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रविवार, 6 दिसंबर 2009

सम्पर्क मई २००९: कल का सामना करने की सामर्थ...?

सूफी परम्परा की एक प्राचीन कहानी है। किसी राजा ने कहा “मुझे एक ऐसी सलाह चाहिये जो मेरे आड़े वक्त काम आये।” किसी सन्त ने एक कागज के टकड़े पर कुछ शब्द लिखकर राजा के पास भिजवा दिये और कहा “जब ज़रूरत पड़े तब खोल के पढ़ लेना।” राजा ने कागज़ के टुकड़े को अपने गले के लॉकेट में रखकर लटका लिया। सालों सिलसिला चलता रहा और वह सलह ऐसे ही गले में लटकी रही। लम्बे समय बाद राजा एक युद्ध पर निकला और आशा के विपरीत, जीत की बजाए उसे एक भारी हार का सामना करना पड़ा। हारे हुए राजा के विश्वास्योग्य साथी भी उसे छोड़कर भाग खड़े हुये। अकेला राजा भी अपनी जान बचाने को भागा, दुश्मन सिपाही उसके पीछे भागे। आखिर उसके प्रीय घोड़े ने भी थककर उसका साथ छोड़ दिया। राजा पैदल ही भागा लेकिन आखिर थके शरीर ने भी साथ देने से इंकार कर दिया, तौ भी वह हिम्मत करके आगे ही बढ़ता रहा, पीछा करने वाले भी बढ़ते आ रहे थे। अचानक उसके सामने एक बड़ी खाई आ गई, खाई के इधर उधर कोई रास्ता नहीं था, पीछे से पीछा करने वाले भी समीप आते जा रहे थे। अब राजा की हिम्मत भी जवाब दे गई, और वह थका और निराश औंधे मूँह खाई के किनारे जा गिरा। पीछा करने वाले घुड़सवारों की आवाज़ करीब आती जा रही थी और राजा को अपना पकड़ा जाना निश्चित लग रहा था। उसने सोचा इस अपमानजनक कैद से तो मौत भली और वह खाई में कूदकर आत्महत्या करने के इरादे से हाथों की टेक लगाकर उपर को उठा तो गले में लटके लौकेट में रखी सन्त की सलाह ध्यान आई। उसने जलदी से गले में झूलते हुए उस लॉकेट में से वह कागज़ का टुकड़ा निकाला और उसे खिलकर पढ़ा, जिसपर लिखा हुआ था “मत डर, यह वक्त भी न रहेगा।” उसे पढ़कर वह वैसे ही लेट गया। घोड़ों के टापों की आवाज़ कहीं पास आकर रुक गई और फिर धीर-धीरे हल्की होती गई और कहीं हवा में खो गई। कुछ समय बाद राजा भी उठा और अपने राज्य की ओर बढ़ चला, और बचते बचाते आखिर सुरक्षित पहुँच भी गया। राज्य में पहुँचकर उसने उस सन्त को बुलवाया, बड़े सम्मान के साथ उसका स्वागत किया, और उससे कहा “सच में जीवन के सबसे आड़े वक्त में आपकी सलाह जीवन दे गई। मैं तो खाई में कूदकर आत्महत्या करने ही वाला था पर आपके दिए यह कुछ शब्द काम आ गये।”

यह कहानी आपसे और मुझसे क्या कहती है? यदि परमेश्वर का वचन हमारे मन में रखा होगा तो वक्त के अनुसार वह हमारा मार्ग दर्शन भी करेगा। क्योंकि वचन ही बुरे वक्त में हर बुराई से बचने का एक अद्भुत सहारा है, इसलिये वचन को अपने मन में अधिकाई से बसने दो (कुलुसियों ३:१६)। अगर हम अपने मन में उसे रख छोड़ेंगे तो बुरे वक्त में परिस्थितयों का सामना करने और स्थिर रहने की सामर्थ भी उस वचन से मिलेगी।

इतिहास कहता है कि यीशु मसीह मारा गया पर परमेश्वर का वचन कहता है कि यीशु मसिह मेरे पापों के लिये मारा गया (१ कुरिन्थियों १५:३)। इतिहास कहता है कि मरने के तीन दिन बाद उसकी देह नहीं मिली पर परमेश्वर का वचन कहता है कि वह उसी देह में फिर से जी उठा। परमेश्वर के वचन का सत्य इतना सस्ता नहीं कि चश्मा चढ़ाकर पढ़ लेने मात्र से ही समझ में आ जायेगा। उसपर तो मन से विश्वास किया जाता है और मुँह से अंगीकार करना पड़ता है। विश्वास वचन के सुनने से आता है और मन में रख लेने से बढ़ता जाता है। परमेश्वर का वचन कभी खाली नहीं लौटता, यदि मन में लटका है तो एक दिन अपना काम ज़रूर करेगा (यशायाह ५५:११)।

जो पैग़ाम अम्बर से लाता है उस इन्सान को पैग़म्बर कहते हैं। पर जिस पैग़ाम को परमेश्वर खुद ही लाया हो और जिसके शब्दों में कुछ भी इन्सानी बुद्धी की बात न हो उस सत्य वचन को परमेश्वर का वचन कहते हैं। यह परमेश्वर का वचन इसीलिये उतना ही सत्य है जितना परमेश्वर और उतने ही आदर का पत्र है जितना स्वयं परमेश्वर। आज परमेश्वर का पैग़ाम अपके पास आया है “जिसके पास मेरा वचन है और वह उसका पालन करता है, वही है जो मुझ से प्रेम रखता है” (युहन्ना १४:२१), “समय पूरा हुआ है और परमेश्वर का राज्य निकट है इसलिये मन फिराओ और सुसमाचार पर विश्वास करो” (मरकुस १:१५), “परन्तु जितनों ने उसे (प्रभु यीशु को) ग्रहण किया उसने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास करते हैं” (यूहन्ना १:१२)।

आज वचन ने आपसे क्या कहा “सुन तो लो” (याकूब ४:१४)?


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