मेरा नाम फिलिप रत्नम है। मैं एक प्रभु को प्यार करने वाले परिवार में पैदा हुआ। परिवार में मेरे माता, पिता और हम चार भाई और बहनें हमेशा पारिवारिक प्रार्थना करते थे। पिताजी लगातार प्रभु की सेवा में बने रहते थे। अक्सर पिताजी को बीमारों और दुष्टात्माओं से ग्रसित लोगों के लिये विशेष प्रार्थना करने के लिये बुलाया जाता था। जहाँ तक स्वर्गीय स्वामी की सेवा करने की बात थी, वह रात हो या दिन कभी नहीं चूकते थे। वे एक गरीब परिवार से थे इसलिये लम्बी दूरियाँ अक्सर साईकिल या बस में तय करनी पड़ती थीं।
मैं अपने परिवार में सबसे छोटा था। जब मैं १३ सालो का होने को था उससे ७ दिन पहले ही पिताजी परमेश्वर के पास चले गये (यद्यपि हमारे लिये वह अभी भी जीवित हैं)। जबकि मैं ऐसे भक्त परिवार में पला फिर भी मेरा हृदय संसार के पीछे जाने लगा। १२ वर्ष की उम्र तक तो मुझे परमेश्वर के वचन के प्रति बहुत आकर्शण था लेकिन मेरे पिता के देहाँत के बाद मेरे परिवार ने परमेश्वर के घर में जाना छोड़ दिया। केवल मेरी बड़ी बहन ही परमेश्वर की संगति में जाती थी।
एक अच्छे विश्वासी परिवार में पले-बड़े होने का लाभ मुझे यह रहा कि एक ढाल मेरे जीवन में रहती थी। मेरा संसार स्कूल, घर और दोस्त ही थे। जबकि मैं मोहल्ले में रहने वाले दोस्तों के साथ खेलता पर फिर भी मैं उनकी तरह व्यवहार नहीं कर पाता था। न ही मैं गाली दे पाता था, न ही उनकी तरह लड़ पाता था, न ही उनकी तरह धोखा दे पाता था और न ही उनकी तरह बन पाता था। मैं सारी गालियाँ मुँहज़ुबानी जानता था पर उनको मुँह खोलकर इस्तेमाल नहीं कर पाता था। मैं सारी दुष्ट बातें जानता था पर उनको व्यवाहरिक तौर से कर नहीं पाता था। मैं एहसास करता था कि हर वक्त कोई सामर्थ मुझे इन बुराईयों से रोके रहती है।
एक दिन मैंने अपने आप में यह फैसला लिया कि मुझे परमेश्वर की ज़रूरत नहीं है, अब मैं खुद ही अपने आप को बहुत अच्छी तरह सम्भाल सकता हूँ। क्योंकि मैं सोचता था कि मैं दूसरों से होशियार हूँ इसलिये मैं स्वयं सारी परिस्थितियों का सामना कर सकता हूँ। उस दिन से मैंने बाईबल पढ़ना और नियमित प्रार्थना करना बन्द कर दिया और धीरे धीरे मेरी जो भी अभिलाशायें परमेश्वर से सम्बन्ध रखती थीं मिटती चली गईं और एक लम्बे समय के बाद पूरी तौर से मर गईं। अब मैं भी किसी अन्य ऐसे व्यक्ति के समान बन गया जो परमेश्वर पर निर्भर नहीं। अब मैं जो चाहे वह करने के लिये पूरी तरह आज़ाद था। परिवार में केवल मेरी बड़ी बहन ही अकेली इन सालों में प्रभु के साथ चलती रही। वह अकेली ही हर एक रविवार आराधना के लिये संगति में जाती, प्रार्थना करती और परमेश्वर के वचन को पढ़ती थी, और आज तक वैसे ही है, उसका विवाह भी एक अच्छे विश्वासी के साथ हुआ है।
मेरे बड़े भाई और मैंने परिवार की ज़रूरतों के कारण कम उम्र में ही काम करना शुरू कर दिया था। तब मेरी उम्र १८ साल की थी। अब जब मैं उन बातों पर विचार करता हूँ तो मुझे सोच कर आश्चर्य होता है कि जबकि मेरे पास कोई योग्यता या पढ़ाई की डिग्री नहीं थी फिर भी मैं जहाँ भी जाता और जो भी करता, उसमें सफलता मेरे आगे आगे चलती थी। मुझे लगता था कि मेरा जीवन ठीक सा चल रहा है लेकिन आज मैं एहसास करता हूँ कि मेरी ज़िन्दगी सच्चाई की समझ से हटकर एक पागलपन की तरफ दौड़ने लगी थी। मेरे अन्दर और ज़्यादा पाने की अभिलाशाएं पनपने लगीं और मैं संसार में ही सन्तोष ढूँढने लगा। इन बातों से अनजने में ही मेरे अन्दर यह धारणा पैदा होने लगी कि जब तक तुम किसी को दुःख न दो, कानून न तोड़ो या फिर पकड़े न जाओ जीवन में सब कुछ ठीक है । एक ही जीवन है इसलिये जितना हो सके उसका आनन्द उठाओ। जब तक जो तुम्हारे साथ हैं, सहमत हैं, तब तक सब बातें ठीक हैं। जीवन चलता गया और मेरी आदतें बुरी होती गईं लेकिन मेरे लिये वे बातें मात्र मनोरंजन थीं। मेरे परिवार वालों को इसके बारे में कुछ मालूम नहीं था। मेरी माँ, परिवार और अन्य लोग सोचते थे कि मैं एक बहुत अच्छा और सभ्य व्यक्ति हूँ। मेरे अन्दर एक दोहरा व्यक्तित्व पैदा हो गया। एक चेहरा जो दूसरों को दिखाने के लिये और दूसरा अपने आप को खुश करने के लिये। जैसे जैसे समय बीतता गया इन दोनो चेहरों को वक्त-ज़रूरत अनुसार इस्तेमाल करने में मैं माहिर हो गया।
