जैसे व्यक्ति को कोई कैसे क्षमा कर सकता है, कैसे प्यार कर सकता है? वह तो आपके जीवन की हर बात और हर पाप को जानता है, केवल उसके सम्मुख उन्हें स्वीकार करने और क्षमा माँगने भर की बात है। या फिर आपको बहका सकता है कि यह तो छोटी सी बात है, सभी करते हैं, ऐसा किये बिना तो काम नहीं चल सकता, आदि। लेकिन जान रखिये पाप तो पाप ही है और उसका अन्जाम भी करने वाले को भुगतना ही है, फिर वह पाप छोटा हो या बड़ा, सब करते हों या कभी कोई करता हो। साथ ही यह भी जान रखिये कि कोई पाप या पापी परमेश्वर प्रभु यीशु की क्षमा और प्रेम से बड़ा नहीं है। परमेश्वर ऐसा प्यार क्यूँ करता है? क्यूँकि वह स्वभाव से ही प्रेम है। आपसे पूछा जाये कि माँ अपने बच्चों से ऐसा प्यार क्यूँ करती है? क्यूँकि यह माँ का स्वभाव है। यदि मैं आपसे कहूँ कि ‘ज़रा पानी को आग पर रखकर ठंडा कर लो’ तो यह बात निरर्थक होगी। क्यूँकि आग का स्वभाव है गर्म करना या जलाना और वह अपने स्वभाव के अनुसार ही कार्य करेगी, स्वभाव के विपरीत नहीं। इसी तरह प्रभु यीशु का स्वभाव है प्रेम करना, ऐसा प्रेम जो सबके सब पापों को क्षमा कर सकता है। वह नहीं चाहता कि आप इस जग पर आने वाली भयानक विपदाओं को भोगें और मौत के बाद हमेशा की भयानकता को।
प्रभु यीशु को धर्म के कट्टर अनुयायियों ने इतनी बुरी तरह ताड़ना दे देकर और अपमानित करके मारा कि उसकी स्वरूप आदमियों का सा नहीं दिखता था। कोड़ों से मार मार कर उसकी पीठ की खाल उधेड़ दी, थप्पड़ और घूँसे मारकर उसके चेहरा बिगाड़ दिया, सिर पर काँटों का ताज गूंथकर फंसा दिया। इस लहुलुहान और दयनीय दशा में भारी काठ का क्रुस उसकी पीठ पर लादकर उसे शहर से बाहर एक पहाड़ी पर ले गये, निर्वस्त्र किया, उसके हाथ और पाँव में कील ठोककर उस क्रूस पर लटका दिया फिर उसका ठठा करने लगे। अपने इन शत्रुओं को, इस भारी यातना में भी, प्रभु ने प्रेम से ही देखा और उनके नाश के लिये नहीं वरन उनके क्षमा के लिए प्रार्थना की “हे पिता इन्हें क्षमा कर, ये जानते नहीं कि ये क्या कर रहे हैं (लूका २३:३४)।”
लोग तो परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं, यहाँ परमेश्वर आपसे प्रार्थना कर रहा है कि आप अपने पाप की क्षमा माँग लें। संसार अपनी क्षमा की सीमाओं को लाँघ रहा है। कल का इन्तज़ार न कीजियेगा, कल कहीं काल के गाल में न हो। बस ‘आज’ आपके हाथ में है। प्रभु की तरफ क्षमा के लिये हाथ फैलाइये। इस धरती के धरातल पर कोई ऐसा दुष्ट नहीं है जिसे वह क्षमा न कर सके। वह नहीं चाहता कि आप नाश हों, इसिलिये उसने क्रूस पर अपनी जान दी और तीसरे दिन जी भी उठा। वह जीवित परमेश्वर है। अब आपके फैसले का समय है। या तो आप उसके ऐसे बेमिसाल और समझ के बाहर प्यार को ठोकर मारकर कहिये कि यह सब बकवास है, या फिर उसकी क्षमा को आदर और प्यार से अपने दिल में स्वीकार कीजिये और उससे कहिये - ‘हे प्रभु यीशु मुझ पापी पर दया कर, मेरे पाप क्षमा कर।’
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