एक समय ऐसा भी आया कि मैं एक छोटी गैंगवॉर में फँस गया। मैं एक ऐसे गिरोह के लोगों के साथ रहने लगा जो सिर्फ मुहल्ले की गलियों, इलाकों या कॉलेज में छोटी मोटी गुन्डागर्दी करते थे। हमने कुछ लोगों से दुश्मनी पाल ली। हममें से कुछ लोग और मैं अपने पास चाकू रखने लगे। मेरे कुछ दोस्त अपनी ताकत दिखाने के लिये कभी कभी चाकू का इस्तेमाल भी करते थे। एक बार हमारा यह गैंग एक चाकूबाज़ी के केस में फंस गया। मैं भाग्यशाली था कि मैं उस शाम उनके साथ नहीं था। मेरे ३ करीबी दोस्त हत्या करने के ज़ुर्म में पकड़े गये और उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया गया, जबकि मेरे यह दोस्त बड़े सरकारी अफसरों के बच्चे थे। भाग्यवश, जिसको चाकू लगा था उसकी जान बच गई और मेरे दोस्त ज़मानत पर छूट गये, लेकिन उन पर दायर हुए यह मुकद्मे २० साल से ज़्यादा चले। मेरा विवेक मरता जा रहा था और भयानक पापों के लिये मेरी अभिलाषा बढ़ती जा रही थी। मेरी दोस्ती सब प्रकार की गहरी बुराई में रहने वाले लोगों से बढ़ती गई। मुझ पर नियंत्रण रखने वाला कोई नहीं था। मैं घर देरी से आता, सुबह जल्दी चला जाता और कभी कभी रविवार को भी घर नहीं लौटता था।
मेरी बड़ी बहन, जो प्रभु के प्रेम में बनी हुई थी, अपने परिवार के साथ छुट्टियों में कुछ महीने हमारे साथ बिताने स्विट्ज़रलैंड से आती थी। जब वह आती तो उसके भक्ति के जीवन के कारण एक अजीब सा भय मुझ पर छा जाता था और मेरी आदतों पर अपने आप रोक लग जाती थी। जब तक वह हमारे यहाँ रहती थी तब तक हमारे यहाँ पारिवारिक प्रार्थना भी सुबह-शाम होती थी। परिवार से प्रभु का आदर चला गया था इस बात के लिये वह हमें घुड़कती थी। मेरे लिये तो रविवार का दिन मौज मस्ती, फिल्में और दोस्तों के साथ घूमने के लिये होता था। पर मैं अपनी बहन को देखता था, जो ज़्यादतर सर्दियों में हमारे पास आती थी, कि रविवार को चाहे बहुत धुंध वाली सुबह हो, तब भी वह अकेली ही, प्रभु की आराधना के लिये, बस में जाती थी। मैं अपनी बहन के साथ, उसको प्रसन्न करने की मनसा से, चला जाता था।
दिसम्बर १९९२ के एक रविवार की बात है, मैं परमेश्वर के घर गया हुआ था। हमेशा की तरह मैं पूरी सभा के दौरान परमेश्वर के घर के मुख्य स्भास्थल से बाहर आहते में बैठा हुआ था जहाँ माताएं अपने बहुत छोटे बच्चों के साथ बैठती थीं। उनके लिये उस आहते में एक स्पीकर भी लगा हुआ था जिससे अन्दर चल रहे प्रवचन और सन्देश उन तक पहुँचते रहें। उस दिन भी प्रचारक सन्देश दे रहा था और मैं हमेशा की तरह उस सन्देश पर कोई ध्यान नहीं दे रहा था। अचानक उसने सन्देश में सफाई से एक वाक्य कहा “तूने पाप किया है।” यह बात मेरे अन्तःकरण तक पहुँची और मैंने एकदम अपने आप से कहा “तो क्या हुआ?” बात यह नहीं थी कि मैं पापी था या नहीं, पर यह थी कि मैं पाप को पाप नहीं समझता था। मैंने उस आवाज़ को उस समय तो दबा दिया पर यह वाक्य “तूने पाप किया है” मेरे कानों में गूँजता रहा।
एक दिन मैं बाज़ार से गुज़र रहा था। एक दुकान की खिड़की से एक बहुत सुन्दर जिल्द वाली किताब ने मुझे आकर्षित किया। वह एक मसीही किताबों की दुकान थी। उस पुस्तक का शीर्षक था “३६५ दिन में बाईबल।” मुझे उस पुस्तक के लेख ने नहीं पर उसकी सुन्दर जिल्द ने आकर्षित किया। मैं उस दुकान में चला गया और मैंने उस पुस्तक को खरीद लिया। घर आने के बाद मेरी इच्छा उसे पढ़ने की हुई लेकिन यह मुझे एक व्यंग्य जैसा लगा क्योंकि अब बाईबल खोलकर पढ़ने में मुझे शर्म आती थी। मेरा विवेक मुझे कचोट रहा था कि मेरे जैसा व्यक्ति बाईबल पढ़ना चाह रहा है? पर मैंने हियाव बांधा और बाईबल को छुपाकर छत पर जाकर अन्दर से ताला मारकर पढ़ना शुरू किया। तभी एक अजीब चैन और शांति मुझपर आ उतरी और मुझे लगा कि यह शब्द मुझ से ही बातें कर रहे हैं। जब भी मैं उसे पढ़ता तब एक अद्भुत शांति मुझे घेर लेती थी। मैं उसमें लिखा सब कुछ तो समझ नहीं पा रहा था परन्तु मेरा दिल मान रहा था कि उत्पत्ति से प्रकाशित्वाक्य तक लिखा उसका एक एक शब्द सौ प्रतिशत सही है। मुझे उससे बहुत लगाव होने लगा और हमेशा यह जिज्ञासा रहती कि अब इस अध्याय के बाद क्या होगा? परमेश्वर का आत्मा लगातार मुझसे बातें करता रहा। पहले तो मैंने एहसास ही नहीं किया कि परमेश्वर इस तरह भी बातें करता है। मैं सोचता था कि यह तो मेरा मन है जो मुझसे पाप करवाता है और फिर बाईबल पढ़ने को कहता है। जब भी मैं बाईबल पढ़ता तो हर बार मुझे एहसास होता कि कोई मुझे बहुत सुन्दर शब्दों से समझा रहा है। बाईबल के प्रति मेरा प्रेम बढ़ता गया और अजीब रीति से मैं घर पर ज़्यादा समय बिताने लग और दोस्तों से कटने लगा।
यह मई १९९३ की बात थी जब परमेश्वर के आत्मा ने मेरे अन्दर अपना काम करना शुरू किया। तब से वह मुझे बदलता गया, नया बनाता गया और मुझे सत्य के एहसास पर ले आया। अब तक मैं उत्पत्ति से शुरू करके प्रेरितों के काम तक बाईबल पढ़ चुका था। मेरा हृदय भी बड़ी सफाई से यह जान चुका था कि पूरी सृष्टि का मालिक और कर्ता कौन है, यीशु कौन है, मनुष्य ने पाप क्यों किया, शैतान कौन है, परमेश्वर की मनसा क्या है और आज तक कौन इस पूरी सृष्टि को सम्भालता है।
अब मैं शैतान और अंधकार की ताकत के भय से आज़ाद हो गया और बाईबल के परमेश्वर के प्रति एक पवित्र और आदरमय भय मेरे जीवन में प्रवेश कर गया। अब मेरा सवाल यह नहीं था कि कौन मुझे पापी साबित करेगा? कयोंकि मैं ऐसे महान सृष्टिकर्ता के सामने बिल्कुल बेपर्दा था। मेरा सवाल अब यह था कि सूरज, चाँद, सितारों को अपने मूँह के शब्द भर से बनाने वाला महान सृष्टिकर्ता मुझ जैसे मूर्ख, लापरवाह और अयोग्य पापी में क्यों इतनी रुचि रखता है? मेरे जैसा व्यक्ति तो स्वर्ग में भी लज्जा का कारण होगा। यद्यपि मुझे मेरे इस सवाल का जवाब नहीं मिला परन्तु इस पूरे समय के दौरान जब मैं इस सर्वशक्तिमान परमेश्वर की पहिचान में लाया गया तो मैंने फिर कभी अपने आप को उससे भयभीत नहीं पाया। बल्कि मैं उसकी तरफ और भी खिंचा चला गया, उससे मिले हर प्रकाशन ने मेरे हर एक शक को दूर कर दिया।
एक दिन मेरी आँख रोमियों ५:८ पर पड़ी और तब मुझे समझ में आया कि परमेश्वर एक बेकार मुठ्ठी भर मिट्टी के मानव में क्यों रुचि रखता है। रोमियों ५:८ में लिखा है “परन्तु परमेश्वर हमपर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा।” मैं आगे और नहीं पढ़ पाया और बिल्कुल टूट गया। मेरा हदय बहुत भारी हो गया और मैं भावुक्ता से भर गया कि ऐसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मुझ से प्रेम किया, इतना झुक गया और मेरे लिये पापबलि बनकर मर गया। मैंने व्यक्तिगत रीति से प्रमेश्वर के प्रेम का एहसास किया और मैं आँसुओं से रोने लगा। मुझे ऐसा लगा कि प्रभु मुझ से पूछ रहा है कि अगर आज तू पृथ्वी छोड़ दे तो कहाँ जाएगा? और मेरा उत्तर था “नरक”। मैंने फिर उसकी आवाज़ सुनी “तू कहाँ जाना चाहता है?” मैंने कहा “प्रभु कोई भी नरक नहीं जाना चाहता, सब स्वर्ग जाना चाहते हैं।” मैंने फिर उसकी आवाज़ सुनी “तू कहाँ जाना चहता है?” मैंने कहा “स्वर्ग।” फिर मैंने सुना “मेरे पुत्र यीशु पर विश्वास कर जिसने तेरी खातिर अपने प्राण क्रूस पर दिए और उसके लहु से धुल जा।” मैंने एकदम अपना हृदय प्रभु को दे दिया और एक छोटी सी प्रार्थना करी, जिसे करने में मुझे शायद ३० सैकिण्ड ही लगे होंगे, शायद आपको मेरी यह प्रार्थना मूर्खता लगे। मैंने प्रभु से कहा कि “हे प्रभु मैं स्वर्ग में रहना चाहता हूँ पर मेरे पाप अनगिनित हैं और मुझे पता नहीं कि तू मेरे इन सब पापों को क्षमा कर सकता है या नहीं। लेकिन अगर तू ऐसा कर सकता है तो मैं एक नयी ज़िन्दगी बिताना चाहता हूँ और मैं अपने बीते हुए कल को भूल जाना चहता हूँ। मेरी इच्छा है कि मैं एक नई शुरुआत करूँ, लेकिन क्या मैं २६ साल के पापमय और दुष्टता से भरे जीवन से निकलकर नया बन सकता हूँ? पर फिर भी मैं अपने जीवन को सम्पूर्ण रीति से तेरे हाथों में सौंपता हूँ और विश्वास करता हूँ कि प्रभु यीशु ने मेरे लिए क्रूस पर अपने प्राण दिए और अपना लहू बहाया। जबकि वह पाप रहित था पर मेरे लिए बलि बन गया और मुझे धर्मी ठहराने के लिए जी उठा। तो कृपा करके मुझ अयोग्य की यह प्रार्थना हो सके तो ग्रहण करें।”
जैसे ही मैंने यह प्रार्थना पूरी की तो मुझे मेरे हृदय में एक ऐसा हल्कापन महसूस हुआ जिसको मैं बयान नहीं कर सकता। एक बड़ा और पुराना बोझ मुझ पर से हट गया। जैसे ही मैंने आँख खोली तो मुझे लगा कि मैं सम्पूर्ण बदला हुआ व्यक्ति हूँ। मेरे अन्दर एक अजीब आनन्द फूट निकला और मेरा हृदय खुशी से भर गया। मैंने तभी दूसरे कमरे में जाकर अपनी माँ और बहन से कहा “मेरा नया जन्म हो गया है।” जब भी मैं और लोगों से मिलता तो यही वाक्य बोलता था, मुझे इस बात की चिन्ता नहीं थी कि उन्हे यह समझ में आता था कि नहीं। मैं सबसे कहने लगा कि मेरे पाप क्षमा हो गये हैं। मेरे अद्भुत आनन्द को देखकर और विश्वासी भी प्रभावित होते थे।
मेरा नया जन्म होने के पश्चात मेरे अन्दर से एक अद्भुत आनन्द, जो बयान से बाहर था प्रवाहित होने लगा, मैं हर समय आनन्दित और प्रसन्नचित्त रहने लगा। परमेश्वर के वचन - बाईबल को पढ़ने से मुझे आनन्द मिलता और ऐसा प्रतीत होता जैसे परमेश्वर एक मित्र के समान मेरे करीब बैठकर मुझसे बातें कर रहा है। बाईबल की हर बात पर मुझे विश्वास होने लगा और चाहे कितनी भी असंभव प्रतीत होने वाली बात क्यों न हो, मुझे उस पर ज़रा भी अविश्वास नहीं होता था। परमेश्वर ने मेरे जीवन में अद्भुत रीति से काम करना शुरू कर दिया। मेरा पहला डर अपने दोस्तों के बारे में था कि मैं उनका सामना कैसे करूंगा? मैं सोचता था कि ‘हे परमेश्वर मैं इन दोस्तों से क्या कहूंगा’? वे कभी विश्वास नहीं करेंगे कि एक व्यक्ति जो इतना लड़ता था, इतनी गालीयाँ बकता था, इतना झगड़ालू था, वो अब एक दम से शाँत और शालीन स्वभाव का हो गया है और परमेश्वर के बारे में बातें करने लगा है; जो इसाई अपने होश संभालने के बाद कभी चर्च नहीं गया अब अचानक से बाइबल और चर्च की बातें करने लगा है और सप्ताह के सातों दिन बाईबल अध्यन के लिये एक बाईबल के पढ़ाने वाले भाई जौन कुमार, जिन्हे परमेश्वर ने अपने बड़े अनुग्रह से मुझे मिलाया, के पास जाने लगा है।
लेकिन कुछ बहुत अजीब होने लगा। पहले मेरे दोस्त प्रतिदिन मेरे घर अपनी मोटर साईकिल और स्कूटर पर आते और हौर्न बजाते थे, और फिर मैं उनके साथ निकल जाता था। लेकिन मेरे नया जन्म होने के बाद, जैसे शाम होने लगी, उनके सामने जाने की मेरी चिंता बढ़ने लगी, लेकिन उस शाम कोई नहीं आया, किसी ने हौर्न नहीं बजाया। यह एक बड़ी विचित्र और अविशवस्नीय बात थी। यह वास्तव में एक चमत्कार था कि उनमें से कोई मेरे घर नहीं आया। मैंने बाद में नीतिवचन में से सीखा कि परमेश्वर मनुष्य और राजाओं के हृदय को मोड़ देता है, और यही हुआ। मेरे सारे ऐसे दोस्त जिनके सामने जाने से मैं घबराता था मुझे लगभग एक वर्ष तक बिलकुल भूल गये, और इस समय में मैं परमेश्वर की निकटता और प्रेम में बढ़कर विश्वास में दृढ़ और स्थिर हो गया। फिर बाद में जब मैं उनमें से एक से मिला तो वह मुझसे यह कहकर क्षमा माँगने लगा कि फिलिप, मैं बहुत व्यस्त हो गया और तुमसे मिल नहीं सका। मैं अचंभित था और मैंने परमेश्वर का धन्यवाद किया कि यह उसी का कार्य था। वह मुझसे कितना प्रेम करता है, वह मेरे दिल की बातें और मेरे भय भी जान लेता है, मुझे सुरक्षित रखता है और मेरी भलाई के लिये कार्य भी करता है। ऐसे ही सैंकड़ों अनुभवों के द्वारा मैंने अपने जीवन में परमेश्वर की मौजूदगी को बारंबार महसूस किया है।
उसने मेरे जीवन में कई अद्भुत कार्य किये, अब उसके साथ मुझे १६ वर्ष बीत चुके हैं, मेरी शादी हो चुकी है, मेरे तीन बच्चे हैं और मैंने ज़िन्दगी के कई उतार चढ़ाव देखे हैं, लेकिन मैं किसी एक भी ऐसे क्षण को नहीं जानता जिसमें परमेश्वर का प्रेम, उसकी विश्वासयोग्यता,भलाई और दया मेरे साथ न रहीं हों। मैं कितनी ही बार उसकी भलाई के अनुसार उसके साथ विश्वासयोग्य नहीं रहा, किंतु वह वैसा ही रहा, कभी नहीं बदला; प्रत्येक परिस्थिति में मेरा परमेश्वर, मेरा बचानेवाला, मेरा प्रभु, मेरा पिता, मेरा मित्र और मेरा राजा बनकर।
मैं आरधाना करता हूँ परमेश्वर की जो मेरी अर्थहीन ज़िन्दगी में आया और उसे एक महिमामय आशा, ज्योति और जीवन से भर दिया।
प्रीय पाठक यदि मेरा जैसा टेढ़ा और व्यर्थ मनुष्य अनन्त जीवन और वर्णन से बाहर आनन्द प्राप्त कर सकता है, तो आप भी, अभी, एक प्रार्थना के द्वारा प्रभु यीशु को अपने जीवन में आमंत्रित करके ऐसे ही अनन्त जीवन और आनन्द को प्राप्त कर सकते हैं। आपको केवल यह विश्वास करना है कि प्रभु यीशु आपके पापों के लिये मारा गया, गाड़ा गया और फिर तीसरे दिन मुर्दों में से जी उठा ताकि जो कोई उसके नाम में विश्वास करे वह उसके द्वारा अनन्त जीवन, शांति, आनन्द और बहुत कुछ पाये।
मैं अपने परिवार में सबसे छोटा था। जब मैं १३ सालो का होने को था उससे ७ दिन पहले ही पिताजी परमेश्वर के पास चले गये (यद्यपि हमारे लिये वह अभी भी जीवित हैं)। जबकि मैं ऐसे भक्त परिवार में पला फिर भी मेरा हृदय संसार के पीछे जाने लगा। १२ वर्ष की उम्र तक तो मुझे परमेश्वर के वचन के प्रति बहुत आकर्शण था लेकिन मेरे पिता के देहाँत के बाद मेरे परिवार ने परमेश्वर के घर में जाना छोड़ दिया। केवल मेरी बड़ी बहन ही परमेश्वर की संगति में जाती थी।
एक अच्छे विश्वासी परिवार में पले-बड़े होने का लाभ मुझे यह रहा कि एक ढाल मेरे जीवन में रहती थी। मेरा संसार स्कूल, घर और दोस्त ही थे। जबकि मैं मोहल्ले में रहने वाले दोस्तों के साथ खेलता पर फिर भी मैं उनकी तरह व्यवहार नहीं कर पाता था। न ही मैं गाली दे पाता था, न ही उनकी तरह लड़ पाता था, न ही उनकी तरह धोखा दे पाता था और न ही उनकी तरह बन पाता था। मैं सारी गालियाँ मुँहज़ुबानी जानता था पर उनको मुँह खोलकर इस्तेमाल नहीं कर पाता था। मैं सारी दुष्ट बातें जानता था पर उनको व्यवाहरिक तौर से कर नहीं पाता था। मैं एहसास करता था कि हर वक्त कोई सामर्थ मुझे इन बुराईयों से रोके रहती है।
एक दिन मैंने अपने आप में यह फैसला लिया कि मुझे परमेश्वर की ज़रूरत नहीं है, अब मैं खुद ही अपने आप को बहुत अच्छी तरह सम्भाल सकता हूँ। क्योंकि मैं सोचता था कि मैं दूसरों से होशियार हूँ इसलिये मैं स्वयं सारी परिस्थितियों का सामना कर सकता हूँ। उस दिन से मैंने बाईबल पढ़ना और नियमित प्रार्थना करना बन्द कर दिया और धीरे धीरे मेरी जो भी अभिलाशायें परमेश्वर से सम्बन्ध रखती थीं मिटती चली गईं और एक लम्बे समय के बाद पूरी तौर से मर गईं। अब मैं भी किसी अन्य ऐसे व्यक्ति के समान बन गया जो परमेश्वर पर निर्भर नहीं। अब मैं जो चाहे वह करने के लिये पूरी तरह आज़ाद था। परिवार में केवल मेरी बड़ी बहन ही अकेली इन सालों में प्रभु के साथ चलती रही। वह अकेली ही हर एक रविवार आराधना के लिये संगति में जाती, प्रार्थना करती और परमेश्वर के वचन को पढ़ती थी, और आज तक वैसे ही है, उसका विवाह भी एक अच्छे विश्वासी के साथ हुआ है।
मेरे बड़े भाई और मैंने परिवार की ज़रूरतों के कारण कम उम्र में ही काम करना शुरू कर दिया था। तब मेरी उम्र १८ साल की थी। अब जब मैं उन बातों पर विचार करता हूँ तो मुझे सोच कर आश्चर्य होता है कि जबकि मेरे पास कोई योग्यता या पढ़ाई की डिग्री नहीं थी फिर भी मैं जहाँ भी जाता और जो भी करता, उसमें सफलता मेरे आगे आगे चलती थी। मुझे लगता था कि मेरा जीवन ठीक सा चल रहा है लेकिन आज मैं एहसास करता हूँ कि मेरी ज़िन्दगी सच्चाई की समझ से हटकर एक पागलपन की तरफ दौड़ने लगी थी। मेरे अन्दर और ज़्यादा पाने की अभिलाशाएं पनपने लगीं और मैं संसार में ही सन्तोष ढूँढने लगा। इन बातों से अनजने में ही मेरे अन्दर यह धारणा पैदा होने लगी कि जब तक तुम किसी को दुःख न दो, कानून न तोड़ो या फिर पकड़े न जाओ जीवन में सब कुछ ठीक है । एक ही जीवन है इसलिये जितना हो सके उसका आनन्द उठाओ। जब तक जो तुम्हारे साथ हैं, सहमत हैं, तब तक सब बातें ठीक हैं। जीवन चलता गया और मेरी आदतें बुरी होती गईं लेकिन मेरे लिये वे बातें मात्र मनोरंजन थीं। मेरे परिवार वालों को इसके बारे में कुछ मालूम नहीं था। मेरी माँ, परिवार और अन्य लोग सोचते थे कि मैं एक बहुत अच्छा और सभ्य व्यक्ति हूँ। मेरे अन्दर एक दोहरा व्यक्तित्व पैदा हो गया। एक चेहरा जो दूसरों को दिखाने के लिये और दूसरा अपने आप को खुश करने के लिये। जैसे जैसे समय बीतता गया इन दोनो चेहरों को वक्त-ज़रूरत अनुसार इस्तेमाल करने में मैं माहिर हो गया।
एक समय ऐसा भी आया कि मैं एक छोटी गैंगवॉर में फँस गया। मैं एक ऐसे गिरोह के लोगों के साथ रहने लगा जो सिर्फ मुहल्ले की गलियों, इलाकों या कॉलेज में छोटी मोटी गुन्डागर्दी करते थे। हमने कुछ लोगों से दुश्मनी पाल ली। हममें से कुछ लोग और मैं अपने पास चाकू रखने लगे। मेरे कुछ दोस्त अपनी ताकत दिखाने के लिये कभी कभी चाकू का इस्तेमाल भी करते थे। एक बार हमारा यह गैंग एक चाकूबाज़ी के केस में फंस गया। मैं भाग्यशाली था कि मैं उस शाम उनके साथ नहीं था। मेरे ३ करीबी दोस्त हत्या करने के ज़ुर्म में पकड़े गये और उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया गया, जबकि मेरे यह दोस्त बड़े सरकारी अफसरों के बच्चे थे। भाग्यवश, जिसको चाकू लगा था उसकी जान बच गई और मेरे दोस्त ज़मानत पर छूट गये, लेकिन उन पर दायर हुए यह मुकद्मे २० साल से ज़्यादा चले। मेरा विवेक मरता जा रहा था और भयानक पापों के लिये मेरी अभिलाषा बढ़ती जा रही थी। मेरी दोस्ती सब प्रकार की गहरी बुराई में रहने वाले लोगों से बढ़ती गई। मुझ पर नियंत्रण रखने वाला कोई नहीं था। मैं घर देरी से आता, सुबह जल्दी चला जाता और कभी कभी रविवार को भी घर नहीं लौटता था।
मेरी बड़ी बहन, जो प्रभु के प्रेम में बनी हुई थी, अपने परिवार के साथ छुट्टियों में कुछ महीने हमारे साथ बिताने स्विट्ज़रलैंड से आती थी। जब वह आती तो उसके भक्ति के जीवन के कारण एक अजीब सा भय मुझ पर छा जाता था और मेरी आदतों पर अपने आप रोक लग जाती थी। जब तक वह हमारे यहाँ रहती थी तब तक हमारे यहाँ पारिवारिक प्रार्थना भी सुबह-शाम होती थी। परिवार से प्रभु का आदर चला गया था इस बात के लिये वह हमें घुड़कती थी। मेरे लिये तो रविवार का दिन मौज मस्ती, फिल्में और दोस्तों के साथ घूमने के लिये होता था। पर मैं अपनी बहन को देखता था, जो ज़्यादतर सर्दियों में हमारे पास आती थी, कि रविवार को चाहे बहुत धुंध वाली सुबह हो, तब भी वह अकेली ही, प्रभु की आराधना के लिये, बस में जाती थी। मैं अपनी बहन के साथ, उसको प्रसन्न करने की मनसा से, चला जाता था।
दिसम्बर १९९२ के एक रविवार की बात है, मैं परमेश्वर के घर गया हुआ था। हमेशा की तरह मैं पूरी सभा के दौरान परमेश्वर के घर के मुख्य स्भास्थल से बाहर आहते में बैठा हुआ था जहाँ माताएं अपने बहुत छोटे बच्चों के साथ बैठती थीं। उनके लिये उस आहते में एक स्पीकर भी लगा हुआ था जिससे अन्दर चल रहे प्रवचन और सन्देश उन तक पहुँचते रहें। उस दिन भी प्रचारक सन्देश दे रहा था और मैं हमेशा की तरह उस सन्देश पर कोई ध्यान नहीं दे रहा था। अचानक उसने सन्देश में सफाई से एक वाक्य कहा “तूने पाप किया है।” यह बात मेरे अन्तःकरण तक पहुँची और मैंने एकदम अपने आप से कहा “तो क्या हुआ?” बात यह नहीं थी कि मैं पापी था या नहीं, पर यह थी कि मैं पाप को पाप नहीं समझता था। मैंने उस आवाज़ को उस समय तो दबा दिया पर यह वाक्य “तूने पाप किया है” मेरे कानों में गूँजता रहा।
एक दिन मैं बाज़ार से गुज़र रहा था। एक दुकान की खिड़की से एक बहुत सुन्दर जिल्द वाली किताब ने मुझे आकर्षित किया। वह एक मसीही किताबों की दुकान थी। उस पुस्तक का शीर्षक था “३६५ दिन में बाईबल।” मुझे उस पुस्तक के लेख ने नहीं पर उसकी सुन्दर जिल्द ने आकर्षित किया। मैं उस दुकान में चला गया और मैंने उस पुस्तक को खरीद लिया। घर आने के बाद मेरी इच्छा उसे पढ़ने की हुई लेकिन यह मुझे एक व्यंग्य जैसा लगा क्योंकि अब बाईबल खोलकर पढ़ने में मुझे शर्म आती थी। मेरा विवेक मुझे कचोट रहा था कि मेरे जैसा व्यक्ति बाईबल पढ़ना चाह रहा है? पर मैंने हियाव बांधा और बाईबल को छुपाकर छत पर जाकर अन्दर से ताला मारकर पढ़ना शुरू किया। तभी एक अजीब चैन और शांति मुझपर आ उतरी और मुझे लगा कि यह शब्द मुझ से ही बातें कर रहे हैं। जब भी मैं उसे पढ़ता तब एक अद्भुत शांति मुझे घेर लेती थी। मैं उसमें लिखा सब कुछ तो समझ नहीं पा रहा था परन्तु मेरा दिल मान रहा था कि उत्पत्ति से प्रकाशित्वाक्य तक लिखा उसका एक एक शब्द सौ प्रतिशत सही है। मुझे उससे बहुत लगाव होने लगा और हमेशा यह जिज्ञासा रहती कि अब इस अध्याय के बाद क्या होगा? परमेश्वर का आत्मा लगातार मुझसे बातें करता रहा। पहले तो मैंने एहसास ही नहीं किया कि परमेश्वर इस तरह भी बातें करता है। मैं सोचता था कि यह तो मेरा मन है जो मुझसे पाप करवाता है और फिर बाईबल पढ़ने को कहता है। जब भी मैं बाईबल पढ़ता तो हर बार मुझे एहसास होता कि कोई मुझे बहुत सुन्दर शब्दों से समझा रहा है। बाईबल के प्रति मेरा प्रेम बढ़ता गया और अजीब रीति से मैं घर पर ज़्यादा समय बिताने लग और दोस्तों से कटने लगा।
यह मई १९९३ की बात थी जब परमेश्वर के आत्मा ने मेरे अन्दर अपना काम करना शुरू किया। तब से वह मुझे बदलता गया, नया बनाता गया और मुझे सत्य के एहसास पर ले आया। अब तक मैं उत्पत्ति से शुरू करके प्रेरितों के काम तक बाईबल पढ़ चुका था। मेरा हृदय भी बड़ी सफाई से यह जान चुका था कि पूरी सृष्टि का मालिक और कर्ता कौन है, यीशु कौन है, मनुष्य ने पाप क्यों किया, शैतान कौन है, परमेश्वर की मनसा क्या है और आज तक कौन इस पूरी सृष्टि को सम्भालता है।
अब मैं शैतान और अंधकार की ताकत के भय से आज़ाद हो गया और बाईबल के परमेश्वर के प्रति एक पवित्र और आदरमय भय मेरे जीवन में प्रवेश कर गया। अब मेरा सवाल यह नहीं था कि कौन मुझे पापी साबित करेगा? कयोंकि मैं ऐसे महान सृष्टिकर्ता के सामने बिल्कुल बेपर्दा था। मेरा सवाल अब यह था कि सूरज, चाँद, सितारों को अपने मूँह के शब्द भर से बनाने वाला महान सृष्टिकर्ता मुझ जैसे मूर्ख, लापरवाह और अयोग्य पापी में क्यों इतनी रुचि रखता है? मेरे जैसा व्यक्ति तो स्वर्ग में भी लज्जा का कारण होगा। यद्यपि मुझे मेरे इस सवाल का जवाब नहीं मिला परन्तु इस पूरे समय के दौरान जब मैं इस सर्वशक्तिमान परमेश्वर की पहिचान में लाया गया तो मैंने फिर कभी अपने आप को उससे भयभीत नहीं पाया। बल्कि मैं उसकी तरफ और भी खिंचा चला गया, उससे मिले हर प्रकाशन ने मेरे हर एक शक को दूर कर दिया।
एक दिन मेरी आँख रोमियों ५:८ पर पड़ी और तब मुझे समझ में आया कि परमेश्वर एक बेकार मुठ्ठी भर मिट्टी के मानव में क्यों रुचि रखता है। रोमियों ५:८ में लिखा है “परन्तु परमेश्वर हमपर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा।” मैं आगे और नहीं पढ़ पाया और बिल्कुल टूट गया। मेरा हदय बहुत भारी हो गया और मैं भावुक्ता से भर गया कि ऐसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मुझ से प्रेम किया, इतना झुक गया और मेरे लिये पापबलि बनकर मर गया। मैंने व्यक्तिगत रीति से प्रमेश्वर के प्रेम का एहसास किया और मैं आँसुओं से रोने लगा। मुझे ऐसा लगा कि प्रभु मुझ से पूछ रहा है कि अगर आज तू पृथ्वी छोड़ दे तो कहाँ जाएगा? और मेरा उत्तर था “नरक”। मैंने फिर उसकी आवाज़ सुनी “तू कहाँ जाना चाहता है?” मैंने कहा “प्रभु कोई भी नरक नहीं जाना चाहता, सब स्वर्ग जाना चाहते हैं।” मैंने फिर उसकी आवाज़ सुनी “तू कहाँ जाना चहता है?” मैंने कहा “स्वर्ग।” फिर मैंने सुना “मेरे पुत्र यीशु पर विश्वास कर जिसने तेरी खातिर अपने प्राण क्रूस पर दिए और उसके लहु से धुल जा।” मैंने एकदम अपना हृदय प्रभु को दे दिया और एक छोटी सी प्रार्थना करी, जिसे करने में मुझे शायद ३० सैकिण्ड ही लगे होंगे, शायद आपको मेरी यह प्रार्थना मूर्खता लगे। मैंने प्रभु से कहा कि “हे प्रभु मैं स्वर्ग में रहना चाहता हूँ पर मेरे पाप अनगिनित हैं और मुझे पता नहीं कि तू मेरे इन सब पापों को क्षमा कर सकता है या नहीं। लेकिन अगर तू ऐसा कर सकता है तो मैं एक नयी ज़िन्दगी बिताना चाहता हूँ और मैं अपने बीते हुए कल को भूल जाना चहता हूँ। मेरी इच्छा है कि मैं एक नई शुरुआत करूँ, लेकिन क्या मैं २६ साल के पापमय और दुष्टता से भरे जीवन से निकलकर नया बन सकता हूँ? पर फिर भी मैं अपने जीवन को सम्पूर्ण रीति से तेरे हाथों में सौंपता हूँ और विश्वास करता हूँ कि प्रभु यीशु ने मेरे लिए क्रूस पर अपने प्राण दिए और अपना लहू बहाया। जबकि वह पाप रहित था पर मेरे लिए बलि बन गया और मुझे धर्मी ठहराने के लिए जी उठा। तो कृपा करके मुझ अयोग्य की यह प्रार्थना हो सके तो ग्रहण करें।”
जैसे ही मैंने यह प्रार्थना पूरी की तो मुझे मेरे हृदय में एक ऐसा हल्कापन महसूस हुआ जिसको मैं बयान नहीं कर सकता। एक बड़ा और पुराना बोझ मुझ पर से हट गया। जैसे ही मैंने आँख खोली तो मुझे लगा कि मैं सम्पूर्ण बदला हुआ व्यक्ति हूँ। मेरे अन्दर एक अजीब आनन्द फूट निकला और मेरा हृदय खुशी से भर गया। मैंने तभी दूसरे कमरे में जाकर अपनी माँ और बहन से कहा “मेरा नया जन्म हो गया है।” जब भी मैं और लोगों से मिलता तो यही वाक्य बोलता था, मुझे इस बात की चिन्ता नहीं थी कि उन्हे यह समझ में आता था कि नहीं। मैं सबसे कहने लगा कि मेरे पाप क्षमा हो गये हैं। मेरे अद्भुत आनन्द को देखकर और विश्वासी भी प्रभावित होते थे।
मेरा नया जन्म होने के पश्चात मेरे अन्दर से एक अद्भुत आनन्द, जो बयान से बाहर था प्रवाहित होने लगा, मैं हर समय आनन्दित और प्रसन्नचित्त रहने लगा। परमेश्वर के वचन - बाईबल को पढ़ने से मुझे आनन्द मिलता और ऐसा प्रतीत होता जैसे परमेश्वर एक मित्र के समान मेरे करीब बैठकर मुझसे बातें कर रहा है। बाईबल की हर बात पर मुझे विश्वास होने लगा और चाहे कितनी भी असंभव प्रतीत होने वाली बात क्यों न हो, मुझे उस पर ज़रा भी अविश्वास नहीं होता था। परमेश्वर ने मेरे जीवन में अद्भुत रीति से काम करना शुरू कर दिया। मेरा पहला डर अपने दोस्तों के बारे में था कि मैं उनका सामना कैसे करूंगा? मैं सोचता था कि ‘हे परमेश्वर मैं इन दोस्तों से क्या कहूंगा’? वे कभी विश्वास नहीं करेंगे कि एक व्यक्ति जो इतना लड़ता था, इतनी गालीयाँ बकता था, इतना झगड़ालू था, वो अब एक दम से शाँत और शालीन स्वभाव का हो गया है और परमेश्वर के बारे में बातें करने लगा है; जो इसाई अपने होश संभालने के बाद कभी चर्च नहीं गया अब अचानक से बाइबल और चर्च की बातें करने लगा है और सप्ताह के सातों दिन बाईबल अध्यन के लिये एक बाईबल के पढ़ाने वाले भाई जौन कुमार, जिन्हे परमेश्वर ने अपने बड़े अनुग्रह से मुझे मिलाया, के पास जाने लगा है।
लेकिन कुछ बहुत अजीब होने लगा। पहले मेरे दोस्त प्रतिदिन मेरे घर अपनी मोटर साईकिल और स्कूटर पर आते और हौर्न बजाते थे, और फिर मैं उनके साथ निकल जाता था। लेकिन मेरे नया जन्म होने के बाद, जैसे शाम होने लगी, उनके सामने जाने की मेरी चिंता बढ़ने लगी, लेकिन उस शाम कोई नहीं आया, किसी ने हौर्न नहीं बजाया। यह एक बड़ी विचित्र और अविशवस्नीय बात थी। यह वास्तव में एक चमत्कार था कि उनमें से कोई मेरे घर नहीं आया। मैंने बाद में नीतिवचन में से सीखा कि परमेश्वर मनुष्य और राजाओं के हृदय को मोड़ देता है, और यही हुआ। मेरे सारे ऐसे दोस्त जिनके सामने जाने से मैं घबराता था मुझे लगभग एक वर्ष तक बिलकुल भूल गये, और इस समय में मैं परमेश्वर की निकटता और प्रेम में बढ़कर विश्वास में दृढ़ और स्थिर हो गया। फिर बाद में जब मैं उनमें से एक से मिला तो वह मुझसे यह कहकर क्षमा माँगने लगा कि फिलिप, मैं बहुत व्यस्त हो गया और तुमसे मिल नहीं सका। मैं अचंभित था और मैंने परमेश्वर का धन्यवाद किया कि यह उसी का कार्य था। वह मुझसे कितना प्रेम करता है, वह मेरे दिल की बातें और मेरे भय भी जान लेता है, मुझे सुरक्षित रखता है और मेरी भलाई के लिये कार्य भी करता है। ऐसे ही सैंकड़ों अनुभवों के द्वारा मैंने अपने जीवन में परमेश्वर की मौजूदगी को बारंबार महसूस किया है।
उसने मेरे जीवन में कई अद्भुत कार्य किये, अब उसके साथ मुझे १६ वर्ष बीत चुके हैं, मेरी शादी हो चुकी है, मेरे तीन बच्चे हैं और मैंने ज़िन्दगी के कई उतार चढ़ाव देखे हैं, लेकिन मैं किसी एक भी ऐसे क्षण को नहीं जानता जिसमें परमेश्वर का प्रेम, उसकी विश्वासयोग्यता,भलाई और दया मेरे साथ न रहीं हों। मैं कितनी ही बार उसकी भलाई के अनुसार उसके साथ विश्वासयोग्य नहीं रहा, किंतु वह वैसा ही रहा, कभी नहीं बदला; प्रत्येक परिस्थिति में मेरा परमेश्वर, मेरा बचानेवाला, मेरा प्रभु, मेरा पिता, मेरा मित्र और मेरा राजा बनकर।
मैं आरधाना करता हूँ परमेश्वर की जो मेरी अर्थहीन ज़िन्दगी में आया और उसे एक महिमामय आशा, ज्योति और जीवन से भर दिया।
प्रीय पाठक यदि मेरा जैसा टेढ़ा और व्यर्थ मनुष्य अनन्त जीवन और वर्णन से बाहर आनन्द प्राप्त कर सकता है, तो आप भी, अभी, एक प्रार्थना के द्वारा प्रभु यीशु को अपने जीवन में आमंत्रित करके ऐसे ही अनन्त जीवन और आनन्द को प्राप्त कर सकते हैं। आपको केवल यह विश्वास करना है कि प्रभु यीशु आपके पापों के लिये मारा गया, गाड़ा गया और फिर तीसरे दिन मुर्दों में से जी उठा ताकि जो कोई उसके नाम में विश्वास करे वह उसके द्वारा अनन्त जीवन, शांति, आनन्द और बहुत कुछ पाये।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें